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जाको राखे साइयां मार सके ना कोय संदर्भ : जापान में चमत्कार
फिल्म हैरी पॉटर में एक पक्षी था फीनिक्स। बताते कि वह अपनी राख से ही जन्म लेता है। ठीक उसी तरह जापान ही एक ऐसा देश है, जो अपनी राख से दोबारा उठ खड़ा हुआ है। 
परमाणु  हमले से तबाह हुए हिरोशिमा और नागासाकी को दोबारा बसाने में जापान ने काफी मेहनत की है। सिस्टमेटिक डेवलपमेंट और जल स्रोतों के बेहतर मैनेजमेंट के कारण आज हिरोशिमा और नागासाकी काफी सुंदर दिखते हैं। दुनिया भर से लाखों की तादाद में सैलानी हर साल यहां आते हैं। हिरोशिमा मेमोरियल और म्यूजियम लोगों को परमाणु हमले की तबाही की याद दिलाते हैं।
परमाणु हमले की मार झेल चुका जापान आज अपनी तकनीक और  मेहनत की बदौलत दुनिया के सबसे विकसित देशों में शामिल है। वह अपनी परमाणु तकनीक का शांतिपूर्ण तरीके से ऊर्जा उत्पादन के लिए इस्तेमाल करने का समर्थन करता है। आज जापान विकास के नये- नये अध्याय जोड़ रहा है और दुनिया भर के बाजारों में अपना दबदबा कायम कर रहा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के बम वर्षक विमान ने 6 अगस्त , 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर "लिटिल ब्वाय"नामक परमाणु बम से हमला किया था । इसके तीन दिन बाद ही  अमेरिका ने 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर "फैट मैन" नामक दूसरा परमाणु बम गिराया। इन परमाणु हमलों से हजारों लोगों की तत्क्षण मौत हो गयी। यह मानव जाति के इतिहास में पहला और आखिरी परमाणु हमला था। इस परमाणु हमले को 1941 के अमेरिका के नौसैनिक बेस "पर्ल हार्बर" पर किये गये जापानी हमले का बदला माना जाता है।
वहीं नया साल 2024  जापान के लिए शुभ साबित नहीं हुआ। साल के पहले दिन ही जापान भीषण भूकंप से कांप उठा। वहीं साल के दूसरे दिन टोक्यो एयरपोर्ट पर लैंडिंग के बाद एक यात्री विमान रनवे पर खड़े दूसरे विमान से टकरा गया, जिससे उसमें आग लग गयी। मगर इसे चमत्कार ही कहेंगे कि इमरजेंसी गेट से जैसे ही सभी  379  यात्री सुरक्षित बाहर निकले, उसके कुछ देर बाद विमान में धमाका हुआ।
इस प्रकार "जाको राखे साइयां मार सके ना कोय " वाली कहावत  चरितार्थ हुई। नये साल की शुरुआत जापान के लिए दुखद और सुखद कही जा सकती है।

तनाव से दूर रहें, हार्ट स्वस्थ रहेगा संदर्भ : दिल के मरीजों की बढ़ती जा रही है संख्या
एक समय था जब हार्ट अटैक को बड़े - बूढों की बीमारी माना जाता था। लेकिन आजकल 25- 30 - 40 की उम्र वाले भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। सिद्धार्थ शुक्ला ( बिग बॉस के विजेता) , केके(  प्लेबैक सिंगर) ,  राजू श्रीवास्तव ( कॉमेडियन)  इसके उदाहरण कहे जा सकते हैं। आजकल हार्ट अटैक के मामले युवाओं में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।
आधुनिक युग और पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध से बदली जीवन शैली, गलत खानपान, किसी भी कारण को लेकर अत्यधिक तनाव, नींद पूरी न हो पाना और सिगरेट - शराब का अत्यधिक सेवन आदि भी हार्ट अटैक का कारण बन रहा है।
कॉरपोरेट कल्चर में ऑफिस के काम करने के तरीकों में बहुत बदलाव आया है। काम का बोझ,  टारगेट पूरा न हो पाना और कंपटीशन के चलते युवा हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि वह अपने तनाव को कम करें। इसके लिए एक समय में एक ही काम करें। मल्टी टॉक्सकिंग से बचें। कोरोना काल में " वर्क एट होम " की मजबूरी अब आफत बनती जा रही है। वर्तमान समय में ज्यादातर लोग घर से ही काम कर रहे हैं। ऐसे में युवा एक ही जगह पर लगातार काफी देर बैठे रहते हैं। उनके पास एक्सरसाइज या कोई दूसरी फिजिकल एक्टिविटी के लिए समय नहीं रहता।
बदलती जीवन शैली के कारण युवाओं में डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि का जोखिम बढ़ता जा रहा है। आजकल युवाओं की पहली पसंद फास्ट फूड बने हुए हैं। गलत खानपान के कारण शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ता जाता है और इंसुलिन की मात्रा कम होने लगती है। इससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। आज युवाओं का ज्यादातर समय फोन और लैपटॉप पर बीतता है। स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से उनकी नींद पूरी नहीं होती। इससे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इस स्थिति को देखते हुए लोगों को सावधान होने की जरूरत है।
और अंत में नियमित व्यायाम ( एक्सरसाइज) और स्वस्थ भोजन को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत ही जरूरी है। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली अपनायें और मस्त रहें।
ज्ञान अर्जित कर मनुष्य बनें संदर्भ : राजद विधायक के बिगड़े बोल
मनुष्य के नीचे गिरने की कोई सीमा नहीं होती । वह पशुता से भी नीचे जा सकता है । यह मनुष्य की फितरत है । यह गिरावट उसके संस्कार , ज्ञान और विवेक पर निर्भर करती है । वेदों में सभी मनुष्यों को उपदेश दिया गया है कि "मनुर्भव" अर्थात ज्ञान अर्जित कर मनुष्य बनो।
जिनके पास पूर्ण बुद्धि और विवेक होता है वह उत्तम पुरुष कहलाता है । वहीं अल्प बुद्धि वाला मनुष्य मनुष्य रूपी पशु के समान होता है।
आजकल लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कुछ लोग ( I.N.D.I.A. गठबंधन के)  कभी सनातन धर्म तो कभी हिंदू देवी-देवताओं के बारे में विवादास्पद बयान बाजी करते रहते हैं। इससे सनातन धर्मियों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। वहीं इस तरह के बयान देने से सनातन धर्म का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। संसार के करीब करीब सभी धर्मों में वर्णन है कि किसी भी धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए।
कहा भी गया है कि जिसका न प्रारंभ है और जिसका न अंत है, उस सत्य को ही सनातन कहा जाता है। एक उदाहरण से इसे समझते हैं कि अलग-अलग रंगों की गायों का दूध सफेद ही होता है। उसी तरह अलग-अलग धर्मों, पंथों और मतों आदि के द्वारा भी एक ही तरह की शिक्षा दी जाती है कि सभी धर्मों का आदर करें।
और अंत में किसी के कुछ भी कह देने से कुछ भी नहीं हो सकता। इस तरह के नेताओं के बयान से इंडी गठबंधन की लुटिया ही डूबेगी। लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह के बयानों से विपक्षियों को ही नुकसान होगा।
नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह संदर्भ : 2023 अलविदा
नये साल का पहला दिन एक वैश्विक पर्व की तरह मनाया जाता है। इसे मनाने की परंपराएं दुनिया की तरह रंगीन हैं। यह सारी दुनिया के लिए नयी उम्मीदों, नयी शुरुआत तथा आने वाले समय के रोमांच को अनुभव करने का उत्सव है।
नये साल का पहला दिन आपके जीवन में प्रियजनों के करीब आने और खोये हुए  दोस्तों के साथ संपर्क को पुनर्जीवित करने का एक शानदार अवसर है। सभी लोग बीत रहे साल को अलविदा कह नये साल का इस उम्मीद के साथ स्वागत करते हैं कि यह सबके जीवन में बहुत सारी खुशियां लेकर आयेगा।
हर साल की तरह इस साल भी अलग-अलग देशों में नये साल के उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।
नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह।
महक उठे बगिया सबकी पाकर इसका प्यार।।
और अंत में नया साल सभी लोगों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आये।
नये साल की शुभकामनाएं।
शिक्षा और जागरूकता ही है हल संदर्भ : जादू - टोना कर आठ साल की बच्ची की हत्या
जादू हाथ की सफाई के साथ-साथ विज्ञान, गणित, कला तथा बातों से प्रभावित करने की क्रिया कही जा सकती है। इसमें कभी-कभी सम्मोहन विद्या का भी प्रयोग किया जाता है।  जो जादू स्टेज पर जादूगर या मैजिशियन दिखाते हैं या जो स्वयंभू बाबा लोग हवा में हाथ हिला कर भभूत या सोना निकाल कर दिखाते हैं या सड़क पर जो मदारी अपना करतब दिखाते हैं, वह सिर्फ और सिर्फ हाथ की सफाई ही होता है।
जादू- टोना एक प्रकार से अंधविश्वास है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। भारत में भी जहां अशिक्षा है और पिछड़े इलाके हैं, वहां डायन आदि के आरोप लगाकर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाती है। डायन प्रथा बिहार के कई इलाकों में आज भी बदस्तूर जारी है। इसमें जादू -टोना के नाम पर महिलाओं की बलि तक दे दी जाती है। अफसोस की बात यह है कि आधुनिक युग में भी हमारा समाज जादू -टोना जैसी मानसिकता से ग्रस्त है।
संपत्ति विवाद है कारण : जादू -टोना और डायन के नाम पर सामाजिक अत्याचारों का शिकार हुई महिलाओं में करीब 90% मामलों की जड़ में संपत्ति या जमीन विवाद ही शामिल होता है। दूसरी ओर जब कोई महिला पुरुष प्रधान समाज में मूल्य एवं सामंती सांस्कृतिक प्रतिमानों को जब अस्वीकार करती है तो उसे डायन करार दे दिया जाता है। इसे अंजाम देने में गांव के प्रमुख लोग, पंचायत और परिजन आदि ही शामिल होते हैं। बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को डायन बताकर उनको प्रताड़ित ( हत्या तक) करने की प्रथा आज भी जारी है।
बिहार में हाल ही में जादू -टोना के नाम पर एक आठ साल की बच्ची की हत्या कर दी गयी । तांत्रिक क्रियाओं से जुड़ी हत्याओं को अंधविश्वास और अशिक्षा से जोड़ना आसान लगता है, लेकिन ऐसे मामलों में शिक्षित, मध्यवर्गीय परिवारों से जुड़े लोग भी शामिल पाये जाते हैं। इसलिए इस तरह की घटनाओं का गहरा विश्लेषण जरूरी हो जाता है ।
और अंत में इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए कानून बनाने से केवल आधी जीत ही हासिल होगी, क्योंकि अभी अंधविश्वास, जादू - टोना या मानव बलि से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है। केवल आईपीसी ( इंडियन पेनल कोड) की कुछ धाराओं के तहत ऐसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है।इसकी पूर्णत: रोकथाम के लिए समुदायों, धार्मिक गुरुओं आदि को शामिल कर लोगों के बीच जागरूकता लानी होगी।
सब डोल रहे गलबहियां डाल संदर्भ : इंडी का पीएम चेहरा कौन
आत्म सम्मान को ताक पर रख कर डोल रहे गलबहियां डाल।
सभी चाहते पीएम बनना मगर नहीं गल रही किसी की दाल।।
अंग्रेजों की राह पर चल कर बांट रहे हैं लोगों को।
घटक दलों की कारस्तानी से सभी नोचते अपने बाल।।
मुफ्त की रेबड़ी बांट रहे सब सोच रहे होगा कल्याण।
इंडी का चेहरा बनने को सभी चल रहे अपनी चाल।।
जदयू में लग रही सेंध और कांग्रेस हो रही बेचैन।
चुनावी समर पार करने को सभी का हो रहा हाल बेहाल।।

रविशंकर शर्मा
2024 की लोकसभा क्या विपक्ष विहीन होगी संदर्भ : राहुल गांधी अब निकालेंगे भारत न्याय यात्रा
कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कितनी सफल रही, यह तो राहुल गांधी या उनकी टीम ही बता सकती है। कांग्रेस इस यात्रा के जरिये महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे उठाकर अपनी खोयी ताकत फिर से हासिल करना चाहती थी साथ ही राहुल गांधी को एक जननेता के रूप में स्थापित करना चाहती थी।
यात्रा की समाप्ति के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव हुए। रिजल्ट तो सभी को मालूम ही है। हां, ये बात दीगर है कि गांधी - नेहरू परिवार ने इस देश को तीन प्रधानमंत्री ( जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ) दिये। जिन्होंने लगभग चालीस सालों तक शासन किया।
एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जिसने अपने 100 साल से ज्यादा के लंबे इतिहास में से ज्यादातर समय भारतीय राजनीति को दिशा दी, वह  2024 के लोक सभा चुनाव से पहले खुद में नयी जान फूंकने के लिए छटपटा रही है। इस समय 543 सदस्यों वाली भारतीय संसद में कांग्रेस सांसदों की संख्या मात्र 48 ही रह गयी है।
दूसरी और कांग्रेस के 138वें स्थापना दिवस से एक दिन पहले राहुल गांधी के नेतृत्व में 14 जनवरी , 2024 से 20 मार्च तक भारत न्याय यात्रा निकाली जायेगी। यह यात्रा मणिपुर से मुंबई तक होगी।
यह बात अलग है कि भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के बाद कांग्रेस की मात्र तीन राज्यों में ही सरकार बची है।
मालूम हो कि भारत न्याय यात्रा के बाद 2024 के  मध्य में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। वहीं तीन राज्यों में सिमटी कांग्रेस क्या I.N.D.I.A गठबंधन के सहारे भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे सकेगी या अपनी बची - खुची सीटें भी खो देगी, जिसकी उम्मीद ज्यादा ही दिखायी पड़ रही है। कारण कि I.N.D.I.A गठबंधन के घटक दलों के नेताओं द्वारा रह - रह कर ऐसे विष वमन किये जाते हैं , जिसका आम जनता पर अच्छा खासा असर पड़ता है।
ओपन एयर थियेटर के जनक थे भिखारी ठाकुर संदर्भ : शागिर्द को मिल चुका है पद्म श्री
भिखारी ठाकुर को भारत में ओपन एयर थियेटर का जनक कहा जा सकता है। इनका जन्म बिहार के गरीब और उपेक्षित हज्जाम परिवार में 18 दिसंबर, 1887 को हुआ था। उस समय ठाकुर परिवार से आने के कारण इनका पढ़ने- लिखने का मौका नहीं मिला।
शुरूआती जीवन में रोजी-रोटी के लिए घर-गांव छोड़कर खड़गपुर चले गये।पर,इस दौरान उन्होंने अपना पुश्तैनी धंधा नहीं छोड़ा। बाद में भिखारी ठाकुर गांव लौट आये और गांव में लोक कलाकारों की एक  नृत्य मंडली बनायी। मंच तो था नहीं, इसलिए पेड़ के नीचे चौकी का मंच बना रामलीला का मंचन करने लगे। इसलिए भिखारी ठाकुर को ओपन एयर थियेटर का जनक माना जा सकता है।
उन्होंने अपने आरंभिक जीवन में स्वस्थ और समता मूलक समाज के निर्माण पर केंद्रित नाटक और गीतों की रचना की,जो आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं, जो उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाता है।
उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कई नाटक और गीत लिखे, जिसने लोगों की मानसिकता बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । उन्होंने समाज की हर कुरीतियों पर चोट की। उन्होंने सामंतवादी संस्कृति और लोगों पर चढ़े जाति व समुदाय के रंग के खिलाफ अपने गीतों के माध्यम से खूब प्रहार किया।
उनके नाटकों में जीवन संघर्ष, सामंती ठसक, गांव की गरीबी, जातिवाद, पलायन की पीड़ा और विरह की वेदना साफ-साफ झलकती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में बिदेसिया, बेटी बेचवा, गबर धिचोर, कलजुग प्रेम,भाई बिरोध, राधेश्याम बहार आदि प्रमुख हैं।
बिहारी ठाकुर जनमानस के कलाकार थे। उनके कार्यों से प्रभावित होकर राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा था।
और अंत में भोजपुरी लोक साहित्य की धरोहर भिखारी ठाकुर को आज तक कोई आधिकारिक सम्मान नहीं मिला। उनके परिजनों को राजकीय या राष्ट्रीय स्तर पर कोई सामान नहीं मिलने पर मलाल तो है। हां , ये बात दीगर है कि उनके शागिर्द पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
कोई धंधा गंदा नहीं होता, सोच गंदी होती है संदर्भ : I.N.D.I.A. गठबंधन के सहयोगी डीएमके सांसद ने कहा, टायलेट साफ करते हैं बिहार - यूपी वाले
कोई धंधा गन्दा नहीं होता, सोच गन्दी होती है। I.N.D.I.A  गठबंधन के तीसरे बड़े दल डीएमके के सांसद दया निधि मारन के हालिया बयान से इंडी गठबंधन में भूचाल आ गया है। यह दक्षिण भारत और हिंदी भाषी राज्यों को बांटने वाला बयान है।
दक्षिण भारत में हिंदी भाषी राज्यों के लोगों के साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया जाता है। डीएमके सांसद का बयान देश के लोगों को जाति, भाषा और धर्म के नाम पर विभाजित करने वाला है। वहीं कुछ दिनों पहले डीएमके के अन्य सांसद डीएवी सैंथिल कुमार ने हिंदी भाषी राज्यों को गो मूत्र वाले राज्य कहा था।
अंग्रेजी बोलने वाले क्या टायलेट साफ नहीं करते। भारत से अंग्रेज तो चले गये, लेकिन उनकी जैसी मानसिकता वाले द‌क्षिण के राजनीतिक दल के नेताओं की सोच डिवाइड एंड रूल वाली होती जा रही है।
गठबंधन के दक्षिण के दलों के नेता कभी सनातन धर्म को कैंसर बताते हैं तो कभी भगवान राम को काल्पनिक बताते हैं। और हालिया बयान ने तो इंडी गठबंधन में तनाव पैदा कर दिया है।
इंडी गठबंधन के सहयोगी दल के नेताओं के बयान कभी सनातन धर्म को लेकर और कभी बिहार और उत्तर भारत के लोगों को लेकर आते रहते हैं और विरोध होने पर माफी मांग लेते हैं। यह उनकी ओछी मानसिकता को दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर इंडी गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों ने बयान की निंदा की है।
और अंत में दक्षिण के नेताओं के हालिया बयानों से तो भारतीय जनता पार्टी का रास्ता ही दक्षिण में सुगम होता जा रहा है । हाल में हुए चार राज्यों के चुनाव के नतीजे पर सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी का असर दिखायी दिया था , जहां चार में से तीन राज्यों में बीजेपी की जीत हुई थी। आखिर दक्षिण भारत के नेता इस तरह के बयान देकर क्या साबित करना चाहते हैं। वे 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह को आसान बना रहे हैं।
चाय के बहाने खो चुकी मानवता को तलाशने की कोशिश संदर्भ : टी कार्नर बन रहे मिलने और गपशप करने के केंद्र
वर्तमान समय में मेहमान बाजी में सबसे पहले चाय परोसने का रिवाज है । वहीं जुमले बाजी में भी मेहमान को चाय-पानी देने की बात कही जाती है। भाग-दौड़ की जिंदगी में इंसान को सुबह उठते ही चाय की तलब लगती है। वहीं दिन भर भाग -दौड़कर शाम को घर पहुंचने पर भी सबसे पहले चाय पीने की इच्छा होती है।
पानी के बाद चाय पृथ्वी पर दूसरा सबसे अधिक पिया जाने वाला पेय पदार्थ है। इसका सेवन चाय पार्टी या सामाजिक कार्यक्रमों में भी किया जाता है। यह पेय देश का सबसे लोकप्रिय पेय पदार्थ है। लगभग सभी घरों में इसका प्रतिदिन सेवन किया जाता है। चाय पूरी दुनिया में उपयोग किया जाने वाला लोकप्रिय पेय है। वहीं दूसरी ओर भारत दुनिया में सबसे ज्यादा चाय पीने वाला देश है।
भारत में चाय का प्रचलन अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ। बताते हैं कि डच व्यापारी चाय चीन से यूरोप ले गये थे। वहीं किंवदंती है कि चाय की उत्पत्ति पांच हजार वर्ष से भी पुरानी है। सदियों से इसके प्रसंस्करण के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों से चाय के अलग-अलग टेस्ट विकसित किये गये।
कहा जाता है कि 1657 में लंदन के एक काफी हाउस में चाय बेची जाती थी।
चाय की उत्पत्ति की बात करें तो यह चीन में उत्पादित होती थी। चाय पर से चीनी एकाधिकार को खत्म करने के लिए अंग्रेजों द्वारा 1836 में छोटी पत्ती वाली चीनी चाय को भारत लाया गया। दार्जिलिंग में इसके बीज का रोपण किया गया। 1856 में दार्जिलिंग में चाय का उत्पादन शुरू हुआ। इसके बाद तो भारतीय चाय पूरी दुनिया में निर्यात की जाने लगी। मालूम हो कि चाय के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है।
चाय की शुरुआत भले ही चीन में हुई हो मगर अब ये हर जगह आसानी से मिल जाती है। हर उम्र के लोग अपने - अपने स्वाद के मुताबिक पीना पसंद करते हैं। यूं तो पीने के लिए दुनिया भर में बहुत सारे पेय पदार्थ उपलब्ध हैं पर चाय की बात ही निराली है। चाय के प्रति जो दीवानगी होती है, उसे चाय के शौकीन ही समझ सकते हैं। 1840 में दोपहर के वक्त चाय पीना अंग्रेजी परंपरा मानी जाती थी। आधुनिक युग में व्यस्त और संघर्षपूर्ण लाइफ स्टाइल से लोग अब उब चुके हैं। पश्चिमी देशों में मिल-बैठकर चाय पीने और पिलाने का दौर अब लौट रहा है।
और अंत में आज सारी दुनिया में होटलों, रेस्तरां और दुकानों में नये- नये फ्लेवर और कलेवर में चाय परोसी जाती है। यह युवा पीढ़ी के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है।