गिरिडीह: आदिवासियों के सम्मान व संरक्षण के लिए मरांग बुरू वापस करें:-सालखन मुर्मू
गिरिडीह:जैन धर्म के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल पार्श्वनाथ में मधुबन थाना के निकट स्थित फुटबॉल मैदान में 10 दिसंबर रविवार को मरांग बुरु बचाओ सेंगेल यात्रा एवं सभा का आयोजन किया गया।जिसमें मुख्य रूप से पूर्व सांसद सालखन मुर्मू सहित कई आदिवासी नेता उपस्थित हुए।
कार्यक्रम में राज्य भर से आदिवासी समाज के लोग पहुंचे।कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं ने मौके पर मौजूद आदिवासी समाज के लोगों को सम्बोधित किया।जिसके बाद वे जुलूस की शक्ल में फुटबॉल मैदान से पारसनाथ पहाड़ तक गए। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए आदिवासी वक्ताओं ने कहा कि मरांग बुरु पारसनाथ पहाड़, गिरिडीह जिला पर हम आदिवासियों का प्रथम अधिकार है, जो 1911 के प्रिवी काउंसिल,लंदन द्वारा जैनों के खिलाफ और संथाल आदिवासियों के पक्ष में हुए फैसले से स्थापित होता है।
अतः संबंधित अधिकारी अभिलंब इसकी पुनर्वापसी करें। आगे कहा कि हेमंत सरकार के 5.1.2023 पत्र को खारिज करें,मरांग बुरु अर्थात आदिवासियों का ईश्वर है, अतः हमारे ईश्वर, धर्म, आस्था, विश्वास पर कुठाराघात हम आदिवासियों के मानवीय और संवैधानिक अधिकार पर हमला है।
कहा,अतः हमारी मांग है कि सभी संबंधित सरकारों और संस्थाओं द्वारा आदिवासियों का सम्मान और संरक्षण करें,मरांग बुरु वापस करें।मरांग बुरु और सिंज चंदो सूरज को प्रकृति पूजक आदिवासियों अर्थात सरना धर्म का चिन्ह और प्रतीक झंडा स्वीकार किया जाता है,मगर दूसरे प्रचलित सभी झंडों का स्वागत और सम्मान है।
वक्ताओं ने कहा कि भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें सरना धर्म कोड को अभिलंब मान्यता प्रदान करें अन्यथा 30 दिसंबर 2023 को भारत बंद रहेगा,रेल रोड चक्का जाम रहेगा,दुनिया भर के आदिवासियों के लिए पहाड़- पर्वत आदि देवी- देवता और भगवान समान हैं, अतः मरांग बुरु, लुगु बुरु, अयोध्या बुरु आदि की सुरक्षा और संवर्धन के लिए इन्हें आदिवासियों को सौंप दिया जाए, यह प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षार्थ भी जरूरी है,आदिवासी सेंगेल अभियान प्रतिवर्ष मरांग बुरु बचाव सेंगेल यात्रा का मधुबन में आयोजन करेगा, जिसमें स्थानीय संगठन- मरांग बुरू सवंता सुसर वैसी का सहयोग लेता रहेगा।आदिवासी प्रकृति-पर्यावरण, वन्य प्राणी, पशु- पक्षी एवं अन्य मानव समुदाय के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का पक्षधर है, अतः आदिवासी समाज जैन धार्मिक समाज के खिलाफ कोई हिंसक मनोभावना नहीं रखता है, हम केवल न्याय और शांति चाहते हैं, 22 दिसंबर 1855 और 22 दिसंबर 2003 के ऐतिहासिक विजय को सेंगेल हासा - भाषा जीतकर माहा अर्थात हासा भाषा विजय दिवस सर्वत्र मनाने का संकल्प लेता है, क्योंकि महान वीर शहीद सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष एवं बलिदान का प्रतिफल 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना देश और संताल परगाना कानून स्थापित हुआ था, उसी तर्ज पर पूर्व सांसद और संताली भाषा मोर्चा के अध्यक्ष सालखन मुर्मू के नेतृत्व में लंबे संघर्ष और आंदोलन से 22 दिसंबर 2003 को संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है।
मौके पर भारी संख्या में आदिवासी महिला,पुरुष मौजूद थे।
Dec 11 2023, 15:25