सेना के लिए हाथियों और घोड़ों की होती थी खरीदारी संदर्भ : सोनपुर मेले का समृद्ध इतिहास रहा है
बिहार का विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होता है। इसे हरिहर क्षेत्र मेला या छतर मेला के नाम से भी जाना जाता है । इसे एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रूप में जाना जाता है। पुराने जमाने में यहां हाथी, घोड़े,गाय,बैल, बकरी, पालतू कुत्तों समेत अन्य पशु-पक्षियों की बिक्री की जाती थी। यह मेला सेना के लिए हाथियों की खरीद - बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता था।
हरिहर क्षेत्र में स्थापित बाबा हरिहरनाथ मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां स्थापित शिवलिंग में हरि ( भगवान विष्णु) और हर ( भोलेनाथ ) की आकृति है । मान्यता है कि इसी क्षेत्र के कोनहरा घाट पर गज और ग्राह ( मगरमच्छ ) के बीच भयंकर युद्ध हुआ था और गज की करूण प्रार्थना ( हे गोविन्द राखौ शरण,अब तो जीवन हारे ) पर भगवान विष्णु ने आकर उसकी रक्षा की थी।
पर आज इस मेले का स्वरूप काफी बदल गया है। पशु-पक्षियों की खरीद- बिक्री पर रोक लगने से अब यहां पशु कम ही लाये जाते हैं। अब नयी- नयी कंपनियों के शोरूम और बिक्री केंद्र ही ज्यादा दिखायी पड़ते हैं । पटना से गरीब 25 किलोमीटर दूर सोनपुर में गंडक नदी के किनारे लगभग एक माह तक यह मेला चलता है ।
सोनपुर मेले का ऐतिहासिक महत्व भी बताया गया है। जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने - जाने के आधुनिक साधन नहीं थे, उस समय इस मेले में मध्य एशिया से पशुओं की खरीदारी करने के लिए बड़ी संख्या में कारोबारी आते थे। कारोबारियों के रात में ठहरने से लेकर उनके मनोरंजन के लिए नाच- गान का आयोजन किया जाता था। इसी परंपरा ने आधुनिक युग में थियेटर का स्वरूप अख्तियार कर लिया।
बताते हैं कि मौर्य वंश के संस्थापक चंद्र गुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिंह भी इसी पशु मेले से अपनी सेना के लिए हाथियों की खरीद करते थे ।
इस मेले में पालतू पशु - पक्षियों की बिक्री के अलावा ऊनी कपड़े, कंबल के स्टॉल झूले ,खेल - खिलौने , मौत का कुआं आदि मेला घूमने आने वाले लोगों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। इस मेले का इतना क्रेज है कि विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में भ्रमण करते नजर आते हैं। इनके लिए सरकारी व्यवस्था के तहत आधुनिक सुविधाओं से लैस स्विस काटेज का निर्माण कराया जाता है, जहां वे ठहरते हैं।
पुराने जमाने में सोनपुर मेले में बड़ी-बड़ी नौटंकी कंपनियां आया करती थीं। गीत- संगीत की महफिल सजती थी। लोग रात भर गायन का लुत्फ उठाते थे।
पर आज सोनपुर मेले का मतलब थियेटर ही है, जहां गीत- संगीत की महफिल तो नहीं सजती, मगर आधुनिक गानों पर बालाएं अपनी अदाओं से लोगों का मनोरंजन करती हैं। बीच के कुछ साल अश्लील प्रदर्शन करने के कारण थियेटरों के लाइसेंस रद्द कर दिये गये थे। हालांकि बाद में प्रशासन और स्थानीय लोगों के आश्वासन के बाद से फिर से थियेटर लगने शुरू हो गये।
शाम होते ही लोगों का हुजूम थियेटरों के टिकट काउंटर पर उमड़ने लगता है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में न तो पहले जैसी गायन मंडलियां हैं और न लोगों को अपने वादन से झुमाने वाले वादक। आधुनिकता के नाम पर केवल भौंडे गीत ही थियेटरों में गूंजते हैं।
आज नौटंकी की सुसंस्कृत परंपरा समाप्त हो चुकी है। पर, अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे इस मेले की रौनक और देखने की उमंग लोगों में आज भी मौजूद है।![]()


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Nov 27 2023, 22:07
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