क्या सरकार रेल हादसा को रोकने के लिए गंभीर है..?अगर है तो एंटी कॉलिजन सिस्टम (कवच) के लिए आवंटन के बाद भी काम क्यों नही हुआ..?
उड़ीसा के बालासोर में एक साथ तीन ट्रेनों के टक्कर,सैकड़ों लोगों की मौत,हज़ारों घायल के बाद देश दहल गया है। इसके बाद भी कई और छोटी रेल दुर्घटनाएं हो रही है तो कुछ लोको पायलट की सतर्कता के कारण टल रही है।
आज मोदी सरकार के उन्नत टेक्नोलॉजी का दावा ,बुलेट ट्रेन का सपना और विश्व के विकसित देशों को टक्कर देने के दिशा में आगे बढ़ रहे नए भारत के सामने यह दुर्घटना कई बड़े सवाल खड़े कर दिया है ।जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए।
इस बड़ी हादसा के लिए जिम्मेदार कौन है ..? इसे भी जनता के सामने लाने की ज़रूरत हो गयी है । साथ हीं देश के पूरे सिस्टम और सभी मंत्रालय के काम पर किनका कमांड है।और किनके निर्देशों पर सारे काम हो रहे हैं इस बात को भी सार्वजनिक करने की जरूरत है।
क्योंकि इस तरह के हादसे में किसकी लापरवाही है यह तय करने के लिए यह बहुत जरूरी है।आज रेल भारत का सबसे बड़ा तंत्र है जिसमे रेल मंत्री को बहुत बड़ी बनती है।वर्तमान रेल मंत्री प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं इस लिए इस मंत्रालय के काम को गंभीरता के साथ लेते हुए इन कमियों को दूर करनी चाहिए,लेकिन ऐसा नही हो पा रहा है।आज जहां-तहां से सिग्नल सिस्टम में गड़बड़ी आ रही है लगातार रेल पटरी से उतर रही है तो गलत ट्रैक पर चली जा रही है ,ऐसा क्यों हो रहा है यह बहुत गंभीर प्रश्न है।जिसपर सरकार को सोचना भी चाहिए और साथ में इस व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार क्या करने जा रही है इस पर भी अपनी कार्ययोजना जनता के सामने लाना चाहिए ताकि लोग भरोसे के साथ रेल यात्रा कर सके।
वैसे इस दुर्घटना के बाद पीएम मोदी और रेल मंत्री ने कहा था कि अभी तो इस घटना में घायल यात्रियों की इलाज और उनकी जान बचाना प्राथमिकता है,लेकिन इस हादसे के लिए जो भी जिम्मेवार होगा जांच के बाद उसे भी नही छोड़ा जाएगा।
ठीक है सरकार इस वायदे पर खड़े उतरे इसके लिए पहले दोषी की पहचान हो कि लापरवाही कहाँ से हो रही है।इसके बाद कार्रवाई हो ना कि किसी को भी इस मामले में बलि का बकरा नही बनाया जाय।
रेल भारत का एक ऐसा सरकारी प्रतिष्ठान है जिस पर सफर करने में देश की जनता पूरा भरोसा करती है।इस उम्मीद और भरोसे के साथ कि यह सबसे ज्यादा सुरक्षित है।
लेकिन इस तरह के हादसा के बाद लोगों का विश्वास डोलने लगा है। इधर कुछ वर्षों में सरकार लगातार निजीकरण के दिशा में आगे बढ़ने, सभी सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में सौपने की होड़ में इतना उलझ गई है कि इन भरोसेमंद संस्थानों के विकास और तकनीकी तौर पर उसे मज़बूत करने के दिशा में कोई कदम ही नही उठा पा रही है।
यह इस लिए भी कहा जा सकता है कि इस तरह की घटना के संकेत रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने 3 साल पहले दे दिया था।लेकिन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने इसे पूरी तरह अनदेखा कर दिया। इन दिनों सोशल मीडिया में उस रेलवे अधिकारी का पत्र वॉयरल हो रहा है जिसमे रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी और दक्षिण पश्चिम रेलवे के चीफ ऑपरेशनल मैनजर हरिशंकर वर्मा ने रेलवे वोर्ड को पत्र लिखकर इंटरलॉकिंग सिस्टम में छेड़ छाड़, और गड़बड़ी बताते हुये बोर्ड को इस तरह के हादसा होने का आगाह किया था।क्योंकि उस समय भी बंगलुरु-दिल्ली सम्पर्क क्रांति एक्सप्रेस को मेन लाइन का सिग्नल देने के बाद भी गलत ट्रैक पर चला गया था।लेकिन लोको पायलट की सतर्कता के कारण हादसा टल गया।लेकिन बोर्ड की चुपी और लापरवाही के कारण फिर बालासोर में यही हुआ।एक ही ट्रैक पर तीन गाड़ी आ गयी और टकरा कर इतनी बड़ी हादसा हो गया।
इस तरह के हादसा में दोष तो बोर्ड के अधिकारी और मंत्रालय के होते हैं लेकिन चार्जसीट स्टेशन मास्टर, लोको पायलट और अन्य अधिकारी को मिलता है। चाहे वर्ष 2014 मे हुए गोरखधाम एक्सप्रेस का चुरेब का हादसा हो या न्यू फरक्का की दुर्घटना हो सभी दुर्घटना के कारण फूल प्रूफ सिग्नल व्यवस्था की कमी बताई गई है लेकिन जब दुर्घटानाएँ होती है तो इस पर चर्चा होती है।मंत्री से लेकर अधिकारी तक इस पर कार्रवाई की बात करते हैं लेकिन इस व्यवस्था को सुधारने और मजबूत करने में उनकी लापरवाही ज्यों की त्यों बनी रहती है।
दुख तो इस बात की है कि इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के लिए फंड नही मिलता और मिलता है तो खर्च नही किया जाता है। इसका जिम्मेबार कौन है ? उसकी भी पहचान हो और इसमें लापरवाही बरतने वाले लोगों पर कार्रवाई भी हो।
अभी ओडिसा रेल दुर्घटना के बाद दो बातों पर ज्यादा चर्चा हो रही है।एक तो सिग्नल और इंटरलॉकिंग व्यवस्था का फुलप्रूफ व्यबस्था की कमी और इसके लिए स्टाफ की कमी और दूसरा ट्रेन हादसा रोकने के लिए एंटी कॉलिजन सिस्टम(कवच) व्यवस्था के प्रति रेलवे बोर्ड की उदासीनता। कवच व्यवस्था को लेकर सरकार ने 2021 में दावा किया था कि एक ऐसा तकनीकी विकसित हो गया कि अगर रेल कभी भी गलत ट्रैक पर चला जायेगा तो कवच के कारण ट्रेन खुद रुक जाएगा और गड़बड़ी का पता चल जाएगा जिस से दुर्घटनायें रुक जाएगी।लेकिन कवच के लिए राशि आवंटित होने के बाद भी काम शुरू नही हुआ।
एक मीडिया हाउस के वित्तीय आंकड़ों की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट से जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार दक्षिण पूर्व क्षेत्रीय रेलवे जहां बालासोर ट्रेन हादसा हुआ, वहां के लिए एंटी कॉलिजन सिस्टम (कवच) के लिए राशि भी आवंटित की गई थी लेकिन उसे खर्च नहीं किया गया ना कवच लगाया गया।
दक्षिण पूर्व रेलवे के लिए कवच व्यवस्था को लागू करने के लिये 468.90 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई थी। जिसमे रेलवे नेटवर्क (1563 आरकेएम) पर स्वदेशी ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (कवच) के लिए यह पैसा खर्च करने का प्रावधान था लेकिन मार्च 2022 में इसमें से एक रुपया भी खर्च नहीं किया गया।
इसी तरह इसी जोन के एक अन्य सेक्टर में दक्षिण पूर्व रेलवे में ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (1563 आरकेएम) (2020-21 होने वाले कार्य) में कम कम आवाजाही वाले रेलवे नेटवर्क पर दीर्घकालिक विकास प्रणाली के लिए लगभग 312 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे लेकिन मार्च 2022 तक कोई पैसा खर्च नहीं किया गया और न ही 2022-23 के लिए परिव्यय में इसे लिया गया।
इसी तरह हेडर सिगनलिंग एवं टेलीकम्युनिकेशन के तहत दक्षिण पूर्व रेलवे के लिए 208 करोड़ की स्वीकृत दी गई थी।यह पैसा सबसे ज्यादा अवाजाही वाले रेलवे के रूट पर स्वचालित ब्लॉक सिगनलिंग, केंद्रीकृत यातायात नियंत्रण और ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली ( 2021-22 ) के लिए खर्च होना था लेकिन आज तक कोई पैसा खर्चा नहीं किया गया।
इस मामले में रेल मंत्रालय का बहाना है कि यह बजट इसलिए खर्च नहीं हुआ क्योंकि इस क्षेत्र में अभी तक सुरक्षा कार्यों के लिए कोई टेंडर हीं नहीं निकाले गए। डेटा का विश्लेषण 2023-24 के लिए सरकार के अपने बजट दस्तावेजों से किया गया है। लेकिन इन निष्क्रिय निधियों की स्थिति से पता चलता है कि भारत में सबसे अधिक आवाजाही वाले रेल नेटवर्क में एंटी कॉलिजन सिस्टम (कवच) को लागू करने की प्रक्रिया में बोर्ड की जिस तरह शिथिलता है उसमें काफी समय लग सकता है।
इस कार्य के लिए अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) ने तीन फर्मों- मेधा सर्वो ड्राइव्स, एचबीएल और केर्नेक्स को भारत में कवच उपकरण प्रदान करने के लिए मंजूरी दी है। बताया जा रहा है कि दो और कंपनियां इस पर काम कर रही हैं।लेकिन इसके वावजूद इस काम के लिए आवंटित निधि को भी खर्च करने और इस काम को जल्द कर इस तरह के हादसा के लिए रेल मंत्रालय,केंद्र सरकार कितना सजग है यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार के कार्य प्रणाली और इस हादसा के प्रति उनकी सजगता कितना गंभीर है।
रेलवे बोर्ड अगर सजग होती,रेल मंत्रालय को अगर रेल पर सफर करने वाले यात्रियों की सुरक्षा की चिंता होती तो टेंडर भी निकल गया होता आवंटित राशि से कवच सिस्टम भी लागू हो जाती,और बालासोर दुर्घटना भी नही होती और लगभग 300 लोगों की जिंदगी भी बच जाती।अब सरकार को यह तय करना पड़ेगा कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित राशि को खर्च नही किये जाने के लिए जिम्मेबार कौन है ?सुरक्षा के लिए कमी कर्मचारियों को बहाल करने में किनकी लापरवाही है..?और इस हादसा का वजह क्या है..?इसका मंथन कर कार्रवाई हो।
साथ हीं यह सवाल उठने लगा है कि जब एंटी कॉलिजन सिस्टम के लिए पैसा आवंटित किए जाने के बाद भी काम नही हुआ है तो किया सरकार यह स्पष्ट करेगी कि यात्री की सुरक्षा और ट्रेन हादसा को रोकने के लिए सरकार कितना गंभीर है और कबच सिस्टम कब तक दुरुस्त करेगी।
Jun 10 2023, 09:57