पहले दिन की गई मां शैलपुत्री की आराधना,मंदिर व पंडालों में सजे मां के दरबार
रायबरेली। शहर से लेकर गांव तक जिले में नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की गई। शक्ति की साधना एवं व्रत के लिए नवरात्रि का पर्व अत्यंत ही शुभ और शीघ्र फलदायी माना गया है। चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से इस महापर्व की शुरुआत बुधवार से हुई। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा विधि विधान से की गई।जिन्हें पुराणों में पर्वतों के राजा कहलाने वाले हिमालय की बेटी बताया गया है।
हिंदू मान्यता के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा का अपना महत्व है, उन्हें भोग लगाने भक्तों को फल की प्राप्ति होती है।सनातन परंपरा में देवी शैलपुत्री को सुख, समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। जिनका स्वरूप अत्यंत ही शांत है और वह अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाने वाली हैं।
सफेद वस्त्र पहने हुए देवी शैलपुत्री ने अपने एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल धारण रखती है। अपने सिर पर चंद्रमा को धारण करने वाली माता शैलपुत्री बैल की सवारी करती हैं।मान्यता है कि माता शैलपुत्री की पूजा से साधक की कुंडली में स्थित चंद्र दोष दूर हो जाता है और उसे पूरे साल किसी भी प्रकार की मानसिक या शारीरिक कष्ट नहीं होता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्व जन्म में माता शैलपुत्री राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं।एक बार राजा दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया, लेकिन उसमें भगवान शिव और देवी सती को नहीं बुलाया। इसके बाद देवी सती बगैर निमंत्रण के ही अपने पिता के यहां यज्ञ में चली गईं, जहां पर जाने पर उन्हें अपने पति का अपमान महसूस हुआ। जिससे दु:खी होने के बाद उन्होंने उसी यज्ञ की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जब यह घटना भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने यज्ञ को तहस-नहस कर दिया और देवी सती के शव को लेकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे।
इसके बाद भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को 51 टुकड़ों में विभक्त कर दिया था।मान्यता है माता सती के जहां-जहां टुकड़े गिरे, आज वहां-वहां शक्तिपीठ हैं। मान्यता है कि इसके बाद देवी ने अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां कन्या रूप में लिया और वे शैलपुत्री कहलाईं।नवरात्रि में पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने से साधक के सभी रोक-शोक दूर होते हैं।
Mar 22 2023, 21:44