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बांग्लादेश फिर से लिख रहा इतिहास, शेख मुजीबुर रहमान की विरासत मिटाने की तैयारी, भारत का दे रहा हवाला

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तख्तापलट के बाद बांग्लादेश बदल रहा है। पड़ोसी देश में अब इतिहास की किताबों को फिर से लिख रहा है। खासतौर से 1971 के मुक्ति संग्राम के बारे में फिर से लिखा जा रहा है। इतिहास की नई पाठ्यपुस्तकों में बताया जाएगा कि 1971 में 6 मार्च को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा बंगबंधु मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी। नई पाठ्यपुस्तकों से मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है।

डेली स्टार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्राथमिक और माध्यमिक छात्रों के लिए नई किताबों में यह जानकारी होगी कि जियाउर रहमान ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।रिपोर्ट के मुताबिक, नई पाठ्यपुस्तकों में कई बदलाव होंगे और इनको छापने का काम अभी चल रहा है। किताबों को एक जनवरी से छात्रों को वितरित किया जाना था। वर्ष 2010 से (जब शेख हसीना दूसरी बार सत्ता में आई थीं) पाठ्यपुस्तकों में लिखा गया कि शेख मुजीबुर रहमान ने 26 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी सेना की ओर से गिरफ्तार किए जाने से ठीक पहले एक वायरलेस संदेश के जरिए स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

बांग्लादेश के नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्ट बुक बोर्ड (एनसीटीबी) के अध्यक्ष प्रोफेसर एकेएम रियाजुल हसन ने कहा कि 2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पुस्तकों में बताया जाएगा कि '26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की।' उन्होंने कहा कि यह जानकारी निशुल्क वितरित की जाने वाली किताबों में शामिल कर ली गई है, जिनमें घोषणा का उल्लेख किया गया है।

अतिरंजित और थोपे गए इतिहास को हटाने की कोशिश

पाठ्यपुस्तकों में बदलाव की प्रक्रिया में शामिल रहे रिसर्चर राखल राहा ने कहा कि पाठ्यपुस्तकों से अतिरंजित और थोपे गए इतिहास को हटाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि 'पाठ्यपुस्तकों में बताया गया था कि शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने वायरलेस संदेश में बांग्लादेश की आजादी का एलान किया था, लेकिन ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिसके बाद ही इसे हटाने का फैसला किया गया है।' आवामी लीग के समर्थक मानते हैं कि शेख मुजीबुर रहमान ने देश की आजादी का एलान किया था और जियाउर रहमान ने, जो उस समय सेना में थे, मुजीब के निर्देश पर केवल घोषणा पढ़ी थी।

बांग्लादेश भारत का दे रहा हवाला

एनसीटीबी के अध्यक्ष रियाजुल ने कहा कि टेलीग्राम को संविधान में संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था। उन्होंने कहा, ''तत्कालीन भारतीय नेता और तत्कालीन सूचना मंत्रालय की ओर से तैयार की गई स्वतंत्रता के बाद की पहली डॉक्यूमेंट्री 'स्वतंत्रता संग्राम के दस्तावेज' जियाउर रहमान की ओर से घोषणा करने के पक्ष में सबूत दिखाती है।''

सत्ता में बैठे लोगों के अनुसार बदला जाता रहा है इतिहास

रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले कक्षा एक से 10 तक की पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता की घोषणा किसने की, इसकी जानकारी सत्ता में रहने वाली सरकार के अनुसार बदल दी जाती थी। एनसीटीबी के पूर्व अधिकारी बताते हैं कि 1996-2001 तक जब एएल सत्ता में थी किताबों में कहा गया कि शेख मुजीब ने स्वतंत्रता की घोषणा की और जियाउर रहमान ने घोषणा पढ़ी। इसके बाद 2001-2006 तक जब बीएनपी सत्ता में थी तो बताया गया कि जियाउर ने घोषणा की थी। हालांकि, वे यह नहीं बता सके कि 1996 से पहले पाठ्यपुस्तकों में क्या लिखा जाता था।

मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने की कोशिश

बांग्लादेश के नोटों से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। बीते साल 5 अगस्त को शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने और उनके देश छोड़कर जाने के बाद से ही शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने की कोशिश की जा रही है। शेख मुजीबुर रहमान की हत्या वाली तारीख 15 अगस्त को मिलने वाले अवकाश को भी खत्म कर दिया गया है। गौरतलब है कि जिया उर रहमान की पत्नी खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी ने ही शेख हसीना की सरकार को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी।

बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को लगा झटका, जमानत खारिज

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बांग्लादेश हिंसा मामले में गिरफ्तार हिंदू नेता चिन्मय कृष्णदास की जमानत अर्जी को चट्टोग्राम की अदालत ने खारिज कर दिया है। डेली स्टार की खबर के अनुसार इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की जमानत याचिका को बांग्लादेश की चट्टोग्राम अदालत में सुनवाई के लिए लगाया गया था। मगर कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया। मतलब साफ है कि चिन्मय दास को अभी और समय जेल में ही बिताना होगा। इससे पहले 11 दिसंबर को एक बांग्लादेश की एक अदालत ने दास की प्रारंभिक जमानत याचिका को प्रक्रिया में खामी के कारण खारिज कर दिया था।

चिन्मय दास की तरफ से बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के 11 वकीलों ने पैरवी की> चिन्मय दास के मामले में आज एक सकारात्मक घटनाक्रम ये रहा कि चिन्मय दास के वकीलों को अपना पक्ष रखने का मौका मिला। पिछली दो सुनवाई में चिन्मय दास के वकीलों को कोर्ट में पेश नहीं होने दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी संत चिन्मय दास को राहत नहीं मिली।

उच्च न्यायालय में अपील करने की योजना

चिन्मय के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने मीडिया को बताया कि वे जमानत के लिए उच्च न्यायालय में अपील करने की योजना बना रहे हैं। सभी को उम्मीद थी कि नए साल में चिन्मय प्रभु को आजादी मिल जाएगी, लेकिन 42 दिन बाद भी उनकी जमानत आज सुनवाई में खारिज कर दी गई।

क्या हैं चिन्मय दास पर आरोप

पूर्व में इस्कॉन से जुड़े रहे दास के खिलाफ बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा ध्वज फहराने का आरोप है। इस मामले में उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद उनको ढाका के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया और कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद जेल भेज दिया गया। दास की गिरफ्तारी के बाद चटगांव में उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान हिंसा में चटगांव में एक वकील की मौत भी हो गई थी। ये मामला काफी ज्यादा चर्चा में रहा था।

यह पूरा मामला 25 अक्टूबर को चटगांव में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा ध्वज फहराने के आरोप से शुरू हुआ। मामला दर्ज होने के बाद चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद स्थिति तब बिगड़ी, जब 27 नवंबर को चटगांव कोर्ट से दास की जमानत खारिज होने के बाद उनके समर्थकों का प्रदर्शन हिंसक हो गया और इसमें एक वकील की मौत हो गई।

शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को चुनाव आयोग से बड़ी राहत, लड़ सकेगी चुनाव

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बांग्‍लादेश में बीते अगस्त माह में तख्तापलट हो गया। इसके बाद देश में मोहम्‍मद यूनुस की अंतरिम सरकार आई। शेख हसीना के पतन के बाद बांग्लादेश की जनता के साथ-साथ पूरी दुनिया को बांग्लादेश के नई सरकार के लिए होने वाले चुनावों का इंतजार है। शेख हसीना के देश छोड़न के बाद ये कहा जा रहा है कि उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया है।मोहम्मद यूनुस के एक सलाहकार ने यह भी कह दिया था कि वो हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच शेख हसीना को चुनाव आयोग से बड़ी राहत मिली है। बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने कहा, ‘अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है।

बांग्‍लादेश छोड़न के बाद शेख हसीना पर एक-एक कर हसीना पर 100 से ज्‍यादा मुकदमे ठोक दिए गए। यही नहीं, मोहम्‍मद यूनुस के एक सलाहाकार ने यह कह दिया कि वो हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने की तैयारी कर रहे हैं। एक के बाद एक याचिकाएं भी बांग्‍लादेश की कोर्ट में लगा दी गई ताकि कानूनी रूप से अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोका जा सके। हालांकि, अब शेख हसीना को बांग्‍लादेश के चुनाव आयोग ने बड़ी राहत दी है। चुनाव आयोग का कहना है कि आवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है।

इससे पहले खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की तरफ से भी कहा गया था कि वो चाहते हैं कि अवामी लीग पर चुनाव लड़ने से रोक नहीं लगाई जाए। हालांकि वो शेख हसीना और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं पर एक्‍शन में पक्ष में जरूर हैं। बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन ने आवामी लीग की भागीदारी के बारे में चिंताओं पर बात करते हुए चटगांव में कहा, “यह मुख्य रूप से एक राजनीतिक मामला है। कुछ व्यक्तियों ने आवामी लीग को भाग लेने से रोकने के लिए अदालती आदेश की मांग करते हुए मुकदमे दायर किए हैं। अगर अदालत ऐसा कोई फैसला सुनाती है, तो हम उसके अनुसार कार्रवाई करेंगे। अन्यथा, यह एक राजनीतिक निर्णय है।’

बता दें कि बांग्लादेश के अंतरिम नेता मोहम्मद यूनुस 2025 के अंत में या 2026 की पहली छमाही में संसदीय चुनाव कराने की योजना बना रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक चुनावों के रोडमैप की जानकारी देते हुए, यूनुस ने कहा कि चुनावों की समयसीमा चुनाव सुधार आयोग की सिफारिशों पर निर्भर करती है, लेकिन 2025 के अंत तक चुनाव कराना संभव हो सकता है।

बांग्लादेश में हिंदुओं के बाद ईसाइयों को बनाया गया निशाना, क्रिसमस पर 17 घरों को फूंका

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। पहले हिंदुओं पर हमले किए गए और ईसाइयों को निशाना बनाया गया है।बांग्लादेश में क्रिसमस से एक दिन पहले ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों के 17 घर जला दिए गए। यह घटना बंदरबन जिले के चटगांव पहाड़ी इलाके में हुई। पीड़ितों का दावा है कि जब वे क्रिसमस के मौके पर प्रार्थना करने के लिए चर्च गए थे, तब मौके का फायदा उठाकर उनके घरों में आग लगाई गई।

बंदरबन में क्रिसमस के रोज क्रिश्चियन त्रिपुरा कम्युनिटी के 17 घरों को जला दिया गया। घरों में आग लगाने के बाद बदमाश भाग गए। आगजनी की ये घटना लामा उपजिला के सराय यूनियन के नोतुन तोंगझिरी त्रिपुरा पारा में दोपहर करीब साढ़े 12 बजे घटी। दरअसल, बदमाशों ने उन घरों को तब आग के हवाले किया जब लोग क्रिसमस मनाने के लिए दूसरे गांव गए थे, क्योंकि उनके इलाके में कोई चर्च नहीं था।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक टोंगजिरी क्षेत्र के न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोग चर्च न होने के कारण दूसरी जगह फेस्टिवल को सेलिब्रेट करने के लिए गए हुए थे। तभी उनके पीठ पीछे उपद्रवियों ने गांव में पर हमला कर दिया और 17 घरों को पूरी तरह जला दिया। इस हमले में 15 लाख टका से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।

पहले से दी जा रही थीं धमकियां

न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोगों ने ढाका ट्रिब्यून को बताया कि बीते महीने 17 नवंबर को उपद्रवियों ने उन्हें गांव खाली करने की धमकी दी गई थी। इस पर गंगा मणि त्रिपुरा नामक व्यक्ति ने 15 आरोपियों के खिलाफ लामा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब घर जलने के बाद पीड़ित परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।

4 महीने से रह रहे थे ईसाई समुदाय के लोग

जानकारी के मुताबिक त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार बंदरबन (चटगांव पहाड़ी इलाका) के लामा सराय के एसपी गार्डन में रहते थे। यह गार्डन हसीना सरकार में बड़े अधिकारी रहे बेनजीर अहमद का है। इसे एसपी गार्डन के नाम से जाना जाता है।

5 अगस्त के बाद बेनजीर अहमद और उनके परिवार के लोग यह इलाका छोड़कर चले गए थे। इसके बाद यहां त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार आकर रहने लगे। कल शाम जब सभी लोग क्रिसमस के मौके पर पड़ोस के चर्च में प्रार्थना करने गए तो उपद्रवियों ने खालीपन का फायदा उठाकर घरों को जला दिया।

वहीं, ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों ने बताया कि ये उनकी ही जमीन है। पहले इस इलाके का नाम तंगझिरी पारा था। इस पर बेनजीर अहमद के लोगों ने कब्जा कर लिया था और यहां का नाम बदलकर एसपी गार्डन कर दिया था।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

क्या बांग्लादेश की पहचान मिटाने में लगे मोहम्मद यूनुस? अब 'जॉय बांग्ला' अब नहीं होगा राष्ट्रीय नारा

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शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। शेख हसीना को 5 अगस्त को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जगह मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार 8 अगस्त को अस्तित्व में आई। अंतरिम सरकार हसीना सरकार के दौर में लिए गए कई बड़े फैसलों को पलटने में लगी है। इसी बीच, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने एक हाईकोर्ट के उस फैसले को नकार दिया, जिसमें 'जॉय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था।यह नारा पूर्व पीएम और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया था।

शेख हसीना सरकार के जाने के बाद देश में अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई और हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित करने की मांग की। अंतरिम सरकार ने 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर कर 10 मार्च, 2020 के हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाली अपीलीय खंडपीठ की 4 सदस्यीय बेंच ने मंगलवार को इस आधार पर आदेश पारित किया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मैटर है और न्यायपालिका इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आदेश में कहा गया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत निर्णय का मामला है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुनवाई में सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर हक ने कहा कि इस आदेश के बाद जॉय बांग्ला को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा।

अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” विरोधी!

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था। शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत की सहायता से अपने ही उस मुल्क से आजादी पाई थी, जिस मुल्क के लिए उन्होंने भारत से एक प्रकार से आजादी से पहले जंग लड़ी थी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को क्या माना जाए?

यह था हाईकोर्ट का फैसला

उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2020 को 'जॉय बांग्ला' को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया था। कोर्ट ने सरकार को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था ताकि नारे का इस्तेमाल सभी राज्य समारोहों और शैक्षणिक संस्थानों की सभाओं में किया जा सके। इसके बाद 20 फरवरी 2022 को हसीना के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में मान्यता देते हुए एक नोटिस जारी किया और अवामी लीग सरकार ने 2 मार्च 2022 को एक गजट अधिसूचना जारी की।

तख्तापलट के बाद कई बड़े बदलाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर को 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 13 अगस्त को अंतरिम सरकार की सलाहकार परिषद ने फैसला लिया था कि 15 अगस्त को कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होगा। कुछ दिन पहले बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने करेंसी नोटों से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया था। बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली। इसके बाद बंगबंधु रहमान और शेख हसीना के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

भारत' विरोधी मोहम्मद यूनुस हर बीतते पल के साथ दिखा रहे तेवर, अब बांग्लादेश में शेख हसीना के भाषणों पर प्रतिबंध

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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बुधवार को पहली बार मोर्चा संभालते हुए, देश में अल्पसंख्यकों के कथित उत्पीड़न को लेकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला किया था। शेख हसीना ने कहा था कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों के प्रसारण पर रोक लगा दी है।

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने बृहस्पतिवार को अधिकारियों को मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के सभी ''घृणास्पद भाषणों'' के प्रसार पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। न्यायाधिकरण पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध दर्ज मानवता के खिलाफ अपराध के विभिन्न मामलों की सुनवाई शुरू करेगा।

सोशल मीडिया से भी हसीना के भाषणों को हटाने का आदेश

बांग्लादेश संगबाद संस्था के मुताबिक न्यायाधीश एमडी गोलाम मुर्तजा मौजूमदार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने एक आदेश जारी किया। आदेश में अधिकारियों को हसीना के भड़काऊ भाषण को सोशल मीडिया से हटाने और भविष्य में इसके प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अभियोजक अधिवक्ता अब्दुल्लाह अल नोमान ने कहा कि न्यायाधिकरण ने आईसीटी विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग को आदेश का पालन करने के निर्देश दिए। अभियोजक ने दायर याचिका में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों को हटाया जाए। क्योंकि गवाहों और पीड़ितों को डर लग सकता है या जांच में बाधा आ सकती है।

क्या कहा था हसीना ने?

बांग्लादेश के ट्रिब्यूनल का फैसला न्यूयॉर्क में वीडियो लिंक के जरिये हुए हसीना के संबोधन के बाद आया है। हसीना ने न्यूयॉर्क में मौजूद अपने समर्थकों को भारत ही से वीडियो लिंक के जरिये संबोधित किया था। हसीना ने अपने संबोधन में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर सामूहिक हत्या का आरोप जड़ा था।न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में वर्चुअल संबोधन में उन्होंने मोहम्मद यूनुस पर 'नरसंहार' करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की योजना बनाई गई थी। उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों किया जा रहा है? उन्हें बेरहमी से क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है? लोगों को अब न्याय का अधिकार नहीं है... मुझे कभी इस्तीफा देने का समय भी नहीं मिला। शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा को रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हसीना के खिलाफ कम से कम 60 मुकदमें दायर

हसीना को इस साल जुलाई व अगस्त में विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार व मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में आईसीटी में दायर कम से कम 60 मुकदमों का सामना करना पड़ेगा। अभियोजन पक्ष की टीम ने हाल की परिस्थितियों के मद्देनजर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति मोहम्मद गुलाम मुर्तुजा मजूमदार की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया।

जिसने दिलाई आजादी उसी से दुश्मनी निभा रहा बांग्लादेश, बीएनपी सुलगा रही 'बॉयकॉट इंडिया' की आग

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बांग्लादेश किसकी बोली बोलने लगा है? अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है।बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की फैसला किया है। साथ ही लोगों से भी ऐसा ही करने की अपील कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया।रिजवी ने यह विरोध त्रिपुरा में बांग्लादेश के उच्चायोग में कथित तोड़फोड़ और बांग्लादेशी झंडे के अपमान के खिलाफ किया।

आत्मनिर्भर बनने जा रहा बांग्लादेश!

बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने ढाका में प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए कहा कि भारत के त्रिपुरा में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में तोड़फोड़ कर हमारे झंड़े को जलाया गया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ना हमारा अपमान है। रिजवी ने अपील किया कि कोई भी बांग्लादेशी भारतीय सामानों को न खरीदे। उन्होंने अपनी पत्नी की भारत की साड़ी को सार्वजनिक मंच पर जलाया और लोगों से भारतीय सामनों का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि हमारा देश आत्मनिर्भर है। हम भारत के किसी भी सामान को नहीं खरीदेंगे। एक वक्त का खाना खा लेंगे लेकिन भारतीय सामान नहीं लेंगे। रिजवी ने कहा कि भारतीय साबुन, टूथपेस्ट से लगायत हम भारत से आने वाला मिर्च और पपीता भी इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम मिर्च और पपीता खुद उगा लेंगे।

भारत पर गलत खबरें फैलाने का आरोप

भारत विरोझी प्रदर्शन के दौरान रिजवी ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर भी निशाना साधते हुए गलत खबरें फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता के सम्मान की बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश किसी भी प्रकार के गलत आचरण को सहन नहीं करेगा।

क्या ऐसे बदहाली से उबर पाएगा बांग्लादेश?

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद, उदारवादियों का एक वर्ग था, जिसने इस बात की दुहाई दी थी कि अब मुल्क के हालात बदलेंगे और बदहाली से निकलकर बांग्लादेश विकास के रास्ते पर चलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में मुल्क अशांति की चपेट में है। जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुल्क में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं, अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दुश्मनी निभाई जा रही है।

बांग्लादेश फिर से लिख रहा इतिहास, शेख मुजीबुर रहमान की विरासत मिटाने की तैयारी, भारत का दे रहा हवाला

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तख्तापलट के बाद बांग्लादेश बदल रहा है। पड़ोसी देश में अब इतिहास की किताबों को फिर से लिख रहा है। खासतौर से 1971 के मुक्ति संग्राम के बारे में फिर से लिखा जा रहा है। इतिहास की नई पाठ्यपुस्तकों में बताया जाएगा कि 1971 में 6 मार्च को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा बंगबंधु मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी। नई पाठ्यपुस्तकों से मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है।

डेली स्टार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्राथमिक और माध्यमिक छात्रों के लिए नई किताबों में यह जानकारी होगी कि जियाउर रहमान ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी।रिपोर्ट के मुताबिक, नई पाठ्यपुस्तकों में कई बदलाव होंगे और इनको छापने का काम अभी चल रहा है। किताबों को एक जनवरी से छात्रों को वितरित किया जाना था। वर्ष 2010 से (जब शेख हसीना दूसरी बार सत्ता में आई थीं) पाठ्यपुस्तकों में लिखा गया कि शेख मुजीबुर रहमान ने 26 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी सेना की ओर से गिरफ्तार किए जाने से ठीक पहले एक वायरलेस संदेश के जरिए स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

बांग्लादेश के नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्ट बुक बोर्ड (एनसीटीबी) के अध्यक्ष प्रोफेसर एकेएम रियाजुल हसन ने कहा कि 2025 शैक्षणिक वर्ष के लिए नई पुस्तकों में बताया जाएगा कि '26 मार्च 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की।' उन्होंने कहा कि यह जानकारी निशुल्क वितरित की जाने वाली किताबों में शामिल कर ली गई है, जिनमें घोषणा का उल्लेख किया गया है।

अतिरंजित और थोपे गए इतिहास को हटाने की कोशिश

पाठ्यपुस्तकों में बदलाव की प्रक्रिया में शामिल रहे रिसर्चर राखल राहा ने कहा कि पाठ्यपुस्तकों से अतिरंजित और थोपे गए इतिहास को हटाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि 'पाठ्यपुस्तकों में बताया गया था कि शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने वायरलेस संदेश में बांग्लादेश की आजादी का एलान किया था, लेकिन ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिसके बाद ही इसे हटाने का फैसला किया गया है।' आवामी लीग के समर्थक मानते हैं कि शेख मुजीबुर रहमान ने देश की आजादी का एलान किया था और जियाउर रहमान ने, जो उस समय सेना में थे, मुजीब के निर्देश पर केवल घोषणा पढ़ी थी।

बांग्लादेश भारत का दे रहा हवाला

एनसीटीबी के अध्यक्ष रियाजुल ने कहा कि टेलीग्राम को संविधान में संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था। उन्होंने कहा, ''तत्कालीन भारतीय नेता और तत्कालीन सूचना मंत्रालय की ओर से तैयार की गई स्वतंत्रता के बाद की पहली डॉक्यूमेंट्री 'स्वतंत्रता संग्राम के दस्तावेज' जियाउर रहमान की ओर से घोषणा करने के पक्ष में सबूत दिखाती है।''

सत्ता में बैठे लोगों के अनुसार बदला जाता रहा है इतिहास

रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले कक्षा एक से 10 तक की पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता की घोषणा किसने की, इसकी जानकारी सत्ता में रहने वाली सरकार के अनुसार बदल दी जाती थी। एनसीटीबी के पूर्व अधिकारी बताते हैं कि 1996-2001 तक जब एएल सत्ता में थी किताबों में कहा गया कि शेख मुजीब ने स्वतंत्रता की घोषणा की और जियाउर रहमान ने घोषणा पढ़ी। इसके बाद 2001-2006 तक जब बीएनपी सत्ता में थी तो बताया गया कि जियाउर ने घोषणा की थी। हालांकि, वे यह नहीं बता सके कि 1996 से पहले पाठ्यपुस्तकों में क्या लिखा जाता था।

मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने की कोशिश

बांग्लादेश के नोटों से शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। बीते साल 5 अगस्त को शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने और उनके देश छोड़कर जाने के बाद से ही शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को मिटाने की कोशिश की जा रही है। शेख मुजीबुर रहमान की हत्या वाली तारीख 15 अगस्त को मिलने वाले अवकाश को भी खत्म कर दिया गया है। गौरतलब है कि जिया उर रहमान की पत्नी खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी ने ही शेख हसीना की सरकार को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी।

बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को लगा झटका, जमानत खारिज

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बांग्लादेश हिंसा मामले में गिरफ्तार हिंदू नेता चिन्मय कृष्णदास की जमानत अर्जी को चट्टोग्राम की अदालत ने खारिज कर दिया है। डेली स्टार की खबर के अनुसार इस्कॉन के पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की जमानत याचिका को बांग्लादेश की चट्टोग्राम अदालत में सुनवाई के लिए लगाया गया था। मगर कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया। मतलब साफ है कि चिन्मय दास को अभी और समय जेल में ही बिताना होगा। इससे पहले 11 दिसंबर को एक बांग्लादेश की एक अदालत ने दास की प्रारंभिक जमानत याचिका को प्रक्रिया में खामी के कारण खारिज कर दिया था।

चिन्मय दास की तरफ से बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के 11 वकीलों ने पैरवी की> चिन्मय दास के मामले में आज एक सकारात्मक घटनाक्रम ये रहा कि चिन्मय दास के वकीलों को अपना पक्ष रखने का मौका मिला। पिछली दो सुनवाई में चिन्मय दास के वकीलों को कोर्ट में पेश नहीं होने दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी संत चिन्मय दास को राहत नहीं मिली।

उच्च न्यायालय में अपील करने की योजना

चिन्मय के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने मीडिया को बताया कि वे जमानत के लिए उच्च न्यायालय में अपील करने की योजना बना रहे हैं। सभी को उम्मीद थी कि नए साल में चिन्मय प्रभु को आजादी मिल जाएगी, लेकिन 42 दिन बाद भी उनकी जमानत आज सुनवाई में खारिज कर दी गई।

क्या हैं चिन्मय दास पर आरोप

पूर्व में इस्कॉन से जुड़े रहे दास के खिलाफ बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा ध्वज फहराने का आरोप है। इस मामले में उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद उनको ढाका के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया और कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद जेल भेज दिया गया। दास की गिरफ्तारी के बाद चटगांव में उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान हिंसा में चटगांव में एक वकील की मौत भी हो गई थी। ये मामला काफी ज्यादा चर्चा में रहा था।

यह पूरा मामला 25 अक्टूबर को चटगांव में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के ऊपर भगवा ध्वज फहराने के आरोप से शुरू हुआ। मामला दर्ज होने के बाद चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद स्थिति तब बिगड़ी, जब 27 नवंबर को चटगांव कोर्ट से दास की जमानत खारिज होने के बाद उनके समर्थकों का प्रदर्शन हिंसक हो गया और इसमें एक वकील की मौत हो गई।

शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को चुनाव आयोग से बड़ी राहत, लड़ सकेगी चुनाव

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बांग्‍लादेश में बीते अगस्त माह में तख्तापलट हो गया। इसके बाद देश में मोहम्‍मद यूनुस की अंतरिम सरकार आई। शेख हसीना के पतन के बाद बांग्लादेश की जनता के साथ-साथ पूरी दुनिया को बांग्लादेश के नई सरकार के लिए होने वाले चुनावों का इंतजार है। शेख हसीना के देश छोड़न के बाद ये कहा जा रहा है कि उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया है।मोहम्मद यूनुस के एक सलाहकार ने यह भी कह दिया था कि वो हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच शेख हसीना को चुनाव आयोग से बड़ी राहत मिली है। बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने कहा, ‘अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है।

बांग्‍लादेश छोड़न के बाद शेख हसीना पर एक-एक कर हसीना पर 100 से ज्‍यादा मुकदमे ठोक दिए गए। यही नहीं, मोहम्‍मद यूनुस के एक सलाहाकार ने यह कह दिया कि वो हसीना की पार्टी अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने की तैयारी कर रहे हैं। एक के बाद एक याचिकाएं भी बांग्‍लादेश की कोर्ट में लगा दी गई ताकि कानूनी रूप से अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोका जा सके। हालांकि, अब शेख हसीना को बांग्‍लादेश के चुनाव आयोग ने बड़ी राहत दी है। चुनाव आयोग का कहना है कि आवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कोई कानूनी बाधा नहीं है।

इससे पहले खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की तरफ से भी कहा गया था कि वो चाहते हैं कि अवामी लीग पर चुनाव लड़ने से रोक नहीं लगाई जाए। हालांकि वो शेख हसीना और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं पर एक्‍शन में पक्ष में जरूर हैं। बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन ने आवामी लीग की भागीदारी के बारे में चिंताओं पर बात करते हुए चटगांव में कहा, “यह मुख्य रूप से एक राजनीतिक मामला है। कुछ व्यक्तियों ने आवामी लीग को भाग लेने से रोकने के लिए अदालती आदेश की मांग करते हुए मुकदमे दायर किए हैं। अगर अदालत ऐसा कोई फैसला सुनाती है, तो हम उसके अनुसार कार्रवाई करेंगे। अन्यथा, यह एक राजनीतिक निर्णय है।’

बता दें कि बांग्लादेश के अंतरिम नेता मोहम्मद यूनुस 2025 के अंत में या 2026 की पहली छमाही में संसदीय चुनाव कराने की योजना बना रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक चुनावों के रोडमैप की जानकारी देते हुए, यूनुस ने कहा कि चुनावों की समयसीमा चुनाव सुधार आयोग की सिफारिशों पर निर्भर करती है, लेकिन 2025 के अंत तक चुनाव कराना संभव हो सकता है।

बांग्लादेश में हिंदुओं के बाद ईसाइयों को बनाया गया निशाना, क्रिसमस पर 17 घरों को फूंका

#17christianhousesburntinbangladeshon_christmas

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी है। पहले हिंदुओं पर हमले किए गए और ईसाइयों को निशाना बनाया गया है।बांग्लादेश में क्रिसमस से एक दिन पहले ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों के 17 घर जला दिए गए। यह घटना बंदरबन जिले के चटगांव पहाड़ी इलाके में हुई। पीड़ितों का दावा है कि जब वे क्रिसमस के मौके पर प्रार्थना करने के लिए चर्च गए थे, तब मौके का फायदा उठाकर उनके घरों में आग लगाई गई।

बंदरबन में क्रिसमस के रोज क्रिश्चियन त्रिपुरा कम्युनिटी के 17 घरों को जला दिया गया। घरों में आग लगाने के बाद बदमाश भाग गए। आगजनी की ये घटना लामा उपजिला के सराय यूनियन के नोतुन तोंगझिरी त्रिपुरा पारा में दोपहर करीब साढ़े 12 बजे घटी। दरअसल, बदमाशों ने उन घरों को तब आग के हवाले किया जब लोग क्रिसमस मनाने के लिए दूसरे गांव गए थे, क्योंकि उनके इलाके में कोई चर्च नहीं था।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक टोंगजिरी क्षेत्र के न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोग चर्च न होने के कारण दूसरी जगह फेस्टिवल को सेलिब्रेट करने के लिए गए हुए थे। तभी उनके पीठ पीछे उपद्रवियों ने गांव में पर हमला कर दिया और 17 घरों को पूरी तरह जला दिया। इस हमले में 15 लाख टका से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।

पहले से दी जा रही थीं धमकियां

न्यू बेटाचरा पारा गांव के लोगों ने ढाका ट्रिब्यून को बताया कि बीते महीने 17 नवंबर को उपद्रवियों ने उन्हें गांव खाली करने की धमकी दी गई थी। इस पर गंगा मणि त्रिपुरा नामक व्यक्ति ने 15 आरोपियों के खिलाफ लामा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि, पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब घर जलने के बाद पीड़ित परिवार खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।

4 महीने से रह रहे थे ईसाई समुदाय के लोग

जानकारी के मुताबिक त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार बंदरबन (चटगांव पहाड़ी इलाका) के लामा सराय के एसपी गार्डन में रहते थे। यह गार्डन हसीना सरकार में बड़े अधिकारी रहे बेनजीर अहमद का है। इसे एसपी गार्डन के नाम से जाना जाता है।

5 अगस्त के बाद बेनजीर अहमद और उनके परिवार के लोग यह इलाका छोड़कर चले गए थे। इसके बाद यहां त्रिपुरा समुदाय के 19 परिवार आकर रहने लगे। कल शाम जब सभी लोग क्रिसमस के मौके पर पड़ोस के चर्च में प्रार्थना करने गए तो उपद्रवियों ने खालीपन का फायदा उठाकर घरों को जला दिया।

वहीं, ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों ने बताया कि ये उनकी ही जमीन है। पहले इस इलाके का नाम तंगझिरी पारा था। इस पर बेनजीर अहमद के लोगों ने कब्जा कर लिया था और यहां का नाम बदलकर एसपी गार्डन कर दिया था।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

क्या बांग्लादेश की पहचान मिटाने में लगे मोहम्मद यूनुस? अब 'जॉय बांग्ला' अब नहीं होगा राष्ट्रीय नारा

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शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। शेख हसीना को 5 अगस्त को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जगह मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार 8 अगस्त को अस्तित्व में आई। अंतरिम सरकार हसीना सरकार के दौर में लिए गए कई बड़े फैसलों को पलटने में लगी है। इसी बीच, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने एक हाईकोर्ट के उस फैसले को नकार दिया, जिसमें 'जॉय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था।यह नारा पूर्व पीएम और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया था।

शेख हसीना सरकार के जाने के बाद देश में अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई और हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित करने की मांग की। अंतरिम सरकार ने 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर कर 10 मार्च, 2020 के हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाली अपीलीय खंडपीठ की 4 सदस्यीय बेंच ने मंगलवार को इस आधार पर आदेश पारित किया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मैटर है और न्यायपालिका इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आदेश में कहा गया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत निर्णय का मामला है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुनवाई में सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर हक ने कहा कि इस आदेश के बाद जॉय बांग्ला को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा।

अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” विरोधी!

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था। शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत की सहायता से अपने ही उस मुल्क से आजादी पाई थी, जिस मुल्क के लिए उन्होंने भारत से एक प्रकार से आजादी से पहले जंग लड़ी थी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को क्या माना जाए?

यह था हाईकोर्ट का फैसला

उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2020 को 'जॉय बांग्ला' को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया था। कोर्ट ने सरकार को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था ताकि नारे का इस्तेमाल सभी राज्य समारोहों और शैक्षणिक संस्थानों की सभाओं में किया जा सके। इसके बाद 20 फरवरी 2022 को हसीना के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में मान्यता देते हुए एक नोटिस जारी किया और अवामी लीग सरकार ने 2 मार्च 2022 को एक गजट अधिसूचना जारी की।

तख्तापलट के बाद कई बड़े बदलाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर को 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 13 अगस्त को अंतरिम सरकार की सलाहकार परिषद ने फैसला लिया था कि 15 अगस्त को कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होगा। कुछ दिन पहले बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने करेंसी नोटों से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया था। बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली। इसके बाद बंगबंधु रहमान और शेख हसीना के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

भारत' विरोधी मोहम्मद यूनुस हर बीतते पल के साथ दिखा रहे तेवर, अब बांग्लादेश में शेख हसीना के भाषणों पर प्रतिबंध

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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बुधवार को पहली बार मोर्चा संभालते हुए, देश में अल्पसंख्यकों के कथित उत्पीड़न को लेकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला किया था। शेख हसीना ने कहा था कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों के प्रसारण पर रोक लगा दी है।

बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने बृहस्पतिवार को अधिकारियों को मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के सभी ''घृणास्पद भाषणों'' के प्रसार पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। न्यायाधिकरण पूर्व प्रधानमंत्री के विरुद्ध दर्ज मानवता के खिलाफ अपराध के विभिन्न मामलों की सुनवाई शुरू करेगा।

सोशल मीडिया से भी हसीना के भाषणों को हटाने का आदेश

बांग्लादेश संगबाद संस्था के मुताबिक न्यायाधीश एमडी गोलाम मुर्तजा मौजूमदार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने एक आदेश जारी किया। आदेश में अधिकारियों को हसीना के भड़काऊ भाषण को सोशल मीडिया से हटाने और भविष्य में इसके प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अभियोजक अधिवक्ता अब्दुल्लाह अल नोमान ने कहा कि न्यायाधिकरण ने आईसीटी विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और बांग्लादेश दूरसंचार नियामक आयोग को आदेश का पालन करने के निर्देश दिए। अभियोजक ने दायर याचिका में कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भड़काऊ भाषणों को हटाया जाए। क्योंकि गवाहों और पीड़ितों को डर लग सकता है या जांच में बाधा आ सकती है।

क्या कहा था हसीना ने?

बांग्लादेश के ट्रिब्यूनल का फैसला न्यूयॉर्क में वीडियो लिंक के जरिये हुए हसीना के संबोधन के बाद आया है। हसीना ने न्यूयॉर्क में मौजूद अपने समर्थकों को भारत ही से वीडियो लिंक के जरिये संबोधित किया था। हसीना ने अपने संबोधन में बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर सामूहिक हत्या का आरोप जड़ा था।न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में वर्चुअल संबोधन में उन्होंने मोहम्मद यूनुस पर 'नरसंहार' करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की योजना बनाई गई थी। उन्होंने कहा था कि अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों किया जा रहा है? उन्हें बेरहमी से क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है? लोगों को अब न्याय का अधिकार नहीं है... मुझे कभी इस्तीफा देने का समय भी नहीं मिला। शेख हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा को रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हसीना के खिलाफ कम से कम 60 मुकदमें दायर

हसीना को इस साल जुलाई व अगस्त में विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुए विद्रोह के दौरान नरसंहार व मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों में आईसीटी में दायर कम से कम 60 मुकदमों का सामना करना पड़ेगा। अभियोजन पक्ष की टीम ने हाल की परिस्थितियों के मद्देनजर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसके बाद न्यायमूर्ति मोहम्मद गुलाम मुर्तुजा मजूमदार की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण ने आदेश दिया।

जिसने दिलाई आजादी उसी से दुश्मनी निभा रहा बांग्लादेश, बीएनपी सुलगा रही 'बॉयकॉट इंडिया' की आग

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बांग्लादेश किसकी बोली बोलने लगा है? अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़े अत्याचार के बीच अब राजनीतिक दलों ने बॉयकाट इंडिया का नारा बुलंद करना शुरू कर दिया है।बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की फैसला किया है। साथ ही लोगों से भी ऐसा ही करने की अपील कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाते हुए भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया।रिजवी ने यह विरोध त्रिपुरा में बांग्लादेश के उच्चायोग में कथित तोड़फोड़ और बांग्लादेशी झंडे के अपमान के खिलाफ किया।

आत्मनिर्भर बनने जा रहा बांग्लादेश!

बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिजवी ने ढाका में प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए कहा कि भारत के त्रिपुरा में बांग्लादेश के सहायक उच्चायोग में तोड़फोड़ कर हमारे झंड़े को जलाया गया। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ना हमारा अपमान है। रिजवी ने अपील किया कि कोई भी बांग्लादेशी भारतीय सामानों को न खरीदे। उन्होंने अपनी पत्नी की भारत की साड़ी को सार्वजनिक मंच पर जलाया और लोगों से भारतीय सामनों का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा कि हमारा देश आत्मनिर्भर है। हम भारत के किसी भी सामान को नहीं खरीदेंगे। एक वक्त का खाना खा लेंगे लेकिन भारतीय सामान नहीं लेंगे। रिजवी ने कहा कि भारतीय साबुन, टूथपेस्ट से लगायत हम भारत से आने वाला मिर्च और पपीता भी इस्तेमाल नहीं करेंगे। हम मिर्च और पपीता खुद उगा लेंगे।

भारत पर गलत खबरें फैलाने का आरोप

भारत विरोझी प्रदर्शन के दौरान रिजवी ने भारतीय नेताओं और मीडिया पर भी निशाना साधते हुए गलत खबरें फैलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, उन्होंने बांग्लादेश की संप्रभुता के सम्मान की बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश किसी भी प्रकार के गलत आचरण को सहन नहीं करेगा।

क्या ऐसे बदहाली से उबर पाएगा बांग्लादेश?

शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद, उदारवादियों का एक वर्ग था, जिसने इस बात की दुहाई दी थी कि अब मुल्क के हालात बदलेंगे और बदहाली से निकलकर बांग्लादेश विकास के रास्ते पर चलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में मुल्क अशांति की चपेट में है। जगह जगह हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। मुल्क में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं, अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दुश्मनी निभाई जा रही है।