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कौन बनेगा दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री? CM पद की रेस में BJP के ये 5 नेता सबसे आगे

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 27 साल के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली में सत्ता में वापसी की और आम आदमी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. दिल्ली की सत्ता में भाजपा की वापसी हो गयी है, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अभी तक अपने सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और पीएम मोदी के नेतृत्व में प्रचार करने पर ध्यान केंद्रित किया है.

लेकिन दिल्ली चुनाव में जीत के बाद अब यह सवाल अहम हो गया है कि बीजेपी का सीएम चेहरा कौन हो सकता है? दिल्ली बीजेपी प्रमुख सचदेवा से जब शनिवार को सीएम चेहरे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह फैसला पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व करेगा.

बीजेपी में सीएम पद के कई दावेदार हैं. बीजेपी जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने का प्रयास करेगी. संतुलन साधने के लिए बीजेपी ने कई राज्यों में डिप्टी सीएम भी बनाए हैं. क्या दिल्ली में भी भाजपा ऐसा करेगी? यह सवाल अब उठ रहा है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के बाद पार्टी में सीएम पद के कई दावेदार माने जा रहे हैं. पार्टी के आला सूत्रों का कहना कि दिल्ली में मुख्यमंत्री पद की रेस में प्रवेश वर्मा, सतीश उपाध्याय, आशीष सूद, जितेंद्र महाजन और विजेंद्र गुप्ता आगे चल रहे हैं.

दिल्ली के सीएम पद की दौड़ में शामिल हैं ये नेता

प्रवेश वर्मा: दिल्ली में सीएम पद की दौड़ में शामिल होने वालों में सबसे पहला नाम प्रवेश वर्मा का है. पूर्व सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा नई दिल्ली सीट पर आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हराने के बाद भाजपा के लिए एक प्रमुख व्यक्ति बन गए. दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे वर्मा ने इस जीत के साथ “विशालकाय हत्यारे” का खिताब हासिल किया है, क्योंकि वह केजरीवाल के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब रहे.

वह Giant Killer और जाट हैं. उन्होंने बाहरी दिल्ली के होने के बावजूद नई दिल्ली में दम दिखाया है. जाट सीएम बनाने से ग्रामीण दिल्ली, पश्चिम यूपी, हरियाणा और राजस्थान के जाट वोटरों तक मैसेज जाएगा. जीत के बाद वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले हैं.

सतीश उपाध्याय: दिल्ली में सीएम पद की रेस में शामिल दूसरे बीजेपी नेता सतीश उपाध्याय हैं. वो बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा हैं. वह बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और दिल्ली युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे हैं. वह एनडीएमसी के वाइस चेयरमैन भी रह चुके हैं. इस लिहाज से उनके पास प्रशासनिक अनुभव भी हैं. उन्होंने संगठन में कई दायित्व संभाले थे. वह मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश के सह प्रभारी रह चुके हैं और आरएसएस के करीबी माने जाते हैं.

आशीष सूद: दिल्ली के सीएम पद की रेस में भाजपा नेता आशीष सूद शामिल माने जा रहे हैं. वो बीजेपी के पंजाबी चेहरा हैं. वह पार्षद रहे हैं. दिल्ली बीजेपी के महासचिव रह चुके हैं. अभी गोवा के प्रभारी और जम्मू कश्मीर के सह प्रभारी हैं. जम्मू कश्मी विधानसभा चुनाव में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. उनके केंद्रीय नेताओं के साथ करीबी संबंध है. वह डीयू के भी अध्यक्ष रह चुके हैं.

जितेंद्र महाजन: रोहतास नगर विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार जितेंद्र महाजन ने जीत हासिल की है. यह उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है. जीतेंद्र महाजन ने आप की सरिता सिंह को 27902 मतोंसे पराजित किया है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जीतेंद्र महाजन ने 73,873 वोटों के साथ सीट जीती थी. उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी (आप) की सरिता सिंह को 60,632 वोट मिले, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विपिन शर्मा को 5,572 वोट मिले. वो वैश्य समाज से आते हैं और आरएसएस के काफी करीबी हैं.

विजेंद्र गुप्ता: दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की रेस में विजेंद्र गुप्ता भी शामिल माने जा रहे हैं. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा उम्मीदवार विजेंद्र गुप्ता ने रोहिणी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता है. भाजपा उम्मीदवार ने 37816 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, उन्हें कुल 70365 वोट मिले. आप उम्मीदवार प्रदीप मित्तल को 32549 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सुमेश गुप्ता को केवल 3765 वोट मिले. वह दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं. बीजेपी का वैश्य चेहरा हैं और आप की लहर की बावजूद पहले भी विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं

दिल्ली चुनाव परिणाम: कांग्रेस को हार में भी मिली जीत, जानें कैसे?

दिल्ली के सत्ता की तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है. बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही तो आम आदमी पार्टी का सफाया हो गया है. कांग्रेस एक बार फिर से दिल्ली की सियासत में अपना खाता नहीं खोल सकी है. इस तरह कांग्रेस को चौथी बार दिल्ली में करारी मात खानी पड़ी है. इसके बाद भी कांग्रेस आखिर क्यों खुश है और केजरीवाल की हार में अपने लिए क्यों गुड न्यूज मान रही है.

दिल्ली में 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस तीसरी बार एक भी सीट नहीं जी सकी है. कांग्रेस के ज्यादातर उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके हैं. दिल्ली में हार के बाद भी कांग्रेस बाजीगर बनकर उभर रही है, इस बात को अलका लांबा से लेकर संदीप दीक्षित खुले तौर पर इजहार कर रहे हैं. सवाल ये उठता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस क्यों अपनी जीत देख रही है.

कांग्रेस के चलते क्या चुनाव हारी AAP

कांग्रेस के चलते आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं को चुनावी शिकस्त खानी पड़ी है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को अपनी सीट पर जितने वोटों से हार मिली है, उससे ज्यादा वोट कांग्रेस के उम्मीदवार पाने में सफल रहे. ये सिर्फ दो सीटों पर नहीं हुआ है बल्कि एक दर्जन से भी भी ज्यादा सीटों पर AAP की हार की वजह कांग्रेस बनी है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर लड़ती तो दिल्ली की तस्वीर दूसरी होती. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सिर्फ दो फीसदी वोटों का ही अंतर है जबकि कांग्रेस का वोट छह फीसदी से भी ज्यादा है.

AAP की हार कांग्रेस के लिए गुड न्यूज

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस अपनी जीत देख रही है. दिल्ली में कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. 2020 में कांग्रेस को साढ़े चार फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2025 में उसे 6.38 फीसदी वोट मिले. दिल्ली में कांग्रेस का वोट दो फीसदी बढ़ा है, इसी दो फीसदी के अंतर से आम आदमी पार्टी कई सीटें गंवा दी है. दिल्ली में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर आम आदमी पार्टी ने 2013 में अपनी जड़े जमाई थी और 11 साल तक राज किया. कांग्रेस की जमीन पर आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पंजाब और गुजरात में खड़ी हुई.

आम आदमी पार्टी के सियासी उभार के बाद से कांग्रेस दिल्ली की सियासत में कमजोर पड़ती गई, लेकिन केजरीवाल के सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस को दोबारा से अपने उभरने की संभावना जगा दी है. कांग्रेस नेताओं को यह लग रहा है कि विपक्ष में रहते हुए आम आदमी पार्टी कमजोर होगी, जिसका सीधा फायदा आने वाले समय में उसे होगा. दिल्ली में कांग्रेस का खिसका हुआ दलित और मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी के कमजोर होने के बाद फिर से वापसी करेंगे. मुस्लिम को पहली च्वाइस कांग्रेस रही है.

कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर बढ़ेगी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ मिलकर उतरती तो फिर बीजेपी को सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाता. इसकी वजह यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 43.58 फीसदी वोट मिले हैं जबकि बीजेपी को 45.95 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस को 6.38 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मिले वोट शेयर को अगर जोड़ देते हैं को फिर यह आंकड़ा 49.96 फीसदी वोट हो रहा है. इस तरह बीजेपी से करीब 4 फीसदी वोट आम आदमी पार्टी का ज्यादा बन रहा, जिसके चलते सीटों पर भी असर पड़ता. इस तरह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करना आम आदमी पार्टी को महंगा पड़ा है.

कांग्रेस को इसका लाभ अब बिहार, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में चुनाव होगा, जहां पर कांग्रेस कमजोर है और क्षेत्रीय पार्टियों की सहारे चुनाव लड़ती है. कांग्रेस को हल्के में न ही यूपी में सपा लेगी और न बिहार में आरजेडी लेगी. कांग्रेस अच्छे से सीटों की बार्गेनिंग करके चुनाव लड़ेगी, क्योंकि दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के सहयोगी जरूरत है न की कांग्रेस को, जिस तरह दिल्ली में आम आदमी पार्टी को जरूरत है.

कांग्रेस को कैसे मिलेगा सियासी लाभ

आम आदमी पार्टी अपना सियासी विस्तार जिन-जिन राज्यों में किया है, उन राज्यों में कांग्रेस के वोट बैंक अपने साथ जोड़कर किया है. दिल्ली में AAP ने कांग्रेस की जमीन पर खड़ी हुई है तो पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया. इसके अलावा गुजरात और गोवा में कांग्रेस की जमीन आम आदमी पार्टी छीनी. हरियाणा में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. इस तरह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से दिल्ली में हराकर हिसाब बराबर किया है, जिसके केजरीवाल को राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने की उम्मीदों पर झटका लगेगा.

अरविंद केजरीवाल अपनी सीट हार गए हैं तो उनके मजबूत सारे सिपहसालार भी अपनी-अपनी सीट गंवा दी है, जिसके चलते आम आदमी पार्टी के लिए आगे की सियासी डगर काफी कठिन होने वाली है. केजरीवाल की क्लीन इमेज वाली छवि को डंक लगा है. भ्रष्टाचार के दाग अब उनके दामन पर लगे चुके हैं. जमानत पर जेल से बाहर हैं. ऐसे में केजरीवाल, सिसोदिया जैसे कई आम आदमी पार्टी के नेता हैं, जिन पर कानूनी शिकंजा फिर से कस कसता है.

केजरीवाल पर शिकंजा कसता है तो आम आदमी पार्टी के लिए अपनी जड़े मजबूती से बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा दिल्ली के विकास मॉडल को लेकर भी केजरीवाल देश भर में अपनी जड़ें जमाने में लगे हुए थे, दिल्ली के चुनावी हार से उसकी भी हवा निकल गई है. ऐसे में कांग्रेस को फिर से अपनी जड़े जमाने में लाभ मिल सकता है.

कौन हैं प्रवेश वर्मा? जिन्होंने नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से जीत छीनी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. चुनाव में राज्य की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की जमानत जब्त हो गई है. राज्य की 70 सीटों में बीजेपी 48 सीटों पर जीत दर्ज करती हुई नजर आ रही है. चुनाव में सबसे बड़ा नई दिल्ली विधानसभा सीट पर देखने को मिली है जहां, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को हार झेलनी पड़ी है. इस सीट से बीजेपी नेता प्रवेश वर्मा को जीत मिली है. चुनाव में वर्मा को 30088 वोट मिले हैं जबकि अरविंद केजरीवाल को 25999 वोट मिले. हार और जीत के बीच अंतर 4089 वोट का रहा है. नई दिल्ली की सीट पर केजरीवाल की हार उनके साथ-साथ पार्टी के लिए भी बड़ी हार मानी जा रही है क्योंकि वो पिछले तीन बार से इस सीट से जीत हासिल कर रहे थे.

कौन हैं प्रवेश वर्मा?

प्रवेश वर्मा का सियासी से पुराना नाता है. वो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं. उनकी मां का नाम रामप्यारी वर्मा है. उनकी शादी स्वाति सिंह से हुई है. प्रवेश वर्मा एक बेटे और दो बेटियों के पिता हैं. बेटे और दोनों बेटियां फिलहाल पढ़ाई कर रही है. प्रवेश वर्मा की बात करें तो उनका जन्म 1977 में हुआ. उनकी शिक्षा दीक्षा भी दिल्ली में ही हुई है. आरके पुरम में स्थिति दिल्ली पब्लिक स्कूल उन्होंने स्कूलिंग की है. इसके बाद किरोड़ीमल कॉलेज से आर्ट में ग्रेजुएट भी हैं. वहीं, हायर एजुकेशन की बात करें तो प्रवेश वर्मा ने 1999 में स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया से इंटरनेशनल बिजनेस सब्जेक्ट में एमबीए किया हुआ है.

पिता की जीत पर क्या बोलीं बेटियां?

पिता की जीत पर प्रवेश वर्मा की बेटियां त्रिशा और सानिधी ने कहा कि हम नई दिल्ली से लोगों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देते हैं. दिल्ली के लोग झूठ बोलकर सरकार चलाने वाले व्यक्ति को दूसरा मौका देने की गलती कभी नहीं करेंगे. हम जानते थए कि हमारी जीत होगी. हम बस सही समय का इंतजार कर रहे थे. इस बार दिल्ली के लोगों ने झूठ को जीतने नहीं दिया.

प्रवेश वर्मा का सियासी सफर

प्रवेश वर्मा के सियासी करियर की बात करें तो उन्होंने साल 2013 में मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा. उस समय उन्होंने दिल्ली की महरौली विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के सीनियर नेता रहे योगानंद शास्त्री को हराया था. इसके बाद पार्टी ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी दिल्ली सीट से मैदान में उतारा और इस चुनाव में भी प्रवेश वर्मा हाईकमान के उम्मीदों पर खरा उतरे. इसके बाद पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसी सीट से कांग्रेस के महाबल मिश्रा को 5 लाख से अधिक वोटों से मात देते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की.

बीजेपी ने लोकसभा में नहीं उतारा, अब केजरीवाल की दी मात

बीजेपी ने 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा को मैदान में नहीं उतारा था क्योंकि उनके विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा तेज हो गई थी. अब दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली विधानसभा सीट से मैदान में उतारा. इस सीट पर एक तरह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल थे तो दूसरी ओर कांग्रेस ने पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को टिकट दिया था. चुनाव में प्रवेश वर्मा और केजरीवाल के बीच कांटे की टक्कर रही और अंत में बीजेपी यह सीट निकालने में सफल रही. प्रवेश वर्मा 4 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करने में सफल रहे.

केजरीवाल के खिलाफ मुखर आवाज बनकर उभरे थे प्रवेश वर्मा

दिल्ली की सियासत में पिछले कुछ समय से अगर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अगर कोई नेता मुखर आवाज बनकर उभरा तो वो प्रवेश वर्मा ही हैं. दिल्ली की राजनीति में प्रवेश वर्मा की छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप में भी रही है. 2025 के दिल्ली चुनाव से पहले, प्रवेश वर्मा ने ‘केजरीवाल हटाओ, देश बचाओ’ अभियान शुरू किया था. वर्मा ने AAP सरकार की आलोचना करते हुए दावा किया था कि यह पार्टी अपनी प्राथमिक प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं कर रही है.

कितनी है प्रवेश वर्मा की संपत्ति?

प्रवेश वर्मा ने जब विधानसभा चुनाव के लिए पर्चा दाखिल किया था तो उन्होंने अपनी संपत्ति के बारे में बताया था. उनके नॉमिनेशन में दी गई जानकारी के अनुसार उनके पास कुल 95 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इसमें करीब 77 करोड़ 89 लाख रुपए चल संपत्ति है. वहीं, पत्नी की चल संपत्ति 17 करोड़ 53 लाख रुपए बताया था. अचल संपत्ति की बात करें तो प्रवेश वर्मा के पास 11 करोड़ 25 लाख है और उनकी पत्नी के पास 6 करोड़ 91 लाख रुपए की अचल संपत्ति है. नामांकन में उन्होंने यह भी बताया है कि उन पर 62 करोड़ रुपए का कर्ज भी है.

AAP की हार के बाद सील किया गया दिल्ली सचिवालय, सभी फाइल सुरक्षित रखने का आदेश

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. कई सीटों पर हार जीत का फैसला हो गया है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की बुरी हार हुई है. बीजेपी दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापसी करने जा रही है. इस बीच दिल्ली सचिवालय को सील कर दिया गया है. सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने एक नोटिस जारी कर कहा है कि जीएडी की परमिशन के बिना कोई भी फाइल, कंप्यूटर हार्डवेयर आदि सचिवालय परिसर से बाहर न जाए.

जीएडी ने कहा, यह आदेश सचिवालय ऑफिस और मंत्रिपरिषद के ऑफिस पर भी लागू होगा. दोनों कार्यालयों के प्रभारियों को भी इस आदेश का पालन करना होगा. इस आदेश पर दिल्ली में सियासी हलचल भी तेज हो गई है. बीजेपी का दावा है कि ये कदम सरकारी फाइल की सुरक्षा के लिए उठाया गया है. जबकि आम आदमी पार्टी के नेताओं का आरोप है कि सरकार बदलते ही बीजेपी सचिवालय से फाइल जब्त करने की कोशिश कर रही है.

प्रधानमंत्री ने देश को सुशासन का मॉडल दिया

दिल्ली में बीजेपी की जीत पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने देश को सुशासन का एक मॉडल दिया है. दिल्ली के लोगों ने पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार और अराजकता को देखा है. लोगों ने प्रधानमंत्री को जीत दिलाई है. अब दिल्ली के लोग विकास चाहते हैं, सुशासन चाहते हैं. डबल इंजन सरकार अहम भूमिका निभाएगी. आम आदमी पार्टी के सभी नेताओं, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता के साथ जो धोखा किया था, उसका जवाब जनता ने दे दिया है.

वहीं, दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट से भाजपा उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, 27 सालों का बहुत बड़ा वनवास काटकर भाजपा दिल्ली में आई है. सब पार्टी तय करती है. पार्टी जिसे जो जिम्मेदारी देती है वह निभाता है. गांधीनगर सीट से भाजपा उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली ने कहा, यह जीत उस झूठ के खिलाफ है जो आम आदमी पार्टी दिल्ली के लोगों को परोस रही थी.

आप-दा से मुक्त हुई दिल्ली… BJP की जीत पर अमित शाह ने किया AAP पर तंज

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की पराजय हुई और भाजपा की बड़ी जीत मिली है. दिल्ली में जीत के बाद भाजपा समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में भाजपा की जीत पर पार्टी समर्थकों को बधाई दी है. उन्होंने एक्स पर ट्वीट कर लिखा कि दिल्ली के दिल में मोदी हैं.

उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता ने झूठ, धोखे और भ्रष्टाचार के शीशमहल को नेस्तनाबूत कर दिल्ली को आप-दा मुक्त करने का काम किया है.

उन्होंने कहा कि दिल्ली ने वादाखिलाफी करने वालों को ऐसा सबक सिखाया है, जो देशभर में जनता के साथ झूठे वादे करने वालों के लिए मिसाल बनेगा. यह दिल्ली में विकास और विश्वास के एक नए युग का आरंभ है.

दिल्ली में झूठ के शासन का अंत हुआ: अमित शाह

अमित शाह ने लिखा कि दिल्ली में झूठ के शासन का अंत हुआ है.यह अहंकार और अराजकता की हार है. यह मोदी की गारंटी और मोदी जी के विकास के विजन पर दिल्लीवासियों के विश्वास की जीत है.

उन्होंने कहा कि इस प्रचंड जनादेश के लिए दिल्ली की जनता का दिल से आभार। मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा अपने सभी वादे पूरे कर दिल्ली को विश्व की नंबर 1 राजधानी बनाने के लिए संकल्पित है.

महिलाओं के लिए क्यों खास है यशोदा जयंती, क्या है इसकी कहानी?

हिंदू धर्म में यशोदा जयंती बहुत विशेष मानी जाती है. यशोदा जयंती का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की मां यशोदा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था, लेकिन भगावन का पालन-पोषण माता यशोदा ने किया था. यशोदा जयंती के दिन माता यशोदा और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन किया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधि विधि-विधान से व्रत और पूजन करने से श्रेष्ठ संतान प्राप्त होता है. यशोदा जयंती की धूम भगवान कृष्ण के सभी मंदिरों के साथ साथ विश्वभर के इस्कॉन मंदिरों में देखने को मिलती है.

कब है यशोदा जयंती

हिंदू पंचांग के अनुसार, यशोदा जयंती फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. इस साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत 18 फरवरी को तड़के सुबह 4 बजकर 53 मिनट पर होगी. वहीं इस तिथि का समापन 19 फरवरी को सुबह 7 बजकर 32 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में इस साल यशोदा जयंती 18 फरवरी को मनाई जाएगी. इसी दिन इसका व्रत भी रखा जाएगा.

महिलाओं के लिए क्यों विशेष होती है यशोदा जयंती

महिलाओं के लिए यशोदा जयंती का दिन और इसका का व्रत बहुत ही विशेष होता है. यशोदा जयंती का व्रत मां का संतान के प्रति प्यार का प्रतीक है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन व्रत के साथ-साथ मां यशोदा की गोद में बैठे हुए बाल रूप भगवान कृष्ण का पूजन किया जाता है. मान्यता है कि इससे संतान प्राप्ति की इच्छा जल्द पूरी हो जाती है.

यशोदा जंयती की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, माता यशोदा ने भगवान विष्णु का कठोर तप किया था. माता यशोदा के तप से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा. इस पर माता ने कहा कि भगवन आज आप मेरे यहां पुत्र के रूप में आएंगे, तब मेरी मनोकामना पूरी होगी. इसके बाद भगवान कृष्ण ने कहा कि आने वाले समय में वो वासुदेव और माता देवकी के यहां जन्म लेंगे. उस समय उनका पालन-पोषण माता यशोदा ही करेंगी.

फिर भगवान श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के यहां आठवीं संतान के रूप में जन्में.अत्याचारी कंस उन्हें माार न डाले इस डर से वासुदेव उन्हेंं नंद और यशोदा के यहां छोड़ आए. माता यशोदा ने भगवान कृष्ण का पालन-पोषण किया. श्रीमद्भागवत में वर्णित है कि भगवान की जो कृपा माता यशोदा को मिली, वैसी कृपा न तो ब्रह्मा जी, शिव जी और मां लक्ष्मी को भी प्राप्त नहीं हुई.

Disclaimer:इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है.हम इसकी पुष्टि नहीं करता है.

दूल्हे के नाम के ऊपर राहुल गांधी की तस्वीर, शादी का कार्ड देखते ही मेहमान भी रह गए सन्न

देश के मोस्ट एलिजिबल बैचलर्स में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम भी शामिल है. लोगों को हमेशा से ही यह जिज्ञासा रहती है कि राहुल बाबा शादी कब और किससे करेंगे. इस बीच शादी के एक कार्ड ने खलबली मचा दी है. इसमें दूल्हे के नाम के ठीक ऊपर राहुल गांधी की तस्वीर लगी है. जिस किसी ने भी यह कार्ड देखा वो सन्न रह गया. लेकिन इसके पीछे का कारण कुछ और ही है.

दरअसल, ये कार्ड मध्य प्रदेश यूथ कांग्रेस के प्रदेश महासचिव के परिवार में हो रही शादी का है. शादी के इस कार्ड पर राहुल गांधी का और उनकी मां सोनिया गांधी के फोटो छपे हैं. ग्वालियर के रहने वाले प्रदेश महासचिव योगेश दंडोतिया ने अपनी बहन की शादी का खास कार्ड छपवाया है. कार्ड पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी की फोटो फ्रंट कवर पर छपवाई है. उनके साथ संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की फोटो भी मौजूद है. यह कार्ड सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है.

क्यों छपवाया ऐसा कार्ड?

कार्ड छपवाने वाले युवक कांग्रेस प्रदेश महासचिव योगेश दंडोतिया का कार्ड पर राहुल सोनिया के फोटो छपवाने को लेकर कहना है कि संविधान बनाकर दलितों को समाज मे बराबरी का स्थान डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दिलाया. वहीं आज के दौर में संविधान की रक्षा करने के लिए लड़ाई राहुल गांधी कर रहे हैं. इसलिए जिस तरह बाबा साहब दलितों के लिये भगवान है, उसी तरह अब राहुल गांधी भी बाबा साहब की तरह उनके भगवान तुल्य है. इसलिए उनके फोटो को बाबा साहब के साथ छपवाया है. राहुल गांधी जैसे बेटे को जन्म सोनिया गांधी ने दिया, इसलिए उनके फोटो को भी कार्ड पर बराबरी का स्थान दिया है.

BJP ने ली चुटकी

शादी के कार्ड राहुल गांधी का फोटो छपने पर बीजेपी चुटकी लेकर तंज कस रही है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता रामेश्वर भदौरिया का कहना है कि योगेश दंडोतिया ने राहुल औऱ सोनिया गांधी को सम्मान दिया, ऐसे में बीजेपी उनकी भावनाओं का आदर करती है, तंज कसते हुए साथ मे यह भी कहा कि राहुल गांधी की शादी का कार्ड अभी तक नहीं छपा है लेकिन कम से कम राहुल गांधी का शादी के कार्ड पर फोटो तो छप ही गया. भगवान से प्रार्थना करते हैं कि यह कार्ड राहुल गांधी तक पहुंचे और जल्द राहुल गांधी शादी करें औऱ उनकी शादी का कार्ड छपे, जिससे सभी को खुशी होगी.

राजस्थान में होंगी पुलिस कांस्टेबल के 6500 पदों पर भर्तियां, जानें नोटिफिकेशन पर क्या है अपडेट

राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के 6500 पदों पर भर्तियां की जाएंगी.पुलिस भर्ती बोर्ड को प्रशासन से इसकी मंजूरी मिल गई है. सिपाही भर्ती के लिए जल्द ही राजस्थान पुलिस भर्ती प्रोन्नत बोर्ड की ओर से नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है. राज्य सरकार ने बजट में 5500 पुलिस कांस्टेबल भर्ती की घोषणा कि थी. पदों की संख्या बढ़ाने के लिए पीएचक्यू ने प्रस्ताव भेजा था, जिसे मंजूरी मिल गई है. आइए जानते हैं कि आवेदन प्रक्रिया कब से शुरू हो सकती है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अगले माह से पुलिस कांस्टेबल भर्ती प्रक्रिया शुरू हो सकती है. सीईटी रिजल्ट जारी होने के बाद आवेदन प्रक्रिया शुरू होने की संभावना जताई जा रही है. भर्ती प्रोन्नति बोर्ड के एडीजी बिपिन कुमार पांडेय ने सभी जिलों से कांस्टेबल पदों की जानकारी मांगी है.

कितनी होनी चाहिए आवेदन के लिए उम्र?

कांस्टेबल भर्ती के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की उम्र 18 वर्ष से 28 वर्ष होनी चाहिए. अधिकतम उम्र सीमा में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को छूट भी दी जा सकती है. भर्ती प्रोन्नति बोर्ड के एडीजी के अनुसार सीईटी रिजल्ट घोषित होने के बाद कांस्टेबल भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

कैसे करना होगा आवेदन?

आवेदन प्रक्रिया शुरू होने के बाद आधिकारिक वेबसाइट

police.rajasthan.gov.in पर जाएं.

होम पेज पर दिए गए रिक्रूटमेंट सेक्शन में जाएं.

यहां कांस्टेबल भर्ती आवेदन लिंक पर क्लिक करें.

रजिस्ट्रेशन करें और फाॅर्म भरें.

डाक्यूमेंट्स अपलोड करें और फीस जमा कर सबमिट करें.

कैसे होगा चयन?

पुलिस कांस्टेबल पदों पर आवेदकों का चयन लिखित परीक्षा, फिजिकल टेस्ट और डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन के जरिए किया जाएगा. लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा.फिजिकल टेस्ट और डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन के बाद फाइनल मेरिट लिस्ट तैयारी होगी और उसी के अनुसार चयन किया जाएगा.

दिल्ली में AIMIM का दो सीटों पर कैसा है हाल? जानें अपडेट

दिल्ली में आठवीं विधानसभा के नतीजे आज घोषित हो रहे हैं. वोटों की गिनती शुरु हो चुकी है. 5 फरवरी को हुए मतदान में 60 फीसदी से अधिक वोटिंग हुई है. दिल्ली चुनाव में इस बार कांटे की टक्कर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच ही है. मगर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी भी मैदान है. फिलहाल शुरुआती रुझानों में पार्टी दोनों सीटों पर पीछे चल रही है.

असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 2 सीटों पर चुनाव लड़ा है. उन्होंने ओखला विधानसभा सीट और मुस्तफाबाद विधानसभा सीट से उम्मीदवार उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया. ओखला सीट से शिफा-उर-रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन चुनाव मैदान में थे. दोनों दिल्ली दंगों के आरोपी हैं. शिफा-उर-रहमान का मुकाबला आम आदमी पार्टी के मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान हैं.

ओखला विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल है. यहां 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. बीते दो चुनाव में यहां आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला रहा है. इस बार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की वजह से चुनाव दिलचस्प हो गया है.

मुस्तफाबाद विधानसभा सीट भी बहुत पुरानी नहीं है और साल 2008 के परिसीमन के बाद ही यह अस्तित्व में आई थी. इस सीट पर अब तक हुए 4 बार के चुनाव में 2 बार कांग्रेस और एक-एक बार भाजपा व आम आदमी पार्टी को जीत हासिल हुई है. इस बार के चुनाव में भी मुस्तफाबाद की 69 फीसदी जनता ने वोट डाले हैं.

नजफगढ़ विधानसभा सीट के शुरुआती रुझान, बीजेपी की नीलम पहलवान आगे

दिल्ली में विधानसभा चुनाव में 8 फरवरी यानी आज का दिन बेहद अहम है, क्योंकि आज मतों की गिनती हो रही है. दिल्ली की सभी 70 सीटों पर शुरुआती रुझान आने लगे हैं. नजफगढ़ विधानसभा सीट (Najafgarh Assembly Seat) पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. आम आदमी पार्टी ने तरुण यादव (Tarun Yadav), बीजेपी ने नीलम पहलवान (Neelam Pahalwan) और कांग्रेस ने सुषमा यादव (Sushma Yadav) को चुनावी मैदान में खड़ा किया है.

8.30 AM: दिल्ली में एक बार फिर कांटे की टक्कर चल रही है.

8.17 AM: शुरुआती रुझान में बीजेपी की नीलम पहलवान आगे चल रही हैं.

8 AM: वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है.

राजधानी की हाई प्रोफाइल नजफगढ़ सीट पर AAP का कब्जा है, लेकिन पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले कैलाश गहलोत 2025 के चुनाव से कुछ महीने भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. ऐसे में यहां के मुकाबले पर सभी की नजर लगी हुई है. जनरल कैटेगरी के तहत आने वाली नजफगढ़ विधानसभा सीट साउथ वेस्ट दिल्ली जिले में स्थित है.

2020 में किसके बीच रहा मुकाबला

साल 2020 के चुनाव में नजफगढ़ सीट पर AAP के टिकट पर कैलाश गहलोत को जीत मिली थी. तब अरविंद केजरीवाल के बेहद खास रहे कैलाश ने बीजेपी के प्रत्याशी अजित सिंह खारखारी को 6,231 वोटों के अंतर से हराया था. कांग्रेस के साहब सिंह तीसरे नंबर पर रहे.

इससे पहले नजफगढ़ सीट पर पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव कराए गए. तब सूरज प्रसाद पालीवाल को जीत मिली थी. वह बतौर निर्दलीय चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. फिर 1998 में कांग्रेस के कंवल सिंह यादव को जीत मिली. फिर 2003 के चुनाव में एक और निर्दलीय प्रत्याशी रणबीर सिंह खरब के खाते में जीत आई.

निर्दलीय प्रत्याशी को मिली जीत

साल 2008 के चुनाव में एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में जीत आई. इस बार भरत सिंह विधायक चुने गए. बीजेपी को यहां पर चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा. 2013 में नजफगढ़ सीट पर बीजेपी के अजित सिंह खारखारी ने इंडियन नेशलन लोक दल के टिकट पर लड़ने वाले भरत सिंह को शिकस्त दी थी.

फिर 2015 में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी कैलाश गहलोत ने इंडियन नेशलन लोक दल के भरत सिंह को 1,555 मतों से हराया. 2020 के चुनाव में कैलाश गहलोत ने फिर से यहां से जीत हासिल की.