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लोकसभा में एक देश-एक चुनाव विधेयक स्वीकार, जानें पक्ष-विपक्ष में कितने वोट पड़े?

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लोकसभा में एक देश एक चुनाव विधेयक स्वीकार कर लिया गया है। इसके लिए मतदान हुआ, जिसमें 269 वोट विधेयक के पक्ष में पड़े और 198 सांसदों ने विधेयक का विरोध किया। वन नेशन, वन नेशन को लेकर सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक डिविज़न हुआ। इस बिल के पक्ष में 220 सांसदों ने वोटिंग की। वहीं 149 सांसदों ने इसका विरोध किया। हालांकि बाद में फिर से मत विभाजन हुआ। ईवीएम के जरिए कराई गई वोटिंग में बिल के पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विरोध में 198 वोट डाले गए।

इससे पहले 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक को मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन के पटल पर रखा। सदन में चर्चा के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे बड़े विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया।

जेपीसी में जाएगा वन नेशन वन इलेक्शन बिल

वन नेशन,वन इलेक्शन बिल पर जारी विरोध के बीच विपक्ष ने मांग की कि बिल को जेपीसी में भेजा जाएगा। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल को जेपीसी को भेजा जाएगा। जेपीसी में सारी चर्चा होगी। जेपीसी के रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट फिर से चर्चा करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, जब कैबिनेट में एक राष्ट्र एक चुनाव बिल आया तो पीएम मोदी ने कहा कि इसे संसद की संयुक्त समिति को भेजा जाना चाहिए।

नई दिल्ली सीटःअरविंद केजरीवाल बनाम संदीप दीक्षित, कौन किसपर पड़ेगा भारी?

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नई दिल्ली विधानसभा सीट पिछले 6 विधानसभा चुनाव से दिल्ली को मुख्यमंत्री देती आ रही है। 1998 से लेकर 2020 तक के चुनाव में यहां से जीते विधायक ही दिल्ली के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। पहले तीन टर्म शीला दीक्षित ने यहां से जीत हासिल की थी। यह सीट उनकी विरासत बन गई थी। बाद में यह केजरीवाल की सीट बन गई। वह यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन, इस बार लड़ाई दिलचस्प होती दिख रही है। यहां के वर्तमान विधायक और पूर्व सीएम केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के पूर्व सीएम के बेटे और दो पूर्व सांसदों ने ताल ठोक दी है।

अब तक दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, हालांकि इसके फरवरी में आयोजित होने की संभावना है। जिसको लेकर राजनीतिक पार्टियां एक्शन मोड में आ चुकी हैं। आम आदमी पार्टी ने अब तक विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की दो सूची जारी की है। वहीं, बीजेपी ने अब तक उम्मीदवारों की कोई सूची जारी नहीं की है। बीजेपी अब तक कछुए वाली फॉर्म में दिखाई दे रही है। हालंकि ये चाल उसे जीत की दहलीज तक लेकर जाएगी या नहीं ये आने वाला वक्त तय करेगा। बहरहाल सबका फोकस सबसे ज्यादा हॉट बन चुकी नई दिल्ली विधानसभा सीट पर है।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल यहां से चुनावी मैदान में हैं।कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उनके सामने खड़ा किया है। अरविंद केजरीवाल इस सीट से लगातार तीन बार से विधायक हैं। वहीं संदीप दीक्षित की मां और दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित भी इस सीट से लगातार तीन बार विधायक रही हैं। सवाल उठ रहे हैं कि कौन किसपर भारी पड़ेगा? जनता का आशिर्वाद किसे मिलेगा?

आम आदमी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता का कहना है कि संदीप दीक्षित केजरीवाल के सामने चुनौती नहीं हैं। उन्होंने कहा, संदीप दीक्षित केजरीवाल के सामने कोई चुनौती नहीं हैं। शीलाजी के बाद संदीप दीक्षित ने नई दिल्ली सीट से कोई लगाव नहीं रखा है, दिल्ली में कांग्रेस का कोई वजूद भी नहीं है।

भले ही आम आदमी पार्टी या दूसरे राजनीतिक दल ये माने की केजरीवाल के सामने संदीप दीक्षित का वजूद नहीं है। हालांकि, नई दिल्ली सीट पर संदीप दीक्षित के आ जाने पर कांग्रेस भी दौड़ में शामिल हो गई है, अन्यथा वो रेस से बाहर थी।

जहां तक नई दिल्ली विधानसभा सीट पर की बात है, वो इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। दरअसल केजरीवाल के प्रति जनता में भरोसा थोड़ा कम हुआ है। उनपर लगे आरोपों से पार्टी की साख के साथ-साथ उनकी छवि को भी नुकसान पहुंचा है। वहीं डीटीसी और जल विभाग के घाटे में जाने का मसला भी उनके गले की फांस बनता दिख रहा है।

वहीं बात संदीप दीक्षित की करें तो उनकी छवि जनता के बीच साफ है, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा ये कहना थोड़ा जल्दबाजी होगा। शीला दीक्षित के निधन के बाद अगर कांग्रेस उन्हें चुनाव लड़ने के लिए यहां से उतारती तो शायद उन्हें थोड़े सिम्पेथी वोट मिल जाते। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया और किरण वालिया को टिकट देकर रिस्क उठाया।

बता दें कि आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली में पहली बार चुनाव लड़ा और 28 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं बीजेपी ने सबसे ज्यादा 31 सीटें जीतीं लेकिन स्थानीय स्तर पर सहमति नहीं बनने के कारण सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। उधर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के समर्थन से सत्ता पर काबिज हो गई। हालांकि, 49 दिन सरकार में रहने के बाद अचानक कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया।

इसके बाद साल 2015 में हुए चुनाव में ‘झाड़ू’ ने सब साफ कर दिया। 31 सीटों से बीजेपी तीन सीटों पर सिमटकर रह गई। कांग्रेस के तो ‘हाथ’ खाली रह गए।

दरअसल, 2013 में बीजेपी के पीछे हटने का फायदा कहीं ना कहीं आपको मिला। ये बात इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया। मतलब कांग्रेस का वोट ट्रांसफर होकर आप के साथ जुड़ गया। दिल्ली में कांग्रेस के कमज़ोर होने की सबसे बड़ी वजह यही है कि उसके वोट बैंक पर पूरी तरह से आम आदमी पार्टी ने कब्ज़ा कर लिया। शीला दीक्षित ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में दिल्ली में कांग्रेस के पक्ष में एक मज़बूत वोट बैंक तैयार कर दिया था, उन्होंने दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को कांग्रेस के साथ मज़बूती से जोड़ दिया। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के साथ-साथ मुसलमान भी कांग्रेस के साथ मज़बूती से जुड़ गए थे।

लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे द्वारा चलाए गए आंदोलन से बने माहौल में कांग्रेस के वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से जुड़ गया और फिर जुड़ता ही चला गया। कांग्रेस अपने उसी वोट बैंक को आम आदमी पार्टी से नहीं छीन पा रही है। अब देखना ये है कि शीला दीक्षित के बेटे के जरिए कांग्रेस के ‘हाथ’ कुछ लगता भी है या नहीं?

लोकसभा में पेश हुआ एक देश एक चुनाव बिल, विपक्ष ने किया विरोध, जेपीसी में भेजेगी सरकार

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वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक आज लोकसभा में पेश हो गया है।केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मंगलवार को लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। इसके बाद, विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे संसद की संयुक्त समिति को भेजा जा सकता है।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुछ सदस्यों ने बिल के इंट्रोडक्शन पर आपत्ति की है जो ज्यादातर लेजिस्लेटिव पर ही है। एक विषय आया कि आर्टिकल 368 का ये उल्लंघन करता है। ये आर्टिकल संविधान में संशोधन की प्रक्रिया बताता है और संसद को शक्ति देता है। एक विषय आया अनुच्छेद 327 सदन को विधानमंडलों के संबंध में चुनाव के प्रावधान का अधिकार देता है। इसमें कहा गया है कि संविधान के प्रावधान के तहत विधानमंडल के किसी भी चुनाव के संबंध में प्रावधान कर सकती है। ये संवैधानिक है। सभी आवश्यक मामले इसमें शामिल हैं। अनुच्छेद 83 सदनों की अवधि और राज्यों के विधानमंडल के चुनाव की अवधि को पुनर्निधारित किया जा सकता है। संविधा के सातवें अनुच्छेद के प्रावधान का उल्लेख करते हुए कानून मंत्री ने कहा कि ये केंद्र को शक्ति प्रदान करता है। ये संविधान सम्मत संशोधन है।

जेपीसी में जाएगा वन नेशन वन इलेक्शन बिल

वन नेशन,वन इलेक्शन बिल पर जारी विरोध के बीच विपक्ष ने मांग की कि बिल को जेपीसी में भेजा जाएगा। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बिल को जेपीसी को भेजा जाएगा। जेपीसी में सारी चर्चा होगी। जेपीसी के रिपोर्ट के आधार पर कैबिनेट फिर से चर्चा करेगी। अगर मंत्री जी(अर्जुन राम मेघवाल) ये बताते हैं तो इसे जेपीसी के पास भेजा जा सकता है। तब मेघवाल ने कहा कि रूल 74 के तहत सरकार जेपीसी का प्रस्ताव लाएगी। सरकार की तरफ से ये मंशा भी है।

टीडीपी ने की 'अटूट' समर्थन देने की घोषणा

चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी ने लोकसभा में पेश किए गए एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को ‘अटूट’ समर्थन देने की घोषणा की है। वहीं शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट ने भी इस बिल का समर्थन किया। वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक का कांग्रेस और सपा ने विरोध किया है। इसके अलावा टीएमसी और डीएमके ने भी बिल का विरोध किया है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, शिवसेना यूबीटी, एआईएमआईएम, सीपीएम और एनसीपी शरद पवार ने बिल का विरोध किया है। टीडीपी ने बिल का समर्थन किया है।

सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास है- सुप्रिया सुले

एनसीपी (एसपी)सांसद सुप्रिया सुले ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने “वन नेशन, वन इलेक्शन” विधेयक का विरोध किया है और इसे संघवाद और संविधान की कीमत पर सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास बताया है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह इस विधेयक को तुरंत वापस ले या आगे के परामर्श के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेज दे।

असदुद्दीन ओवैसी ने जमकर किया वन नेशन वन इलेक्शन बिल का विरोध

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन बिल का मैं विरोध करता हूं। ये बिल लोकतांत्रिक स्वराज के अधिकारों का उल्लंघन करता है। राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का नहीं होगा। ये अपने आप में संविधान का उल्लंघन है। संघवाद के प्रिसिंपल के खिलाफ है ये बिल।

फिलिस्तीन के बाद बांग्लादेश के हिंदुओं को समर्थन, संसद में ऐसे पहुंची प्रियंका गांधी

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कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी का बैन इन दिनों चर्चा में हैं। प्रियंका गांधी सोमवर को संसद में 'फिलिस्तीन' वाला बैग लेकर पहुंची थीं। अब मंगलवार को संसद में बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन वाला बैग लेकर पहुंचीं। प्रियंका गांधी के बांग्लादेश वाले बैग पर 'बांग्लादेश के हिंदू और ईसाइयों के साथ खड़े हों' लिखा हुआ है।

आज प्रियंका गांधी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हो रहे हिंसा के खिलाफ लिखे एक स्लोगन वाला हैंडबैंग लेकर आईं। इसके बाद एक बार फिर उनके हैंडबैग की चर्चा शुरू हो गई। कंधे पर ‘बांग्लादेश’ का बैग लिए प्रियंका गांधी मंगलवार को संसद परिसर में बांग्लादेश में हिंदुओं और ईसाइयों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कांग्रेस सांसदों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करती नजर आईं।

प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस के अन्य सांसदों ने भी संसद के बाहर बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के पक्ष में प्रदर्शिन किया। साथ ही 'भारत सरकार होश में आओ' और 'बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को न्याय दो' के नारे भी लगाए।

प्रियंका ने हिंसा को लेकर लगातार उठाई आवाज

प्रियंका गांधी लगातार बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रही हिंसा को लेकर आवाज उठाती रही हैं। हाल ही में इस्कॉन मंदिर के पुजारी की गिरफ्तारी को लेकर भी उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने कहा था, बांग्लादेश में इस्कॉन टेंपल के संत की गिरफ्तारी और अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ लगातार हो रही हिंसा की खबरें अत्यंत चिंताजनक हैं। साथ ही उन्होंने भारत सरकार से हस्तक्षेप करने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा, मेरी केंद्र सरकार से अपील है कि इस मामले में हस्तक्षेप किया जाए और बांग्लादेश सरकार के समक्ष अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का मुद्दा मजबूती से उठाया जाए।

पहले फिलिस्तीन को दिया समर्थन

इससे पहले सोमवार को लोकसभा सांसद प्रियंका गांधी संसद में 'फिलिस्तीन' वाला बैग लेकर पहुंची थीं। फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए Palestine लिखा हुआ बैग पहन कर संसद में पहुंचीं और उन्होंने बड़ा संदेश देने की कोशिश की। उनके बैग पर एक सफेद रंग का कबूतर भी बना था जोकि शांति का संकेत देता है।फिलिस्तीन वाले बैग के चलते प्रियंका गांधी को सत्ता पक्ष के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।

हालंकि आज फिर वह संसद में नए बैग के साथ पहुंच गईं। माना जा रहा है कि आज के बैग से प्रियंका गांधी ने बीजेपी को जवाब दिया

भारत के खिलाफ नहीं होने देंगे श्रीलंकाई जमीन का इस्तेमाल', एक ही लाइन से दो देशों को अलग-अलग संदेश

#will_not_allow_our_land_to_be_used_against_india_dissanayake_promises

भारत दौरे पर आए श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने भरोसा दिलाया है कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा के खिलाफ करने की अनुमति नहीं देंगे। दिसानायके का आश्वासन ऐसे समय में आया है, जब भारत ने 2022 में कोलंबो के समक्ष चीनी शोध पोत को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की इजाजत देने पर आपत्ति जताई थी। बता दें कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए हैं। इस दौरान उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और दोनों नेताओं ने एक दूसरे के साथ सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की है।

भारत दौरे पर आए श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने दिल्ली में रक्षा सहयोग पर चर्चा के दौरान संयुक्त बयान में भरोसा दिलाया कि वह अपनी जमीन का किसी भी तरह से भारत की सुरक्षा के खिलाफ उपयोग करने की अनुमति नहीं देंगे।भारतीय प्रधानमंत्री के साथ जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिसानायके ने कहा, मैंने भारत के प्रधानमंत्री को यह आश्वासन भी दिया है कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी तरह से ऐसे काम के लिए नहीं होने देंगे जो भारत के हित के लिए हानिकारक हो। भारत के साथ श्रीलंका का सहयोग निश्चित रूप से फलेगा-फूलेगा और मैं आपको भारत के लिए हमारे निरंतर समर्थन के बारे में आश्वस्त करना चाहता हूं।

दरअसल श्रीलंका में चीन के बढ़ते दखल से भारत की चिंता बढ़ी हुई है। दो साल पहले जब श्रीलंका कर्ज चुकाने में विफल रहा था तो चीन ने उसके हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा कर लिया था। चीन ने यहां पर अपने नौसैनिक निगरानी और जासूसी जहाज को खड़ा किया। अगस्त 2022 में चीनी नौसेना के जहाज युआन वांग 5 ने दक्षिणी श्रीलंका के हंबनटोटा में डॉक किया। इसके बाद दो चीनी जासूसी जहाजों को नवंबर 2023 तक 14 महीने के भीतर श्रीलंका के बंदरगाहों में डॉक करने की अनुमति दी गई थी। चीनी शोध जहाज 6 अक्टूबर 2023 में श्रीलंका पहुंचा और उसने कोलंबो बंदरगाह पर डॉक किया। इस जहाज के डॉक करने का उद्देश्य समुद्री पर्यावरण पर रिसर्च थी।

भारत और अमेरिका ने इसे लेकर चिंता जताई थी। नई दिल्ली ने आशंका जताई थी कि चीनी जहाज जासूसी जहाज हो सकते हैं और कोलंबो से ऐसे जहाजों को अपने बंदरगाहों पर डॉक करने की अनुमति न देने का आग्रह किया था। भारत द्वारा चिंता जताए जाने के बाद श्रीलंका ने जनवरी में अपने बंदरगाह पर विदेशी शोध जहाजों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब श्रीलंका और भारत के बीच हुए रक्षा समझौते के बाद श्रीलंका ने अपना रुख साफ किया है।

आज तक हमारे किसी सांसद ने ऐसी हिम्मत नहीं दिखाई', जानें प्रियंका गांधी की पाकिस्तान में क्यों हो रही तारीफ ?

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कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा सोमवार को संसद में एक हैंडबैग के साथ पहुंचीं। उस बैग पर सबकी नजर टिक गई। उस पर लिखा था पेलेस्टाइन यानी फिलिस्तीन। यह कदम फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन और एकजुटता प्रदर्शित करने के रूप में देखा जा रहा है। प्रियंका गांधी के इस कदम पर पाकिस्तान में भी चर्चा शुरू हो गई है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के संसद में फिलिस्तीन लिखा बैग ले जाने पर पाकिस्तान के पूर्व मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने उनकी सराहना की है।

बौनों के बीच प्रियंका गांधी तनकर खड़ी-फवाद चौधरी

पाकिस्तानी नेता फवाद चौधरी ने एक्स पर पोस्ट में प्रियंका की तारीफ की। फवाद हसन चौधरी ने प्रियंका गांधी की तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा की। उन्होंने लिखा कि जवाहरलाल नेहरू जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी की पोती से हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं? बौनों के बीच प्रियंका गांधी तनकर खड़ी हैं। यह शर्म की बात है कि आज तक किसी पाकिस्तानी संसद सदस्य ने ऐसा साहस नहीं दिखाया है।

पहले भी कर चुकीं हैं फिलिस्तीन का समर्थन

प्रियंका गांधी की यह वायरल तस्वीर सोमवार की है, जब वे संसद पहुंची थीं। पहले भी कई मौकों पर कांग्रेस और प्रियंका गांधी फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठा चुकी हैं। फिलिस्तीन के राजदूत से प्रियंका ने मुलाकात भी की थी। प्रियंका गांधी वाड्रा फिलिस्तीनियों के संघर्ष में अपने समर्थन की बात कह चुकी हैं।

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने आजादी हासिल करने के लिए फिलिस्तीनी लोगों के संघर्ष के लिए अपने समर्थन की बात कही थी। उन्होंने कहा था, वो बचपन से ही फिलिस्तीनी हितों के लिए जी रही हैं न्याय में यकीन रखती हैं। उन्होंने बचपन में फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की भारत यात्रा के दौरान कई बार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से उनकी मुलाकात का भी जिक्र किया था।

लोकसभा में आज एक देश-एक चुनाव बिल आएगा, बीजेपी-कांग्रेस-शिवसेना ने व्हिप जारी किया

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लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए 'एक देश, एक चुनाव' का संविधान (129वां संशोधन) विधेयक मंगलवार को संसद में पेश होने वाला है। संसद के शीतकालीन सत्र के 17वें दिन आज सरकार लोकसभा में एक देश-एक चुनाव से जुड़े 2 बिल पेश करेगी। दोनों बिल को 12 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पहले एक देश-एक चुनाव के लिए 129वां संविधान संशोधन बिल पेश करेंगे। इसको लेकर बीजेपी, कांग्रेस और शिवसेना ने अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है।

सूत्रों के मुताबिक, ये भी कहा जा रहा है कि बिल पर सहमति के लिए इसे जेपीसी में भेजा जाएगा। एक शीर्ष सरकारी पदाधिकारी ने बताया कि केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विधेयक पेश करेंगे। इसके बाद वह लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति को संदर्भित करने का निवेदन करेंगे। समिति का गठन विभिन्न पार्टियों के सांसदों की संख्या के आधार पर आनुपातिक रूप से किया जाएगा।

बीजेपी और शिवसेना ने सभी सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी किया है। साथ ही सदन में मौजूद रहने के लिए कहा है। बिल को एनडीए के सहयोगी दलों का भी साथ मिल चुका है। सहयोगी दल सरकार और बिल के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। विपक्ष वन नेशन, वन इलेक्शन बिल के विरोध में है। विपक्ष इसे गैरजरूरी और असल मुद्दों से भटकाने वाला बिल बता रहा है। वहीं, सभी कांग्रेस लोकसभा सांसदों को व्हिप जारी किया गया है, जिसमें आज की महत्वपूर्ण कार्यवाही के लिए सदन में उनकी उपस्थिति अनिवार्य की गई है।

विधेयक के जरिये संविधान में अनुच्छेद-82ए (लोकसभा एवं विधानसभाओं के एकसाथ चुनाव) को जोड़ा जाएगा। जबकि अनुच्छेद-83 (संसद के सदनों की अवधि), अनुच्छेद-172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) और अनुच्छेद-327 (विधायिकाओं के चुनाव से जुड़े प्रविधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन किए जाएंगे।विधेयक में यह भी प्रविधान है कि इसके कानून बनने के बाद आम चुनाव के पश्चात लोकसभा की पहली बैठक की तिथि पर राष्ट्रपति की ओर से अधिसूचना जारी की जाएगी और अधिसूचना जारी करने की तिथि को नियत तिथि कहा जाएगा। लोकसभा का कार्यकाल उस तिथि से पांच वर्ष का होगा।

वहीं, राज्यसभा में संविधान पर विशेष चर्चा दूसरे दिन भी जारी रहेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शाम को चर्चा पर जवाब दे सकते हैं। इससे पहले PM ने 14 दिसंबर को लोकसभा में संविधान पर विशेष चर्चा में भाग लिया था। चर्चा के दौरान उन्होंने कांग्रेस को संविधान का शिकार करने वाली पार्टी बताया था।

हश मनी केस में ट्रंप की बढ़ीं ट्रंप की मुश्किलें, सजा बरकरार, जानें कोर्ट ने क्या कहा?

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हश मनी मामले में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बड़ा झटका लगा है। हश मनी मामले में जज ने डोनाल्ड ट्रंप की हश मनी केस की सजा को खारिज करने की मांग को ही खारिज कर दिया है। जज ने फैसले में कहा है कि स्कैंडल को छुपाने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई और इसलिए डोनाल्ड ट्रंप की सजा बरकरार रहनी चाहिए। बता दे कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को गुप्त धन (हश मनी केस) समेत 34 मामलों में दोषी ठहराया गया था।

मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूयॉर्क के एक न्यायाधीश ने सोमवार को कहा कि हश मनी मामले में उन्हें राष्ट्रपति बनने के बाद भी कोई राहत नहीं मिलेगी और उनकी मई की सजा बरकरार रहेगी। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायाधीश जुआन मर्चेन ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपतियों को आधिकारिक कामों के लिए व्यापक प्रतिरक्षा देने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू नहीं होता क्योंकि मुकदमे में गवाही "पूरी तरह से अनाधिकारिक आचरण से संबंधित थी, जिसके लिए कोई प्रतिरक्षा संरक्षण का अधिकार नहीं था।" न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी यही जानकारी दी है।

दरअसल ट्रंप ने याचिका दायर कर अपने खिलाफ चल रहे हश मनी मामले को खारिज करने की मांग की थी। ट्रंप के वकीलों ने याचिका में तर्क दिया था कि केस के बरकरार रहने से राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप की क्षमताएं बाधित होंगी और वह अच्छी तरह से सरकार नहीं चला पाएंगे। हालांकि जज ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट के इस फैसले से यह संभावना बढ़ गई है कि ट्रंप, जूरी के फैसले के खिलाफ अपील लंबित रहने तक, एक गंभीर अपराध के साथ व्हाइट हाउस में जाने वाले पहले राष्ट्रपति बन सकते हैं।

क्या है हश मनी केस?

एडल्ट स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स के साथ डोनाल्ड ट्रंप का संबंध 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में खूब चर्चा में रहा था। वहीं स्टॉर्मी डेनियल्स ट्रंप के साथ अपने रिश्ते को सार्वजनिक करने की धमकी दे रही थीं। इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें गुपचुप तरीके से पैसे दिए। जिसके बाद ट्रंप को डेनियल्स को 1 लाख 30 हजार डॉलर के भुगतान को छिपाने के लिए व्यावसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी करने के आरोप में दोषी ठहराया गया है।

ट्रंप ने जज पर लगाया था आरोप

बता दें कि 77 साल के ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्हें अपराधी घोषित किया गया है। हालांकि, ट्रंप ने अपने खिलाफ चलाए जा रहे इस मुकदमे को धांधलीपूर्ण बताया था। मैनहट्टन कोर्ट रूम के बाहर हाल ही में ट्रंप ने जज पर पक्षपात और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि जज बहुत भ्रष्ट हैं। उन्होंने कहा था कि मुकदमे में धांधली हुई।

स्विट्जरलैंड ने भारत से छीना ये खास दर्जा? जानें क्या हो सकता है असर?
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स्विट्ज़रलैंड ने भारत को दिए 'सर्वाधिक तरजीही देश' यानी मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्ज़ा रद्द कर दिया है। स्विट्ज़रलैंड ने यह फ़ैसला नेस्ले विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद लिया है। इस फैसले में कहा गया था कि डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) तब तक लागू नहीं होगा जब तक इसे इनकम टैक्स एक्ट के तहत अधिसूचित नहीं किया जाता। इस फैसले का सीधा असर नेस्ले जैसी अन्य स्विस कंपनियों पर पड़ेगा, जिन्हें अब डिविडेंड पर अधिक टैक्स चुकाना होगा। इसका असर देश में मौजूद स्विस कंपनियों और स्विट्जरलैंड में काम कर रही भारतीय कंपनियों पर भी होगा। नेस्ले के खिलाफ अदालत के प्रतिकूल फैसले के बाद स्विट्जरलैंड ने भारत को दिया गया एमएफएन का दर्जा वापस ले लिया। स्विट्जरलैंड ने एक बयान में आय पर करों के संबंध में दोहरे कराधान से बचने के लिए स्विस परिसंघ और भारत के बीच समझौते में एमएफएन खंड का प्रावधान निलंबित करने की घोषणा की। स्विट्जरलैंड ने अपने इस फैसले के लिए नेस्ले से संबंधित एक मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया। *क्या होता है मोस्ट-फेवर्ड-नेशन?* मोस्ट फेवर्ड नेशन यानी एमएफएन एक खास दर्जा होता है। टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (जीएटीटी), 1994 के अनुच्छेद 1 के अनुसार, प्रत्येक डब्ल्यूटीओ (World Trade Organization) सदस्य देश को अन्य सभी सदस्य देशों को एमएफएन का दर्जा (या टैरिफ और व्यापार बाधाओं के संबंध में तरजीही व्यापार शर्तें) प्रदान करना आवश्यक है। इसमें एमएफएन राष्ट्र को भरोसा दिलाया जाता है कि उसके साथ भेदभाव रहित व्यापार किया जाएगा। डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार ऐसे दो देश एक-दूसरे से किसी भी तरह का भेदभाव नहीं कर सकते। इसमें यह भी कहा गया है कि अगर व्यापार सहयोगी को खास दर्जा दिया जाता है तो डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य राष्ट्रों को भी वैसा ही दर्जा दिया जाना चाहिए। *क्‍या है इस फैसले का मतलब?* एमएफएन का दर्जा वापस लेने का मतलब है कि स्विट्जरलैंड एक जनवरी, 2025 से भारतीय कंपनियों के उस देश में अर्जित लाभांश पर 10 फीसदी टैक्‍स लगाएगा। जब किसी देश को यह दर्जा दिया जाता है तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह शुल्कों में कटौती करेगा। अलावा उन दोनों देशों के बीच कई वस्तुओं का आयात और निर्यात भी बिना किसी शुल्क के होता है। मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा जिस किसी भी देश को दिया जाता है, उस देश को व्यापार में अधिक प्राथमिकता दी जाती है। विकासशील देशों के लिए एमएफएन फायदे का सौदा है। इससे इन देशों को एक बड़ा बाजार मिलता है। जिससे वे अपने सामान को वैश्विक बाजार में आसानी से पहुंचा सकते हैं। *भारतीय सुप्रीम कोर्ट के नेस्ले के फैसले से जुड़ा है ये कदम* यह कदम भारत के सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए एक फैसले के बारे में उठाया गया है। स्विट्जरलैंड ने अपने इस फैसले के लिए 2023 में नेस्ले से जुड़े एक मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अपने फैसले में कहा था कि डीटीएए तब तक लागू नहीं हो सकता जब तक कि इसे भारतीय इनकम टैक्स एक्ट के तहत नोटिफाई ना किया जाए। स्विस सरकार के बयान के मुताबिक नेस्ले मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 2021 में डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) में मोस्ट फेवर्ड सेगमेंट को ध्यान में रखते हुए बकाया टैक्स रेट के कंप्लाइंस को बरकरार रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 19 अक्टूबर, 2023 के एक फैसले में इस आदेश को पलट दिया था। पैकेज्ड फूड के कारोबार में लगी नेस्ले का हैडक्वार्टर स्विट्जरलैंड के वेवे शहर में है। स्विस वित्त विभाग ने अपने बयान में इनकम पर टैक्स के डबल टैक्सेशन से बचने के लिए दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत एमएफएन प्रोविजन को निलंबित करने की घोषणा की है।
नेहरू की चिट्ठियां पर मचा हंगामा, बीजेपी ने पूछा-क्यों अपने साथ ले गईं सोनिया गांधी…’,संबित पात्रा ने की जांच की मांग
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* प्रधानमंत्री म्यूजियम की ओर से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को लेटर लिखा गया है, जिसमें उनसे नेहरू से जुड़े डॉक्यूमेंट्स वापस करने की मांग की गई है। प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी सोसाइटी के सदस्य रिजवान कादरी ने सोमवार को कहा कि 2008 में यूपीए कार्यकाल में 51 बक्सों में भरकर नेहरू के पर्सनल लेटर सोनिया गांधी के पास पहुंचाए गए थे। या तो सभी लेटर वापस किए जाएं, या फिर इन्हें स्कैन करने की इजाजत दी जाए, क्योंकि ये डॉक्यूमेंट्स पहले ही पीएम म्यूजियम का हिस्सा थे। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़े पत्रों को लेकर अब सियासत गरमाती दिख रही है। इस मुद्दे पर सोमवार को संसद में भी हंगामा देखने को मिला। भाजपा सांसद संबित पात्रा ने लोकसभा में मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्रालय को मामले की जांच करनी चाहिए। ये चिठ्ठियां देश के प्रथम प्रधानमंत्री से जुड़े हैं, उनको वापस लाया जाए। सभी दस्तावेज देश के लिए जरूरी हैं। भाजपा सांसद संबित पात्रा ने कहा कि उन लेटर में ऐसा क्या लिखा था, जो गांधी परिवार नहीं चाहता कि वे बातें देश के सामने आएं। संबित पात्रा ने संसद में कहा कि क्या राहुल गांधी इन खतों को पीएम संग्रहालय को लौटाने में मदद करेंगे? इन खतों में आखिर क्या लिखा था, जो उठाने में इतनी जल्दबाजी की गई? इन्हें कहां रखा गया है, जनता इसके बारे में जानना चाहती है? पात्रा ने पूछा कि पीएम संग्रहालय का नाम नेहरू म्यूजियम एंड लाइब्रेरी था। जहां सिर्फ जवाहरलाल नेहरू से जुड़े दस्तावेज रखे गए थे। जितने पीएम अब तक बने हैं, उनकी भी पूरी जानकारी यहां होती थी। 2008 में यूपीए चेयरपर्सन सभी खत अपने साथ ले गई थीं। पात्रा ने सवाल उठाया कि पूरी सामग्री को डिजिटल अपलोड करने को लेकर 2010 में फैसला लिया गया था। लेकिन सोनिया गांधी इतनी जल्दी में क्यों थीं? वे अपने साथ सभी खतों को 51 डिब्बों में भरकर ले गईं। क्या वजह है कि आखिर गांधी परिवार इन खतों को देश को दिखाना नहीं चाह रहा? संविधान जैसे मुद्दे पर संसद में बहस हो रही है, ऐसे मौके पर इन खतों को छिपाया जा रहा है। पात्रा ने फिर सवाल दोहराया कि ये वजह बतानी जरूरी है। आखिर इन लेटर्स को डिजिटाइजेशन से पहले क्यों उठा लिया गया? ऐसी सेंसरशिप को क्यों लागू किया गया, जब संविधान जैसे अहम इश्यू पर डिबेट चल रही हो? यह पहली बार नहीं है कि नेहरू के खतों को लेकर बवाल मचा है। पहले भी एडविना माउंटबेटन औऱ नेहरू के बीच हुए पत्राचार पर बीजेपी कांग्रेस को निशाने पर लेती रही है। ऐसे में गांधी परिवार का इन लेटर को मेमोरियल से मंगवाना और फिर बार बार कहने पर भी न लौटाना, संदेह पैदा करता है। ये वे दस्तावेज हैं जो मेमोरियल को दान किए गए थे। इनमें नेहरू के एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन जैसी हस्तियों के साथ हुए पत्राचार हैं। पहले ये सारी चिट्ठियां नेहरू मेमोरियल के पास थीं.। लेकिन 2008 में सोनिया गांधी ने वहां से 51 कार्टन अपना एक प्रतिनिधि भेजकर मंगवाए।