भदोही में रानी लक्ष्मीबाई की संकल्प दिवस के रुप में मनी जयंती
नितेश श्रीवास्तव
भदोही। रानी लक्ष्मीबाई की जयंती आज यानी 19 नवंबर को मनाई जा रही है। हर साल इस दिन झांसी की रानी की वीरता को नमन किया जाता है और अंग्रेजों के खिलाफ उनकी शौर्य गाथा को याद किया जाता है। स्कूल के दिनों से ही बच्चे-बच्चे को रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी या शौर्य गाथा सुनाई जाने लगती है।
वह झांसी की रानी थीं, जो अपने पति और पुत्र को खो चुकी हैं और दत्तक पुत्र के लायक होने तक खुद एक महिला होकर झांसी का शासन संभाल रही थीं। हालांकि अंग्रेज हुकूमत ने झांसी को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का प्रयास किया और झांसी के किले पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब दिया। घोड़े पर सवार लक्ष्मी बाई की पीठ पर उनका पुत्र था और वह अंग्रेजों के सीने को चीरते हुए अपना रास्ता बना रही थीं।बनारस में 19 नवंबर 1828 को जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था। प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था।
उनके पिता मोरोपंत तांबे और मां भागीरथी सप्रे थीं। वह मनु चार साल की थीं, तभी उनकी मां की निधन हो गया। पिता बिठूर जिले के पेशवा बाजी राव द्वितीय के लिए काम करते थे। उन्होंने लक्ष्मी बाई का पालन पोषण किया। इस दौरान उन्होंने घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा और निशानेबाजी की ट्रेनिंग ली। 14 साल की उम्र में 1842 में मनु की शादी झांसी के शासक गंगाधर राव नेवलेकर से कर दी गई। शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। उस दौर में शादी के बाद लड़कियों का नाम बदल जाता था। विवाह के बाद लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसकी मृत्यु महज चार महीने में ही हो गई।
बाद में उनके पति और झांसी के राजा का भी निधन हो गया। पति और बेटे को खोने के बाद लक्ष्मी बाई ने खुद ही अपने साम्राज्य और प्रजा की रक्षा की ठान ली।उस समय ब्रिटिश इंडिया कंपनी के वायसराय डलहौजी ने झांसी पर कब्जे का यह बेहतर समय समझा क्योंकि राज्य की रक्षा के लिए कोई नहीं था। उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई पर दबाव बनाना शुरू किया कि झांसी को अंग्रेजी हुकूमत के हवाले कर दें। रानी ने रिश्तेदार के एक बच्चे को अपना दत्तक पुत्र बनाया, जिनका नाम दामोदर थाअंग्रेजी हुकूमत ने दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और झांसी का किला उनके हवाले करने को कहा। अंग्रेजों ने साम्राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन लक्ष्मी बाई ने काशी बाई समेत 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार की। 23 मार्च 1858 को ब्रिटिश फौज ने झांसी पर आक्रमण कर दिया और 30 मार्च को बमबारी करके किले की दीवार में सेंध लगाने में सफल हुए। 17 जून 1858 को लक्ष्मीबाई आखिरी जंग के लिए निकली। पीठ पर दत्तक पुत्र को बांधकर हाथ में तलवार लिए झांसी की रानी ने अंग्रेजों से जंग की। लाॅर्ड कैनिंग की रिपोर्ट के मुताबिक, लक्ष्मीबाई को एक सैनिक ने पीछे से गोली मारी। फिर एक सैनिक ने एक तलवार से उनकी हत्या कर दी।नगर पंचायत स्थित शहीद मार्क में मंगलवार को लक्ष्मीबाई की जयंती संकल्प दिवस के रुप में मनाया गया। बाबा बर्फानी ग्रुप के लोगों ने झांसी की रानी को नमन कर उनके व्यक्तित्व को आत्मसात करने का संकल्प लिया। रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर चर्चा की गई। इस दौरान बाबा बर्फानी ग्रुप के अध्यक्ष ब्रह्मा मोदनवाल ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवंबर वर्ष 1828 में हुआ था बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका था। सब उन्हें प्यार से मनु कहकर बुलाते थे। सिर्फ चार साल की उम्र में ही उनकी माता का निधन हो गया था। इसलिए मनु के पालन - पोषण की जिम्मेदारी उनके पिता पर आ गई थी। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई थी। झांसी की रानी के नाम मात्र से ही अंग्रेज कांप उठते थे। रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व को आत्मसात कर उनके बताए मार्ग पर चलने की जरूरत है। इनके त्याग व बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
Nov 22 2024, 17:47