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रिश्वतखोरी के आरोप के बाद औंधे मुंह गिरे अडानी ग्रुप के शेयर, कुछ ही मिनटों में डूबे लाखों करोड़

#adanigroupstocksfallduetoallegedbriberycharged

अडानी ग्रुप के शेयरों ने 21 नवंबर को भारी गिरावट दर्ज की। ये गिरावट अमेरिकी संघीय अभियोजकों द्वारा गौतम अडानी पर 2,100 करोड़ रुपये (250 मिलियन डॉलर) के रिश्वत घोटाले में शामिल होने का आरोप के बाद देखी गई। न्यूयॉर्क फेडरल कोर्ट ने सोलर कॉन्ट्रैक्ट के लिए करोड़ों की र‍िश्‍वत देने के मामले और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को गुमराह करने के आरोप में गौतम अडानी को दोषी ठहराया है। इन आरोपों के बाद अडानी एंटरप्राइजेज ने बॉन्ड के जरिये 60 करोड़ डॉलर जुटाने की योजना को रद्द कर द‍िया है। इसके अलावा अडानी बॉन्‍ड का दाम भी करीब 20 प्रत‍िशत ग‍िर गया।

धोखाधड़ी-रिश्वत देने के आरोप के बाद गिरावट

न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई में गौतम अडाणी समेत 8 लोगों पर अरबों डॉलर की धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोप लगे हैं। न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में दर्ज किए गए आरोपपत्र में दावा किया गया है कि गौतम अडानी, सागर आर. अडानी और वीनित एस. जैन ने एक जटिल साजिश रची, जिसके तहत अमेरिकी निवेशकों को गुमराह करने और फेडरल कानूनों का उल्लंघन किया गया यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नी ऑफिस का कहना है कि अडाणी ने भारत में सोलर एनर्जी से जुड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 250 मिलियन डॉलर (करीब 2110 करोड़ रुपए) की रिश्वत देने का वादा किया था। इस खबर के बाद अडाणी ग्रुप के सभी 20 शेयरों में गिरावट देखने को मिल रही है।

अडानी ग्रुप कंपनियों को हुआ मोटा नुकसान

1. अडानी इंटरप्राइजेज के मार्केट कैप को कारोबारी सत्र के दौरान 48,821.84 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 3,25,502.04 करोड़ रुपए से कम होकर 2,76,680.20 करोड़ रुपए हो गया है।

2. अडानी पोर्ट एंड एसईजेड को कारोबारी सत्र के दौरान 27,844.19 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 2,78,452.71 करोड़ रुपए से कम होकर 2,50,608.52 करोड़ रुपए हो गया है।

3. अडानी पावर को कारोबारी सत्र के दौरान 36,006.08 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 2,02,367.67 करोड़ रुपए से कम होकर 1,66,361.59 करोड़ रुपए हो गया है।

4. अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस को कारोबारी सत्र के दौरान 20,950.36 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 1,04,763.85 करोड़ रुपए से कम होकर 83,813.49 करोड़ रुपए हो गया है।

5. अडानी ग्रीन एनर्जी को कारोबारी सत्र के दौरान 42,865.415 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 2,23,509.64 करोड़ रुपए से कम होकर 1,80,644.23 करोड़ रुपए हो गया है।

6. अडानी टोटल गैस को कारोबारी सत्र के दौरान 13,417.69 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 73,934.73 करोड़ रुपए से कम होकर 60,517.04 करोड़ रुपए हो गया है।

7. अडानी विल्मर को कारोबारी सत्र के दौरान 4,249.94 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 42,512.48 करोड़ रुपए से कम होकर 38,262.54 करोड़ रुपए हो गया है।

8. एसीसी लिमिटेड को कारोबारी सत्र के दौरान 5,969.76 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 41,032.45 करोड़ रुपए से कम होकर 35,062.69 करोड़ रुपए हो गया है।

9. अंबूजा सीमेंट को कारोबारी सत्र के दौरान 23,787.94 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 1,35,200.13 करोड़ रुपए से कम होकर 1,11,412.19 करोड़ रुपए हो गया है।

10. एनडीटीवी को कारोबारी सत्र के दौरान 156.99 करोड़ रुपए तक का नुकसान हुआ। जिसकी वजह से कंपनी का मार्केट कैप 1,091.82 करोड़ रुपए से कम होकर 934.83 करोड़ रुपए हो गया है।

सेंसेक्स और निफ्टी भी गिरे

गुरुवार सुबह शेयर मार्केट में भी गिरावट आई। सेंसेक्स करीब 700 अंक गिर गया। वहीं निफ्टी में भी 200 अंकों से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई। मार्केट खुलने के करीब आधे घंटे बाद सेंसेक्स 743.66 अंक गिरकर 76,834.72 पर कारोबार कर रहा था। वहीं निफ्टी में 243.30 अंकों की गिरावट आई और यह 23,275.20 रुपये पर था।

कहां थमेगा कनाडा? अब पीएम मोदी का नाम लेकर लेकर चली चाल, रिपोर्ट को भारत सरकार ने किया खारिज*
#nijjar_murder_case_india_strongly_rejects_new_canadian_media_report *
निज्जर हत्याकांड को लेकर भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी बढ़ती ही जा रही है। वैसे कनाडा शायद यही चाहता भी है। तभी तो जस्टिन ट्रूडो आए दिन कोई ना कोई ऐसा धमाका कर रहें हैं, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में दरार और गहती होती जाए। जस्टिन ट्रूडो और उनकी सरकार लगातार भारत को बदनाम करने में लगी है।इस बीच कनाडा ने भारत के खिलाफ एक और जहर उगला है। एक कनाडाई अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के शीर्ष नेतृत्व को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की साजिश के बारे में पता था। अखबार ने आरोप लगाया गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के प्लान के बारे में पहले से जानकारी थी। हालांकि, भारत सरकार ने कनाडाई अखबार द ग्लोब एंड मेल की उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि कनाडाई मीडिया का यह रिपोर्ट भारत को बदनाम करने वाला है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि हम इस तरह के बयान को खारिज करते हैं। यह एक तरह का हास्यास्पद बयान है। रणधीर जायसवाल ने कहा कि इस तरह का दुष्प्रचार अभियान पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों के लिए और नुकसान देह साबित होगा। बता दें कि द ग्लोब एंड मेल नाम के कनाडा के अखबार ने मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र था कि निज्जर की हत्या से जुड़े कथित प्लॉट के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजित डोवाल को जानकारी थी। और सेक्योरिटी एजेंसियों को लगता है कि इसकी जानकारी पीएम मोदी को भी हो सकती है। रिपोर्ट में ये दावे बिना नाम दिए कनाडा के नेशनल सिक्योरिटी ऑफिसर के हवाले से किए गए हैं। निज्जर की हत्या के मामले में यह पहली बार है जब सीधे पीएम मोदी पर आरोप लगाए गए हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इसे लेकर कानाडा सरकार के पास कोई ठोस सबूत नहीं है। इससे पहले कनाडा की संसदीय समिति के सामने वहां के उप विदेशमंत्री केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर भी ऐसी ही टिप्पणी कर चुके हैं। भारत ने इन पर भी कड़ी आपत्ति जताते हुए इन्हें बेतुका और निराधार बताया था। बीते दिनों विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को निराधार करार देते हुए कनाडा सरकार के समक्ष आधिकारिक तौर पर विरोध भी दर्ज करवाया था। 18 जून, 2023 की शाम को सरे शहर के एक गुरुद्वारे से निकलते समय निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत सरकार पर निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिसे भारत ने खारिज किया था। इसके बाद कनाडा की ओर से लगातार इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। जिसके बाद से दोनों देशों के आपसी रिश्तों में तल्खी काफी ज्यादा बढ़ गई है।
गौतम अडानी पर लगा रिश्वत देने और धोखाधड़ी करने का आरोप, क्या होगी गिरफ्तारी?*
#gautam_adani_accused_of_bribery_and_fraud_case
अडानी समूह की कंपनियों से जुड़ा एक नया विवाद सामने आया है। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी पर अमेरिका में रिश्वत और धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं। अमेरिकी अदालत ने इस मामले में अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया है। यह पूरा मामला अडाणी ग्रुप की कंपनी अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और एक अन्य फर्म से जुड़ा हुआ है।आरोपों के अनुसार, यह रिश्वत 2020 से 2024 के बीच बड़े सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए दी गई, जिससे अडानी समूह को 2 बिलियन डॉलर से अधिक का लाभ होने की संभावना थी। 24 अक्टूबर 2024 को यह मामला यूएस कोर्ट में दर्ज किया गया, जिसकी सुनवाई बुधवार को हुई। न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई में गौतम अडानी समेत 8 लोगों पर अरबों की धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोप लगे हैं। अडानी के अलावा शामिल 7 अन्य लोग सागर अडाणी, विनीत एस जैन, रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल हैं। सागर और विनीत अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के अधिकारी हैं। सागर, गौतम अडानी के भतीजे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गौतम अडानी और सागर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। अडानी पर आरोप है कि रिश्वत के इन पैसों को जुटाने के लिए अमेरिकी, विदेशी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोला। अमेरिका में मामला इसलिए दर्ज हुआ, क्योंकि प्रोजेक्ट में अमेरिका के इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था और अमेरिकी कानून के तहत उस पैसे को रिश्वत के रूप में देना अपराध है। अमेरिकी कानून विदेशी भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने की अनुमति देता है, यदि उनका संबंध अमेरिकी निवेशकों या बाजारों से हो। *कांग्रेस को मिला मौका* वहीं, कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पूरे मामले को लेकर पीएम मोदी को घेरा। कांग्रेस ने ट्वीट में लिखा, आरोप है कि अमेरिका में कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए अडानी ने 2,200 करोड़ रुपए की घूस दी। कांग्रेस ने कहा कि जब इस मामले की जांच होने लगी तो जांच रोकने की साजिश भी रची गई। पार्टी ने कहा कि अब अमेरिका में अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ है। कांग्रेस ने एक्स पर ट्वीट में लिखा, अजीब बात है... कांग्रेस लगातार अडानी और इससे जुड़े घपलों की जांच की बात कह रही है, लेकिन नरेंद्र मोदी पूरी ताकत से अडानी को बचाने में लगे हैं। वजह साफ है- अडानी की जांच होगी तो हर कड़ी नरेंद्र मोदी से जुड़ेगी। अडानी के खिलाफ वारंट का जिक्र करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी ट्वीट किया है। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की जांच की बात कही है। *क्या है पूरा मामला?* अमेरिकी बैंकों और निवेशकों से कथित तौर पर इस भ्रष्टाचार को छुपाया गया था, जो परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहे थे। अमेरिकी कानून विदेशी भ्रष्टाचार के मामलों को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है, यदि वे अमेरिकी निवेशकों या बाजारों से संबंधित हों। न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी ब्रायन पीस ने इस मामले को विस्तृत रिश्वत योजना बताया। अडानी, उनके भतीजे और अडानी ग्रीन एनर्जी के पूर्व सीईओ विनीत जैन पर प्रतिभूति धोखाधड़ी, वायर फ्रॉड और साजिश का आरोप लगाया गया है। इस मामले में कनाडाई पेंशन फंड सीडीपीक्यू के तीन पूर्व कर्मचारियों पर भी रिश्वत जांच में बाधा डालने का आरोप लगाया गया। सीडीपीक्यू अडानी समूह की कंपनियों में शेयरधारक है। यह मामला अडानी समूह के लिए एक और बड़ी चुनौती बन सकता है। इससे पहले जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने समूह पर स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके कारण अडानी समूह के बाजार मूल्य में 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था। हालांकि, समूह ने सभी आरोपों का खंडन किया है और अधिकांश नुकसान की भरपाई की है।
पुतिन की परमाणु हमले की चेतावनी बेअसरःयूक्रेन ने पहले अमेरिकी और अब ब्रिटिश मिसाइल से बोला हमला

#ukrainefiresukstormshadowmissilesinto_russia

रूस के राष्ट्रपति पुतिन की परमाणु चेतावनी भी बेअसर नज़र आ रही है। यूक्रेन ने अमेरिका से मिली लंबी दूरी की मिसाइलों से पहली बार रूस के अंदर हमला किया। इस हमले को लेकर रूस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी। हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर इसका असर होता तो नहीं दिख रहा है। पहले यूक्रेन ने मंगलवार को जहां रूस पर अमेरिकी ATCAMS मिसाइल से हमला किया था तो वहीं बुधवार को कीव ने रूस के खिलाफ ब्रिटिश निर्मित स्टॉर्म शैडो मिसाइल दागी है।यूक्रेन द्वारा यूके की लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल ऐसे समय हुआ है, जब इसे लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही भड़के हुए हैं और उन्होंने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी हुई है।

अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की और फायर हो चुके हैं। यूक्रेन अब रूस पर ताबड़तोड़ अटैक कर रहा है। अमेरिकी लॉन्ग रेंज मिसाइलों से हमला करने के बाद अब यूक्रेन ने ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइल से रूस पर हमला किया है।यूक्रेन ने लंबी दूरी वाली अमेरिकी मिसाइलें दागने के एक दिन बाद रूसी इलाकों में सैन्य ठिकानों पर ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दागीं।

रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया शैडो मिसाइल का मलबा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस द्वारा यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर उत्तर कोरियाई सैनिकों को तैनात करने के जवाब में यूके ने भी अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की मंजूरी यूक्रेन को दे दी थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्टॉर्म शैडो मिसाइल का मलबा रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया है, जो यूक्रेन के उत्तर में स्थित है। वहीं यिस्क और दक्षिणी क्रसनोदर इलाके में एक बंदरगाह पर भी दो स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया गया है।

ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल को लेकर गोल-मोल जवाब

हालांकि, यूक्रेन के रक्षा मंत्री रुस्तम उमेरोव ने ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया। जब उमेरोव से पूछा गया कि क्या यूक्रेन ने रूस के अंदर किसी लक्ष्य को निशाना बनाने के लिए ‘स्टॉर्म शैडो’ मिसाइलों का इस्तेमाल किया है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘हम अपने देश की रक्षा के लिए सभी साधनों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिए हम विस्तार में नहीं जाएंगे। लेकिन हम सिर्फ यही बता रहे हैं कि हम जवाब देने में सक्षम हैं।’ उमेरोव ने आगे कहा, ‘हम अपना बचाव करेंगे और हमारे पास मौजूद तमाम साधनों से मुंहतोड़ जवाब देंगे।

रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका

बता दें कि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सप्ताह अपनी नीति में बदलाव करते हुए यूक्रेन को रूस में अंदर तक हमला करने के लिए अमेरिकी निर्मित हथियारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। बाइडेन प्रशासन के इस फैसले के बाद रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अगर किसी परमाणु संपन्न देश के सहयोग से कोई देश रूस पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। यही नहीं नए परमाणु सिद्धांतों के अनुसार, रूस पर अगर किसी सैन्य गठबंधन का देश हमला करता है तो रूस उसे पूरे ब्लॉक का हमला मानेगा। पुतिन के इस फैसले के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ गई है।

पीएम मोदी को मिला डोमिनिका और गुयाना का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, जानें अब तक दिए जा चुके कितने ग्लोबल अवॉर्ड

#pm_modi_honored_by_caribbean_country_dominica

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले नेताओं में शामिल हैं। यही वजह है दुनियाभर के कई देशों ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च अवार्ड से सम्मानित भी किया है। इसी क्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दो और प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुयाना में कैरिबियाई देश डोमिनिका ने 'द डोमिनिका अवॉर्ड ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया है। डोमिनिका की राष्ट्रपति सिल्वेनी बर्टन ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। कोविड-19 महामारी के दौरान डोमिनिका को वैक्सीन पहुंचाने के लिए पीएम मोदी को यह अवॉर्ड दिया गया है।

गुयाना में आयोजित भारत-कैरीकोम सम्मेलन के दौरान डोमिनिका की राष्ट्रपति सिलवेनी बर्टन ने प्रधानमंत्री मोदी को इस सम्मान से सम्मानित किया। फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने डोमिनिका को एक बहुमूल्य उपहार देते हुए कोरोना वैक्सीन एस्ट्राजेनेका की 70 हजार डोज की आपूर्ति की थी। प्रधानमंत्री मोदी की इसी उदारता को चिह्नित करते हुए डोमिनिका की सरकार ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया था।

गुयाना ने भी मोदी को अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान 'ऑर्डर ऑफ एक्सिलेंस' से सम्मानित किया। उन्होंने अवॉर्ड सभी भारतवासियों को समर्पित किया। इसके अलावा दो दिवसीय गुयाना यात्रा में पीएम मोदी ने कैरिबियाई देशों के प्रतिनिधियों के साथ दूसरे इंडिया-कैरिकॉम समिट में भी हिस्सा लिया।

गुयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली ने जॉर्जटाउन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस' से सम्मानित किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मुझे गुयाना के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए मैं अपने मित्र राष्ट्रपति इरफान अली का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। यह सम्मान केवल मेरा नहीं, बल्कि भारत के 140 करोड़ लोगों का सम्मान है। यह हमारे संबंधों के प्रति आपकी गहरी प्रतिबद्धता का सजीव प्रमाण है। जो हमें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

प्रधानमंत्री मोदी को कई देशों ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है। बीते जुलाई माह में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल', से सम्मानित किया गया था। उससे पहले पीएम मोदी को भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से भी सम्मानित किया गया। भूटान ने पहली बार किसी गैर भूटानी व्यक्ति को यह सम्मान दिया है। प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त अरब अमीरात, अफगानिस्तान, बहरीन और सऊदी अरब, फ्रांस, मिस्त्र, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, पलाऊ, अमेरिका, मालदीव, फलस्तीन के भी शीर्ष नागरिक पुरस्कार मिल चुके हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?*
#india_china_relations_and_donald_trump_factor
अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं। *भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट* भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है। *चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?* चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही। *ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन* अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे। *भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह* शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है। *यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई* इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।
भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

#indiachinarelationsanddonaldtrumpfactor

अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
#us_shut_down_kyiv_embassy_over_potential_russian_air_attack_threat *
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
#us_shut_down_kyiv_embassy_over_potential_russian_air_attack_threat *
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
फिर से जल्द शुरू होगी भारत-चीन सीधी उड़ान और मानसरोवर यात्रा?चीनी विदेश मंत्री से जयशंकर ने की मुलाकात

#india_china_direct_flight_mansarovar_yatra_to_resume_soon

भारत-चीन संबंध पटरी पर आते दिख रहे हैं। अब जल्द ही दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान और कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू हो सकती है। दरअसल, दोनों देश सीधी उड़ान और कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू करने पर भी सहमति के करीब पहुंच गए हैं। ब्राजील में संपन्न जी20 समिट में दुनिया के तमाम राष्‍ट्रध्‍यक्षों ने एक-दूसरे से मुलाकात की। इस दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने सीमा तनाव कम करने में हालिया प्रगति पर चर्चा की। साथ ही भारत और चीन के बीच डायरेक्‍ट फ्लाइट शुरू करने जैसे अहम मुद्दे पर भी बात की।

विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, विदेश मंत्रियों की चर्चा मतभेद दूर करने, संदेह मिटाने वाले और एक-दूसरे के हितों का सम्मान करते हुए द्विपक्षीय रिश्ते को आगे बढ़ाने वाले कदम उठाने पर केंद्रित थी। इस दौरान कैलास मानसरोवर यात्रा और सीधी उड़ानें शुरू करने, सीमा पार नदियों पर डेटा साझा करने और मीडिया आदान-प्रदान आदि पर चर्चा हुई। बैठक के दौरान पिछले माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक में बनी सहमतियों को आगे बढ़ाने पर चर्चा हुई।

विदेश मंत्रालय के अनुसार, बैठक में कई प्रमुख कदमों पर चर्चा की गई, जिनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना, सीमा पार की नदियों पर आंकड़े साझा करना, भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें और मीडियाकर्मियों की परस्पर आवाजाही शामिल हैं। यह बैठक खास तौर से अहम थी, क्योंकि पिछले कुछ सालों से कोविड-19 महामारी की वजह दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें और कैलाश मानसरोवर यात्रा निलंबित कर दी गई थीं।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों मंत्रियों ने माना कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी से शांति और सौहार्द बनाए रखने में मदद मिली है। इस चर्चा का मुख्य विषय भारत-चीन संबंधों में अगले कदमों पर था। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि विशेष प्रतिनिधियों और विदेश सचिव-उपमंत्री स्तर की बैठक जल्द ही होगी।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली उच्च स्तरीय बातचीत थी। डेमचोक और देपसांग में पीछे हटने के लिए दोनों पक्षों के बीच 21 अक्टूबर को सहमति बनने के कुछ दिनों बाद, भारतीय और चीनी सेनाओं ने यह प्रक्रिया पूरी कर ली, जिससे दोनों टकराव बिंदुओं पर चार साल से अधिक समय से चल रहा गतिरोध लगभग समाप्त हो गया। दोनों पक्षों ने लगभग साढ़े चार वर्षों के अंतराल के बाद दोनों क्षेत्रों में गश्त गतिविधियां भी पुनः शुरू कीं।