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गौतम अडानी पर लगा रिश्वत देने और धोखाधड़ी करने का आरोप, क्या होगी गिरफ्तारी?*
#gautam_adani_accused_of_bribery_and_fraud_case
अडानी समूह की कंपनियों से जुड़ा एक नया विवाद सामने आया है। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी पर अमेरिका में रिश्वत और धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं। अमेरिकी अदालत ने इस मामले में अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया है। यह पूरा मामला अडाणी ग्रुप की कंपनी अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और एक अन्य फर्म से जुड़ा हुआ है।आरोपों के अनुसार, यह रिश्वत 2020 से 2024 के बीच बड़े सौर ऊर्जा अनुबंध हासिल करने के लिए दी गई, जिससे अडानी समूह को 2 बिलियन डॉलर से अधिक का लाभ होने की संभावना थी। 24 अक्टूबर 2024 को यह मामला यूएस कोर्ट में दर्ज किया गया, जिसकी सुनवाई बुधवार को हुई। न्यूयॉर्क की फेडरल कोर्ट में हुई सुनवाई में गौतम अडानी समेत 8 लोगों पर अरबों की धोखाधड़ी और रिश्वत के आरोप लगे हैं। अडानी के अलावा शामिल 7 अन्य लोग सागर अडाणी, विनीत एस जैन, रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल हैं। सागर और विनीत अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के अधिकारी हैं। सागर, गौतम अडानी के भतीजे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गौतम अडानी और सागर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। अडानी पर आरोप है कि रिश्वत के इन पैसों को जुटाने के लिए अमेरिकी, विदेशी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोला। अमेरिका में मामला इसलिए दर्ज हुआ, क्योंकि प्रोजेक्ट में अमेरिका के इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था और अमेरिकी कानून के तहत उस पैसे को रिश्वत के रूप में देना अपराध है। अमेरिकी कानून विदेशी भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने की अनुमति देता है, यदि उनका संबंध अमेरिकी निवेशकों या बाजारों से हो। *कांग्रेस को मिला मौका* वहीं, कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पूरे मामले को लेकर पीएम मोदी को घेरा। कांग्रेस ने ट्वीट में लिखा, आरोप है कि अमेरिका में कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए अडानी ने 2,200 करोड़ रुपए की घूस दी। कांग्रेस ने कहा कि जब इस मामले की जांच होने लगी तो जांच रोकने की साजिश भी रची गई। पार्टी ने कहा कि अब अमेरिका में अडानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ है। कांग्रेस ने एक्स पर ट्वीट में लिखा, अजीब बात है... कांग्रेस लगातार अडानी और इससे जुड़े घपलों की जांच की बात कह रही है, लेकिन नरेंद्र मोदी पूरी ताकत से अडानी को बचाने में लगे हैं। वजह साफ है- अडानी की जांच होगी तो हर कड़ी नरेंद्र मोदी से जुड़ेगी। अडानी के खिलाफ वारंट का जिक्र करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी ट्वीट किया है। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की जांच की बात कही है। *क्या है पूरा मामला?* अमेरिकी बैंकों और निवेशकों से कथित तौर पर इस भ्रष्टाचार को छुपाया गया था, जो परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहे थे। अमेरिकी कानून विदेशी भ्रष्टाचार के मामलों को आगे बढ़ाने की अनुमति देता है, यदि वे अमेरिकी निवेशकों या बाजारों से संबंधित हों। न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी ब्रायन पीस ने इस मामले को विस्तृत रिश्वत योजना बताया। अडानी, उनके भतीजे और अडानी ग्रीन एनर्जी के पूर्व सीईओ विनीत जैन पर प्रतिभूति धोखाधड़ी, वायर फ्रॉड और साजिश का आरोप लगाया गया है। इस मामले में कनाडाई पेंशन फंड सीडीपीक्यू के तीन पूर्व कर्मचारियों पर भी रिश्वत जांच में बाधा डालने का आरोप लगाया गया। सीडीपीक्यू अडानी समूह की कंपनियों में शेयरधारक है। यह मामला अडानी समूह के लिए एक और बड़ी चुनौती बन सकता है। इससे पहले जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने समूह पर स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे, जिसके कारण अडानी समूह के बाजार मूल्य में 150 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था। हालांकि, समूह ने सभी आरोपों का खंडन किया है और अधिकांश नुकसान की भरपाई की है।
पुतिन की परमाणु हमले की चेतावनी बेअसरःयूक्रेन ने पहले अमेरिकी और अब ब्रिटिश मिसाइल से बोला हमला

#ukrainefiresukstormshadowmissilesinto_russia

रूस के राष्ट्रपति पुतिन की परमाणु चेतावनी भी बेअसर नज़र आ रही है। यूक्रेन ने अमेरिका से मिली लंबी दूरी की मिसाइलों से पहली बार रूस के अंदर हमला किया। इस हमले को लेकर रूस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी। हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर इसका असर होता तो नहीं दिख रहा है। पहले यूक्रेन ने मंगलवार को जहां रूस पर अमेरिकी ATCAMS मिसाइल से हमला किया था तो वहीं बुधवार को कीव ने रूस के खिलाफ ब्रिटिश निर्मित स्टॉर्म शैडो मिसाइल दागी है।यूक्रेन द्वारा यूके की लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल ऐसे समय हुआ है, जब इसे लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही भड़के हुए हैं और उन्होंने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी हुई है।

अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की और फायर हो चुके हैं। यूक्रेन अब रूस पर ताबड़तोड़ अटैक कर रहा है। अमेरिकी लॉन्ग रेंज मिसाइलों से हमला करने के बाद अब यूक्रेन ने ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइल से रूस पर हमला किया है।यूक्रेन ने लंबी दूरी वाली अमेरिकी मिसाइलें दागने के एक दिन बाद रूसी इलाकों में सैन्य ठिकानों पर ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दागीं।

रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया शैडो मिसाइल का मलबा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस द्वारा यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर उत्तर कोरियाई सैनिकों को तैनात करने के जवाब में यूके ने भी अपनी लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल करने की मंजूरी यूक्रेन को दे दी थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्टॉर्म शैडो मिसाइल का मलबा रूस के कुर्स्क क्षेत्र में पाया गया है, जो यूक्रेन के उत्तर में स्थित है। वहीं यिस्क और दक्षिणी क्रसनोदर इलाके में एक बंदरगाह पर भी दो स्टॉर्म शैडो मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया गया है।

ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल को लेकर गोल-मोल जवाब

हालांकि, यूक्रेन के रक्षा मंत्री रुस्तम उमेरोव ने ब्रिटिश मिसाइलों के इस्तेमाल की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया। जब उमेरोव से पूछा गया कि क्या यूक्रेन ने रूस के अंदर किसी लक्ष्य को निशाना बनाने के लिए ‘स्टॉर्म शैडो’ मिसाइलों का इस्तेमाल किया है, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘हम अपने देश की रक्षा के लिए सभी साधनों का उपयोग कर रहे हैं। इसलिए हम विस्तार में नहीं जाएंगे। लेकिन हम सिर्फ यही बता रहे हैं कि हम जवाब देने में सक्षम हैं।’ उमेरोव ने आगे कहा, ‘हम अपना बचाव करेंगे और हमारे पास मौजूद तमाम साधनों से मुंहतोड़ जवाब देंगे।

रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका

बता दें कि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सप्ताह अपनी नीति में बदलाव करते हुए यूक्रेन को रूस में अंदर तक हमला करने के लिए अमेरिकी निर्मित हथियारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। बाइडेन प्रशासन के इस फैसले के बाद रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अगर किसी परमाणु संपन्न देश के सहयोग से कोई देश रूस पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। यही नहीं नए परमाणु सिद्धांतों के अनुसार, रूस पर अगर किसी सैन्य गठबंधन का देश हमला करता है तो रूस उसे पूरे ब्लॉक का हमला मानेगा। पुतिन के इस फैसले के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ गई है।

पीएम मोदी को मिला डोमिनिका और गुयाना का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, जानें अब तक दिए जा चुके कितने ग्लोबल अवॉर्ड

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले नेताओं में शामिल हैं। यही वजह है दुनियाभर के कई देशों ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च अवार्ड से सम्मानित भी किया है। इसी क्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दो और प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुयाना में कैरिबियाई देश डोमिनिका ने 'द डोमिनिका अवॉर्ड ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया है। डोमिनिका की राष्ट्रपति सिल्वेनी बर्टन ने पीएम मोदी को अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। कोविड-19 महामारी के दौरान डोमिनिका को वैक्सीन पहुंचाने के लिए पीएम मोदी को यह अवॉर्ड दिया गया है।

गुयाना में आयोजित भारत-कैरीकोम सम्मेलन के दौरान डोमिनिका की राष्ट्रपति सिलवेनी बर्टन ने प्रधानमंत्री मोदी को इस सम्मान से सम्मानित किया। फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने डोमिनिका को एक बहुमूल्य उपहार देते हुए कोरोना वैक्सीन एस्ट्राजेनेका की 70 हजार डोज की आपूर्ति की थी। प्रधानमंत्री मोदी की इसी उदारता को चिह्नित करते हुए डोमिनिका की सरकार ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया था।

गुयाना ने भी मोदी को अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान 'ऑर्डर ऑफ एक्सिलेंस' से सम्मानित किया। उन्होंने अवॉर्ड सभी भारतवासियों को समर्पित किया। इसके अलावा दो दिवसीय गुयाना यात्रा में पीएम मोदी ने कैरिबियाई देशों के प्रतिनिधियों के साथ दूसरे इंडिया-कैरिकॉम समिट में भी हिस्सा लिया।

गुयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली ने जॉर्जटाउन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस' से सम्मानित किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मुझे गुयाना के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए मैं अपने मित्र राष्ट्रपति इरफान अली का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। यह सम्मान केवल मेरा नहीं, बल्कि भारत के 140 करोड़ लोगों का सम्मान है। यह हमारे संबंधों के प्रति आपकी गहरी प्रतिबद्धता का सजीव प्रमाण है। जो हमें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

प्रधानमंत्री मोदी को कई देशों ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया है। बीते जुलाई माह में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल', से सम्मानित किया गया था। उससे पहले पीएम मोदी को भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से भी सम्मानित किया गया। भूटान ने पहली बार किसी गैर भूटानी व्यक्ति को यह सम्मान दिया है। प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त अरब अमीरात, अफगानिस्तान, बहरीन और सऊदी अरब, फ्रांस, मिस्त्र, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, पलाऊ, अमेरिका, मालदीव, फलस्तीन के भी शीर्ष नागरिक पुरस्कार मिल चुके हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?*
#india_china_relations_and_donald_trump_factor
अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं। *भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट* भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है। *चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?* चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही। *ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन* अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे। *भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह* शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है। *यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई* इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।
भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
#us_shut_down_kyiv_embassy_over_potential_russian_air_attack_threat *
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
अमेरिका ने यूक्रेन में बंद किया अपना दूतावास, क्या रूसी हमले की चेतावनी डर गया यूएस?*
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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए 1000 दिन भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन संघर्ष विराम की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध और खतरनाक होता जा रहा है। रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास को बंद करने का आदेश दिया है। साथ ही दूतावास के अधिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पनाह लेने की सलाह दी है। अमेरिका ने ये कदम तब उठाया है जब यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को उस मिसाइल से हमला कर दिया, जिसे लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु जंग की चेतावनी दे चुके थे। वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने देश के परमाणु नीति के एक अपडेट डॉक्यूमेंट को मंजूरी दे दी है। यह डॉक्यूमेंट उन परिस्थितियों को रेखांकित करता है जिनके तहत मॉस्को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट कांसुलर अफेयर्स ने एक बयान में कहा कि कीव में अमेरिकी दूतावास को बुधवार (20 नवंबर) को ‘संभावित हवाई हमले’ की चिंताओं के चलते बंद कर दिया गया है। कीव दूतावास की वेबसाइट पर दिए गए बयान में कहा गया है, “ज्यादा सावधानी के चलते, दूतावास को बंद किया जा रहा है और दूतावास के स्टाफ को सुरक्षित स्थानों पर रहने का निर्देश दिए गए हैं। साथ ही बयान में अमेरिकी नागरिकों के से कहा गया है कि वह हवाई अलर्ट का ऐलान होने की स्थिति में तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए तैयार रहें। दरअसल, एक दिन पहले, यूक्रेन ने अमेरिकी ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमला किया। इस लंबी दूरी की मिसाइल का इस्तेमाल बाइडेन के अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में यूक्रेन को घातक अमेरिकी हथियारों के इस्तेमाल की परमिशन देने के बाद किया गया है। अमेरिका द्वारा यूक्रेन को रूस के भीतर लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले की मंजूरी देने के बाद हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं। रूस ने भी इसे लेकर धमकी दी है। जिसके तहत रूस यूक्रेन युद्ध में लंबी दूरी की मिसाइलों से हमले को तीसरे देश की संलिप्तता मानी जाएगी और इसके जवाब में रूस परमाणु हमला भी कर सकता है। पुतिन की नई परमाणु नीति के मुताबिक रूस पर कोई भी बड़ा हवाई हमला परमाणु प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है। पुतिन ने परमाणु नीति में बदलाव रूस-यूक्रेन युद्ध के 1000वें दिन पर किया है। साथ ही बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका की सप्लाई की हुई ATACMS मिसाइलों के जरिए रूस में हमला करने की इजाजत दी है। मंगलवार को रूस ने यह भी दावा किया कि यूक्रेन ने छह ATACMS मिसाइलों से उसके ब्रांस्क क्षेत्र में हमला किया है। इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से बताया कि यूक्रेन ने पश्चिमी ब्रायंस्क क्षेत्र में एक मिलिट्री फैसिलिटी पर हमला करने के लिए ATACMS मिसाइलों का उपयोग किया। यह हमला राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा कीव को सीमित रूप से इन हथियारों का उपयोग करने की मंजूरी देने के बाद पहला हमला है। यूक्रेन के जनरल स्टाफ ने भी रूस के कराचेव शहर में एक गोदाम पर हमले की पुष्टि की, जिसमें वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया। यह स्थान यूक्रेन की सीमा से लगभग 115 किलोमीटर (71 मील) दूर है। हालांकि, जनरल स्टाफ और यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि किस प्रकार की मिसाइलों का उपयोग किया गया, यह जानकारी गोपनीय बताई गई है। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनकी सेना ने पांच मिसाइलों को मार गिराया और कोई हताहत नहीं हुआ। ATACMS 300 किमी (186 मील) तक जा सकती हैं। इसका मतलब है कि वह रूस में अपने किसी भी टारगेट पर हमला कर सकता है। यूक्रेन का यह हमला क्षेत्र में भारी तनाव पैदा कर सकता है, वो भी तब जबकि पुतिन पहले ही इस मिसाइल के इस्तेमाल को लेकर धमकी दे चुके थे। 12 सितंबर को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस के खिलाफ पश्चिमी लंबी दूरी के हथियारों का इस्तेमाल करने के संभावित फैसले का मतलब यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो देशों की सीधी भागीदारी से कम कुछ नहीं होगा। रूसी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि इससे इस संघर्ष की प्रकृति में काफी बदलाव आएगा और रूस को बढ़ते खतरों के जवाब में उचित कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
फिर से जल्द शुरू होगी भारत-चीन सीधी उड़ान और मानसरोवर यात्रा?चीनी विदेश मंत्री से जयशंकर ने की मुलाकात

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भारत-चीन संबंध पटरी पर आते दिख रहे हैं। अब जल्द ही दोनों देशों के बीच सीधी उड़ान और कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू हो सकती है। दरअसल, दोनों देश सीधी उड़ान और कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू करने पर भी सहमति के करीब पहुंच गए हैं। ब्राजील में संपन्न जी20 समिट में दुनिया के तमाम राष्‍ट्रध्‍यक्षों ने एक-दूसरे से मुलाकात की। इस दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने सीमा तनाव कम करने में हालिया प्रगति पर चर्चा की। साथ ही भारत और चीन के बीच डायरेक्‍ट फ्लाइट शुरू करने जैसे अहम मुद्दे पर भी बात की।

विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, विदेश मंत्रियों की चर्चा मतभेद दूर करने, संदेह मिटाने वाले और एक-दूसरे के हितों का सम्मान करते हुए द्विपक्षीय रिश्ते को आगे बढ़ाने वाले कदम उठाने पर केंद्रित थी। इस दौरान कैलास मानसरोवर यात्रा और सीधी उड़ानें शुरू करने, सीमा पार नदियों पर डेटा साझा करने और मीडिया आदान-प्रदान आदि पर चर्चा हुई। बैठक के दौरान पिछले माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक में बनी सहमतियों को आगे बढ़ाने पर चर्चा हुई।

विदेश मंत्रालय के अनुसार, बैठक में कई प्रमुख कदमों पर चर्चा की गई, जिनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना, सीमा पार की नदियों पर आंकड़े साझा करना, भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें और मीडियाकर्मियों की परस्पर आवाजाही शामिल हैं। यह बैठक खास तौर से अहम थी, क्योंकि पिछले कुछ सालों से कोविड-19 महामारी की वजह दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें और कैलाश मानसरोवर यात्रा निलंबित कर दी गई थीं।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों मंत्रियों ने माना कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी से शांति और सौहार्द बनाए रखने में मदद मिली है। इस चर्चा का मुख्य विषय भारत-चीन संबंधों में अगले कदमों पर था। दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि विशेष प्रतिनिधियों और विदेश सचिव-उपमंत्री स्तर की बैठक जल्द ही होगी।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली उच्च स्तरीय बातचीत थी। डेमचोक और देपसांग में पीछे हटने के लिए दोनों पक्षों के बीच 21 अक्टूबर को सहमति बनने के कुछ दिनों बाद, भारतीय और चीनी सेनाओं ने यह प्रक्रिया पूरी कर ली, जिससे दोनों टकराव बिंदुओं पर चार साल से अधिक समय से चल रहा गतिरोध लगभग समाप्त हो गया। दोनों पक्षों ने लगभग साढ़े चार वर्षों के अंतराल के बाद दोनों क्षेत्रों में गश्त गतिविधियां भी पुनः शुरू कीं।

शेख हसीना के जाने के बाद समुद्री रास्ते करीब आ रहे पाकिस्तान-बांग्लादेश, भारत को कैसे हो सकता है ख़तरा?

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हाल में पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची से कंटेनरों से लदे एक जहाज ने करीब 53 साल बाद बांग्लादेश के सबसे बड़े चटगांव बंदरगाह पर लंगर डाला। 53 साल बहुत लंबा समय है, जब दोनों देशों के बीच पहला सीधा समुद्री संपर्क हुआ है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधा समुद्री संपर्क एक ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद खराब हुए रिश्तों को फिर से बहाल करने की कोशिश है। इसने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की उम्मीदें बढ़ी हैं। हालांकि, इसने भारत की चिंता ज़रूर बढ़ा दी है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। बांग्लादेश की भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से निकटता के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल भी है।

क्या आया जहाज में

एक 182 मीटर (597 फुट) लंबा कंटेनर जहाज युआन जियांग फा झान पाकिस्तान के कराची से बांग्लादेश के चटगांव के लिए रवाना हुआ था। एएफपी ने चटगांव के शीर्ष अधिकारी उमर फारूक के हवाले से बताया कि जहाज ने बंदरगाह छोड़ने से पहले 11 नवंबर को बांग्लादेश में अपना माल उतार दिया था। चटगांव बंदरगाह अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि जहाज पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात से सामान लेकर आया है, जिसमें बांग्लादेश के प्रमुख कपड़ा उद्योग के लिए कच्चा माल और बुनियादी खाद्य पदार्थ शामिल हैं।

पाकिस्तान ने बताया बड़ा कदम

पाकिस्तानी माल को बांग्लादेश ले जाने से पहले आमतौर पर श्रीलंका, मलेशिया या सिंगापुर में फीडर जहाजों पर भेजा जाता था। हालांकि, सितंबर में बांग्लादेश ने मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली नई अंतरिम सरकार के तहत, पाकिस्तानी सामानों पर आयात प्रतिबंधों में ढील दे दी थी। सीधे समुद्री संपर्क को खोलने को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। ढाका में पाकिस्तान के दूत सैयद अहमद मारूफ की एक सोशल मीडिया पोस्ट की बांग्लादेश में सोशल मीडिया की खूब चर्चा हुई है, जिसमें सीधे शिपिंग मार्ग को दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए "एक बड़ा कदम" बताया गया है।

दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम हुआ है।सीधे समुद्री लिंक स्थापित कर यूनुस सरकार पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहती है। सवाल उठता है आखिर क्यों?

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती नज़दीकियों को समझने के लिए हमें अतीत में झांकना होगा।1971 के युद्ध और बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर उभरने के बाद पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में हमेशा खटास रही है। नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान सेना के अत्याचार की यादें बांग्लादेश के लोगों के मन में गहराई तक बसी हैं। पाकिस्तानी सेना के हाथों करीब 30 लाख लोग मारे गए और हज़ारों को अत्याचार और बलात्कार झेलना पड़ा। इससे बचने के लिए लाखों लोग देश छोड़कर पलायन कर गए थे।

बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा

1971 की जंग में भारत ने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों की मदद की थी। तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाने वाला बांग्लादेश पश्चिमी पाकिस्तान के साथ नौ महीने के युद्ध के बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। बांग्लादेश का जनक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेहरू-गांधी परिवार से निजी संबंध थे। युद्ध के बाद बने बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए प्रेम कभी नहीं रहा। रहमान की अवामी लीग का केंद्रीय राजनीतिक एजेंडा ही क्रूर युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए न्याय की मांग करना था। 1996-2001 और फिर 2009-2024 तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना, उन्हीं रहमान की बेटी हैं। वह भारत की हिमायती रही हैं और पाकिस्तान को लेकर सतर्क।

हसीना की भारत से नज़दीकियां बहुतों को खली

सत्ता में रहने के दौरान शेख़ हसीना ने 1971 के युद्ध अपराधियों को चुन-चुन कर सज़ा दी। वर्ष 2010 में उन्होंने ऐसे लोगों को सज़ा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगा दी। हसीना के सत्ता में रहते हुए बांग्लादेश और भारत के संबंध काफी मजबूत बने। ये नई दिल्ली से दोस्ताना रिश्‍ते ही थे। लेकिन बांग्लादेश में एक तबका ऐसा भी था जिसे हसीना की भारत से बढ़ती नज़दीकियां पसंद नहीं थीं। यही आगे चलकर वहां भारत-विरोधी अभियान की वजह बनी।

बांग्लादेश में हुए हालिया प्रदर्शनों से भी संकेत मिला कि शायद बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी अवामी लीग के विचारों से सहमत नहीं है। हसीना की भारत से नजदीकियां भी बहुतों को अखर रही थीं। बांग्लादेश में बढ़ती 'भारत विरोधी' भावना तब खुलकर सामने आई जब अगस्त में भीड़ ने ढाका के इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़ की और आग लगा दी।

पाकिस्तान से सहयोग मजबूत करना चाहते हैं यूनुस

हसीना के जाने के बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार गठित की गई। जमात-ए-इस्लामी, जिसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध किया था, की ढाका में हसीना के बाद की सरकार में मजबूत उपस्थिति है। यूनुस सरकार ने पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करने चाहे। इसी साल सितंबर में, संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और यूनुस ने द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा की थी।

भारत को कैसे खतरा?

भारत पहले से ही पाकिस्तान से चलने वाली आतंकी ट्रेनिंग कैंपों और नारकोटिक्स ट्रेड से परेशान है। ऐसे में इस्लामाबाद और ढाका के बीच बढ़ते संबंध भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय बन सकते हैं। भारत की चिंता की वजह यह है कि दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम होने से खासकर पूर्वोत्तर में सुरक्षा और उग्रवाद को नया ईंधन मिलने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी इलाका पूर्वोत्तर से सटा है। नई दिल्ली के लिए एक और सुरक्षा चिंता क्षेत्र को अस्थिर करने वाली गतिविधियों में पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई की भागीदारी है। आईएसआई इन नजदीकियों का फायदा उठाकर क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश कर सकती है। पहले भी बांग्लादेश के जरिए भारत में खलबली मचाने की कोशिश होती रही है। वर्षों से, भारत ने चटगांव बंदरगाह पर गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए शेख हसीना के साथ अपने संबंधों का उपयोग किया है।

मणिपुर हिंसा के बीच संकट में बीरेन सरकार, सीएम की बैठक से गायब रहे 37 में से 19 विधायक*
#manipur_violence_crises_on_nda_govt_bjp_mla_boycott_cm_biren_singh_meeting *
मणिपुर एक साल से ज्यादा समय से सांप्रदायिक हिंसा की जद में है। लंबे समय से हिंसा की घटनाएं वहां निरंतर जारी है। कुछ समय की शांति के बाद हिंसक मामलों में फिर तेजी देखी जा रही है। हिंसा की ताजा घटनाएं उस समय शुरू हुई, जब मैतेय समुदाय से आने वाले 6 लोगों की लाश बरामद की गई। इसके बाद से राज्य का सियासी पारा फिर से गरमा चुका है। इस सियासी घमासान के बीच बीजेपी बुरी तरह से फंसती हुई नजर आ रही है। मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह की ओर से सीएम की अगुवाई वाली एक बैठक रखी गई थी। इस बैठक में 37 में से 19 बीजेपी विधायक गैरहाजिर रहे। मणिपुर हिंसा की आग की आंच अब सरकार पर भी आती दिख रही है।मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। राज्य की स्थिति का आंकलन करने के लिए सीएम बीरेन सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को बुलाई गई अहम बैठक में 37 में से 19 बीजेपी विधायक नहीं शामिल हुए। इनमें मुख्य रूप से मैतेई समुदाय से आने वाले एक कैबिनेट मंत्री भी शामिल हैं। सोमवार को एनडीए के कुल 53 विधायकों में से केवल 27 विधायक (सीएम सहित) बैठक में शामिल हुए। इनमें से 18 बीजेपी के, चार-चार एनपीपी और एनपीएफ के और एक निर्दलीय विधायक थे। बैठक में बीजेपी के 19 सदस्यों ने भाग नहीं लिया। इनमें सात कुकी विधायक भी शामिल हैं, जो पिछले साल 3 मई से बैठक से दूरी बनाए हुए हैं। अनुपस्थित रहने वाले अन्य 12 बीजेपी सदस्यों में प्रमुख रूप से बीजेपी के ग्रामीण विकास मंत्री युमनाम खेमचंद सिंह थे। बैठक का निमंत्रण रविवार को मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से बीजेपी और एनडीए में उसके सहयोगी दलों के सभी मंत्रियों और विधायकों को तब भेजा गया था। जब उसके प्रमुख सहयोगी एनपीपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद एनपीपी अध्यक्ष और मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने कहा था कि उनकी पार्टी अब सीएम बीरेन सिंह पर भरोसा नहीं रखती है और नेतृत्व में बदलाव होने पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। जानकारों के मुताबिक पार्टी के भीतर कुछ भी सही नहीं चल रहा है। हाल में हिंसा के बाद से पार्टी के भीतर सीएम और मौजूदा सरकार को लेकर असंतोष की भावना भड़क चुकी है। माना जा रहा है कि इस अंदरूनी कलह की वजह से बीरेन सिंह की सरकार को खतरा भी हो सकता है। पिछले ही दिनों राज्य में बीजेपी की सहयोगी पार्टी एनपीपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। इस हालिया घटनाक्रम ने राज्य के सीएम के सिरदर्द को बढ़ा दिया है। मणिपुर के 60 सदस्यीय विधानसभा में 37 विधायक बीजेपी के, सात एनपीपी के, पांच एनपीएफ के, एक जेडी(यू) के और तीन निर्दलीय विधायक हैं। इसके अलावा कांग्रेस के पांच और कुकी पीपुल्स अलायंस के 2 विधायक हैं। एनपीपी अध्यक्ष और मेघालय के सीएम कोनराड संगमा ने बीरेन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी अब सीएम बीरेन सिंह पर भरोसा नहीं रखती है और नेतृत्व में बदलाव होने पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। इसके बाद अब 19 विधायक सीएम की बैठक से शिरकत नहीं करना एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।