स्व. शारदा सिन्हा की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए पूर्व राष्ट्रपति कोविंद, कहा-बिहार के लोकगीतों को देश-दुनिया तक पहुंचाया
डेस्क : राजधानी पटना के रवीन्द्र भवन में स्व. शारदा सिन्हा की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी शामिल हुए। वहीं इस मौके पर स्व. शारदा सिन्हा के सुपुत्र अंशुमान सिन्हा, पुत्री वंदना, रंजीत निर्गु्णी सहित अन्य लोगों की मौजूदगी रही। आयोजन के दौरान स्व. शारदा सिन्हा सांगीतिक यात्रा को दिखाया गया। पूरे आयोजन में उनके गीत बजते रहे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि बिहार की चर्चित लोकगायिका स्वर्गीय शारदा सिन्हा संगीत साधना की देवी थीं। उन्होंने बिहार के लोकगीतों को देश-दुनिया तक पहुंचाया। वे अंतिम सांस तक अपनी साधना के प्रति समर्पित रहीं। मेरा सौभाग्य है कि उन्हें सुनने और सम्मानित करने का मौका मिला।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि वे असाधारण गायिका थीं। वे बहुत जल्दी दिवंगत हो गईं। आज के आधुनिक चिकित्सा के युग में मात्र 71 साल की आयु में उनका इस तरह जाना अपूरणीय क्षति है। उनसे पहली बार राजभवन में मिला था। उनसे मेरी पहचान शिक्षा जगत की भद्र महिला के रूप में हुई थी। चर्चा के क्रम में पता चला कि वे जहां कार्यरत थीं वहां शिक्षण सेवा से जुड़ी कुछ समस्या है। मैंने उन्हें प्रक्रिया के अनुपालन के बारे में कहा। उस समय बिहार में उच्च शिक्षा के सुधार के लिए मैं लगातार प्रयासरत था। बाद में पता चला कि अगर लगभग 35 साल की सेवा के बाद भी सेवांत लाभ उन्हें नहीं मिल पाएगा। वे जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाली थीं। विभिन्न प्रक्रियाओं के अनुपालन के बाद उनकी समस्या दूर हुई। उनके साथ कई शिक्षकों का कल्याण हुआ। मेरा सौभाग्य है कि उनकी सेवा का मौका मिला। बिहार में पोस्टिंग को ही मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। बाद में तो कई बार उन्हें राजभवन में आमंत्रित किया। उन आयोजनों में मुख्यमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल पहुंचा था। वे महान गायिका थीं। उनकी पुत्री वंदना में उनकी छवि साफ दिखती है।
उन्होंने कहा कि मैं एक दीक्षांत समारोह में यहां आया था। मुझ इस आयोजन की जानकारी मिली तो ऑफिस के लोगों को बोलकर योजना में बदलाव किया। यहां आकर उन्हें याद कर रहा हूं। मेरा सौभाग्य यह रहा कि उन्हें सम्मानित करने का मौका मिला। उन्हें पद्म भूषण देने की घोषणा पहले ही हो चुकी थी। मैं जब राष्ट्रपति बना तो उस समय उन्हें सम्मानित किया गया। उनसे जुड़े कई संस्मरणों को उन्होंने साझा किया। वे छठ की पर्याय थीं। उनके गीतों के बिना छठ अधूरा है। उनका संकल्प, उनकी अप्रतिम साधना, उनके गीत उनकी पहचान हैं। उन्हें राजकीय और राष्ट्रीय सम्मान मिले। यह सम्मान एक तरफ और लोक में उनकी छवि एक तरफ। वे सच में महान थीं।
Nov 17 2024, 10:22