शिशु में जटिलताएं बढ़ा सकता है गर्भावस्था का मधुमेह
गोरखपुर, गर्भावस्था में उच्च शर्करा स्तर (मधुमेह) अगर नियंत्रित न हो तो यह पैदा होने वाले शिशु में जटिलताएं बढ़ा सकता है। यही वजह है कि प्रसव पूर्व जांच के दौरान पहले ही त्रैमास में सभी गर्भवती की रैंडम ब्लड शुगर (आरबीएस) जांच कराई जाती है। जिन गर्भवती में गर्भावस्था में मधुमेह की पुरानी पृष्ठभूमि रही है उनकी प्रथम त्रैमास में ही मधुमेह की सम्पूर्ण जांच कराई जाती है और अन्य गर्भवती की भी दूसरे त्रैमास में मधुमेह की पूरी जांच कराई जाती है । यह कहना है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे का।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि गर्भावधि मधुमेह में रक्त शर्करा का मान सामान्य से अधिक होता है लेकिन मधुमेह के निदान से कम हो जाता है। गर्भावधि मधुमेह सिर्फ गर्भावस्था के दौरान ही होता है। इससे पीड़ित महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। इन महिलाओं और संभवतः उनके बच्चों को भी भविष्य में टाइप दो मधुमेह की आशंका अधिक होती है। गर्भावधि मधुमेह का निदान लक्षणों के आधार पर नहीं, बल्कि प्रसवपूर्व जांच के माध्यम से किया जाता है, इसलिए प्रत्येक महिला को गर्भावस्था का पता चलते ही नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर तुरंत जांच करानी चाहिए। सरकारी अस्पतालों पर न सिर्फ जांच की सुविधा है, बल्कि गर्भावस्था में मधुमेह का पता चलने पर जांच के साथ साथ कुशल इलाज व प्रबन्धन से सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित कराया जा रहा है।
वहीं, प्रथम संदर्भन इकाई और पिपराईच सीएचसी की स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ एमडी वर्मन का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान मधुमेह के मामले औसतन दस फीसदी से भी कम आते हैं, लेकिन इन मामलों में सतर्कता अधिक जरूरी है। मधुमेह पाए जाने पर गर्भवती को उच्च जोखिम गर्भावस्था (एचआरपी) की श्रेणी में रखा जाता है और सुरक्षित प्रसव होने तक उनकी नियमित निगरानी की जाती है। उन्हें मधुमेह की दवाएं भी चलाई जाती हैं। अगर गर्भधारण करने के पहले से ही महिला मधुमेह पीड़ित है तो गर्भावस्था के दौरान उसे चिकित्सकीय देखरेख में अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी। मधुमेह पीड़ित महिला को गर्भधारण में भी दिक्कत होती है।
शाहपुर शहरी स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ नीतू बताती हैं कि अगर गर्भावस्था में मधुमेह नियंत्रित नहीं रहता है तो शिशु के लिए अधिक दिक्कत बढ़ सकती है। गर्भावस्था के पहले आठ सप्ताह के दौरान शिशु के अंग, जैसे मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे और फेफड़े आदि बनने लगते हैं। इस चरण में उच्च रक्त शर्करा का स्तर हानिकारक हो सकता है । इससे शिशु में जन्म दोष, जैसे कि हृदय दोष या मस्तिष्क अथवा रीढ़ की हड्डी में दोष होने की आशंका बढ़ जाती है। गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्त शर्करा स्तर के कारण इस बात की आशंका भी बढ़ जाती है कि शिशु समय से पहले पैदा हो जाए या उसका वजन बहुत अधिक हो जाए अथवा जन्म के तुरंत बाद उसे सांस लेने में समस्या हो या रक्त शर्करा का स्तर कम हो जाए। इसकी वजह से गर्भपात या मृत शिशु के जन्म की आशंका भी बढ़ जाती है ।
समुदाय तक सुविधा उपलब्ध
जिला मातृत्व स्वास्थ्य परामर्शदाता डॉ सूर्य प्रकाश का कहना है कि छाया बीएचएसएनडी सत्रों, एएनएम सब सेंटर, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, सभी पीएचसी और सीएचसी पर गर्भवती के मधुमेह जांच की सुविधा उपलब्ध है। प्रयास होता है कि प्रथम त्रैमास में ही जांच हो जाए ताकि समय से मधुमेह की पहचान हो और चिकित्सकीय देखरेख में सुरक्षित प्रसव कराया जा सके।
Nov 13 2024, 17:56