बोकारो शहर के दुदींबाग बाजार स्थित प्राचीन काली मंदिर में हर वर्ष अखंड ज्योत का होता है आयोजन
बोकारो :बोकारो के इस प्राचीन काली मंदिर में अखंड दीप जलाने की परंपरा ने इसे आस्था का विशेष केंद्र बना दिया है. श्रद्धालु अपनी खुशियों और इच्छाओं की पूर्ति के लिए यहां अखंड दीप जलाते हैं, और इस मंदिर की दिव्यता और पुरातन परंपराएं इसे एक अद्वितीय तीर्थ स्थल बनाती हैं.
बोकारो शहर के दुदींबाग बाजार स्थित प्राचीन काली मंदिर में हर वर्ष नवरात्रि, दीपावली, रामनवमी और अन्य हिंदू पर्वों के अवसर पर अखंड ज्योत का आयोजन होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है.
1860 में स्थापित यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी बद्रीनाथ बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना उनके दादा, पंडित बैदनाथ तिवारी उर्फ लाल बाबा, ने 1862 में की थी. पहले यहाँ मां काली के पिंड की पूजा की जाती थी, लेकिन 1962 में मां काली की प्रतिमा स्थापित होने के बाद यह मंदिर भव्य स्वरूप में परिवर्तित हो गया.
काली मंदिर का इतिहास और आस्था का महत्व
बोकारो शहर के दुदींबाग बाजार स्थित प्राचीन काली मंदिर में हर वर्ष नवरात्रि, दीपावली, रामनवमी और अन्य हिंदू पर्वों के अवसर पर अखंड ज्योत का आयोजन होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. 1860 में स्थापित यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर के पुजारी बद्रीनाथ ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना उनके दादा, पंडित बैद्यनाथ तिवारी उर्फ लाल बाबा, ने 1862 में की थी. पहले यहाँ मां काली के पिंड की पूजा की जाती थी, लेकिन 1962 में मां काली की प्रतिमा स्थापित होने के बाद यह मंदिर भव्य स्वरूप में परिवर्तित हो गया.
अखंड दीप और अन्य देवी-देवताओं का वास
मां काली के अलावा, इस प्राचीन मंदिर में हनुमान जी, राधा-कृष्ण, और शिवलिंग की भी स्थापना है, जहां श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं. यहां एक विशेष परंपरा के तहत मनोकामना ज्योत जलाने का प्रचलन है. मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु अखंड दीप जलाता है, मां काली उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और उसके जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है.
अखंड दीप जलाने की प्रक्रिया और सेवा
मंदिर प्रशासन के अनुसार, त्योहारों पर विशेष रूप से 251 अखंड दीप जलाए जाते हैं, जिसमें करीब 270 लीटर घी का उपयोग होता है. हर दीपक को निरंतर जलते रहने के लिए नियमित रूप से घी डाला जाता है, जिसके लिए मंदिर में 24 घंटे सेवक उपस्थित रहते हैं ताकि दीपक बुझने न पाए. श्रद्धालुओं को दीप जलाने के लिए एक पर्ची काटनी होती है, जिसके बाद उन्हें दीप प्रज्वलित करने का अधिकार मिलता है.
श्रद्धालुओं की आस्था और अनुभव
मंदिर में पूजा करने आईं मुस्कान ने बताया कि दीपक जलाने के बाद उनके जीवन में कई खुशियां आईं और उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हुईं. इसी प्रकार, अनेक श्रद्धालु यहां अखंड दीप जलाने की प्रक्रिया से जुड़कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मां काली की कृपा पाते हैं.
त्योहारों के दौरान मंदिर में विशेष रूप से 251 अखंड दीप जलाए जाते हैं .पुजारी बद्रीनाथ के अनुसार, इन दीपों के लिए करीब 270 लीटर घी की आवश्यकता होती है, और मंदिर प्रशासन द्वारा हर दीप को नियमित रूप से घी डालकर जलाया जाता है ताकि दीपक लगातार प्रज्वलित रहें . इसके लिए श्रद्धालुओं को एक पर्ची काटने की प्रक्रिया से गुजरना होता है, जिसके बाद वे दीपक जलाने का अधिकार प्राप्त करते हैं . मंदिर प्रशासन की ओर से हर दीपक का ध्यान रखा जाता है, और 24 घंटे सेवक उपस्थित रहते हैं ताकि किसी भी परिस्थिति में दीपक बुझने न पाए
मंदिर में पूजा करने आईं सरिता ने बताया कि दीपक जलाने से उनके जीवन में कई खुशियां आई हैं और मां काली ने उनकी अनेक मनोकामनाएं पूरी की हैं.
Oct 31 2024, 19:35