आज नवरात्रि का कलश स्थापना, मुहूर्त और पूजन विधि एवं मंत्र
नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा पूजा और अनुष्ठान में विघ्न बाधा न आए इसके लिए शांति कलश की स्थापना की जाती है। शांति कलश की स्थापना के बाद ही दुर्गा माता की पूजा की जाती है। इसलिए दुर्गा पूजा में कलश स्थापना और जयंती बोने का बड़ा ही महत्व है।
तो आइए जानते हैं नवरात्रि कलश स्थापना करने का शुभ महूर्त कब से कब तक है और कलश स्थापना की विधि विधान और मंत्र क्या है।
कलश स्थापना का मुहूर्त :
कलश स्थापना में सबसे जरूरी यह होता है कि इसमें चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग का त्याग करके कलश बैठाया जाता है। अबकी बार संयोग ऐसा बना है कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग कलश स्थापना में बाधक नहीं बना है। क्योंकि चित्रा नक्षत्र शाम से लग रहा है जबकि वैधृति योग द्वितीय तिथि को लगने जा रहा है। ऐसे मे इस वर्ष कलश स्थापना का कार्य घरों में आप सुबह 6 बजकर 15 मिनट से कर सकते हैं। सुबह में 9 9 बजकर 30 मिनट तक का समय शुभ रहेगा।
इसके बाद आप अभिजीत मुहूर्त में 11 बजे से 12 बजकर 30 मिनट के बीच में घट स्थापना यानी कलश स्थापना करें तो यह उत्तम होगा।
घट स्थापना पूजा विधि
कलश स्थापना करने से पहले स्नान ध्यान करके नए वस्त्र धारण करें। बेहतर होगा कि बिना सिलाई किए हुए वस्त्र यानी धोती धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा ओर मुंह करके बैठें। सबसे पहले हाथ में कुश लें और हाथ में जल लेकर सभी पूजन सामग्री सहित सहित सभी वस्तुओं पर जल छिड़कें और जल छिड़कते हुए मंत्र बोलें।
ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
इसके बाद चंदन लगाएं
चंदनस्य महतपुण्यं पवित्रं पाप नाशनम। आपदं हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा।। इस मंत्र को बोलते हुए अपने माथे पर चंदन लगाएं।
नवरात्रि कलश स्थापना की तैयारी
सबसे पहले कलश जहां बैठा रहे हों वहां पर मिट्टी में बालू सप्तमृतिका मिलाकर पीठ बना लें। यानी अच्छे से फैलाकर गोलाकर बना लें। बीच में थोड़ा सा गहरा रखे ताकि कलश सही से बैठ पाए। इससे पहले कलश को धोकर उसके ऊपर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीखा लगाएं। फिर इस कलश को मिट्टी से बनाएं पीठ पर रखे। कलश के गले में मोली लपेटे। वैसे आपको कलश को उत्तर अथवा उत्तर पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
नवरात्र कलश स्थापना पृथ्वी माता की पूजा
कलश के नीचे जो आपने मिट्टी को फैलाया है उसे दाएं हाथ से स्पर्श करते हुए मंत्र बोलें –
ओम भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रीं। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृग्वंग ह पृथिवीं मा हि ग्वंग सीः।।
कलश के नीचे जौ और सप्तधान बिछाने का मंत्र
ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
इस मंत्र को बोलते हुए सप्तधान और जौ को कलश की नीचे मिट्टी पर फैला दें।
नवरात्रि कलश की पूजा
कलश को स्पर्श करते हए मंत्र बोलें –
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।
इसके बाद कलश पर एक फूल भी रख दे।
कलश में जल भरने का मंत्र
कलश को कभी भी खाली नहीं रखा जाता है इसलिए कलश में जल भरा जाता है। और इसके लिए जल भरते हुए यह मंत्र बोलना चाहिए।
ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।।
इस मंत्र को बोलते हुए कलश में गर्दन तक जल भर दें।
कलश में चंदन अर्पित करने का मंत्र
एक फूल हाथ में लेकर उसमें चंदन लगाएं इसके बाद, ओम त्वां गन्धर्वा अखनस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
इस मंत्र से अब कलश में चंदन लगाएं। और यह फूल भी कलश में छोड़ दें।
कलश में सर्वौषधि डालने का मंत्र
कलश को आरोग्य प्रदान करने वाला माना गया है। इसलिए कलश स्थापना के समय कलश में सर्वौषधि रखते हैं। इससे कलश का जल अत्यंत प्रभावशाली बन जाता है। कलश में सर्वोषधि डालने का मंत्र -
ओम या ओषधी: पूर्वाजातादेवेभ्यस्त्रियुगंपुरा। मनै नु बभ्रूणामह ग्वंग शतं धामानि सप्त च।।
कलश पर पंच पल्लव रखने का मंत्र
कलश में मूल रूप से आम का पल्लव रखा जाता है लेकिन विधि है कि इसमें पंच पल्लव रखने चाहिए। अगर पंच पल्लव नहीं हो तो केवल आम का पल्लव भी रख सकते हैं। पल्लव रखते हुए यह मंत्र बोले।
ओम अश्वस्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्।।
कलश में सप्तमृत्तिका डालने का मंत्र
अब इसके बाद कलश में सात प्रकार की मिट्टी जिसे
सप्तमृतिका कहते हैं डालें। ओम स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः।
कलश में सुपारी छोड़ने का मंत्र
अब आप कलश में एक सुपारी और पान छोड़ें और यह मंत्र बोलें।
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ग्वंग हसः।।
कलश में अब एक सिक्का रखें
कलश में अब आपको एक सिक्का चाहे वह सोने का हो, चांदी का हो वह छोड़ना चाहिए और यह मंत्र बोलना चाहए।
ओम हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
कलश को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र
ओम सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः । वासो अग्ने विश्वरूप ग्वंग सं व्ययस्व विभावसो।।
इस मंत्र को बोलते हुए आप एक लाल अथवा पीला कपड़ा कलश के गर्दन पर लपेट दें।
कलश पर चावल रखें एक मिट्टी के बर्तन में चावल भरकर,
ओम पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्वंग शतक्रतो।।
इस मंत्र को बोलते हुए कलश के ऊपर चावल से भरा पात्र रख दें।
कलश पर नारियल स्थपित करने का मंत्र
कलश पर नारियल अर्पित करने से पहले नारियल पर एक वस्त्र लपेट दें।
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः।।
इस मंत्र को बोलते हुए नारियल को कलश पर चावल से भरे पात्र के ऊपर स्थापित करना चाहिए। कलश को अब आप दीप दिखाएं और इसके बाद शांति कलश की पूजा सपरिवार करे।
कलश में वरुण सहित सभी देवी देवताओं का आह्वान
ओम तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ग्वंग स मा न आयुः प्र मोषीः। अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ‘ओम अपां पतये वरुणाय नमः।
इस तरह कलश में समस्त देवताओं और तीर्थों का वास होगा।
अब कलश को भगवान गणेश मानकर पंचोपचार सहित पूजा करें। कलश में पंचदेवता, दशदिक्पाल और चारों वेदों को आकर विराजने के लिए प्रार्थना करें। और यह प्रार्थना करें कि आपकी पूजा अनुष्ठान में कोई विघ्न न आए। इसके बाद नवरात्रि पर्यंत देवी की उपसान के लिए हाथ में फल, सुपारी, पान, चंदना, एक सिक्का लेकर संकल्प करें।
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आश्विन मास की नवमी तक मैं ( गोत्र का नाम लें।) देवी दुर्गा की उपासना करुंगा, देवी मेरे परिवार और मुझ पर कृपा बनाए रखें। इस तरह संकल्प लेकर गणेश सहित सभी देवी देवताओं की पूजा करें।
नोट :- स्ट्रीटबुज़ज़ का सलाह है पूजा विधि और मंत्र किसी जानकार पंडित के देख रेख में करें
Oct 06 2024, 08:02