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प्रथा : भारत का एक ऐसा गांव जहां सावन में पांच दिनों तक कपड़े नहीं पहनतीं महिलाएं,वजह जानकार हैरान रह जाएंगे आप

नयी दिल्ली : सावन का महीना शुरू हो गया है. ऐसे में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग इस पवित्र महीने में अपनी परंपराओं के अनुसार कई ऐसी चीजें करते हैं, जिनके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे. चलिए आज आपको भारत के एक ऐसे ही गांव की कहानी बताते हैं, जहां सावन के महीने में 5 दिनों तक महिलाएं कपड़े नहीं पहनती हैं.इसके साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि आखिर वहां की महिलाएं ऐसा क्यों करती हैं और क्या पुरुषों के लिए भी इस गांव में कोई नियम लागू होते हैं.

कहां है ये गांव

हम जिस भारतीय गांव की बात कर रहे हैं वो हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी में स्थित है. इस गांव का नाम पिणी गांव है. यहां सदियों से ये परंपरा चली आ रही है. सावन के महीने में खास 5 दिनों तक यहां की महिलाएं कपड़े नहीं पहनतीं. यही वजह है कि इन पांच दिनों में बाहरी लोगों का गांव में प्रवेश पूरी तरह से बैन रहता है.

महिलाएं ऐसा क्यों करती हैं

हिमाचल प्रदेश के इस गांव का इतिहास सदियों पुराना है. इसलिए यहां कई ऐसी परंपराएं हैं जो कहीं और देखने को नहीं मिलतीं. सावन में पांच दिनों तक कपड़े ना पहनने की परंपरा भी सदियों पुरानी है. 

चलिए अब जानते हैं कि इसके पीछे की वजह क्या है.

दरअसल, एक समय में इस गांव में राक्षसों का इतना आतंक था कि गांव वालों का जीना मुश्किल हो गया था. जब राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ा तो इस गांव में लाहुआ घोंड नाम के एक देवता आए और उन्होंने राक्षस का वध कर के गांव वालों को बचा लिया. बताया जाता था कि राक्षस जब गांव में आते थे तो वह सजी-धजी महिलाओं को उठा ले जाते थे. यही वजह है कि आज भी सावन के इन पांच दिनों में महिलाएं कपड़े नहीं पहनतीं.

तो फिर क्या पहनती हैं महिलाएं?

पिणी गांव में आज हर महिला इस परंपरा को नहीं निभाती. लेकिन जो महिलाएं अपनी इच्छ से ये परंपरा निभाती हैं वो इन पांच दिनों में ऊन से बना एक पटका पहनती हैं. परंपरा निभाने वाली महिलाएं इन पांच दिनों में घर से बाहर नहीं निकलीं. इस परंपरा को खासतौर से गांव की शादीशुदा महिलाएं ही निभाती हैं.

क्या पुरुषों के लिए भी कोई नियम है?

ऐसा नहीं है कि इस गांव में सिर्फ महिलाओं के लिए ही नियम है. पुरुषों के लिए नियम है कि वह सावन के महीने में शराब और मांस का सेवन नहीं करेंगे. इन खास पांच दिनों में तो इस परंपरा का पालन करना सबसे ज्यादा जरूरी है. वहीं इस परंपरा के अनुसार, इन पांच दिनों में पति पत्नी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा भी नहीं सकते. 

अगर आप घूमने के शौकीन हैं तो आप इस गांव में जा सकते हैं. हालांकि, सावन के इन पांच दिनों में आपको इस गांव में प्रवेश नहीं मिलेगा. गांव वाले लोग इन पांच दिनों को बेहद पवित्र मानते हैं और इसे त्योहार की तरह मनाते हैं. ऐसे में वह किसी बाहरी व्यक्ति को इन पांच दिनों में अपने गांव में प्रवेश नहीं देते.

जयंती विशेष:'मैं आजाद हूं', चंद्रशेखर तिवारी यूं बने थे 'आजाद',15 कोड़े खाए लेकिन वंदे मातरम बोलना नहीं छोड़ा


नयी दिल्ली:- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है। चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी। जलियांवाला बाग कांड ने चंद्रशेखर आजाद को बचपन में झकझोर कर रख दिया और इसी दौरान आजाद को समझ आ गया था कि अंग्रेजों से छुटकारा पाने के लिए बातों की नहीं बल्कि बंदूकों की जरूरत होगी।

भारत को आजाद कराने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी। उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम 'चंद्रशेखर आजाद' का है। हालांकि, इनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन आजाद इनकी पहचान कैसे बनी इसके पीछे भी एक कहानी है। आजाद कहते थे 'दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, हम आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे।'

आज देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्मदिन है। यह एक ऐसे युवा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान दे दी। 

उन्होंने ठान लिया था कि वे कभी भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और अंग्रेजों की गुलामी की हुकूमत से खुद को आखिरी सांस तक आजाद रखा। उन्होंने बेहद कम उम्र में ही अपनी जिंदगी को देश के नाम कर दिया था। आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ बेहद रोचक बातों के बारे में बताएंगे।

चंद्रशेखर आजाद की जीवनी

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था। मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था, लेकिन पिता सीताराम तिवारी की नौकरी चली जाने के कारण उन्हें अपने पैतृक गांव को छोड़कर मध्यप्रदेश के भाबरा जाना पड़ा था। चंद्रशेखर आजाद का नाम चंद्रशेखर तिवारी था। वह बचपन से ही काफी जिद्दी और विद्रोही स्वभाव के थे।

चंद्रशेखर का पूरा बचपन

आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाबरा में ही बीता था। यहां पर उन्होंने बचपन से ही निशानेबाजी और धनुर्विद्या सिखी। लगातार मौका मिलते ही वो इसकी अभ्यास करने लगे, जिसके बाद यह धीरे-धीरे उनका शौक बन गया।

कम उम्र में ही देश के लिए नाम कर दी जिंदगी

पढ़ाई से ज्यादा चंद्रशेखर का मन खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में लगता था। जलियांवाला बाग कांड के दौरान आजाद बनारस में पढ़ाई कर रहे थे। इस घटना ने बचपन में ही चंद्रशेखर को अंदर से झकझोर दिया था। उसी दौरान उन्होंने ठान ली थी कि वह ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। इसके बाद उन्होंने यह तय कर लिया कि वह भी आजादी के आंदोलन में उतरेंगे और फिर महात्मा गांधी के आंदोलन से जुड़ गए।

चंद्रशेखर तिवारी को मिला आजाद का नाम

1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। उस दौरान जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया, तो उनके जवाब ने सबके होश उड़ा दिए थे। जब उनसे उनका नाम पूछा गया, तो उन्होंने अपना नाम आजाद और अपने पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। इस बात से जज काफी नाराज हो गया और चंद्रशेखर को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।

सुनाई गई 15 बेंत की सजा

आदेश के बाद, बालक चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाई गई, लेकिन उन्होंने उफ्फ तक नहीं की थी और हर बेंत के साथ उन्होंने 'भारत माता की जय' का नारा लगाया। आखिर में सजा भुगतने के एवज में उन्हें तीन आने दिए गए, जो वह जेलर के मुंह पर फेंक आए थे। इस घटना के बाद से ही चंद्रशेखर तिवारी को दुनिया चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानने लगी। आज भी कोई यह नाम लेता है, तो मूंछ पर ताव देने वाले एक पुरुष की छवि आंखों के सामने आ जाती है।

चौरा-चौरी कांड के बाद कांग्रेस से हुआ मोहभंग

जलियांवाला बाग कांड के बाद चंद्रशेखर को समझ आ चुका था कि अंग्रेजी हुकूमत से आजादी बात से नहीं, बल्कि बंदूक से मिलेगी। शुरुआत में गांधी के अहिंसात्मक गतिविधियों में शामिल हुए, लेकिन चौरा-चौरी कांड के बाद जब आंदोलन वापस ले लिया गया तो, आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और फिर उन्होंने बनारस का रुख किया।

बनारस था क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र

दरअसल, बनारस उन दिनों भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था। बनारस में वह देश के महान क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के संपर्क में आए और क्रांतिकारी दल 'हिन्दुस्तान प्रजातंत्र संघ' के सदस्य बन गए। हालांकि, शुरुआत में यह दल गरीब लोगों को लूटते और अपनी जरूरतों को पूरा करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आने लगा कि अपने लोगों को दुख पहुंचाकर वे कभी भी उनका समर्थन हासिल नहीं कर पाएंगे। इसके बाद इस दल का उद्देश्य केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचा कर अपनी क्रांति के लक्ष्यों को प्राप्त करना बन गया।

इतिहास के अमर पन्नों में सुनहरे हर्फों में दर्ज है काकोरी कांड

दल ने पूरे देश को अपना उद्देश्य बताने के लिए अपना मशहूर पैम्फलेट 'द रिवोल्यूशनरी' प्रकाशित किया। इसके बाद उस घटना को अंजाम दिया गया, जो भारतीय क्रांति के इतिहास के अमर पन्नों में सुनहरे हर्फों में दर्ज काकोरी कांड है। काकोरी कांड से शायद ही कोई अनजान होगा। दरअसल, इस दौरान दल के दस सदस्यों ने काकोरी ट्रेन लूट को अंजाम दिया था और अंग्रेजों को खुली चुनौती दे दी। इस कांड के लिए देश के महान क्रांतिकारियों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्‍ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।

भगत सिंह के साथ मिलकर बनाया नया दल

इस घटना के बाद दल के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए और दल बिखर गया। इसके बाद आजाद के सामने एक बार फिर दल खड़ा करने का संकट आ गया। हालांकि, अंग्रेज सरकार आजाद को पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी, लेकिन वह छिपते-छिपाते दिल्ली पहुंच गए।

दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में सभी बचे हुए क्रांतिकारियों की गुप्त सभा आयोजित की गई। इस सभा में आजाद के साथ ही महान क्रांतिकारी भगत सिंह भी शामिल हुए थे। इस सभा में तय किया कि दल में नए सदस्य जोड़े जाएंगे और इसे एक नया नाम दिया जाएगा। इस दल का नया नाम 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' रखा गया। आजाद को इस दल का कमांडर-इन-चीफ बनाया गया।

सांडर्स की हत्या और असेंबली में बम के बाद फिर बिखर गया दल

इस दल ने गठन के बाद कई ऐसी गतिविधियां की, जिससे अंग्रेजी हुकूमत इनके पीछे पड़ गई। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की मौत हो गई. इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु ने उनकी मौत का बदला लेने का फैसला किया। इन लोगों ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स के दफ्तर को घेर लिया और राजगुरु ने सांडर्स पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई।

दिल्ली असेंबली मामले में सुनाई गई फांसी की सजा

इसके बाद आयरिश क्रांति से प्रभावित भगत सिंह ने दिल्ली असेंबली में बम फोड़ने का निश्चय किया, जिसमें आजाद ने उनका साथ दिया। इन घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी और आरोप में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई।

इससे आजाद काफी आहत हुए और उन्होंने भगत सिंह को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। दल के लगभग सभी लोग गिरफ्तार हो चुके थे, लेकिन फिर भी काफी समय तक चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश सरकार को चकमा देते रहे। आजाद ने ठान ली थी कि वो जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगेंगे।

चंद्रशेखर आजाद कैसे शहीद हुए?

अंग्रेज सरकार ने राजगुरु, भगतसिंह और सुखदेव की सजा को किसी तरह कम या उम्रकैद में बदलने के लिए वे इलाहाबाद पहुंचे। उस दौरान अंग्रेजी हुकूमत को इसकी भनक लग गई कि आजाद अल्फ्रेड पार्क में छुपे हैं। उस पार्क को हजारों पुलिस वालों ने घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण के लिए कहा, लेकिन उस दौरान वह अंग्रेजों से अकेले लोहा लेने लगे।

इस लड़ाई में 20 मिनट तक अकेले अंग्रेजों का सामना करने के दौरान वह बुरी तरह से घायल हो गए। आजाद ने लड़ते हुए शहीद हो जाना ठीक समझा। इसके बाद आजाद ने अपनी बंदूक से ही अपनी जान ले ली और वाकई में आखिरी सांस तक वह अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे।

27 फरवरी, 1931 को वह अंग्रेजों के साथ लड़ाई करते हुए हमेशा के लिए अपना नाम इतिहास में अमर कर गए। चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार भी अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। जब लोगों की इस बात की एनएफ। जानकारी मिली, तो सड़कों पर लोगों का जमावड़ा लग गया और हर कोई शोक की लहर में डूब गया। लोगों ने उस पेड़ की पूजा शुरू कर दी, जहां इस महान क्रांतिकारी ने अपनी आखिरी सांस ली थी।

आज लोक मान्य गंगाधर तिलक की 168वीं जयंती पर विशेष : जिन्हें अंग्रेजों ने भारतीय अशांति का जनक कहा था


नयी दिल्ली : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं में से एक बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें लोकमान्य तिलक भी कहा जाता है, उन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा देने में अहम योगदान दिया और लोगों में देश प्रेम और आत्मनिर्भरता की भावना जागृत की. उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं और उनके व्यक्तित्व में समर्थन, साहस, और स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण की अनुभूति दिखती थी. केशव गंगाधर तिलक, अंग्रेजों द्वारा उन्हें ‘भारतीय अशांति के जनक’ कहा जाता था. 

वह उन नेताओं में से एक हैं जो भारत में स्वराज या स्व-शासन के लिए हमेशा खड़े हुए. महात्मा गांधी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ भी कहा था. उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी, जिसका अर्थ होता है “लोक के आदरणीय” या “जनप्रिय”. यह उपाधि उन्हें उनके लोकप्रिय व्यक्तित्व और लोकों के बीच उनके उच्च सम्मान का प्रतीक बनाता है. 

उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरी) के चिखली गांव में हुआ था. जबकि, उनकी मृत्यु 1 अगस्त, 1920 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा. उनकी पुण्यतिथि पर आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ बाते.  

उनकी पढ़ाई- लिखाई

बाल गंगाधर तिलक पढ़ाई में शुरू से ही काफी तेज थे. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रत्नागिरी के विद्यालय में पूरी की. इसके बाद पिता का रत्नागिरि से पुणे स्थानांतरण हुआ तो उनका दाखिला भी पुणे के एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल में करा दिया गया. 1877 में तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से संस्कृत और गणित विषय की डिग्री हासिल की. उसके बाद मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी पास किया पढ़ाई पूरी करने के बाद तिलक पुणे के एक निजी स्कूल में गणित और अंग्रेजी की शिक्षक बन गए. 

हालांकि स्कूल के अन्य शिक्षकों से मतभेद के बाद 1880 में उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया. तिलक अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के आलोचक थे. स्कूलों में ब्रिटिश विद्यार्थियों की तुलना में भारतीय विद्यार्थियों के साथ हो रहे दोगले व्यवहार का वे विरोध करते थे.

स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक उदार और समर्पित व्यक्ति थे. उनकी विचारधारा में स्वतंत्रता, सामर्थ्य, और एकता के लिए गहरा विश्वास था. उन्होंने जनता को अपने देशप्रेम और स्वाधीनता के प्रति प्रेरित किया और उनके समर्थन में लाखों लोग उनके पीछे खड़े हो गए. उन्होंने नारा दिया था कि स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे हम लेकर रहेंगे. इसने भारतीय जनमानस में नई उर्जा भर दी थी. उनकी वाणी और विचारधारा ने जनता को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के लिए प्रोत्साहित किया. उनके आंदोलनकारी सोच और करिश्माई व्यक्तित्व ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान प्रदान किया और उन्हें आज भी भारतीय इतिहास में एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है.

स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान

बाल गंगाधर तिलक का स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ा योगदान था. वे अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी रहे. तिलक ने एक मराठी और एक अंग्रेजी में दो अखबार ‘मराठा दर्पण और केसरी’ की शुरुआत की. इन दोनों ही अखबारों में तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई. इन अखबारों को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाने लगा था. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने संघर्षपूर्ण भाषणों से लोगों को प्रेरित किया और उनके देशभक्ति भाव से भरे व्यक्तित्व ने लोगों के दिलों में अपार सम्मान प्राप्त किया. 

उन्होंने स्वराज्य प्राप्त करने के लिए लोगों को सकारात्मक बदलाव के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने संघर्षपूर्ण दिनों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख पद पर रहकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 3 जुलाई, 1908 को क्रांतिकारियों के पक्ष में लिखने के लिये तिलक को गिरफ्तार कर लिया, और उन्हें 6 साल की सजा सुनाने के साथ ही 1000 रुपये का जुर्माना लगाया. जेल में रहने के दौरान ही तिलक ने 400 पन्नों की किताब गीता रहस्य लिखी थी.

स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता

बाल गंगाधर तिलक स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता थे, जिनके व्यक्तित्व में समर्थन, साहस, और स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण की अनुभूति दिखती थी. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी विचारधारा और कार्यों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और उन्हें लोकमान्य के रूप में सम्मानित किया गया. उनके योगदान की स्मृति आज भी हमारे देश के लिए एक प्रेरणा स्रोत है. 1 अगस्त, 1920 को उन्होंने मुंबई में आखिरी सांस ली. ऐसे में उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें शत् शत् नमन.

आज का इतिहास: 1927 में आज ही के दिन भारत में मुंबई से हुई थी नियमित रेडियो प्रसारण की शुरुआत,जाने 23 जुलाई से संबंधित इतिहास

नयी दिल्ली : देश और दुनिया में 23 जुलाई का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है और कई महत्वपूर्ण घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गये है। 23 जुलाई का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 1927 में आज ही के दिन भारत में नियमित रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुंबई से हुई थी। 1903 में आज ही के दिन मोटर कंपनी फोर्ड ने अपनी पहली कार बेची थी।

23 जुलाई का इतिहास इस प्रकार है :

2008 में आज ही के दिन नेपाल के प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति रामबरन यादव को अपना इस्तीफा सौंपा था।

2001 में 23 जुलाई के दिन ही मेघावती सुकर्णोपुत्री इंडोनेशिया की राष्ट्रपति बनीं थी।

2000 में आज ही के दिन व्यापक घोषणाओं के साथ नागो में हुए समूह-8 का 26वां शिखर सम्मेलन हुआ था।

1944 में आज ही के दिन अमेरिकी की सेना ने इटली के पीसा पर कब्जा किया था।

1929 में 23 जुलाई के दिन ही इटली में फासीवादी सरकार ने विदेशी शब्दों के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।

1927 में आज ही के दिन भारत में नियमित रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुंबई से हुई थी।

1903 में आज ही के दिन मोटर कंपनी फोर्ड ने अपनी पहली कार बेची थी।

1881 में 23 जुलाई के दिन ही अंतर्राष्ट्रीय जिम्नास्टिक संघ ने खेल 

परिसंघ की स्थापना की थी और यह विश्व का सबसे पुराना खेल परिसंघ है।

1877 में आज ही के दिन हवाई में पहली टेलीफोन और टेलीग्राफ लाइन बिछाई गई थी।

1829 में 23 जुलाई के दिन ही अमेरिका के विलियम ऑस्टिन बर्ट ने टाइपोग्राफ का पेटेंट कराया था, जिसने टाइपराइटर की नींव रखी।

23 जुलाई को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1973 में आज ही के दिन हिंदी फिल्मों के निर्माता, अभिनेता और गायक हिमेश रेशमिया का जन्म हुआ था।

1953 में आज ही के दिन इंग्लिश क्रिकेट खिलाड़ी ग्रेन ऐलेन गूज का जन्म हुआ था।

1916 में 23 जुलाई के दिन इथोपियाई सम्राट हेल सलासी-1 का जन्म हुआ था।

1906 में 23 जुलाई के दिन प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था।

1898 में आज ही के दिन ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म हुआ था।

1856 में 23 जुलाई के दिन ही गणितज्ञ, दार्शनिक और स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का जन्म हुआ था।

23 जुलाई को हुए निधन

2016 में आज ही के दिन प्रसिद्ध चित्रकार एसएच. रजा का निधन हुआ था।

2012 में 23 जुलाई के दिन ही स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेविका लक्ष्मी सहगल का निधन हुआ था।

2004 में आज ही के दिन कॉमेडी के बादशाह महमूद अली का निधन हुआ था।

1993 में 23 जुलाई के दिन ही छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण प्रसाद दुबे का निधन हुआ था।

पहला सावन सोमवार आज, इन 3 चीजों से जरुर करें शिव पूजा, दूर होंगे कष्ट


नयी दिल्ली : पहला सावन सोमवार 22 जुलाई 2024 को है. इस दिन शिव जी की पूजा में कुछ खास चीजों का जरुर इस्तेमाल करें. साथ ही राशि अनुसार महादेव की पूजा करें, इससे लाभ मिलता है।

ये पूरा महीना शिव जी का प्रिय माना गया है. सावन के पावन दिनों में शिव भक्ति में रहें लीन रहते हैं मान्यता है कि सावन में जो लोग शिवलिंग की पूजा करते उनके जीवन से ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं.

जिन लोगों की कुंडली में शनि की महादशा चल रही है वो हर सावन सोमवार को महादेव का जल, दूध, दही, शहद आदि से अभिषेक करें. इससे समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. भोलेनाथ की कृपा दृष्टि बनी रहती है. सावन में महादेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो पूजा में कुछ खास चीजों का जरुर इस्तेमाल करें. जानें सावन सोमवार की पूजा सामग्री.

सावन सोमवार की पूजा में ये चीजें करें शामिल

सावन सोमवार को शिवलिंग का अभिषेक कर रहे हैं तो जल में गंगाजल मिला लें और फिर महादेव पर एक पतली धारा बनाकर अभिषेक करें, इसे दौरान 108 बार महादेव के मंत्रों का जाप करें. अब मुट्ठीभर चावल और बेलपत्र अर्पित करें. कहते हैं अगर इन तीन चीजों से शिव जी की पूजा की जाए तो शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं. धन संकट दूर होता है. आर्थिक के साथ मानसिक कष्ट भी खत्म हो जाते हैं.

सावन सोमवार राशि अनुसार पूजा

मेष राशि के लोग सावन के पहले सोमवार के दिन शहद का दान करें.

वृषभ राशि के लोग सावन में सफेद कपड़े, घी, तेल और ज्वार का दान करें.

मिथुन राशि के लोग मौसमी फल का दान करें. गौ माता को चारा भी खिलाएं.

कर्क राशि के लोग चांदी, दूध, मोती, चावल और चीनी का दान भी कर सकते हैं.

सिंह राशि वालों को गुड़ और शहद का दान करना चाहिए.

कन्या राशि वालों को कांसे के बर्तन का दान करना चाहिए.

तुला राशि वालों को चावल और दूध का दान करना चाहिए.

वृश्चिक राशि वालों को सोना, तांबा और केसर का दान करना चाहिए.

धनु राशि वाले चने की दाल, केसर युक्त दूध का दान कर सकते हैं.

मकर राशि के लोगों को दान में छाता और कंबल देना चाहिए.

कुंभ राशि के लोगों को नीले-काले वस्त्र का दान करना चाहिए.

मीन राशि वालों को दान में अन्न-धन, दाल, पीले फूल देना चाहिए.

आज का इतिहास:1947 में आज ही के दिन संविधान सभा ने तिरंगे को ‘राष्ट्रीय ध्वज’ के तौर पर किया था अंगीकार


नयी दिल्ली : देश और दुनिया में 22 जुलाई का इतिहास कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है और कई महत्वपूर्ण घटनाएं इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है। 22 जुलाई का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 1947 में आज ही के दिन संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया था। 

भारतीय झंडा, जिसे तिरंगा भी कहा जाता है भारत की आज़ादी, लोकतंत्र और विविधता का प्रतीक है। 

1981 में आज ही के दिन भारत के पहले भूस्थिर उपग्रह एप्पल ने कार्य करना शुरू किया था। 2012 में 22 जुलाई को ही प्रणव मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित किया गया था। 2001 में 22 जुलाई को ही समूह-आठ के देशों का जेनेवा में सम्मेलन संपन्न हुआ था

22 जुलाई का इतिहास इस प्रकार है :

2014 में आज ही के दिन एक रिपोर्ट में 9/11 हमले को सरकारी संस्थाओं की नाकामी करार दिया गया था।

2012 में आज ही के दिन प्रणव मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।

2003 में 22 जुलाई को ही इराक में हवाई हमले में तानाशाह सद्दाम हुसैन के दो बेटे मारे गए थे।

2001 में शेर बहादुर देउबा नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने थे।

2001 में आज ही के दिन समूह-आठ के देशों का जेनेवा में सम्मेलन संपन्न हुआ था।

1988 में आज ही के दिन अमेरिका के 500 वैज्ञानिकों ने पेंटागन में जैविक हथियार बनाने के शोध का बहिष्कार करने की शपथ ली थी।

1981 में 22 जुलाई को ही भारत के पहले भूस्थिर उपग्रह ऐपल ने कार्य करना शुरू किया था।

1969 में आज ही के दिन सोवियत संघ ने स्पूतनिक 50 और मोलनिया 112 संचार उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था।

1947 में 22 जुलाई को ही संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया था।

1918 में 22 जुलाई को ही भारत के पहले पायलट इंद्रलाल राय लंदन के आसपास जर्मनी के विमानों के साथ संघर्ष में मारे गए थे।

1894 में 22 जुलाई को ही पहली लोकसभा के सदस्य सरदार तेजा सिंह अकरपुरी का जन्म हुआ था।

1775 में आज ही के दिन जॉर्ज वॉशिंगटन ने अमेरिकी सेना की कमान संभाली थी।

1731 में आज ही के दिन स्पेन ने वियना संधि पर हस्ताक्षर किए थे।

22 जुलाई को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

2013 में आज ही के दिन ब्रिटेन के राजकुमार विलियम और केट मिडिलटन के पहले पुत्र प्रिंस जॉर्ज का जन्म हुआ था।

1970 में आज ही के दिन महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का जन्म हुआ था।

1965 में 22 जुलाई के दिन ही रेमन मैगसेसे पुरस्कार’ से सम्मानित प्रसिद्ध भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय का जन्म हुआ था।

1947 में 22 जुलाई को ही संगीतकार डॉनल्ड ह्यू डॉन हेनली का जन्म हुआ था।

1923 में आज ही के दिन प्रसिद्ध पार्श्व गायक मुकेश का जन्म हुआ था।

1898 में 22 जुलाई के दिन ही प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक विनायकराव पटवर्धन का जन्म हुआ था।

22 जुलाई को हुए निधन

1968 में आज ही के दिन भारत की प्रसिद्ध महिला चिकित्सक और पद्म भूषण प्राप्तकर्ता मुत्तू लक्ष्मी रेड्डी का निधन हुआ था।

1933 में 22 जुलाई के दिन ही भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त का निधन हुआ था।

पार्श्व गायक मुकेश चन्द्र माथुर की 101वीं जयंती आज ,मुकेश के लिए राज कपूर ने कहा था, 'अगर मैं जिस्म हूं तो मुकेश मेरी आत्मा’


नयी दिल्ली : मुकेश के नाम से मशहूर पार्श्व गायक मुकेश चन्द्र माथुर का आज जन्‍मदिन है। 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में पैदा हुए मुकेश की मृत्यु 27 अगस्त 1976 को अमेरिका में हुई। वो भारत में संगीत इतिहास के सर्वश्रेष्‍ठ गायकों में से एक थे। पेशे से एक इन्जीनियर के घर में पैदा होने वाले मुकेश चन्द माथुर के अन्दर वह सलाहियत थी कि वह एक अच्छे गायक बनकर उभरें, और हुआ भी यही। कुदरत ने उनके अंदर जो काबलियत दी थी, वह लोगों के सामने आई और मुकेश की आवाज़ का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़ कर बोला।

जीवन परिचय

जाने वाले हो सके तो लौट के आना' (फ़िल्म बन्दिनी से), 'दोस्त दोस्त ना रहा' (फ़िल्म सन्गम से), जैसे गानों को अपनी आवाज़ के जरिए दर्द में ड़ुबो दिया तो वही 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' (फ़िल्म अन्दाज़ से), 'जाने कहाँ गये वो दिन' (फ़िल्म मेरा नाम जोकर से), 'मैंने तेरे लिये ही सात रंग के सपने चुने' (फ़िल्म आनन्द से), 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है' (फ़िल्म कभी कभी से), 'चन्चल शीतल निर्मल कोमल' (फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुन्दरम्' से) जैसे गाने गाकर प्यार के एहसास को और गहरा करने में कोई कसर ना छोड़ी। यही नहीं मकेश ने अपनी आवाज़ में 'मेरा जूता है जापानी' (फ़िल्म आवारा) जैसा गाना गाकर लोगों को सारा गम भूल कर मस्त हो जाने का भी मौका दिया। मुकेश द्वारा गाई गई 'तुलसी रामायण' आज भी लोगों को भक्ति भाव से झूमने को मजबूर कर देती है। 

क़रीब 200 से अधिक फ़िल्‍मो में आवाज़ देने वाले मुकेश ने संगीत की दुनिया में अपने आपको 'दर्द का बादशाह' तो साबित किया ही, इसके साथ साथ वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान भी बनाई। 'फ़िल्‍म फ़ेयर पुरस्‍कार' पाने वाले वह पहले पुरुष गायक थे। 

पुरस्कार

1959 - फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार- सब कुछ सीखा हमनें (अनाड़ी)

1970 - फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार- सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान)

1972 - फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार- जय बोलो बेईमान की जय बोलो 

1974 - नेशनल पुरस्कार- कई बार यूँ भी देखा है (रजनी गंधा)

1976 - फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार- कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है (कभी कभी)

निधन

मुकेश का निधन 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने के कारण संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ। मुकेश के गीतों की चाहत उनके चाहने वालों के दिलों में सदा जीवित रहेगी। उनके गीत हम सबके लिए प्रेम, हौसला और आशा का वरदान हैं। मुकेश जैसे महान् गायक न केवल दर्द भरे गीतों के लिए, बल्कि वो तो हम सबके दिलों में सदा के लिए बसने के लिए बने थे। उनकी आवाज़ का अनोखापन, भीगे स्वर संग हल्की-सी नासिका लिए हुए न जाने कितने संगीत प्रेमियों के दिलों को छू जाती है। वो एक महान गायक तो थे ही, साथ ही एक बहुत अच्छे इंसान भी थे। वो सदा मुस्कुराते रहते थे और खुशी-खुशी लोगों से मिलते थे। इनके निधन पर राज कपूर ने कहा था- मेरी आवाज़ और आत्मा दोनों चली गई।

जम्मू-कश्मीर में कॉन्स्टेबल भर्ती के लिए अधिसूचना जारी, आवेदन 30 जुलाई से होंगे शुरू


नई दिल्ली:- जम्मू और कश्मीर सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (JKSSB) की ओर से कॉन्स्टेबल के 4 हजार से अधिक पदों पर भर्ती के लिए अधिसूचना जारी कर भर्ती का एलान किया गया है। अधिसूचना के मुताबिक इस भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया 30 जुलाई 2024 से शुरू की जाएगी जो 29 अगस्त 2024 तक जारी रहेगी। 

पात्र एवं इच्छुक अभ्यर्थी इस भर्ती में भाग लेने के लिए तय तिथियों में ऑनलाइन माध्यम से जेकेएसएसबी की ऑफिशियल वेबसाइट jkssb.nic.in जाकर आवेदन कर सकेंगे। फॉर्म भरने से पहले उम्मीदवार पात्रता की जांच अवश्य कर लें।

चयन प्रक्रिया

इस भर्ती में आवेदन करने वाले उम्मीदवारों को सबसे पहले लिखित परीक्षा से होकर गुजरना होगा। रिटेन टेस्ट में निर्धारित कटऑफ अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को फिजिकल फिटेनस टेस्ट (PFT)/ फिजिकल एन्ड्योरेंस टेस्ट (PET) में शामिल होना होगा। इन प्रक्रिया में सफल अभ्यर्थियों को अंत में मेडिकल एग्जामिनेशन में शामिल होना होगा। सभी चरणों में सफल उम्मीदवारों को अंतिम मेरिट लिस्ट में जगह प्रदान की जाएगी।

कैसे कर सकेंगे आवेदन

इस भर्ती में शामिल होने के लिए सबसे पहले आधिकारिक वेबसाइट jkssb.nic.in पर जाना होगा।वेबसाइट के होम पेज पर आपको भर्ती से संबंधित लिंक पर क्लिक करना होगा।अब आपको पहले रजिस्ट्रेशन लिंक पर क्लिक करके मांगी गई डिटेल भरनी है और पंजीकरण करना है।रजिस्ट्रेशन होने के बाद अभ्यर्थी अन्य डिटेल भरकर आवेदन प्रक्रिया पूर्ण कर लें।

अंत में अभ्यर्थी निर्धारित शुल्क जमा करके पूर्ण रूप से भरे हुए फॉर्म का एक प्रिंटआउट निकालकर सुरक्षित रख लें।

कितना लगेगा शुल्क

इस भर्ती में शामिल होने के लिए अन्य सभी श्रेणियों के अभ्यर्थियों को 700 रुपये शुल्क जमा करना होगा वहीं एससी, एसटी-1, एसटी-2 और ईडब्ल्यूएस वर्ग के उम्मीदवारों को एप्लीकेशन फीस के रूप में 600 रुपये का भुगतान करना होगा। भर्ती से जुड़ी अधिक डिटेल के लिए अभ्यर्थी एक बार ऑफिशियल अधिसूचना का अवलोकन अवश्य कर लें।

आईबीपीएस क्लर्क भर्ती के लिए आवेदन की अंतिम तिथि आज, 6 हजार से अधिक पदों पर हो रही भर्ती


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नई दिल्ली:- बैंक में सरकारी नौकरी पाने का सपना देख रहे अभ्यर्थियों के लिए बड़ी खबर है। इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग पर्सोनेल सेलेक्शन (IBPS) की ओर से राष्ट्रीय बैंक्स में क्लर्क (CRP CLERKS-XIV) के 6,148 पदों पर भर्ती हो रही है। इस भर्ती के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 21 जुलाई 2024 निर्धारित है। ऐसे में जो भी अभ्यर्थी अभी तक किसी कारणवश फॉर्म नहीं भर सके हैं वे बिना देरी करते हुए तुरंत ही ऑफिशियल वेबसाइट www.ibps.in पर जाकर या इस पेज पर दिए डायरेक्ट लिंक पर क्लिक करके आवेदन प्रक्रिया पूर्ण कर सकते हैं।

पात्रता एवं मापदंड

इस भर्ती में भाग लेने के लिए अभ्यर्थी का किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से किसी भी स्ट्रीम से ग्रेजुएशन उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसके साथ ही अभ्यर्थी की न्यूनतम आयु 20 वर्ष से कम और अधिकतम आयु 28 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए अर्थात अभ्यर्थी का जन्म 2 जुलाई 1996 से पहले और 1 जुलाई 2004 के बीच हुआ हो। आरक्षित श्रेणी से आने वाले उम्मीदवारों को ऊपरी आयु में छूट दी गई है।

कैसे करें आवेदन

इस भर्ती में आवेदन के लिए सबसे पहले आधिकारिक वेबसाइट www.ibps.in पर विजिट करें।

यहां आपको आईबीपीएस क्लर्क भर्ती लिंक पर क्लिक करके आगे बढ़ना है।

एप्लीकेशन पोर्टल पर पहुंचकर सबसे पहले आपको Click here for New Registration लिंक पर क्लिक करना होगा।

पंजीकरण होने के बाद अभ्यर्थी अन्य डिटेल, हस्ताक्षर एवं फोटोग्राफ अपलोड करें।

इसके बाद अंत में अभ्यर्थी निर्धारित शुल्क जमा करें।

शुल्क जमा करने के बाद उम्मीदवार अपना एप्लीकेशन फॉर्म प्रिंट कर लें।

हरियाणा में स्टेनो एवं कॉमर्स ग्रुप के तहत बंपर पदों पर भर्ती का एलान, 31 जुलाई तक कर सकते हैं अप्लाई


नई दिल्ली:- हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) की ओर से कॉमर्स ग्रुप एवं स्टेनो ग्रुप के तहत बम्पर पदों पर भर्ती का एलान किया गया है। इस भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया 21 जुलाई से शुरू होकर 31 जुलाई 2024 तक पूर्ण की जाएगी। जो भी अभ्यर्थी सरकारी नौकरी की तलाश में हैं और इन पदों के लिए योग्यता पूरी करते करते हैं वे ऑनलाइन माध्यम से तय तिथियों में आवेदन प्रक्रिया पूर्ण कर सकते हैं। एप्लीकेशन फॉर्म HSSC की ऑफिशियल वेबसाइट hssc.gov.in पर जाकर भरा जा सकता है।

भर्ती विवरण

एचएसएससी की ओर से स्टेनो ग्रुप (Advt No 10/2024) के तहत कुल 1838 पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी वहीं कॉमर्स ग्रुप (Advt No 07/2024) के तहत कुल 1296 पदों पर भर्ती की जाएगी।

पात्रता एवं मापदंड

इस भर्ती शामिल होने के लिए अभ्यर्थी ने ग्रुप सी एग्जाम पास किया हो। इसके अलावा स्टेनो ग्रुप के तहत फॉर्म भरने के लिए अभ्यर्थी का 10+2 (इंटरमीडिएट) के साथ स्टेनोग्राफर (English/ Hindi Post Wise) और मैट्रिक लेवल पर हिंदी/ संस्कृत विषय पढ़ा हो। कॉमर्स ग्रुप के लिए उम्मीदवार ने पदानुसार कॉमर्स डिग्री/ पोस्ट ग्रेजुएशन आदि किया हो। अभ्यर्थी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष एवं अधिकतम आयु 42 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। आरक्षित श्रेणी से आने वाले उम्मीदवारों को नियमानुसार छूट दी जाएगी। पात्रता की विस्तृत डिटेल के लिए अभ्यर्थी एक बार ऑफिशियल नोटिफिकेशन का अवलोकन अवश्य कर लें।

इस भर्ती में शामिल होने के लिए उम्मीदवारों को किसी भी प्रकार का शुल्क जमा नहीं करना है अर्थात सभी वर्ग के अभ्यर्थी इस भर्ती के लिए निशुल्क आवेदन पत्र भर सकते हैं।