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आज 59 वीं पुण्यतिथि पर विशेष : आजादी का वो दीवाना, जिसे भूल गया था जमाना... कहानी बटुकेश्वर दत्त की


नई दिल्ली : 8 अप्रैल 1929... ये वो तारीख थी, जब दो नौजवानों ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने छाती चौड़ी कर भारत के साहस को दिखाया दिया। इस दिन शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। पूरी असेंबली में हड़कंप मच गया। लेकिन ये दोनों नहीं रुके, बम के बाद कागज फेंके, जिस पर असेंबली में बम फेंकने की वजह लिखी हुई थी। दोनों वहां से भागे नहीं बल्कि आत्म समर्पण किया।

असेंबली में बम फेंकने वाले भगत सिंह को तो फांसी की सजा हो गई, वहीं उनके साथी बटुकेश्वर दत्त का जीवन भी बेहद दर्द भरा रहा। आज बटुकेश्वर दत्त की जयंती है। आइए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें आपको बताते हैं।

दिल्ली की असेंबली में फेंका बम

अंग्रेज सरकार ने सेंट्रल असेंबली में दो दमनकारी बिल पास कराने की कोशिश कर रही थी। पहला बिल था ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और दूसरा ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’। पब्लिक सेफ्टी बिल को असेंबली में पास हो चुका था, वहीं दूसरे बिल पर चर्चा हो रही थी। इस बिल के तहत मजदूरों की हर तरह की हड़ताल पर पाबंदी लगाने का प्रावधान था। वहीं पब्लिक सेफ्टी बिल के तहत सकार को बिना केस चलाए ही किसी को भी गिरफ्तार करने का हक मिल रहा था। 

इसी दौरान भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असेंबली पहुंचे और उन्होंने बिल के विरोध में दो बम फेंके। दोनों लोगों ने इस बात का खास ख्याल रखा कि बम से किसी को कोई नुकसान न हो। दोनों ने आजादी के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी।

सिगरेट बनाने की कंपनी में करनी पड़ी मजदूरी

दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। केस चला, लेकिन अंग्रेज अदालत में दोनों के खिलाफ ज्यादा कुछ साबित नहीं कर पाए। भगत सिंह ने अदालत में अपने ऊपर लगे आरोपों पर शानदार जवाब दिए। बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह के इस कदम से देश में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बना।

युवाओं में आजादी की गूंज पनपी। बटुकेश्वर को उम्रकैद हुई लेकिन भगत सिंह को लाहौर हत्याकांड के मामले में फांसी दे दी गई। अंग्रेजों ने बटुकेश्वर दत्त के जीवन को मुश्किल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिस देश की आजादी के लिए उन्होंने असेंबली में बम फेंका, आजादी के बाद उसी देश में उन्हें मजदूरी करनी पड़ी, एक सिगरेट बनाने वाली कंपनी में काम करना पड़ा।

इलाज कराने के तक के नहीं थे पैसे

उनकी पत्नी अंजली दत्त ने बातचीत में बताया था कि दत्त स्वामी विवेकानंद की कविता 'बागी' से प्रेरित हुए थे और रामकृष्ण मिशन से जुड़ गए। बाद में उन्हें भगत सिंह का साथ मिला और फिर वो दोनों एक साथ आजादी के संग्राम में कूद पड़े। कहा जाता है कि बटुकेश्वर दत्त काफी बीमार हो गए। लेकिन इतने बड़े क्रांतिकारी के पास अपना इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे। जैसे-तैसे जीवन गुजारा। अपने अंतिम दिनों में उन्होंने कहा था कि मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फेंका वहां एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लादा जाऊंगा.

भगत सिंह की मां से जाहिर की अंतिम इच्छा

साल 1965 में बटुकेश्वर दत्त अपने जीवन की आखिरी सांस गिन रहे थे, इस दौरान भगत सिंह की मां विद्यावती देवी उनसे मिलने आई थीं। उन्होंने बटुकेश्वर से कहा, 'एक बेटे को उन्होंने आजादी से पहले को दिया और एक को उन्हें तब देखने के लिए आना पड़ रहा है, जब वो इतना बीमार है।' ये कहकर भगत सिंह की मां की आंखों में आंसू आ गए। तब बिस्तर पर लेटे बटुकेश्वर ने अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए कहा कि वो चाहते हैं कि उनका अंतिम संस्कार पंजाब के उसी गांव में किया जाए, जहां उनके साथी भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि है।

आज का इतिहास:1997 में आज ही के दिन तीस्ता नदी जल बंटवारे पर भारत-बांग्लादेश में हुआ था समझौता


नयी दिल्ली :- 20 जुलाई का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 1969 में 20 जुलाई को ही नील आर्मस्ट्रान्ग के रूप में किसी इंसान ने पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था। 2005 में आज ही के दिन कनाडा में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी दी गई थी। 

1997 में आज ही के दिन तीस्ता नदी जल बंटवारे पर भारत-बांग्लादेश में समझौता था। 2002 में 20 जुलाई को ही उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच विमान सेवा की शुरुआत हुई थी।

20 जुलाई का इतिहास इस प्रकार है:

2017 में आज ही के दिन रामनाथ कोविन्द भारत के 14वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।

2005 में आज ही के दिन कनाडा में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी दी गई थी और यह ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बना था।

2002 में 20 जुलाई को ही उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच विमान सेवा की शुरुआत हुई थी।

1997 में आज ही के दिन तीस्ता नदी जल बंटवारे पर भारत-बांग्लादेश में समझौता हुआ था।

1969 में 20 जुलाई को ही नील आर्मस्ट्रांग के रूप में मानव ने चंद्रमा की सतह पर पहली बार कदम रखा था।

1960 में 20 जुलाई को ही सिलॉन की राष्ट्रपति श्रिमावो भंडार नायके विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई थीं।

1956 में आज ही के दिन फ्रांस ने ट्यूनिशिया को स्वतंत्र देश घोषित किया था।

1944 में 20 जुलाई को ही अमेरिका ने जापान के कब्जे वाले गुआम पर हमला किया था।

1938 में आज ही के दिन फिनलैंड को 1940 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी सौंपी गई थी।

1924 में 20 जुलाई को ही सोवियत खेल समाचार पत्र सोवत्सकी स्पोर्ट् की स्थापना हुई थी।

1923 में आज ही के दिन पन्चो विला की हत्या कर दी गई थी।

1905 में 20 जुलाई को ही बंगाल के पहले विभाजन को भारतीय सचिव ने मंजूरी दी थी।

1903 में आज ही के दिन फोर्ड मोटर कंपनी ने अपनी पहली कार बाजार में उतारी थी।

1847 में आज ही के दिन जर्मनी के खगोलशास्त्री थियोडोर ने धूमकेतु ब्रोरसेन-मेटकॉफ की खोज की थी।

1810 में 20 जुलाई को ही बोगोटा, न्यू ग्रेनेडा (अब कोलंबिया) के नागरिकों ने खुद को स्पेन से अलग कर स्वतंत्र घोषित किया था।

20 जुलाई को जन्मे प्रसिद्ध व्यक्ति

1969 में आज ही के दिन अरुणाचल प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल का जन्म हुआ था।

1950 में 20 जुलाई के दिन ही भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध तथा प्रतिभाशाली अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का जन्म हुआ था।

1921 में आज ही के दिन प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीतकार और तबला वादक सामता प्रसाद का जन्म हुआ।

1929 में 20 जुलाई के दिन ही हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता राजेंद्र कुमार का जन्म हुआ था।

1919 में आज ही के दिन माउंट एवरेस्‍ट को सबसे पहले जीतने वाले सर एडमंड हिलेरी का जन्‍म हुआ था।

20 जुलाई को हुए निधन

1972 में 20 जुलाई के दिन ही प्रसिद्ध पा‌र्श्वगायिका गीता दत्त का निधन हुआ था।

1966 में आज ही के दिन भारत की पहली महिला न्यायाधीश अन्ना चांडी का निधन हुआ था।

1965 में आज ही के दिन भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का निधन हुआ था।

1937 में 20 जुलाई के दिन ही रोडियो का अविष्कार करने वाले गोलैलिमों मारकोनी का निधन हुआ था। 

1922 में आज ही के दिन असम राज्य के प्रथम असहयोगी और असम में कांग्रेस के संस्थापकों में से एक चन्द्रनाथ शर्मा का निधन हुआ था।

1914 में 20 जुलाई के दिन ही आधुनिक हिंदी साहित्य के शीर्ष निर्माताओं में से एक बालकृष्ण भट्ट का निधन हुआ था।

1866 में आज ही के दिन जर्मनी के गणितज्ञ बरनार्ड रीमैन का निधन हुआ था।

अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस और विश्व कूद दिवस आज, आइए जानते हैं क्यों मनाए जाते हैं ये खास दिन


नयी दिल्ली : आज है अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस और विश्व कूद दिवस, जानिए क्यों मनाए जाते हैं ये खास दिन हर साल 20 जुलाई के दिन अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस मनाया जाता है। 

शतरंज दिमाग का खेल कहा जाता है. शतंरज ऐसा खेल है जिसे सदियों से खेला जाता रहा है और इस खेल को साल 1966 में यूनेस्को से रिकोग्निशन मिली थी. हर साल 20 जुलाई के दिन अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस मनाया जाता है. 

इस दिन को मनाने का मकसद शतरंज को शिक्षा, तार्किक सोच को बढ़ाने और संस्कृति के आदान-प्रदान के रूप में प्रसारित करना है. साल 1994 में 20 जुलाई के ही दिन इंटरनेशनल चेस फेडरेशन की स्थापना भी हुई थी. 

इंटरनेशनल चेस फेडरेशन की स्थापना दूर-दराज तक शतरंज के मुकाबलों का आयोजन करके वैश्विक स्तर पर इस खेल को बढ़ावा देना था. 

आज विश्व के लाखों-करोड़ों लोग शतरंज खेलते हैं. यह खेल भाषाओं और सीमाओं के परे है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शतरंज के मुकाबलों का आयोजन होता है जिनमें बच्चों से लेकर बड़े तक प्रतिस्पर्धा करते हैं. 

वहीं, बहुत से लोगों के लिए शतरंज खेलना एक अच्छा टाइमपास है. बच्चों को शतरंज खेलने के लिए प्रोत्साहित करने का मकसद आमतौर पर उनकी दिमागी शक्ति को बढ़ाना और उनमें लॉजिकल और क्रिटिकल थिंकिक डेवलप करना होता है. 

विश्व कूद दिवस 

कूदना यानी जंप करना एक ऐसी एक्टिविटी है जिसे जाने-अनजाने हम जहां-तहां करते ही रहते हैं. कभी किसी खेल में कूदते हैं तो कभी कॉकरोच या चूहे को देखकर कूद पड़ते हैं. लेकिन, विश्व कूद दिवस को मनाने का मकसद मजे में कूदना नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता फैलाना है।

हर साल 20 जुलाई के दिन विश्व जंप दिवस मनाया जाता है. इस साल 20 जुलाई की सुबह 7:29 मिनट और 13 सैकंड समयानुसार) पर वैश्विक तौर पर जंप करना प्लान किया गया है ताकि पृथ्वी के ओर्बिट को हिलाया जा सके. पृथ्वी का ओर्बिट इससे नहीं हिलेगा लेकिन जलवायु परिवर्तन को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना और लोगों को सचेत करना इस दिन को मनाने की सबसे बड़ी वजह है. 

साल 2006 में विश्व कूद दिवस मनाने की शुरूआत जर्मनी के आर्टिस्ट टॉर्स्टन लॉशमैन ने की थी।

टॉर्स्टन लॉशमैन के अनुसार, इस दिन को मनाने के शुरूआती साल में 600 मिलियन लोगों ने जंप करने के लिए खुद को रजिस्टर किया था. इसके बाद से ही हर साल इस दिन को मनाया जाने लगा. 

आप विश्व जंप दिवस मनाने के लिए ट्रैंपोलिन पर कूद सकते हैं, जंपिंग जैक्स कर सकते हैं, स्विमिंग पूल पर जंप लगा सकते हैं या फिर कहीं और कूद-फांद कर सकते हैं।

Post Office Recruitment: उत्तर प्रदेश डाक विभाग में सबसे अधिक 4588 GDS की वेकेंसी, MP और तमिलनाडु में भी बंपर भर्ती


नई दिल्ली:- भारतीय डाक विभाग द्वारा देश भर के डाक सर्किल में स्थित डाकघरों में ग्रामीण डाक सेवकों के कुल 44 हजार के अधिक पदों पर भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया 15 जुलाई से शुरू की गई है। किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण अधिकतम 40 वर्ष तक आयु वाले उम्मीदवार इस भर्ती के लिए निर्धारित अंतिम 5 अगस्त तक आवेदन कर सकते हैं।

हालांकि, उम्मीदवारों को अपने निवास क्षेत्र से सम्बन्धित डाक सर्किल के लिए आवेदन करना होगा। डाक विभाग द्वारा विभिन्न डाक सर्किल के लिए रिक्तियों की संख्या जारी की गई हैं।

उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 4588 GDS की वेकेंसी

डाक विभाग द्वारा जारी GDS भर्ती अधिसूचना के मुताबिक उत्तर प्रदेश डाक सर्किल के लिए सबसे अधिक 4,588 रिक्तियां निकाली गई हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश डाक सर्किल के लिए दूसरी सबसे अधिक 4,011 रिक्तियों की संख्या तथा तमिलनाडु सर्किल के लिए तीसरी सबसे अधिक 3,798 वेकेंसी निकाली गई है। विभिन्न डाक सर्किल के लिए विज्ञापित रिक्तियों की संख्या निम्नलिखित है:-

आवेदन 5 अगस्त तक

विभिन्न यूपी, एमपी, या किसी अन्य डाक सर्किल में ग्रामीण डाक सेवकों की भर्ती के लिए आवेदन के इच्छुक उम्मीदवारों को डाक विभाग लॉन्च किए गए कॉमन पोर्टल, indiapostgdsonline.cept.gov.in पर जाकर अप्लाई करना होगा। 

आवेदन प्रक्रिया के 3 चरण है। सबसे उम्मीदवारों को पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा, फिर निर्धारित आवेदन शुल्क 100 रुपये का भुगतान ऑनलाइन माध्यमों से करना होगा और अंत में उम्मीदवारों को अप्लीकेशन सबमिट करना होगा। 

हालांकि, आवेदन से पहले उम्मीदवार इस भर्ती की अधिसूचना में दिए गए विवरणों की जांच कर लें।

दिल्ली: 94 पदों के लिए जारी हुई भारतीय रिजर्व बैंक ग्रेड बी ऑफिसर भर्ती परीक्षा की संक्षिप्त अधिसूचना*

नई दिल्ली: - रिजर्व बैंक में सरकारी नौकरी के इच्छुक और आरबीआइ ग्रेड बी परीक्षा की तैयारी में जुटे उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण अपडेट। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विभिन्न विभागों में ग्रेड बी के पदों पर सीधी भर्ती के लिए हर वर्ष आयोजित की जाने वाली परीक्षा के इस वर्ष के संस्करण की संक्षिप्त अधिसूचना (RBI Grade B Exam 2024 Notification) जारी कर दी गई है। बैंक द्वारा जारी संक्षिप्त अधिसूचना के अनुसार इस बार की परीक्षा कुल 94 पदों के लिए की जाएगी।

विस्तृत अधिसूचना के साथ ही शुरू होगी आवेदन प्रक्रिया

RBI द्वारा ग्रेड बी ऑफिसर भर्ती परीक्षा के लिए विस्तृत अधिसूचना 24 जुलाई को जारी की जाएगी और इसके साथ ही साथ आवेदन प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी। जो उम्मीदवार इस बार की परीक्षा में सम्मिलित होना चाहते हैं, वे बैंक की भर्ती की आधिकारिक वेबसाइट, opportunities.rbi.org.in पर एक्टिव किए जाने वाले लिंक से सम्बन्धित अप्लीकेशन पेज पर जाकर अप्लाई कर सकेंगे। आवेदन के दौरान उम्मीदवारों को निर्धारित शुल्क 850 रुपये (जीएसटी अतिरिक्त) का भुगतान ऑनलाइन माध्यमों से करना होगा, जो कि SC/ST/दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए शुल्क 100 रुपये (जीएसटी अतिरिक्त) ही है।

कौन कर सकेगा आवेदन?*

RBI द्वारा आयोजित की जाने वाली ग्रेड बी ऑफिसर (जनरल) की भर्ती परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए उम्मीदवारों को न्यूनतम 60 फीसदी अंकों के साथ स्नातक होना चाहिए। वहीं, ग्रेड बी ऑफिसर (डीईपीआर) के लिए अर्थशास्त्र या सम्बन्धित विषयों में पीजी कम से कम 55 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। इसी प्रकार, ग्रेड बी ऑफिसर (डीएसआइएम) के लिए सांख्यिकी या सम्बन्धित विषयों में न्यूनतम 55 फीसदी अंकों के साथ पीजी होना चाहिए। 

सभी पदों के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से 30 वर्ष के बीच होनी चाहिए। आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों को अधिकतम आयु सीमा में केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार छूट दी जाएगी।

दिल्ली:डबल होगी अटल पेंशन योजना! करोड़ों लोगों को होगा फायदा, बजट में हो सकती है घोषणा

नई दिल्ली:- मोदी सरकार 23 जुलाई को आम बजट पेश करेगी। हर बार की तरह इस बजट पर लोगों की निगाहें टिकी हैं। इस बार बजट में कई एलान संभव है। इस बीच सरकार अटल पेंशन योजना में राहत भरी घोषणा कर सकती है।

बीते 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मता सीतारमण ने अंतरिम बजट पेश किया था। तब सरकारी योजना में संशोधन के संकेत मिले थे। इस बार उम्मीद है कि अटल पेंशन योजना की रकम में बढ़ोतरी हो सकती है।दस हजार रुपये हो सकती है पेंशन

अटल पेंशन योजना को लेकर बजट में उम्मीद हैं। केंद्र सरकार पेंशन का दायरा बढ़ा सकती है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है अधिकतम पेंशन राशि पांच हजार रुपये से बढ़ाकर दस हजार रुपये किया जा सकता है। इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श जारी है।

अंतरिम बजट से पहले प्रस्ताव

पिछले अंतरिम बजट से पहले भी उम्मीद जताई गई थी। हालांकि तब अटल पेंशन योजना को लेकर कोई एलान नहीं किया गया। ऐसे में एक बार फिर पेंशन लिमिट बढ़ने की उम्मीद जारी है।

बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार अटल पेंशन योजना की न्यूनतम पेंशन रकम को बढ़ा सकती है। पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण के चेयरमैन दीपक मोहंती ने केंद्र से पेंशन राशि में बढोत्तरी का अनुरोध भी किया था।

अटल पेंशन योजना का लाभ

मोदी सरकार ने अटल पेंशन योजना की शुरुआत 2015 में की थी। इसमें पांच हजार रुपये तक पेंशन मिलती है। 18 से 40 साल की आयु के सभी भारतीय इस स्कीम के लिए एलिजिबल हैं। इस सरकारी योजना में गारंटेड पेंशन के साथ कई फायदे मिलते हैं। इसमें निवेश करके 1.50 लाख रुपये तक टैक्स बचा सकते हैं।

यमुना के डूब क्षेत्र पर किसी भी अनाधिकृत निर्माण को हटाना होगा चाहे वह धार्मिक स्थल ही क्यों न होः हाईकोर्ट



नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा यमुना के डूब क्षेत्र को किसी भी सूरत में बचाना होगा. इसका अतिक्रमण करने वाला कोई भी निर्माण हो चाहे वो धार्मिक ही क्यों न हो, उसे हटाना होगा. 

कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने यमुना के डूब क्षेत्र में गीता कॉलोनी के पास बने पुराने शिव मंदिर को हटाने के डीडीए के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश में कोई भी दखल देने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति मंदिर का कोई भी वैध दस्तावेज दिखाने में असफल रहा है. 

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस बात को स्वीकार किया है कि मंदिर यमुना के डूब क्षेत्र में स्थित है. इसका मतलब साफ है कि मंदिर अनाधिकृत तरीके से ईको-सेंसिटिव जोन में अतिक्रमण कर बनाया गया. हमें यमुना के डूब क्षेत्र की रक्षा करनी होगी. किसी भी अनाधिकृत निर्माण को रोकना होगा चाहे वो धार्मिक स्थल ही क्यों न हों.

बता दें, याचिकाकर्ता ने सिंगल बेंच के फैसले को डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. जस्टिस धर्मेश शर्मा की सिंगल बेंच ने 29 मई को याचिका खारिज करते हुए कहा था कि भगवान शिव की हमें रक्षा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे खुद हमारी रक्षा करते हैं. सिंगल बेंच ने कहा था कि अगर यमुना का किनारा और डूब क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त हो जाए तो भगवान शिव ज्यादा खुश होंगे.

सिंगल बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने मंदिर के भगवान को इस मामले में पक्षकार बनाकर मामले को एक दूसरा रंग देने की कोशिश की. सिंगल बेंच ने कहा था कि याचिकाकर्ता की दलील है कि मंदिर में रोजाना पूजा की जाती है. विशेष अवसरों पर खास आयोजन होते हैं, लेकिन इस सबसे ये सार्वजनिक महत्व का विषय नहीं हो सकते हैं.

याचिका प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति ने दायर किया था. मंदिर गीता कालोनी में यमुना किनारे ताज एन्क्लेव में स्थित है. याचिका में डीडीए की ओर से मंदिर को हटाने के आदेश को चुनौती दी गई थी. 

सिंगल बेंच ने कहा था कि ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया जिससे पता चले कि मंदिर सार्वजनिक उपयोग के लिए है और वो मंदिर समिति के निजी उपयोग के लिए नहीं है।

जय संतोषी मां फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा का निधन, शोक की लहर


जय संतोषी मां फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा का आज निधन हो गया.सतराम रोहरा का जन्म 16 जून, 1939 को सिंध (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। सतराम फिल्म निर्माता होने के साथ-साथ गायक भी थे। उन्होंने बतौर फिल्म निर्माता साल 1966 में रिलीज हुई 'शेरा डाकू' और 1973 में आई संजीव कुमार, मुमताज बेगम और एके हंगल की फिल्म 'रॉकी मेरा नाम' का निर्माण किया था।आज उनके निधन से शोक की लहर है.

 साल 1975 को जय माँ संतोषी माँ रिलीज हुई थी फिल्म जय संतोषी मां ने फिल्म पंडितों के सारे समीकरण ही बदल दिए थे । साल 1975 में कमाई करने के मामले में ये फिल्म शोले के बाद दूसरे नंबर पर रही। इसे बनाने वाले निर्माता सतराम रोहरा के निधन की खबर आते ही लोगों में इस फिल्म की चर्चाएं फिर शुरू हो गई हैं। चलिए आपको बताते हैं इस फिल्म का पूरा बाइस्कोप।

बंबई तब दादर के आगे बांद्रा और जुहू तक भी बमुश्किल ही आ पाया था और, अंधेरी तक आने में तो लोग दस बार सोचते थे। लेकिन, एक दिन लोगों ने देखा तो पाया कि बैलगाड़ियों की लंबी कतारें वसई विरार की तरफ से और मध्य मुंबई में कल्याण औऱ ठाणे की तरफ से आती ही चली जा रही हैं। लोगों को पता चला कि कोई फिल्म लगी है शहर में, नाम है, जय संतोषी मां। इसी फिल्म ने पहले शो में कमाए थे सिर्फ 56 रुपये, दूसरे में सिर्फ 64 रुपये, इवनिंग शो की कमाई रही मात्र 98 रुपये और नाइट शो का कलेक्शन बमुश्किल सौ रुपये छू पाया था। 

लेकिन, रिलीज के पहले सोमवार की सुबह से जो हलचल शुरू हुई तो महीनों तक फिर जहां-जहां जय संतोषी मां लगी थी वहां के सफाई करने वाले तक मालदार हो गए, शो के बीच उछाली गई रेजगारियां बटोर बटोर कर।

ये उन दिनों की बात है जब जोधपुर में मंडोर के पास संतोषी मां का एक मंदिर हुआ करता था। लोगों को पता भी नहीं था कि ऐसी कोई देवी पुराणों में हैं भी। खुद इस फिल्म में संतोषी मां का किरदार करने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा को नहीं पता था कि ऐसी कोई देवी हैं। साल 2006 में स्टार गोल्ड पर फिल्म जय संतोषी मां पहली बार दिखाई जाने वाली थी और फिल्म के प्रसारण से पहले चैनल वालों ने अनीता गुहा को खोज निकाला औऱ उनके खूब इंटरव्यू भी कराए। बांद्रा के उनके फ्लैट के सामने हालांकि किसी जमाने में लोगों का हुजूम उमड़ता था, उनके दर्शन करने के लिए। उन्होंने तब बताया भी था कि कैसे लोग अपने बच्चे उनकी गोद में आशीर्वाद पाने के लिए डाल दिया करते थे।

फिल्म की कहानी सत्यवती नाम की एक महिला की है जिसको उसके ससुराल वाले बहुत कष्ट देते हैं और फिर संतोषी मां की कृपा से उसके जीवन में सब ठीक हो जाता है। सत्यवती के पति बिरजू का रोल करने वाले यानी कि फिल्म के हीरो आशीष कुमार की मानें तो उन्होंने ही इस फिल्म का आइडिया फिल्म के प्रोड्यूसर सतराम रोहरा को दिया था। 

आशीष के बच्चे नहीं थे और तभी उनकी पत्नी ने संतोषी मां के सोलह शुक्रवार व्रत रखने शुरू किए। व्रत के बीच में ही आशीष की पत्नी गर्भवती हो गईं तो बाकी के व्रतों की कथाएं आशीष ने अपनी पत्नी को सुनाई।

अपने घर में बिटिया के जन्म के बाद आशीष ने ये बात सतराम के गुरु और फाइनेंसर सरस्वती गंगाराम को सुनाई जिन्होंने फिल्म शुरू करने के लिए 50 हजार रुपये दिए थे। बाद में फिल्म से उस समय के चर्चित फिल्म वितरक केदारनाथ अग्रवाल जुड़े और उन्होंने तब तक शूट हो चुकी फिल्म के अधिकार 11 लाख रुपये एडवांस देकर खरीद लिए। फिल्म कुल 12 लाख में बनी और इसने बॉक्स ऑफिस पर अब तक कमाए हैं करीब 25 करोड़ रुपये। ये अलग बात है कि फिल्म के हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर बनने के बाद भी न इसके वितरक के हाथ कुछ लगा और न ही इसके निर्माता के। यहां तक कि फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था।

फिल्म में संतोषी मां का रोल करने वाली अनीता गुहा रातोंरात स्टार बन गईं। इससे पहले वह सीता मैया के रोल तीन फिल्मों में कर चुकी थीं। वह फिल्म आराधना में राजेश खन्ना की मां भी बन चुकी थीं और फिर उनके जीवन में संतोषी मां का आशीर्वाद आ गया। इस पूरी फिल्म में जब तक उन्होंने शूटिंग की, हमेशा व्रत रखकर ही काम किया। इस बारे में तब अनीता ने बताया था कि पहले दिन की शूटिंग बहुत अफरातफरी में हुई। हम सब लोग सुबह से मेकअप कराकर रेडी थे लेकिन पहला शॉट काफी देर से हुआ। इस चक्कर में पहले ब्रेकफास्ट और फिर लंच मिस हो गया। शाम को इसका एहसास हुआ औऱ निर्देशक विजय शर्मा ने कुछ खाने को कहा तो मुझे लगा कि खाने लगी तो चेहरे का मेकअप फिर से कराना होगा तो मैंने कहा कि अब काम खत्म करके ही खाती हूं। 

तो पूरा दिन उस दिन बिना कुछ खाए पीये ही निकल गया। फिर मैंने सोचा कि हो सकता हो कि इसमें भी ईश्वर की कुछ इच्छा रही हो तो इसके बाद मैंने जितने दिन शूटिंग की, बिना कुछ खाए पीये ही शूटिंग की।

लेकिन, जैसा कि हर कालजयी किरदार करने वाले के साथ होता है वैसा ही अनीता गुहा के साथ भी हुआ, इस फिल्म के बाद उन्हें भी दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल की तरह धार्मिक रोल ही ऑफर होने लगे। जबकि वह जय संतोषी मां फिल्म से पहले राजेंद्र कुमार की फिल्म गूंज उठी शहनाई में फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर फीमेल का नॉमीनेशन जीत चुकी थीं। फिल्म जय संतोषी मां चली तो बस ईश्वर के ही चमत्कार से। फिल्म की कहानी अच्छी लिखी गई थी। गांव गरीब के संतोष की कहानी थी। उस समय के सामाजिक हालात से जूझ रहे आम आदमी को संतोष देने की कहानी थी। गरीब इसी बात में खुश हो जाता कि कोई ऐसी भी देवी हैं जो सिर्फ गुड़ चने का प्रसाद पाकर ही खुश हो जाती हैं।

फिल्म जय संतोषी मां शुरू होती है रक्षा बंधन के त्योहार से जहां भगवान गणेश के दोनों बेटे एक बहन की जिद करते हैं। भगवान गणेश और उनकी पत्नियों ऋद्धि व सिद्धि की इस संतान का नाम नारद रखते हैं, संतोषी। फिल्म इसके बाद देवलोक से सीधे मृत्युलोक आती है जहां सत्यवती मंदिर में मां संतोषी की आरती करते दिखती हैं। फिल्म की कहानी दोनों लोकों में समानांतर चलती रहती है। फिल्म को सबसे ज्यादा मदद मिली अपने संगीत से। कवि प्रदीप के लिखे गीतों को संगीतकार सी अर्जुन ने बहुत ही मौलिक और लोकगीतों के अनुरूप धुनें दीं। खुद कवि प्रदीप ने फिल्म में दो गाने गाए। 

मन्ना डे और महेंद्र कपूर की आवाजें फिल्म के किरदारों पर बिल्कुल फिट बैठीं और सोने पर सुहागा बनी उषा मंगेशकर की आवाज। फिल्म की हीरोइन कानन कौशल के लिए गाए उनके सारे गीत सुपरहिट रहे।

फिल्म जय संतोषी मां के सामाजिक-आर्थिक असर पर बाकायदा लोगों ने शोध पत्र लिखे हैं। इस फिल्म ने देवी संतोषी का इतना प्रचार भारत और विदेश में किया कि उनकी तस्वीरों और व्रत कथाओं का एक अलग से कारोबार विकसित हो गया। पूरे देश में जहां तहां संतोषी माता के मंदिर बने। लोग श्रद्धा पूर्वक उनकी पूजा करने लगे और इसी फिल्म ने पहली बार देश में लोगों को धर्म का कारोबार करने का चस्का भी लगाया। देश में भगवान का रास्ता बताने के नाम पर मंडली जमाने वाले तमाम बाबा खुद ही भगवान कहलाकर अपनी पूजा कराने लगे। फिल्म का ये दुरुपयोग शायद देवी संतोषी मां ने भी नहीं सोचा था। तभी तो फिल्म से जुड़े सभी लोगों के साथ कुछ न कुछ अनिष्ट होता चला गया।

फिल्म जय संतोषी मां में संतोषी माता बनीं अनीता गुहा को सफेद दाग की बीमारी हुई और इसके चलते उनका अपने घर से बाहर आना बाद के दिनों में काफी कम हो गया। पति माणिक दत्त का असामयिक निधन होने के बाद वह बहुत ही गुमनाम सी जिंदगी जीते हुए 2007 में दुनिया छोड़ गईं। कानन कौशल को भी फिल्म के बाद ज्यादा कोई खास मदद नहीं मिली। उन्होंने अपने करियर में 60 हिंदी और 16 गुजराती फिल्में की लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं बन सकी। फिल्म निर्माता सतराम रोहरा दिवालिया होने के बाद बहुत मुसीबत में रहे और अब इस दुनिया को अलविदा कह गए।

फिल्म के वितरक केदारनाथ अग्रवाल के पास भी फिल्म की कमाई की रकम नहीं पहुंची। उनके भाइयों पर आरोप लगा कि वे सारी रकम बीच में ही ले उड़े। बताते हैं कि उनको बाद में फालिज मार गया। फिल्म के हीरो आशीष कुमार और फिल्म वितरक केदारनाथ अग्रवाल के भागीदार संदीप सेठी के बीच फिल्म की कमाई को लेकर लंबा विवाद चला। 

आशीष ने फिल्म की कहानी पर नाटक बनाया कथा संतोषी मां की, ये नहीं चला। फिर फिल्म बनाई, सोलह शुक्रवार, ये भी फ्लॉप रही। जय संतोषी मां की कहानी पर इसी नाम से ही साल 2006 में भी एक फिल्म आई जिसमें हीरोइन थीं नुसरत भरुचा। ये फिल्म भी फ्लॉप रही।

नौसेना में फायरमैन, एमटीएस, कुक समेत 741 रिक्त पदों पर भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी, आवेदन 20 जुलाई से


नई दिल्ली:- इंडियन नेवी में सेवाएं देने के इच्छुक युवाओं के लिए बेहतरीन मौका है। भारतीय नौसेना की ओर से इंडियन नेवल सिविलियन एंट्रेंस टेस्ट (INCET-01/2024) के तहत कुल फायरमैन, एमटीएस, कुक समेत 741 रिक्त पदों पर भर्ती के लिए अधिसूचना जारी कर भर्ती का एलान किया गया है। 

अधिसूचना के मुताबिक इस भर्ती के लिए आवेदन प्रक्रिया 20 जुलाई 2024 से शुरू की जाएगी जो निर्धारित अंतिम तिथि 2 अगस्त 2024 तक जारी रहेगी।

योग्य एवं पात्र अभ्यर्थी इन डेट्स के बीच ऑनलाइन माध्यम से इंडियन नेवी की ऑफिशियल वेबसाइट joinindiannavy.gov.in पर जाकर आवेदन प्रक्रिया पूर्ण कर सकेंगे।

क्या है योग्यता

इस भर्ती में भाग लेने के लिए अभ्यर्थी का पदानुसार 10वीं के साथ आईटीआई/ संबंधित क्षेत्र में डिप्लोमा/ इंजीनियरिंग डिप्लोमा/ ग्रेजुएशन आदि उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। इसके साथ ही अभ्यर्थी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष से कम और अधिकतम आयु पदानुसार 25/ 27/ 30 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

आरक्षित श्रेणी से आने वाले उम्मीदवारों को नियमानुसार छूट दी जाएगी।इंडियन नेवी की ओर से इस भर्ती के माध्यम से कुल 741 रिक्त पदों पर नियुक्तियां की जाएंगी। पदानुसार भर्ती विवरण निम्नलिखित है -

चार्जमैन: 29 पद

साइंटिफिक असिस्टेंट: 4 पद

ड्राफ्ट्समैन (कस्ट्रक्शन): 2 पद

फायरमैन: 444 पद

फायर इंजन ड्राइवर: 58 पद

ट्रेड्समैन मेट: 161 पद

पेस्ट कंट्रोल वर्कर: 18 पद

कुक: 9 पद

मल्टी टास्किंग स्टाफ (MTS/ मिनिस्ट्रियल): 16 पद

एप्लीकेशन फीस

इस भर्ती में फॉर्म भरने के साथ ही जनरल, ओबीसी एवं ईडब्ल्यूएस श्रेणी के उम्मीदवारों को 295 रुपये का भुगतान करना होगा। फीस का भुगतान ऑनलाइन माध्यम से किया जा सकेगा। एससी, एसटी एवं महिला अभ्यर्थी इस भर्ती में शामिल होने के लिए निशुल्क एप्लीकेशन फॉर्म भर सकते हैं। भर्ती से जुड़ी विस्तृत डिटेल के लिए अभ्यर्थी एक बार ऑफिशियल नोटिफिकेशन का अवलोकन अवश्य कर लें।

मशीन से अपने आप निकलेगा गोलगप्पा.. ये ऑटोमैटिक तरीका सोशल मीडिया पर मचा रहा धूम

  

बेंगलुरु में गोलगप्पे की ऑटोमेटिक वेंडिंग मशीन इन दिनों चर्चा में है. सोशल मीडिया पर यह मशीन धूम मचा रही है. हाल ही में एक यूजर ने इंस्टाग्राम पर इसकी तस्वीर शेयर की है.हालांकि बेंगलुरु में इस तरह की वेंडिंग मशीनें और स्टॉल असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस स्टॉल के नाम ने लोगों का ध्यान खींचा है.

कई फ्लेवर वाले पानी

"WTF - What The Flavours" नाम के इस स्टॉल में एक वेंडिंग मशीन है जिसमें कई फ्लेवर वाले पानी के नल लगे हैं. यूजर का कहना है कि ये मशीन स्वच्छता और पसंद का फ्लेवर चुनने की सुविधा देती है. यूजर ने लिखा है कि "HSR 2050 में रह रहा है."

ऑटोमैटिक मशीनों पर शंका

कुछ लोगों को इस तरह की ऑटोमैटिक मशीनों पर शंका है. एक यूजर ने पूछा, "तो जो पानी पूरी का पानी बच जाता है, क्या उसे दोबारा इस्तेमाल किया जाता है या फेंक दिया जाता है?" वहीं दूसरे यूजर ने कहा, "बहुत ज्यादा मशीन जैसा लग रहा है, मेरी राय में ज़्यादा लुभावना नहीं है. अगर अच्छा डिज़ाइन किया जाए तो बेहतर हो सकता है..

लोग कर रहे कमेंट

प्रदीप नाम के एक अन्य यूजर ने कहा, "बिननीपेट के ईटीए मॉल में तो कम से कम पांच साल पहले ही ऑटोमैटिक पनी पूरी वेंडिंग मशीन थी. मुझे नहीं पता कि ये अभी तक इतना ज्यादा लोकप्रिय क्यों नहीं हुआ. चूंकि अब इसे 'एचएसआर का आविष्कार' माना जा रहा है, तो इसे और जगहों पर भी लगाया जा सकता है."

स्ट्रीट फूड पर उठ रहे सवाल

हाल ही में कर्नाटक में स्ट्रीट फूड, खासकर पानी पूरी को लेकर स्वच्छता को लेकर काफी सवाल उठे थे. खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा कराए गए सैंपल जांच में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए थे. 260 सैंपल में से 41 में कृत्रिम रंग और कैंसर पैदा करने वाले कार्सिनोजेनिक तत्व पाए गए थे. बाकी 18 सैंपल खाने के लायक नहीं थे. इन नतीजों ने शहरों में खूब खाए जाने वाले स्ट्रीट फूड की गुणवत्ता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।