मेरे पिता को विरासत में संपत्ति नहीं शहादत मिली थी, ये मोदी नहीं समझेंगे..', पीएम पर प्रियंका गांधी का बड़ा हमला
कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अपनी मां से संपत्ति नहीं, बल्कि शहादत विरासत में मिली थी। वंशवादी राजनीति और विरासत टैक्स पर प्रधानमंत्री की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि, "यह एक ऐसी भावना है जिसे नरेंद्र मोदी कभी नहीं समझ पाएंगे।" दरअसल, पीएम मोदी ने पिछले हफ्ते एक जनसभा में बताया था कि राजीव गांधी ने सत्ता में आने के बाद विरासत टैक्स को खत्म कर दिया था, ताकि उन्हें अपनी मां से विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स न लगे और पूरी संपत्ति उनके बच्चों को मिले।
इस पर गुरुवार को, मध्य प्रदेश के मुरैना में एक रैली में बोलते हुए, प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि, "जब मोदी जी मंच पर खड़े होते हैं और मेरे पिता को गद्दार कहते हैं, जब वह कहते हैं कि उन्होंने अपनी मां से विरासत लेने के लिए कानून बदल दिया। वह यह नहीं समझेंगे कि मेरे पिता को विरासत में कोई संपत्ति नहीं मिली, उन्हें केवल शहादत के विचार मिले। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, "यह एक ऐसी भावना है जिसे मोदी जी कभी नहीं समझेंगे।"
प्रियंका गांधी ने कहा कि, "19 साल की उम्र में, जब मैं अपने पिता के क्षत-विक्षत अवशेषों को घर लाइ, तो मैं इस देश से परेशान हो गई थी। मैंने सोचा, 'मैंने अपने पिता को भेजा था। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना आपका काम था। मैंने उन्हें आपकी देखभाल में रखी थी, लेकिन आपने मुझे उनके अवशेष राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर लौटा दिए।' उन्होंने कहा कि जब 2019 में पुलवामा में 40 सैनिक मारे गए, तो वह उत्तर प्रदेश में उनके कुछ परिवारों से मिलने गई थीं। वहां शहीदों के बच्चों ने उनसे कहा कि वे सेना में भर्ती होना चाहते हैं। प्रियंका ने कहा कि, "एक लड़की थी जिसका भाई वायु सेना में था। उसने कहा, 'दीदी मैं वायु सेना में शामिल होना चाहती हूं और पायलट बनना चाहती हूं। यह शहादत की भावना है। मोदी जी इसे कभी नहीं समझेंगे। मोदी जी इंदिरा जी जैसी शहीद के बारे में जो चाहें कहते हैं। उन्हें केवल वंशवाद की राजनीति दिखती है, उन्हें देशभक्ति, देश सेवा कभी नहीं दिखती। वह कभी इसे नहीं समझेंगे।"
बता दें कि, पिछले हफ्ते मुरैना में एक रैली में पीएम मोदी ने कहा था कि पहले कानून के अनुसार, मृत व्यक्ति की आधी संपत्ति सरकार के पास चली जाती थी। उन्होंने धन पुनर्वितरण और विरासत टैक्स के कांग्रेस के वादों पर हमला करते हुए कहा था कि, "तब ऐसी चर्चा थी कि इंदिरा जी ने अपनी संपत्ति अपने बेटे राजीव गांधी के नाम पर कर दी थी। इंदिरा जी की मृत्यु के बाद सरकार को मिलने वाले पैसे को बचाने के लिए, तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने विरासत कर को समाप्त कर दिया था।" उन्होंने कहा, संपत्ति शुल्क समाप्त करने से लाभ के बाद, कांग्रेस अब उसे को वापस लाना चाहती है।
दरअसल, ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने एक बयान में कहा था कि भारत में विरासत टैक्स लगना चाहिए, जिसमे इंसान के मरने के बाद उसकी 55 फीसद संपत्ति सरकार के पास चली जाती है और उसके बच्चों को बस 45 फीसद ही मिलता है। इसके बाद कांग्रेस पर सवाल उठने लगे थे, लोग कहने लगे थे कि ऐसे तो लोग अपनी संपत्ति उजागर ही नहीं करेंगे, छिपाने लगेंगे, इंसान अपने बाल-बच्चों के लिए जीवनभर कमाकर जमापूंजी बनाता है, उसे अगर सरकार छीन लेगी, तो वो क्यों ही बचाएगा ? या अगर बचाएगा भी तो उसे छिपा देगा, सरकार की नज़र में नहीं आने देगा, इससे काला बाज़ारी भी बढ़ेगी।
क्या भारत में कभी लगा था विरासत टैक्स ?
बता दें कि, 'विरासत कर' भारत के लिए नया नहीं है। यह 40 साल पहले तक प्रभावी था, जब 1985 में राजीव गांधी सरकार ने इंदिरा गांधी की संपत्ति को अपने पास ही रखने के लिए इस कानून को ख़त्म कर दिया था। पहले, संपत्ति शुल्क अधिनियम 1953 के तहत, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर विरासत कर 85% तक जा सकता था। दरें तय की गईं थीं, 20 लाख रुपये से अधिक की संपत्ति पर 85% टैक्स लगाया गया था। हालाँकि, ये कानून मंशा के अनुरूप काम नहीं कर सका। नागरिकों को दो बार संपत्ति कर देना पड़ता था, एक बार अपने जीवनकाल के दौरान (जिसे 2016 में मोदी सरकार ने रोक दिया था) और फिर उनकी मृत्यु के बाद। इसके अतिरिक्त, इस कर के माध्यम से धन जुटाने की कांग्रेस की योजना सफल नहीं रही, क्योंकि बेनामी संपत्ति और संपत्ति छुपाने के मामले बढ़ गए। लोग टैक्स देने से बचने के लिए अपनी संपत्ति छुपाने लगे और काला धन बढ़ने लगा, जिससे गुंडागर्दी भी बढ़ी और रंगदारी भी। जिसने संपत्ति छुपाई है, उससे गुंडे खुलकर हफ्ता मांग सकते थे और वो पुलिस में शिकायत भी नहीं कर सकता था, वरना खुद फंसता।
दिलचस्प बात यह है कि संपत्ति शुल्क अधिनियम को ठीक उसी समय निरस्त किया गया था, जब पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की संपत्ति उनके पोते-पोतियों को हस्तांतरित की जानी थी। राजीव गांधी सरकार ने इंदिरा गांधी की लगभग 21.5 लाख रुपये की संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों को हस्तांतरित करने से ठीक पहले अप्रैल 1985 में इस अधिनियम को समाप्त कर दिया। यह संपत्ति, जिसकी कीमत अब लगभग 4.2 करोड़ रुपये है, 2 मई 1985 को स्थानांतरित कर दी गई थी।
यूनाइटेड प्रेस इंटरनेशनल (UPI) की 2 मई, 1985 की रिपोर्ट के अनुसार, 1981 में हस्ताक्षरित इंदिरा गांधी की वसीयत में उनके बेटे राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी को वसीयत के निष्पादक के रूप में नामित किया गया था। हालाँकि, बाद में उन्होंने उन्हें हटा दिया और अपनी बहू मेनका गांधी के लिए कुछ नहीं छोड़ा। पूरी संपत्ति उनके तीन पोते-पोतियों के लिए छोड़ दी गई थी। वसीयत में महरौली में निर्माणाधीन एक फार्म और एक फार्महाउस शामिल है, जिसकी कीमत 98,000 डॉलर (आज के संदर्भ में 81,72,171 रुपये), इंदिरा गांधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखी गई पुस्तकों के कॉपीराइट, साथ ही नकदी, स्टॉक और बांड लगभग 75,000 डॉलर के हैं। इंदिरा गांधी की प्राचीन वस्तुएं और निजी आभूषण, जिनकी कीमत लगभग 2500 डॉलर थी, प्रियंका गांधी के लिए छोड़ दिए गए।
ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे समय में जब 20 लाख रुपये से अधिक की 85% संपत्ति सरकार के पास चली जाती थी, राजीव गांधी की सरकार के दौरान इस नियम को उलट दिया गया, जब उनके बच्चों को उनकी दादी की विरासत मिलनी थी। यानी, इंदिरा गांधी की संपत्ति पर वो कानून लागू नहीं हो सका, जो 40 सालों तक तमाम भारतीयों पर लागू होता रहा और उनकी सम्पत्तियाँ कब्जाई जाती रहीं।
May 03 2024, 14:44