जन्मोत्सव पर राम लला का सूर्य तिलक आज, रामनवमी पर दिखेगा अद्भुत नजारा
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राम मंदिर बनने के बाद अयोध्या में पहली बार रामनवमी मनाई जा रही है। अयोध्या नगरी में रामनवमी की धूम है। देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। ऐसे में दर्शन की सुविधा को लेकर खास व्यवस्था की गई है। पूरे मंदिर को फूलों से सजाया गया है। साथ ही दर्शन का समय भी बढ़ाया गया है। वहीं आज सबकी नजर सूर्य तिलक पर बनी हुई है। बुधवार को रामनवमी के दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें रामलला के मस्तक पर पड़ेंगी और दर्पण व लेंस से जुड़े एक विस्तृत तंत्र द्वारा उनका 'सूर्य तिलक' संभव हो सकेगा।
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दोपहर में 12 बजकर 16 मिनट पर सूर्य तिलक होगा, जो कि करीब चार मिनट तक रहेगा।असल में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ एस के पाणिग्रही ने बताया कि ''सूर्य तिलक परियोजना का मूल उद्देश्य रामनवमी के दिन श्री राम की मूर्ति के मस्तक पर एक तिलक लगाना है। परियोजना के तहत, श्री रामनवमी के दिन दोपहर के समय भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी लाई जाएगी।
सूर्य तिलक के लिए आईआईटी रुड़की सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक खास ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम तैयार किया है। इसमें मंदिर के सबसे ऊपरी तल (तीसरे तल) पर लगे दर्पण पर ठीक दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें पडे़ंगी। दर्पण से 90 डिग्री पर परावर्तित होकर ये किरणे एक पीतल के पाइप में जाएंगी। पाइप के छोर पर एक दूसरा दर्पण लगा है। इस दर्पण से सूर्य किरणें एक बार फिर से परावर्तित होंगी और पीतल की पाइप के साथ 90 डिग्री पर मुड़ जाएंगी।
दूसरी बार परावर्तित होने के बाद सूर्य किरणें लंबवत दिशा में नीचे की ओर चलेंगी। किरणों के इस रास्ते में एक के बाद एक तीन लेंस पड़ेंगे, जिनसे इनकी तीव्रता और बढ़ जाएगी। लंबवत पाइप जाती है। लंबवत पाइप के दूसरे छोर पर एक और दर्पण लगा है। बढ़ी हुई तीव्रता के साथ किरणें इस दर्पण पर पड़ेंगी और पुन: 90 डिग्री पर मुड़ जाएंगी। 90 डिग्री पर मुड़ी ये किरणें सीधे राम लला के मस्तक पर पड़ेंगी। इस तरह से राम लला का सूर्य तिलक पूरा होगा।







पिछले 3 दशक से बीजेपी का दबदबा जातिगत समीकरण नहीं करता काम अटल के नाम पर टंडन के सिर सजा “ताज” 71 फीसदी से अधिक हिंदू आबादी 26 फीसदी से अधिक मुसलमानों मतदाता ओबीसी वोटर्स की संख्या 28 फीसदी आबादी देख जुगत लगा रहे राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है। कभी इसे पूर्व का गोल्डन सिटी तो कभी शिराज-ए-हिंद या फिर भारत का कांस्टेंटिनोपल कहा गया। लखनऊ न सिर्फ प्रदेश की राजनीति का केंद्र रहा है बल्कि एक समय यह क्षेत्र देश की सबसे हाई प्रोफाइल संसदीय सीट हुआ करती थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह संसदीय क्षेत्र रहा है और वह यहां से लगातार 5 बार सांसद रहे हैं। वाजपेयी के अलावा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित को लखनऊ संसदीय सीट से पहली सांसद होने का गौरव हासिल है। गोमती नदी के किनारे बसे लखनऊ शहर को अपने अदब, दशहरी आम और चिकन की कढ़ाई के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण के लिए यह शहर बसाया था। लखनऊ लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें लखनऊ ईस्ट, लखनऊ वेस्ट, लखनऊ नॉर्थ, लखनऊ कैंट और लखनऊ सेंट्रल सीट शामिल हैं। पिछले 3 दशक से बीजेपी की दबदबा है और यहां पर किसी तरह का जातिगत समीकरण काम नहीं करता है। अटल बिहारी वाजपेयी की यहां पर ऐसी लोकप्रियता था कि 2009 के चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी लालजी टंडन ने वाजपेयी के नाम पर वोट मांगे थे और उनकी खड़ाऊं लेकर प्रचार किया था। इसका फायदा उन्हें मिला और कड़े मुकाबले में सांसद चुने गए थे। वैसे, लखनऊ के वोटरों की बात करें तो यहां कुल वोटर 35 लाख 73 हजार, 944 हैं, जिनमें पुरूष वोटर 19 लाख, 22 हजार, 184 और महिला वोटर 16 लाख, 51 हजार, 626 है, जबकि थर्ड जेंडर के वोटरों की संख्या 134 है। इस बार लखनऊ में 51,417 नए वोटर जुड़े हैं इनमें 38 हजार युवा वोटर हैं जो पहली बार अपने मतदान का प्रयोग करेंगे। 2011 की जनगणना के मुताबिक, लखनऊ में 71 फीसदी से अधिक हिंदू आबादी रहती है तो 26 फीसदी से अधिक आबादी मुसलमान समाज की है। यहां पर करीब 14 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है, तो अनुसूचित जनजाति करीब 0.2 फीसदी ही है। ओबीसी वोटर्स की संख्या 28 फीसदी है। इसके अलावा लखनऊ लोकसभा में करीब 18 प्रतिशत मतदाता राजपूत और ब्राह्मण हैं। सभी जातियों की आबादी को देख राजनीतिक दल मतदाताओं को साधने के लिए हर जुगत लगा रहे हैं। जातियों को लेकर लाख जुगत लगाई जाए, मोदी फैक्टर, राम मंदिर निर्माण और बीजेपी की सेफ सीट होने के कारण लखनऊ सीट किसी को किसी भी हालत में जाने वाली नहीं है। कांग्रेस का यूपी में कोई जनाधार नहीं है, इसलिए कांग्रेस का लखनऊ में कोई असर नहीं है। हालांकि सपा मजबूत स्थिति में जरूर है। सपा का एक तगड़ा वोट बैंक भी है। उसके बावजूद सपा जीत दर्ज करने की स्थिति में नहीं है।
Apr 17 2024, 10:52
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