/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs1/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs4/1630055818836552.png/home/streetbuzz1/public_html/testnewsapp/system/../storage/avatars/thumbs5/1630055818836552.png StreetBuzz जगद्गुरु रामभद्राचार्य की तबीयत बिगड़ी, अस्पताल में हुए भर्ती, जानिए, अभी क्या है अपडेट India
जगद्गुरु रामभद्राचार्य की तबीयत बिगड़ी, अस्पताल में हुए भर्ती, जानिए, अभी क्या है अपडेट

जगद्गुरु रामभद्राचार्य की शुक्रवार को अचानक तबियत बिगड़ गई। स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें आगरा के पुष्पांजलि हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। रामभद्राचार्य ने सीने में दर्द होने की शिकायत की थी। तत्पश्चात, उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। आगरा हरी पर्वत के देहली गेट स्थित पुष्पांजलि हॉस्पिटल में धर्मगुरु को भर्ती कराया गया है। हाथरस जाते समय उनकी तबीयत बिगड़ गई।  

जगद्गुरु रामभद्राचार्य हाल में हाथरस में रामकथा कह रहे हैं। बृहस्पतिवार को उनकी तबियत बिगड़ी थी, फिर भी वे कथा बोलते रहे थे। अब वह हॉस्पिटल में भर्ती हैं, जहां उनका इलाज चल रहा है। वहीं, हॉस्पिटल के बाहर जगदगुरु के अनुयायी एवं शिष्य जमा होने लगे हैं। हालांकि उनकी मौजूदा स्थिति को लेकर अभी तक चिकत्सालय प्रशासन ने कोई हेल्थ बुलेटिन नहीं जारी किया है। शाम तक इस सिलसिले में कोई सूचना सामने आ सकती है।

वहीं, उनकी अचानक खराब हुई सेहत की सूचना कई संतों तक पहुंची तो वे बेहद चिंतित हो गए। उनके मौजूदा हालात को लेकर संत जानकारी जुटा रहे हैं। वहीं, हॉस्पिटल के बाहर उनके शिष्य जुटने लगे हैं। वहीं, हॉस्पिटल में चिकित्सकों की टीम उनके उपचार में जुटी हुई है। शाम तक उनकी सेहत को लेकर स्थिति स्पष्ट हो सकती है।

रजनीकांत और कमल हसन के बाद राजनीति में उतरा दक्षिण का एक और सुपरस्टार, लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी का ऐलान

#superstarthalapathyvijayenterspolitics

साउथ फिल्मों के सुपरस्टार थलापति विजय अपनी दमदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं। सफल फिल्मी करियर के बीच थलापति विजय ने राजनीतिक गलियारे की ओर कदम बढ़ाया है। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले साउथ के एक और फिल्मी हस्ती ने राजनीति में एंट्री ली है। थलापति विजय ने शुक्रवार को अपनी पार्टी का ऐलान किया, जिसका नाम है- ‘तमिझगा वेत्रि कषगम’।तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थालापति विजय ने कहा कि उनकी पार्टी का चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन हो गया है और उनकी पार्टी 2026 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी।

2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे

विजय ने कहा है कि वे 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।तमिल एक्टर ने यह भी कहा है कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में किसी दल का समर्थन नहीं करेगी। वह पार्टी के अध्यक्ष हैं और पार्टी सीधे 2026 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी।एक आधिकारिक बयान में एक्टर ने कहा कि पार्टी का पंजीकरण चुनाव आयोग में करा दिया गया है। मैं यह बताना चाहता हूं कि पार्टी की कार्यकारी समिति ने 2024 का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है और न ही किसी पार्टी को सपोर्ट किया जाएगा। एक्टर से नेता बने विजय ने कहा कि पार्टी का उद्देश्य 2026 का तमिलनाडु विधानसभा चुनाव लड़कर जीतना है। हम जनता को राजनीतिक परिवर्तन देना चाहते हैं।

राजनीति पेशा नहीं, बल्कि जनसेवा है-थलापति

एक्टर विजय ने एक बयान में कहा कि राजनीति कोई पेशा नहीं, बल्कि ‘पवित्र जनसेवा’ है। ‘तमिझागा वेत्री कषगम’ का शाब्दिक अर्थक ‘तमिलनाडु विजय पार्टी’ है। विजय का कहना है कि वह जनसेवा की राजनीति में खुद को झोंक देंगे। उन्होंने कहा कि मैं इसे तमिलनाडु के लोगों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं।

साउन के इन सितारों का सफल सियासी सफर

साउथ के फिल्मी सितारों का राजनीति में आने का चलन काफी पुराना है। साउथ इंडस्ट्री में चलन रहा है कि एक्टर्स, सफल अभिनय करियर के बाद राजनीति में एंट्री करते हैं। थलापति विजय से काफी पहले एमजी रामचंद्रन, जयललिता, एनटीआर, रजनीकांत, कमल हासन, चिरंजीवी, दिव्या स्पंदन जैसी हस्तियां राजनीति में उतर चुकी हैं।कई नामी सितारों ने अपनी पार्टी भी बनाई।एनटीआर ने भी एक्टिंग से ही अपने करियर की शुरुआत की। फैंस के दिलों की धड़कन बने और फिर राजनीति में भी सफलता हासिल की। एनटीआर नाम से मशहूर एनटी रामाराव ने तेलुगू देशम पार्टी की स्थापना की थी। वह सात साल तक मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा अन्नादुराई ने भी अभिनय के बाद राजनीतिक पार्टी बनाई थी। वह तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री बने थे। तमिल फिल्म जगत में वीएन जानकी के नाम से मशहूर, अभिनेत्री जानकी रामाचंद्रन भी राजनीति में उतरीं और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। वह अपने पति और मुख्यमंत्री एमजी रामाचंद्रन की मौत के बाद सीएम बनी थीं। कमल हासन ने फरवरी 2018 में राजनीतिक पार्टी मक्कल नीधि मय्यम पार्टी बनाई थी। तेलुगु सुपरस्टार चिरंजीवी ने 2008 में प्रजा राज्यम पार्टी नाम से अपनी पर्टी बनाई। 2009 के विधानसभा चुनाव में इस पार्टी को अठारह सीटों पर जीत मिली। रजनीकांत ने दिसंबर 2017 में अपनी पार्टी रजनी मंदरम की घोषणा की थी। इतना ही नहीं चिरंजीवी के भाई पवन कल्याण भी अपनी पार्टी बनाकर राजनीति में जोर-शोर से लगे हुए हैं।

लोकसभा चुनाव में एक सांसद को छोड़कर बाकी सभी का टिकट काटने जा रही भाजपा: अखिलेश यादव

लखनऊ । समाजवादी पार्टी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपी विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले पत्रकारों से बातचीत में कहा कि भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 में एक सांसद को छोड़कर सबका टिकट काटने जा रही है और उनकी भी सीट बदल दी जाएगी। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मोदी को छोड़कर सभी का टिकट काटने की बात कही है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि हो सकता है कि पीएम मोदी की भी सीट बदल दी जाए। पीएम मोदी अभी वाराणसी से सांसद हैं।

अखिलेश यादव ने कहा कि लोकसभा चुनाव में पीडीए (पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक) ही एनडीए को हराएगा। भाजपा सरकार में युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा बेरोजगारी और महंगाई कम नहीं कर पाई है। किसानों से किए गए उनके सभी वादे अधूरे हैं।भाजपा ने अपने राज में किसानों को सबसे ज्यादा दुखी किया है।

 उन्होंने कहा कि पीडीए में 90 प्रतिशत वो लोग शामिल हैं जो कि भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त हैं। सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 16 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। सपा इंडिया गठबंधन में शामिल है और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। हालांकि, सपा द्वारा कांग्रेस को विश्वास में लिए बिना प्रत्याशियों की घोषणा करने पर कांग्रेस ने नाराजगी जताई है।

क्या कांग्रेस को लगने वाला है एक और झटका? प्रमोद कृष्णम ने पीएम मोदी से की मुलाकात, चर्चाएं हुई तेज

#congress_leader_pramod_krishnam_met_pm_modi

कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम एक ऐसा नाम है जो अपनी ही पार्टी की नीतियों और वरिष्ठ नेताओं की आलोचना सरेआम करने से नहीं चूकते। अब अगर ऐसे नेता की तस्वीर प्रधानमंत्री मोदी के साथ सामने आ जाए, तो लोगों की पहली प्रतिक्रिया क्या होगी ये बताने की जरूरत नहीं। दरअसल प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की है। इस मुलाकात की तस्वीर सामने आते ही दोनों नेताओं की नजदीकियां बढ़ने की अटकलें लगनी शुरू हो गई है।

दरअसल, कांग्रेस नेता और कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। प्रधानमंत्री को श्री कल्कि धाम के शिलान्यास के लिए निमंत्रण पत्र दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी न्योते को सहर्ष स्वीकार करते हुए प्रमोद कृष्णम का धन्यवाद किया है। मोदी ने कहा कि आस्था और भक्ति से जुड़े इस पावन अवसर का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।  

आचार्य प्रमोद ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर पीएम के साथ निमंत्रण देते हुए कि तस्वीर भी साझा की है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रमोद कृष्णम ने अपने एक्स हैंडल पर पीएम संग तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि 19 फरवरी को आयोजित श्री कल्कि धाम के शिलान्यास समारोह में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री,आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को आमंत्रित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मेरे इस पवित्र भाव को स्वीकार करने के लिये माननीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार एवं साधुवाद।

प्रधानमंत्री मोदी ने उस ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि आस्था और भक्ति से जुड़े इस पावन अवसर का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। निमंत्रण के लिए आपका हृदय से आभार आचार्य प्रमोद जी। पीएम के इस ट्वीट पर आचार्य प्रमोद ने दोबारा ट्वीट करते हुए लिखा कि श्री हरि विष्णु के दशम और अंतिम अवतार भगवान श्री कल्कि नारायण की अवतरण स्थली संभल की पावन धरा पर आपका स्वागत है प्रभु।

प्रमोद कृष्णम और पीएम मोदी के बीच ट्विटर संवाद के बाद राजनीतिक हलको में चर्चा तेज हो गई है। इस मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर एक लेटर वायरल होने लगा, जिसमें कहा गया कि कांग्रेस ने उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया। हालांकि कांग्रेस की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया।

दरअसल, पिछले कुछ समय से वह कांग्रेस नेतृत्व के कुछ फैसलों की आलोचना कर रहे हैं। कृष्णम ने 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेताओं के भाग नहीं लेने के फैसले की भी आलोचना की थी। यही नहीं, कांग्रेस के इस सीनियर नेता ने राम मंदिर के सफल प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद भी पीएम मोदी की तारीफ कर चुके हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन छोड़ने पर भी राहुल गांधी की “क्लास” लगाई थी।

क्या कांग्रेस को लगने वाला है एक और झटका? प्रमोद कृष्णम ने पीएम मोदी से की मुलाकात, चर्चाएं हुईं तेज

#congress_leader_pramod_krishnam_met_pm_modi

कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम एक ऐसा नाम है जो अपनी ही पार्टी की नीतियों और वरिष्ठ नेताओं की आलोचना सरेआम करने से नहीं चूकते। अब अगर ऐसे नेता की तस्वीर प्रधानमंत्री मोदी के साथ सामने आ जाए, तो लोगों की पहली प्रतिक्रिया क्या होगी ये बताने की जरूरत नहीं। दरअसल प्रियंका गांधी के करीबी माने जाने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की है। इस मुलाकात की तस्वीर सामने आते ही दोनों नेताओं की नजदीकियां बढ़ने की अटकलें लगनी शुरू हो गई है।

दरअसल, कांग्रेस नेता और कल्कि पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है। प्रधानमंत्री को श्री कल्कि धाम के शिलान्यास के लिए निमंत्रण पत्र दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी न्योते को सहर्ष स्वीकार करते हुए प्रमोद कृष्णम का धन्यवाद किया है। मोदी ने कहा कि आस्था और भक्ति से जुड़े इस पावन अवसर का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।  

आचार्य प्रमोद ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर पीएम के साथ निमंत्रण देते हुए कि तस्वीर भी साझा की है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रमोद कृष्णम ने अपने एक्स हैंडल पर पीएम संग तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि 19 फरवरी को आयोजित श्री कल्कि धाम के शिलान्यास समारोह में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री,आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को आमंत्रित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मेरे इस पवित्र भाव को स्वीकार करने के लिये माननीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार एवं साधुवाद।

प्रधानमंत्री मोदी ने उस ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा कि आस्था और भक्ति से जुड़े इस पावन अवसर का हिस्सा बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। निमंत्रण के लिए आपका हृदय से आभार आचार्य प्रमोद जी। पीएम के इस ट्वीट पर आचार्य प्रमोद ने दोबारा ट्वीट करते हुए लिखा कि श्री हरि विष्णु के दशम और अंतिम अवतार भगवान श्री कल्कि नारायण की अवतरण स्थली संभल की पावन धरा पर आपका स्वागत है प्रभु।

प्रमोद कृष्णम और पीएम मोदी के बीच ट्विटर संवाद के बाद राजनीतिक हलको में चर्चा तेज हो गई है। इस मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर एक लेटर वायरल होने लगा, जिसमें कहा गया कि कांग्रेस ने उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निष्कासित कर दिया। हालांकि कांग्रेस की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया।

दरअसल, पिछले कुछ समय से वह कांग्रेस नेतृत्व के कुछ फैसलों की आलोचना कर रहे हैं। कृष्णम ने 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेताओं के भाग नहीं लेने के फैसले की भी आलोचना की थी। यही नहीं, कांग्रेस के इस सीनियर नेता ने राम मंदिर के सफल प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद भी पीएम मोदी की तारीफ कर चुके हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन छोड़ने पर भी राहुल गांधी की “क्लास” लगाई थी।

ख़त्म होगा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का 'अल्पसंख्यक' दर्जा, SC/ST को मिलेगा आरक्षण ? सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, पढ़िए, डिटेल में खबर

 अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की अल्पसंख्यक स्थिति के जटिल मामले से निपटने में, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उल्लेख किया कि AMU अधिनियम में 1981 का संशोधन, जिसने इस संसथान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया था, वो केवल आंशिक रूप से इस मुद्दे को संबोधित करता है। संशोधन ने संस्था को 1951 से पहले की स्थिति में पूरी तरह से बहाल नहीं किया था। जबकि AMU अधिनियम, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को शामिल करने की बात करता है, 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक निर्देशों को समाप्त करता है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सात न्यायाधीशों की एक टीम ने अभी तक एक कठिन समस्या पर निर्णय नहीं लिया है। इस मामले ने संसद की कानून बनाने की क्षमता और जटिल कानूनी मुद्दों को समझने में न्यायपालिका की कुशलता दोनों का परीक्षण किया है। समस्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बारे में है, जिसकी शुरुआत 1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में हुई थी, जिसकी स्थापना सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के महत्वपूर्ण सदस्यों ने की थी। 1920 में ब्रिटिश राज के दौरान यह एक विश्वविद्यालय में बदल गया। जस्टिस चंद्रचूड़ और सुप्रीम कोर्ट के छह अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले आठ दिनों तक तीखी बहस सुनी।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दलीलें बंद करते हुए कहा कि, "एक बात जो हमें चिंतित कर रही है वह यह है कि 1981 का संशोधन उस स्थिति को बहाल नहीं करता है जो 1951 से पहले थी। दूसरे शब्दों में, 1981 का संशोधन आधे-अधूरे मन से काम करता है। मैं समझ सकता हूं कि अगर 1981 के संशोधन में कहा गया था... ठीक है, हम 1920 के मूल क़ानून पर वापस जा रहे हैं, इस (संस्था) को पूर्ण अल्पसंख्यक चरित्र प्रदान करते हैं।"

दरअसल, भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने पिछले हफ्ते AMU अधिनियम में 1981 के संशोधन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और जोर देकर कहा था कि अदालत को 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के अनुसार चलना चाहिए। तब यह माना गया था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है। गुरुवार को बहस के दौरान पीठ ने कहा कि उसे यह देखना होगा कि 1981 के संशोधन ने क्या हुआ और क्या इसने संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति बहाल कर दी। प्रतिद्वंद्वी पक्षों की ओर से बहस करने के लिए कई शीर्ष वकील पीठ के समक्ष उपस्थित हुए।

अनुभवी वकील और कांग्रेस के पूर्व नेता कपिल सिब्बल सहित संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देने के पक्ष में विचार रखने वालों ने तर्क दिया कि केवल यह तथ्य कि 180 सदस्यीय गवर्निंग काउंसिल में से केवल 37 मुस्लिम हैं, मुस्लिम अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में इसकी साख पर कोई असर नहीं पड़ता है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जैसे अन्य लोगों ने तर्क दिया कि एक विश्वविद्यालय को केंद्र से भारी धन मिलता है और जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, वह किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय से संबंधित होने का दावा नहीं कर सकता है। 

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि एक बार जब मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज ने 1951 में AMU अधिनियम में संशोधन के बाद खुद को एक विश्वविद्यालय में बदल लिया और केंद्र सरकार से धन प्राप्त करना शुरू कर दिया, तो संस्था ने अपने अल्पसंख्यक चरित्र को त्याग दिया। AMU को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध करने वाले एक वकील ने यहां तक दावा किया कि उसे 2019 और 2023 के बीच केंद्र सरकार से 5,000 करोड़ रुपये से अधिक मिले, जो केंद्रीय विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय को मिलने वाला लगभग दोगुना है।

कुछ लोगों ने तर्क दिया कि मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली सदस्य, जिन्होंने मुस्लिमों के बीच शिक्षा को आगे बढ़ाने पर केंद्रित एक विश्वविद्यालय के रूप में संस्थान की स्थापना के लिए ब्रिटिश सरकार के साथ काम किया, वे खुद को अविभाजित भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में नहीं देखते थे। उन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया, वे पाकिस्तान चाहते थे। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उन पर पलटवार करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30, जो शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने के लिए धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार से संबंधित है, AMU पर लागू होता है।

सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 30 उन्हें प्रशासन का अधिकार देता है। यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि प्रशासन उसके, मुस्लिम या ईसाई हाथों में होना चाहिए। अनुच्छेद 30 का सार अपनी पसंद के अनुसार प्रशासन चुनने का अधिकार है। उन्होंने एएमयू ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हुए इस बिंदु पर जोर दिया, जो संस्थान की अल्पसंख्यक स्थिति का समर्थन करता है। सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि, यदि आप देश में किसी भी अल्पसंख्यक संस्थान को देखें, तो आप पाएंगे कि जरूरी नहीं कि उनका संचालन उस अल्पसंख्यक सदस्यों द्वारा किया जाता हो। इसका आकलन करने के लिए गलत मानदंडों का उपयोग करने से गलत निष्कर्ष निकलेंगे। उन्होंने यह बात पीठ के उस सवाल के जवाब में कही कि एक अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय की गवर्निंग काउंसिल में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों का बहुमत क्यों होना चाहिए।

गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ AMU ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी। एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद पिछले कई दशकों से कानूनी चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। शीर्ष अदालत ने 12 फरवरी, 2019 को विवादास्पद मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था। ऐसा ही एक संदर्भ 1981 में भी दिया गया था। 

केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले के खिलाफ अपील की, जिसने AMU अधिनियम में 1981 के संशोधन को रद्द कर दिया था। यूनिवर्सिटी ने इसके खिलाफ अलग से याचिका भी दायर की थी। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह पूर्ववर्ती UPA सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी। इसने बाशा मामले में शीर्ष अदालत के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। दरअसल, AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के कारण वहां SC/ST और OBC वर्ग के छात्रों को आरक्षण नहीं मिलता है। भाजपा सरकार वो दिलाना चाहती है, इसलिए उसने यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ अपील दायर करते हुए कहा है कि, जब कोई यूनिवर्सिटी केंद्र से पैसा लेती है, तो वो केंद्रीय यूनिवर्सिटी हो जाती है, फिर वो अल्पसंख्यक नहीं रह जाती, वो पूरे देश के लिए होती है, किसी एक समुदाय के लिए नहीं।

*अग्निवीर योजना में शामिल होने के इच्छुक युवाओं को 360 घंटे का मुफ्त प्रशिक्षण देगी एमपी सरकार, सीएम मोहन यादव ने की घोषणा*

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा है कि राज्य सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई अग्निवीर योजना में शामिल होने के इच्छुक युवाओं को 360 घंटे का मुफ्त प्रशिक्षण प्रदान करेगी। सीएम मोहन यादव ने एक फरवरी को मुरैना जिले में राज्य स्तरीय रोजगार दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह ऐलान किया है।  

उन्होंने कहा कि, “पीएम मोदी द्वारा शुरू की गई अग्निवीर योजना में शामिल होने के इच्छुक युवाओं को एक बैच में 360 घंटे का मुफ्त प्रशिक्षण मिलेगा। युवाओं को गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान और सामान्य अध्ययन जैसे विषयों में कोचिंग दी जाएगी। इससे युवाओं को अग्निवीर योजना में चयन में मदद मिलेगी।” पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना नदी जोड़ो परियोजना का जिक्र करते हुए सीएम मोहन यादव ने कहा कि नदियों को जोड़कर गांवों के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने के लिए यह योजना शुरू की गई थी। इस परियोजना का लाभ मध्य प्रदेश और राजस्थान को भी मिलना था, लेकिन पिछली सरकारों ने इसे लागू नहीं किया। 

उन्होंने कहा कि, पीएम मोदी के नेतृत्व में मध्य प्रदेश और राजस्थान द्वारा संयुक्त रूप से पार्वती, काली सिंध और चंबल नदियों को जोड़ने का एक बड़ा अभियान शुरू किया गया है। इस परियोजना के तहत राज्य के 12 और राजस्थान के 13 जिलों का विकास किया जाएगा। किसानों को पीने और सिंचाई का पानी उपलब्ध होगा। इससे क्षेत्र में विकास और समृद्धि आएगी। मोहन यादव ने आगे कहा कि किसानों और मजदूरों को उनका वाजिब हक मिलेगा। मुरैना में बंद पड़ी चीनी मिल को लेकर उन्होंने कहा कि किसानों का 56 करोड़ रुपये का बकाया उन्हें वापस दिलाया जाएगा। इसी प्रकार जेसी मिल्स ग्वालियर भी श्रमिकों का बकाया सुनिश्चित करेगी। किसानों और मजदूरों की हर कीमत पर रक्षा की जायेगी। 

सीएम मोहन यादव ने प्रतीकात्मक रूप से 7 लाख से अधिक युवाओं को लगभग 5151.18 करोड़ रुपये की ऋण राशि के पत्र भी प्रदान किये। इसके अलावा, उन्होंने 45.59 लाख महिलाओं के खातों में उज्ज्वला योजना और गैर-उज्ज्वला योजना के तहत सितंबर और अक्टूबर महीने के लिए 118 करोड़ रुपये की अनुदान राशि हस्तांतरित की। इस मौके पर सीएम मोहन यादव ने 88.79 करोड़ रुपये के 53 विकास कार्यों का वर्चुअल उद्घाटन और शिलान्यास भी किया।

ज्ञानवापी में अभी नहीं रुकेगी पूजा ! इलाहाबाद HC से भी मुस्लिम पक्ष को झटका, ASI रिपोर्ट देख जिला कोर्ट ने दी थी अनुमति

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज शुक्रवार (2 फ़रवरी) को 31 जनवरी के जिला अदालत के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें हिंदू पक्षों को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना और पूजा करने की अनुमति दी गई थी। उच्च न्यायालय ने आज मुस्लिम पक्ष (जिसने जिला अदालत के आदेश को चुनौती दी थी) को 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने के लिए अपनी याचिका में संशोधन करने के लिए 6 फरवरी तक का समय दिया, जिसके परिणामस्वरूप 31 जनवरी का आदेश पारित किया गया था।

ऐसा होने पर मामले की अगली सुनवाई हो सकेगी। इस बीच, कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार (उसके महाधिवक्ता द्वारा प्रतिनिधित्व) को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि ज्ञानवापी क्षेत्र में कानून और व्यवस्था बनी रहे। अदालत इस मामले में वाराणसी अदालत के 31 जनवरी के आदेश को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने आज इस मामले की सुनवाई की। 

शुरुआत में, उन्होंने पाया कि मुस्लिम पक्षों ने 17 जनवरी को पारित पहले के आदेश को अभी तक चुनौती नहीं दी है, जिसके तहत एक जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर के रूप में नियुक्त किया गया था। इस रिसीवर को बाद में 31 जनवरी को मस्जिद के तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं के संचालन को सुविधाजनक बनाने का आदेश दिया गया था। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने मस्जिद समिति को संबोधित करते हुए कहा कि, "आपने जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त करने के 17 जनवरी के आदेश का विरोध नहीं किया है। यह (31 जनवरी का आदेश) एक परिणामी आदेश है...अपनी अपील में संशोधन करें।" न्यायाधीश ने यह भी सवाल किया कि क्या 31 जनवरी का आदेश पारित करने से पहले वाराणसी अदालत ने मस्जिद समिति को सुना था। कोर्ट ने कहा कि जब तक जिला मजिस्ट्रेट को कोर्ट रिसीवर नियुक्त करने के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती नहीं दी जाती, तब तक मस्जिद समिति की चुनौती पर सुनवाई करना संभव नहीं होगा।

मस्जिद समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि, "मामले में तात्कालिकता है। उन्होंने पहले ही व्यास तहखाना (दक्षिणी तहखाने) में पूजा शुरू कर दी है।" नकवी ने यह भी तर्क दिया कि जिला अदालत के 31 जनवरी के आदेश को जल्दबाजी में लागू करने से अराजकता पैदा हुई है। उन्होंने बताया कि पूजा की व्यवस्था के लिए जिलाधिकारी को सात दिन का समय दिया गया था। नकवी ने कहा, "हालांकि, डीएम ने सात घंटे के भीतर प्रक्रिया शुरू कर दी...इससे आसपास के इलाके में अराजकता फैल गई।" नकवी ने कहा कि 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने के लिए मस्जिद समिति की दलीलों में भी संशोधन किया जाएगा। इस दौरान उन्होंने कोर्ट से 31 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। इस सुझाव का हिंदू पक्ष ने विरोध किया, जिसका प्रतिनिधित्व वकील विष्णु जैन ने किया।

वकील जैन ने जोर देकर कहा कि मस्जिद समिति 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दिए बिना 31 जनवरी के आदेश को चुनौती नहीं दे सकती। उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए समिति की अपील सुनवाई योग्य नहीं है। जैन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि हिंदू पक्षों द्वारा अपने आवेदन में मांगी गई राहत (जिसके कारण 31 जनवरी का आदेश आया) और मुख्य मुकदमा (ज्ञानवापी परिसर के धार्मिक चरित्र के संबंध में) पूरी तरह से अलग थे। ज्ञानवापी परिसर पर मुख्य विवाद में हिंदू पक्ष का दावा शामिल है कि उक्त भूमि पर एक प्राचीन मंदिर का एक खंड 17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के शासन के दौरान नष्ट कर दिया गया था।

दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल से पहले की है और समय के साथ इसमें कई बदलाव हुए हैं। संपत्ति (जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद है) के धार्मिक चरित्र पर चल रहे इस अदालती विवाद के बीच, वाराणसी की एक जिला अदालत ने 31 जनवरी को एक रिसीवर को निर्देश दिया कि वह हिंदू पक्षों को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में प्रार्थना और पूजा करने की अनुमति दे। जिला अदालत के न्यायाधीश एके विश्वेश, जो आदेश पारित करने के एक दिन बाद सेवानिवृत्त हुए, ने कहा था कि पूजा काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड द्वारा नामित पुजारी द्वारा आयोजित की जानी चाहिए। जिला अदालत ने निर्देश दिया कि इस उद्देश्य के लिए सात दिनों के भीतर बाड़ भी लगाई जा सकती है।

उक्त आदेश हिंदू वादी द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद की भूमि के व्यास 'तहखाना' (तहखाने) में पूजा के अधिकार की मांग करने वाली याचिका के जवाब में पारित किया गया था। हिंदू पक्ष ने प्रस्तुत किया कि नवंबर 1993 तक सोमनाथ व्यास और उनके परिवार द्वारा तहखाने में पूजा गतिविधियां आयोजित की गईं, जब मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था। मुस्लिम पक्ष ने इन दावों का खंडन किया और कहा कि मस्जिद की इमारत पर हमेशा उनका कब्ज़ा था। मस्जिद समिति ने सबसे पहले वाराणसी अदालत के 31 जनवरी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और मामले में शीघ्र सुनवाई की मांग की। हालाँकि, रजिस्ट्रार ने निर्देशों पर कार्रवाई करते हुए मुस्लिम पक्ष को इसके बजाय इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया।

संबंधित नोट पर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 31 जनवरी को एक हिंदू पक्ष द्वारा मस्जिद के परिसर के भीतर वुज़ुखाना क्षेत्र के एएसआई सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका पर मस्जिद समिति से प्रतिक्रिया मांगी थी। विशेष रूप से, ASI ने पहले ही वुज़ुखाना को छोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का व्यापक वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया था। ASI ने हाल ही में वाराणसी जिला अदालत को एक सर्वेक्षण रिपोर्ट भी सौंपी है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले साइट पर एक प्राचीन हिंदू मंदिर मौजूद था।

हेमंत सोरेन के बचाव में उतरा विपक्ष ! झारखंड मुद्दे पर कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने राज्यसभा से किया वॉकआउट

 झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) नेता हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राज्य के गवर्नर द्वारा राज्य में शासन के लिए अंतरिम व्यवस्था नहीं करने पर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने शुक्रवार को राज्यसभा से वॉकआउट किया। विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन में हाल की घटनाओं की तुलना एक सप्ताह पहले बिहार में हुई घटना से की। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया और उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार भी कर लिया गया. फिर उन्हें नई सरकार स्थापित होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा गया और कुछ ही समय बाद, उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। यह पूरी प्रक्रिया 12 घंटे के अंदर हो गई।

उन्होंने कहा कि लेकिन झारखंड में, जब हेमंत सोरेन ने बुधवार को इस्तीफा दिया, तो कोई अंतरिम व्यवस्था नहीं की गई। सोरेन के इस्तीफे के बाद, 81 सदस्यीय विधानसभा में 43 समर्थक विधायकों के हस्ताक्षर के साथ उनके उत्तराधिकारी का नाम दिया गया,और चार अन्य विधायक, जो इस तरह के स्थानांतरण का समर्थन कर रहे थे, राज्य के बाहर थे और अपने हस्ताक्षर नहीं दे सकते थे। खड़गे ने आरोप लगाया कि, 'राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन ने सोरेन के इस्तीफा देने के बाद कोई व्यवस्था नहीं की।''

खड़गे ने कहा कि संविधान में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की स्थिति में सरकार बनाने का प्रावधान है और राज्यपाल वैकल्पिक व्यवस्था होने तक इस्तीफा देने वाले मुख्यमंत्री या किसी अन्य व्यक्ति को पद पर बने रहने की अंतरिम व्यवस्था करते हैं। उन्होंने कहा, राज्यपाल बहुमत विधायकों का समर्थन दिखाने वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं और विश्वास मत मांगते हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि करीब 20 घंटे के इंतजार के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन को राज्यपाल से मिलने का निमंत्रण मिला, लेकिन समर्थन पत्र के बावजूद उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने कहा, आज शुक्रवार को नया मुख्यमंत्री शपथ ले रहा है।

उन्होंने कहा, "कृपया बताएं कि संविधान को कैसे टुकड़े-टुकड़े किया जा रहा है।" खड़गे ने आरोप लगाया कि, "जैसा बिहार में हुआ था वैसा झारखंड में क्यों नहीं हुआ?" उन्होंने पूछा कि अगर बिहार में 12 घंटे में इस्तीफा, समर्थन पत्र स्वीकार करना और शपथ ग्रहण हो सकता है तो झारखंड में क्यों नहीं। उन्होंने कहा, ''यह शर्मनाक है। '' सत्ता पक्ष ने खड़गे के बयान का विरोध किया और सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि झारखंड में एक बड़ा भूमि घोटाला हुआ है, जिसके कारण सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा।

गोयल ने कहा कि, "इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार स्थापित हो गया है, मुख्यमंत्री ने भूमि घोटाला कैसे किया। इसके बावजूद, कांग्रेस उस मुख्यमंत्री का बचाव कर रही है। उस मुख्यमंत्री के आचरण पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है। वह भ्रष्टाचार के बारे में बात नहीं कर रही है।" उन्होंने कहा कि, ''यह केवल यह स्थापित करता है कि भ्रष्टाचार कांग्रेस के DNA में है। कांग्रेस भ्रष्टाचार को स्वीकार करती है।'' गोयल ने कहा कि राज्यपाल के आचरण पर सदन में चर्चा नहीं की जा सकती। राज्यपाल के कार्यों का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सरकार बनाने के लिए किसी को बुलाने से पहले समर्थन के बारे में संतुष्ट होना होगा।

हालाँकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि राज्य नेतृत्वविहीन क्यों हो गया और सरकार बनने तक सोरेन को पद पर बने रहने या किसी और को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाने के लिए कोई अंतरिम व्यवस्था नहीं की गई। इसके बाद वे सदन से बहिर्गमन कर गये। हालाँकि, खड़गे जी शायद यह भूल गए थे कि चंपई सोरेन के शपथ लेने तक हेमंत सोरेन ही कार्यवाहक सीएम थे, राज्य नेतृत्वहीन नहीं हुआ था। इसके बावजूद विपक्ष ने सदन में हंगामा करके संसद का बहिष्कार कर दिया।

15 राज्यों की 56 राज्यसभा सीटों पर इस दिन होंगे चुनाव, ECI ने किया ऐलान

 देश के 15 प्रदेशों की 56 राज्यसभा सीटों पर चुनाव की घोषणा हो गई है। इन सभी सीटों पर 27 फरवरी को मतदान होगा। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की तरफ से सोमवार को यह घोषणा की गई। ध्यान हो कि 13 राज्यों के 50 राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 2 अप्रैल को समाप्त होने वाला है, जबकि 2 प्रदेशों के शेष 6 सदस्य 3 अप्रैल को रिटायर्ड हो जाएंगे।

वही जिन 15 प्रदेशों में राज्यसभा चुनाव होने हैं उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। मालूम हो कि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों की तरफ से अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है।

वही जनवरी में ही राज्यसभा के लिए दिल्ली में AAP की तरफ से नामित संजय सिंह, एनडी गुप्ता एवं स्वाति मालीवाल निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। इन चुनावों के लिए किसी भी अन्य पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। नामांकन दाखिल करने की अंतिम दिनांक 9 जनवरी थी जबकि नामांकन पत्रों की जांच 10 जनवरी को की गई। नामांकन वापस लेने की अंतिम दिनांक 12 जनवरी थी। सिंह, गुप्ता और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष मालीवाल ने 19 जनवरी के राज्यसभा चुनावों के लिए अपना-अपना नामांकन 8 जनवरी को दाखिल किया था। AAP ने मालीवाल को अपना राज्यसभा प्रत्याशी नामित किया था। सिंह और गुप्ता को संसद के उच्च सदन में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नामित किया गया।