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इंडियन आर्मी के इतिहास में पहली बार आर्टिलरी रेजिमेंट में महिला अधिकारी शामिल, 15 हजार फीट की ऊंचाई पर पोस्टिंग

सियाचिन ग्लेशियर में सेना की ऑपरेशनल पोस्ट पर पहली बार महिला मेडिकल अधिकारी की तैनाती की गई है। कैप्टन फातिमा वसीम को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। उनकी पोस्टिंग 15 हजार 200 फीट की ऊंचाई पर होगी। सोमवार (11 दिसंबर) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर सेना के फायर एंड फ्यूरी कोर ने इस बात की खबर दी। फायर एंड फ्यूरी कोर ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें सियाचिन बैटल स्कूल में फातिमा ट्रेनिंग लेती नजर आई।

फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स को आधिकारिक तौर पर 14वां कॉर्प्स बोला जाता है। इसका हेडक्वार्टर लेह में है। इनकी तैनाती चीन-पाकिस्तान की सीमाओं पर होती है। साथ ही ये सियाचिन ग्लेशियर की रक्षा करते हैं।​​​​​ इससे पहले 5 दिसंबर 2023 को सेना ने कहा कि स्नो लेपर्ड ब्रिगेड की कैप्टन गीतिका कौल पहली महिला मेडिकल ऑफिसर बनीं थीं। उन्हें सियाचिन की बैटलफील्ड पर तैनात किया गया है, जिसकी ऊंचाई 15,600 फीट है। कैप्टेन गीतिका ने अपनी तैनाती को लेकर सेना का आभार व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि वे देश के लिए अपना हर कर्तव्य निभाएंगी। जान दांव पर लगा कर देश की हिफाजत करेंगी। सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाक बॉर्डर के पास लगभग 78KM में फैला है। इसके एक ओर पाकिस्तान, दूसरी ओर अक्साई चीन है। 1972 के शिमला समझौते में सियाचिन को बेजान तथा बंजर बताया गया था। 

हालांकि तब भारत-चीन के बीच इसके सीमा का निर्धारण नहीं हुआ था। 1984 में भारतीय सेना को जानकारी प्राप्त हुई कि पाकिस्तानी सेना इस क्षेत्र को कब्जे में लेने का प्रयास कर रही है, तत्पश्चात, 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने अपनी फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स की स्पेशल टुकड़ी को इस क्षेत्र में तैनात कर दिया। इंडियन आर्मी के इतिहास में पहली बार आर्टिलरी रेजिमेंट में महिला अफसरों को सम्मिलित किया गया है। शनिवार को ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी, चेन्नई में पासिंग आउट परेड के पश्चात् 5 महिला अफसर आर्टिलरी रेजिमेंट में कमीशन हो गईं। इनमें से 2 को पाकिस्तान की सीमा पर लगी यूनिट में पोस्टिंग दी गई है। वहीं 3 अफसर चीन बॉर्डर पर तैनात यूनिट में काम करेंगी। सियाचिन में तैनात अग्निवीर अक्षय लक्ष्मण की एक ऑपरेशन के चलते जान चली गई है। प्राप्त एक रिपोर्ट के अनुसार, लक्ष्मण ड्यूटी के चलते जान गंवाने वाले देश के पहले अग्निवीर हैं। लक्ष्मण भारतीय सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर का भाग थे।

राजस्थान में दलित CM ! क्या कल अर्जुन राम मेघवाल के नाम का होगा ऐलान, पढ़िए, भाजपा का नया समीकरण

मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति में भाजपा के हालिया फैसलों से केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री बनने की अटकलें तेज हो गई हैं। यह कदम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आश्चर्यजनक चयनों के मद्देनजर आया है, जहां अन्य प्रमुख नेताओं की उम्मीदों से हटकर क्रमशः आदिवासी नेता विष्णु देव साय और तीन बार के विधायक मोहन यादव को नियुक्त किया गया है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय जैसे बड़े नामों के बावजूद पार्टी ने तीन बार के विधायक मोहन यादव को सीएम बनाया है। 

पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से आने वाले मोहन यादव को मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया, जो जातिगत संतुलन बनाए रखने के लिए भाजपा की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। पार्टी ने राजपूत (उच्च जाति) नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त करके जाति समीकरण को भी संबोधित किया। ओबीसी समुदाय को मुख्यमंत्री मोहन यादव में प्रतिनिधित्व मिला, जबकि डिप्टी सीएम का पद राजेंद्र शुक्ला (ब्राह्मण) और जगदीश देवड़ा (दलित) को सौंपा गया, जिससे विविध प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ। इन हालिया रुझानों को देखते हुए ऐसी अटकलें हैं कि दलित समुदाय (एससी) से आने वाले अर्जुन राम मेघवाल के नाम पर राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए विचार किया जा सकता है।

अर्जुन राम मेघवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वसनीय भी माना जाता है, इससे अटकलें और भी जोर पकड़ रहीं हैं। भाजपा के इस संभावित कदम का उद्देश्य जातिगत अंतर को पाटना और समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्रदान करना है। चुनाव में भाग नहीं लेने के बावजूद मेघवाल का नाम नेतृत्व की भूमिकाओं को लेकर चर्चा में आया है। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदारों में वसुंधरा राजे, दीया कुमारी, बाबा बालकनाथ और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव शामिल हैं। राजस्थान में भाजपा के फैसले की घोषणा 12 दिसंबर को की जाएगी, इस पर बारीकी से नजर रखी जाएगी कि पार्टी राज्य में अपने नेतृत्व विकल्पों और जातिगत विचारों को कैसे आगे बढ़ाती है।

उत्तराखंड: कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व में अब हो सकेंगे निर्माण कार्य, सुप्रीम कोर्ट ने हटाई रोक

कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व समेत राज्य के छह संरक्षित क्षेत्रों में अटके 45 निर्माण कार्य अब प्रारंभ हो सकेंगे। उत्तराखंड के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इन कार्यों पर लगी रोक हटा दी है। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक अनूप मलिक ने इसकी पुष्टि की।

कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत बहुचर्चित पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण के बाद राज्य के सभी संरक्षित क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। कोर्ट ने अब यह स्पष्ट किया है कि जो कार्य वन विभाग की ओर से बताए गए हैं और जो वन एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए आवश्यक हैं, केवल वही कार्य किए जाएं।

सुप्रीम कोर्ट की सीईसी कमेटी ने लिया था संज्ञान

कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के पाखरो में टाइगर सफारी के लिए अवैध कटान व अवैध निर्माण के साथ ही हर स्तर पर नियमों की अनदेखी के बहुचर्चित प्रकरण का सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीईसी) ने संज्ञान लिया था। सीईसी ने प्रकरण से जुड़े विविध पहलुओं की पड़ताल के बाद सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में सुनवाई करते हुए उत्तराखंड में टाइगर रिजर्व, वन्यजीव अभयारण्य व राष्ट्रीय उद्यानों में निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी थी। यह आदेश इसी वर्ष आठ फरवरी को जारी हुआ था। इस बीच राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने इस आदेश के क्रम में सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से यह जानकारी देने का अनुरोध किया कि जो कार्य पहले से स्वीकृत हैं।

45 कार्यों पर लगी रोक हटी

राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने ये भी पूछा कि वन एवं वन्यजीव संरक्षण के लिए आवश्यक हैं, उन पर कार्य किया जा सकता है अथवा नहीं। साथ ही राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व समेत छह संरक्षित क्षेत्रों में होने वाले 45 आवश्यक कार्यों की सूची भी दी। हाल में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए इन 45 कार्यों पर लगी रोक हटा दी। इससे वन विभाग को राहत मिली है।

अधिकारी ने कही ये बात

संरक्षित क्षेत्रों में वन एवं वन्यजीव संरक्षण के दृष्टिगत होने वाले आवश्यक कार्यों के लिए विभाग को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। आरके सुधांशु, प्रमुख सचिव वन विभाग

ये हो सकेंगे कार्य

राजाजी टाइगर रिजर्व :

 बुलंदावाला व आमसोत में हाथी रोधी दीवार, डोडा फायर क्रू-स्टेशन का विस्तार, रवासन में रेंज कार्यालय व आवास, बेरीवाड़ा व कांसरो में रेंज आवास, टीरा, कांसरो व रवेली में आवास, बुलंदावाला में एंटी पोचिंग कैंप, विभिन्न स्थानों पर नदी संरक्षण के कार्य।

कार्बेट टाइगर रिजर्व :

ढिकाला, कांडा, फिका, तुनुचौकी, फुलई, ढेला, मलानी पूर्वी, सेंधीखाल, सालखेत, गूजरसोत, टूना चौकी मोटासाल में जलापूर्ति, सावल्दे उत्तरी में हाथी रोधी ट्रेंच, रिंगोडा, धनगढ़ी व कालागढ़ में सोलर फेंसिंग, कालागढ़ में हाथी रोधी दीवार, बारवाली, रामजीवाला में सोलर पंप और सिलधारी, चोरपानी, फाटो व पटेरपानी में वॉच टावर।

केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य :- कांचुलाखर्क व भूलकाना में पेट्रोलिंग कैंप, स्यूंचंद में जल स्रोत संरक्षण, बमारधोर में चेकडैम, घूसा में भूमि संरक्षण।

गंगोत्री नेशनल पार्क : भोजवासा व नेलांग में वन आरक्षी चौकी

गोविंद वन्यजीव अभयारण्य :- जूडाताल, सांकरी व रूपिन में एंटी पोचिंग कैंप।

नंदा देवी नेशनल पार्क :- रिखोटानाला में भूमि संरक्षण फूलों की

घाटी नेशनल पार्क :- पिनखांडा में जल संरक्षण

जेएनयू में दिया धरना तो लगेगा 20 हजार का जुर्माना, राष्ट्र विरोधी नारेबाजी करने वालों की भी खैर नहीं

#jnu_ban_protest_on_campus

जवाहलाल नेहरु विश्वविद्यालय में धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी जैसे घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं। कई बार तो विवाद इतना बढ़ जाता है कि वो देशव्यापी हो जाता है। लेकिन अब ऐसा करना छात्रों को भारी पड़ेगा। अब ऐसा करने पर छात्रों के ऊपर जुर्माना लगाया जाएगा।विश्वविद्यालय प्रशासन के इसको लेकर एक फरमान भी जारी कर दिया है।

जेएनयू ने नई नियमावली जारी की है। नए नियमों के मुताबिक एकेडमिक बिल्डिंग के 100 मीटर के दायरे में पोस्टर लगाना और धरना प्रदर्शन करने पर 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है या दोषी को संस्थान से निष्कासित भी किया जा सकता है।

एकेडमिक बिल्डिंग में कक्षाओं और प्रयोगशालाओं के अलावा विभिन्न स्कूलों के अध्यक्षों के कार्यालय, डीन और अन्य पदाधिकारियों के कार्यालय को शामिल किया गया है।

राष्ट्र विरोधी गतिविधि पर भी जुर्माना

वहीं, राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने और धर्म, जाति या समुदाय के प्रति असहिष्णुता भड़काने पर 10,000 रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।इसके साथ ही नए नियमों के अनुसार किसी छात्र पर शारीरिक हिंसा, किसी दूसरे छात्र, कर्मचारी या संकाय सदस्य को गाली देने और पीटने पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगेगा। इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने किसी भी प्रकार के अपमानजनक धार्मिक, सांप्रदायिक, जातिवादी या राष्ट्र-विरोधी टिप्पणियों वाले पोस्टर या पंफ्लेट को छापने, प्रसारित करने या चिपकाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। 

हाई कोर्ट पहले ही दे चुका है ऐसे आर्डर

बता दें इससे पहले हाई कोर्ट के आर्डर पर प्रशासनिक इमारतों - कुलपति, रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर सहित शीर्ष अधिकारियों के कार्यालय – के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर रोक लगाई गई थी। हालांकि, अब चीफ प्रॉक्टर कार्यालय (सीपीओ) की संशोधित नियमावली के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ने कक्षाओं के स्थानों के साथ-साथ एकेडमिक बिल्डिंग के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी है।

आदेश पर छात्रों में नाराजगी

कॉलेज प्रशासन के इस आदेश के बाद विरोध के स्वर उठने लगे हैं। एबीवीपी के मीडिया इंचार्ज अंबुज तिवारी का कहना है कि जेएनयू का यह तुगलकी फरमान पहले भी आ चुका है जिसके खिलाफ प्रदर्शन किया गया था। उनका कहना है, पहले भी इसे वापस लिया गया था। यह बिल्कुल गलत है क्योंकि यह हमारा संवैधानिक अधिकार है कि हम अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर सकें।

छत्तीसगढ़ और एमपी के बाद राजस्थान में भी बीजेपी देगी सरप्राइज! सीएम पर सस्पेंस से आज उठेगा पर्दा

#who_will_be_next_cm_in_rajasthan

राजस्थान का नया मुख्यमंत्री कौन होगा इस सस्पेंस से आज पर्दा उठेगा। राजस्थान बीजेपी की विधायक दल की बैठक आज शाम चार बजे होनी है और माना जा रहा है कि इसमें नए सीएम के नाम का एलान हो सकता है। राजनाथ सिंह जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय में शाम 4 बजे से 6:30 बजे तक भाजपा विधायक दल के साथ बैठक करेंगे। इसमें सीएम के नाम की चर्चा होगी।

भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भी सीएम के नाम का ऐलान कर चुकी है। अब सिर्फ राजस्थान को ही नए सीएम का इंतजार है।से में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां वसुंधरा को पार्टी फिर मौका देगी या रेस में शामिल किसी एक नाम पर सहमति बनेगी या फिर यहां भी एमपी और छत्तीसगढ़ की तरह अचानक ऐसा नाम सामने आएगा जो अब तक रेस में नहीं है।

बता दें कि राजस्थान में बीजेपी विधायक दल की बैठक आज होनी है। इसके लिए यहां के लिए नियुक्त तीनों पर्यवेक्षक सुबह 11 बजे जयपुर पहुंचेंगे और विधायकों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद सीएम के नाम पर चर्चा होगी और फिर पार्टी की तरफ से नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाएगी। राजस्थान के लिए चुने गए पर्यवेक्षकों में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े शामिल हैं।

सभी नवनिर्वाचित विधायकों को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी की ओर से बुलावा भेजा गया है। उन्होंने बताया कि दोपहर 1:30 बजे से भाजपा के सभी विधायकों का रजिस्ट्रेशन शुरू होगा। सभी विधायकों को अनिवार्य रूप से विधायक दल की बैठक में उपस्थित रहने के निर्देश दिए गए हैं। पिछले सात-आठ दिनों से नए मुख्यमंत्री के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सी.पी. जोशी, केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी एवं डॉ किरोड़ी मीणा तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम माथुर सहित कई नेताओं के नामों की चर्चा लोगों में चली कि इनमें से कोई अगला मुख्यमंत्री हो सकता है।

विधायक दल की बैठक से दो बार की मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे के तेवर से बीजेपी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। माना जा रहा है कि पिछले दिनों बीजेपी के करीब 60 विधायक वसुंधरा राजे से मुलाकात कर चुके हैं। ज्यादातर विधायक यही कह रहे हैं कि सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात थी। कुछ विधायक ये भी कहते हुए नजर आए कि वो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह पर कुछ विधायकों की कथित बाड़ेबंदी के भी आरोप लगे थे। वसुंधरा राजे लगातार आलाकमान को खुश करने में लगी हुई हैं। लगातार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ भी कर रही हैं।ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी किसे राजस्थान की कुर्सी पर बैठाती है।

छत्तीसगढ़ और एमपी के बाद राजस्थान में भी बीजेपी देगी सरप्राइज! सीएम पर सस्पेंस से आज उठेगा पर्दा

#who_will_be_next_cm_in_rajasthan

राजस्थान का नया मुख्यमंत्री कौन होगा इस सस्पेंस से आज पर्दा उठेगा। राजस्थान बीजेपी की विधायक दल की बैठक आज शाम चार बजे होनी है और माना जा रहा है कि इसमें नए सीएम के नाम का एलान हो सकता है। राजनाथ सिंह जयपुर में बीजेपी प्रदेश कार्यालय में शाम 4 बजे से 6:30 बजे तक भाजपा विधायक दल के साथ बैठक करेंगे। इसमें सीएम के नाम की चर्चा होगी।

भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भी सीएम के नाम का ऐलान कर चुकी है। अब सिर्फ राजस्थान को ही नए सीएम का इंतजार है।से में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां वसुंधरा को पार्टी फिर मौका देगी या रेस में शामिल किसी एक नाम पर सहमति बनेगी या फिर यहां भी एमपी और छत्तीसगढ़ की तरह अचानक ऐसा नाम सामने आएगा जो अब तक रेस में नहीं है।

बता दें कि राजस्थान में बीजेपी विधायक दल की बैठक आज होनी है। इसके लिए यहां के लिए नियुक्त तीनों पर्यवेक्षक सुबह 11 बजे जयपुर पहुंचेंगे और विधायकों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद सीएम के नाम पर चर्चा होगी और फिर पार्टी की तरफ से नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की जाएगी। राजस्थान के लिए चुने गए पर्यवेक्षकों में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े शामिल हैं।

सभी नवनिर्वाचित विधायकों को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी की ओर से बुलावा भेजा गया है। उन्होंने बताया कि दोपहर 1:30 बजे से भाजपा के सभी विधायकों का रजिस्ट्रेशन शुरू होगा। सभी विधायकों को अनिवार्य रूप से विधायक दल की बैठक में उपस्थित रहने के निर्देश दिए गए हैं। पिछले सात-आठ दिनों से नए मुख्यमंत्री के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, सी.पी. जोशी, केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी एवं डॉ किरोड़ी मीणा तथा भाजपा के वरिष्ठ नेता ओम माथुर सहित कई नेताओं के नामों की चर्चा लोगों में चली कि इनमें से कोई अगला मुख्यमंत्री हो सकता है।

विधायक दल की बैठक से दो बार की मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे के तेवर से बीजेपी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। माना जा रहा है कि पिछले दिनों बीजेपी के करीब 60 विधायक वसुंधरा राजे से मुलाकात कर चुके हैं। ज्यादातर विधायक यही कह रहे हैं कि सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात थी। कुछ विधायक ये भी कहते हुए नजर आए कि वो वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह पर कुछ विधायकों की कथित बाड़ेबंदी के भी आरोप लगे थे। वसुंधरा राजे लगातार आलाकमान को खुश करने में लगी हुई हैं। लगातार पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफ भी कर रही हैं।ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी किसे राजस्थान की कुर्सी पर बैठाती है।

कश्मीर को कब मिलेगा राज्य का दर्जा? अमित शाह ने दिया जवाब

#jammu_kashmir_statehood_amit_shah_reaction

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना वैध माना है।सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि 370 एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे हटाने की शक्ति थी। अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पास बाक़ी राज्यों से अलग कोई संप्रभुता नहीं है। साथ ही कोर्ट ने जल्द से जल्द चुनाव कराने का भी निर्देश दिया।कोर्ट के फैसले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को देश को आश्वस्त किया कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।

अमित शाह ने कहा कि आतंकवाद से मुक्त 'नए और विकसित कश्मीर' के निर्माण की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हुई है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।राज्यसभा में उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के उच्चतम न्यायालय के सोमवार के फैसले को 'ऐतिहासिक' बताया और कहा कि अब केवल 'एक संविधान, एक राष्ट्रीय ध्वज और एक प्रधानमंत्री' होगा।

फिर नेहरू की गलती की तरफ खींचा ध्यान

जम्मू कश्मीर के संदर्भ में लाए गए दो नए विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए राज्यसभा में गृह मंत्री ने कश्मीर समस्या के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहराया। शाह का कहना था कि गलत समय पर युद्धविराम का आदेश देकर और मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जा कर भारी गलती हुई। शाह ने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि वह अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं देख पा रहा है। जबकि पूरा देश समझ गया है कि कश्मीर मुद्दे से निपटने में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलती थी। 

पीओके के लोगों के लिए 24 सीटों का आरक्षण

शाह ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) भारत का अभिन्न अंग है और कोई भी इसे छीन नहीं सकता। अमित शाह ने यहां तक कहा कि जब देश की एक इंच जमीन भी छोड़ने की बात आएगी तो भाजपा कोई बड़ा दिल नहीं दिखाएगी। साथ ही नई व्यवस्था के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके के लोगों के लिए 24 सीटों के आरक्षण की भी बात शाह ने की।

क्या था अनुच्छेद 370, जानें सरकार की इसे हटाने की पीछे की वजह

#whatwasarticle_370

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने के केंद्र सरकार के निर्णय पर आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसमें आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा है कि 5 अगस्त 2019 का निर्णय वैध था और यह जम्मू कश्मीर के एकीकरण के लिए था।

केन्द्र की मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए साल 2019 को देश से विवादित अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया गया था। आर्टिकल 370 भारतीय संविधान का एक प्रावधान था। जो जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता था। आर्टिकल 370 के प्रावधान ऐसे थे कि भारतीय संविधान भी जम्मू कश्मीर में सीमित हो जाती थी, जिससे देश के सरकारें राज्य के फैसले को लेकर हमेशा बंधी रहती थीं। 

अनुच्छेद 370 क्या था?

अनुच्छेद 370 से जुड़े मामले की शुरुआत कश्मीर के राजा हरि सिंह से हुई थी। अक्टूबर 1947 में, कश्मीर के तत्कालीन महाराजा, हरि सिंह ने एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि तीन विषयों के आधार पर यानी विदेश मामले, रक्षा और संचार पर जम्मू और कश्मीर भारत सरकार को अपनी शक्ति हस्तांतरित करेगा।मार्च 1948 में, महाराजा ने शेख अब्दुल्ला के साथ प्रधान मंत्री के रूप में राज्य में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की। जुलाई 1949 में, शेख अब्दुल्ला और तीन अन्य सहयोगी भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति पर बातचीत की, जिससे अनुच्छेद 370 को अपनाया गया।

अनुच्छेद-370 के प्रावधान क्या थे?

1. इस अनुच्छेद में प्रावधान किया गया कि रक्षा, विदेश, वित्त और संचार मामलों को छोड़कर भारतीय संसद को राज्य में किसी कानून को लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होगी।  

2. इसके चलते जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग था। अनुच्छेद-370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। अनुच्छेद-370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की शक्ति नहीं थी।

3. अनुच्छेद-370 (1) (सी) में उल्लेख किया गया था कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 अनुच्छेद-370 के माध्यम से कश्मीर पर लागू होता है। अनुच्छेद 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि यह अनुच्छेद-370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है।  

4. जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 3 में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा। अनुच्छेद 5 में कहा गया कि राज्य की कार्यपालिका और विधायी शक्ति उन सभी मामलों तक फैली हुई है, जिनके संबंध में संसद को भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति है। 

क्या था जम्मू और कश्मीर का संविधान?

इसके लिए पहले साल 1951 में जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा का गठन किया गया। इसमें कुल 75 सदस्य थे। सभा को जम्मू और कश्मीर के संविधान का अलग मसौदा तैयार करने को कहा गया। जो नवंबर, 1956 पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया, इसके बाद जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व ख़त्म हो गया था। 5 अगस्त 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी करके जम्मू और कश्मीर के संविधान को निष्प्रभावी बना दिया था। इसे 'संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिए आवेदन) आदेश, 2019 (सीओ 272)' नाम दिया गया था।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बौखलाया पाकिस्तान, जानें क्या रही प्रतिक्रिया

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सुप्रीम कोर्ट की ओर से सोमवार को अनुच्छेद 370 से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया। केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला दिया गया।कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति का फैसला संवैधानिक तौर पर वैध था। अनुच्छेद 370 अस्थायी था। संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर में लागू होंगे। सुप्रीम कोर्ट फैसले के बाद पाकिस्तान बौखला गया है।पाकिस्तान की अंतरिम सरकार के विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर दिए गए फ़ैसले पर टिप्पणी की है। 

भारत की ओर से उठाया गया अवैध- जलील अब्बास जिलानी

जिलानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा है, “अंतरराष्ट्रीय क़ानून, पांच अगस्त, 2019 को भारत की ओर से उठाया गया अवैध और एकतरफ़ा कदम स्वीकार नहीं करता है। भारत के सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मुद्दे पर दिए गए न्यायिक समर्थन का कोई क़ानूनी मूल्य नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के तहत कश्मीरियों के पास आत्म निर्णय का अधिकार है।

शहबाज शरीफ ने कहा-अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्वीट कर कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के खिलाफ फैसला देकर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।उन्होंने कहा कि अदालत ने लाखों कश्मीरियों के बलिदान को धोखा दिया है और इस फैसले को न्याय की हत्या को मान्यता देने के तौर पर देखा जाएगा। 

विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

पाकिस्तान सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर एक विस्तृत बयान जारी किया है। इस बयान में कहा गया है – “पिछले सात दशकों से संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के एजेंडे में शामिल रहा जम्मू-कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विवाद है. जम्मू-कश्मीर का अंतिम समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रावधानों और कश्मीरी अवाम के आकाँक्षाओं के अनुरूप किया जाना है। भारत को कश्मीरी अवाम और पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत इस विवादित क्षेत्र की स्थिति के बारे में एकतरफ़ा फ़ैसले करने का अधिकार नहीं है।पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संविधान की सर्वोच्चता स्वीकार नहीं करता है। भारतीय संविधान के अधीन किसी भी प्रक्रिया का कोई क़ानून महत्व नहीं है। भारत अपने क़ानूनों और न्यायिक फ़ैसलों के दम पर अंतरराष्ट्रीय दायित्वों से पीछे नहीं हट सकता।

बता दें कि जब अनुच्छेद 370 को साल 2019 में हटाया गया था, तो पाकिस्तान ने इसका विरोध किया था। कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान ने इसका जिक्र किया था। इस साल भारत ने जी-20 की कुछ बैठकों का आयोजन कश्मीर में भी किया था।

बीजेपी ने फिर चौंकाया, मध्यप्रदेश के सीएम होंगे मोहन यादव, जगदीश देवड़ा और राजेश शुक्ला बनेंगे डिप्टी सीएम

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छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश के सीएम फेस से बी पर्दा उठ गया है। नए सीएम का ऐलान हो गया है। मोहन यादव को जिम्मेदारी दी गई है। मोहन यादव का नाम सीएम के रूप में काफी चौंकाने वाला है। शिवराज सिंह ने मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव रखा था। 

मध्य प्रदेश में तीन दिसंबर को चुनावी नतीजे आए थे। राज्य में मिली बंपर जीत के बाद भी सीएम के नाम को लेकर ऊहापोह की स्थिति बरकरार थी। पिछले आठ दिन के मंथन के बाद पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री का नाम फाइनल कर दिया है।ओबीसी समाज से आने वाले मोहन यादव के नाम पर बीजेपी विधायक की बैठक में मुहर लगी।इससे पहले मध्य प्रदेश सीएम का नाम तय करने के लिए पर्यवेक्षकों ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से बात की। इसके बाद पर्यवेक्षक हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, भाजपा सांसद के लक्ष्मण और पार्टी नेता आशा लकड़ा ने भोपाल स्थिज राज्य मुख्यालय में विधायकों के साथ बैठक की। इसी में सीएम के नाम पर मुहर लगी।

सीएम पद की रेस में शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सामने आया था लेकिन मोहन यादव को सीएम बनाए जाने से सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया है। शुरू से ही ऐसी खबरें थीं कि भाजपा इस बार शिवराज के बजाय किसी अन्य को सीएम पद पर बैठा सकती है। मध्य प्रदेश के नए सीएम मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव खुद राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। बता दें कि मोहन यादव शिवराज सिंह चौहान सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं।

साल 2013 में वह पहली बार उज्जैन दक्षिण सीट से विधायक बने थे। 2018 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में एक बार फिर उज्जैन दक्षिण सीट से जनता ने उनको विधायक चुना। 2 जुलाई 2020 को शिवराज सिंह चौहान सरकार में वह कैबिनेट मंत्री बने और उनको उच्च शिक्षा मंत्री का कामकाज सौंपा गया। उनकी छवि हिंदुवादी नेता की रही है और मोहन यादव आएसएस के भी करीबी माने जाते हैं।

सीएम मोहन यादव के दो डिप्टी सीएम होंगे। जगबीर देवड़ा और राजेश शुक्ला डिप्टी सीएम चुने गए हैं।ओबीसी सीएम के साथ दलित और ब्राह्मण का समीकरण बनाया गया है।वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालेंगे।