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'वन नेशन, वन इलेक्शन' क्या है, जानिए इसके फायदे और चुनौतियां?

डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय-समय पर अपने संबोधनों में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' चर्चा करते रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने इस व्यवस्था को देश की जरूरत भी बताया है। अब इसी दिशा में सरकार ने अपना कदम बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार की ओर से 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर एक कमिटी का गठन किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया है। इस संबंध में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात भी की है। 

वहीं सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र भी बुलाया है। इस सत्र में कुल पांच बैठकें होंगी। माना जा रहा है कि सरकार संसद के विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन का प्रस्ताव ला सकती है। अब यहां हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' क्या है? इसके फायदे क्या हैं और चुनौतियां क्या हैं।

'वन नेशन, वन इलेक्शन' क्या है?

वन नेशन, वन इलेक्शन जैसा कि नाम से ही जाहिर है- एक देश के लिए एक चुनाव। इसका मतलब है कि देश में होनेवाले सभी चुनाव एक साथ होंगे। अब तक ये चुनाव अलग-अलग होते रहे हैं। कभी लोकसभा का चुनाव... तो कभी विधानसभा चुनाव.. देश में हर कुछ महीने पर कहीं न कहीं.. किसी न किसी हिस्से में कोई चुनाव होता रहता है। इन हालातों से निपटने के लिए ही वन नेशन, वन इलेक्शन का कॉन्सेप्ट सामने आया और इस पर चर्चा शुरू हुई है। अब पहली बार इस मुद्दे पर सरकार की ओर से कदम आगे बढ़ाने की कोशिश की गई है।

इसके क्या फायदे होंगे ? 

यूं तो इसके कई फायदे गिनाए जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषक हर्षवर्धन त्रिपाठी का मानना है कि वन नेशन, वन इलेक्शन आज देश की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे बड़े पैमाने पर होने वाले खर्च को तो बचाया ही जा सकता है साथ ही अगर देश में विकास की रफ्तार और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना है तो 'वन नेशन, वन इलेक्शन' जरूरी है। उन्होंने कहा कि हर कुछ महीने के बाद देश में कहीं न कहीं चुनाव होता ही हैं। चुनाव के समय सबसे ज्यादा आपसी झगड़े भी होते हैं। सांप्रदायिक तनाव की स्थितियां भी देखी जाती हैं। चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद विकास के कामों पर भी असर पड़ता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती है तो ऐसी स्थिति में क्या विकल्प होगा,इसका रास्ता भी निकालना होगा।

पैसों की बर्बादी बचेगी

इसके लागू होने से देश में चुनावों पर हर साल होनेवाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकता है। साथ ही चुनाव की व्यवस्था में बड़े पैमाने पर मैन पावर का भी इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न विभागों में तैनात इन कर्मचारियों को अपने मूल काम को छोड़कर चुनाव के इंतजाम में जुटना पड़ता है। बार-बार चुनाव होने से विभिन्न विभागों का काम भी लंबित होता है जिसका असर विकास पर पड़ता है। 

विकास में गतिरोध नहीं

चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। ऐसी स्थिति में विकास के नए कामों नहीं हो पाते हैं। सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाती है और विभिन्न योजाओं को लागू करने में परेशानियां आती हैं। देश में बार-बार होनेवाले चुनाव से विकास के कार्य बुरी तरह प्रभावित होते हैं। एक चुनाव खत्म होते ही फिर दूसरा चुनाव आ जाता है। इन्हीं हालातों से बचने के लिए वन नेशन वन इलेक्शन की चर्चा शुरू हुई थी।

क्या हैं चुनौतियां

लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन के लिए कानून में संशोधन करने की जरूरत होगी। रीप्रेजेंटेशन ऑफ दी पुपुल एक्ट 1951 के प्रावधानों में भी संशोधन करना होगा ताकि उपचुनावों को साथ में कराया जा सके। इसके लिए सभी दलों को एक मंच पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके खिलाफ एक तर्क यह भी बताया जाता है कि इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ सकता है। क्योंकि वन नेशन वन इलेक्शन से राष्ट्रीय पार्टियों को फायदा पहुंच सकता है जबकि छोटे दलों को नुकसान हो सकता है। 

पहले भी एकसाथ हो चुके हैं चुनाव

ऐसा नहीं है कि देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ नहीं हुए। वर्ष 1951-52, 1957,1962 और 1967 में देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि 1968 और 1969 में कुछ विधानसभा और 1970 में लोकसभा भंग होने के बाद हालात बदले। बाद के दिनों में ज्यादातर चुनाव अलग-अलग समय पर ही हुए और पहले जैसी एकरूपता नहीं रह गई। हालांकि पूर्व में चुनाव आयोग और विधि आयोग की तरफ से भी वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र किया गया है। लेकिन इस पर राजनीतिक दलों के बीच आम राय कायम करने की गंभीर कोशिश नहीं हुई।

दूसरे राज्यों के नेता भी हरिशचंद्र नहीं है, लेकिन वहां शिक्षा और रोजगार है : प्रशांत किशोर

मुजफ्फरपुर : जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने शुक्रवार को दो ब्लॉक मुसहरी और बोचाहां के 11 गांवों में कुल 9.8 किलोमीटर तक पदयात्रा की। इस दौरान इन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों के नेता भी हरिशचंद्र नहीं हैं, लेकिन वहां शिक्षा और रोजगार है, जिस कारण वहां के लोगों को पलायन नहीं करना पड़ता। 

प्रशांत किशोर ने जनसंवाद में कहा कि गुजरात, पंजाब, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र से कोई यहां आकर मजदूरी कर रहा है। क्या वहां गरीबी नहीं है। लेकिन, वहां के नेताओं ने इतनी व्यवस्था जरूर बना ली है कि 10 से 15 हजार रुपए के रोजगार के लिए लोगों को अपना घर छोड़कर नहीं जाना पड़ता है। 

अगर, ये व्यवस्था पंजाब, गुजरात, हरियाणा में है, तो बिहार में ये व्यवस्था होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए, तो आप ही बताइए कि आपके वोट की कीमत क्या है, आपको अपने बच्चों के लिए रोजगार चाहिए या अनाज चाहिए। आपको अपने बच्चों के लिए शिक्षा चाहिए या जात का नेता चाहिए। इसलिए अपने वोट की ताकत को समझिए और जरूरी मुद्दों के लिए वोट दीजिए। 

बता दें कि प्रशांत किशोर ने बोचाहां के चौपार गांव से पदयात्रा शुरू कर पानी टंकी होते हुए शांतिपुर, मुरादपुर, गरहा, मिर्जापुर, परियासा, चटौरी पुनआस, अकबरपुर, राजा पुनास, अब्दुल नगर, माधोपुर चंदवारा के वक्फ बोर्ड मैदान में रात्रि विश्राम किया।

मुजफ्फरपुर से संतोष तिवारी

*I.N.D.I.A गठबंधन की को-ऑर्डिनेशन कमिटी का हुआ गठन, शरद पवार सहित ये 13 नेता शामिल

डेस्क: मुंबई में चल रही इंडिया गठबंधन की बैठक में आज को-ऑर्डिनेशन कमिटी के सदस्यों के नाम का ऐलान किया गया है। इस कमेटी में 13 सदस्यों को शामिल किया गया है, जिनमें केसी वेणुगोपाल, शरद पवार, स्टालिन, संजय राउत, तेजस्वी यादव, अभिषेक बनर्जी, राघव चड्डा, जावेद खान, लल्लन सिंह, हेमेंत सोरेन, डी राजा, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती का नाम शामिल है। हालांकि, कन्वेनर पर अभी फैसला आना बाकी है। मुंबई में विपक्षी गठबंधन की बैठक का आज आखिरी दिन है।

सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा 

बताया जा रहा है कि आज इस बैठक में ज्वॉइंट रैली की रूपरेखा तय करने के साथ कन्वेनर और चेयरपर्सन को लेकर भी फैसला आना है। इसके अलावा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला क्या हो, इस पर भी चर्चा होगी। वहीं, आज प्रवक्ताओं पर भी चर्चा होगी। इंडिया अलायंस के प्रवक्ता नियुक्त किए जाएंगे, ताकि इंडिया अलायंस के विभिन्न मुद्दों पर स्टैंड में यूनिफॉर्मिटी हो। सोशल मीडिया, डाटा एनालिसिस और साझा रैली को लेकर भी कमिटी बनाई जाएगी। 

विपक्षी गठबंधन में 28 पार्टियां शामिल

बैठक में कांग्रेस समेत देश की कुल 28 पार्टियां शामिल हैं। विपक्षी पार्टियां आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मोदी नीत एनडीए गठबंधन को हराने की तैयारी कर रही है। पहले दिन की बैठक के बाद होटल ग्रैंड हयात में एक मंथन सत्र का आयोजन हुआ। 

इस सत्र में सीट आवंटन और बीजेपी से मुकाबले के लिए एक समान कार्यक्रम की योजना को लेकर चर्चा हुई। इंडिया गठबंधन जल्द से जल्द सीट आवंटन का फॉर्मूला तय कर लेना चाहती है, क्योंकि विपक्षी नेताओं को लगता है कि इस बार सरकार समय से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है।

मुकेश अंबानी ने खरीदा 10 स्टार्टअप को, जानें रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन ने क्यों लगाया अरबों का दांव

डेस्क: देश के सबसे बड़े उद्योपति और रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी लगातार स्टार्टअप पर बड़ा दांव लगा रहे हैं। उन्होंने बीते कुछ सालों में स्टार्टअप्स के अधिग्रहण पर अरबों रुपये का निवेश किया है। आखिर, क्या वजह है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज जो खुद इतनी बड़ी कंपनी है और जिसका कारोबार रिटेल, इनर्जी, गैस, टेलीकम्युनिकेशन से लेकर कई दूसरे सेक्टर में फैला है, वह स्टार्टअप को खरीद रही है। मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि मुकेश अंबानी एक मजे हुए बिजनेसमैन हैं। 

वो उसी स्टार्टअप को खरीद रहे हैं जो उनके मौजूदा बिजनेस को और बड़ा बनाने में सपोर्ट करने वाला है। तो आइए एक नजर डालते हैं कि मुकेश अंबानी ने किन-किन स्टार्टअप को अबतक खरीदा है और उनकी क्या विशेषज्ञता है। 

ऐडवर्ब 

ऐडवर्ब भारत में स्थित एक वैश्विक रोबोटिक्स कंपनी है जो इंट्रालॉजिस्टिक्स ऑटोमेशन के क्षेत्र में काम करती है। इस स्टार्टअप को जनवरी 2022 में रिलायंस रिटेल ने 132 मिलियन डॉलर में खरीदा था। 

नेटमेड्स

ऑनलाइन दवा बेचने वाली कंपनी नेटमेड्स को अगस्त 2020 में रिलायंस रिटेल ने 620 करोड़ रुपये में खरीदा था।

रैडिसिस

रैडिसिस, एक दूरसंचार समाधान कंपनी है जो उपभोक्ताओं को डिजिटल सेवा प्रदान करती है। जून 2018 में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) द्वारा 74 मिलयन डॉलर में अधिग्रहण किया गया था।

मिमोसा नेटवर्क

मिमोसा नेटवर्क, वायरलेस ब्रॉडबैंड समाधान प्रदान करने वाली कंपनी है। अगस्त 2023 में Jio द्वारा 60 मिलियन डॉलर में अधिग्रण किया गया था।

एम्बाइब 

एम्बाइब एक एआई-आधारित एड-टेक प्लेटफॉर्म है जो स्कूल के साथ-साथ जेईई, एसएससी और अन्य परीक्षाओं जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए शिक्षा कार्यक्रम प्रदान करता है। एड-टेक को फरवरी 2020 के दौरान 90 करोड़ रुपये का निवेश प्राप्त हुआ, और बाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इसमें 500 करोड़ रुपये का निवेश किया। 

हैप्टिक 

हैप्टिक कंपनियों को एआई-संचालित कन्वर्सेशनल सीआरएम के जरिये कारोबार बढ़ाने में मदद करती है। कंपनी को अप्रैल 2019 में 102.3 मिलियन डॉलर में रिलायंस जियो डिजिटल सर्विसेज द्वारा अधिग्रहण किया गया था ।

रेवेरी

रेवेरी, एक क्लाउड-आधारित भाषा अनुवाद प्रबंधन मंच है जो कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद, वाक रूपांतरण, इनपुट और वेब सर्च में मदद करता है। 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट्स एंड कंपनी द्वारा अधिग्रहण किया गया। 

फाइंड 

खुदरा व्यापार के तरीके को बदलने के लिए अनुकूलित मॉड्यूलर तकनीकी बुनियादी ढांचे का निर्माण करने वाली कंपनी फ़ाइंड को रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट्स एंड कंपनी द्वारा 2019 में अधिग्रहण किया गया। 

क्लोविया

महिलाओं के लिए ​कपड़े बनाने वाली कंपनी क्लोविया को मार्च 2022 में रिलायंस रिटेल द्वारा 950 करोड़ रुपये में अधिग्रहण किया गया था। 

टेसेरैक्ट 

प्रौद्योगिकी कंपनी टेसेरैक्ट को अप्रैल 2019 में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) द्वारा अधिग्रहित किया गया था।

चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद सूर्य मिशन के लिए काउंटडाउन शुरू, 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर Aditya-L1 पहुंचेगा सूरज के करीब

डेस्क: चांद की सतह पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद अब सभी की निगाहें सूर्य मिशन आदित्य L1 (Aditya-L1) पर टिकी हैं। इसका काउंटडाउन शुरू हो गया है। इसरो (ISRO) के आदित्य L1 मिशन को शनिवार सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा। इसके लिए 23 घंटे 40 मिनट का काउंटडाउन आज 12 बजकर 10 मिनट पर शुरू हो गया। इसका मतलब ये है कि ये मिशन लॉन्च के लिए तैयार है। इस मिशन को इसरो के सबसे विश्वसनीय रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी PSLV रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

यात्रा पूरे होने में लगेंगे 4 महीने

 

PSLV-C57 रॉकेट से आदित्य L1 मिशन को पहले पृथ्वी के निकट लो अर्थ ऑर्बिट में 235KM X 19500KM की कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जहां से इसकी कक्षा को बढ़ाते हुए इसे सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर की यात्रा पर भेजा जाएगा। इस यात्रा को पूरा होने में तकरीबन 4 महीने लगेंगे। धरती से 15 लाख KM दूर L1 प्वॉइंटर पर आदित्य L1 मिशन को स्थापित किया जाएगा। 

अब जब काउंटडाउन शुरू हो गया, तो अगले 24 घंटे में रॉकेट में चार चरणों में ईंधन भरने का काम होगा। इसके बाद उपग्रह के संचार तंत्र, रॉकेट, रेंज और ट्रैकिंग स्टेशंस से जुड़े सभी पैरामीटर्स की जांच की जाएगी, जिसके बाद ऑटोमेटिक लॉन्च सीक्वेंस के जरिए आदित्य L1 मिशन को लॉन्च कर दिया जाएगा।

सूर्य का एक नाम आदित्य भी है

मिशन के नाम 'आदित्य L1' से ही इसके उद्देश्य का पता चलता है। सूर्य का एक नाम आदित्य भी है और L1 का मतलब है- लैग्रेंज बिंदु 1। इसरो के अनुसार, L1 प्वॉइंट की दूरी पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन (15 लाख) किलोमीटर है। 

आदित्य-एल1 को L1 बिंदु की प्रभावमंडल कक्षा में रखकर सूर्य का अध्ययन किया जाएगा। पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा को मिलाकर इस सिस्टम में पांच लैग्रेंज प्वाइंट हैं। इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जेसेफ लुई लैग्रेंज के नाम पर इनका नाम पड़ा है। ये ऐसे बिंदु बताए जाते हैं, जहां दो बड़े पिंडों जैसे कि सूर्य और पृथ्वी के ग्रेविटेशनल पुल (गुरुत्वाकर्षण खिंचाव) की वजह से अंतरिक्ष में पार्किंग स्थल जैसे क्षेत्र उपलब्ध होते हैं।

सूर्य पर हर समय रख सकेगा नजर

इसका मतलब यह है कि लैग्रेंज प्वॉइंट पर सूर्य-पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण कुछ इस तरह बैलेंस होता है कि वहां कोई चीज लंबे वक्त तक ठहर सकती है, इसीलिए आदित्य-एल1 को लैग्रेंज बिंदु 1 में स्थापित करने के लिए लॉन्च किया जाएगा, जहां से यह सूर्य पर हर समय नजर रखकर अध्ययन कर सकेगा। साथ ही स्थानीय वातावरण की जानकारी भी जुटाएगा। इसरो के मुताबिक, सूर्य की विभिन्न परतों का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 सात पेलोड ले जाएगा।

 अंतरिक्ष यान में लगे ये पेलोड इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, पार्टिकल और मैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर्स की मदद से फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना का अध्ययन करेंगे। इसरो के मुताबिक, सात में चार पेलोड सीधे सूर्य का अध्ययन करेंगे और बाकी तीन L1 पर पार्टिकल्स और फील्ड्स का इन-सीटू (यथास्थान) अध्ययन करेंगे। इससे इंटरप्लेनेटरी (अंतरग्रहीय) माध्यम में सौर गतिकी के प्रसार प्रभाव का अहम वैज्ञानिक अध्ययन हो सकेगा।

'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर क्या बोलीं विपक्षी पार्टियां, कमलनाथ बोले- इसके लिए राज्यों की मंजूरी भी जरूरी

डेस्क: I.N.D.I.A गठबंधन की तीसरी बैठक मुंबई में चल रही है। इस बैठक का आज दूसरा दिन है। इस बीच केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया है, जिसमें 5 बैठकें होंगी। संभावना जताई जा रही है कि इस बैठक में कई अहम बिलों को पास किया जाएगा। इस बीच केंद्र सरकार ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर एक कमेटी बनाई है। 5 दिनों के इस विशेष सत्र को लेकर संभावना जताई जा रही है कि सरकार संसद में इस बाबत विधेयक पेश कर सकती है। विपक्षी दलों में इसे लेकर हलचल है। विपक्षी नेता 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को भाजपा का षडयंत्र बता रहे हैं। 

वन नेशन, वन इलेक्शन पर क्या बोलीं प्रियंका चतुर्वेदी

इस बाबत बोलते हुए शिवसेना यूबीटी की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि मोदी सरकार की सत्ता जाने के आखिरी पड़ाव पर है। इस कारण इस तरह के हथकंडे सरकार अपना रही है। उन्होंने कहा, 'पहले सरकार ने विशेष सत्र बुलाया। इंडिया अलायंस के डर से गैस सिलिंडर के दाम कम किए। अब असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के लिए कमेटी बनाई।' उन्होंने कहा कि शिवसेना उद्धव ठाकरे की पार्टी आपसे पूछती है कि महिला सुरक्षा को लेकर कमेटी कब बनाएंगे? भ्रष्टाचार के कई मुद्दों को लेकर कमेटी कब बनाएंगे? देश में अहम मसले हैं, उसको लेकर कमेटी कब बनाएंगे?

पृथ्वीराज चव्हाण ने भाजपा पर साधा निशाना

वन नेशन, वन इलेक्शन पर बोलते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि एक बात साफ है, सरकार अब पैनिक मोड में है। ध्यान भटकाने के लिए ये चीजें हो रही हैं। उन्होंने कहा, 'इस विशेष सत्र को बुलाने की क्या जरूरत है। गणेश चतुर्थी उत्सव के बीच? क्या वे (केंद्र सरकार) हिंदू भावनाओं से अनजान हैं?' उन्होंने सरकार को घेरते हुए कहा कि वह कहते हैं, "सरकार को कभी भी चुनाव कराने का अधिकार है। अगर वे समय से पहले लोकसभा चुनाव कराना चाहते हैं, तो करा सकते हैं। अगर वे कुछ विधेयक पारित कराना चाहते हैं तो उन विधेयकों के बारे में हमें बताएं।" 

कमलनाथ ने कही ये बात

एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि इसके लिए सिर्फ संविधान में संशोधन की ही नहीं बल्कि राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है। हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्यों में वे अपनी संबंधित विधानसभाओं को भंग करने के लिए कैबिनेट प्रस्ताव तय कर सकते हैं और पारित कर सकते हैं। आप किसी राज्य की विधानसभा की अवधि कम नहीं कर सकते हैं। यह इस तरह काम नहीं करता है।

श्रीमती जया वर्मा सिन्हा ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कार्यभार संभाला


श्रीमती जया वर्मा सिन्हा ने आज रेल भवन में रेलवे बोर्ड (रेल मंत्रालय) के नए अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का पदभार संभाल लिया। कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने श्रीमती जया वर्मा सिन्हा की नियुक्ति को स्वीकृति दी है। जया वर्मा सिन्हा रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और सीईओ के रूप में भारतीय रेलवे के इस शीर्ष पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला हैं।

इससे पहले श्रीमती जया वर्मा सिन्हा ने रेलवे बोर्ड में सदस्य (संचालन और व्यवसाय विकास) के तौर पर कार्य किया है। श्रीमती सिन्हा भारतीय रेलवे में माल ढुलाई और यात्री सेवाओं के समग्र परिवहन का दायित्व भी संभाल चुकी हैं।

श्रीमती जया वर्मा सिन्हा 1988 में भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आईआरटीएस) में शामिल हुईं। भारतीय रेलवे में अपने 35 साल से अधिक के करियर में उन्होंने रेलवे बोर्ड के सदस्य (संचालन और व्यवसाय विकास) अपर सदस्य, यातायात परिवहन जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है। उन्होंने परिचालन, वाणिज्यिक, आईटी और सतर्कता सहित विभिन्न क्षेत्रों में काम किया है। वह दक्षिण-पूर्व रेलवे की प्रधान मुख्य परिचालन प्रबंधक के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला भी रही हैं।

उन्होंने बांग्लादेश के ढाका में भारतीय उच्चायोग में रेलवे सलाहकार के रूप में भी कार्य किया, उनके इस कार्यकाल के दौरान कोलकाता से ढाका तक प्रसिद्ध मैत्री एक्सप्रेस का उद्घाटन किया गया था।

श्रीमती सिन्हा इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा हैं और उन्हें फोटोग्राफी में गहरी रुचि है।

यूपी में मायावती और अखिलेश समय की व्यवस्था फिर बहाल!, अब से डीएम की अध्यक्षता में होगी कानून-व्यवस्था की बैठक, योगी सरकार का फैसला, जानें वजह

मायावती और अखिलेश यादव की सरकार ने कानून व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने को लेकर डीएम की अध्यक्षता में कानून व्यवस्था की बैठक का फैसला लागू किया था। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी बैठक को लेकर यही व्यवस्था लागू कर दी है। निर्णय लेने के बाद सूबे के सभी 75 जिलों में नयाआदेश भी जारी किया गया। आदेश के अनुसार अब प्रदेश के 68 जिलों में डीएम को कानून व्यवस्था की बैठक लेने का अधिकार होगा।

लोकसभा चुनावों के पहले सूबे में बदले रहे राजनीतिक माहौल में कानून व्यवस्था को लेकर कोई बखेड़ा ना खड़ा होने पाए इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार सतर्क हुई है। यूपी से सटे राज्यों में बीते दिनों हिंसा की हुई कई घटनाओं के चलते यूपी में भी चौकसी बढ़ानी पड़ी थी। इसी का संज्ञान लेते हुए राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी समीक्षा ही गई तो उसमें कई खामियां सामने आयी।

उन्हें दूर करने के लिए प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है कि डीएम (जिलाधिकारी) ही जिले के सुपर बॉस होंगे। उनकी अनुमति के बिना कानून व्यवस्था को लेकर कोई फैसला अब पुलिस कप्तान नहीं कर पाएंगे। अब से डीएम ही कानून व्यवस्था की बैठक लेंगे। मायावती और अखिलेश यादव की सरकार ने कानून व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने की उक्त व्यवस्था लागू थी।

जिसे योगी सरकार ने बदल दिया था। इस व्यवस्था को गत बुधवार को मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्रा की अध्यक्षता में सूबे की कानून व्यवस्था को लेकर हुई बैठक में बदले जाने का फैसला किया गया। यहीं नहीं इस बैठक के बाद इसे लेकर सूबे के सभी 75 जिलों में नया आदेश भी जारी किया गया।

इस आदेश के बाद जिलों के पुलिस कप्तानों को बड़ा झटका लगा है। अब प्रदेश के 68 जिलों में डीएम को कानून व्यवस्था की बैठक लेने का अधिकार होगा। जबकि लखनऊ, कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, वाराणसी और प्रयागराज जिले में पुलिस कमिश्नर कानून व्यवस्था की बैठक की अध्यक्षता करेंगे।

डीएम की मंजूरी से थानाध्यक्ष की तैनाती होगी

इस व्यवस्था के चलते अब जिले में डीएम की मंजूरी के बिना थानाध्यक्ष की तैनाती नहीं होगी। वर्ष 2018 में थानाध्यक्षों की तैनाती को लेकर कई जिलों में डीएम और एसपी (पुलिस अधीक्षक) के बीच विवाद हुआ था। जिसका असर जिले की कानून व्यवस्था पर पड़ा था। जिसके चलते कानून व्यवस्था की बैठक लेने का अधिकार डीएम से ले लिया गया था।

अब भविष्य की चुनौतियों (लोकसभा चुनावों के चलते बदल रहे राजनीतिक माहौल) को देखते हुए योगी सरकार को इस बात की आवश्यकता महसूस हुई है कि जिलों की कमान फिर डीएम को सौंपी जाए। जिसके बाद योगी सरकार ने यह निर्णय लिया है। अब बिना जिलाधिकारी की मंजूरी के थानाध्यक्ष की तैनाती नहीं होगी।

थानाध्यक्ष की नियुक्ति करने में अब डीएम की अनुमति एसपी को लेनी होगी। पहले पुलिस अधीक्षक ही थानों में थानाध्यक्ष की नियुक्ति करते थे। लेकिन अब उन्हें इसके लिए डीएम की अनुमति लेनी होगी। यह आदेश पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली वाले लखनऊ, कानपुर, नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, वाराणसी और प्रयागराज में लागू नहीं होगा। इन जिलों में पुलिस कमिश्नर ही कानून व्यवस्था की बैठक की अध्यक्षता करेंगे. और उनकी सहमति से ही थानाध्यक्ष की तैनाती होगी।

जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे और राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा?', SC के सवाल पर केंद्र ने दिया ये जवाब, पढ़िए, पूरी खबर

जम्मू: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में निरंतर सुनवाई चल रही है। 29 अगस्त को हुई सुनवाई के चलते चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे तथा राज्य का दर्जा कब वापस मिलेगा? इस पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने कहा, ''हम किसी भी वक़्त जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को तैयार हैं। चुनाव कब हों ये राज्य चुनाव आयोग तथा केंद्रीय चुनाव आयोग तय करेगा। केंद्र ने कहा है कि मतदाता सूची अपडेट हो रही है। थोड़ा सा काम बचा है। पहली बार 3 स्तरीय पंचायती राज सिस्टम जम्मू कश्मीर मे लागू किया गया है। पहला चुनाव पंचायत का होगा। केंद्र के द्वारा कहा गया है कि प्रदेश में पत्थरबाजी की घटनाओं में 97.2 प्रतिशत की कमी आई है।

एसजी तुषार मेहता ने कहा है कि आतंकवादी घटनाओं में 45.2 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 की स्थिति की तुलना वर्ष 2023 की स्थिति से कर रहा हूं। घुसपैठ के मामलों में भी 90.2 प्रतिशत की कमी आई है। धारा 370 को हटाए जाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 12वें दिन सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के चलते एसजी तुषार मेहता ने दलीलें आगे बढ़ाईं थीं। इसमें उन्होंने कहा था कि हम तीन मुख्य बिंदुओं पर दलील देंगे। इनमें पहला- अनुच्छेद 370 पर हमारी व्याख्या सही है। 

दूसरा- राज्य पुनर्गठन अधिनियम तथा तीसरा अनुच्छेद 356 लागू होने पर विधायका की शक्ति के मापदंडों पर। सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संविधान निर्माताओं ने कभी भी अनुच्छेद 370 को स्थायी तौर पर लाने का इरादा नहीं किया था। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती राज्य होने के कारण विशेष राज्य का दर्जा बहाल रखने की दलील भी लचर है क्योंकि जम्मू कश्मीर इकलौता सीमावर्ती प्रदेश नहीं है।

सरकार ने बताया जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि यदि आप लद्दाख को अलग किए बिना पूरा ही केंद्र शासित प्रदेश बनाते तो क्या प्रभाव होता? एसजी मेहता ने कहा कि पहले अलग करना अनिवार्य और अपरिहार्य है। असम और त्रिपुरा को भी पहले अलग कर केंद्र शासित प्रदेश ही बनाया गया था. एक राज्य को केंद्र शासित प्रदेश नहीं घोषित किया जा सकता. CJI ने कहा कि चंडीगढ़ को पंजाब से ही विशिष्ट रूप से अलग कर केंद्रशासित बनाकर दोनों प्रदेशों की राजधानी बनाया गया. वहीं, पहले की सुनवाई के चलते अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि इतिहास में गए बिना इस मुद्दे को समझना मुश्किल होगा.

इस के चलते उन्होंने 1950 में हुए चुनाव में पूरण लाल लखनपाल को चुनाव लड़ने से रोकने की घटना का जिक्र भी किया कि आखिर क्यों उनके चुनाव लडने की राह में रोड़े अटके. रमणी ने कहा कि जम्मू कश्मीर के मायनों में राजनीतिक एकता एवं संवैधानिक एकता में कोई अंतर नहीं है. 370 अस्थाई इंतजाम था. वो इंतजाम अब अंत पर पहुंच गया है.

जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा पूरी व्यवस्था का हिस्सा थी तो आप उसे संविधान के दायरे से बाहर कैसे कह सकते हैं. इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा 1957 में उपस्थित थी तो क्या विधान सभा सिफारिश कर सकती थी कि प्रदेश में जनता बुनियादी अधिकार नहीं होंगे?

जानिए, इंडिया गठबंधन में वर्तमान में शामिल सात दल कांग्रेस टूटने के बाद बने, लेकिन ये सात दल कभी बीजेपी के साथ एनडीए में थे

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्ष ने प्लान बना लिया है, जिसकी कवायद चल रही है। इसी मकसद से मुंबई में एक बैठक हो रही है। हालांकि कांग्रेस इसमें मुख्य पार्टी है मगर बाकी पार्टियों का उस राज्य में अच्छा प्रभाव है। बीजेपी के साथ ऐसी ही छोटी-बड़ी पार्टियां हैं। इसके चलते इस बार का लोकसभा चुनाव का मुकाबला कड़ा होने वाला है।

इंडिया अलायंस में 28 पार्टियां एक साथ आई हैं। इन पार्टियों की मीटिंग दो दिनों तक होगी। इसमें आयोजक कौन है, गठबंधन का लोगो क्या होगा, इसकी जानकारी मिलेगी। बेंगलुरु बैठक में गठबंधन को 'इंडिया' नाम दिया गया।

खास बात यह है कि इस गठबंधन में सातों दल कांग्रेस टूटने के बाद बने हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि सात दल कभी बीजेपी के साथ एनडीए में थे। इन सात पार्टियों में से कुछ दोनों पक्षों में थीं। इन सभी दलों की यह तीसरी बैठक है। इस बैठक में पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया के साथ-साथ एक और क्षेत्रीय पार्टी भी हिस्सा लेगी।

आज की बैठक में कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव ग्रुप), एनसीपी (शरद पवार ग्रुप), सीपीआई, सीपीआईएम, जेडीयू, डीएमके, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद, समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी शामिल हैं।

इसके अलावा छोटी पार्टियों में आरएलडी, सीपीआई (एमएल), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), मनिथानेया मक्कल काची (एमएमके), एमडीएमके, वीसीके, आरएसपी, केरल कांग्रेस, केएमडीके, एआईएफबी, अपना दल कामेरवाड़ी और किसान और श्रमिक शामिल हैं। पार्टी शामिल है।

जो पार्टियां कभी-कभी बीजेपी के साथ होती हैं वो हैं- शिवसेना (उद्धव ग्रुप), पीडीपी, जेडीयू, टीएमसी, रालोद, केएमडीके। 1999 में ममता की टीएमसी बीजेपी में थी। वह रेल मंत्री भी थे। 2001 में यह पार्टी यूपीए में शामिल हो गई।