पूर्व डीजीपी व कथावाचक आचार्य गुप्तेश्वर पाण्डेय जी महाराज के द्वारा कहे जाने वाले राम कथा के आठवें दिन भी उमडी भारी भीड़
जहानाबाद : जिले में आयोजित रामकथा महोत्सव के आठवें दिन आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज ने रामकथा की श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारी, कैकेई की दासी मंथरा द्वारा कैकेई को राम के स्थान पर भरत के राज्याभिषेक के लिए बहकाना, मंथरा के प्रभाव में कैकेई का आना, कैकेई का कोप भवन में जाना,दशरथ का कैकेई के पास जाकर कैकेई के कुपित होने का कारण जानना, कैकेई द्वारा देवासुर संग्राम के दौरान राजा दशरथ के दिए दो वचन का याद दिलाकर भरत की राजगद्दी मांगना और राम के लिए वनवास, पिता की आज्ञा पा राम, लक्ष्मण, सीता का वनगमन और राम-केवट संवाद से की।
रामकथा से सम्बद्ध इन विषयों के विवेचन के दौरान आचार्य श्री ने कहा कि ये सारी लीलाएं भगवान् की रची हुई है।इन लीलाओं से भगवान् एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं।यह आदर्श लोकहितार्थ है।दशरथ वृद्धावस्था को प्राप्त हैं। राजकाज संभालने में दिक्कत हो रही है। स्थापित परम्परा के अनुसार बड़े बेटे को राज्य सौंप रहे हैं।
यहां पर यह साफ संकेत है कि लोक को भी इस आचरण को अपनाना चाहिए। कैकेई को दिए वचन का निर्वाह वचन-पालन के आदर्श को स्थापित करना है। पिता की आज्ञा का पालन कर राजगद्दी छोड़ वनगमन के लिए सहर्ष तैयार होना आज्ञाकारिता धर्म को स्थापित करता है। सीता का राम के साथ वनवास में जाने का निर्णय पत्नी धर्म के निर्वहन का अनुकरणीय उदाहरण है।
लक्ष्मण जी का श्री राम के साथ अपने समस्त सुखों का परित्याग कर वन जाना भ्रातृप्रेम की स्थापना है।
आचार्य श्री ने जोर देकर कहा कि रामावतार में भगवान् की सारी लीलाएं उन उच्चादर्शों की स्थापना है,जिसके अनुकरण से व्यक्ति,परिवार समाज, राष्ट्र और विश्व का कल्याण होगा। प्रत्येक व्यक्ति चाहे नर हो या नारी, अपने जीवन में एक निश्चित दायित्व के निर्वहन की हालत में रहता है और उन दायित्वों का निर्वाह कर अपने जीवन को सार्थक बना प्रभु कृपा का अधिकारी बन जाता है। रामचरितमानस में इसी विज्ञान का उद्घाटन है।लोकधर्म और मर्यादा सिखाने का विज्ञान है।
रामचरितमानस के चरित्रों से सीखकर ही लोकजीवन को सुन्दर और सुव्यवस्थित बना सकते हैं यही कारण है। कि रामकथा का श्रवण,मनन, चिंतन और अनुसरण ही सम्पूर्ण कष्टों के निवारण की औषधि है।कष्ट निवारण औषधि का विज्ञान है। -रामचरितमानस। कथा विस्तार के क्रम में आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज ने अनेक ज्ञानवर्धक बातें की।
सुमित्रा-लक्ष्मण संवाद के क्रम में माता सुमित्रा द्वारा लक्ष्मण को राम को पिता और सीता को माता मान उन दोनों की सेवा के लिए वन जाने की आज्ञा देना, एक मां के अति उदार और विशाल हृदय का अनुपम उदाहरण है। सुमित्रा जैसी मां भारत भूमि में ही हो सकती है।
राम-केवट मिलन का रोचक वर्णन करते हुए आचार्य जी ने कहा कि यह मिलन समन्वयवाद को स्थापित करता है। समन्वयवाद लोकजीवन का आधार है।
आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज के मुख से निकली रामकथा की वाणी श्रद्धालुओं पर गहरा प्रभाव डाल रही थी।कथा कहन का ऐसा असर की श्रोता एकदम शांत होकर कथा श्रवण करते दिखे। अन्य दिनों की तरह मंच पर आरती स्वामी राकेश जी महाराज के द्वारा किया गया।
उपस्थित लोगों में संतोष श्रीवास्तव अजीत शर्मा ,डा गिरिजेश कुमार , जिला विधिक संघ अध्यक्ष गिरजानंदन सिंह त्यागी अधिवक्ता), राज किशोर शर्मा , शैलेश कुमार ,मारकर्णडे कुमार आजाद,रणजीत रंजन , सुबोध कुमार तथा रवि शंकर शर्मा सहीत हजारों लोगों ने प्रवचन का आनन्द लिया।
जहानाबाद से बरुण कुमार
Apr 09 2023, 18:57