जहानाबाद के गांधी मैदान में आचार्य गुप्तेश्वर पा॑डेय जी महाराज के रामकथा सुनने हेतु भक्तों की लगी अपार भीड़।
जहानाबाद (गांधी मैदान)
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं सुप्रसिद्ध कथावाचक श्री गुप्तेश्वर पाण्डेय (आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज) ने रामकथा महोत्सव के पांचवें दिन रामकथा को ऐसी जीवंतता प्रदान की कि कथा स्थल पर उपस्थित नर-नारी शांत भाव से कथा का आनंद लेते दिखे।परात्पर ब्रह्म श्री राम का अयोध्या में दशरथ पुत्र के रूप में प्रकट होना, प्रकटीकरण का उद्देश्य,बाल लीला, विश्वामित्र जी का ऋषियों, तपस्वियों के रक्षार्थ दशरथ से राम,लक्ष्मण को मांगना, पुत्र मोह में दशरथ का संकल्प -विकल्प में पड़ना, गुरु वशिष्ठ के द्वारा राजधर्म पालन का ज्ञान पाकर विश्वामित्र जी की बात मानना,राम, लक्ष्मण द्वारा बक्सर की तपोभूमि में आतंक मचा रहे राक्षसों का बंध करना, विश्वामित्र जी के साथ राम, लक्ष्मण का राजा जनक जी के यहां जाना, जनक की नगरी जनकपुर में नगर भ्रमण के दौरान नगर के नर, नारियों को अपने अलौकिक रूप का दर्शन कराना आदि कथाओं का आचार्य श्री ने अद्भुत वर्णन किया।इसी क्रम में आचार्य जी ने कहा कि निर्गुण,निराकार ब्रह्म सगुण, साकार रूप में जब जगत में आता है, तो उसे लीलाएं करनी पड़ती है। ब्रह्म के सगुण,साकार रूप का उद्देश्य लोक कल्याण होता है।परात्पर ब्रह्म श्री राम का शरीर निजेच्छा निर्मित, त्रिगुणा तीत और चिदानन्दमय था। अवतार के समय राम घनश्याम वर्ण के,माला पहने हुए और शंख,चक्र,गदा तथा पद्म धारण किये हुए थे। भगवान् का अवतार ही अन्याय, अनाचार,गौ, ब्राह्मण, ऋषि,देव आदि की रक्षा और भक्त को प्रसन्न करने के लिए होता है। कथा-क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्य जी ने कहा कि हम सब प्रेय मार्ग के पथिक हैं।
सांसारिक सुख अर्थात सुखवाद को ही सत्य मानकर ज्ञानी से अज्ञानी,सुखी से दुखी और अभिमानी हो ग्रे हैं। यद्यपि की जीव ईश्वर का अंश है। गीता में लिखा है,ममैवांशो जीवलोके। तुलसीदास जी भी कहते हैं। ईश्वर अंस जीव अविनाशी,चेतन अमल सहज सुख रासी।पर संकल्प -विकल्प में पड़कर, माया के प्रभाव में आकर इस प्रकार कलुषित हो गया कि अपना सच्चा सुख को दिया है।
जीव को श्रेय मार्गी बनना होगा।जीव को प्रेय मार्ग से श्रेय मार्ग की ओर ले जाने का विज्ञान है -रामचरितमानस। रामचरितमानस का नित्य अध्ययन, भगवान राम के प्रति भक्ति ही जीव को उत्तमता प्रदान करेगा। आचार्य जी ने आगे कहा कि कंचन कामिनी और सांसारिक यश की कामना के वशीभूत हो हम अपनी निर्मलता और धवलता को देते हैं।अन्त:करण को मैला कर देते हैं। चित् शुद्धि की प्रवृत्ति हमारी समाप्त हो जाती है। तमोगुणी, रजोगुणी और सतोगुणी अहंकार में फंसकर त्रिताप पीड़ित हो जाते हैं।इस पीड़ा से मुक्ति के विज्ञान का ही नाम है-रामचरितमानस। रामचरितमानस में राम तत्व का ऐसा संधान है। जो जगत कल्याणार्थ शाश्वत स्वरूप लिए। आचार्य श्री ने अंतिम पंक्ति कहकर समापन किया कि भगवान् श्री राम की भक्ति ही मुक्ति कि मार्ग है और इसका प्रकाशन रामचरितमानस में हुआ है। कथा स्थल का माहौल श्रद्धा,विश्वास से भरा दिखा।
आचार्य श्री गुप्तेश्वर जी महाराज की संगीतमय शैली उपस्थित नर-नारी को भक्ति की भाव धारा में बहा रहा था। अन्य दिनों की तर ही मंच पुजन स्वामी राकेश जी महाराज के आरती से हुआ ,पूजन पंडीत अशोक जी महाराज ने किया ।आज रामकथा में डा गिरिजेश कुमार संतोष श्रीवास्तव , डा वीरेन्द्र कुमार सिंह,अजीत शर्मा ,मार्कण्ये कुमार आजाद , शिक्षाविद राज किशोर शर्मा पत्रकार शैलेश कुमार ,अपर लोक अभियोजक सुधीर कुमार , ।सत्येंद्र सिह ,सुबोध कुमार ,
जहानाबाद से बरुण
Apr 06 2023, 16:36