राम कथा के दुसरे दिन देर रात तक चला पूर्व डीजीपी आचार्य गुप्तेश्वर पांडेय का सारगर्भित प्रस्तुतिकरण
जहानाबाद: श्रोतागण देर रात तक कथा का रसास्वादन भक्ति भाव से जी भरकर किया।रामकथा वाचक आचार्य गुप्तेश्वर महाराज ने महर्षि वाल्मीकि प्रणीत रामायण एवं संत कवि गोस्वामी तुलसीदास प्रणीत रामचरितमानस में वर्णित भगवान श्री राम को त्रिगुणातीत, चिदानंदमय और निजेच्छा निर्मित शरीर धारी बताया।उनके अवतरण का उद्देश्य त्रिताप पीड़ित जगत का कल्याण है।इसलिए उनका नित्य निरंतर स्मरण,कथा का श्रवण और समर्पण के साथ उनकी भक्ति ही जगत के लिए कल्याणकारी है।
आचार्य श्री ने श्रोताओं को कहा कि राम कथा के महत्व का अंदाजा आप सभी इससे लगा सकते हैं कि भगवान शंकर माता पार्वती को राम की कथा सुना रहे हैं।अपने हृदय में धारण किए श्री राम से माता पार्वती को परिचित कराने की घटना ही रामकथा को महनीयता प्रदान करता है।
इतना ही नहीं,महर्षि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज जी और कागभुशुण्डि ने गरुड़ जी को भगवान श्री राम की कथा सुनाई।ये सभी सिद्धात्मा, विमलात्मा हैं, जिन्होंने राम कथा का श्रवण किया और इस प्रकार जगत कल्याण के लिए रामकथा का प्रणयन हुआ।देर रात तक कथा वाचन के दौरान उन्होंने रामकथा के तत्व चिंतन पर सारगर्भित बातें कही।
उन्होंने कहा कि कुछ मूल प्रवृतियां हैं,जो मनुष्य में जन्मजात है।वे हैं -काम, निद्रा,भय, क्षुधा, पिपासा आदि।अनेक कामनाएं और वासनाएं भी हृदय निकेतन में निवास करती हैं।इन प्रवृत्तियों एवं संवेगों से कोई व्यक्ति मुक्त नहीं है।
ये प्रवृतियां भोग से शांत नहीं होती,प्रत्युत् इस प्रकार वृद्धिगत होती हैं,जिस प्रकार घृत से अग्नि।इन प्रवृत्तियों का घर मन है।जबतक ये प्रवृतियां आपके अन्दर मौजूद है।। तब तक आप परमानंद की प्राप्ति नहीं कर सकते। चित् अर्थात मन की शुद्धि और राम भक्ति से ही अशांत करने वाली प्रवृतियों से छुटकारा मिलेगा।
कथा प्रवाह में बहते हुए आचार्य गुप्तेश्वर महाराज जी ने कहा कि तीन एषणाएं हैं: पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकैषणा अर्थात संतान,धन और यश की कामनाएं।इस ऐषणा त्रय के वशीभूत मनुष्य मृगतृष्णा में पड़ा रहता है। इनका त्याग कर देने पर ही मनुष्य भव-बंधन से मुक्ति पा सकता है।भगवद भक्ति में ही इन ऐषणाओं से मुक्ति की शक्ति है।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्य श्री ने बल देकर कहा कि ये तीन प्रधान संवेग अन्य कुत्सित संवेगों को जन्म देते हैं,जिनकी संख्या छ: तक पहुंच जाती है। परम्परागत और अलंकारिक भाषा में षड् रिपु कहा गया है।
ये हैं:काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद और मात्सर्य।इन प्रवृत्तियों और रिपुओं के कारण मनुष्य सन्मार्ग से विचलित हो जात है और अनेक पाप करके लोक और परलोक दोनों को नष्ट कर देता है।रामकथा का श्रवण और भगवान राम के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के साथ भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है।
कथा विस्तार में भगवान श्री राम को लेकर शिव-पार्वती संवाद, शिव-पार्वती विवाह,माता पार्वती के पिता दक्ष प्रजापति की ज्ञानवर्धक चर्चा हुई। वर्षा की हालत में भी श्रद्धालु श्रोता भारी संख्या में आचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज के मुख से निकली वाणी का श्रद्धापूर्वक श्रवण करते रहे।
राम कथा के दुसरे दिन राम कथा का आरती स्वामी राकेश जी महाराज ने किया मंच का पूजन स्वामी अशोक जी महाराज ने किया अन्य सहयोगी संतोष श्रीवास्तव ,मार्कण्डेय कुमार आजाद उर्फ ललन , राजकिशोर शर्मा डा वीरेन्द्र कुमार सिहं , डा एस के सुनील , सुबोध कुमार , रमेश कुमार ,सत्येंद्र सिहं तथा रविशंकर शर्मा उपस्थित थे ।
जहानाबाद से बरुण कुमार
Apr 01 2023, 18:44