*अब कानपुर शहर में भी उपलब्ध होगी लिवर सम्बंधित किसी भी प्रकार की सर्जरी के परामर्श की सुविधा*
कानपुर- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा द्वारा शनिवार को दोपहर 2:30 बजे एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। आई०एम०ए० कानपुर के अध्यक्ष डा० पंकज गुलाटी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
डॉ विशाल कुमार चौरसिया ने बताया कि अब कानपुर शहर में लिवर सम्बंधित किसी भी प्रकार की सर्जरी के परामर्श के लिए सुविधा ओपीडी के ज़रिये उपलब्ध होगी। डॉ विशाल चौरसिया ने और जानकारी देते हुए कहा की गंभीर लिवर रोग के कारण शरीर के प्रमुख अंग जैसे लिवर, किडनी आदि ख़राब हो जातें हैं, ऐसी स्थिति में इलाज के दृष्टिकोण से प्रत्यारोपण करना एक जीवन दायक विकल्प माना जाता है, डॉ विशाल चौरसिया ने कहा की जागरूकता की कमी, प्रत्यारोपण की उचित सुविधाओं तक पहुंच ना होने और सही डोनर के ना मिलने के कारण बहुत भारी संख्या में मरीज़ इस विकल्प का चुनाव कर पाने में असमर्थ होते हैं।
लिवर शरीर को सुचारू रूप से चलाने का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण ऑर्गन (अंग) है। लिवर शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थ को फिल्टर करके बाहर निकालने का काम करता है। साथ ही ये ब्लड शुगर को मेंटेन करने का काम भी बखूबी करता है। लिवर काफी नाजुक और संवेदनशील ऑर्गन है जो खराब आदतों जैसे शराब, सिगरेट और तंबाकू का सेवन करने से डैमेज हो सकता है। कई बीमारियों की वजह से भी लिवर डिजीज होने की संभावना बढ़ जाती है। कई बार बीमारी बढ़ने के कारण लिवर फेलियर या कैंसर जैसी स्थिति का भी सामना करना पड़ जाता है। हालांकि ऐसी स्थिति का सामना केवल गंभीर पेशेंट को ही करना पड़ता है। कैंसर या लिवर फेलियर से बचने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट का सहारा लिया जाता है।
लिवर ट्रांसप्लांट एक बीमार लिवर को स्वस्थ्य लिवर से बदलने की प्रक्रिया है जो किसी अन्य व्यक्ति या डोनर के शरीर से लिया जाता है। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एक डोनर की आवश्यकता पड़ती है। हाल ही में मृत घोषित किए गए व्यक्ति का लिवर अन्य व्यक्ति के शरीर में लगाया जा सकता है या एक हेल्दी व्यक्ति भी लिवर डोनेट कर सकता है। लिवर कमजोर होने की बीमारी को सिरोसिस के नाम से जाना जाता है। बता दें कि सिरोसिस कई कारणों से हो सकता है, हेपिटाइटिस बी और सी, डायबिटीज, मोटापा और अधिक शराब का सेवन इस समस्या को बढ़ा सकता है। लिवर डिजीज कई बच्चों में जन्मजात भी हो सकती है।
डॉ दिनेश चंद्रा कटियार ने कहा कि भारत में अब हर प्रकार के कैंसर का इलाज उपलब्ध है समय पर जांच और कैंसर जागरूकता ही कैंसर पर जीत का एकमात्र तरीका है. नवीनतम उपकरणों और नए उपचार से हर तरह कैंसर का इलाज किया जा सकता है. डॉ दिनेश कटियार ने कानपुर में विशेष रूप से मुंह के कैंसर के बारे में बात की, जो अब गुटखा सेवन के कारण प्रसिद्ध हो गया है। प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का निदान हो जाना ज़रूरी है और अक्सर यह इलाज में बहुत फायदेमंद साबित होता है। इसमें कैंसर स्क्रीनिंग का बहुत बड़ा योगदान रहता है।समय रहते डायग्नोज़ होने से कैंसर का सही तरीके से इलाज और बचाव संभव हो सकता है। ज़्यादातर मामलों में लोग बहुत देरी से पहुंचते हैं क्योंकि शुरुआती स्टेज में कैंसर के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए 40 साल की उम्र से हमे अपने बाकी नियमित परीक्षण के साथ-साथ कुछ अन्य परीक्षण करवाने की आवश्यकता पढ़ती है। आप अपने डॉक्टर से सलाह लेने के बाद जांच करवा सकते हैं क्योंकि इसमें आपकी उम्र, आपकी जीवन शैली, आपके परिवार का मेडिकल इतिहास के हिसाब से कैंसर की जांच करवाने की सलाह दी जाती है।
कुछ प्रमुख टेस्ट्स हैं: छाती का एक्स-रे, लंग्स का सीटी स्कैन जिसमे लंग्स के कैंसर को डायग्नोज़ किया जा सकता है। पुरुषों में एक ब्लड टेस्ट होता है जो प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, पूरे पेट का अल्ट्रासाउंड जो महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए करवाना अनिवार्य है। इसके साथ ही महिलाओं में पाप स्मीयर नाम की जांच करवाना ज़रूरी है जिसके द्वारा सर्वाइकल कैंसर के होने का पता चलता है और एक मैमोग्राफी टेस्ट जिससे ब्रेस्ट के कैंसर का पता लगाया जा सकता है। ये दोनों ही कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और ब्रैस्ट कैंसर, महिलाओं के अंदर बहुत कॉमन हैं इसलिए यह जांच अपने गायनेकोलॉजिस्ट से सलाह लेकर करवा सकती हैं।
कैंसर से बचाव के लिए जागरूकता बहुत ही ज़रूरी है क्योंकि अधिकतर मरीज़ स्टेज 3 या स्टेज 4 पर पहुंच जाते हैं। जितना जल्दी हम कैंसर को डायग्नोज़ कर सकते हैं उतना ही जल्दी इसका इलाज संभव है और पूरी तरह से इसको ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा पेट संबंधित कैंसर या आंतों से सम्बंधित कैंसर की जांच के लिए एंडोस्कोपी नमक जांच की जाती है।
डॉक्टर कैंसर के निदान के लिए निम्नलिखित में से एक या अधिक तरीकों का उपयोग कर सकता है:
1. शारीरिक परीक्षा
आपके शरीर के क्षेत्रों में गांठ महसूस करने की कोशिश करेंगे जो कैंसर का संकेत सकते हैं। शारीरिक परीक्षा के दौरान, डॉक्टर आपके शरीर में असामान्यताओं की तलाश कर सकते हैं, जैसे कि त्वचा के रंग में परिवर्तन या किसी अंग का बढ़ना, जो कैंसर की उपस्थिति का संकेत दे सकता है।
2. प्रयोगशाला परीक्षण
प्रयोगशाला परीक्षण, जैसे मूत्र और रक्त परीक्षण,डॉक्टर को उन असामान्यताओं की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो कैंसर के कारण हो सकते हैं।
3. इमेजिंग परीक्षण
इमेजिंग परीक्षण डॉक्टर को हड्डियों और आंतरिक अंगों की गैर-आक्रामक तरीके से जांच करने में मदद करते हैं। कैंसर के निदान में उपयोग किए जाने वाले इमेजिंग परीक्षणों में कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सी टी) स्कैन, बोन स्कैन, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई), पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे शामिल हो सकते हैं।
4. बायोप्सी
बायोप्सी के दौरान, डॉक्टर प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए सेल्स का सैंपल एकत्र करता है। सैंपल एकत्र करने के कई तरीके हैं। आपके लिए कौन सी बायोप्सी प्रक्रिया सही है यह आपके कैंसर के प्रकार और उसके स्थान पर निर्भर करता है। ज्यादातर स्थितियों में, निश्चित रूप से कैंसर का निदान करने का एकमात्र तरीका बायोप्सी है।
डॉ गौरव चावला, MD Consultant Gastroenterologist and Hepatologist कानपुर मेडिकल सेंटर (KMC), Kanpur Obstructive Jaundice) के बारे में बातचीत की. जब लिवर से निकलने वाले पदार्थ बाइल (bile) के बाहर निकलने में बाधा पैदा होने लगे, तो उस स्थिति को बाधक पीलिया या Obstructive jaundice कहते हैं बाधक पीलिया या ऑब्स्ट्रक्टिव जॉन्डिस के निम्न लक्षण है-स्किन,आंख, दांत आदि का पीला पड़ना, हल्के रंग का मल और गाढ़े रंग की पेशाब, बहुत ज्यादा खुजली होना
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस (Obstructive Jaundice) एक ऐसी अवस्था है जिसमें लिवर के बाहर पित्त के बहाव में रुकावट होती है। इससे खून में अतिरिक्त पित्त निर्माण होता है और शरीर से पित्त का उत्सर्जन भी बाधित होता है। पित्त में कई उप-उत्पाद होते हैं, जिनमें से एक बिलीरुबिन है, जो मृत लाल रक्त कोशिकाओं से बनता है। बिलीरुबिन पीले रंग का होता है। इसकी वजह से त्वचा, आंखों और श्लेष्म झिल्ली का रंग भी पीला पड़ जाता है, जिसे आमतौर पर पीलिया कहा जाता है। ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस पीलिया का ही एक प्रकार है।
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस के लक्षण क्या हैं?
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस के सामान्य लक्षणों में शामिल हैंः
आंखों की सफेद पुतलियां और चेहरे की त्वचा पीली होना
मल-मूत्र पीले रंग का होना
तेज खुजली होनाजैसे ही स्थिति बिगड़ती है, अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं:
गंभीर पेट दर्द बुखार ठंड लगना
उल्टी और मतली होना थकान महसूस करना इसके अन्य लक्षण भिन्न हो सकते हैं, जो खून में पित्त रुकावट की स्थिति पर निर्भर कर सकते हैं।
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस के क्या कारण हैं?
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस तब होता है जब आंत में पित्त का जरूरी बहाल रूक जाता है और रक्त प्रवाह में बढ़ने लगता है। यह पित्त पथरी के कारण बंद हुए पित्त नलिकाओं या पित्त नली के ट्यूमर के कारण हो सकता है जो कैंसर हो सकता है। अग्नाशय का कैंसर भी इसके रुकावटों का ही एक कारण हो सकता है क्योंकि यह अक्सर वैट के ऐम्पल के पास होता है, जो ट्यूब अग्न्याशय ग्रंथि से पाचनग्रंथि में मिलती है। इसके अलावा निम्न स्थितियां भी ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस का कारण बन सकती हैंः
आज के कार्यक्रम के चेयरपर्सन डॉ डी पी अग्रवाल, डॉ दीपक अग्रवाल, डॉ अरुण खंडुरी, डॉ अर्चिता गुप्ता, डॉ स्नेहा झा थे। कार्यक्रम के पैनलिस्ट डॉ. अभिनव सेंगर, डॉ शुभ्रा मिश्रा, डॉ सौम्यालीन रॉय, डॉ राहुल गुप्ता थे।

Mar 19 2023, 20:04
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