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शेख हसीना के बेटे ने यूनुस सरकार पर 'जासूसी अभियान' का आरोप लगाते हुए मचाई हलचल

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पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे साजिब वाजेद ने देश की अंतरिम सरकार पर अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में न्यायपालिका को हथियार बनाने और अवामी लीग के नेताओं को सताने के लिए ‘जासूसी अभियान’ शुरू करने का आरोप लगाया है, क्योंकि ढाका ने उनकी मां के भारत से प्रत्यर्पण की मांग की थी।

भारत के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को पुष्टि की कि यूनुस के कार्यवाहक प्रशासन ने औपचारिक रूप से हसीना के प्रत्यर्पण के लिए कहा था, जो अगस्त में बांग्लादेश से भागने के बाद से भारत में रह रही हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दोनों देशों के बीच संबंध नए निम्न स्तर पर हैं। ढाका द्वारा प्रत्यर्पण अनुरोध किए जाने के बाद, हसीना के अमेरिका में रहने वाले बेटे वाजेद ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "अनिर्वाचित यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों और अभियोजकों ने अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के माध्यम से हास्यास्पद परीक्षण प्रक्रिया का संचालन किया है, जो इसे एक राजनीतिक डायन हंट बनाता है जो न्याय को त्याग देता है और अवामी लीग नेतृत्व को सताने के लिए एक ओर चल रहे हमले को दर्शाता है।" "हम अपनी स्थिति को दोहराते हैं कि जुलाई और अगस्त के बीच मानवाधिकार उल्लंघन की हर एक घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जांच की जानी चाहिए, लेकिन यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने न्यायपालिका को हथियार बना दिया है, और हम न्याय प्रणाली पर कोई भरोसा नहीं जताते हैं," उन्होंने एक लंबी पोस्ट में कहा। 

सोमवार को बांग्लादेश के भ्रष्टाचार निरोधक आयोग ने कहा कि उसने उन आरोपों की जांच शुरू की है कि वाजेद ने हसीना और उनकी भतीजी, ब्रिटेन के राजकोष मंत्री ट्यूलिप सिद्दीक के साथ मिलकर रूस की सरकारी परमाणु एजेंसी द्वारा बांग्लादेश में बनाए जा रहे “अत्यधिक कीमत वाले 12.65 बिलियन डॉलर” के परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट से कथित तौर पर 5 बिलियन डॉलर का गबन किया है।

वाजेद ने बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण को “कंगारू न्यायाधिकरण” बताया और कहा कि हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध ऐसे समय में आया है जब सैकड़ों अवामी लीग के नेताओं और कार्यकर्ताओं की “न्यायिक तरीके से हत्या” की गई या उन पर “घृणित हत्या के आरोप” लगे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कानून प्रवर्तन द्वारा “हजारों लोगों को अवैध रूप से कैद किया गया” और “लूटपाट, तोड़फोड़ और आगजनी सहित हिंसक हमले हर दिन बिना किसी दंड के हो रहे हैं, जो शासन के इनकार से प्रेरित हैं”।

5 अगस्त को छात्र समूहों द्वारा किए गए देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बाद हसीना के पद से हटने और भारत में शरण लेने के बाद से, उनके और अवामी लीग पार्टी के नेताओं के खिलाफ दर्जनों आपराधिक और अन्य मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण भी शामिल है। वाजेद ने आरोप लगाया कि न्यायाधिकरण के मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम, जिन्हें उन्होंने कहा कि कार्यवाहक प्रशासन द्वारा “युद्ध अपराधियों का बचाव करने के सिद्ध रिकॉर्ड के बावजूद” नियुक्त किया गया था, ने हसीना के खिलाफ “जानबूझकर गलत सूचना” फैलाई थी, यह दावा करके कि इंटरपोल ने उनके खिलाफ “रेड नोटिस” जारी किया था।

वाजेद ने आगे आरोप लगाया कि यह यूनुस के हित में “उसे प्रत्यर्पित करने और [एक] हास्यास्पद मुकदमा चलाने की हताश कोशिश” थी। उन्होंने कहा, “लेकिन बाद में उसी अभियोजक ने मीडिया द्वारा सरासर झूठ को उजागर किए जाने के बाद अपने बयान को बदल दिया और अब आधिकारिक तौर पर प्रत्यर्पण के लिए भारत को अनुरोध भेजा है।” 

प्रत्यर्पण अनुरोध से नई दिल्ली और ढाका के बीच तनाव बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने प्रत्यर्पण अनुरोध की पुष्टि के अलावा इस पर विस्तार से कुछ नहीं कहा, लेकिन यह संभावना नहीं है कि भारत सरकार हसीना को सौंपेगी, जिन्हें पड़ोस में नई दिल्ली के दृढ़ सहयोगियों में से एक माना जाता है।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

बांग्लादेश का एक और भारत विरोधी कदम, कोलकाता-त्रिपुरा से वापस बुलाए डिप्लोमेट्स

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बांग्लादेश और भारत के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं। शेख हसीने के देश छोड़ने के बाद से लगातार बांग्लादेशी की अंतरिम सरकार भारत विरोधी रूख अपनाए हुए है। बांग्लादेश में लगातार चल रही हिंदू विरोधी हिंसा और मंदिरों में तोड़फोड़ के बीच वहां 'बॉयकॉट इंडिया' कैंपेन भी शुरू हुआ है। अपने यहां भड़की हिंसा की आग को बुझाने के बजाय अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने एक और ऐसा कदम उठा दिया है, जो सीधेतौर पर वहां बढ़ते भारत विरोध की झलकी पेश कर रहा है। दरअसल, बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है।

भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश ने त्रिपुरा के अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्चायोग पर हमले और कोलकाता में बांग्लादेश उप उच्चायोग के सामने विरोध प्रदर्शन के बाद इन दोनों डिप्लोमेट्स को तत्काल ढाका वापस बुला लिया है।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है कि बंगाल से राजनयिक वापस बांग्लादेश लौट आए हैं, जबकि त्रिपुरा के सहायक उच्चायुक्त के भी आज ढाका लौटने की उम्मीद है। सूत्रों ने कहा कि कोलकाता में बांग्लादेश के कार्यवाहक उप उच्चायुक्त शिकदार मोहम्मद अशरफुर रहमान और त्रिपुरा में सहायक उच्चायुक्त आरिफुर रहमान को पिछले मंगलवार को तत्काल आधार पर ढाका लौटने का निर्देश दिया गया था।

क्यों भारत से बुलाए डिप्लोमेट्स?

बता दें कि हाल ही में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में बांग्लादेश के राजनयिक मिशन में तोड़फोड़ हुई थी। बाद में इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कैम्पस में घुसपैठ के मामले में 4 पुलिस अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई थी। वहीं, बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर घटना का विरोध जताया गया था। साथ ही बांग्लादेश ने अगरतला में अपनी काउंसलर सर्विस भी बंद करने का ऐलान किया था। अब बांग्लादेश ने त्रिपुरा से अपने डिप्लोमेट को वापस बुला लिया है।

हिंदुओं पर अत्याचार, विरोध में भारत

भारत सरकार लगातार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर बयान जारी कर रही है। भारत सरकार ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। साथ ही घर्मगुरू चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के खिलाफ भी सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध जताया था। बता दें कि हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के बड़े धार्मिक चेहरे चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर कथित भड़काऊ भाषण देने के लिए राजद्रोह का केस लगाया है।

अब बांग्लादेश में 'बॉयकॉट इंडिया'

उधर, अगरतला-कोलकाता की घटना के जवाब में बांग्लादेश में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। गुरुवार को बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की अपील की।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में भारत विरोधी प्रदर्शन करते हुए अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने सार्वजनिक रूप से भारतीय साड़ी जलाते हुए लोगों से भारतीय सामान न खरीदने की अपील की। उन्होंने कहा, जिन लोगों ने हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया है, हम उनका सामान खरीदकर उनका समर्थन नहीं करेंगे। हमारी माताएं-बहनें अब भारतीय साड़ी नहीं पहनेंगी।"

मोहम्मद यूनुस नरसंहार में शामिल', बांग्लादेश सरकार पर शेख हसीना का तीखा हमला

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला बोला है। शेख हसीना ने कहा है कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। जबकि उन्‍होंने (शेख हसीना) हिंसा रोकने के लिए देश तक छोड़ दिया, लेकिन गोली नहीं चलने दी। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया।

बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई-हसीना

हसीना ने न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए यूनुस पर नरसंहार करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया। अगस्त में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण देश छोड़कर भारत में शरण लेने के बाद यह हसीना का पहला सार्वजनिक संबोधन था। इस दौरान उन्होंने पांच अगस्त को ढाका में अपने आधिकारिक आवास पर हुए हमले का जिक्र करते हुए कहा, ''हथियारबंद प्रदर्शनकारियों को गणभवन की ओर भेजा गया। अगर सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां चलाई होतीं, तो कई लोगों की जान जा सकती थी। मुझे वहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। मैंने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे गोलियां न चलाएं।'' उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई थी।

यूनुस सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे-हसीना

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए में हसीना ने कहा, ‘‘आज मुझ पर नरसंहार का आरोप लगाया जा रहा है। वास्तव में, यूनुस एक सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे हैं। इस नरसंहार के पीछे मुख्य षड्यंत्रकारी छात्र समन्वयक और यूनुस हैं।'' हसीना ने कहा कि ढाका में मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रही है। हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का परोक्ष संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू, बौद्ध, ईसाई - किसी को भी नहीं बख्शा गया है। ग्यारह गिरजाघरों को ध्वस्त कर दिया गया है, मंदिरों और बौद्ध उपासनास्थलों को तोड़ दिया गया है। जब हिंदुओं ने विरोध किया, तो इस्कॉन के संत को गिरफ्तार कर लिया गया।

हसीना ने पूछा- अल्पसंख्यकों पर अत्याचार क्यों हो रहा है?

हसीना ने इस दौरान बांग्लादेश सरकार से पूछा, ‘‘अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों हो रहा है? उन्हें क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है?'' उन्होंने कहा, ‘‘मुझे तो इस्तीफा देने का भी समय नहीं मिला।'' हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।''

फिर सुलगने लगा बांग्लादेश, अब शेख हसीना के समर्थक सड़कों पर, ट्रंप के जीतते ही आवामी लीग में उत्साह!

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बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग की नेता शेख हसीना एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। दरअसल, बांग्लादेश में एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इस बार शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता सड़क पर उतर गए हैं।शेख हसीना की पार्टी के समर्थकों और भूमिगत हुए नेता रविवार को ढाका के गुलिस्तान, जीरो पॉइंट, नूर हुसैन स्क्वायर इलाकों में सड़कों पर उतरे।अपने नेताओं को गलत तरीके से फंसाने, छात्र विंग पर प्रतिबंध लगाने और एएल कार्यकर्ताओं को सताने के लिए अवामी लीग द्वारा यह विरोध प्रदर्शन किया गया।

5 अगस्त को शेख हसीना के तख्तापलट के बाद तीन महीनों में जो नहीं हुआ ढाका में वो देखना को मिला। तख्तापलट के बाद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता हमलों का शिकार हुए। वो अब अचानक खुलकर यूनुस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। हालांकि अंतरिम सरकार ने उन्हें चेतावनी दी लेकिन वो नहीं माने। कुछ समय पहले अंतरिम सरकार ने अवामी लीग के स्टूडेंट विंग ‘स्टूडेंट लीग’ को बैन कर दिया था। संगठन के खिलाफ 2009 के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत ये कार्रवाई की गई। स्टूडेंट लीग को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल पाया गया। इसी के खिलाफ अवामी लीग ने मोर्चा खोल दिया। वो नेता भी बाहर आ गए जो कल तक अंडरग्राउंड थे।

हसीना की पार्टी अवामी लीग के फेसबुक पेज पर सफल विरोध मार्च के लिए आह्वान करते हुए पोस्ट जारी हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न निर्देश दिए गए हैं। इस पोस्ट में, पार्टी ने 10 नवंबर को शहीद नूर हुसैन दिवस के उपलक्ष्य में ढाका के जीरो प्वाइंट शहीद नूर हुसैन स्क्वायर पर विरोध मार्च की घोषणा की। उन्होंने तीन बजे भी मार्च निकालने की घोषणा की।पोस्ट के जरिए कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है जो मुक्ति संग्राम के मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते हैं।

इधर आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए बांग्लादेश की सेना-पुलिस तैनात कर दी गई। ढाका पुलिस ने उन्हें विरोध रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। देशभर में सेना की 191 टुकड़ियां तैनात की गई है। वहीं इस बीच सरकार के विभिन्न हलकों ने चेतावनी भी दी है कि आवामी लीग को विरोध मार्च आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अवामी लीग को फासीवादी करार देते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी को नियोजित रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं देगी।

अब सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि अवामी लीग इतनी आक्रामक हो गई? इसे अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की वापसी से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, शेख हसीना ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर डोनाल्ड ट्रंप को बधाई संदेश दिया है। इसमें शेख हसीना ने खुद को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनाता।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना ने ट्रंप को बधाई संदेश अपनी पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग के लेटर हेड पर लिखा। लेटर हेड पर सामने ही मोटे अक्षरों में पार्टी का नाम है। इसके नीचे पता 23 बंगबंधु एवेन्यू, ढाका का पता लिखा था। आखिर में बांग्लादेश अवामी लीग के ऑफिस सेक्रेटरी बिप्लब बरुआ के हस्ताक्षर।

इसके अलावा शेख हसीना ने ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की है। इसमें शेख हसीना के साथ उनकी बेटी साइमा वाजिद भी खड़ी हैं।

पार्टी के सुप्रीम नेता के एक्टिव मोड में आने से शायद बांग्लादेश में ठंडे पड़ चुके कार्यकर्ताओं को भी ग्रीन सिग्नल मिला। जिसके बाद बांग्लादेश में अवामी लीग माहौल बनाने में जुट गई है।

अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया

बता दें कि शेख हसीना ने कथित तौर पर खुद को बांग्लादेश से हटाए जाने के पीछे वर्तमान जो बाइडन प्रशासन के होने का आरोप लगाया था। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री रहते हुए भी अमेरिका पर उनके खिलाफ तख्तापलट का आरोप लगाया था।

शेख हसीने के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ होने का कोई ठोस सबूत भले ही ना हो, लेकिन अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया था। इसकी झलक मोहम्मद यूनुस की संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए हाल में ही अमेरिका यात्रा के दौरान दिखाई दिया। इस दौरान मोहम्मद यूनुस बहुत प्रेम से राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलते नजर आए थे। दोनों नेताओं के बॉडी लैंग्वेज को लेकर काफी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं, सवाल यह भी उठे थे कि खुद को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहने वाले देश का राष्ट्रपति एक अलोकतांत्रित तरीके से नियुक्त कार्यवाहक से कैसे मिल रहा है।

यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी

वहीं, अगर मोहम्मद यूनुस की बात की जाए तो वे घोषित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। 2016 में, ट्रंप के पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीतने के ठीक बाद, पेरिस में एक व्याख्यान देते हुए, यूनुस ने कहा था, "ट्रंप की जीत ने हमें इतना प्रभावित किया है कि आज सुबह मैं मुश्किल से बोल पा रहा था। मेरी सारी ताकत खत्म हो गई। क्या मुझे यहां आना चाहिए? बेशक, मुझे आना चाहिए, हमें इस गिरावट को अवसाद में नहीं जाने देना चाहिए, हम इन काले बादलों को दूर कर देंगे।" ट्रंप पर यूनुस के पिछले विचार और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की ट्रंप द्वारा सार्वजनिक रूप से निंदा किए जाने के कारण इस नोबेल पुरस्कार विजेता के लिए अमेरिका से निपटना मुश्किल हो सकता है।

बांग्लादेश में पूरी प्लानिंग से किया गया तख्तापलट, मोहम्मद यूनुस ने मास्टरमाइंड का नाम बताया

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5 अगस्त 2024... वो तारीख, जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ था। हालांकि, शेख हसीना का तख्तापलट अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसकरे पीछे पूरी प्लानिंग के तरह काम किया गया। शेख हसीना ने भी देश छोड़ने बाद ये आरोप लगाया था। अब खुद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने ये बात स्वीकार की है। यही नहीं मोहम्मद यूनुस आंदोलन के पीछे के असली मास्टरमाइंड के बारे में बताया। इस शख्स को मोहम्मद यूनुस ने अपना विशेष सहायक बना रखा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने गए मोहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में तख्तापलट की साजिश का पर्दाफाश किया। मोहम्मद यूनुस ने 'क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव' कार्यक्रम में शिरकत की। यहां उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन सावधानीपूर्वक किए गए थे और ये संयोग नहीं था। उन्होंने छात्र नेता महफूज आलम का भी नाम लिया। स मौके पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी मौजूद थे।

बिल क्लिंटन की मौजूदगी मास्टरमाइंड का खुलासा

बिल क्लिंटन की मौजूदगी में यूनुस ने मंच पर महफूज आलम को बुलाकर कहा, 'पूरी क्रांति के पीछे यही (महफूज) थे।मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम के नेतृत्व की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, ये इससे इनकार करते हैं, लेकिन क्रांति के पीछे यही थे। ये अचानक हुई चीज नहीं थी। आंदोलन को बहुत अच्छे से डिजाइन किया गया था। लोगों को ये भी नहीं मालूम था कि नेता कौन हैं। ऐसे में आप किसी एक को पकड़कर ये नहीं कह सकते कि आंदोलन खत्म हो गया।'

मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम की जमकर की तारीफ

मोहम्मद यूनुस ने अपने विशेष सहायक महफूज आलम का परिचय कराते हुए कहा, 'वे भी किसी अन्य युवा की तरह ही दिखते हैं, जिन्हें आप पहचान नहीं पाएंगे। लेकिन जब आप उन्हें काम करते हुए देखेंगे, जब आप उन्हें बोलते हुए सुनेंगे, तो आप हिल जाएंगे। उन्होंने अपने भाषणों, अपने समर्पण और अपनी प्रतिबद्धता से पूरे देश को हिला दिया।'

हसीना ने अमेरिका पर लगाए थे तख्तापलट के आरोप

इससे पहले अगस्त में शेख हसीना ने अमेरिका पर तख्तापलट के आरोप लगाए थे।उन्होंने कहा था, वे छात्रों के शवों पर चढ़कर सत्ता में आना चाहते थे, लेकिन मैंने इसकी अनुमति नहीं दी। मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मैं सत्ता में बनी रह सकती थी अगर मैंने सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता अमेरिका के सामने समर्पित कर दी होती और उसे बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दे दी होती।

अवामी लीग के कुछ नेताओं ने भी सत्ता परिवर्तन के लिए मई में ढाका का दौरा करने वाले एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक को जिम्मेदार ठहराया था।आरोप है कि अमेरिकी राजनयिक चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए हसीना पर दबाव डाल रहे थे।

जमात-ए-इस्लामी का उदय और बांग्लादेश की राजनीतिक पहेली, भारत पर क्या होगा इनका असर ?

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Nobel laureate Muhammad Yunus salutes to the attendees upon arrival at the Bangabhaban,Bangladesh (REUTERS)

शेख हसीना को सत्ता से हटाए जाने के एक महीने बाद, पश्चिम समर्थक मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकर-उस-ज़मान की अगुआई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में कानून और व्यवस्था बहाल करने में विफल रही है, जबकि खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कीमत पर भी इस्लामी जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) का तेजी से उदय हो रहा है।

जेईआई का उदय, जिसका मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ गहरा वैचारिक संबंध है, और कट्टरपंथी हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामी राज्य समर्थक अंसार-उल-बांग्ला टीम के साथ रणनीतिक रूप से हाथ मिलाना बांग्लादेश की लोकतांत्रिक साख के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि खुफिया जानकारी से संकेत मिलता है कि छात्र नेता भी इस्लामवादियों द्वारा नियंत्रित या शायद प्रभावित हैं।

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि न तो बांग्लादेश की सेना और न ही यूनुस देश में अवामी लीग के कार्यकर्ता विरोधी और हिंदू विरोधी हिंसा को नियंत्रित करने में सक्षम रहे हैं, क्योंकि सेना अपराधियों से निपटने के लिए तैयार नहीं है और केवल मूकदर्शक बनकर रह गई है।

जम्मू-कश्मीर और भारत के अंदरूनी इलाकों में जमात का प्रभाव होने के कारण, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने जेईआई के उदय को देखा है, क्योंकि इसका भारत के भीतर सुरक्षा पर असर पड़ता है। 1990 के दशक में, जमात पूरे भारत में विशेष रूप से यूपी, महाराष्ट्र, अविभाजित आंध्र प्रदेश में सिमी के उदय के पीछे थी और बाद में पाकिस्तान ने इस समूह को इंडियन मुजाहिदीन के रूप में हथियारबंद कर दिया। जमात ने घाटी में युवाओं को हथियार उठाने के लिए कट्टरपंथी बनाकर पाकिस्तान समर्थक भावना को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जबकि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार चुनावों की घोषणा करने की जल्दी में नहीं है, एक कमजोर सरकार, बढ़ती इस्लामी कट्टरता और अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति ढाका के लिए आपदा का कारण बन रही है। दूसरी ओर, वर्तमान में आवामी लीग के भयभीत कार्यकर्ता आने वाले महीनों में फिर से संगठित होकर हाथ मिला सकते हैं और बीएनपी तथा इसके अधिक मजबूत सहयोगी जेईआई को चुनौती दे सकते हैं। इनपुट संकेत देते हैं कि वास्तव में 5 अगस्त के बाद बांग्लादेश में जेईआई ने बीएनपी की कीमत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।

जबकि भारत हिंसा तथा हिंदुओं और आवामी लीग कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से निशाना बनाए जाने के बारे में चिंतित है, वह स्थिति पर नजर रख रहा है, क्योंकि एक अनिर्णायक अंतरिम सरकार उन युवाओं में असंतोष को जन्म देगी, जिन्होंने शेख हसीना को बाहर किया था। इसके साथ ही आर्थिक संकट, कपड़ा मिलों तथा परिधान विनिर्माण इकाइयों के बंद होने से बेरोजगारी तथा राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ेगी। पहले ही, बांग्लादेश का बाह्य तथा आंतरिक ऋण 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है। बांग्लादेश राजनीतिक रूप से बारूद के ढेर पर बैठा है और एक वर्ष के भीतर एक बार फिर विस्फोट हो सकता है।

बांग्लादेश स्तिथि का आंकलन करना भारत के लिए भी ज़रूरी है क्योकि इसका असर भारत को भी झेलना पड़ सकता है। बॉर्डर पर माइग्रेशन जैसी गतिविधियों में बढ़ोतरी हो सकती है।

क्या भारत और बांग्लादेश के बीच सुलझेगा तीस्ता जल विवाद? जानें बांग्लादेश के केयरटेकर सरकार की राय

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जब भी भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय वार्ता होती है, तीस्ता नदी विवाद हर बार सुर्खियों में रहता है। विवाद तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर है। भारत और बांग्लादेश से होकर बहने वाली तीस्ता नदी जल बंटवारे से संबंधित मुद्दों के कारण दोनों देशों के बीच विवाद का स्रोत रही है। अब बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस विवाद को लेकर बड़ी बात कही है। मोहम्मद यूनुस ने कहा है कि अंतरिम सरकार भारत के साथ तीस्ता जल बंटवारा संधि पर लंबित मुद्दों को सुलझाने के तरीकों पर काम करेगी। इस मुद्दे को वर्षों तक टालने से किसी को फायदा नहीं होगा।

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की आंतरिक सरकार भारत के साथ संबंधों को और सुधारने के लिए कदम उठा रही है। अब उसने फैसला लिया है कि वह तीस्ता जल बंटवारा संधि पर मतभेदों को सुलझाने के लिए भारत के साथ काम करेगी। बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस का कहना है कि अंतरिम सरकार भारत के साथ वार्ता फिर से शुरू करना चाहती है। मुहम्मद यूनुस ने कहा, इस मुद्दे (पानी के बंटवारे) को निपटाने के लिए काम नहीं करने से कोई फायदा नहीं होगा। भले ही मैं खुश ना भी होऊं और हस्ताक्षर कर दूं, लेकिन यदि मुझे पता होगा कि मुझे कितना पानी मिलेगा, तो यह बेहतर होगा। इस मुद्दे को सुलझाना होगा।

“बंटवारे के लिए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए”

मुहम्मद यूनुस ने कहा कि नदी के ऊपरी और निचले तटवर्ती देशों को जल बंटवारे के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। मुख्य सलाहकार का कहना है कि दोनों देशों के बीच जल-बंटवारे के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार हल किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती देशों के पास विशिष्ट अधिकार हैं, जिन्हें वे बनाए रखना चाहते हैं।

क्या है तिस्ता विवाद

बता दें कि भारत और बांग्लादेश साल 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा के दौरान तीस्ता जल बंटवारे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में पानी की कमी का हवाला देते हुए इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया था।जिसके बाद से यह समझौता स्थगित कर दिया गया और पश्चिम बंगाल की आपत्तियों के कारण इस पर हस्ताक्षर नहीं हो सके।

शेख हसीना के बेटे ने यूनुस सरकार पर 'जासूसी अभियान' का आरोप लगाते हुए मचाई हलचल

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पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे साजिब वाजेद ने देश की अंतरिम सरकार पर अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में न्यायपालिका को हथियार बनाने और अवामी लीग के नेताओं को सताने के लिए ‘जासूसी अभियान’ शुरू करने का आरोप लगाया है, क्योंकि ढाका ने उनकी मां के भारत से प्रत्यर्पण की मांग की थी।

भारत के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को पुष्टि की कि यूनुस के कार्यवाहक प्रशासन ने औपचारिक रूप से हसीना के प्रत्यर्पण के लिए कहा था, जो अगस्त में बांग्लादेश से भागने के बाद से भारत में रह रही हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दोनों देशों के बीच संबंध नए निम्न स्तर पर हैं। ढाका द्वारा प्रत्यर्पण अनुरोध किए जाने के बाद, हसीना के अमेरिका में रहने वाले बेटे वाजेद ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "अनिर्वाचित यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों और अभियोजकों ने अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के माध्यम से हास्यास्पद परीक्षण प्रक्रिया का संचालन किया है, जो इसे एक राजनीतिक डायन हंट बनाता है जो न्याय को त्याग देता है और अवामी लीग नेतृत्व को सताने के लिए एक ओर चल रहे हमले को दर्शाता है।" "हम अपनी स्थिति को दोहराते हैं कि जुलाई और अगस्त के बीच मानवाधिकार उल्लंघन की हर एक घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से जांच की जानी चाहिए, लेकिन यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने न्यायपालिका को हथियार बना दिया है, और हम न्याय प्रणाली पर कोई भरोसा नहीं जताते हैं," उन्होंने एक लंबी पोस्ट में कहा। 

सोमवार को बांग्लादेश के भ्रष्टाचार निरोधक आयोग ने कहा कि उसने उन आरोपों की जांच शुरू की है कि वाजेद ने हसीना और उनकी भतीजी, ब्रिटेन के राजकोष मंत्री ट्यूलिप सिद्दीक के साथ मिलकर रूस की सरकारी परमाणु एजेंसी द्वारा बांग्लादेश में बनाए जा रहे “अत्यधिक कीमत वाले 12.65 बिलियन डॉलर” के परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट से कथित तौर पर 5 बिलियन डॉलर का गबन किया है।

वाजेद ने बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण को “कंगारू न्यायाधिकरण” बताया और कहा कि हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध ऐसे समय में आया है जब सैकड़ों अवामी लीग के नेताओं और कार्यकर्ताओं की “न्यायिक तरीके से हत्या” की गई या उन पर “घृणित हत्या के आरोप” लगे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कानून प्रवर्तन द्वारा “हजारों लोगों को अवैध रूप से कैद किया गया” और “लूटपाट, तोड़फोड़ और आगजनी सहित हिंसक हमले हर दिन बिना किसी दंड के हो रहे हैं, जो शासन के इनकार से प्रेरित हैं”।

5 अगस्त को छात्र समूहों द्वारा किए गए देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के बाद हसीना के पद से हटने और भारत में शरण लेने के बाद से, उनके और अवामी लीग पार्टी के नेताओं के खिलाफ दर्जनों आपराधिक और अन्य मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण भी शामिल है। वाजेद ने आरोप लगाया कि न्यायाधिकरण के मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम, जिन्हें उन्होंने कहा कि कार्यवाहक प्रशासन द्वारा “युद्ध अपराधियों का बचाव करने के सिद्ध रिकॉर्ड के बावजूद” नियुक्त किया गया था, ने हसीना के खिलाफ “जानबूझकर गलत सूचना” फैलाई थी, यह दावा करके कि इंटरपोल ने उनके खिलाफ “रेड नोटिस” जारी किया था।

वाजेद ने आगे आरोप लगाया कि यह यूनुस के हित में “उसे प्रत्यर्पित करने और [एक] हास्यास्पद मुकदमा चलाने की हताश कोशिश” थी। उन्होंने कहा, “लेकिन बाद में उसी अभियोजक ने मीडिया द्वारा सरासर झूठ को उजागर किए जाने के बाद अपने बयान को बदल दिया और अब आधिकारिक तौर पर प्रत्यर्पण के लिए भारत को अनुरोध भेजा है।” 

प्रत्यर्पण अनुरोध से नई दिल्ली और ढाका के बीच तनाव बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने प्रत्यर्पण अनुरोध की पुष्टि के अलावा इस पर विस्तार से कुछ नहीं कहा, लेकिन यह संभावना नहीं है कि भारत सरकार हसीना को सौंपेगी, जिन्हें पड़ोस में नई दिल्ली के दृढ़ सहयोगियों में से एक माना जाता है।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

अमेरिका ने घुमाया बांग्लादेश के यूनुस को फोन, जयशंकर के यूएस दौरे से पहले हिंदू हिंसा को लेकर लगाई फटकार

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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के लिए अमेरिका ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को कड़ी फटकार लगाई है। अमेरिका ने मोहम्मद यूनुस को नसीहत दी है और अल्पसंख्यकों पर किसी तरह के अत्याचार न करने के लिए खबरदार किया है। ये सब तब हुआ है जब एक दिन पहले ही बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में बांग्लादेश ने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने यानी प्रत्यर्पण की मांग की है। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर आज से 6 दिन के अमेरिकी दौरे पर हैं। उनके अमेरिका पहुंचने से पहले ही भारत का ग्लोबल पावर देखने को मिला है।

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने सोमवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से बातचीत की। अमेरिकी सरकार द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज के अनुसार सुलिवन ने चुनौतीपूर्ण समय में बांग्लादेश का नेतृत्व करने के लिए यूनुस को धन्यवाद भी दिया। प्रेस रिलीज में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।

बाइडेन प्रशासन द्वारा डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता हस्तांतरण के पहले बांग्लादेश में की गई इस कॉल के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुलिवन की ये बातचीत बाइडेन प्रशासन के आखिरी महीने में हुई है, जिससे संदेश मिल रहे हैं कि व्हाइट हाउस में आने वाला नया प्रशासन यूनुस को मनमर्जी नहीं करने देगा।

भारत की बड़ी कूटनीतिक!

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी आज से 6 दिन के अमेरिका दौरे पर हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा का मुद्दा भारत ने जोर-शोर से उठाया है। माना जा रहा है कि जयशंकर अमेरिका में भी इस बात को रखेंगे। लेकिन इधर जयशंकर की फ्लाइट उड़ी, उधर पहले ही बांग्लादेश में फोन खनखनाने लगा। अमेरिका में यूनुस को डांट लगाई, तो उन्होंने सुरक्षा देने पर हामी भी भर दी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक पारी का परिणाम माना जा रहा है

बांग्लादेश के मुद्दे पर भारत का सख्त संदेश

जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा चिंता का मुख्य विषय बनी हुई है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों से भारत में गहरा असंतोष है। इन हालातों में भारत सरकार ने बांग्लादेश पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई है। माना जा रहा है कि जयशंकर अपनी इस यात्रा में अमेरिका के सहयोग से बांग्लादेश को कड़ा संदेश देंगे। इससे पहले अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी साफ कर चुके हैं क‍ि बांग्‍लादेश को ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करनी ही होगी।

अमेरिकी संसद में उठा मुद्दा

सुलिवन और यूनुस के बीच बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में भारतीय मूल के सदस्य श्री थानेदार ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया था। थानेदार ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस मामले पर कार्रवाई करे। थानेदार ने अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, बहुसंख्यक भीड़ ने हिंदू मंदिरों, हिंदू देवी-देवताओं और शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन करने वाले हिंदुओं को बर्बाद कर दिया है। उन्होंने कहा था, अब समय आ गया है कि अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिकी सरकार कार्रवाई करे।

ज्यादा दिनों तक सच नहीं छुपा सका बांग्लादेश, यूनुस सरकार ने मानी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की बात

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बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद से हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालते ही हिंदुओं पर हमले होने लगे। हालांकि, हर बार वहां की अंतरिम सरकार ने

इन घटनाओं से इंकार किया और भारतीय मीडिया पर दुश्प्रचार का आरोप मढ़ा। हालांकि सच को कब तक छुपाया जाता। भारत ने बारा-बार इस पर कड़ा ऐतराज जताया। जिसके बाद बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं हैं।

हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बांग्लादेश ने मंगलवार को स्वीकार किया कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं हुईं। हालांकि, बांग्लादेश ने अपनी पीठ थपथपाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। अब बांग्लादेश की यूनुस सरकार अपने एक्शन की वाहवाही कर रही है। अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने कहा कि इन घटनाओं में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना

अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने संवाददाताओं को बताया कि पांच अगस्त से 22 अक्टूबर तक अल्पसंख्यकों से संबंधित घटनाओं में कुल 88 मामले दर्ज किए गए हैं। उन्होंने कहा, "मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि पूर्वोत्तर सुनामगंज, मध्य गाजीपुर और अन्य क्षेत्रों में भी हिंसा के नए मामले सामने आए हैं।" उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां कुछ पीड़ित पिछली सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य रहे हों। सरकार अब तक इस बात पर जोर देती रही है कि कुछ घटनाओं को छोड़कर, हिंदुओं पर उनकी आस्था के कारण हमला नहीं किया गया। आलम ने कहा कि 22 अक्टूबर के बाद हुई घटनाओं का ब्यौरा जल्द ही साझा किया जाएगा।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दौरे का असर?

यह खुलासा ऐसे समय किया है जब एक दिन पहले विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बांग्लादेशी नेतृत्व के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों पर हमलों की अफसोसजनक घटनाओं को उठाया था और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित भारत की चिंताओं से अवगत कराया था।

200 से अधिक हमले का आरोप

बता दें कि पिछले कुछ हफ्तों में बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। मंदिरों पर हमले भी हुए हैं। विशेष रूप से हाल ही में एक हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी हुई है। भारत सहित कई देशों ने हिंदुओं को निशाना बनाए जाने पर बार-बार चिंता व्यक्त की है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार को 5 अगस्त को अपदस्थ किए जाने के बाद से बांग्लादेश के 50 से अधिक जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले होने के आरोप हैं।

बांग्लादेश का एक और भारत विरोधी कदम, कोलकाता-त्रिपुरा से वापस बुलाए डिप्लोमेट्स

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बांग्लादेश और भारत के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं। शेख हसीने के देश छोड़ने के बाद से लगातार बांग्लादेशी की अंतरिम सरकार भारत विरोधी रूख अपनाए हुए है। बांग्लादेश में लगातार चल रही हिंदू विरोधी हिंसा और मंदिरों में तोड़फोड़ के बीच वहां 'बॉयकॉट इंडिया' कैंपेन भी शुरू हुआ है। अपने यहां भड़की हिंसा की आग को बुझाने के बजाय अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने एक और ऐसा कदम उठा दिया है, जो सीधेतौर पर वहां बढ़ते भारत विरोध की झलकी पेश कर रहा है। दरअसल, बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है।

भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने भारत से अपने 2 डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया है। बांग्लादेश ने त्रिपुरा के अगरतला में बांग्लादेश सहायक उच्चायोग पर हमले और कोलकाता में बांग्लादेश उप उच्चायोग के सामने विरोध प्रदर्शन के बाद इन दोनों डिप्लोमेट्स को तत्काल ढाका वापस बुला लिया है।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने पुष्टि की है कि बंगाल से राजनयिक वापस बांग्लादेश लौट आए हैं, जबकि त्रिपुरा के सहायक उच्चायुक्त के भी आज ढाका लौटने की उम्मीद है। सूत्रों ने कहा कि कोलकाता में बांग्लादेश के कार्यवाहक उप उच्चायुक्त शिकदार मोहम्मद अशरफुर रहमान और त्रिपुरा में सहायक उच्चायुक्त आरिफुर रहमान को पिछले मंगलवार को तत्काल आधार पर ढाका लौटने का निर्देश दिया गया था।

क्यों भारत से बुलाए डिप्लोमेट्स?

बता दें कि हाल ही में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में बांग्लादेश के राजनयिक मिशन में तोड़फोड़ हुई थी। बाद में इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। कैम्पस में घुसपैठ के मामले में 4 पुलिस अफसरों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई थी। वहीं, बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर घटना का विरोध जताया गया था। साथ ही बांग्लादेश ने अगरतला में अपनी काउंसलर सर्विस भी बंद करने का ऐलान किया था। अब बांग्लादेश ने त्रिपुरा से अपने डिप्लोमेट को वापस बुला लिया है।

हिंदुओं पर अत्याचार, विरोध में भारत

भारत सरकार लगातार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर बयान जारी कर रही है। भारत सरकार ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। साथ ही घर्मगुरू चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के खिलाफ भी सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध जताया था। बता दें कि हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के बड़े धार्मिक चेहरे चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर कथित भड़काऊ भाषण देने के लिए राजद्रोह का केस लगाया है।

अब बांग्लादेश में 'बॉयकॉट इंडिया'

उधर, अगरतला-कोलकाता की घटना के जवाब में बांग्लादेश में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। गुरुवार को बांग्लादेशी नेताओं ने ढाका में भारतीय साड़ी जलाकर इंडियन प्रोडक्ट्स को बायकॉट करने की अपील की।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रूहुल कबीर रिजवी ने ढाका में भारत विरोधी प्रदर्शन करते हुए अपनी पत्नी की भारतीय साड़ी को जलाया। इस दौरान उन्होंने भारतीय उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने सार्वजनिक रूप से भारतीय साड़ी जलाते हुए लोगों से भारतीय सामान न खरीदने की अपील की। उन्होंने कहा, जिन लोगों ने हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया है, हम उनका सामान खरीदकर उनका समर्थन नहीं करेंगे। हमारी माताएं-बहनें अब भारतीय साड़ी नहीं पहनेंगी।"

मोहम्मद यूनुस नरसंहार में शामिल', बांग्लादेश सरकार पर शेख हसीना का तीखा हमला

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला बोला है। शेख हसीना ने कहा है कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। जबकि उन्‍होंने (शेख हसीना) हिंसा रोकने के लिए देश तक छोड़ दिया, लेकिन गोली नहीं चलने दी। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया।

बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई-हसीना

हसीना ने न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए यूनुस पर नरसंहार करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया। अगस्त में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण देश छोड़कर भारत में शरण लेने के बाद यह हसीना का पहला सार्वजनिक संबोधन था। इस दौरान उन्होंने पांच अगस्त को ढाका में अपने आधिकारिक आवास पर हुए हमले का जिक्र करते हुए कहा, ''हथियारबंद प्रदर्शनकारियों को गणभवन की ओर भेजा गया। अगर सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां चलाई होतीं, तो कई लोगों की जान जा सकती थी। मुझे वहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। मैंने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे गोलियां न चलाएं।'' उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई थी।

यूनुस सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे-हसीना

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए में हसीना ने कहा, ‘‘आज मुझ पर नरसंहार का आरोप लगाया जा रहा है। वास्तव में, यूनुस एक सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे हैं। इस नरसंहार के पीछे मुख्य षड्यंत्रकारी छात्र समन्वयक और यूनुस हैं।'' हसीना ने कहा कि ढाका में मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रही है। हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का परोक्ष संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू, बौद्ध, ईसाई - किसी को भी नहीं बख्शा गया है। ग्यारह गिरजाघरों को ध्वस्त कर दिया गया है, मंदिरों और बौद्ध उपासनास्थलों को तोड़ दिया गया है। जब हिंदुओं ने विरोध किया, तो इस्कॉन के संत को गिरफ्तार कर लिया गया।

हसीना ने पूछा- अल्पसंख्यकों पर अत्याचार क्यों हो रहा है?

हसीना ने इस दौरान बांग्लादेश सरकार से पूछा, ‘‘अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों हो रहा है? उन्हें क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है?'' उन्होंने कहा, ‘‘मुझे तो इस्तीफा देने का भी समय नहीं मिला।'' हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।''

फिर सुलगने लगा बांग्लादेश, अब शेख हसीना के समर्थक सड़कों पर, ट्रंप के जीतते ही आवामी लीग में उत्साह!

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बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग की नेता शेख हसीना एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। दरअसल, बांग्लादेश में एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इस बार शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता सड़क पर उतर गए हैं।शेख हसीना की पार्टी के समर्थकों और भूमिगत हुए नेता रविवार को ढाका के गुलिस्तान, जीरो पॉइंट, नूर हुसैन स्क्वायर इलाकों में सड़कों पर उतरे।अपने नेताओं को गलत तरीके से फंसाने, छात्र विंग पर प्रतिबंध लगाने और एएल कार्यकर्ताओं को सताने के लिए अवामी लीग द्वारा यह विरोध प्रदर्शन किया गया।

5 अगस्त को शेख हसीना के तख्तापलट के बाद तीन महीनों में जो नहीं हुआ ढाका में वो देखना को मिला। तख्तापलट के बाद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता हमलों का शिकार हुए। वो अब अचानक खुलकर यूनुस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। हालांकि अंतरिम सरकार ने उन्हें चेतावनी दी लेकिन वो नहीं माने। कुछ समय पहले अंतरिम सरकार ने अवामी लीग के स्टूडेंट विंग ‘स्टूडेंट लीग’ को बैन कर दिया था। संगठन के खिलाफ 2009 के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत ये कार्रवाई की गई। स्टूडेंट लीग को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल पाया गया। इसी के खिलाफ अवामी लीग ने मोर्चा खोल दिया। वो नेता भी बाहर आ गए जो कल तक अंडरग्राउंड थे।

हसीना की पार्टी अवामी लीग के फेसबुक पेज पर सफल विरोध मार्च के लिए आह्वान करते हुए पोस्ट जारी हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न निर्देश दिए गए हैं। इस पोस्ट में, पार्टी ने 10 नवंबर को शहीद नूर हुसैन दिवस के उपलक्ष्य में ढाका के जीरो प्वाइंट शहीद नूर हुसैन स्क्वायर पर विरोध मार्च की घोषणा की। उन्होंने तीन बजे भी मार्च निकालने की घोषणा की।पोस्ट के जरिए कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है जो मुक्ति संग्राम के मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते हैं।

इधर आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए बांग्लादेश की सेना-पुलिस तैनात कर दी गई। ढाका पुलिस ने उन्हें विरोध रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। देशभर में सेना की 191 टुकड़ियां तैनात की गई है। वहीं इस बीच सरकार के विभिन्न हलकों ने चेतावनी भी दी है कि आवामी लीग को विरोध मार्च आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अवामी लीग को फासीवादी करार देते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी को नियोजित रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं देगी।

अब सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि अवामी लीग इतनी आक्रामक हो गई? इसे अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की वापसी से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, शेख हसीना ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर डोनाल्ड ट्रंप को बधाई संदेश दिया है। इसमें शेख हसीना ने खुद को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनाता।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना ने ट्रंप को बधाई संदेश अपनी पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग के लेटर हेड पर लिखा। लेटर हेड पर सामने ही मोटे अक्षरों में पार्टी का नाम है। इसके नीचे पता 23 बंगबंधु एवेन्यू, ढाका का पता लिखा था। आखिर में बांग्लादेश अवामी लीग के ऑफिस सेक्रेटरी बिप्लब बरुआ के हस्ताक्षर।

इसके अलावा शेख हसीना ने ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की है। इसमें शेख हसीना के साथ उनकी बेटी साइमा वाजिद भी खड़ी हैं।

पार्टी के सुप्रीम नेता के एक्टिव मोड में आने से शायद बांग्लादेश में ठंडे पड़ चुके कार्यकर्ताओं को भी ग्रीन सिग्नल मिला। जिसके बाद बांग्लादेश में अवामी लीग माहौल बनाने में जुट गई है।

अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया

बता दें कि शेख हसीना ने कथित तौर पर खुद को बांग्लादेश से हटाए जाने के पीछे वर्तमान जो बाइडन प्रशासन के होने का आरोप लगाया था। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री रहते हुए भी अमेरिका पर उनके खिलाफ तख्तापलट का आरोप लगाया था।

शेख हसीने के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ होने का कोई ठोस सबूत भले ही ना हो, लेकिन अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया था। इसकी झलक मोहम्मद यूनुस की संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए हाल में ही अमेरिका यात्रा के दौरान दिखाई दिया। इस दौरान मोहम्मद यूनुस बहुत प्रेम से राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलते नजर आए थे। दोनों नेताओं के बॉडी लैंग्वेज को लेकर काफी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं, सवाल यह भी उठे थे कि खुद को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहने वाले देश का राष्ट्रपति एक अलोकतांत्रित तरीके से नियुक्त कार्यवाहक से कैसे मिल रहा है।

यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी

वहीं, अगर मोहम्मद यूनुस की बात की जाए तो वे घोषित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। 2016 में, ट्रंप के पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीतने के ठीक बाद, पेरिस में एक व्याख्यान देते हुए, यूनुस ने कहा था, "ट्रंप की जीत ने हमें इतना प्रभावित किया है कि आज सुबह मैं मुश्किल से बोल पा रहा था। मेरी सारी ताकत खत्म हो गई। क्या मुझे यहां आना चाहिए? बेशक, मुझे आना चाहिए, हमें इस गिरावट को अवसाद में नहीं जाने देना चाहिए, हम इन काले बादलों को दूर कर देंगे।" ट्रंप पर यूनुस के पिछले विचार और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की ट्रंप द्वारा सार्वजनिक रूप से निंदा किए जाने के कारण इस नोबेल पुरस्कार विजेता के लिए अमेरिका से निपटना मुश्किल हो सकता है।

बांग्लादेश में पूरी प्लानिंग से किया गया तख्तापलट, मोहम्मद यूनुस ने मास्टरमाइंड का नाम बताया

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5 अगस्त 2024... वो तारीख, जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ था। हालांकि, शेख हसीना का तख्तापलट अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसकरे पीछे पूरी प्लानिंग के तरह काम किया गया। शेख हसीना ने भी देश छोड़ने बाद ये आरोप लगाया था। अब खुद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने ये बात स्वीकार की है। यही नहीं मोहम्मद यूनुस आंदोलन के पीछे के असली मास्टरमाइंड के बारे में बताया। इस शख्स को मोहम्मद यूनुस ने अपना विशेष सहायक बना रखा है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने गए मोहम्मद यूनुस ने न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में तख्तापलट की साजिश का पर्दाफाश किया। मोहम्मद यूनुस ने 'क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव' कार्यक्रम में शिरकत की। यहां उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन सावधानीपूर्वक किए गए थे और ये संयोग नहीं था। उन्होंने छात्र नेता महफूज आलम का भी नाम लिया। स मौके पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी मौजूद थे।

बिल क्लिंटन की मौजूदगी मास्टरमाइंड का खुलासा

बिल क्लिंटन की मौजूदगी में यूनुस ने मंच पर महफूज आलम को बुलाकर कहा, 'पूरी क्रांति के पीछे यही (महफूज) थे।मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम के नेतृत्व की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, ये इससे इनकार करते हैं, लेकिन क्रांति के पीछे यही थे। ये अचानक हुई चीज नहीं थी। आंदोलन को बहुत अच्छे से डिजाइन किया गया था। लोगों को ये भी नहीं मालूम था कि नेता कौन हैं। ऐसे में आप किसी एक को पकड़कर ये नहीं कह सकते कि आंदोलन खत्म हो गया।'

मोहम्मद यूनुस ने महफूज आलम की जमकर की तारीफ

मोहम्मद यूनुस ने अपने विशेष सहायक महफूज आलम का परिचय कराते हुए कहा, 'वे भी किसी अन्य युवा की तरह ही दिखते हैं, जिन्हें आप पहचान नहीं पाएंगे। लेकिन जब आप उन्हें काम करते हुए देखेंगे, जब आप उन्हें बोलते हुए सुनेंगे, तो आप हिल जाएंगे। उन्होंने अपने भाषणों, अपने समर्पण और अपनी प्रतिबद्धता से पूरे देश को हिला दिया।'

हसीना ने अमेरिका पर लगाए थे तख्तापलट के आरोप

इससे पहले अगस्त में शेख हसीना ने अमेरिका पर तख्तापलट के आरोप लगाए थे।उन्होंने कहा था, वे छात्रों के शवों पर चढ़कर सत्ता में आना चाहते थे, लेकिन मैंने इसकी अनुमति नहीं दी। मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मैं सत्ता में बनी रह सकती थी अगर मैंने सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता अमेरिका के सामने समर्पित कर दी होती और उसे बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दे दी होती।

अवामी लीग के कुछ नेताओं ने भी सत्ता परिवर्तन के लिए मई में ढाका का दौरा करने वाले एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक को जिम्मेदार ठहराया था।आरोप है कि अमेरिकी राजनयिक चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए हसीना पर दबाव डाल रहे थे।

जमात-ए-इस्लामी का उदय और बांग्लादेश की राजनीतिक पहेली, भारत पर क्या होगा इनका असर ?

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Nobel laureate Muhammad Yunus salutes to the attendees upon arrival at the Bangabhaban,Bangladesh (REUTERS)

शेख हसीना को सत्ता से हटाए जाने के एक महीने बाद, पश्चिम समर्थक मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकर-उस-ज़मान की अगुआई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में कानून और व्यवस्था बहाल करने में विफल रही है, जबकि खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कीमत पर भी इस्लामी जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) का तेजी से उदय हो रहा है।

जेईआई का उदय, जिसका मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ गहरा वैचारिक संबंध है, और कट्टरपंथी हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामी राज्य समर्थक अंसार-उल-बांग्ला टीम के साथ रणनीतिक रूप से हाथ मिलाना बांग्लादेश की लोकतांत्रिक साख के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि खुफिया जानकारी से संकेत मिलता है कि छात्र नेता भी इस्लामवादियों द्वारा नियंत्रित या शायद प्रभावित हैं।

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि न तो बांग्लादेश की सेना और न ही यूनुस देश में अवामी लीग के कार्यकर्ता विरोधी और हिंदू विरोधी हिंसा को नियंत्रित करने में सक्षम रहे हैं, क्योंकि सेना अपराधियों से निपटने के लिए तैयार नहीं है और केवल मूकदर्शक बनकर रह गई है।

जम्मू-कश्मीर और भारत के अंदरूनी इलाकों में जमात का प्रभाव होने के कारण, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने जेईआई के उदय को देखा है, क्योंकि इसका भारत के भीतर सुरक्षा पर असर पड़ता है। 1990 के दशक में, जमात पूरे भारत में विशेष रूप से यूपी, महाराष्ट्र, अविभाजित आंध्र प्रदेश में सिमी के उदय के पीछे थी और बाद में पाकिस्तान ने इस समूह को इंडियन मुजाहिदीन के रूप में हथियारबंद कर दिया। जमात ने घाटी में युवाओं को हथियार उठाने के लिए कट्टरपंथी बनाकर पाकिस्तान समर्थक भावना को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जबकि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार चुनावों की घोषणा करने की जल्दी में नहीं है, एक कमजोर सरकार, बढ़ती इस्लामी कट्टरता और अर्थव्यवस्था की गिरती स्थिति ढाका के लिए आपदा का कारण बन रही है। दूसरी ओर, वर्तमान में आवामी लीग के भयभीत कार्यकर्ता आने वाले महीनों में फिर से संगठित होकर हाथ मिला सकते हैं और बीएनपी तथा इसके अधिक मजबूत सहयोगी जेईआई को चुनौती दे सकते हैं। इनपुट संकेत देते हैं कि वास्तव में 5 अगस्त के बाद बांग्लादेश में जेईआई ने बीएनपी की कीमत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।

जबकि भारत हिंसा तथा हिंदुओं और आवामी लीग कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से निशाना बनाए जाने के बारे में चिंतित है, वह स्थिति पर नजर रख रहा है, क्योंकि एक अनिर्णायक अंतरिम सरकार उन युवाओं में असंतोष को जन्म देगी, जिन्होंने शेख हसीना को बाहर किया था। इसके साथ ही आर्थिक संकट, कपड़ा मिलों तथा परिधान विनिर्माण इकाइयों के बंद होने से बेरोजगारी तथा राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ेगी। पहले ही, बांग्लादेश का बाह्य तथा आंतरिक ऋण 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है। बांग्लादेश राजनीतिक रूप से बारूद के ढेर पर बैठा है और एक वर्ष के भीतर एक बार फिर विस्फोट हो सकता है।

बांग्लादेश स्तिथि का आंकलन करना भारत के लिए भी ज़रूरी है क्योकि इसका असर भारत को भी झेलना पड़ सकता है। बॉर्डर पर माइग्रेशन जैसी गतिविधियों में बढ़ोतरी हो सकती है।

क्या भारत और बांग्लादेश के बीच सुलझेगा तीस्ता जल विवाद? जानें बांग्लादेश के केयरटेकर सरकार की राय

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जब भी भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय वार्ता होती है, तीस्ता नदी विवाद हर बार सुर्खियों में रहता है। विवाद तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर है। भारत और बांग्लादेश से होकर बहने वाली तीस्ता नदी जल बंटवारे से संबंधित मुद्दों के कारण दोनों देशों के बीच विवाद का स्रोत रही है। अब बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने इस विवाद को लेकर बड़ी बात कही है। मोहम्मद यूनुस ने कहा है कि अंतरिम सरकार भारत के साथ तीस्ता जल बंटवारा संधि पर लंबित मुद्दों को सुलझाने के तरीकों पर काम करेगी। इस मुद्दे को वर्षों तक टालने से किसी को फायदा नहीं होगा।

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की आंतरिक सरकार भारत के साथ संबंधों को और सुधारने के लिए कदम उठा रही है। अब उसने फैसला लिया है कि वह तीस्ता जल बंटवारा संधि पर मतभेदों को सुलझाने के लिए भारत के साथ काम करेगी। बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस का कहना है कि अंतरिम सरकार भारत के साथ वार्ता फिर से शुरू करना चाहती है। मुहम्मद यूनुस ने कहा, इस मुद्दे (पानी के बंटवारे) को निपटाने के लिए काम नहीं करने से कोई फायदा नहीं होगा। भले ही मैं खुश ना भी होऊं और हस्ताक्षर कर दूं, लेकिन यदि मुझे पता होगा कि मुझे कितना पानी मिलेगा, तो यह बेहतर होगा। इस मुद्दे को सुलझाना होगा।

“बंटवारे के लिए अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए”

मुहम्मद यूनुस ने कहा कि नदी के ऊपरी और निचले तटवर्ती देशों को जल बंटवारे के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। मुख्य सलाहकार का कहना है कि दोनों देशों के बीच जल-बंटवारे के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार हल किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती देशों के पास विशिष्ट अधिकार हैं, जिन्हें वे बनाए रखना चाहते हैं।

क्या है तिस्ता विवाद

बता दें कि भारत और बांग्लादेश साल 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा के दौरान तीस्ता जल बंटवारे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में पानी की कमी का हवाला देते हुए इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया था।जिसके बाद से यह समझौता स्थगित कर दिया गया और पश्चिम बंगाल की आपत्तियों के कारण इस पर हस्ताक्षर नहीं हो सके।