जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के समर्थन में आए 56 रिटायर्ड जज, महाभियोग प्रस्ताव की कड़ी निंदा की
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मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर महाभियोग प्रस्ताव पेश होने के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश उनके समर्थन में उतर आए हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 56 रिटायर्ड जजों ने एक संयुक्त बयान जारी कर मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव की कड़ी निंदा की है।
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“न्यायपालिका को डराने की कोशिश”
जस्टिस स्वामीनाथन ने तमिलनाडु के मदुरै में तिरुपरनकुंद्रम सुब्रमणिया स्वामी मंदिर के पास पहाड़ी पर पवित्र दीपक जलाने का आदेश दिया था, जिसके बाद विपक्ष उनपर महाभियोग लगाकर उन्हें जज पद से हटाने की मुहिम में जुटा है। जिसके बाद पूर्व जजों ने इस मामले में महाभियोग के प्रस्ताव पर गंभीर आपत्ति जाहिर की है। 56 पूर्व जजों ने अपने बयान में कहा गया है कि कुछ सांसदों और वरिष्ठ वकीलों द्वारा उठाया गया यह कदम राजनीतिक प्रेरित है और इसका उद्देश्य न्यायपालिका को डराना है, जबकि महाभियोग जैसी संवैधानिक प्रक्रिया का इस्तेमाल केवल दुर्लभ और अत्यंत गंभीर मामलों में ही होना चाहिए।
“आपातकाल की याद दिलाता है”
पूर्व जजों ने चेतावनी दी है कि अगर इसे जारी रहने दिया गया, तो यह लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ों को ही नष्ट कर देगा। बयान में कहा गया कि जज स्वामीनाथन पर महाभियोग प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की सरकार में 1975 में घोषित आपातकाल की याद दिलाता है। जब जजों को प्रताड़ित करने के लिए तमाम तंत्र अपनाए गए थे, जिनमें पदोन्नति को रद्द करना भी शामिल था।
“फैसले अनुकूल नहीं रहे, तो बदनाम करने की कोशिशें”
पूर्व जजों ने पत्र में साफतौर पर कहा कि किसी निर्णय से असहमति हो तो उसका समाधान कानूनी अपील और तर्कपूर्ण आलोचना है न कि न्यायाधीशों को डराने की कोशिश। पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में जब-जब अदालतों के फैसले कुछ राजनीतिक हितों के अनुकूल नहीं रहे, तब शीर्ष न्यायाधीशों और प्रमुख न्यायाधीशों को बदनाम करने की कोशिशें हुई हैं।
पूर्व न्यायाधीशों की खास अपील
पूर्व न्यायाधीशों ने सांसदों, बार, नागरिक समाज और आम नागरिकों से अपील की है कि वे ऐसे कदमों को अस्वीकार करें और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूती से संरक्षित करें। उनका कहना है कि न्यायिक जवाबदेही संवैधानिक मूल्यों और न्यायिक प्रक्रिया के भीतर तय होती है न कि राजनीतिक दबाव या महाभियोग की धमकी से।








2 hours and 11 min ago
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