बृहदारण्यक उपनिषद् कथा में आत्मज्ञान की महिमा का किया वर्णन
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संजय द्विवेदी, प्रयागराज।चिन्मय मिशन प्रयागराज के तत्वावधान में गुरुवार, 6 नवम्बर को बृहदारण्यक उपनिषद् की कथा का आयोजन किया गया।पूज्य स्वामी अभेदानंद(आचार्य चिन्मय मिशन दक्षिण अफ्रीका) ने चिन्मय मिशन प्रयाग स्थित सत्संग सभागार में श्रद्धालुओ विद्यार्थियों और साधको को जीवनोपयोगी वेदान्त संदेशों से प्रेरित किया। बड़ी संख्या में उपस्थित लोगो ने उपनिषदों के गूढ़ रहस्यों को आत्मसात किया।
स्वामी अभेदानंद ने कहा कि शास्त्रों का उद्देश्य जीवन को प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ले जाना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसे विद्यार्थी अध्ययन इसलिए करते हैं ताकि एक दिन ऐसा ज्ञान प्राप्त हो कि फिर पढ़ने की आवश्यकता न रहे, वैसे ही जीवन की प्रवृत्तियाँ अंततः निवृत्ति की ओर अग्रसर होने के लिए ही हैं।जो व्यक्ति अपने कर्तव्यो को पूर्ण निष्ठा से पूरा करता है,वही मानसिक शांति प्राप्त करता है।
कर्तव्य की सिद्धि ही मन को निश्चिंत कर आत्मचिंतन की दिशा में अग्रसर करती है।उन्होंने कहा कि शास्त्र हमे केवल कर्म के लिए प्रेरित नहीं करते बल्कि कर्म के माध्यम से सभी कर्तव्यों से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।जप पूजा ध्यान ये सब भी अंततः हमें निर्गुण निराकार ब्रह्म में प्रतिष्ठित करने की साधन मात्र हैं।यही आत्मा है यही ब्रह्म है और यही उपनिषदों का परम उद्देश्य है।स्वामी ने याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी संवाद का उदाहरण देते हुए कहा कि जो आत्मा को जान लेता है,वही अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।उन्होंने कहा कि“आत्मनः तु कामाय सर्वं प्रियम् भवति अर्थात् सभी प्रेम का मूल कारण आत्मा ही है।
जब तक हम बाह्य विषयो में सुख खोजते रहेंगे तब तक असली आनंद से दूर रहेंगे।सच्चा प्रेम वही है जो आत्मा से उत्पन्न होता है,क्योंकि आत्मा ही आनंदस्वरूप है।उन्होंने आगे कहा कि जीवन में बाधक तत्व वासना अहंकार और स्वभावगत दोष ही आत्मानुभूति के मार्ग में अवरोधक हैं।अतःमनुष्य को अपने कर्तव्यो के प्रति सजग रहकर उचित प्रवृत्ति अपनानी चाहिए ताकि निवृत्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।उपनिषद् ज्ञान प्रवृत्ति से उपराम होकर आत्मा में निष्ठ साधक के लिए ही सार्थक है।
कार्यक्रम के अंत में श्रद्धालुओ ने स्वामी के आशीर्वचन ग्रहण कर जीवन में वेदान्तिक आदर्शो को अपनाने का संकल्प लिया।पूरा सभागार"चिन्मय जय जय"के उद्घोष से गूंज उठा।






11 hours ago
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