आध्यात्मिक अनुशासन प्रदान करती है आनन्द मूर्ति की शिक्षाएं-दिव्यचेतनानन्द
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भारतीय ज्ञान परम्परा में आध्यात्म का वास्तविक अर्थ मानव कल्याण-प्रो.सत्यकाम
भारतीय ज्ञान परम्परा पर मुक्त विश्वविद्यालय में हुआ सेमिनार
संजय द्विवेदी प्रयागराज।उ.प्र. राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज एवं रिनेशॉ यूनिवर्सल(बौद्धिक शाखा)आनंद मार्ग प्रचारक संघ कोलकाता के संयुक्त तत्वावधान में बृहस्पतिवार को भारतीय ज्ञान परम्परा में आनन्दमूर्ति का योगदान विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के सरस्वती परिसर स्थित तिलक शास्त्रार्थ सभागार में किया गया।कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो आचार्य दिव्यचेतनानन्द अवधूत सचिव केन्द्रीय जनसम्पर्क आनन्द मार्ग प्रचारक संघ कोलकाता ने अपने उद्बोधन में कहा कि आनन्द मूर्ति की शिक्षाएं शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए व्यावहारिक आध्यात्मिक अनुशासन प्रदान करती है। उन्होंने आनन्द मूर्ति का मानवतावादी विचार प्रस्तुत किया।जिसमें पृथ्वी के सभी जीवो को एक समान रूप से देखा जाता है।अवधूत ने कहा कि आनन्दमूर्ति के विचार पूंजीवाद और साम्यवाद के प्रगतिशील विकल्प के रूप में दिखते है।आनन्दमूर्ति ने आध्यात्म तंत्र योग के विज्ञान को समायोजित किया और एक वैज्ञानिक दर्शन विकसित किया कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सत्यकाम ने कहा कि आनन्द मूर्ति ने मानव कल्याण के लिए मूल्य स्थापित किया। उनके नव मानवतावाद के आदर्श का थोड़ा सा भी अंश मनुष्य स्वीकार कर ले तो जीवन सुगम हो जायेगा।उन्होंने बहुत सारी कुरूतियों को हमारे समाज से दूर किया।उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में आध्यात्म का वास्तविक अर्थ मानव कल्याण है।हमारे ऋषि मुनियों ने मानव कल्याण के लिए खगोल शास्त्र विज्ञान ज्योतिष गणित आदि क्षेत्रों में आध्यात्म का प्रयोग किया है। उन्होंने निदेशको एवं आचार्यों से आनन्दमूर्ति के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया।कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता प्रो.अनिल प्रताप गिरि संस्कृत विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज ने कहा कि आनन्दमूर्ति की कृति आनन्द सूत्रम में आगम एवं निगम चिन्तन की विस्तृत व्याख्या है और उन्होंने आगम और निगम चिन्तन की परम्परा को एक दूसरे का पूरक बताया है। प्रो.गिरि ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा जानने के लिए आनन्द मूर्ति ने तीन अवयव भारतीय भाषा विज्ञान आध्यात्मिक मनोवृत्त एवं भारतीय मनोविज्ञान का उल्लेख किया है।उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत शास्त्र एक तपस्या और आध्यात्म है।इससे व्यक्ति परमानन्द सुख प्राप्त करता है। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र दिग्विजय सिंह ने तथा वाचिक स्वागत एवं विषय प्रर्वतन वेबिनार/सेमिनार के समन्वयक आचार्य विनोद कुमार गुप्त ने किया।संगोष्ठी के निदेशक प्रो.सत्यपाल तिवारी ने आभार व्यक्त किया।इस अवसर पर आयोजन सचिव डॉ.दयानन्द उपाध्याय सह-आयोजन सचिव डॉ. सतेन्द्र कुमार एवं संजीव भट्ट आदि उपस्थित रहे।
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