साधारण हवन और चण्डी पाठ की पूर्ति के बाद के हवन में अंतर
संजीव सिंह बलिया! सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन , भविष्यति न संशय: ॥ साधारण हवन और चण्डी पाठ की पूर्ति के बाद के हवन में बहुत अंतर होता है।इस अंतर को समझ कर जो हवन करता है वह उत्तम फल को प्राप्त करता है।चण्डी पाठ में जिस अग्निदेव की स्थापना की जाती है उनका नाम है शतमंगल अग्नि। इस अग्निदेव की विशेषता है कि ये सौ प्रकार से कल्याण करते हैं। आयु, आरोग्य,ऐश्वर्य के साथ शत्रुनाश,रोग नाश और भय नाश होता है। जैसे शताक्षी देवी देख कर सौ प्रकार से कल्याण करती हैं वैसे ही शतमंगल अग्निदेव देवी की आज्ञा से सौ प्रकार का कल्याण करते हैं। साधारण हवन में हवन कुंड में अग्निबीज रं लिखा जाता है। चण्डी हवन में ह्रीं लिखा जाता है। देवी पूजन में ह्रीं का सर्वोच्च स्थान है।साधारण पूजन में तीन बार आचमन किया जाता है। देवीपूजन में चार बार आचमन किया जाता है। व्यवहार में ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः सामान्य पूजन का आचमनीय मन्त्र है जबकि देवी पूजा में ॐ ऐंआत्मतत्त्वं शोधयामि नमः, ॐ ह्रींविद्यातत्त्वं शोधयामि नम:,ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नम, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्व- तत्त्वं शोधयामि नमः से चार बार आचमन किया जाता है। साधारण हवन में जो चार आहुतियाँ दी जाती हैं वे ॐ भू: स्वाहा, ॐ भुवः स्वाहा,ॐ स्वः स्वाहा ॐप्रजापतये स्वाहा होती हैं। देवी हवन में जो चार आहुतियाँ दी जाती हैं वे हैं- ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा, ह्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा, ह्रींमहासरस्वत्यै स्वाहा, ह्रीं प्रजापतये स्वाहा। ध्येय है देवी के पूजन में सभी शाक्त ॐ की जगह ह्रीं का प्रयोग करते हैं। इस परम्परा को खिलमार्कण्डेय में बहुत महत्त्व दिया गया है। देव प्रणव की जगह देवी प्रणव ह्रीं का सर्वत्र महत्त्व प्रतिपादित है।सप्तशती के तेरह अध्याय के हवन से व्यक्ति रोग,शत्रु से मुक्त होकर सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता है। सम्पत्ति और ऐश्वर्य भरा रहता है। अतः एकमेव सप्तशती का हवनात्मक पाठ ऐसा होता है जो विविध हवनीय द्रव्य से युक्त होता है।मेरे पास परम्परा से अनेक हवनीय पदार्थों की सूची विद्यमान है पर मैं प्रमाणिक हवनीय द्रव्यों(सामग्री)की चर्चा करना चाहूँगा। १- पायस आहुति से समृद्धि प्राप्ति। २- सुगंधित पेय आहुति से देवी कृपा ३- मधु आहुति से रोग,शत्रु नाश ४- पीली सरसों से आहुति से शत्रु भय नाश ५- क्षीर,गोघृत,मधु मिश्रित आहुति से विपुल सम्पदा ६- कमल पुष्प आहुति से देवी कृपा ७- मालती और जाती पुष्प से विद्या प्राप्ति ८- पीली सरसों और गुग्गल से शत्रु नाश ९- काली मिर्च(गोल)से शत्रु उच्चाटन १०-अनार (दाड़िम) आहुति से ऐश्वर्य, यश ११- शाक आहुति से भोज्यपदार्थ की वृद्धि १२- अंगूर,इलायची,केसर से आहुति से सौंदर्य और सम्पदा लाभ १३- भोजपत्र से हवन से विजय प्राप्ति १४- कमलगट्टा से आहुति से लक्ष्मी प्राप्ति १५-रक्तचंदन से हवन से रोग-शत्रु नाश इसी तरह से किस मन्त्र में किस हवनीय पदार्थ से हवन करना चाहिए यह भी वर्णित है। जिसे सम्पत्ति चाहिए वह पायस,बेल फल और कमल से अवश्य हवन करे। जिसे शत्रु नाश अभीष्ट हो वह पीली सरसों, कालीमिर्च और बेर की लकड़ी से अवश्य हवन करें। व्यक्तिगत शत्रु और राष्ट्र शत्रुओं के नाश के लिए चण्डी पाठ हवन बेजोड़ है। ऐसे प्रयोगों में प्रक्रिया, मन्त्र, वस्तु और चित्त की शुद्धि अनिवार्य होती है। पाठ और हवन करने वाला व्यक्ति बहुत जल्दबाजी न दिखाये अन्यथा विपरीत प्रभाव भी होता है। केवल कल्याण हेतु किया पाठ हवन कभी भी विपरीत फल नहीं देता। पान के दो पत्ते , नारियल और नैवेद्य माता को हवन में अति प्रिय है।इन हवनीय पदार्थों को दुर्गार्चनसृति, नागेश भट्ट और सप्तशती सर्वस्व में से चयनित किया गया है। देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
*डॉ विद्यासागर उपाध्याय* समरसता प्रमुख - मौनतीर्थ पीठ महाकालेश्वर उज्जैन
Oct 02 2025, 12:15