शांभवी धाम कसेसर शंकरपुर में भागवत कथा से मिली मानस सुसंस्कृति और राष्ट्र जागरण की प्रेरणा: मानस सुसंस्कृत जीवन जीना सिखाती है, भागवत सुमृत्यु
संजीव सिंह बलिया!
शांभवी धाम कसेसर शंकरपुर में भागवत कथा से मिली मानस सुसंस्कृति और राष्ट्र जागरण की प्रेरणा: मानस सुसंस्कृत जीवन जीना सिखाती है, तो भागवत से सीखते हैं सुमृत्यु का वरण
शांभवी धाम कसेसर शंकरपुर में वृन्दावन से अंतर्राष्ट्रीय भागवत कथा का भव्य आयोजन संपन्न हुआ, जिसमें कथा व्यास वागीश जी महाराज ने भागवत ज्ञान की अमृत वर्षा कराई। उन्होंने संवाद के माध्यम से यह सन्देश दिया कि मानस जीवन को सुसंस्कृत और समृद्ध बनाता है, और भागवत से सुमृत्यु अर्थात उत्तम मृत्यु का मार्ग सीखा जा सकता है। कथा का मूल उद्देश्य सिर्फ कथा सुनाना नहीं, बल्कि वैचारिक परिमार्जन और राष्ट्र जागरण के लिए मानसिक पुनर्निर्माण करना है। उन्होंने कहा कि जैसे आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विकास आवश्यक है, उसी तरह राष्ट्र का सांस्कृतिक विकास भी अतिआवश्यक है, तभी हम भारतीय अस्मिता को सशक्त कर सकेंगे।वागीश जी महाराज ने महाभारत की पौराणिक कथा के संदर्भ में पितामह भीष्म और गिद्धराज जटायु की तुलना प्रासंगिक रूप से प्रस्तुत की। भीष्म पितामह शूल पर अंतिम सांसें ले रहे थे जबकि उनके मौन रहने के विपरीत, भगवान राम के समय गिद्धराज जटायु ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इसी कारण भीष्म पितामह को जीवन के अंत में शूल मिला, जबकि गिद्धराज को भगवान का गोद प्राप्त हुआ, जो भारतीय संस्कृति की रक्षा का प्रतीक है।कथा उनके सरस और संगीतमय वर्णन शैली द्वारा भक्तों के हृदयों में गहराई से उतर गई। उन्होंने उत्तरा की गर्भ से परीक्षित के जन्म, कलि युग का आगमन, ऋषि श्रृंगी के शाप, और शुकदेव जी के भागवत कथा आरंभ के मनोहर विवरण के साथ कथा को जीवन्त किया। भगवान कपिल के सांख्य दर्शन और प्रकृति-पुरुष के विषय पर विचार रखते हुए दिव्य द्वैत और अद्वैत मतों में समानता का विश्लेषण किया, जिससे दर्शकों में गहन आध्यात्मिक समझ विकसित हुई।वागीश जी ने यह भी स्पष्ट किया कि कथा का उद्देश्य लोक कल्याण है, किन्तु इसके लिए कथा में नौटंकी और हास्य-विकार न हो, बल्कि गंभीरता और गुणवत्ता बनी रहनी चाहिए। इससे ही कथा का संदेश समाज तक प्रभावी ढंग से पहुँच सकता है।कार्यक्रम के समापन अवसर पर प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. विद्यासागर उपाध्याय ने अपने उद्बोधन में बलिया जनपद की संत परंपरा और अध्यात्मिक परिदृश्य पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान की। उन्होंने महर्षि भृगु, वाल्मीकि, कपिल, पराशर, दुर्वासा, भरद्वाज, सुदृष्टि बाबा, चैन राम बाबा, खपड़िया बाबा, महाराज बाबा, कुकुरिया बाबा, गंगाराम बाबा, श्रीराम बाबा, खाकी बाबा, मोरार नाथ बाबा, नवका बाबा, बुढ़वा बाबा, लहसनी के ब्रह्म बाबा सहित विभिन्न ब्रह्म स्थलों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व दर्शाया। साथ ही, गंगा-सरयू-तमसा के संगम पर बलिया और वाल्मीकि का गहरा संबंध, और वैदिक ऋचाओं में संतुलित आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की, जिसने उपस्थित लोगों को विज्ञान और धर्म के समन्वय की समझ दी।इस पुण्य आयोजन के सफल संचालन में शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज, पूर्व ब्लॉक प्रमुख अक्षय लाल यादव, व्यवस्थापक गुड्डू मिश्रा, अशिष तिवारी, ओम नारायण सिंह, मनोज गुप्ता सहित अनेक श्रद्धालु एवं आयोजक, बड़ी संख्या में भक्तजन उपस्थित रहे और मन लगाकर कथा श्रवण किया।यह कथा महोत्सव न केवल भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नति और जीवनपरिवर्तन का माध्यम बना, बल्कि राष्ट्रहित में सांस्कृतिक चेतना और वैचारिक जागरण को भी बल प्रदान करता हुआ दिखाई दिया। शांभवी धाम का यह आयोजन क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर एक मिसाल के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और आने वाले समय में ऐसे आयोजन और अधिक व्यापक स्तर पर होने की उम्मीद जताई गई।इस प्रकार शांभवी धाम कसेसर शंकरपुर में वृन्दावन से आयातित भागवत कथा ने श्रोताओं को न केवल जीवन के सच्चे अर्थ समझाए, बल्कि सांस्कृतिक संरक्षण और राष्ट्र चेतना के महत्वपूर्ण संदेश भी दिए।
Sep 29 2025, 13:52