*बेटा माँ को बोला_अम्मा आधे घंटे में आ रहे है.., फिर आई मौत की सूचना,भाई को लाने गया और मिली मौत, पहली बार गांव से उठेगी 3 आर्थिया*
सुल्तानपुर,हिमांशु 22 वर्षीय बेटा का फोन मां शकुंतला के पास आया है, अम्मा काम में देर हो गया है। आधे घंटे में घर पहुंच रहा हूं। मां दरवाज़े पर टकटकी लगाकर बैठ गई और रात गहराती गई और घड़ी की सुई बढ़ती गई। सब्र का बांध टूटता, तभी यही कोई एक घंटे बाद कोहराम मच गया। अर्जुनपुर के रहने वाले सगे भाई आनंद और विक्रम समेत हिमांशु अब इस दुनिया में नहीं रहे। बस फिर क्या था गांव में मातम मच गया गया।
लंभुआ तहसील से यही कोई आठ किमी दूर लंभुआ-गरये मार्ग पर अर्जुनपुर गांव है। मेन रोड से दाहिने हाथ पर कंकरीट की 300 मीटर सड़क,उसके बाद इंटर लॉकिंग रोड। कुछएक पक्के मकान के अलावा अधिकतर छप्पर नुमा या कच्चे मकान हैं। इससे स्पष्ट था यह दलित बस्ती है,जिनका कोई वजूद नहीं है। कुछ कदम चलने पर महिलाओं की आवाजाही से स्थिति साफ हो गई कि तीन जवानो की मौत ने सब को हिलाकर रख दिया है।
आगे बढ़ने पर बाईं ओर गिरी हुई चहारदीवारी के अंदर आगे की ओर छप्पर पड़ा हुआ था जहां पर आनंद और विक्रम की मां चीख चीख कर रो रही थी। उसकी आंखे पथरा गई थी। गांव की महिलाएं उसे ढाढस बंधा रही थी। अंदर दूसरी ओर ओसारे में मृतक दोनों भाइयों के पिता गिरिजा प्रसाद सरोज बिस्तर पर पड़े थे। जो गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं। बड़ा भाई अनुपम व सबसे छोटा भाई करण हमें यहां मिले। जिन्हें भाइयों के जाने का सदमा था जो चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था। वही दूसरी ओर चारपाई पड़ी थी जिस पर कुछ रिश्तेदार बैठे कुछ लेटे हुए थे। कुछ लोग खडे चर्चा कर रहे थे कैसे अंतिम संस्कार की तैयारियां करनी है। वही हमें अधेड़ व्यक्ति साधू मिले।
कहा दोनों बहुत सीधे थे। कभी किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे। साधू बताते हैं मृतक आनंद बड़े भाई अनुपम के साथ मुंबई में रहकर मजदूरी कर रहा था। 22 दिन पहले ही मुंबई से दोनों आए हैं। आनंद के छोटे भाई करण ने हमें बताया विक्रम भईया सोमवार को सुबह 6:30 बजे ही मजदूरी के लिए निकले। क्योंकि स्लैब पड़ना था। वो हिमांशु के साथ काम पर गए थे। खाना भी उन्होंने सुबह नहीं खाया था और साथ में भी भोजन लेकर नहीं गए थे। पता नहीं क्या खाए क्या नहीं खाए। शाम को अंधेरा हो गया और विक्रम नहीं आया तो बड़े भईया आनंद उन्हें बाइक से लेने के लिए गए। वहां वो पहुंचे और जहां स्लैब पड़ी थी उसके नीचे दब गए।
अब किसे क्या पता था कि उनकी मौत उन्हें वहां बुलाकर ले गई है। चारो भाइयों में से अभी किसी की शादी नहीं हुई है। परिवार में 5 बिस्वा जमीन है जिसका वाद कोर्ट में चल रहा है। हमने यहां लोगों से पूछा हिमांशु का घर कहा है तो लोगों ने बताया यही कोई 20 कदम के फासले पर है। हम इंटर लाकिंग मार्ग से आगे बढ़े,दाईं ओर यहां पर भी एक सकरी गली के पास टूटी ही बाउंड्री वाल के अंदर कच्चा सा हिमांशु का मकान था। जहां उसकी मां रो-रो कर बेहोश हुई जा रही थी। बड़ी बहन हिमांशी जिसकी डेढ़ वर्ष पूर्व प्रतापगढ़ में शादी हुई है वो भी इकलौते भाई के छोड़ जाने से तड़प रही थी। हिमांशी की कुछ माह की एक बेटी है। जिसे उसका पति गोद में लेकर एक कुर्सी पर गुमसुम सा बैठा है। यहां पर हमें राम शिरोमणि मिले,वे बुज़ुर्ग थे हमने उनसे बात किया।
उन्होंने कहा हमारी इतनी उम्र हो गई है,गांव में यह पहला मौका है जब एक साथ तीन आर्थिया उठेगी। उन्होंने यह भी बताया कि हिमांशु एक होनहार लड़का था। बचपन में ही पिता ने उसकी मां को छोड़ दिया और गाजियाबाद जाकर दूसरी शादी कर लिया। 5 बिस्वा जमीन है। जिसका पिता से केस चल रहा है,मां ने बचपन में जैसे तैसे मजदूरी करके पाला। हनुमानगंज में ननिहाल में रहकर हिमांशु ने हाईस्कूल तक पढ़ाई की। फिर पारिवारिक बोझ के तले खुद को दबा हुआ देखकर वो मजदूरी करने लगा। पांच दिन पहले ही वो लखनऊ से लौटा था। सोमवार को हिमांशु का शव सबसे अंत में निकाला गया था, जेसीबी से रेस्क्यू के समय उसके सिर में गंभीर चोटे आई थी। गौरतलब है कि इतने बड़े हादसे में पेपर वर्क में लापरवाही बरती गई। जिसके चलते तीनों शवों के पोस्टमार्टम के बाद मंगलवार की शाम 7 बजे शव गांव पहुंचा तो आनंद व विक्रम की मां के साथ हिमांशु की मां ने अपने लाल का चेहरा देख तो वे अपना चेहरा पीटने लगी। इस दृश्य को देख वहां मौजूद लोगों की आंखे छलक उठी।
एसडीएम लंभुआ गामिनी सिंगला, प्रभारी सीओ व नायब तहसीलदार यहां पहुंचे। पीड़ित परिवारो से मिलकर शोक संवेदना प्रकट किया। इस बाबत तहसीलदार लंभुआ प्रांजल त्रिपाठी ने बताया कि लेखपाल से दोनों परिवारों की रिपोर्ट मंगाया गया है। मुख्यमंत्री राहत कोष से शासन से मदद दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। बता दें कि समय अधिक हो जाने के कारण शव का अंतिम संस्कार नहीं हो सका है। आज शव का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
Riport : LalJi
Sep 24 2025, 18:11