पितृपक्ष हम क्यों मनाते हैं और उसका महत्व क्या, जानिये
बलरामपुर से जय सिंह :- की खास रिपोर्ट पितृ पक्ष का हिन्दू सनातन धर्म में विशेष महत्व है, जो पितरों को श्रद्धांजलि देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए जाना जाता है। यह पखवाड़ा भाद्रपद मास के पूर्णिमा से शुरू होता है और 16 दिनों तक चलता है।
बलरामपुर 18 सितंबर पितृपक्ष हम क्यों मनाते हैं और उसका महत्व क्या है
पितृपक्ष के बारे में तुलसीपुर के विद्वान पंडित दुर्गा प्रसाद शुक्ला बताते हैं कि
पितृ पक्ष का महत्त्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। इस दौरान, लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान जैसे अनुष्ठान करते हैं। यह माना जाता है कि इस दौरान पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान कई अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- तर्पण: पितरों को जल अर्पित करने की क्रिया, जिससे उनकी आत्मा की शांति होती है।
- श्राद्ध: पितरों को भोजन और वस्त्र अर्पित करने की क्रिया, जिससे उनकी आत्मा की शांति होती है।
- पिंडदान: पितरों को पिंड अर्पित करने की क्रिया, जिससे उनकी आत्मा की शांति होती है।
पितृ पक्ष का महत्व इस प्रकार है:
पितृ पक्ष के दौरान, लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं।
पितृ पक्ष के अनुष्ठानों से पितरों की आत्मा की शांति होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान, वंशजों का कर्तव्य है कि वे अपने पितरों को याद करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करें।
इस प्रकार, पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महत्वपूर्ण है, जो पूरी दुनिया में अपने आप में अनूठा अवसर है। पितृ पक्ष की समाप्ति के बाद जब पितृ धरती से अपने वास स्थल वापस जाते हैं तो देव पक्ष प्रारम्भ होता है। और हम सनातन धर्म देव पक्ष का स्वागत बड़े ही धूमधाम से करते हैं भारतीय परम्परा और धार्मिक आदर्श उसे इसीलिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।
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