आजमगढ़: खिरिया बाग में मनाई गई भगतसिंह सुखदेव व राजगुरु का शहादत दिवस
निजामाबाद (आजमगढ़)
। कप्तानगंज के खिरिया बाग में जमीन मकान बचाओ संयुक्त मोर्चा के तत्वावधान में एयरपोर्ट विस्तारिकरण के खिलाफ 890वें दिन भी धरना जारी रहा ।इस दौरान शहीद ए आज़म भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के साथ क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की शहादत दिवस पर सांस्कृतिक कार्यक्रम व जनसभा का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता आशीष उपाध्याय और संचालन रामनयन यादव ने किया । कार्यक्रम में सर्वप्रथम अमर शहीदों की तस्वीर पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित करते हुए *भगत सिंह ने दी आवाज, बदलो-बदलो देश समाज;अमर शहीदों का पैगाम -जारी रखना है संग्राम; जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो,सही लड़ाई से नाता जोड़ो आदि नारे लगाए गए। वक्ताओं ने कहा कि हमारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत सबसे खास है, क्योंकि इनलोगों ने ब्रिटिश विरोधी भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को नयी दिशा दी थी। भगत सिंह के अथक प्रयास में तो जुझारू संघर्ष को जनांदोलन में बदलने और आजादी के संघर्ष को समाजवाद की मंजिल तक पहुंचाने का प्रयास शामिल है। लेकिन आज दुखद है कि शहादत के इस गौरवशाली अतीत को धार्मिक संकीर्णता का शिकार बनाया जा रहा है।इतिहास को बदलने का सुनियोजित प्रयास हो रहा है, अबतक स्वतंत्रता आंदोलन के स्थापित नायकों को हटाकर उनकी जगह विनायक दामोदर सावरकर को स्वतंत्रता संघर्ष के नायक के रूप में स्थापित करने का प्रयास जारी है जबकि सच्चाई है कि 1907-11 की छोटी अवधि को छोड़कर उन्होंने अपना सारा जीवन अंग्रेज शासकों से माफी मांगकर जेल से बाहर निकलने और उनकी सेवा करने के उद्देश्य से हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य पैदा करने में लगाया था। इतिहास को तोड़ने मरोड़ने के पीछे आरएसएस- भाजपा के वर्तमान शासकों के मकसद बिल्कुल साफ हैं कि धर्मनिरपेक्ष भारत को हिन्दू राष्ट्र में बदलना, हिंदुत्ववादी फासीवाद की स्थापना, और साम्राज्यवाद (खासकर अमेरिका) और देशी पूंजीपतियों की सेवा करना। वक्ताओं ने कुर्बानी को याद दिलाते हुए बताया कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 08 अप्रैल, 1929 को केंद्रीय असेंबली में बम क्यों फेंका था? निर्विवाद है कि उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, वे तो सिर्फ बहरों को सुनाने के लिए धमाका करना चाहते थे, क्योंकि तत्कालीन अंग्रेज सरकार जन भावना के विपरीत पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल जबरन असेंबली में पास करवाकर लागू करना चाहती थी।ये दोनों कानून देश की आम जनता और मजदूर वर्ग के खिलाफ थे। आज इतिहास फिर अपने को दोहरा रहा है। भाजपा सरकार अंग्रेजों के पदचिह्नों का अनुसरण कर रही है। मजदूरों के ट्रेड यूनियन अधिकारों में कटौती कर चार लेबर कोड थोपने की तैयारी चल रही है। "देश की प्रगति के लिए" मजदूरों को 70-90 घंटे प्रति सप्ताह काम करना चाहिए, जैसे पूंजीवादी फतवे जारी हो रहे हैं। जबकि सच्चाई है कि करोड़ों युवाओं को नौकरी और रोजगार के लिए मारे मारे फिर रहे हैं। ऐसे में बेरोजगारी दूर करने का रास्ता प्रति दिन 6 घंटों का कार्य दिवस और सप्ताह में दो दिन विश्राम हो सकता है।जाहिर है, सारे देश ने देखा कि राज्यसभा में तीन कृषि कानून कैसे पास किये गये थे और देश के किसानों को इन्हें रद्द करवाने के लिए दिल्ली बॉर्डर पर तेरह महीनों तक कैसा संघर्ष करना पड़ा था। लगभग 750 किसान शहीद हो गये।फिर भी, उनकी समस्याओं का हल नहीं निकल पाया है. जनविरोधी कानूनों को पास कराने के लिए दिसम्बर 2023 में लोकसभा से विपक्ष के 146 सांसद निलंबित कर दिये गये थे ।यह तो संसदीय जनतंत्र पर बदनुमा दाग है। जम्मू और कश्मीर से लेकर मणिपुर तक के लोगों की आकांक्षाओं की हत्या की गयी है।धार्मिक अल्पसंख्यकों पर निर्मम दमन जारी है। उत्तरप्रदेश के संभल में कई निरपराध नौजवानों की हत्या कर दी गई। योगी-सरकार की ने 14 मार्च '25(जुम्मावार) को होली की आड़ में मुसलमानों के मस्जिद जाने पर रोक लगाने का ऐलान कर दिया गया ।दूसरी ओर मोदी सरकार द्वारा जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों के पुनर्गठन डिलिमिटेशन के जरिए दक्षिण भारतीय राज्यों की सीटों को घटाकर और उत्तर भारत की सीटों को बढ़ाकर अपनी सत्ता मजबूत करना चाहती है। इस प्रकार अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए भाजपा व आरएसएस देश के संघात्मक ढांचे और एकता-अखंडता की बुनियाद पर करारा प्रहार करने की तैयारी में जुट गये है। अमरीका की ट्रम्प सरकार के दबाव में आयात शुल्क में बढ़ोतरी से लेकर उंची कीमत पर अनावश्यक वस्तुओं की खरीद और अवैध आप्रवासियों को हथकड़ी-बेड़ी लगाकर भेजा जाना प्रधानमंत्री मोदी को मंजूर है। याद कीजिये, भारत के अलावा किसी अन्य देश का ऐसा अपमान देखने को नहीं मिला है। यही है आरएसएस ब्रांड की देशभक्ति, जनता में विद्वेष और फूट का प्रचार और अपने आका अमेरिका के आगे नतमस्तक. दरअसल, यह उनके साम्राज्यवादपरस्त चरित्र को ही उजागर करता है। ऐसी विकट स्थिति में स्वतंत्रता आंदोलन के इन शहीदों की वैचारिक विरासत घुप्प अँधेरे में प्रकाश की किरण की भूमिका निभा सकता है। ये युवा शहीद बहुत कम समय तक राजनीतिक क्षितिज पर मौजूद रहे, लेकिन उतने ही समय में अपनी अमिट छाप छोड़ दी। 'समाजवाद' को अपने संगठन का लक्ष्य घोषित करने और उसके नीति निर्धारण में भगत सिंह की भूमिका अग्रणी थी उन्होंने जातीय भेदभाव , साम्प्रदायिक वैमनस्य, अंधविश्वास को जमकर वैचारिक चुनौती दी थी। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को किसी जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा और राज्य के संकीर्ण दायरे में नहीं समेटा जा सकता जिसकी कोशिश आजकल हो रही है। अपने कृतित्व से वे देश के सपूत बन गये थे और आज हमारे मार्गदर्शक हैं. इसलिए वर्तमान दौर में हमारे लिए जरूरी है कि 23 मार्च को हम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करें और एक बार फिर नयी गुलामी व तानाशाही थोपने के शासकों के मंसूबों का कारगर ढंग से विरोध करें। कार्यक्रम में फूलमती, नीलम, किस्मती,रम्भा, ओमप्रकाश भारतीय,दुखहरन सत्यार्थी, रामकुमार यादव, राजेश आज़ाद,बरकत अली, नरोत्तम यादव,मंतोष,राजू,शैलेश,रामाश्रय यादव, रामजतन चौहान, सूबेदार यादव, का.रामाज्ञा यादव,तेज बहादुर, दान बहादुर मौर्या, हरिहर,निर्मल प्रधान, अशोक गौड़, रामशब्द निषाद,नकछेद राय, अभिषेक पाण्डेय, श्रीराम आदि उपस्थित रहे।
Mar 23 2025, 19:35