शेख हसीना की अवामी लीग पर बैन नहीं लगाएंगे मोहम्मद यूनुस, क्यों बदल दी चाल?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की कोई योजना नहीं है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा है कि देश छोड़कर भाग गईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की राजनीतिक पार्टी, अवामी लीग पर कोई प्रतिबंध लगाने की योजना नहीं है। हालांकि, यह भी कहा कि हत्या और मानवता के खिलाफ अपराधों समेत अन्य अपराधों के आरोपी नेताओं को अदालत में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। चुनाव को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस का रुख नरम पड़ता दिख रहा है।

बांग्लादेश सरकार के मुख्य सलाहकार की मुहम्मद यूनुस के प्रेस विभाग ने गुरुवार को बयान में यह जानकारी दी। एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बात करते हुए मुहम्मद यूनुस ने कहा कि सरकार ने चुनावों के लिए दो संभावित समयसीमाएं निर्धारित की हैं। यूनुस ने कहा कि मतदान में देरी नहीं की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि राजनीतिक दल चुनाव से पहले केवल सीमित सुधार चाहेंगे तो मतदान दिसंबर में होगा। हालांकि, यदि वे अधिक व्यापक सुधार पैकेज का अनुरोध करते हैं, तो चुनाव अगले साल जून में हो सकते हैं।

गुरुवार को मोहम्मद यूनुस ने कंफर्ट एरो के नेतृत्व में ढाका पहुंचे 'इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप' के प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात की। इस दौरान यूनुस ने कहा कि सरकार ने अवामी लीग के नेताओं को जुलाई विद्रोह के दौरान संभावित अपराधों के लिए हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में भेजने से इनकार नहीं किया है। उन्होंने कहा, यह पूरी तरह से विचाराधीन है।

इससे पहले बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और विपक्षी दल बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) उन पर चुनाव लड़ने से रोक लगाने की कोशिश कर रहे थे। वहीं, पिछले साल विद्रोह करके शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंकने वाले छात्र नेताओं ने भी मांग है कि अवामी लीग को गैरकानूनी घोषित किया जाए। छात्रों की तरफ से शेख हसीना की पार्टी पर उनके 15 साल के कार्यकाल के दौरान व्यापक मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया गया है। पिछले साल के आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई का भी आरोप लगा, जिसमें 800 से अधिक लोग मारे गए थे। ऐसे में कार्यवाहक सरकार के नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस का यह फैसला उन छात्र क्रांतिकारियों को नागवार गुजर सकता है।

वक्फ बिल पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही मोदी सरकार, सीएए की तरह ना बन जाएं हालात

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वक्फ संशोधन बिल 2024 को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तकरार तेज होती जा रही है। एक तरफ सरकार वक्फ संशोधन बिल को अंतिम रूप देने की तैयारी में है। कहा जा रहा है कि संसद के चालू बजट सत्र के दूसरे चरण में वक्फ संशोधन बिल 2024 को पेश किया जा सकता है। वही वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम संगठनों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इस बिल के विरोध में जंतर-मंतर पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुआ।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामी सहित तमाम मुस्लिम संगठनों ने 17 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर अपने तेवर दिखा दिए हैं। इस प्रदर्शन में विपक्षी नेताओं का भी साथ मिला। इन संगठनों ने किसान आंदोलन की तरह वक्फ बिल के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की चेतावनी सरकार को दी है। जिससे सियासी दबाव बढ़ रहा है। वक्फ बिल को लेकर मौलाना मुसलमानों को एकजुट करने में लगे हैं। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं सीएए-एनआरसी जैसे हालात तो पैदा नहीं हो जाएंगे?

क्या हुआ था 2019 में?

मोदी सरकार साल 2019 में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने के लिए सीएए कानून लेकर आई थी। सीएए के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया। इसे लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय आंदोलन शुरू हुआ, जिसका केंद्र शाहीन बाग बन गया। सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग का प्रोटेस्ट एक मॉडल बन गया और इस आंदोलन की चिंगारी देश भर में फैल गई थी। देश के तमाम शहरों में शहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं और बच्चे सड़कों पर उतरकर धरने दे रहे थे।

सीएए कानून के विरोध में मुस्लिम समुदाय इसीलिए भी विरोध प्रदर्शन के लिए उतर गए थे, क्योंकि उन्हें ये संशय था कि उनकी नागरिकता छिन जाएगी। सीएए के खिलाफ आंदोलन ने जब विकराल रूप लिया तो मोदी सरकार को साफ-साफ शब्दों में कहना पड़ा कि फिलहाल सरकार की मंशा एनआरसी लागू करने की नहीं है। हालांकि, सरकार ने 2024 में इस कानून को भी लागू कर दिया।

क्या कानून पास कराने की स्थिति में है सरकार?

वक्फ संशोधन बिल को संसद में पारित कराना सरकार के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है। यह बिल पहले ही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से पास हो चुका है, और लोकसभा में सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है।

लोकसभा में संख्याबल:

लोकसभा कुल सीटें: 542

एनडीए के सांसद: 293 (जिसमें बीजेपी के 240 सदस्य)

कांग्रेस सहित इंडिया ब्लॉक के सांसद: 233

अन्य निर्दलीय और छोटे दलों के सांसद: 16 सदस्य

अगर बिल पर वोटिंग (डिवीजन) होती है, तो भी सरकार आसानी से इसे पारित करा लेगी, क्योंकि एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है।

राज्यसभा में सरकार की स्थिति

राज्यसभा कुल सदस्य: 236

बीजेपी के सांसद: 98

एनडीए के कुल सांसद: 115

6 नॉमिनेटेड सदस्य (जो आमतौर पर सरकार के पक्ष में वोट करते हैं), वहीं, संभावित समर्थन के साथ एनडीए का आंकड़ा 120+ है जो कि बहुमत के लिए पर्याप्त है।

क्या है वक्फ और इसका प्रबंधन?

बता दें कि वक्फ एक इस्लामी परंपरा है, जिसमें धार्मिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति दान की जाती है। वक्फ संपत्तियों को बेचा या विरासत में नहीं दिया जा सकता, ये हमेशा अल्लाह के नाम पर होती हैं। भारत में 8,72,351 वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9 लाख एकड़ भूमि में फैली हुई हैं। अनुमानित रूप से इनकी कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।

इस वक्त देश में अलग-अलग प्रदेशों के करीब 32 वक्फ बोर्ड हैं, जो वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन, देखरेख और मैनेजमेंट करते हैं। बिहार समेत कई प्रदेशों में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं।

वक्फ बोर्ड का काम वक्फ की कुल आमदनी कितनी है और इसके पैसे से किसका भला किया गया, उसका पूरा लेखा-जोखा रखना होता है। इनके पास किसी जमीन या संपत्ति को लेने और दूसरों के नाम पर ट्रांसफर करने का कानूनी अधिकार है। बोर्ड किसी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी नोटिस भी जारी कर सकता है। किसी ट्रस्ट से ज्यादा पावर वक्फ बोर्ड के पास होती है।

संसद ने 1954 में बनाया था वक्फ एक्ट

वक्फ में मिलने वाली जमीन या संपत्ति की देखरेख के लिए कानूनी तौर पर एक संस्था बनी, जिसे वक्फ बोर्ड कहते हैं। 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो काफी संख्या में मुस्लिम देश छोड़कर पाकिस्तान गए थे। वहीं, पाकिस्तान से काफी सारे हिंदू लोग भारत आए थे। 1954 में संसद ने वक्फ एक्ट 1954 के नाम से कानून बनाया।

इस तरह पाकिस्तान जाने वाले लोगों की जमीनों और संपत्तियों का मालिकाना हक इस कानून के जरिए वक्फ बोर्ड को दे दिया गया। 1955 में यानी कानून लागू होने के एक साल बाद, इस कानून में बदलाव कर हर राज्यों में वक्फ बोर्ड बनाए जाने की बात कही गई।

आज आतंकी जहां मारे जाते हैं, वहीं दफना दिए जाते हैं, राज्यसभा में अमित शाह की हुंकार

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गृह मंत्री अमित शाह ने आज (21 मार्च) राज्यसभा में मोदी सरकार के 10 सालों में देश की सुरक्षा व्यवस्था में हुए कार्यों को गिनाया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले 10 साल में तीन बड़े नासूरों को उखाड़ फेंका। ये तीन नासूर थे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या, वामपंथी उग्रवाद और उत्तर पूर्व का उग्रवाद।

पार्लियामेंट में बहस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस की सरकारों पर करारा हमला क‍िया। अमित शाह ने कहा, जब गृह मंत्रालय की चर्चा होती है तब देश में 2014 के पहले से कई सारे मुद्दे थे, जो मोदी सरकार को मिले। इस देश का विकास तीन समस्याओं की वजह से रुका था। ये नासूर थे, जो देश की शांति में खलल डाल रहे थे। चार दशक से देश में 3 नासूर थे। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पहला नासूर था। दूसरा नक्सलवाद और उत्तर पूर्व उग्रवाद तीसरा नासूर था। हमने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की। हमने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया। पहले की सरकार आतंकी हमलों को भूल जाती थी।

अमेर‍िका-इजरायल के बाद सिर्फ भारत ऐसा कर सकता है- अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, मोदी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति है। हमने आतंकवाद के करारा जवाब दिया है। पहले हमलों के बाद कोई कार्रवाई नहीं की जाती थी और मामले लंबित रहते थे। लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद, पुलवामा हमले के 10 दिनों के भीतर ही हमने पाकिस्तान में घुसकर हमला किया। पूरी दुनिया में केवल दो ही देश हैं जो अपनी सीमाओं और रक्षा बलों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका, और प्रधानमंत्री मोदी ने इस सूची में हमारे महान राष्ट्र का नाम भी जोड़ दिया है।

पहले आतंकियों का महिमामंडन होता था- अमित शाह

अमित शाह ने आगे कहा कि हमने एक देश में दो विधान को खत्म किया। पहले की सरकार ने वोट बैंक की वजह से अनुच्छेद 370 नहीं हटाया। अब लालचौक पर तिरंगा फहरा रहा है। पहले आतंकवादियों के जुलूस निकलते थे। अब आतंकी जहां मरते हैं, वहीं दफन होते हैं। दस साल पहले आतंकियों का महिमामंडन होता था।

वामपंथी उग्रवाद की बात

वामपंथी उग्रवाद की बात करते हुए अमित शाह ने कहा, ये तो तिरुपति से पशुपतिनाथ तक एक करने का सपना देखते थे। तीनों समस्याओं को एक साथ गिना जाए तो चार दशक में इनके कारण देश के 92 हजार नागरिक मारे गए। मोदी सरकार आने से पहले तक इनके उन्मूलन को कोशिश कभी नहीं की गई। इस काम को मोदी सरकार आने के बाद किया गया।

31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद खत्म होगा-अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारा मकसद नक्सलवाद को खत्म करना हैं। उन्होंने कहा, टेक्नोलॉजी से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद खत्म होगा। जहां सूर्य भी नहीं पहुंचते वहां हमारे जवान तैनात हैं। छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के एक ही साल में 380 नक्सली मारे गए, जिसमें कल के 30 जोड़ना बाकी है। 1145 नक्सली गिफ्तार हुए और 1045 नक्सलियों ने सरेंडर किया। ये सब करने में 26 सुरक्षाबल हताहत हुए। छत्तीसगढ़ के बीजापुर और कांकेर जिले में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 30 नक्सली मारे गए थे।

कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी विधायकों का हंगामा, स्पीकर के ऊपर फेंके गए पेपर

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कर्नाटक विधानसभा में शुक्रवार को जमकर हंगामा हुआ। बीजेपी विधायकों के हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। भाजपा विधायकों ने सदन के वेल में घुसकर सीडियां लहराईं और स्पीकर की कुर्सी के सामने कागज फाड़कर फेंके।स्पीकर के ऊपर पेपर उछाले जाने से विधानसभा में जाेरदार हंगामा हुआ। स्पीकर के ऊपर कागज न गिरे इसके लिए मार्शल को मोर्चा संभाला पड़ा। बीजेपी विधायकों के भारी हंगामें के बाद विधनसभा की कार्रवाई को स्थगित कर दिया।

कर्नाटक में 48 नेताओं को हनी ट्रैप किए जाने के आरोपों के बाद शुक्रवार को विधानसभा में भारी हंगामा देखने को मिला।कर्नाटक के सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने गुरुवार को खुलासा किया था कि उन्हें हनी ट्रैप में फंसाने की कोशिश की गई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि कर्नाटक के कई विधायकों और सांसदों को इस जाल में फंसाया गया है। राजन्ना के इसी बयान पर विपक्षी पार्टी के विधायकों ने कर्नाटक विधानसभा में खूब हल्ला मचाया।

बीजेपी विधायकों द्वारा विधानसभा में किए गए प्रोटेस्ट को लेकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया गुस्से में दिखाई दिए। सत्ता पक्ष के विधायक जहां सद में बैठक हुए थे तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के विधायकों ने स्पीकर की कुर्सी को चारों तरफ से घेर लिया।बीजेपी विधायकों ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की सरकार विपक्षी नेताओं को ब्लैकमेल के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल कर रही है।

इससे पहले गुरुवार को राज्य के सहकारी मंत्री के.एन. राजन्ना ने दावा किया था कि कर्नाटक के 48 हनीट्रैप की राजनीतिक धोखेबाजी का शिकार हुए हैं। बीजेपी विधायकों ने इस मामले की जांच हाई कोर्ट के मौजूदा जज से कराने की मांग की।

दिल्ली हाईकोर्ट जज के घर मिले नकदी मामले ने पकड़ा तूल, राज्यसभा में भी गूंज

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दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत एक सीनियर जज के घर से भारी संख्या में नकदी बरामद होने की खबर से लोग सकते में हैं। एक जज के घर से कथित तौर पर नकदी बरामद होने का मामला शुक्रवार को राज्यसभा में भी गूंजा। सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर व्यवस्थित चर्चा के लिए कोई व्यवस्था ढूंढ़ेंगे।

कांग्रेस के जयराम रमेश ने सुबह के सत्र में यह मुद्दा उठाया। जयराम रमेश ने इस मुद्दे को सदन में उठाते हुए न्यायिक जवाबदेही पर सभापति से जवाब मांगा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ महाभियोग के संबंध में लंबित नोटिस के बारे में याद दिलाया। रमेश ने कहा कि आज सुबह, हमने दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज के आवास पर भारी मात्रा में नकदी पाए जाने के चौंकाने वाले मामले के बारे में पढ़ा। रमेश ने यह भी याद दिलाया कि पहले 50 सांसदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था, लेकिन उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने चेयरमैन से अनुरोध किया कि न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाएं।

राज्यसभा के चेयरमैन और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है और वह इस मुद्दे पर एक स्ट्रक्चर्ड डिस्कशन करवाएंगे। धनखड़ ने कहा कि उन्हें इस बात से परेशानी है कि घटना हुई लेकिन तत्काल सामने नहीं आई। उन्होंने कहा कि यदि ऐसी घटना किसी राजनेता, नौकरशाह या उद्योगपति से संबंधित होती तो संबंधित व्यक्ति तुरंत 'लक्ष्य' बन जाता। उन्होंने कहा, इसलिए, मुझे विश्वास है कि पारदर्शी, जवाबदेह और प्रभावी प्रणालीगत प्रतिक्रिया सामने आएगी।

सभापति ने आगे कहा कि वह सदन के नेता और विपक्ष के नेता से संपर्क करेंगे और सत्र के दौरान चर्चा कराने की कोशिश करेंगे। महाभियोग मामले पर सभापति ने कहा कि उन्हें राज्यसभा के 55 सदस्यों से प्रतिवेदन मिला है। उन्होंने कहा कि अधिकांश सदस्यों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, जिससे मुझे अपना कर्तव्य निभाने में मदद मिली। उन्होंने शेष सदस्यों से उन्हें भेजे गए ई-मेल का जवाब देने की अपील की।

धनखड़ ने कहा कि अगर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या 50 से ऊपर है तो वह उसी के अनुसार आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि ज्यादातर सदस्यों ने सहयोग किया है। जिन सदस्यों ने अभी तक अपना जवाब नहीं भेजा है वे कृपया उन्हें भेजे गए दूसरे मेल का जवाब दें। तब मेरे स्तर पर प्रक्रिया में देरी नहीं होगी, यहां तक कि एक पल के लिए भी नहीं। सभापति ने सदन को यह भी सूचित किया कि प्रतिनिधित्व पर हस्ताक्षर करने वाले 55 सदस्यों में से एक सदस्य के हस्ताक्षर दो जगहों पर हैं और संबंधित सदस्य ने दूसरा हस्ताक्षर करने से इनकार किया है।

मुसलमानों को जिहाद के अलावा कुछ नहीं पता”, उमर अब्दुल्ला ने क्यों कही ऐसी बात?

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जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विपक्ष के नेता सुनील शर्मा पर तीखा हमला बोला है। उमर अब्दुल्ला ने सुनील शर्मा की “लेजिसलेटिव जिहाद” शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि हर बात में आपको जिहाद नजर आता है। जब कोई अन्य सदस्य उनके धर्म के बारे में बात करता है तो उन्हें गुस्सा आ जाता है। क्या वह यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि मुसलमानों को 'जिहाद' के अलावा कुछ नहीं पता?

सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि धार्मिक मामलों पर ऐसी टिप्पणी करने से बचने चाहिए, जिससे लोगों की भावनाएं आहत हों। विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बातचीत करते हुए उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि किसी को भी यह महसूस नहीं होना चाहिए कि इस सरकार में उनकी बात नहीं सुनी जाती।

सुनील शर्मा ने क्या कहा था?

इससे पहले गुरुवार को विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी पर "टू नेशन थ्योरी" को बढ़ावा देने और बाहरी लोगों के जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने के अधिकार का विरोध करने का आरोप लगाया था। सुनील शर्मा ने कहा था,यहां लैंड जिहादियों को बचाने के लिए लेजिसलेटिव जिहाद का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत एक है, भारत से कोई भी यहां आ सकता है, अगर कश्मीर का कोई व्यक्ति महाराष्ट्र में जमीन खरीद सकता है, तो महाराष्ट्र का कोई व्यक्ति कश्मीर में जमीन क्यों नहीं खरीद सकता?

दिल्ली हाईकोर्ट जज के बंगले पर मिला कैश, जानें कैसे सामने आया मामला

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सरकार पर लोगों को भरोसा हो ना हो कानून पर पूरा भरोसा है। हालांकि, कुछ ऐसे मामले में जिनसे अदालतों पर भरोसे की दीवार भी कमजोर पड़ने लगी है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है दिल्ली हाई कोर्ट से। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर भारी मात्रा में कैश बरामद किया गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अगुवाई वाली कॉलेजियम ने इस पर तुरंत एक्शन लिया और फौरन जज यशवंत वर्मा, जिनके घर से नकदी मिली है, को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है। जज वर्मा के घर बड़ी मात्रा में नकदी तब रोशनी में आई जब उनके घर लगी आग को बुझाने फायर ब्रिगेड वाले पहुंचे थे।

होली की छुटि्टयों के दौरान जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले पर आग लग गई थी। वे घर पर नहीं थे। परिवार के लोगों ने पुलिस और इमरजेंसी सर्विस को कॉल किया और आग की जानकारी दी। पुलिस और फायरब्रिगेड की टीम जब घर पर आग बुझाने गई तो उन्हें भारी मात्रा में कैश मिला।

कॉलेजियम ने इमरजेंसी मीटिंग की

सूत्रों के मुताबिक जब सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना को मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने कॉलेजियम की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक रिपोर्ट आने के बाद उन्हें उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को उनके स्थानांतरण की सिफारिशें कीं। न्यायमूर्ति वर्मा ने अक्तूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम ऑनर्स की डिग्री हासिल की। यशवंत वर्मा ने 1992 में रीवा विश्वविद्यालय से लॉ में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 08 अगस्त, 1992 को एडवोकेट के रूप में नामांकित हुए। एडवोकेट यशवंत वर्मा ने संवैधानिक, इंडस्ट्रियल विवाद, कॉर्पोरेट, टैक्सेशन, पर्यावरण और कानून की संबद्ध शाखाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार के मामलों को संभालने वाले मुख्य रूप से दीवानी मुकदमों की पैरवी की। 2006 से प्रोमोट होने तक जस्टिस यशवंत वर्मा तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील भी रहे। 11 अक्टूबर, 2021 को उनका दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था।

जज के घर पर बेहिसाब नकदी मिलना गंभीर मामला

बड़ी मात्रा में नकदी कोई भी व्यक्ति अपने घर में नहीं रख सकता। काले धन के प्रवाह को रोकने के लिए यह जरूरी है कि ज्यादा नकदी होने पर उसे बैंक में जमा करें। अगर किसी के घर में बड़ी मात्रा में नकदी मिलती है तो उस व्यक्ति को नकदी का स्रोत बताना पड़ेगा। खासतौर से जज जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे व्यक्ति को तो अपनी ट्रांसपेरेंसी रखनी ही होगी। किसी जज के घर पर बेहिसाब नकदी का पाया जाना एक दुर्लभ और गंभीर मामला है।

बेंगलुरु में आरएसएस की तीन दिवसीय बैठक शुरू, कई अहम मुद्दों पर होगी चर्चा

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में निर्णय लेने की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक आज 21 मार्च से बेंगलुरु में शुरी हो गई है।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस बैठक का उदघाटन किया। इस बैठक में 1482 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। 23 मार्च तक चलने वाली इस बैठक में आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के महासचिव भी शामिल होंगे, जिनमें भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और महासचिव बीएल संतोष भी शामिल होंगे।

संघ की प्रतिनिधि सभा की शुरूआत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तबलावादक जाकिर हुसैन, प्रीतीश नंदी सहित कई जानी मानी हस्तियों और संघ के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को श्रद्धांजलि दी गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मुकुंद सीआर ने कहा कि हम जब भी इस तरह बैठक करते हैं तो शुरुआत उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं, जो इस दुनिया में नहीं रहे।

सह सरकार्यवाह मुकुंद ने कहा कि इस साल संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो जाएंगे, इसलिए बैठक में संघ के विस्तार पर बातचीत होगी साथ ही अब तक संघ ने कितना काम किया इस पर चर्चा होगी। इसका मूल्यांकन होगा कि जो सामाजिक बदलाव हम लाने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें कितना सफल रहे।

संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने बताया कि बैठक के दौरान बांग्लादेश और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह को लेकर प्रस्ताव पारित किया जाएगा। आंबेकर ने बताया कि संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, संघ द्वारा किए गए कार्यों और उसके भविष्य की रूपरेखा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे। क्षेत्रीय प्रमुख भी अपने कार्यों, कार्यक्रमों, भूमिका और भविष्य की योजनाओं को प्रस्तुत करेंगे, जिनकी समीक्षा की जाएगी।

पीएम मोदी के विदेश दौरों पर कितना खर्च? खरगे ने पूछा सवाल तो सरकार ने दिया जवाब

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समय-समय पर विदेश दौरों पर जाते रहते हैं। अभी हाल ही में पीएम मोदी ने मॉरिशन का दौरा किया था, उससे पहले अमेरिका भी गए थे। मई 2022 से दिसंबर 2024 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 38 विदेश यात्राएं कर चुके हैं। पीएम मोदी के विदेश दौरे को लेकर विपक्ष हमेशा से सवाल उठता रहा है। एक बार फिर विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम की विदेश यात्राओं पर भारतीय दूतावासों द्वारा किए गए कुल खर्च और यात्रा-वार खर्च का ब्योरा मांगा था। जवाब में विदेश राज्य मंत्री पबित्र मार्गेरिटा ने सरकार का आधिकारिक ब्यौरा पेश कर दिया है।

खरगे ने सरकार से पूछा था कि पिछले तीन सालों में प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं की व्यवस्था पर भारतीय दूतावासों द्वारा कुल कितना खर्च किया गया है। उन्होंने होटल व्यवस्था, सामुदायिक स्वागत, परिवहन व्यवस्था और अन्य विविध व्यय जैसे प्रमुख मदों के अंतर्गत किए गए यात्रा-वार व्यय का विवरण भी मांगा।

38 विदेश यात्राओं पर करीब ₹258 करोड़ खर्च

इसके जवाब में मार्गेरिटा ने प्रधानमंत्री द्वारा 2022, 2023 और 2024 में किए गए विदेश यात्राओं पर देश-वार खर्च के आंकड़ों को सारणीबद्ध रूप में पेश किया। उनकी इन यात्राओं में आधिकारिक, उनके साथ जाने वाले सुरक्षा और मीडिया प्रतिनिधिमंडल शामिल थे। मई 2022 से दिसंबर 2024 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 38 विदेश यात्राओं पर करीब ₹258 करोड़ खर्च हुए। इन 38 देशों के दौरों में अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, रूस, इटली, पोलैंड, ब्राजील, ग्रीस, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रमुख देश शामिल थे।

सबसे महंगा दौरा अमेरिका का

सरकार की ओर से जारी आकड़ों के मुताबिक, पीएम मोदी का सबसे महंगा दौरा जून 2023 में अमेरिका का था।आंकड़ों के अनुसार, जून 2023 में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा पर 22 करोड़ 89 लाख 68 हजार 509 रुपये का खर्च हुआ था, जबकि सितंबर 2024 में इसी देश की यात्रा पर 15 करोड़ 33 लाख 76 हजार 348 रुपये खर्च हुए थे।

नेपाल दौरे पर सबसे कम खर्च

मई 2023 में प्रधानमंत्री की जापान यात्रा से संबंधित आंकड़ों के अनुसार उस पर 17 करोड़ 19 लाख 33 हजार 356 रुपये खर्च हुए थे, जबकि मई 2022 में नेपाल यात्रा पर 80,01,483 रुपये खर्च हुए थे।2024 में, उन्होंने पोलैंड दौरे पर ₹10,10,18,686 खर्च हुए थे, तो वहीं यूक्रेन में ₹2,52,01,169, रूस में ₹5,34,71,726, इटली में ₹14,36,55,289, ब्राज़ील यात्रा पर ₹5,51,86,592 और गुयाना दौरे पर ₹5,45,91,495 रुपये खर्च किए गए।

2014 से पहले के कुछ आंकड़े भी साझा किए

मंत्री ने अपने जवाब में 2014 से पहले के वर्षों के कुछ आंकड़े भी साझा किए। उन्होंने कहा कि इससे पहले प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं पर खर्च 10 करोड़ 74 लाख 27 हडार 363 रुपये (अमेरिका, 2011); 9,95,76,890 रुपये (रूस, 2013), 8,33,49,463 रुपये (फ्रांस, 2011) और 6,02,23,484 रुपये (जर्मनी, 2013) था। उन्होंने कहा, ‘‘ये आंकड़े मुद्रास्फीति या मुद्रा में उतार-चढ़ाव के समायोजन के बिना वास्तविक व्यय को दर्शाते हैं।’’

ढीली पड़ी बांग्लादेश की ऐंठन, पीएम मोदी से मुलाकात चाहते हैं मोहम्मद यूनुस

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बांग्लादेश एक तरफ तो भारत के दुश्मनों से नजदीकियां बढ़ा रहा है, वहीं भारत के साथ बेवजह की दुश्मनी पाल रहा है। अल्पसंख्यकों पर हिंसा और भारत के साथ संबंधों में तनाव के बीच बांग्लादेश ने भारत से संपर्क किया है। बांग्लादेश की तरफ से इच्छा जाहिर की गई है कि अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी की मुलाकात हो जाए। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस अगले महीने थाईलैंड में आमने-सामने होने वाले हैं, लेकिन इस दौरान दोनों के बीच औपचारिक मुलाकात की संभावना नहीं है। मुलाकात को लेकर भारत की तरफ से इस बारे में कोई उत्साह नहीं दिखाया गया है।

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश ने अप्रैल के पहले हफ्ते में बैंकॉक में मोहम्मद यूनुस और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच एक द्विपक्षीय बैठक कराने को लेकर भारत से संपर्क किया है। दरअसल, दोनों देशों के नेता 2 से 4 अप्रैल तक बैंकॉक में आयोजित 6वें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भाग ले सकते हैं। इसे देखते हुए बांग्लादेश ने दोनों नेताओं के बीच बैठक आयोजित कराने के लिए संपर्क किया है।

न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए बांग्लादेश के अंतरिम सरकार में विदेशी मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहिद हुसैन ने कहा, हमने बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक आयोजित कराने को लेकर भारत के साथ कूटनीतिक संपर्क किया है।

भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में तनाव

बता दें कि बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से ही भारत के साथ रिश्तों में तनाव देखा जा रहा है। भारत ने बांग्लादेश के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों के साथ ही बिगड़ती कानून व्यवस्था और चरमपंथियों की जेलों से रिहाई को लेकर चिंताओं को अंतरिम सरकार के सामने रखा है। वहीं, यूनुस सरकार ने भारत में मौजूद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की मौजूदगी के बारे में चिंता जाहिर की है और उनके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है। इसके अलावा नदियों के पानी बंटवारे और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने जैसे मुद्दों को लेकर दोनों के बीच गतिरोध है।