चुटकी में होंगे रेलवे से जुड़े सारे काम, आ गया ये नया गजब का ऐप

भारतीय रेलवे एक बड़ी तैयारी में है. भारतीय रेलवे ने एक सुपर ऐप ऐप तैयार किया है. भारतीय रेलवे मंत्रालय द्वारा इसे डिजाइन किया गया है. यह लोगों को सुविधा पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है. इस ऐप में विशेष रूप से इंटरफेस और यूजर्स एक्सपिरियंस के बेहतर बनाने पर जोड़ दिया गया है. ऐसे में आइए इनके फीचर्स पर एक नजर डालते है

सिंगल-साइन-ऑन

इस ऐप में यूजर्स को बार बार साइन ऑन नहीं करना पड़ेगा. यानि की सिंगल साइन ऑन से आप इसके सभी सर्विस का इस्तेमाल कर सकते है. यही नहीं यह भारतीय रेलवे के अन्य ऐप्स जैसे IRCTC RailConnect, UTS Mobile App आदि में भी काम करेगी. आसान भाषा में समझे तो यह एक ऑल इन वन ऐप है.

मौजूदा समय में आरक्षित और अनारक्षित बुकिंग के लिए अलग-अलग ऐप्स होते हैं. इसके अलावा ट्रेन की आवाजाही और डेट लाइन देखने के लिए भी अलग ऐप्स डाउनलोड करने पड़ते हैं. अब ये सभी सर्विस एक ही ऐप में मौजूद होंगी.

इंटीग्रेटेड सर्विसेज

इस ऐप में सभी सर्विस को एकस जगह कर दिया जाएगा. उदाहरण के लिए PNR पूछताछ करते समय संबंधित ट्रेन की जानकारी भी दिखाई जाएगी. इसकी मदद से ऑनबोर्डिंग या साइन अप करना काफी आसान हो जाएगा. यूजर्स अपने मौजूदा RailConnect या UTS ऐप के क्रेडेंशियल्स का इस्तेमाल कर सुपर ऐप में आसानी से साइन अप कर सकते हैं.

साइन अप प्रक्रिया को आसान और यूजर्स के अनुकूल बनाने के लिए इसे डिजाइन किया गया है.इन सब के अलावा यह लॉगिन करने में भी काफी आसान होगा. यूजर्स के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए अलग अलग लॉगिन ऑप्शन दिए गए हैं. एक बार लॉगिन करने के बाद ऐप को बाद में mPIN या बायोमेट्रिक के जरिए भी एक्सेस किया जा सकेगा

जबलपुर का ऐसा गांव, जहां 25 सालों से नहीं पी किसी ने शराब

मध्य प्रदेश की मोहन सरकार ने भले ही प्रदेश के 17 शहरों में शराबबंदी लागू करने की घोषणा की हो, लेकिन जबलपुर जिले का एक आदिवासी गांव ऐसा भी है, जहां पिछले 25 वर्षों से पूर्ण शराबबंदी है. इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी गौड़ आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं और उन्होंने स्वेच्छा से शराब के खिलाफ यह अभियान चलाया है.

इस गांव से प्रेरणा लेकर आसपास के करीब एक दर्जन गांवों ने भी अपने क्षेत्र में शराबबंदी लागू कर दी है. गांव में शराब लाने, बेचने या पीने वालों पर 25,000 का जुर्माना लगाया जाता है और सजा के तौर पर पूरे गांव को भोजन कराना पड़ता है. इस सख्ती की वजह से गांव पूरी तरह नशामुक्त हो चुका है और इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि गांव के युवा अब शिक्षा और रोजगार की ओर अग्रसर हैं.

कैसे हुई शराबबंदी की शुरुआत?

दरअसल, जबलपुर से 55 किलोमीटर दूर स्थित देवरी नवीन गांव में 25 साल पहले तक शराब का बोलबाला था. गांव के कई युवा और बुजुर्ग शराब के आदी हो चुके थे, जिससे घर-परिवार की शांति भंग हो गई थी. शराब की वजह से झगड़े, हिंसा, घरेलू कलह और आर्थिक तंगी जैसी समस्याएं आम हो गई थीं. ऐसे हालात में बरगी विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत देवरी नवीन के पंचों और महिलाओं ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया.

पंचों ने ग्राम पंचायत की बैठक बुलाई और सभी ग्रामीणों ने आपसी सहमति से शराबबंदी का संकल्प लिया और महिलाओं की एक समिति बनाई. ग्राम पंचायत ने शराबबंदी को सख्ती से लागू करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया. इस समिति में गांव की महिलाओं की अहम भूमिका रही, जिन्होंने आगे बढ़कर शराब पीने वालों की पहचान करने, उन पर जुर्माना लगाने और गांव को शराब मुक्त बनाने में योगदान दिया.

शराब पीने पर कठोर दंड

ग्राम पंचायत ने शराबबंदी के लिए कड़े नियम बनाए.

शराब लाने, बेचने या पीने पर 25,000 का जुर्माना.

जुर्माने के साथ पूरे गांव को भोजन कराना अनिवार्य.

शराब पीकर गाली-गलौज करने वालों पर 10,000 का अतिरिक्त जुर्माना.

गांव की महिलाओं को यह अधिकार दिया गया कि वे शराब पीने वालों की शिकायत पंचायत से कर सकती हैं.

शराबबंदी के नियमों को तोड़ने वालों को सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने का प्रावधान भी रखा गया.

गांव के लोगों ने इस नियम को अपनी परंपरा के रूप में स्वीकार कर लिया और तभी से कोई भी व्यक्ति शराब नहीं पीता और न ही गांव में लाने की हिम्मत करता है.

महिलाओं की अहम भूमिका

गांव की महिला समिति ने शराबबंदी को सफल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. गांव की महिला सदस्य होलिका बाई बताती हैं कि एक समय था, जब गांव के हर मोहल्ले में शराब बनाई और बेची जाती थी. गांव के युवा और बुजुर्ग शराब के आदी हो चुके थे और इससे महिलाओं और बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा था. गांव की महिलाओं ने एकजुट होकर शराबबंदी के लिए आंदोलन किया. उन्होंने शराब पीने वालों के नाम ग्राम पंचायत को बताए और कड़े फैसले लेने का आग्रह किया. धीरे-धीरे शराब पीने वाले कम होते गए और आज गांव पूरी तरह शराब मुक्त हो गया है.

आसपास के गांवों ने भी ली प्रेरणा

गांव के सचिव सतीश राय बताते हैं कि देवरी नवीन की सफलता से प्रेरित होकर आसपास के तिन्हेटा, पटी, उर्रम, चिरपोड़ी, करेली, नकटिया और बड़ीबारा जैसे गांवों ने भी शराबबंदी के लिए कड़े नियम बना दिए हैं. यह सभी गांव अब ग्राम पंचायत और महिलाओं की पहल से शराब मुक्त हो चुके हैं. शराब पीने वालों पर यहां भी भारी जुर्माना लगाया जाता है और जो राशि मिलती है, उसे गांव के विकास कार्यों, गरीब बच्चों की शिक्षा और शादी में खर्च किया जाता है.

एक युवक रोज शराब पीकर घर लौटता था, जिससे उसकी पत्नी बहुत परेशान थी. पत्नी ने पंचायत से शिकायत की और पंचायत ने युवक पर 10,000 का जुर्माना लगाया.

गांव में एक व्यक्ति बाहर से शराब लाकर बेचने की कोशिश कर रहा था. पंचायत ने उस पर 25,000 का जुर्माना लगाया और यह रकम गांव की एक बेटी की शादी में खर्च की गई.

जुर्माने की राशि से गांव में बर्तन खरीदे गए और अन्य सामूहिक जरूरतों को पूरा किया गया.

इन कड़े फैसलों का नतीजा यह निकला कि पिछले 10 वर्षों में गांव में शराब पीने या बेचने का एक भी मामला सामने नहीं आया.

प्रशासन की सराहना, लेकिन प्रचार की कमी

गांव की इस अनोखी पहल की कलेक्टर, कमिश्नर और मुख्यमंत्री तक सराहना कर चुके हैं, लेकिन प्रचार-प्रसार की कमी के कारण अन्य गांवों तक इसकी मिसाल नहीं पहुंच सकी. यदि इस मॉडल को राज्य स्तर पर प्रचारित किया जाए और अन्य गांवों को इससे सीखने के लिए प्रेरित किया जाए तो यह पूरे प्रदेश में एक सशक्त नशामुक्ति अभियान का रूप ले सकता है.

गांव की सफलता और उज्ज्वल भविष्य

आज देवरी नवीन गांव में शिक्षा और रोजगार की दिशा में सकारात्मक बदलाव दिख रहे हैं.

गांव के युवा अब पढ़ाई और नौकरी पर ध्यान दे रहे हैं

महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं और उन्हें सामाजिक समानता मिली है.

गांव में घरेलू हिंसा और झगड़े पूरी तरह खत्म हो गए हैं.

गांव की आर्थिक स्थिति सुधर गई है, क्योंकि अब लोगों की कमाई शराब में बर्बाद नहीं होती.

गांव के लोग इस बदलाव से खुश हैं और इसे अपनी नई परंपरा बना चुके हैं. देवरी नवीन एक आदर्श गांव बन चुका है, जहां शराबबंदी केवल कानून से नहीं, बल्कि सामूहिक संकल्प से लागू हुई. यहां के लोगों ने सामाजिक चेतना और आत्मनियंत्रण के दम पर शराब को पूरी तरह खत्म कर दिया. यदि इस मॉडल को राज्य सरकार समर्थन दे और अन्य गांवों को इससे प्रेरित किया जाए तो मध्य प्रदेश के कई अन्य गांव भी शराब मुक्त बन सकते हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है.

दिल्ली में AAP को बड़ा झटका, वोटिंग से 5 दिन पहले 7 विधायकों ने छोड़ी पार्टी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान से पहले आम आदमी पार्टी को बहुत बड़ा झटका लगा है. 7 विधायकों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने वाले विधायकों में त्रिलोकपुरी से विधायक रोहित महरौलिया, जनकपुरी से राजेश ऋषि, कस्तूरबा नगर से मदनलाल, पालम सीट से भावना गौड़, बिजवासन से बीएस जून, आदर्श नगर से पवन शर्मा और महरौली से नरेश यादव हैं.

इस्तीफा देते हुए रोहित महरौलिया अरविंद केजरीवाल के नाम पत्र लिखा. उन्होंने कहा, “मैं अन्ना आंदोलन के समय अपनी 15 साल पुरानी नौकरी छोड़कर, ये सोचकर आपके साथ जुड़ा था कि हजारों सालों से छुआछूत, भेदभाव और शोषण का दंश झेलते आ रहे मेरे समाज की आप शायद बराबरी का दर्जा व सामाजिक न्याय दिलाकर बाबा साहेब के सपनों को सरकार करेंगे”.

आपने मेरे समाज को बोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया

“आपने कई बार सार्वजनिक मंचों से यह कहा था कि जब हम सत्ता में आएंगे तो दलित समाज/वाल्मीकि समाज के लोगों को आगे बढ़ाने के लिए काम करेंगे. कड्डे कर्मचारियों को पक्का करेंगे और ठेकेदारी प्रथा को पूरी तरह से बंद करेंगे. आपकी बात पर भरोसा करके मेरे समाज ने एक तरफा आपको लगातार समर्थन दिया, जिसके बूते पर दिल्ली में तीन-तीन बार सरकार बनी”.

पत्र में उन्होंने आगे लिखा, “बावजूद इसके ना तो ठेकेदारी प्रथा बंद हुई और ना ही 20-20 साल से कच्ची नौकरी पर काम करने वाले लोगों को पक्का किया गया. कुल मिलाकर आपने मेरे समाज के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव और शोषण को रोकने के लिए अभी तक कुछ नहीं किया बल्कि आपने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मेरे समाज को केवल बोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है”.

भ्रष्टाचार के दलदल में लिप्त है आम आदमी पार्टी

रोहित के साथ ही विधायक नरेश यादव ने अपने इस्तीफे में लिखा, “भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी का उदय राजनीति से भ्रष्टाचार को खत्म करना था. मगर, अब मैं बहुत दुखी हूं कि आम आदमी पार्टी बिल्कुल भी भ्रष्टाचार कम नहीं कर पाई. बल्कि आम आदमी पार्टी ही भ्रष्टाचार के दलदल में लिप्त हो चुकी है”.

“मैंने आम आदमी पार्टी ईमानदारी की राजनीति के लिए ही ज्वाइन की थी. आज कहीं भी ईमानदारी नजर नहीं आ रही है. मैंने महरौली विधानसभा क्षेत्र में पिछले 10 सालों से लगातार 100 फीसदी ईमानदारी से काम किया है. महरौली के लोग जानते हैं कि मैंने ईमानदारी की राजनीति, अच्छे व्यवहार की राजनीति और काम की राजनीति की है”.

“मैंने महरौली के बहुत से लोगों से चर्चा की, सभी ने यही कहा कि आम आदमी पार्टी अब पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी है. आपको इस पार्टी छोड़ देनी चाहिए क्योंकि इन्होंने लोगों के साथ धोखा किया है. कहते थे कि हम ईमानदारी की राजनीति करेंगे लेकिन आज पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं”.

महाकुंभ में एक और हादसा, टूट गया पीपा का पुल; कई श्रद्धालु दबे

प्रयागराज महाकुंभ में एक और हादसा हुआ है. शुक्रवार दोपहर के समय संगम क्षेत्र से बाहर फाफामऊ इलाके में गंगा नदी पर बना पीपा का पुल अचानक से टूट गया. पुल टूट जाने से कई लोगों के दबे होने की आंशका जताई जा रही है. फिलहाल मौके पर स्थिति गंभीर बनी हुई है. पुलिस और फायर ब्रिगेड की टीम रेस्क्यू ऑपेरशन में जुटी है. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. बता दें कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या स्नान के दिन संगम क्षेत्र में भगदड़ मचने से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 60 घायल हो गए थे.

बदा दें कि महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन से भारी भीड़ उमड़ पड़ी है. प्रयागराज शहर क्षेत्र से लेकर संगम क्षेत्र तक श्रद्धालुओं की तांता लगा हुआ, जिधर देखो श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं. ये सभी बसंत पंचमी स्नान के लिए संगम क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं. वहीं अन्य श्रद्धालुओं का भी आगमन हो रहा है

फाफामऊ में गंगा नदी पर बना है ये पुल

ये हादसा जिस फाफामऊ इलाके में हुआ है, वहां से संगम की दूरी करीब 10 किलोमीटर है. इस रास्ते से लखनऊ, रायबरेली, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ के श्रद्धालु आ-जा रहे हैं. फाफामऊ में गंगा नदी पर एक टू लेन का पुल बना है. महाकुंभ को देखते हुए प्रशासन ने टू लेन पुल से सटाकर पीपा का पुल बनवाया है. इसके अलावा एक स्टील ब्रिज भी बनाया गया है, जिससे श्रद्धालु आ-जा रहे हैं.

पुल को सही कर लिया गया

फिलहाल फाफामऊ में हुए हादसे के बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड का दावा है कि पुल को दुरुस्त कर लिया गया है. सभी श्रद्धालु सुरक्षित हैं. किसी प्रकार की कोई जनहानि नहीं हुई है. हालांकि वायरल हो रहे वीडियो में एक शख्स यह साफ कहता हुआ सुनाई दे रहा है कि कई लोग दब गए हैं. यहां पर पुलिस-प्रशासन का कोई व्यक्ति नहीं है. प्रयागराज के छात्र मदद कर रहे हैं.

मौनी अमावस्या पर 30 श्रद्दालुओं की हुई ती मौत

बता दें कि महाकुंभ में छिटपुट घटनाएं इस समय हो रही हैं. मौनी अमावस्या स्नान पर हुई भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 60 श्रद्धालु घायल हो गए थे. इनमें से 24 को तो उनके परिजन प्राथमिक इलाज के बाद अपने साथ ले गए थे, जबकि 36 का अभी भी अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है.

दिल्ली चुनाव: अरविंद केजरीवाल के खिलाफ गांधी परिवार करेगा प्रचार, प्रियंका गांधी करेंगी जनसभा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अरविंद केजरीवाल के खिलाफ गांधी परिवार खुलकर प्रचार करता नजर आएगा. कांग्रेस पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अब नई दिल्ली विधानसभा सीट पर सक्रिय प्रचार अभियान शुरू करने का फैसला किया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आज शाम करीब साढ़े पांच बजे पिलनजी गांव, सब्जी मंडी में प्रचार करेंगी. वे कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित के समर्थन में जनसभा करेंगी और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगी.

इससे पहले, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 20 जनवरी को पदयात्रा निकालनी थी, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उनका कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था. इसके बावजूद, राहुल गांधी ने हाल ही में नई दिल्ली इलाके के बाल्मीकि मंदिर में दर्शन किए और पूजा-अर्चना की, लेकिन उन्होंने किसी प्रकार की चुनावी बयानबाजी से दूरी बनाए रखी थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति बदली हुई नजर आ रही है. इस बार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी जमीन पर उतरकर प्रचार कर रहा है.

लगातार जीतते आ रहे हैं केजरीवाल

नई दिल्ली विधानसभा सीट हमेशा से हाई-प्रोफाइल मानी जाती रही है, क्योंकि यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विधायक हैं. 2013 में पहली बार आम आदमी पार्टी के टिकट पर उन्होंने कांग्रेस की तीन बार विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी.

इसके बाद से केजरीवाल लगातार इस सीट से जीतते आ रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस इस बार संदीप दीक्षित को मैदान में उतारकर जोरदार टक्कर देने की तैयारी में है. संदीप दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं. वो पहले लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं. कांग्रेस का मानना है कि गांधी परिवार की मौजूदगी से संदीप दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बड़ा फायदा हो सकता है.

जन्मदिन पर केक नहीं मिला तो घर छोड़कर चला गया 10 साल का बच्चा, पुलिस ने मनाया बर्थडे और लौटाया घर

महाराष्ट्र के नागपुर में पुलिस की मानवता देखने को मिली है. नागपुर पुलिस की इस संवेदनशीलता ने कई माताओं की आंखों में आंसू ला दिए. जानकारी के मुताबिक, शहर में 10 साल का लड़का अपने घरवालों से किसी बात को लेकर नाराज था. ऐसे में उसने घर छोड़ने का फैसला लिया और चला गया. नागपुर पुलिस ने शीघ्रता से उसका पता लगाया. साथ ही उसकी मांग भी पूरी की.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, नागपुर में रहने वाले 10 साल के संचित अरविंद नारद का जन्मदिन 30 जनवरी को था. हालांकि किसी वजह से संचित के माता पिता उसका जन्मदिन नहीं मना पाए. ऐसे में संचित इस बात से बहुत नाराज था, जिसके चलते उसने घर छोड़ने का फैसला लिया और कहीं चला गया.

पुलिस ने तुरंत शुरू की तलाश

संचित जब काफी देर नहीं दिखा तो उसके माता-पिता ने उसे हर जगह ढूंढा. इसके बाद में वे सीधे वाथोडा पुलिस स्टेशन गए. माता पिता से सूचना मिलते ही पुलिस ने तुरंत उसकी तलाश शुरू कर दी. संचित की तलाश के लिए अलग-अलग पुलिस टीमें गठित की गई और शाम 7 बजे उन्हें स्वामीनारायण मंदिर परिसर में सुरक्षित पाया गया. पुलिस और माता पिता को संचित ने बताया कि वो अपना जन्मदिन न मना पाने के कारण गुस्से में घर से चला गया था. ऐसे में पुलिस ने उसकी इस इच्छा को पूरा किया और उसके लिए केक लेकर आई.

पुलिस ने कटवाया कैक

केक को देखकर संचित के चेहरे पर खुशी आ गई और उसने अपना जन्मदिन मनाया. आए दिन झगड़े, हत्या, डकैती और अत्याचार की खबरों के बीच संचित के जन्मदिन ने पुलिस के मन के एक संवेदनशील कोने को भी सामने ला दिया.

भारतीय रेलवे का एक अनोखा स्टेशन, जिसका कोई नाम नहीं! जानें इसके पीछे की दिलचस्प कहानी

भारतीय रेलवे को भारत की जीवन रेखा यानि लाइफलाइन कहा जाता है. यह देश के ज्यादातर हिस्सों को जोड़ती है और बड़ी संख्या में लोगों और सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है. रेलवे, देश की अर्थव्यवस्था के लिए अहम साधन है. भारत में छोटे-बड़े हजारों स्टेशन्स हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसे रेलवे स्टेशन के बारे में बताएंगे जिसका कोई भी ऑफिशियल नाम नहीं है. यानि यह एक बेनाम रेलवे स्टेशन है.

यह अनोखा रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल में स्थित है. बर्दवान शहर से यह अनोखा रेलवे स्टेशन 35 किलोमीटर दूर है. इस रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें और मालगाड़ियां गुजरती हैं. लेकिन आज तक इसे कोई नाम नहीं मिल पाया है. साल 2008 से यह रेलवे स्टेशन बिना नाम से ही चल रहा है. हैरानी की बात ये भी है कि इस रेलवे स्टेशन से कई यात्री ट्रेन में चढ़ते और उतरते भी हैं. उन्हें भी यह जानकर हैरानी होती है कि आखिर इस स्टेशन को नाम क्यों नहीं मिला है.

इसका नाम न होने के पीछे का कारण दो गांव के बीच का क्षेत्रीय विवाद है. रैना और रैनागर गांवों के बीच क्षेत्रीय विवाद है. जब 2008 में भारतीय रेलवे ने यह स्टेशन बनाया, तब इसे “रैनागर” नाम दिया गया था, लेकिन स्थानीय लोगों ने इस नाम पर आपत्ति जताई और रेलवे बोर्ड से इसे बदलने की मांग की. मामला अदालत में चला गया और तब से स्टेशन बिना नाम के ही चल रहा है.

लोग हो जाते हैं भ्रमित

स्टेशन के दोनों ओर लगे पीले रंग के खाली साइनबोर्ड इस विवाद की कहानी बयां करती हैं. जो यात्री पहली बार यहां उतरते हैं, वे अक्सर भ्रमित हो जाते हैं. उन्हें आसपास के लोगों से पूछकर ही पता चलता है कि वे किस स्थान पर आए हैं.

दिन में 6 बार गुजरती है यहां से एक ट्रेन

इस स्टेशन पर केवल बांकुड़ा-मासाग्राम पैसेंजर ट्रेन ही रुकती है, वह भी दिन में छह बार. रविवार को जब स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं आती, तो स्टेशन मास्टर अगले सप्ताह की बिक्री के लिए टिकट खरीदने बर्दवान शहर जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि यहां बिकने वाली टिकटों पर अब भी पुराना नाम “रैनागर” ही छपा होता है.

एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटाया, किन्नर अखाड़े से भी निष्कासित… महाकुंभ में ली थी संन्यास की दीक्षा

संगम नगरी प्रयागराज में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी को लेकर बड़ी खबर सामने आई है. ममता कुलकर्णी को अब महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया है. साथ ही अखाड़े के लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से भी आचार्य महामंडलेश्वर पद छीन लिया गया है. दोनों को किन्नर अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है

महाकुंभ में अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने कुछ दिन पहले संन्यास की दीक्षा ली थी. संन्यास लेने के बाद ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाया गया था, जिसका जमकर विरोध हुआ और किन्नर अखाड़े में बड़ी कलह शुरू हो गई थी.

बाबा रामदेव ने उठाए थे सवाल

ममता को महामंडलेश्वर बनाए जाने पर कई संत नाराजगी जता चुके हैं. उनके मुताबिक, ऐसे प्रतिष्ठित पद के लिए सालों के आध्यात्मिक अनुशासन और समर्पण की जरूरत होती है. फिर कैसे ममता को एक ही दिन में महामंडलेश्वर चुन लिया गया. बाबा रामदेव ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा- कुछ लोग, जो कल तक सांसारिक सुखों में लिप्त थे, अचानक एक ही दिन में संत बन गए हैं, या महामंडलेश्वर जैसी उपाधि प्राप्त कर ले रहे हैं.

क्या बोले धीरेन्द्र शास्त्री?

इसके अवाला धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा, ‘किसी भी तरह के बाहरी प्रभाव में आकर किसी को भी संत या महामंडलेश्वर कैसे बनाया जा सकता है? हम खुद अभी तक महामंडलेश्वर नहीं बन पाए हैं.’ ट्रांसजेंडर कथावाचक जगतगुरु हिमांगी सखी ने भी ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी. ANI को दिए एक स्टेटमेंट में उन्होंने कहा, ‘किन्नर अखाड़ा ने ऐसा सिर्फ पब्लिसिटी के लिए किया है. समाज को उनका पास्ट अच्छे से पता है. अचानक से वो भारत में आती हैं और महाकुंभ में चली आती हैं और उनको महामंडलेश्वर का पद दे दिया जाता है. इसकी जांच होनी चाहिए.’

महामंडलेश्वर बनने पर क्या बोलीं ममता?

24 जनवरी की शाम को प्रयागराज, महाकुंभ में ममता ने संगम पर अपना पिंडदान किया. फिर किन्नर अखाड़े में उनका पट्टाभिषेक हुआ. आजतक से बातचीत में ममता ने महामंडलेश्वर पद मिलने पर कहा था- ये अवसर 144 सालों बाद आया है, इसी में मुझे महामंडलेश्वर बनाया गया है. ये केवल आदिशक्ति ही कर सकती हैं. मैंने किन्नर अखाड़ा ही इसलिए चुना, क्योंकि यहां कोई बंदगी नहीं है, ये स्वतंत्र अखाड़ा है. जीवन में सब चाहिए आपको. एंटरटेनमेंट भी चाहिए. हर चीज की जरूरत होनी चाहिए. ध्यान ऐसी चीज है, जो भाग्य से ही प्राप्त हो सकता है. सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने बहुत कुछ देखा था फिर उनमें परिवर्तन आया.”

बसंत पंचमी से शुरू होगी महाकुंभ की सबसे कठिन तपस्या, 350 साधु रोज करेंगे 16 घंटे का कठोर तप

प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम बरकरार है. देश-दुनिया से श्रद्धालुओं का गंगा स्नान के लिए आना लगा हुआ है. इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पचंमी से कुंभनगरी में परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू करने वाले हैं. खाक चौक में इसे लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. 350 साधक इस बार खप्पर तपस्या करेंगे. धूनी साधना की खप्पर तपस्या सबसे आखिरी श्रेणी की होती है. इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय होती है.

वैष्णव परंपरा में श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है. पंचांग के मुताबिक यह तपस्या आरंभ होती है. तेरह भाई त्यागी आश्रम के परमात्मा दास ने बताया कि सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से यह तपस्या आरंभ की जाती है. तपस्या से पहले साधक निराजली व्रत रखता है. इसके बाद धूनी में बैठते हैं. छह चरण में तपस्या पूरी होती है. इन छह चरणों में पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि एवं खप्पर श्रेणी होती है. हर श्रेणी तीन साल में पूरी होती है. इस तरह तपस्या पूरी करने में 18 साल का समय लगता है.

क्या कहना है दिगंबर अखाड़े का

दिगंबर अखाड़े के सीताराम दास का कहना है सभी छह श्रेणी में तपस्या की अलग-अलग रीति होती है. सबसे प्रारंभिक पंच श्रेणी होती है. साधुओं के दीक्षा लेने के बाद उनकी यह शुरुआती तपस्या होती है. इसमें साधक पांच स्थान पर आग जलाकर उसकी आंच के बीच बैठकर तपस्या करते हैं. दूसरी श्रेणी में सात जगह पर आग जलाकर उसके बीच बैठकर तपस्या करनी होती है. इसी तरह द्वादश श्रेणी में 12 स्थान, 84 श्रेणी में 84 स्थान और कोटि श्रेणी में सैकड़ों स्थान पर जल रही अग्नि की आंच के बीच बैठकर तपस्या करनी होती है.

सबसे कठिन साधना है खप्पर तपस्या

खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन होती है. परमात्मा दास के मुताबिक सिर के ऊपर मटके में रखकर अग्नि प्रज्वलित की जाती है. इसकी आंच के मध्य में साधक को रोजाना 6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है. बसंत से गंगा दशहरा तक यह चलती है. तीन साल तक यह क्रम चलता है. इसके पूरा होने के बाद साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी मानी जाती है. उनका कहना है अखाड़ों, आश्रम समेत खालसा में इसकी तैयारियां आंरभ हो गई हैं. दिगंबर, निर्मोही एवं निर्वाणी समेत खाक चौक में करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी यह कठिन साधना करेंगे जबकि अन्य साधक अपने अन्य चरण की तपस्या करेंगे.

कई संत दोबारा करते हैं खप्पर तपस्या

खाक चौक के तपस्वियों में इस साधना के साथ ही उनकी वरिष्ठता भी संत समाज के बीच तय होती है. तमाम साधक महाकुंभ से अपनी साधना आरंभ करते हैं. उनकी शुरूआत पंच धूना से होती है. इसी तरह क्रम आगे बढ़ने पर खप्पर श्रेणी आती है, जो कि आखिरी होती है. खप्पर श्रेणी के साधक को ही सबसे वरिष्ठ मानते हैं. कई साधक खप्पर तपस्या पूरी होने के बाद दोबारा से भी तपस्या आरंभ करते हैं.

महाकुंभ में अमृत स्नान करने से चूका, अब रेलवे से मांग रहा 50 लाख का जुर्माना

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां एक वकील ने मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान नहीं कर पाने पर रेलवे से 50 लाख का हर्जाना मांगा. राजन झा नाम के व्यक्ति ने मुजफ्फरपुर से प्रयागराज जाने लिए अपने लिए और परिवार के दो अन्य सदस्यों के लिए स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के थर्ड में टिकट बुक कराई थी, लेकिन रेलवे की बदइंतजामी के कारण वह अपने कोच तक नहीं पहुंच पाए, जिसके बाद उन्होंने रेलवे से हर्जाना मांगा है.

मुजफ्फरपुर के एक वकील ने रेलवे से 50 लाख का हर्जाना मांगा. राजन झा नाम के व्यक्ति ने वकील के जरिये हर्जाना का मांग की है. राजन ने मौनी अमावस्या के मौके स्नान करने के लिए 27 जनवरी 2025 को मुजफ्फरपुर से प्रयागराज जाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के थर्ड एसी में तत्काल टिकट कराया था. एसी कोच के B3 में सीट नंबर 45, 46 और 47 नंबर की सीट पर बैठ कर उन्हें अपने सास-ससुर के साथ जाना था.

‘अंदर से बंद था दरवाजा’

ट्रेन रात के 9 बजकर 30 मिनट पर खुलनी थी, लेकिन राजन अपने सास-ससुर के साथ ढाई घंटे पहले यानी 7 बजे ही स्टेशन पहुंच गया था. राजन ने बताया कि जिस ट्रेन के जिस कोच में मेरी सीट थी, उसका दरवाजा अंदर से बंद था. महाकुंभ में स्नान के लिए जाने वाले यात्रियों से स्टेशन खचाखच भरा हुआ था. स्टेशन पर अफरा तफरी का माहौल था. राजन ने बताया कि रेलवे की बदइंतजामी के कारण वह और उनका परिवार कोच तक नहीं पहुंच सका और जिस कारण उनकी ट्रेन छूट गई.

रेलवे से मांगा 50 लाख का हर्जाना

राजन ने इस मामले में वकील एसके झा के जरिए रेलवे से 50 लाख के हर्जाने की मांग की है. मामले की जानकारी देते हुए वकील एसके झा ने बताया कि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा की कमी की मामला है, जिसमें रेलवे की लापरवाही नजर आ रही है. राजन को अपने परिवार के साथ अमृत स्नान के लिए जाना था, लेकिन कोच का गेट न खुलने के कारण वह अपने गंतव्यपर नहीं पहुंच पाए