महाकुंभ में एक और हादसा, टूट गया पीपा का पुल; कई श्रद्धालु दबे

प्रयागराज महाकुंभ में एक और हादसा हुआ है. शुक्रवार दोपहर के समय संगम क्षेत्र से बाहर फाफामऊ इलाके में गंगा नदी पर बना पीपा का पुल अचानक से टूट गया. पुल टूट जाने से कई लोगों के दबे होने की आंशका जताई जा रही है. फिलहाल मौके पर स्थिति गंभीर बनी हुई है. पुलिस और फायर ब्रिगेड की टीम रेस्क्यू ऑपेरशन में जुटी है. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. बता दें कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या स्नान के दिन संगम क्षेत्र में भगदड़ मचने से 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 60 घायल हो गए थे.

बदा दें कि महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन से भारी भीड़ उमड़ पड़ी है. प्रयागराज शहर क्षेत्र से लेकर संगम क्षेत्र तक श्रद्धालुओं की तांता लगा हुआ, जिधर देखो श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं. ये सभी बसंत पंचमी स्नान के लिए संगम क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं. वहीं अन्य श्रद्धालुओं का भी आगमन हो रहा है

फाफामऊ में गंगा नदी पर बना है ये पुल

ये हादसा जिस फाफामऊ इलाके में हुआ है, वहां से संगम की दूरी करीब 10 किलोमीटर है. इस रास्ते से लखनऊ, रायबरेली, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ के श्रद्धालु आ-जा रहे हैं. फाफामऊ में गंगा नदी पर एक टू लेन का पुल बना है. महाकुंभ को देखते हुए प्रशासन ने टू लेन पुल से सटाकर पीपा का पुल बनवाया है. इसके अलावा एक स्टील ब्रिज भी बनाया गया है, जिससे श्रद्धालु आ-जा रहे हैं.

पुल को सही कर लिया गया

फिलहाल फाफामऊ में हुए हादसे के बाद पुलिस और फायर ब्रिगेड का दावा है कि पुल को दुरुस्त कर लिया गया है. सभी श्रद्धालु सुरक्षित हैं. किसी प्रकार की कोई जनहानि नहीं हुई है. हालांकि वायरल हो रहे वीडियो में एक शख्स यह साफ कहता हुआ सुनाई दे रहा है कि कई लोग दब गए हैं. यहां पर पुलिस-प्रशासन का कोई व्यक्ति नहीं है. प्रयागराज के छात्र मदद कर रहे हैं.

मौनी अमावस्या पर 30 श्रद्दालुओं की हुई ती मौत

बता दें कि महाकुंभ में छिटपुट घटनाएं इस समय हो रही हैं. मौनी अमावस्या स्नान पर हुई भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 60 श्रद्धालु घायल हो गए थे. इनमें से 24 को तो उनके परिजन प्राथमिक इलाज के बाद अपने साथ ले गए थे, जबकि 36 का अभी भी अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है.

दिल्ली चुनाव: अरविंद केजरीवाल के खिलाफ गांधी परिवार करेगा प्रचार, प्रियंका गांधी करेंगी जनसभा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अरविंद केजरीवाल के खिलाफ गांधी परिवार खुलकर प्रचार करता नजर आएगा. कांग्रेस पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अब नई दिल्ली विधानसभा सीट पर सक्रिय प्रचार अभियान शुरू करने का फैसला किया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आज शाम करीब साढ़े पांच बजे पिलनजी गांव, सब्जी मंडी में प्रचार करेंगी. वे कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित के समर्थन में जनसभा करेंगी और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगी.

इससे पहले, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 20 जनवरी को पदयात्रा निकालनी थी, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उनका कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था. इसके बावजूद, राहुल गांधी ने हाल ही में नई दिल्ली इलाके के बाल्मीकि मंदिर में दर्शन किए और पूजा-अर्चना की, लेकिन उन्होंने किसी प्रकार की चुनावी बयानबाजी से दूरी बनाए रखी थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति बदली हुई नजर आ रही है. इस बार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी जमीन पर उतरकर प्रचार कर रहा है.

लगातार जीतते आ रहे हैं केजरीवाल

नई दिल्ली विधानसभा सीट हमेशा से हाई-प्रोफाइल मानी जाती रही है, क्योंकि यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विधायक हैं. 2013 में पहली बार आम आदमी पार्टी के टिकट पर उन्होंने कांग्रेस की तीन बार विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी.

इसके बाद से केजरीवाल लगातार इस सीट से जीतते आ रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस इस बार संदीप दीक्षित को मैदान में उतारकर जोरदार टक्कर देने की तैयारी में है. संदीप दीक्षित, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं. वो पहले लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं. कांग्रेस का मानना है कि गांधी परिवार की मौजूदगी से संदीप दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बड़ा फायदा हो सकता है.

जन्मदिन पर केक नहीं मिला तो घर छोड़कर चला गया 10 साल का बच्चा, पुलिस ने मनाया बर्थडे और लौटाया घर

महाराष्ट्र के नागपुर में पुलिस की मानवता देखने को मिली है. नागपुर पुलिस की इस संवेदनशीलता ने कई माताओं की आंखों में आंसू ला दिए. जानकारी के मुताबिक, शहर में 10 साल का लड़का अपने घरवालों से किसी बात को लेकर नाराज था. ऐसे में उसने घर छोड़ने का फैसला लिया और चला गया. नागपुर पुलिस ने शीघ्रता से उसका पता लगाया. साथ ही उसकी मांग भी पूरी की.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, नागपुर में रहने वाले 10 साल के संचित अरविंद नारद का जन्मदिन 30 जनवरी को था. हालांकि किसी वजह से संचित के माता पिता उसका जन्मदिन नहीं मना पाए. ऐसे में संचित इस बात से बहुत नाराज था, जिसके चलते उसने घर छोड़ने का फैसला लिया और कहीं चला गया.

पुलिस ने तुरंत शुरू की तलाश

संचित जब काफी देर नहीं दिखा तो उसके माता-पिता ने उसे हर जगह ढूंढा. इसके बाद में वे सीधे वाथोडा पुलिस स्टेशन गए. माता पिता से सूचना मिलते ही पुलिस ने तुरंत उसकी तलाश शुरू कर दी. संचित की तलाश के लिए अलग-अलग पुलिस टीमें गठित की गई और शाम 7 बजे उन्हें स्वामीनारायण मंदिर परिसर में सुरक्षित पाया गया. पुलिस और माता पिता को संचित ने बताया कि वो अपना जन्मदिन न मना पाने के कारण गुस्से में घर से चला गया था. ऐसे में पुलिस ने उसकी इस इच्छा को पूरा किया और उसके लिए केक लेकर आई.

पुलिस ने कटवाया कैक

केक को देखकर संचित के चेहरे पर खुशी आ गई और उसने अपना जन्मदिन मनाया. आए दिन झगड़े, हत्या, डकैती और अत्याचार की खबरों के बीच संचित के जन्मदिन ने पुलिस के मन के एक संवेदनशील कोने को भी सामने ला दिया.

भारतीय रेलवे का एक अनोखा स्टेशन, जिसका कोई नाम नहीं! जानें इसके पीछे की दिलचस्प कहानी

भारतीय रेलवे को भारत की जीवन रेखा यानि लाइफलाइन कहा जाता है. यह देश के ज्यादातर हिस्सों को जोड़ती है और बड़ी संख्या में लोगों और सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है. रेलवे, देश की अर्थव्यवस्था के लिए अहम साधन है. भारत में छोटे-बड़े हजारों स्टेशन्स हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसे रेलवे स्टेशन के बारे में बताएंगे जिसका कोई भी ऑफिशियल नाम नहीं है. यानि यह एक बेनाम रेलवे स्टेशन है.

यह अनोखा रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल में स्थित है. बर्दवान शहर से यह अनोखा रेलवे स्टेशन 35 किलोमीटर दूर है. इस रेलवे स्टेशन से कई ट्रेनें और मालगाड़ियां गुजरती हैं. लेकिन आज तक इसे कोई नाम नहीं मिल पाया है. साल 2008 से यह रेलवे स्टेशन बिना नाम से ही चल रहा है. हैरानी की बात ये भी है कि इस रेलवे स्टेशन से कई यात्री ट्रेन में चढ़ते और उतरते भी हैं. उन्हें भी यह जानकर हैरानी होती है कि आखिर इस स्टेशन को नाम क्यों नहीं मिला है.

इसका नाम न होने के पीछे का कारण दो गांव के बीच का क्षेत्रीय विवाद है. रैना और रैनागर गांवों के बीच क्षेत्रीय विवाद है. जब 2008 में भारतीय रेलवे ने यह स्टेशन बनाया, तब इसे “रैनागर” नाम दिया गया था, लेकिन स्थानीय लोगों ने इस नाम पर आपत्ति जताई और रेलवे बोर्ड से इसे बदलने की मांग की. मामला अदालत में चला गया और तब से स्टेशन बिना नाम के ही चल रहा है.

लोग हो जाते हैं भ्रमित

स्टेशन के दोनों ओर लगे पीले रंग के खाली साइनबोर्ड इस विवाद की कहानी बयां करती हैं. जो यात्री पहली बार यहां उतरते हैं, वे अक्सर भ्रमित हो जाते हैं. उन्हें आसपास के लोगों से पूछकर ही पता चलता है कि वे किस स्थान पर आए हैं.

दिन में 6 बार गुजरती है यहां से एक ट्रेन

इस स्टेशन पर केवल बांकुड़ा-मासाग्राम पैसेंजर ट्रेन ही रुकती है, वह भी दिन में छह बार. रविवार को जब स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं आती, तो स्टेशन मास्टर अगले सप्ताह की बिक्री के लिए टिकट खरीदने बर्दवान शहर जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि यहां बिकने वाली टिकटों पर अब भी पुराना नाम “रैनागर” ही छपा होता है.

एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटाया, किन्नर अखाड़े से भी निष्कासित… महाकुंभ में ली थी संन्यास की दीक्षा

संगम नगरी प्रयागराज में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी को लेकर बड़ी खबर सामने आई है. ममता कुलकर्णी को अब महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया है. साथ ही अखाड़े के लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से भी आचार्य महामंडलेश्वर पद छीन लिया गया है. दोनों को किन्नर अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है

महाकुंभ में अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने कुछ दिन पहले संन्यास की दीक्षा ली थी. संन्यास लेने के बाद ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाया गया था, जिसका जमकर विरोध हुआ और किन्नर अखाड़े में बड़ी कलह शुरू हो गई थी.

बाबा रामदेव ने उठाए थे सवाल

ममता को महामंडलेश्वर बनाए जाने पर कई संत नाराजगी जता चुके हैं. उनके मुताबिक, ऐसे प्रतिष्ठित पद के लिए सालों के आध्यात्मिक अनुशासन और समर्पण की जरूरत होती है. फिर कैसे ममता को एक ही दिन में महामंडलेश्वर चुन लिया गया. बाबा रामदेव ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा- कुछ लोग, जो कल तक सांसारिक सुखों में लिप्त थे, अचानक एक ही दिन में संत बन गए हैं, या महामंडलेश्वर जैसी उपाधि प्राप्त कर ले रहे हैं.

क्या बोले धीरेन्द्र शास्त्री?

इसके अवाला धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा, ‘किसी भी तरह के बाहरी प्रभाव में आकर किसी को भी संत या महामंडलेश्वर कैसे बनाया जा सकता है? हम खुद अभी तक महामंडलेश्वर नहीं बन पाए हैं.’ ट्रांसजेंडर कथावाचक जगतगुरु हिमांगी सखी ने भी ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी. ANI को दिए एक स्टेटमेंट में उन्होंने कहा, ‘किन्नर अखाड़ा ने ऐसा सिर्फ पब्लिसिटी के लिए किया है. समाज को उनका पास्ट अच्छे से पता है. अचानक से वो भारत में आती हैं और महाकुंभ में चली आती हैं और उनको महामंडलेश्वर का पद दे दिया जाता है. इसकी जांच होनी चाहिए.’

महामंडलेश्वर बनने पर क्या बोलीं ममता?

24 जनवरी की शाम को प्रयागराज, महाकुंभ में ममता ने संगम पर अपना पिंडदान किया. फिर किन्नर अखाड़े में उनका पट्टाभिषेक हुआ. आजतक से बातचीत में ममता ने महामंडलेश्वर पद मिलने पर कहा था- ये अवसर 144 सालों बाद आया है, इसी में मुझे महामंडलेश्वर बनाया गया है. ये केवल आदिशक्ति ही कर सकती हैं. मैंने किन्नर अखाड़ा ही इसलिए चुना, क्योंकि यहां कोई बंदगी नहीं है, ये स्वतंत्र अखाड़ा है. जीवन में सब चाहिए आपको. एंटरटेनमेंट भी चाहिए. हर चीज की जरूरत होनी चाहिए. ध्यान ऐसी चीज है, जो भाग्य से ही प्राप्त हो सकता है. सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने बहुत कुछ देखा था फिर उनमें परिवर्तन आया.”

बसंत पंचमी से शुरू होगी महाकुंभ की सबसे कठिन तपस्या, 350 साधु रोज करेंगे 16 घंटे का कठोर तप

प्रयागराज में इस वक्त महाकुंभ की धूम बरकरार है. देश-दुनिया से श्रद्धालुओं का गंगा स्नान के लिए आना लगा हुआ है. इस बीच वैष्णव परंपरा के तपस्वी वसंत पचंमी से कुंभनगरी में परंपरागत सबसे कठिन साधना शुरू करने वाले हैं. खाक चौक में इसे लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. 350 साधक इस बार खप्पर तपस्या करेंगे. धूनी साधना की खप्पर तपस्या सबसे आखिरी श्रेणी की होती है. इसके आधार पर ही अखाड़े में साधुओं की वरिष्ठता तय होती है.

वैष्णव परंपरा में श्रीसंप्रदाय (रामानंदी संप्रदाय) में धूना तापना सबसे बड़ी तपस्या मानी जाती है. पंचांग के मुताबिक यह तपस्या आरंभ होती है. तेरह भाई त्यागी आश्रम के परमात्मा दास ने बताया कि सूर्य उत्तरायण के शुक्ल पक्ष से यह तपस्या आरंभ की जाती है. तपस्या से पहले साधक निराजली व्रत रखता है. इसके बाद धूनी में बैठते हैं. छह चरण में तपस्या पूरी होती है. इन छह चरणों में पंच, सप्त, द्वादश, चौरासी, कोटि एवं खप्पर श्रेणी होती है. हर श्रेणी तीन साल में पूरी होती है. इस तरह तपस्या पूरी करने में 18 साल का समय लगता है.

क्या कहना है दिगंबर अखाड़े का

दिगंबर अखाड़े के सीताराम दास का कहना है सभी छह श्रेणी में तपस्या की अलग-अलग रीति होती है. सबसे प्रारंभिक पंच श्रेणी होती है. साधुओं के दीक्षा लेने के बाद उनकी यह शुरुआती तपस्या होती है. इसमें साधक पांच स्थान पर आग जलाकर उसकी आंच के बीच बैठकर तपस्या करते हैं. दूसरी श्रेणी में सात जगह पर आग जलाकर उसके बीच बैठकर तपस्या करनी होती है. इसी तरह द्वादश श्रेणी में 12 स्थान, 84 श्रेणी में 84 स्थान और कोटि श्रेणी में सैकड़ों स्थान पर जल रही अग्नि की आंच के बीच बैठकर तपस्या करनी होती है.

सबसे कठिन साधना है खप्पर तपस्या

खप्पर श्रेणी की तपस्या सबसे कठिन होती है. परमात्मा दास के मुताबिक सिर के ऊपर मटके में रखकर अग्नि प्रज्वलित की जाती है. इसकी आंच के मध्य में साधक को रोजाना 6 से 16 घंटे तक तपस्या करनी होती है. बसंत से गंगा दशहरा तक यह चलती है. तीन साल तक यह क्रम चलता है. इसके पूरा होने के बाद साधक की 18 साल लंबी तपस्या पूरी मानी जाती है. उनका कहना है अखाड़ों, आश्रम समेत खालसा में इसकी तैयारियां आंरभ हो गई हैं. दिगंबर, निर्मोही एवं निर्वाणी समेत खाक चौक में करीब साढ़े तीन सौ तपस्वी यह कठिन साधना करेंगे जबकि अन्य साधक अपने अन्य चरण की तपस्या करेंगे.

कई संत दोबारा करते हैं खप्पर तपस्या

खाक चौक के तपस्वियों में इस साधना के साथ ही उनकी वरिष्ठता भी संत समाज के बीच तय होती है. तमाम साधक महाकुंभ से अपनी साधना आरंभ करते हैं. उनकी शुरूआत पंच धूना से होती है. इसी तरह क्रम आगे बढ़ने पर खप्पर श्रेणी आती है, जो कि आखिरी होती है. खप्पर श्रेणी के साधक को ही सबसे वरिष्ठ मानते हैं. कई साधक खप्पर तपस्या पूरी होने के बाद दोबारा से भी तपस्या आरंभ करते हैं.

महाकुंभ में अमृत स्नान करने से चूका, अब रेलवे से मांग रहा 50 लाख का जुर्माना

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां एक वकील ने मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान नहीं कर पाने पर रेलवे से 50 लाख का हर्जाना मांगा. राजन झा नाम के व्यक्ति ने मुजफ्फरपुर से प्रयागराज जाने लिए अपने लिए और परिवार के दो अन्य सदस्यों के लिए स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के थर्ड में टिकट बुक कराई थी, लेकिन रेलवे की बदइंतजामी के कारण वह अपने कोच तक नहीं पहुंच पाए, जिसके बाद उन्होंने रेलवे से हर्जाना मांगा है.

मुजफ्फरपुर के एक वकील ने रेलवे से 50 लाख का हर्जाना मांगा. राजन झा नाम के व्यक्ति ने वकील के जरिये हर्जाना का मांग की है. राजन ने मौनी अमावस्या के मौके स्नान करने के लिए 27 जनवरी 2025 को मुजफ्फरपुर से प्रयागराज जाने के लिए स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन के थर्ड एसी में तत्काल टिकट कराया था. एसी कोच के B3 में सीट नंबर 45, 46 और 47 नंबर की सीट पर बैठ कर उन्हें अपने सास-ससुर के साथ जाना था.

‘अंदर से बंद था दरवाजा’

ट्रेन रात के 9 बजकर 30 मिनट पर खुलनी थी, लेकिन राजन अपने सास-ससुर के साथ ढाई घंटे पहले यानी 7 बजे ही स्टेशन पहुंच गया था. राजन ने बताया कि जिस ट्रेन के जिस कोच में मेरी सीट थी, उसका दरवाजा अंदर से बंद था. महाकुंभ में स्नान के लिए जाने वाले यात्रियों से स्टेशन खचाखच भरा हुआ था. स्टेशन पर अफरा तफरी का माहौल था. राजन ने बताया कि रेलवे की बदइंतजामी के कारण वह और उनका परिवार कोच तक नहीं पहुंच सका और जिस कारण उनकी ट्रेन छूट गई.

रेलवे से मांगा 50 लाख का हर्जाना

राजन ने इस मामले में वकील एसके झा के जरिए रेलवे से 50 लाख के हर्जाने की मांग की है. मामले की जानकारी देते हुए वकील एसके झा ने बताया कि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा की कमी की मामला है, जिसमें रेलवे की लापरवाही नजर आ रही है. राजन को अपने परिवार के साथ अमृत स्नान के लिए जाना था, लेकिन कोच का गेट न खुलने के कारण वह अपने गंतव्यपर नहीं पहुंच पाए

इस गांव में था एक ही पुरुष… मौत हुई तो महिलाओं ने बनाई अर्थी, बेटियों ने दफनाया, जानें पूरी मामला

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले से हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां के एक गांव में केवल एक पुरुष बचा था और उसकी भी बीमारी के चलते मौत हो गई. गांव की महिलाओं ने अर्थी बनाई. मृतक की बेटियों ने उसे कांधा दिया और पत्नी अंतिम यात्रा में साथ चली. सभी ने मिलकर उसका अंतिम संस्कार किया. गांव के सभी पुरुष मजदूरी के लिए केरल और तमिलनाडु रहते हैं. वह मुश्किल से गांव आ पाते हैं.

जिले के घाटशिला थाना अंतर्गत कालचिती पंचायत का गांव रामचन्द्रपुर में 40 साल के जुंआ सबर की मौत हो गई. वह गांव के अकेला पुरुष था. गांव की महिलाओं ने उसका अंतिम संस्कार किया. गांव बेहद पिछड़ा और यहां के लोग मजदूरी पर निर्भर हैं. गांव में सबर जाति के लोग रहते हैं. उनकी संख्या में लगातार घटती जा रही है. हालत काफी दयनीय हैं. लोग विस्थापितों की तरह जीवन यापन करते हैं. जुंआ सबर की मौत से उसके परिजनों समेत पूरे गांव में मातम पसरा हुआ है.

गांव में रहते हैं 28 परिवार

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गांव रामचन्द्रपुर जंगलों की बीच बसा हुआ है. यहां सबर जाति के करीब 28 घर हैं, जिनमें करीब 80-85 लोग रहते हैं. गांव के करीब 20 पुरुष मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में रहते हैं. गांव में पुरुषों में केवल जुंआ सबर रहता था. पिछले दिनों वह बीमार हो गया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई. गांव में कोई पुरुष नहीं था, इसलिए गांव की महिलाओं ने उसका अंतिम संस्कार किया. पहले महिलाओं ने अर्थी तैयार की फिर जुंआ सबर की शव यात्रा निकाली.

बेटियों ने दिया कंधा, पत्नी हुई शवयात्रा में शामिल

मृतक ने दो शादियां की थीं. पहली पत्नी की पूर्व में मौत हो चुकी थी. उसकी बेटियों ने अपने पिता की अर्थी को कांधा दिया. शव यात्रा में उसकी दूसरी पत्नी साथ चली. वहीं, बेटियों ने अन्य महिलाओं के सहयोग से गड्ढा खोदकर शव को दफनाया. बताया जाता है कि मृतक जुंआ सबर का 17 वर्षीय बेटा तमिलनाडु में मजदूरी करता है. वहीं, उसका 10 वर्षीय बेटा रिश्तेदारी में था.

इंस्टा-यूट्यूब पर अब ज्ञान देना पड़ेगा भारी, SEBI ने जारी किया सर्कुलर

SEBI ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी करते हुए इस बात को साफ कर दिया है कि रजिस्टर लोग अब फिनफ्लुएंसरों के चैनल पर बैठकर लोगों को सोशल मीडिया पर शेयर मार्केट से जुड़ा ज्ञान नहीं दे सकते हैं. सेबी के इस नए नियम से अब फिनफ्लुएंसरों को करारा झटका लगा है.

सेबी ने अब इस मामले में बातों को और भी ज्यादा स्पष्ट करते हुए बताया है कि शेयर बाजार की शिक्षा देने वाले लोग बाजार की मौजूदा कीमतों के बारे में जानकारी नहीं दे सकते हैं. फिनफ्लुएंसर उन लोगों को कहा जाता है जो लोग सोशल मीडिया जैसे कि इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिए वित्तीय जानकारी देकर लोगों को शेयर मार्केट से जुड़ा ज्ञान देते हैं.

फिनफ्लुएंसर को झटका

फिनफ्लुएंसर पहले इंस्टा और यूट्यूब पर बेधड़क शेयर मार्केट से जुड़ा ज्ञान देते नजर आते थे, लेकिन जब से सेबी ने नियमों को सख्त किया है तब से ये लोग ज्ञान तो देते हैं लेकिन वीडियो में इस बात को साफ कर देते हैं कि हम कोई बाय या सेल की कॉल नहीं दे रहे हैं. लेकिन अब ऐसा करना भी इन लोगों के लिए मुश्किल हो जाएगा.

फिनफ्लुएंसर्स जो सेबी रजिस्टर नहीं है उन लोगों पर गाज गिरी है, सेबी के नए सर्कुलर से ये बात साफ हो गई है कि अब ऐसे लोग सोशल मीडिया के जरिए लोगों को शेयर बाजार शिक्षा की आड़ में निवेश की सलाह नहीं पाएंगे. सर्कुलर में कहा गया है कि इंवेस्टर एजुकेशन पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सेबी पंजीकरण के बिना निवेश की सलाह न दें या सेबी की अनुमति के बिना परफॉर्मेंस संबंधी दावे न करें.

इंफ्लूएंसर को लेकर है नियम

जो लोग फाइनेंशियल सर्विस या फिर शेयर मार्केट से जुड़ी एडवाइस देते हैं उन लोगों को खुद को SEBI के पास रजिस्टर करना होता है. इसके बाद एक कोर्स होता है जिसे पास करने के बाद सेबी रजिस्टर्ड लोगों को एक सर्टिफिकेट मिलता है. अगर आप सेबी रजिस्टर नहीं है और आप सोशल मीडिया पर शेयर मार्केट से जुड़ा ज्ञान दे रहे हैं या फिर लोगों को किसी शेयर को खरीदने की सलाह दे रहे हैं तो आप सेबी के रडार पर आ सकते हैं.

दिल्ली की सियासत में बिहार के 5 दिग्गज: जानें कौन हैं ये नेता और क्या है उनकी राजनीतिक पारी

दिल्ली देश की राजधानी है और यहां की सियासत कई उलटफेरों की गवाह रही है, लेकिन बिहार से आने वाले 5 ऐसे नेता भी हैं, जो लंबे वक्त से दिल्ली की सियासत में अंगद की तरह पांव जमाए हुए हैं. चुनाव में हार हो या जीत हो, इन नेताओं का सियासी दबदबा बना रहता है.

दिलचस्प बात है कि इनमें से 4 नेता इस बार भी दिल्ली के दंगल में उतरे हुए हैं. वहीं एक नेता ने अपनी विरासत अपने बेटे के जिम्मे सौंप दी है. दिल्ली चुनाव 2025 के इस स्पेशल स्टोरी में इन्हीं 5 नेताओं की कहानी विस्तार से पढ़ते हैं…

महाबल मिश्रा- बिहार के मधुबनी में जन्मे महाबल मिश्रा ने दिल्ली को 1980 के दशक में दिल्ली को अपना कर्म भूमि बना लिया. पढ़ाई-लिखाई के बाद महाबल मिश्रा को सेना में नौकरी मिली, लेकिन 1982 में वे वहां से रिटायरमेंट लेकर राजनीति में सक्रिय हो गए. 1997 में महाबल मिश्रा पहली बार पार्षद चुने गए

1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नसीरपुर सीट से महाबल मिश्रा को विधायकी का टिकट दिया. महाबल जीतने में कामयाब रहे. महाबल ने इसके बाद सियासत में पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक वक्त में पूर्वांचल के बड़े नेताओं में महाबल की गिनती होती थी. महाबल शीला दीक्षित के करीबी थे.

2009 में महाबल लोकसभा भी पहुंचे, लेकिन 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गए. महाबल ने इसके बाद पाला बदल लिया. पहले बेटे को आम आदमी पार्टी में भेजा और फिर खुद आ गए. 2024 के लोकसभा चुनाव में महाबल मिश्रा को आप ने पश्चिमी दिल्ली से उम्मीदवार भी बनाया.

हालांकि, बीजेपी के कमलजीत सहरावत से वे जीत नहीं पाए. इस चुनाव में महाबल के बेटे विनय मिश्रा द्वारका से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं. चुनाव आयोग में दाखिल हलफनामे के मुताबिक महाबल मिश्रा के पास करीब 45 करोड़ रुपए की संपत्ति है. वहीं उनके बेटे विनय के पास करीब 8 करोड़ रुपए की संपत्ति है.

बंदना कुमारी- बिहार के समस्तीपुर में जन्मीं बंदना की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मुजफ्फरपुर में हुई है. अन्ना आंदोलन के जरिए बंदना राजनीति में आईं. उस वक्त उनके पास महिला विंग की कमान थी. 2013 में बंदना को आम आदमी पार्टी ने शालीमार बाग सीट से उम्मीदवार बनाया.

बंदना ने यहां से जीत दर्ज कर ली. 2015 और 2020 के चुनाव में भी बंदना ने शालीमार सीट से जीत हासिल की. बंदना दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष भी रही हैं. बंदना को आप ने फिर से शालीमार बाग से मैदान में उतारा है. 50 साल की बंदना के पास करीब 10 करोड़ रुपए की संपत्ति है.

संजीव झा- अन्ना आंदोलन से राजनीति में आने वाले संजीव झा भी बिहार के मधुबनी जिले के मूल निवासी हैं. संजीव झा दिल्ली के बुरारी सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं. 2013 के चुनाव में संजीव को आप ने बुरारी सीट से प्रत्याशी बनाया था. संजीव ने इस चुनाव में बीजेपी के श्री किशन को पटखनी दी थी.

झा 2015 और 2020 के चुनाव में भी बुरारी सीट से जीत कर सदन पहुंचे. झा आम आदमी पार्टी के बिहार प्रभारी भी हैं. संजीव झा को आम आदमी पार्टी के टॉप लीडरशिप का करीबी माना जाता है.

संजीव झा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई मधुबनी से ही की है. 2012 में आप के गठन के वक्त में पार्टी में आ गए. इसके बाद से वे लगातार आप में ही सक्रिय हैं.

अनिल झा- दिल्ली के सियासी रण में अनिल झा भी काफी सालों से सक्रिय हैं. झा भी बिहार के मधुबनी के ही रहने वाले हैं. 2008 में झा पहली बार विधायक चुने गए थे. अनिल झा इस बार आम आदमी पार्टी के सिंबल पर किराड़ी सीट से उम्मीदवार हैं.

अनिल छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आए हैं. 1997 में अनिल ने दिल्ली छात्रसंघ के चुनाव में अध्यक्ष पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के टिकट पर जीत हासिल की थी. अनिल इसके बाद बीजेपी की सक्रिय राजनीति में आ गए.

2008 में अनिल पहली बार विधायकी जीते. 2013 में भी उन्हें जीत मिली लेकिन अनिल 2015 और 2020 में आप के ऋतुराज गोविंद से चुनाव हार गए. आप के टिकट पर अनिल को इस बार जीत की उम्मीद है.

सोमनाथ भारती- वकालत से राजनीति में आने वाले सोमनाथ भारती भी बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं. सोमनाथ को आम आदमी पार्टी ने मालवीय नगर सीट से उम्मीदवार बनाया है. सोमनाथ इस सीट से लगातार 3 बार से जीत दर्ज कर रहे हैं.

भारती दिल्ली सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें आप ने नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार बनाया था, जहां वे काफी क्लोज मुकाबले में चुनाव हार गए. भारती को आप हाईकमान का करीबी माना जाता है.