भारत-इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में की आचार संहिता की वकालत, चीन के खिलाफ चली बड़ी चाल
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दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। चीन के तटरक्षक बल और समुद्री मिलिशिया को दक्षिण चीन सागर में पहले से कहीं ज़्यादा संख्या में, लंबे समय तक और ज़्यादा आक्रामकता के साथ तैनात किया गया। चीन के तटरक्षक बल अन्य देशों को मजबूर करने और डराने के लिए आक्रामकता और बल का प्रयोग करते रहे हैं। इस बीच भारत और इंडोनेशिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप एक 'पूर्ण और प्रभावी' आचार संहिता की वकालत की है।
भारत दौरे पर आए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापक बातचीत में दक्षिण चीन सागर में हालात पर विस्तृत विचार विमर्श हुआ। बैठक में दोनों पक्षों ने 'भारत के सूचना संलयन केन्द्र-हिंद महासागर क्षेत्र' (आईएफसी-आईओआर) में इंडोनेशिया से एक संपर्क अधिकारी तैनात करने पर सहमति व्यक्त की। मोदी और सुबियांतो ने सभी प्रकार के आतंकवाद की कड़ी निंदा करते हुए भारत-इंडोनेशिया आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया और बिना किसी 'दोहरे मापदंड' के इस खतरे से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास करने का आह्वान किया।
रविवार को जारी बयान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का आह्वान किया। बयान के अनुसार प्रधानमंत्री और सुबियांतो ने भारत-इंडोनेशिया आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग के वास्ते पिछले वर्ष दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन के शीघ्र क्रियान्वयन के महत्व पर बल दिया।
मोदी और सुबियांतो का मानना है कि द्विपक्षीय लेन-देन के लिए स्थानीय मुद्राओं के उपयोग से व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा तथा दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय एकीकरण गहरा होगा। संयुक्त बयान में समुद्री क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा गया कि दोनों नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता को बनाए रखने और बढ़ावा देने के महत्व की पुष्टि की।उन्होंने निर्बाध वैध समुद्री वाणिज्य और 1982 के यूएनसीएलओएस (समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।
आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता पर जोर दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपने व्यापक दावों को स्थापित करने के लगातार प्रयास हैं। बीजिंग सीओसी का कड़ा विरोध कर रहा है। चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है।2016 में हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने अपने फैसले में दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर बीजिंग के दावे को खारिज कर दिया था। हालांकि, चीन ने इस फैसले को खारिज कर दिया था। भारत इस क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था की वकालत करता रहा है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेषकर यूएनसीएलओएस का पालन करना भी शामिल है।
Jan 27 2025, 19:35