भारत-श्रीलंका संबंध: वर्षों के दौरान एक संक्षिप्त अवलोकन

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भारत और श्रीलंका के बीच संबंध सदियों पुराने और विविध रहे हैं, जिनमें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक आयाम शामिल हैं। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध रहे हैं, लेकिन साथ ही समय-समय पर राजनीतिक और कूटनीतिक उतार-चढ़ाव भी देखे गए हैं।

प्रारंभिक संबंध और सांस्कृतिक समानताएँ

भारत और श्रीलंका के बीच संबंध पहले से ही प्राचीन काल में मजबूत थे, जब बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध स्थापित हुए थे। भारत ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से अशोक महान के शासनकाल के दौरान। इस दौरान, दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी हुआ।

स्वतंत्रता के बाद: 1947-1970

भारत और श्रीलंका के स्वतंत्रता के बाद, दोनों देशों ने सामरिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत किया। 1948 में श्रीलंका (तत्कालीन सीलोन) ने ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्रता प्राप्त की, और भारत ने इसे शीघ्र ही मान्यता दी। 1950 के दशक में, भारत ने श्रीलंका को अपनी स्वतंत्रता की यात्रा में मदद की और दोनों देशों के बीच राजनीतिक और व्यापारिक रिश्ते आगे बढ़े। इस समय, भारत और श्रीलंका के बीच विश्वासपूर्ण कूटनीतिक संबंध बने रहे।

1970s-1980s: तामिल समस्या और युद्ध

1970 और 1980 के दशकों में, दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ा, खासकर श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यक की स्थिति को लेकर। 1980 के दशक में श्रीलंकाई सरकार और तमिल संघर्षरत समूहों के बीच हिंसक संघर्ष शुरू हो गया, जिसे भारत ने क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के संदर्भ में देखा। 1987 में, भारत और श्रीलंका के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे "इंडो-लंकन एग्रीमेंट" कहा जाता है, जिसके तहत भारत ने श्रीलंका में सैन्य हस्तक्षेप किया। हालांकि, यह हस्तक्षेप विवादास्पद साबित हुआ, और 1990 के दशक तक दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आ गई।

2000: कूटनीतिक पुनर्निर्माण

2000 के दशक में, भारत और श्रीलंका ने अपनी कूटनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को फिर से स्थापित किया। भारत ने श्रीलंका को आतंकवाद और प्राकृतिक आपदाओं के मामलों में मदद की। इसके अतिरिक्त, व्यापार और आर्थिक संबंध भी मजबूत हुए। हालांकि, श्रीलंका के तमिल आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष के दौरान भारत ने मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर आलोचना की, जो दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का कारण बना।

वर्तमान स्थिति: रणनीतिक साझेदारी

हाल के वर्षों में, भारत और श्रीलंका के संबंधों में निरंतर सुधार देखा गया है। श्रीलंका की वर्तमान सरकार ने भारत के साथ आर्थिक, सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने का प्रयास किया है। दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में वृद्धि हुई है, और भारत ने श्रीलंका को कई आर्थिक सहायता प्रदान की है, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान। हालांकि, चीन की बढ़ती उपस्थिति श्रीलंका में, विशेष रूप से बंदरगाहों और बुनियादी ढांचे के विकास में, दोनों देशों के बीच कुछ रणनीतिक चिंताएँ भी उत्पन्न कर रही हैं। भारत ने इस संदर्भ में श्रीलंका को सतर्क किया है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते अब पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण और मजबूत हैं।

भारत और श्रीलंका के बीच संबंध एक लंबी और जटिल यात्रा रही है, जिसमें दोनों देशों के बीच सहयोग, विवाद और संघर्ष का मिश्रण रहा है। अब दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ अपने रिश्तों को सुधारने और आगे बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। भविष्य में, यदि ये देश एक-दूसरे के साथ कूटनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो उनके रिश्ते और मजबूत हो सकते हैं, और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान कर सकते हैं।

भारतीय स्नातकों का विदेशों में नौकरी करने का बढ़ता रुझान: भारत की बढ़ती चिंताएं

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हाल के वर्षों में, भारत के एक बढ़ते हुए स्नातक वर्ग ने नौकरी के अवसरों की तलाश में देश छोड़ दिया है। यह प्रवृत्ति विभिन्न कारणों के कारण उत्पन्न हो रही है, और इन कारणों को समझना आवश्यक है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि युवा पेशेवरों के लिए यह निर्णय क्यों लिया जा रहा है। जैसे-जैसे भारत आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है, इस प्रवृत्ति से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय नौकरी बाजार, शैक्षिक प्रणाली, और यहां तक कि सामाजिक-राजनीतिक वातावरण में कुछ गहरे और महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। BITS Pilani में डॉ एस सोमनाथ (चेयरमैन,इसरो ) ने ग्रेजुएट हो रहे विद्यार्थियों को उनके दीक्षांत सम्हारोह में सम्बोधित करते हुए कहा की देश को युवा की ज़रूरत है और वे चाहेंगे कि देश का कौशल देश की प्रग्रति के लिए काम आए , विदेश में जाना और वह अपने योगदान देने से भारत उन नई उचाईयों से वंचित रह जाएगा। बच्चों के बाहर जाकर नौकरी करने के प्रमुख कारणों का विश्लेषण किया गया है। 

1.बेहतर नौकरी के अवसर और उच्च वेतन

एक प्रमुख कारण है कि स्नातक विदेशों में नौकरी करने के लिए क्यों जाते हैं, वह है बेहतर वेतन और नौकरी के अवसर। भारत में कई क्षेत्रों में वेतन अपेक्षाकृत कम है, खासकर उन पेशेवरों के लिए जिनकी शिक्षा और कौशल स्तर उच्च हैं। जैसे-जैसे भारत में वेतन संरचना उतनी प्रतिस्पर्धी नहीं है, विदेशों में विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और मध्य-पूर्व के देशों में उच्च वेतन और बेहतर नौकरी के अवसर मिलते हैं। तकनीकी, वित्त, स्वास्थ्य देखभाल, और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में, विदेशों में मिलने वाले वेतन पैकेज भारतीय नौकरी बाजार से कहीं अधिक आकर्षक होते हैं। यह वेतन अंतर स्नातकों को आर्थिक सुरक्षा और जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रेरित करता है।

2. सीमित करियर विकास और अवसर

भारत में नौकरी के अवसरों में कमी और करियर में सीमित वृद्धि भी एक प्रमुख कारण है। विशेष रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों के लिए भारत में कई बार करियर का विकास धीमा होता है, वरिष्ठ पदों के लिए अवसर कम होते हैं और विशिष्ट प्रशिक्षण या कौशल विकास की कमी होती है। इसके विपरीत, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों में करियर में तेज़ी से वृद्धि, वैश्विक नेटवर्किंग के अवसर और निरंतर सीखने की संभावना होती है, जिससे ये देश स्नातकों के लिए अत्यधिक आकर्षक बनते हैं।

3.जीवन की गुणवत्ता

वह बेहतर जीवन स्तर जो विदेशों में मिलता है, यह एक और बड़ा कारण है कि स्नातक भारत से बाहर जा रहे हैं। इसमें कार्य-जीवन संतुलन, उन्नत स्वास्थ्य देखभाल, बेहतर सार्वजनिक बुनियादी ढांचा, स्वच्छ वातावरण और पारदर्शी शासन जैसी सुविधाएं शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर, यूरोप के देशों में कार्य-जीवन संतुलन को प्राथमिकता दी जाती है, वहीं भारत में कई युवा पेशेवर लंबे कार्य घंटों, उच्च प्रतिस्पर्धा और तनावपूर्ण कार्य वातावरण से परेशान रहते हैं। इस कारण से वे अधिक आरामदायक जीवन जीने के लिए विदेशों में नौकरी करने का विकल्प चुनते हैं।

4. भारत में बेरोजगारी और अपर्याप्त रोजगार

भारत में नौकरी के अवसर बहुत अधिक प्रतिस्पर्धी हैं और अत्यधिक शैक्षिक योग्यता होने के बावजूद, लाखों युवा बेरोजगार या अपर्याप्त रोजगार में फंसे हुए हैं। CMIE (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी) के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 2023 में 8-9 प्रतिशत के आसपास रही है, जबकि कई स्नातक ऐसे कामों में लगे हुए हैं जो उनकी शैक्षिक योग्यता से मेल नहीं खाते। उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियों की मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है, जिससे युवा पेशेवरों को बेहतर अवसरों की तलाश में विदेशों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

5. उभरते हुए तकनीकी और स्टार्ट-अप क्षेत्र

वैश्विक स्तर पर तकनीकी क्षेत्र का विस्तार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी में इन क्षेत्रों में अत्यधिक आकर्षक रोजगार उपलब्ध हैं। विशेष रूप से STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में स्नातक विदेशों में उच्च मांग में हैं और अपनी क्षमताओं का पूरा लाभ उठाने के लिए इन देशों में जाने का विकल्प चुनते हैं। इसके अतिरिक्त, सिलिकॉन वैली जैसे तकनीकी केंद्र और लंदन जैसे स्टार्ट-अप हब नवाचार के लिए समर्थन प्रदान करते हैं और वहां कार्य करने का एक अनुकूल वातावरण मिलता है। ये विशेषताएं भारतीय स्नातकों को आकर्षित करती हैं, जो वैश्विक स्तर पर समाधान तैयार करने में रुचि रखते हैं।

 6. शैक्षिक प्रणाली और अनुसंधान अवसर

भारत के उच्च शिक्षा संस्थान अक्सर आवश्यक अनुसंधान अवसर, व्यावहारिक शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अनुभव प्रदान नहीं कर पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, कई भारतीय स्नातक विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं, जो बाद में उन देशों में नौकरी करने के अवसर प्राप्त करते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, और कनाडा जैसे देश उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और व्यावासिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और यह स्नातकों को स्थायी निवास प्राप्त करने का अवसर भी देते हैं।

7. उद्यमिता के अवसर

भारत में उद्यमिता के लिए कई बाधाएं हैं, जैसे सरकारी नौकरशाही, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, और सीमित निवेश के अवसर। इसके विपरीत, अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर जैसे देशों में उद्यमिता के लिए अधिक अनुकूल वातावरण है, जिसमें पूंजी तक आसान पहुंच, सरकारी समर्थन, और नवाचार के लिए प्रेरणा मिलती है। यही कारण है कि कई भारतीय स्नातक, जो उद्यमिता में रुचि रखते हैं, विदेशों में अपनी कंपनियों की शुरुआत करते हैं।

भारतीय स्नातकों का विदेशों में नौकरी करने जाने का बढ़ता हुआ रुझान कई आर्थिक, सामाजिक और पेशेवर कारणों से उत्पन्न हो रहा है। भारत में नौकरी के अवसरों की कमी, वेतन की असमानताएं, और करियर विकास की सीमाएं इन युवा पेशेवरों को विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश में भेज रही हैं। हालांकि, यह प्रवृत्ति "ब्रेन ड्रेन" के रूप में देखी जा सकती है, लेकिन यह भारत के लिए एक अवसर भी प्रदान करती है, क्योंकि वे जब वापस लौटते हैं तो वे विदेशी अनुभव और विशेषज्ञता लेकर आते हैं। भारत को इस प्रवृत्ति को रोकने और अपने पेशेवरों के लिए बेहतर अवसरों और कार्य वातावरण बनाने के लिए उपायों की आवश्यकता है, ताकि वे अपने कौशल का अधिकतम लाभ भारत में ही उठा सकें।

1989 के दंगों से बर्बाद हुआ बिहार का यह गांव अब बनेगा राज्य का पहला स्मार्ट गांव

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बिहार के बांका जिले का बाबरचक गांव 1989 की सांप्रदायिक हिंसा में तबाह हो गया था और इसकी पूरी आबादी कहीं और चली गई थी। किस्मत ने पलटी मारते हुए यह गांव राज्य का पहला स्मार्ट गांव बनने जा रहा है, जिसमें 15 जनवरी 2025 तक ग्रामीणों के लिए कई आधुनिक सुविधाएं तैयार हो जाएंगी। यह गांव बांका जिले के रजौन ब्लॉक में आता है। कुल मिलाकर, जिला प्रशासन 130 परिवारों को बसाने की योजना बना रहा है, जिनमें से 65 को 15 जनवरी को घर आवंटित किए जाएंगे और 65 को बाद में आवास मिलेंगे। ये घर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए जा रहे हैं।

राज्य सरकार की स्मार्ट विलेज योजना के तहत, गांव में अपना खुद का मॉडल स्कूल, अस्पताल, खेल मैदान, सोलर स्ट्रीट लाइट, वाटर टावर, पार्क, आंगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक केंद्र, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र, ग्रामीण हाट के अलावा सभी बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित घर होंगे, जैसे कि शहरी नागरिकों को कस्बों और शहरों में मिलते हैं। गांव 11 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है और इसमें 130 परिवारों को बसाया जाएगा, जिसमें पहले चरण में 65 परिवार और दूसरे चरण में बाकी 65 परिवारों को बसाया जाएगा। लाभार्थी अपने लिए निर्धारित मानदंडों के अनुसार 3 डेसीमल माप की सरकारी जमीन पर अपने घर बनवा रहे हैं।

भविष्य में गांव का क्षेत्रफल बढ़ाया जाएगा।

स्मार्ट गांव का मुख्य उद्देश्य लोगों को बेहतर जीवन-यापन की स्थिति प्रदान करना है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। इसमें युवाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाएगा और महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में शामिल होने में भी मदद मिलेगी। इससे गांवों को विकास केंद्र बनने में मदद मिलेगी और लोगों को आजीविका के लिए दूसरे राज्यों में जाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। लाभार्थी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर का निर्माण कर रहे हैं। स्मार्ट गांव के अधिकार क्षेत्र में आने वाले नवादा खरौनी पंचायत की मुखिया आरती देवी ने कहा, "हम बिहार में पहला स्मार्ट गांव बनने के लिए वास्तव में भाग्यशाली हैं और हमें उम्मीद है कि यह दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने में सक्षम होगा।"

1989 के दंगों में तबाह होने के बाद गांव को बहुत अभाव का सामना करना पड़ा था क्योंकि इसकी सड़क और बिजली कनेक्शन पूरी तरह से खत्म हो गए थे। यह वास्तव में अन्य गांवों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है।"

शतरंज की समृद्ध धरोहर और उभरते सितारे, गुकेश डोमराजू ने संभाली कमान

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Gukesh Domraju (PTI)

भारत के युवा शतरंज खिलाड़ी गुकेश डोमराजू ने इतिहास रचते हुए गुरुवार को सिंगापुर में आयोजित 14-गेम मैच के आखिरी गेम में चीन के गत शतरंज विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र के शतरंज विश्व चैंपियन बनने का गौरव प्राप्त किया। 18 साल के गुकेश ने इस नाटकीय मुकाबले में काले मोहरे से खेलते हुए डिंग को दबाव में झुकने पर मजबूर किया और अंततः 7.5-6.5 के स्कोर के साथ खिताब छीन लिया। यह जीत उन्हें शतरंज की दुनिया में एक नई पहचान दिलाने वाली साबित हुई।

गुकेश, जो केवल 18 वर्ष के हैं, इस खिताब को जीतने वाले सबसे युवा शतरंज विश्व चैंपियन बन गए। वह इससे पहले गैरी कास्पारोव (1985) से चार साल छोटे हैं, जिन्होंने 1985 में 22 साल की उम्र में अनातोली कार्पोव को हराकर शतरंज विश्व चैंपियन का खिताब जीता था। इस तरह गुकेश ने एक नई शतरंज पीढ़ी को प्रेरणा दी है। इस मैच के दौरान, डिंग लिरेन, जिनका प्रदर्शन 2023 में विश्व चैंपियन इयान नेपोमनियाचची को हराने के बाद कुछ कमजोर हुआ था, ने पहले कुछ राउंड में अच्छा खेल दिखाया, लेकिन अंत में उनकी गलतियों ने गुकेश को जीत दिलाई। 2023 के बाद से, डिंग ने लंबे समय तक "क्लासिकल" शतरंज में कोई बड़ा मैच नहीं जीता था और कई शीर्ष आयोजनों से दूर रहे थे। 

गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत ने उसे कैंडिडेट्स टूर्नामेंट (अप्रैल में जीता गया) से विश्व चैंपियनशिप मैच तक पहुँचाया, जहां वह डिंग को मात देने में सफल रहे। यह मैच 14 राउंड के एक लंबे समय से चल रहे "क्लासिकल" इवेंट का हिस्सा था, जिसकी पुरस्कार राशि 2.5 मिलियन डॉलर थी। इस जीत से पहले, भारत के शतरंज क्षेत्र में विश्वनाथन आनंद,पेंटाला हरिकृष्णा, और विदित गुर्जरथी जैसे शीर्ष खिलाड़ियों ने अपनी जगह बनाई थी। गुकेश, जिनकी युवा सफलता से देशभर में शतरंज के प्रति रुचि बढ़ी है, भारत के शतरंज के भविष्य को लेकर उम्मीदों को और भी मजबूत करते हैं।

गुकेश की यह जीत शतरंज की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, और यह युवा खिलाड़ियों को यह संदेश देती है कि अगर मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। भारत में शतरंज का भविष्य अब और भी उज्जवल नजर आ रहा है, और गुकेश ने अपनी सफलता से यह साबित कर दिया कि युवा खिलाड़ी अब वैश्विक मंच पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार हैं।

भारत का शतरंज से जुड़ाव हजारों वर्षों पुराना है, जो प्राचीन खेल चतुरंगा से जुड़ा हुआ है, जो 6वीं शताब्दी के आसपास का एक रणनीतिक बोर्ड खेल था। यह खेल 8x8 के ग्रिड पर खेला जाता था और इसे आधुनिक शतरंज का पूर्ववर्ती माना जाता है। चतुरंगा सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि यह सम्राटों और सैनिकों के लिए युद्ध की रणनीतियों को समझने और सिखाने का एक माध्यम था। चतुरंगा का खेल फारस, इस्लामिक दुनिया और यूरोप में फैला और यहाँ से यह आधुनिक शतरंज के रूप में विकसित हुआ। जैसे-जैसे व्यापारिक मार्गों से यह खेल अन्य देशों में फैला, भारत का प्रभाव बना रहा, और आज यह देश वैश्विक शतरंज मंच पर एक प्रमुख शक्ति बन चुका है।

प्राचीन जड़ें: चतुरंगा और इसका विकास

आधुनिक शतरंज की जड़ें भारत के चतुरंगा में छुपी हैं, जिसका अर्थ है "सैन्य की चार शाखाएं" संस्कृत में, जो पैदल सेना, घुड़सवार, हाथी और रथों को दर्शाती हैं—जो आज के प्यादे, घोड़े, ऊंट और हाथी के रूप में बदल गए हैं। चतुरंगा केवल एक खेल नहीं था, बल्कि यह युद्ध की रणनीतियों की अभ्यास विधि था। यह खेल गुप्त साम्राज्य में खेला जाता था और इसके बाद यह फारस में शतरंज के रूप में विकसित हुआ, और फिर यूरोप में आधुनिक शतरंज के रूप में इसका रूप बदला।

भारत की आधुनिक शतरंज पुनर्जागरण

20वीं और 21वीं शताब्दियों में, भारत का शतरंज से जुड़ा योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है। 2000 में विश्वनाथन आनंद ने विश्व शतरंज चैंपियन बनकर इतिहास रचा, और वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय बने। उनके इस सफलता ने भारत के शतरंज के खेल को वैश्विक स्तर पर प्रमुख बना दिया। इसके बाद से भारत के युवा खिलाड़ियों ने भी इस खेल में अपनी पहचान बनाई है और उनकी सफलता ने शतरंज के प्रति देश की रुचि और प्रेरणा को बढ़ाया है।

भारत की शतरंज यात्रा प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक उत्कृष्टता, परंपरा और भविष्य की संभावनाओं से भरी हुई है। चतुरंगा से लेकर आज के वैश्विक सितारे जैसे आनंद, प्रग्गानंदा, और हरिकृष्णा तक, भारत शतरंज की दुनिया में प्रमुख शक्ति बन चुका है। युवा खिलाड़ियों और अनुभवी दिग्गजों के लगातार सफलता से यह सुनिश्चित हो गया है कि भारत का शतरंज क्षेत्र भविष्य में भी मजबूती से बढ़ता रहेगा और वैश्विक मंच पर अपनी धरोहर बनाए रखेगा।

मसूद अजहर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच एक कूटनीतिक संघर्ष और पाकिस्तान का दोहरा चरित्र

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Masood Azhar

पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के प्रमुख मसूद अजहर, भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव का केंद्रीय मुद्दा बने हुए हैं। भारत ने शुक्रवार को पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा। ऐसी खबरें सामने आई हैं कि उसने हाल ही में पाकिस्तान के शहर बहावलपुर में एक सार्वजनिक सभा में भाषण दिया है। नई दिल्ली ने कहा कि पाकिस्तान का दोहरा चरित्र उजागर हो गया है।अजहर, जो भारत में 2001 के संसद हमले और 2019 के पुलवामा हमले जैसे कई प्रमुख हमलों में शामिल रहे हैं, दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का मुख्य कारण हैं। 

पृष्ठभूमि और बढ़ता तनाव

मसूद अजहर ने 2000 में जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की थी, और इस समूह को भारत में कई आतंकवादी हमलों से जोड़ा गया है। 2019 में पुलवामा हमले के बाद, जिसमें 40 से अधिक भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जैश ने इस हमले की जिम्मेदारी ली। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान में जैश के प्रशिक्षण शिविरों पर एयरस्ट्राइक की, जिससे दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ गया।

संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंध और भारत की कूटनीतिक सफलता

भारत ने लंबे समय से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करने की मांग की थी। मई 2019 में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया, जो एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया। इस कदम ने अजहर की संपत्तियों को फ्रीज़ कर दिया और यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिए। यह कदम भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता था, जिसे वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत कदम माना गया।

कूटनीतिक चुनौतियां और पाकिस्तान का रुख

हालांकि, यह कदम केवल एक कूटनीतिक जीत थी, मसूद अजहर का प्रभाव और जैश-ए-मोहम्मद की गतिविधियां अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई हैं। पाकिस्तान ने बार-बार यह दावा किया है कि वह अजहर और उसके समूह पर नियंत्रण नहीं रखता, लेकिन भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मानना है कि पाकिस्तान के सैन्य और खुफिया तंत्र ने इन आतंकवादी समूहों को समर्थन दिया है। भारत अब भी पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है कि वह आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए और सख्त कदम उठाए।

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव

मसूद अजहर पाकिस्तान के लिए केवल एक आतंकी नेता नहीं, बल्कि कश्मीर में आतंकवाद और संघर्ष का प्रतीक बन चुके हैं। भारत के लिए, अजहर पाकिस्तानी आतंकवाद को रोकने में पाकिस्तान की विफलता का प्रतीक बन गए हैं। भारत अब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बना रहा है कि पाकिस्तान जैश और अन्य आतंकी समूहों के खिलाफ प्रभावी कदम उठाए। मसूद अजहर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच जटिल और संवेदनशील संबंधों का एक मुख्य कारण बना हुआ है। हालांकि भारत ने UNSC में अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर कूटनीतिक सफलता प्राप्त की है, लेकिन अजहर और जैश-ए-मोहम्मद से संबंधित आतंकवाद की समस्या अब भी बरकरार है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और भारत के कूटनीतिक प्रयास इस मुद्दे के समाधान के लिए महत्वपूर्ण होंगे।

भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध: समय के साथ कैसे विकसित हुआ यह सहयोग

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भारत और दक्षिण कोरिया के बीच द्विपक्षीय संबंधों में पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है, और यह संबंध अब मजबूत और विविधतापूर्ण हैं। दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और रक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है, और यह सहयोग दोनों देशों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता जा रहा है। 

शुरुआत के वर्ष

भारत और दक्षिण कोरिया के बीच आधिकारिक संबंधों की शुरुआत 1973 में हुई थी, जब दोनों देशों ने पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए। पहले दशक में, यह संबंध काफी सीमित थे, और दोनों देशों के बीच प्राथमिक रूप से व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान ही होते थे। हालांकि, दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास और भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया ने इन संबंधों को और अधिक बढ़ावा दिया।

 1990 और 2000 के दशक में वृद्धि

1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में, भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों में तेज़ी से वृद्धि हुई। भारत के आर्थिक सुधारों और वैश्विक बाजार में उसकी बढ़ती भूमिका के साथ, दक्षिण कोरिया ने भारत को एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और निवेश साझीदार के रूप में देखा। 2000 में, भारत और दक्षिण कोरिया ने "समग्र रणनीतिक साझेदारी" की दिशा में कदम बढ़ाया। इस साझेदारी के तहत दोनों देशों ने आपसी व्यापार, निवेश, रक्षा और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। 

वर्तमान स्थिति और प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग

व्यापार और निवेश  

आज के समय में, भारत और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापारिक संबंध अत्यधिक विस्तारित हो चुके हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार का वॉल्यूम 2023 में लगभग 24 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, जो निरंतर बढ़ रहा है। दक्षिण कोरिया भारत में भारी निवेश कर रहा है, विशेष रूप से उच्च तकनीकी, निर्माण और ऑटोमोटिव उद्योगों में। भारतीय कंपनियां भी दक्षिण कोरिया में अपने कदम बढ़ा रही हैं, खासकर सूचना प्रौद्योगिकी और सेवाओं के क्षेत्रों में।

रक्षा सहयोग  

रक्षा क्षेत्र में भी भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध मजबूत हो रहे हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों की खरीद-फरोख्त और सहयोग बढ़ा है। दक्षिण कोरिया भारत को आधुनिक रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करता है, और दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास भी आयोजित होते हैं। इसके अलावा, दोनों देशों ने समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद, और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाया है। 

सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध  

भारत और दक्षिण कोरिया के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बहुत बढ़ा है। कोरियाई संस्कृति, विशेष रूप से कोरियाई ड्रामा (K-dramas) और कोरियाई संगीत (K-pop), भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, जबकि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री और संगीत भी दक्षिण कोरिया में प्रसिद्ध हो रहा है। दोनों देशों में शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देते हैं। 

तकनीकी और विज्ञान क्षेत्र में सहयोग  

दक्षिण कोरिया की तकनीकी क्षमता और भारत की शोध एवं विकास (R&D) क्षमता के बीच सहयोग में भी वृद्धि हुई है। दोनों देशों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में साझेदारी की है, जिसमें अंतरिक्ष, रोबोटिक्स, और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी और स्मार्ट शहरों के निर्माण में भी सहयोग बढ़ा है।

भविष्य की दिशा

भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंधों की दिशा भविष्य में और अधिक प्रगति की ओर बढ़ रही है। दोनों देशों के नेता और सरकारें आपसी सहयोग को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 2024 में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यू एन-ओक के बीच उच्चस्तरीय बैठक में रणनीतिक साझेदारी को और अधिक गहरा करने पर चर्चा की गई। भारत और दक्षिण कोरिया के लिए आने वाले वर्ष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि दोनों देश आपसी संबंधों को वैश्विक स्तर पर और अधिक विस्तारित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक दूसरे के साथ काम करने, आंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग बढ़ाने, और एक दूसरे के देशों में निवेश आकर्षित करने की दिशा में कड़ी मेहनत जारी है।

भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंध पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय रूप से मजबूत हुए हैं। व्यापार, रक्षा, विज्ञान, तकनीकी सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच बढ़ता हुआ सहयोग यह दर्शाता है कि इन दोनों देशों का भविष्य एक दूसरे के साथ और भी गहरे संबंधों का है। यह संबंध न केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भी रणनीतिक महत्व रखते हैं।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, क्यों हो रही इसे पूरी तरह से रद्द करने की मांग ?

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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991, भारत सरकार द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून है, जिसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों के मामलों में सांप्रदायिक सौहार्द और स्थिरता बनाए रखना था। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी धार्मिक स्थल की धार्मिक स्थिति, जैसा कि 15 अगस्त 1947 को था, वैसी ही बनी रहे। इस एक्ट के तहत, धार्मिक स्थलों के स्वरूप, स्थिति, या स्वरूप में बदलाव करने पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि धार्मिक स्थलों को लेकर किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न न हो। 

एक्ट का उद्देश्य

इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य यह था कि किसी भी धार्मिक स्थल को बदलने या उसमें किसी प्रकार के विवाद को जन्म देने की संभावना को समाप्त किया जाए। इसका लागू होने के बाद, जो भी धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस रूप में था, वही उसकी स्थिति मानी जाएगी। उदाहरण के लिए, अगर किसी मस्जिद, मंदिर या चर्च का रूप तब कुछ था, तो उसे बदलने का प्रयास अब कानूनी रूप से अवैध होगा। 

यह कानून विशेष रूप से उन विवादों को रोकने के लिए लाया गया था जो ऐतिहासिक रूप से धार्मिक स्थलों के आसपास उत्पन्न होते रहे थे, जैसे कि बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद। इसका उद्देश्य समाज में धार्मिक तनाव को कम करना और सभी धर्मों के अनुयायियों के बीच भाईचारे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को बढ़ावा देना था। 

क्यों हो रही है रद्द करने की मांग?

हालांकि इस कानून के निर्माण का उद्देश्य समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखना था, लेकिन वर्तमान में कई समूहों और राजनेताओं द्वारा इसे पूरी तरह से रद्द करने की मांग की जा रही है। इन मांगों के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:

1. धार्मिक स्थलों का ऐतिहासिक विवाद: कई लोग यह मानते हैं कि इस एक्ट के कारण कुछ धार्मिक स्थलों से जुड़े ऐतिहासिक विवादों का समाधान नहीं हो पा रहा है। उदाहरण के लिए, कुछ स्थानों पर यह सवाल उठता है कि क्या वहां पहले कोई मंदिर था या मस्जिद, और इस एक्ट के कारण इन विवादों को कानूनी रूप से निपटाने में समस्या आ रही है।

2. धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रश्न: कुछ धार्मिक और राजनीतिक समूहों का यह मानना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करता है। उनका कहना है कि अगर किसी धार्मिक स्थल के ऐतिहासिक संदर्भ में बदलाव हुआ हो, तो उसके बारे में कानूनी रूप से विवाद न सुलझाना किसी धर्म या संस्कृति के अनुयायियों के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

3. राजनीतिक और सामाजिक दबाव: कुछ समूहों का तर्क है कि इस एक्ट का प्रयोग राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, कुछ समूहों का कहना है कि यह कानून उन धार्मिक स्थानों के इतिहास को दबाने में मदद करता है, जो उनके अनुसार अस्वीकार्य हैं। यह विचारधारात्मक और राजनीतिक संघर्षों के कारण विवाद का कारण बन सकता है।

4. भविष्य के विवादों को हल करने में दिक्कतें: इस एक्ट के कारण, भविष्य में किसी भी धार्मिक स्थल से जुड़े विवादों का समाधान करने में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि यह कानून किसी भी परिवर्तन की अनुमति नहीं देता है। इसे लेकर कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि यह विवादों को सुलझाने के बजाय और बढ़ा सकता है।

क्या हो सकता है आगे?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर चल रही बहस और विरोध के बावजूद, यह कानून अभी तक कायम है। हालांकि, इस पर चर्चा और आलोचना लगातार जारी है। अगर इसे पूरी तरह से रद्द किया जाता है, तो इससे भविष्य में धार्मिक स्थलों के विवादों के समाधान के तरीकों में बदलाव हो सकता है, और शायद इसे लेकर नई कानूनी पहल की आवश्यकता महसूस हो सकती है। यह कहना मुश्किल है कि इस एक्ट को पूरी तरह से रद्द किया जाएगा या नहीं, लेकिन इसे लेकर भविष्य में और अधिक राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक विमर्श की संभावना बनी रहेगी।

महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस का मुख्यमंत्री चुना जाना: बीजेपी के लिए एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री (CM) के रूप में *देवेंद्र फडणवीस* को चुनने का निर्णय कई रणनीतिक और राजनीतिक कारणों से लिया गया है। यहां वे मुख्य कारण हैं, जो उनके चयन को प्रभावित करते हैं:

1.*सिद्ध नेतृत्व और अनुभव*

देवेंद्र फडणवीस पहले भी 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, और उनके कार्यकाल को प्रशासन और अवसंरचना विकास के कई पहलों के लिए सराहा गया था। उनकी नेतृत्व क्षमता और राज्य के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे के प्रति गहरी समझ ने उन्हें बीजेपी के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बना दिया। उनका अनुभव पार्टी के लिए निरंतरता की प्रतीक था।

2. *मजबूत चुनावी समर्थन*

फडणवीस को शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मजबूत समर्थन प्राप्त है, खासकर विदर्भ (उनका गृह क्षेत्र) में, जो बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी क्षेत्र है। उनकी लोकप्रियता, विशेष रूप से युवाओं में, और एक विकासशील नेता के रूप में उनकी छवि ने उन्हें बीजेपी के लिए आकर्षक उम्मीदवार बना दिया, ताकि राज्य में पार्टी का प्रभाव बनाए रखा जा सके।

3. *स्थिरता और रणनीतिक गठबंधन*

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति अक्सर उतार-चढ़ाव वाली रही है, और 2019 विधानसभा चुनावों के बाद एक जटिल शक्ति-साझाकरण व्यवस्था की आवश्यकता थी। जबकि शिवसेना पहले बीजेपी के साथ गठबंधन में थी, दोनों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर असहमति के कारण गठबंधन टूट गया। इसके बाद बीजेपी को छोटे दलों जैसे एनसीपी और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के साथ मिलकर सरकार बनाने की आवश्यकता पड़ी। इस स्थिति में, फडणवीस का नेतृत्व राज्य में स्थिरता बनाए रखने और गठबंधन सरकार की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना गया।

4. *पार्टी के मूल वोट बैंक को आकर्षित करना*

फडणवीस का मुख्यमंत्री के रूप में चयन बीजेपी के प्रयासों के साथ मेल खाता था, जो अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखना चाहती थी, जिसमें शहरी मध्यवर्ग, व्यवसायी समुदाय और मराठा और ओबीसी समुदाय शामिल हैं। महाराष्ट्र के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों में ब्राह्मण समुदाय की भूमिका को देखते हुए फडणवीस का चयन बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण था, ताकि वह जातीय समीकरणों को संतुलित कर सके और व्यापक समर्थन सुनिश्चित कर सके।

5. *महाराष्ट्र के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण*

फडणवीस को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है, जिनके पास महाराष्ट्र के भविष्य के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण है, खासकर अवसंरचना, औद्योगिक विकास और कृषि सुधारों के क्षेत्रों में। मुंबई मेट्रो, मुंबई कोस्टल रोड प्रोजेक्ट और समृद्धि महामार्ग (एक्सप्रेसवे) जैसी मेगा परियोजनाओं के लिए उनका उत्साह उन्हें शहरी और ग्रामीण विकास दोनों के लिए एक पहचाना हुआ चेहरा बनाता है। अवसंरचना और विकास पर उनका जोर बीजेपी के व्यापक राष्ट्रीय एजेंडे के अनुरूप था।
फडणवीस को बीजेपी के प्रति निष्ठावान और मजबूत संगठनात्मक पृष्ठभूमि वाला नेता माना जाता है। पार्टी और उसके विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें पार्टी नेतृत्व के लिए एक स्थिर विकल्प बना दिया, खासकर उस राज्य में जहां बीजेपी को गठबंधन की गतिशीलताओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत करनी थी। पार्टी के भीतर संघर्षों को सुलझाने और पार्टी कार्यों को संभालने में उनकी दक्षता ने उन्हें बीजेपी के लिए एक भरोसेमंद नेता बना दिया।

7. *केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन*

फडणवीस को बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से मजबूत समर्थन प्राप्त है, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से। उनके महाराष्ट्र में जटिल राजनीतिक स्थितियों को संभालने और गठबंधनों को प्रबंधित करने की क्षमता ने यह सुनिश्चित किया कि फडणवीस बीजेपी के लिए शीर्ष पद के लिए प्राथमिक उम्मीदवार बने रहें।

8. *राष्ट्रीय दृष्टिकोण*

राष्ट्रीय स्तर पर, फडणवीस का चयन बीजेपी के लिए एक मजबूत राजनीतिक संदेश देने का तरीका था। महाराष्ट्र में एक प्रमुख नेता के रूप में, फडणवीस को ऐसे नेता के रूप में देखा गया जो राज्य में क्षेत्रीय दलों द्वारा उत्पन्न की गई चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, विशेष रूप से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस द्वारा। उनका चयन पार्टी की व्यापक रणनीति के तहत किया गया था, जो महत्वपूर्ण राज्यों में अपनी स्थिति को मजबूत करना और मोदी-शाह की जोड़ी के तहत मजबूत क्षेत्रीय नेतृत्व को प्रस्तुत करना चाहती थी।

कुल मिलाकर, देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री चुने जाने का कारण उनका अनुभव, नेतृत्व क्षमता, चुनावी समर्थन, और बीजेपी के राजनीतिक और रणनीतिक लक्ष्यों के साथ उनका मेल था। उनका चयन पार्टी को एक जटिल राजनीतिक माहौल में स्थिरता बनाए रखने में मदद करने के साथ-साथ राज्य में अपनी शासन नीति जारी रखने में सहायक साबित हुआ।
देवेंद्र फडणवीस ने विपक्ष के 'देरी' आरोप को किया खारिज, कहा- अधिकांश विभागों पर काम पूरा

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First press conference after oath

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, देवेंद्र फडणवीस ने विपक्ष के इस आरोप को खारिज कर दिया कि सरकार गठन में देरी हुई है। फडणवीस ने गुरुवार को मुंबई के आजाद मैदान में तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जबकि एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने उनके डिप्टी के रूप में शपथ ली। इस तरह के पिछले उदाहरणों को सूचीबद्ध करते हुए, सीएम ने कहा कि 2004 में लगभग 12 से 13 दिनों की देरी हुई थी और 2009 में लगभग 9 दिनों की देरी हुई थी। "हमें यह समझना होगा कि जब गठबंधन सरकार होती है, तो कई निर्णय लेने होते हैं। गठबंधन सरकार में, बहुत बड़े पैमाने पर परामर्श किया जाना चाहिए। हमने वह परामर्श किया है, और हमने पोर्टफोलियो को भी लगभग अंतिम रूप दे दिया है; कुछ बचा हुआ है, हम उसे भी करेंगे," फडणवीस ने कहा।

महायुति सरकार भारतीय जनता पार्टी, शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच गठबंधन है। एनडीए समूह ने हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में से 235 सीटें जीतकर भारी जीत हासिल की। विपक्ष द्वारा सरकार गठन में देरी के लिए एनडीए की आलोचना करने के बाद फडणवीस की यह टिप्पणी आई है। विपक्ष ने कहा कि यह राज्य के लोगों और चुनावी प्रक्रिया का अपमान है।

'केवल भूमिकाएं बदली हैं'

इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने पुष्टि की कि जिस तरह से महायुति सरकार ने पिछले 2.5 वर्षों में राज्य के विकास के लिए काम किया है, वह उसी तरह काम करना जारी रखेगी। फडणवीस ने कहा कि वे अब नहीं रुकेंगे, उन्होंने कहा कि लक्ष्य और गति वही है, "केवल हमारी भूमिकाएं बदल गई हैं"। उन्होंने कहा, "हम महाराष्ट्र की बेहतरी के लिए निर्णय लेंगे। हम अपने घोषणापत्र में बताए गए कार्यों को पूरा करना चाहते हैं।" विशेष रूप से, फडणवीस ने इस नई सरकार में शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे के साथ कार्यालयों की अदला-बदली की।

महाराष्ट्र सरकार में शीर्ष कुर्सी कौन संभालेगा, इस पर कई दिनों तक चले सस्पेंस के बाद इस सप्ताह की शुरुआत में फडणवीस के नाम की पुष्टि हुई। इस बीच, शिंदे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे या नहीं, इस पर सवाल डी-डे तक जारी रहा। शपथ ग्रहण समारोह से कुछ घंटे पहले ही शिवसेना ने पुष्टि की कि उसके प्रमुख फडणवीस के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। 'स्थिर सरकार देंगे' यह कहते हुए कि लोग स्थिर सरकार चाहते हैं, फडणवीस ने कहा कि अगले पांच सालों में उनका प्रशासन यही प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि शिंदे और पवार दोनों उनके साथ हैं, साथ ही उन्होंने कहा कि वे साथ रहेंगे और साथ मिलकर काम करेंगे। उन्होंने कहा, "हम 'माझी लड़की बहन योजना' जारी रखेंगे।" फडणवीस ने आगे कहा कि चुनावों में लोगों का जनादेश उनकी उम्मीदों और प्यार को दर्शाता है, उन्होंने कहा कि वे उनकी उम्मीदों का दबाव महसूस कर रहे हैं।

सीएम ने बताया कि कैबिनेट 7 और 8 दिसंबर को एक विशेष सत्र आयोजित करेगी, जिसके बाद वे महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव करेंगे। उन्होंने कहा, "राज्यपाल 9 दिसंबर को अभिभाषण देंगे।" कैबिनेट विस्तार और विभागों के बंटवारे के मामले में फडणवीस ने कहा कि किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा, इसका फैसला वह, शिंदे और अजित पवार मिलकर करेंगे। उन्होंने कहा कि विभागों का फैसला अंतिम चरण में है। फडणवीस ने कहा, "पिछली सरकार में मंत्रियों के काम का आकलन किया जा रहा है और उसके आधार पर आगे के फैसले लिए जाएंगे।"

राहुल-प्रियंका ने यूपी पुलिस की आलोचना करते हुए संभल दौरे पर रोक को 'एलओपी अधिकारों का उल्लंघन' बताया

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PTI