देवघर- अविभाजित बिहार के पूर्व मंत्री कृष्णानंद झा का निधन शिक्षा के क्षेत्र में रहते थे सजग।
देवघर: 15 जून 1946 को जन्मे कृष्णानंद झा का निधन से देवघर ही नही आसपास के क्षेत्रों में शोक की लहर दौड़ गई है। जीवन के 78 बसंत देखने के बाद आज देवघर स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली। कृष्णा नंद झा पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। समय का पाबंद और मिलनसार होने के कारण इनकी छवि सभी के दिलों में एक अभिभावक के रूप में थी। ऐसा कोई वर्ग और आयु वाले नही होंगे जो कृष्णा नंद झा का आदर नही करते होंगे। कृष्णा नंद झा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित विनोदानंद झा के पुत्र थे। विरासत में राजनीत मिलने के कारण देवघर के मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से अभिवाजित बिहार में लगातार तीन बार विधायक रहे और दो बार मंत्री रहे। सभी के सुख दुख में शामिल रहने वाले कृष्णानंद झा को लोग भीष्मपितामह के रूप में देखते थे क्योंकि ऐसा कोई क्षेत्र नही जिसपर इनका पकड़ न हो। कृष्णानंद झा के निधन से सभी मर्माहत है। यही कारण है कि स्थानीय नेता हो या सूबे के मंत्री और पूर्व मंत्री सभी ने इसे व्यक्तिगत अपूर्णीय क्षति बताई है। वार्ड पार्षद से मंत्री तक का सफर अपनी मेहनत से कायम की बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित विनोदानंद झा के पुत्र के रुप मे कृष्णानंद झा की पहचान तो थी ही लेकिन इन्होंने अपनी मेहनत से वार्ड पार्षद से मंत्री तक का सफर किये थे। 1946 में जन्म हुआ फिर शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्होंने 70 से 80 के दशक में राजनीति में कदम उतारा। पहली बार देवघर नगर पालिका में वार्ड पार्षद में लड़े और चुनाव जीत गए। फिर अपनी कुशल क्षमता से देवघर नगर पालिका के चेयरमैन बने। कॉंग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले कृष्णा नंद झा 1980 में संयुक्त बिहार के मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और पहली बार में ही जीतकर विधानसभा पहुचे थे। बिहार के मुख्यमंत्री जब चंद्रशेखर सिंह बने तब कृष्णानंद झा को सिंचाई विभाग का मंत्रालय दिया गया।इसके बाद मधुपुर से 1985 और 1990 में चुनाव जीते। इस बीच बिहार के सीएम बने सत्येंद्र नारायण सिंहा के सरकार में दुबारा मंत्री बने। फिर ये चुनाव 1995 में लड़े लेकिन जीत नही सके।इसके बाद झारखंड का गठन 2000 में हुआ और फिर ये चुनाव लड़ने अंतिम बार लड़े लेकिन जीत नही सके फिर इन्होंने चुनाव नही लड़ने का मन बना लिया। पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थियों के बीच हिंदी का अलख जगाने लगे कृष्णा नंद झा आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजी का बहिष्कार और हिंदी का प्रचार प्रसार करने का महात्मा गांधी ने बिगुल फूंका तो देवघर में 1929 में हिंदी विद्यापीठ की आधारशिला रखी गई।धीरे धीरे यहाँ से हिंदी की शिक्षा प्राप्त होने लगी। खुद राजेन्द्र प्रसाद देश आजाद होने के बाद इसकी व्यापक शुरुआत की।1983 में कृष्णानंद झा हिंदी विद्यापीठ से जुड़े और 1984 से लगातार वे इसके व्यवस्थापक बने रहे।इनकी देख रेख में पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी का अलख जगाने लगे।आज भी प्रति वर्ष सैकड़ो पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यार्थी यहां हिंदी का शिक्षा ले रहे है। हिंदी के अलावा स्थानीय बच्चों के शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए कृष्णानंद झा ने तक्षशिला विद्यापीठ की स्थापना कर बच्चो को उच्च तकनीक का शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। कृष्णानंद झा के निधन से शोक की लहर,कई माननीयों ने किया अंतिम दर्शन,राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम विदाई कृष्णानंद झा के निधन की खबर सुनते ही मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से दुख जताया है।वही राज्य के श्रम मंत्री संजय यादव ने कहा कि एक युग का अंत हो गया। जिसकी भरपाई नही की जा सकती।पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता ने कहा कि कृष्णा बाबू से बहुत कुछ सीखने को मिला इनका चले जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।पूर्व मंत्री सुरेश पासवान हो या गोड्डा सांसद ने भी व्यक्तिगत क्षति की बात की है।कॉंग्रेस के आलाकमान से लेकर प्रदेश और स्थानीय नेता सहित अन्य राजनीतिक दलों के नेताओ ने गहरा दुःख प्रकट किया है। *राजकीय सम्मान के साथ हुआ अंतिम विदाई* पूर्व मंत्री कृष्णा नंद झा को शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए इसी वर्ष मैरीलैंड स्टेट यूनिवर्सिटी अमेरिका द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान किया गया था।आज अपने आवास पर अंतिम सांस ली।उनका अंतिम संस्कार शिवगंगा स्थित शमशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ किया गया।इस मौके पर सरकार की ओर से मंत्री हाफिजुल हसन,जिला उपायुक्त और पुलिस प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे।कृष्णानंद झा मंदिर प्रबंधन बोर्ड के सदस्य रहे थे।जिनके मार्ग दर्शन में श्रावणी मेला का सफल आयोजन सम्पन्न कराया जाता था।इनके निधन से सभी समाज और वर्ग में शोक की लहर है।मुखाग्नि कृष्णानंद झा के पुत्र ने दी।
Dec 16 2024, 17:03