संविधान पर चर्चा में पीएम मोदी ने तीन महापुरुषों के कोट का उल्लेख कर सदन को समझाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को लोकसभा में पहुंचकर संविधान पर चर्चा से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए आए. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि संविधान की 75 सालों की महान यात्रा है. इसके साथ ही सदन में संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता नहीं मानते थें कि भारत का जन्म 1947 में हुआ था. वो भारत के गौरवशाली इतिहास को मानते थे. इसीलिए भारत आज मदर ऑफ डेमोक्रेसी के रूप में जाना जाता था.
पीएम ने आगे कहा कि भारत का गणतांत्रिक अतीत बहुत समृद्धि रहा है. लोकतंत्र विश्व के लिए प्रेरक रहा है, हम सिर्फ विशाल लोकतंत्र ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की जननी हैं. इसके साथ ही उन्होंने अपनी बात को और बारीकीं से समझाने के लिए कहा, ‘इसको सदन में समझाने के लिए मैं तीन महापुरुषों के कोट से समझाना चाहता हूं.
पहला कोट…
इस दौरान उन्होंने सबसे पहले पुरुषोत्तम दास टंडन का कोट पढ़ते हुए कहा कहा कि सदियों के बाद हमारे देश में एक बार फिर ऐसी बैठक बुलाई गई है. ये हमारे मन में अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है. जब हम स्वतंत्र हुआ करते थे. जब सभाएं आयोजित की जाती थी. जिसमें विद्वान लोग देश के महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा के लिए मिला करते थें.
कौन थें राजार्षि पुरुषोत्तम दास टंडन?
पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और समाज सुधारक थे. महात्मा गांधी से प्रेरित होकर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और असहयोग आंदोलन व नमक सत्याग्रह जैसे अभियानों में सक्रिय रहे. वे संविधान सभा के सदस्य भी थे और हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. ये भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे. सामाजिक योगदान के लिए उन्हें 1961 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
दूसरा कोट…
पुरुषोत्तम दास टंडन के कोट के बाद उन्होंने देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कोट को सदन में कहा कि इस महान राष्ट्र के लिए गणतांत्रिक व्यवस्था नई नहीं है. हमारे यहां ये इतिहास के शुरुआत से ही है.
भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे राधाकृष्णन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे. उन्होंने 1947-49 तक संविधान सभा के सदस्य के रूप में काम किया और भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई. राधाकृष्णन की वक्तृत्व कला को ध्यान में रखते हुए जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक क्षणों में संबोधन करने के लिए चुना. 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वे शिक्षा और दर्शन में अपनी अद्वितीय योगदान के लिए हमेशा याद किए जाते हैं.
तीसरा कोट…
पुरुषोत्तम दास टंडन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद उन्होंने भीमराव अंबेडकर के कोट को भी सदन में कहा कि ऐसा नहीं है कि भारत को पता नहीं था कि लोकतंत्र क्या होता है? एक समय था जब भारत में कई गणतंत्र हुआ तंत्र हुआ करते थे.
संविधान में भीमराव अंबेडकर की भूमिका
भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे. उन्होंने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दलितों, पिछड़ों और अन्य समाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रावधान सुझाए. अंबेडकर को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था, और वे भारतीय न्यायपालिका, समानता और सामाजिक न्याय के पक्षधर थे. उनका योगदान विशेष रूप से समानता के अधिकार, आरक्षण प्रणाली और धर्म की स्वतंत्रता के मुद्दों पर महत्वपूर्ण था.
Dec 14 2024, 20:59