शतरंज की समृद्ध धरोहर और उभरते सितारे, गुकेश डोमराजू ने संभाली कमान
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Gukesh Domraju (PTI)
भारत के युवा शतरंज खिलाड़ी गुकेश डोमराजू ने इतिहास रचते हुए गुरुवार को सिंगापुर में आयोजित 14-गेम मैच के आखिरी गेम में चीन के गत शतरंज विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को हराकर सबसे कम उम्र के शतरंज विश्व चैंपियन बनने का गौरव प्राप्त किया। 18 साल के गुकेश ने इस नाटकीय मुकाबले में काले मोहरे से खेलते हुए डिंग को दबाव में झुकने पर मजबूर किया और अंततः 7.5-6.5 के स्कोर के साथ खिताब छीन लिया। यह जीत उन्हें शतरंज की दुनिया में एक नई पहचान दिलाने वाली साबित हुई।
गुकेश, जो केवल 18 वर्ष के हैं, इस खिताब को जीतने वाले सबसे युवा शतरंज विश्व चैंपियन बन गए। वह इससे पहले गैरी कास्पारोव (1985) से चार साल छोटे हैं, जिन्होंने 1985 में 22 साल की उम्र में अनातोली कार्पोव को हराकर शतरंज विश्व चैंपियन का खिताब जीता था। इस तरह गुकेश ने एक नई शतरंज पीढ़ी को प्रेरणा दी है। इस मैच के दौरान, डिंग लिरेन, जिनका प्रदर्शन 2023 में विश्व चैंपियन इयान नेपोमनियाचची को हराने के बाद कुछ कमजोर हुआ था, ने पहले कुछ राउंड में अच्छा खेल दिखाया, लेकिन अंत में उनकी गलतियों ने गुकेश को जीत दिलाई। 2023 के बाद से, डिंग ने लंबे समय तक "क्लासिकल" शतरंज में कोई बड़ा मैच नहीं जीता था और कई शीर्ष आयोजनों से दूर रहे थे।
गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत ने उसे कैंडिडेट्स टूर्नामेंट (अप्रैल में जीता गया) से विश्व चैंपियनशिप मैच तक पहुँचाया, जहां वह डिंग को मात देने में सफल रहे। यह मैच 14 राउंड के एक लंबे समय से चल रहे "क्लासिकल" इवेंट का हिस्सा था, जिसकी पुरस्कार राशि 2.5 मिलियन डॉलर थी। इस जीत से पहले, भारत के शतरंज क्षेत्र में विश्वनाथन आनंद,पेंटाला हरिकृष्णा, और विदित गुर्जरथी जैसे शीर्ष खिलाड़ियों ने अपनी जगह बनाई थी। गुकेश, जिनकी युवा सफलता से देशभर में शतरंज के प्रति रुचि बढ़ी है, भारत के शतरंज के भविष्य को लेकर उम्मीदों को और भी मजबूत करते हैं।
गुकेश की यह जीत शतरंज की दुनिया में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, और यह युवा खिलाड़ियों को यह संदेश देती है कि अगर मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। भारत में शतरंज का भविष्य अब और भी उज्जवल नजर आ रहा है, और गुकेश ने अपनी सफलता से यह साबित कर दिया कि युवा खिलाड़ी अब वैश्विक मंच पर अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार हैं।
भारत का शतरंज से जुड़ाव हजारों वर्षों पुराना है, जो प्राचीन खेल चतुरंगा से जुड़ा हुआ है, जो 6वीं शताब्दी के आसपास का एक रणनीतिक बोर्ड खेल था। यह खेल 8x8 के ग्रिड पर खेला जाता था और इसे आधुनिक शतरंज का पूर्ववर्ती माना जाता है। चतुरंगा सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि यह सम्राटों और सैनिकों के लिए युद्ध की रणनीतियों को समझने और सिखाने का एक माध्यम था। चतुरंगा का खेल फारस, इस्लामिक दुनिया और यूरोप में फैला और यहाँ से यह आधुनिक शतरंज के रूप में विकसित हुआ। जैसे-जैसे व्यापारिक मार्गों से यह खेल अन्य देशों में फैला, भारत का प्रभाव बना रहा, और आज यह देश वैश्विक शतरंज मंच पर एक प्रमुख शक्ति बन चुका है।
प्राचीन जड़ें: चतुरंगा और इसका विकास
आधुनिक शतरंज की जड़ें भारत के चतुरंगा में छुपी हैं, जिसका अर्थ है "सैन्य की चार शाखाएं" संस्कृत में, जो पैदल सेना, घुड़सवार, हाथी और रथों को दर्शाती हैं—जो आज के प्यादे, घोड़े, ऊंट और हाथी के रूप में बदल गए हैं। चतुरंगा केवल एक खेल नहीं था, बल्कि यह युद्ध की रणनीतियों की अभ्यास विधि था। यह खेल गुप्त साम्राज्य में खेला जाता था और इसके बाद यह फारस में शतरंज के रूप में विकसित हुआ, और फिर यूरोप में आधुनिक शतरंज के रूप में इसका रूप बदला।
भारत की आधुनिक शतरंज पुनर्जागरण
20वीं और 21वीं शताब्दियों में, भारत का शतरंज से जुड़ा योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है। 2000 में विश्वनाथन आनंद ने विश्व शतरंज चैंपियन बनकर इतिहास रचा, और वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय बने। उनके इस सफलता ने भारत के शतरंज के खेल को वैश्विक स्तर पर प्रमुख बना दिया। इसके बाद से भारत के युवा खिलाड़ियों ने भी इस खेल में अपनी पहचान बनाई है और उनकी सफलता ने शतरंज के प्रति देश की रुचि और प्रेरणा को बढ़ाया है।
भारत की शतरंज यात्रा प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक उत्कृष्टता, परंपरा और भविष्य की संभावनाओं से भरी हुई है। चतुरंगा से लेकर आज के वैश्विक सितारे जैसे आनंद, प्रग्गानंदा, और हरिकृष्णा तक, भारत शतरंज की दुनिया में प्रमुख शक्ति बन चुका है। युवा खिलाड़ियों और अनुभवी दिग्गजों के लगातार सफलता से यह सुनिश्चित हो गया है कि भारत का शतरंज क्षेत्र भविष्य में भी मजबूती से बढ़ता रहेगा और वैश्विक मंच पर अपनी धरोहर बनाए रखेगा।
Dec 14 2024, 19:02