दिल्ली में फिर स्कूलों में बम की धमकी, जानें कौन से स्कूल हैं शामिल?

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दिल्ली के कई स्कूलों को एक बार फिर बम की धमकी मिली है। राजधानी के की प्राइवेट स्कूलों में शुक्रवार की सुबह एक बार फिर धमकी भरा ईमेल आया है। ईमेल की जानकारी दिल्ली पुलिस और फायर डिपार्टमेंट को दी गई, जिसके बाद तुरंत जांच शुरू हुई। जांच में अब तक कुछ संदिग्ध नहीं पाया गया है।दिल्ली के अलग-अलग स्कूलों को पहले भी इस तरह से धमकी भरे ई-मेल भेजे गए थे। जांच-पड़ताल में मेल में दी गईं सूचनाएं झूठी निकली थीं।

अभी तक छह निजी स्कूलों में बम की धमकी मिली है। बमों की धमकी साउथ दिल्ली पब्लिक स्कूल डिफेंस कॉलोनी, दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल सफदरजंग, वेंकटेश्वर ग्लोबल स्कूल रोहिणी, भटनागर इंटरनेशनल स्कूल, कैम्ब्रिज स्कूल और डीपीएस अमर कॉलोनी स्कूल को मिली है। डीपीएस स्कूल में सभी अभिभावकों को छुट्टी का मैसेज किया गया है।

इस बार भी बम की धमकी ईमेल से मिली है। देर रात 12 बजकर 54 मिनट पर ये ईमेल भेजी गई है।ईमेल में लिखा गया है कि यह ईमेल आपको यह सूचित करने के लिए है कि आपके स्कूल परिसर में कई विस्फोटक हैं और मुझे यकीन है कि आप सभी अपने छात्रों के स्कूल परिसर में प्रवेश करने पर बार-बार उनके बैग की जांच नहीं करते हैं। इस गतिविधि में एक गुप्त डार्क वेब समूह शामिल है और कई लाल कमरे भी हैं।

ईमेल में आगे कहा गया है कि बम इमारतों को नष्ट करने और लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हैं। आज से 14 दिसंबर तक, मतलब कल, दोनों दिनों में, एक अपेक्षित पैरेंट्स-टीचर मीटिंग होने वाली है। हमारे स्रोतों के माध्यम से, यह भी पुष्टि हुई है कि सभी ईमेल में शामिल स्कूलों में से एक वर्तमान में अपने खेल दिवस के लिए मार्चिंग कर रहा है, जिसमें छात्र एक सामूहिक मैदान में इकट्ठा होते हैं, जिससे भारी भीड़ होती है।

दमकल विभाग ने ईमेल से धमकी मिलने की पुष्टि की है। दमकल विभाग के मुताबिक सुबह 4.21 बजे भटनागर इंटरनेशनल स्कूल, 6.21 बजे कैम्ब्रिज स्कूल, 6.35 बजे डीपीएस अमर कॉलोनी स्कूल से सूचना मिली है। सूचना मिलते ही सभी स्कूलों में दमकल की गाड़ियां भेजी गई है। अधिकारियों ने कहा कि स्कूलों से अभी भी कई कॉल मिल रहे हैं। सभी स्कूल में पुलिस और दमकल की गाड़ियां के साथ साथ बम निरोधक दस्ता पहुंच कर जांच पड़ताल में जुट गई है।

29 नवंबर को भी मिली थी धमकी

इससे पहले बीते 29 नवंबर को दिल्ली के रोहिणी में एक स्कूल को बम से उड़ाने की धमकी दी गई थी। सुबह 10.57 बजे स्कूल में बम रखने की खबर फैलाई गई थी। जिसके बाद स्कूल की तलाशी ली गई थी। पुलिस को जांच के दौरान कुछ भी नहीं मिला था। पुलिस ने जांच पूरी करने के बाद खबर को झूठा करार दिया था।

भारत के गुकेश बने सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन, चीनी खिलाड़ी को हराकर रचा इतिहास

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भारतीय ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने गुरुवार को विश्व शतरंज चैंपियनशिप के 14वें और अंतिम दौर में चीन के डिंग लिरेन को हराकर खिताब अपने नाम कर लिया। लिरेन को हराकर वह सबसे युवा विश्व शतरंज चैंपियन बन गए। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने इतिहास रच दिया।

6.5 अंको के साथ खेल की शुरुआत हुई थी। अंतिम मैच भी ड्रॉ की तरफ बढ़ता दिख रहा था कि तभी लिरेन की एक गलती उनके लिए भारी पड़ गई और गुकेश को जीत दिला गई। 12 साल के बाद किसी भारतीय ने इस खिताब को अपने नाम करने में कामयाबी हासिल की है।इसके साथ ही विश्वनाथ आनंद के बाद वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप का खिताब जीतने वाले गुकेश सिर्फ दूसरे भारतीय ग्रैंडमास्टर बन गए हैं।

सिंगापुर में पिछले कई दिनों से चल रही वर्ल्ड चैंपियशिप में चीन के डिंग और भारत के गुकेश के बीच कड़ी टक्कर चल रही थी। डिंग ने पिछले साल ये चैंपियनशिप जीती थी। ऐसे में वो डिफेंडिंग चैंपियन के रूप में इस चैंपियनशिप में उतरे थे। वहीं गुकेश ने इस साल के शुरुआत में हुए कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतकर चैलेंजर के रूप में इस चैंपियनशिप में प्रवेश किया था।

पहले 13 राउंड में दोनों ने 2-2 मुकाबले जीतकर रोमांच और भी बढ़ा दिया था। 9 मैच ड्रॉ भी रहे थे और दोनों के पास 6.5 प्वाइंट्स ही थे। निर्णायक मैच में भी कांटे की टक्कर देखने को मिली। उन्होंने टाइब्रेकर तक इस खिताबी जंग को नहीं पहुंचने दिया। उन्होंने मुकाबले में चीन के ग्रैंडमास्टर को 7.5 – 6.5 के अंतर से शिकस्त दी। जैसे ही डिंग ने रिजाइन किया, गुकेश अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए और अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे रोने लगे। उनके चेहरे पर जीत की खुशी, सपने के सच होने का एहसास और एक राहत साफ नजर आ रही थी, जबकि उनकी आंखों से आंसू भी बह रहे थे। वो वर्ल्ड चैंपियनशिप में पहुंचने वाले विश्वनाथन आनंद के बाद सिर्फ दूसरे भारतीय और दुनिया के सबसे युवा खिलाड़ी बने थे।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्टःकोई नया केस दर्ज नहीं होगा, ना निचली अदालतें दे सकेंगी आदेश, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

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सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) से जुड़े मामलों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जब तक इस कानून को लेकर शीर्ष अदालत में मामला पेंडिंग है, तब तक कोई भी नया मुकदमा देश की किसी भी अदालत में दर्ज नहीं किया जाएगा। सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ यह सुनवाई कर रही थी। याचिका में उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है।

दायर याचिका में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 को चुनौती दी गई है। सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार का पक्ष जानना बेहद जरूरी है। अगली तारीख तक कोई केस दर्ज न हों, तब तक कोई नया मंदिर-मस्जिद विवाद दाखिल नहीं होगा। केंद्र सरकार जल्द इस मामले में हलफनामा दाखिल करें सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सिविल कोर्ट के आदेशों पर पर रोक लगा दी और कहा कि केंद्र सरकार 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करे। 8 हफ्ते के बाद मामले की सुनवाई होगी।

सीजेआई ने कहा कि आगे कोई केस दर्ज नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास अयोध्या का फैसला भी मौजूद है। इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामले में जल्द ही जवाब दाखिल किया जाएगा। सीजेआई ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार का जवाब जरूरी है।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह जानकारी दी कि वर्तमान में धार्मिक स्थलों से संबंधित 18 मुकदमे देशभर में अदालतों में लंबित हैं। सीजेआई ने इस संदर्भ में कोर्ट का रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इन मामलों पर कोई निर्णय नहीं देता, तब तक नया मुकदमा दायर नहीं होगा।

क्या है 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट

1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने राम मंदिर आंदोलन के चरम पर लागू किया था। इस कानून का उद्देश्य 15 अगस्त, 1947 को मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति की रक्षा करना था। देश भर में मस्जिद और दरगाह सहित विभिन्न धार्मिक स्थलों पर सर्वेक्षण करने के लिए लगभग 18 मुकदमे दायर किए गए हैं, जिसके बारे में मुस्लिम पक्षों ने दावा किया है कि यह कानून के प्रावधानों की अवहेलना है।

क्या बांग्लादेश की पहचान मिटाने में लगे मोहम्मद यूनुस? अब 'जॉय बांग्ला' अब नहीं होगा राष्ट्रीय नारा

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शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। शेख हसीना को 5 अगस्त को देश छोड़कर भागना पड़ा और उनकी जगह मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार 8 अगस्त को अस्तित्व में आई। अंतरिम सरकार हसीना सरकार के दौर में लिए गए कई बड़े फैसलों को पलटने में लगी है। इसी बीच, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने एक हाईकोर्ट के उस फैसले को नकार दिया, जिसमें 'जॉय बांग्ला' को बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था।यह नारा पूर्व पीएम और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया था।

शेख हसीना सरकार के जाने के बाद देश में अंतरिम सरकार अस्तित्व में आई और हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित करने की मांग की। अंतरिम सरकार ने 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर कर 10 मार्च, 2020 के हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाली अपीलीय खंडपीठ की 4 सदस्यीय बेंच ने मंगलवार को इस आधार पर आदेश पारित किया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मैटर है और न्यायपालिका इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

आदेश में कहा गया कि राष्ट्रीय नारा सरकार के नीतिगत निर्णय का मामला है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सुनवाई में सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर हक ने कहा कि इस आदेश के बाद जॉय बांग्ला को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा।

अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” विरोधी!

इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है। बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था। शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी। शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। भारत की सहायता से अपने ही उस मुल्क से आजादी पाई थी, जिस मुल्क के लिए उन्होंने भारत से एक प्रकार से आजादी से पहले जंग लड़ी थी। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को क्या माना जाए?

यह था हाईकोर्ट का फैसला

उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2020 को 'जॉय बांग्ला' को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया था। कोर्ट ने सरकार को आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया था ताकि नारे का इस्तेमाल सभी राज्य समारोहों और शैक्षणिक संस्थानों की सभाओं में किया जा सके। इसके बाद 20 फरवरी 2022 को हसीना के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में मान्यता देते हुए एक नोटिस जारी किया और अवामी लीग सरकार ने 2 मार्च 2022 को एक गजट अधिसूचना जारी की।

तख्तापलट के बाद कई बड़े बदलाव

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक दिसंबर को 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। इससे पहले 13 अगस्त को अंतरिम सरकार की सलाहकार परिषद ने फैसला लिया था कि 15 अगस्त को कोई राष्ट्रीय अवकाश नहीं होगा। कुछ दिन पहले बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने करेंसी नोटों से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटाने का फैसला लिया था। बांग्लादेश में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री पद और देश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद अंतरिम सरकार ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली। इसके बाद बंगबंधु रहमान और शेख हसीना के खिलाफ फैसले लिए जा रहे हैं।

एक देश, एक चुनावः बिल पास कैसे कराएगी मोदी सरकार, संविधान में करने होंगे संशोधन?

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‘एक देश एक चुनाव’ बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। केंद्रीय कैबिनेट ने आज यानी गुरुवार को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल को मंजूरी दे दी है। अब बिल इसी चल रहे शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। चूंकि, वन नेशन, वन इलेक्‍शन के तहत लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की मंशा है, इसलिए यह मामला पेंचीदा हो जाता है। वन नेशन-वन इलेक्शन पर केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करने पड़ेंगे, जिसके लिए इसे संसद में बिल के तौर पर पेश करना होगा। इसके बाद केंद्र सरकार को लोकसभा और राज्यसभा से इसे पास कराना होगा। इतना ही नहीं, संसद से पास होने के बाद इस बिल को 15 राज्यों की विधानसभा से भी पास कराना होगा। ये सब होने के बाद राष्ट्रपति इस बिल पर मुहर लगाएंगे। सवाल यह है कि क्या यह इतनी आसानी से लागू हो जाएगा?

केन्द्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद मोदी सरकार अब संसद में विधेयक लाएगी और वहीं पर उसका असली टेस्ट होगा। बिल को संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा से पास कराने में सरकार को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा, लेकिन लोकसभा में लड़ाई मुश्किल दिख रही है। निचले सदन में जब बिल पर वोटिंग की बारी आएगी तो सरकार विपक्षी दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में बीजेपी के पास अकेले बहुमत नहीं है। केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है।

क्या है संसद में नंबर गेम?

लोकसभा चुनाव-2024 के बाद 271 सांसदों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया। इसमें से 240 सांसद बीजेपी के हैं। लोकसभा में एनडीए के आंकड़े की बात करें तो ये 293 है। जब ये बिल लोकसभा में पेश होगा और वोटिंग की बारी आएगी तो उसे पास कराने के लिए सरकार को 362 वोट या दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी। संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अगर वाईएसआरसीपी, बीजेडी और गैर-एनडीए दलों का साथ मिल जाता है तो भी 362 का आंकड़ा छूने की संभावना नहीं है। बीजेपी को 69 सांसदों की जरूरत पड़ेगी जो उसके साथ खड़े रहें।हालांकि ये स्थिति तब होगी जब वोटिंग के दौरान लोकसभा में फुल स्ट्रेंथ रहती है। लेकिन 439 सांसद (अगर 100 सांसद उपस्थित नहीं रहते हैं) ही वोटिंग के दौरान लोकसभा में रहते हैं तो 293 वोटों की जरूरत होगी। ये संख्या एनडीए के पास है। इसका मतलब है कि अगर विपक्षी पार्टियों के सभी सांसद वोटिंग के दौरान लोकसभा में मौजूद रहते हैं तो संविधान संशोधन बिल गिर जाएगा।

एक देश एक चुनाव का 15 दलों ने किया विरोध

बता दें कि कोविंद समिति ने कुल 62 राजनीतिक दलों से एक राष्ट्र एक चुनाव पर राय मांगी थी, जिनमें से 47 ने अपने जवाब भेजे, जबकि 15 ने जवाब नहीं दिया। 47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारियों का समर्थन किया, जबकि 15 दल विरोध में रहे। जिन 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया उसमें ज्यादातर बीजेपी की सहयोगी पार्टियां हैं और या तो उनका उसके प्रति नरम रुख रहा है। नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी जो मोदी सरकार 2.0 में साथ खड़ी रहती थी उसका रुख भी अब बदल गया है। वहीं, जिन 15 पार्टियों ने पैनल की सिफारिशों का विरोध किया उसमें कांग्रेस, सपा, आप जैसी पार्टियां हैं।

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन

भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एकसाथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

वन नेशन-वन इलेक्शन' बिल को मोदी कैबिनेट की मंजूरी, जल्द ही हो सकता है संसद में पेश*
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संसद के शीतकालीन सत्र के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक हुई। जिसमें ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी गई। अगले सप्ताह संसद में इसे पेश किए जाने की संभावना है। बता दें कि बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है।इससे पहले 'एक देश, एक चुनाव' पर बनी कोविंद समिति की रिपोर्ट को 18 सितंबर को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी। एक देश एक चुनाव पर यह लेटेस्ट डेवलपमेंट ऐसे वक्त में आया है, जब बुधवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का पुरजोर समर्थन किया था और कहा कि बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में बाधा आ रही है।सूत्रों के मुताबिक, सरकार बहुत जल्द इस विधेयक को संसद में पेश करेगी। उसके बाद विस्तार से चर्चा की जाएगी। सूत्रों की मानें तो सरकार ने यह तय कर लिया है कि यह एक व्यापक ब‍िल के रूप में पेश क‍िया जाएगा। इसके लिए सभी दलों की राय भी जरूरी होगी, क्‍योंक‍ि यह बहुत बड़ा बदलाव होगा। इसल‍िए इसे पहले संसद की ज्‍वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेजा जा सकता है। इसके बाद राज्‍यों की विधानसभाओं से इसे पास कराना होगा। *कोविंद समिति ने सौंपी थी सिफारिश* प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने इस पर विचार रखा। मोदी सरकार इस बिल को लेकर लगातार सक्रिय रही है। सरकार ने सितंबर 2023 में इस महत्वाकांक्षी योजना पर आगे बढ़ने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक समिति का गठन किया था। कोविंद समिति ने अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मार्च में सरकार को अपनी सिफारिश सौंपी थी। केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। रिपोर्ट में 2 चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश की गई थी। समिति ने पहले चरण के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की है। जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय के लिए चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है। *18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट* 191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से विचार के बाद 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी गई. इसमें सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया है, ताकि लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकें. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नो कॉन्फिडेंस मोशन या हंग असेंबली की स्थिति में 5 साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले चरण में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। वहीं, दूसरे चरण में 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव हो सकते हैं। इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है। इसके अलावा सुरक्षा बलों के साथ प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और मशीन के लिए एडवांस में योजना बनाने की सिफारिश की गई है। *'वन नेशन, वन इलेक्शन' की राह में कई अड़चन* बता दें कि केंद्र सरकार शुरू से ही वन नेशन, वन इलेक्शन के समर्थन में रही है। हालांकि, मौजूदा व्यवस्था को बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। इसके लिए आम सहमति बेहद आवश्यक है। देश में एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए करीब 6 विधेयक लाने होंगे। इन सभी को संसद में पारित कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी।
केजरीवाल का बड़ा दांव, महिलाओं के खाते में हर महीने आएंगे 1000, चुनाव बाद मिलेंगे 2100 रुपये

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 से पहले आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव चला है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को महिला सम्मान निधि योजना के तहत बड़ा ऐलान किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने अपना वादा पूरा करते हुए हर महिला के बैंक अकाउंट में हर महीने 1,000 रुपये डालने की योजना को मंजूरी दे दी है। कैबिनेट की बैठक में आतिशी की अध्यक्षता में इस प्रस्ताव को पारित किया गया। अब दिल्ली की महिलाओं को रजिस्ट्रेशन कराना होगा, जिसके बाद उनके अकाउंट में यह राशि जमा की जाएगी।

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केजरीवाल ने कहा कि आज मैं दिल्ली के लोगों के लिए दो बड़ी घोषणाएं करने आया हूं। दोनों घोषणाएं दिल्ली की मेरी बहनों और मांओं के लिए है। दिल्ली की हर महिला के बैंक अकाउंट में हर महीने हजार-हजार रुपये डाले जाएंगे। आज सुबह कैबिनेट में ये प्रस्ताव पास हो गया है। यह योजना लागू हो गई है।जो जो महिलाएं इसके लिए अप्लाई करेंगी। रजिस्ट्रेशन के बाद पैसा आना शुरू हो जाएगा।

केजरीवाल ने आगे कहा कि मैंने मार्च में एलान किया था अप्रैल में लागू होने की उम्मीद थी लेकिन इन्होंने मुझे जेल भेज दिया था। वापस लौटकर आतिशी के साथ कोशिश की और अब हो रहा है। ये महिलाओं पर कोई एहसान नहीं है। महिलाएं बच्चों को पालती हैं, वो देश का भविष्य होता है तो कुछ उनकी मदद करें। जहां नारी की पूजा होती है वहीं तरक्की होती है।केजरीवाल ने कहा कि मुझे लगता है कि इससे दिल्ली सरकार का खर्चा नहीं बरकत होगी।

यही नहीं अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि चुनाव के बाद महिलाओं को एक हजार की जगह 2100 रुपये देंगे। केजरीवाल ने कहा कि इस योजना के तहत रजिस्ट्रेशन कल से शुरू हो जाएगा और इसी योजना के तहत चुनाव जीतने के बाद महिलाओं को 1000 रुपये की जगह हर महीने 2100-2100 रुपये मिलने लगेंगे। केरजीवाल ने कहा कि आज दिल्ली सरकार ने हजार रुपये चालू कर दिए लेकिन चुनाव 10-15 दिन में ऐलान होने वाले हैं। इस वजह से अभी चुनाव के पहले पैसा अकाउंट में जाना संभव नहीं है।

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी वाले गाली दे रहे हैं कि ये मुफ्त सुविधाएं और फ्री की रेवड़ी बांटते हैं। बीजेपी वाले कह रहे हैं कि पैसा कहां से आएंगे, जब मैं पहला चुनाव जीता और कहा कि बिजली पानी मुफ्त करूंगा तो बोले कि मैं झूठ बोल रहा हूं।

संसद में पोस्टर वॉरः पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से लहराए गए बैनर

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संसद का शीतकालीन सत्र एक बार फिर हंगामे की भेंट चढ़ने लग गया है। इस हफ्ते के पिछले तीनों दिन संसद के दोनों सदन में कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल सकी। पहले विपक्ष की ओर से अडाणी मुद्दे पर हंगामा किया जा रहा था, लेकिन अब सत्ता पक्ष के सांसद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के जॉर्ज सोरेस के साथ संबंध होने को लेकर लगातार हंगामा कर रहे हैं। इस वजह से संसदीय कार्यवाही नहीं चल पा रही है। गुरुवार को सदन में पोस्‍टर वॉर हो गया। जब विपक्ष अडानी पर लगे आरोप के विरोध में और जांच के मामले को लेकर देश नहीं बिकने देंगे का पोस्‍टर संसद के बाहर लहराया तो दूसरी तरफ बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने के लिए सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरेस के रिश्‍तों पर एक पोस्‍टर सदन में दिखाया।

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केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। गिरिराज सिंह दोनों हाथों में सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरेस की तस्वीर लेकर संसद परिसर में आए, जिसमें लिखा है, "ये रिश्ता क्या कहलता है।" उन्होंने कांग्रेस से सोरोस के साथ क्या रिश्ता है, इसका जवाब भी मांगा है। बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर जॉर्ज सोरोस के साथ लिंक होने का आरोप लगाया है।

बीजेपी ने आरोप लगाया कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के जॉर्ज सोरोस समर्थित उन संगठनों के साथ संबंध हैं, जो कथित तौर पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल है। कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों को सिरे से खारिज करते किया। कांग्रेस ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि सोरोस की ओर से वित्तपोषित फंड चलाने वाले कई लोगों के साथ बीजेपी नेताओं की सांठगांठ है।

वहीं, दूसरी तरफ संसद में विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के कई घटक दलों के सांसदों ने अडानी समूह से जुड़े मुद्दे पर गुरुवार को ‘देश नहीं बिकने देंगे’ लिखे बैनर लेकर विरोध प्रदर्शन किया.कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कुछ अन्य दलों के सांसद संसद भवन के ‘मकर द्वार’ के निकट एकत्र हुए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने ‘वी वांट जेपीसी’ के नारे लगाए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और कई अन्य वरिष्ठ नेता इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।

महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल पर सस्पेंस के बीच शरद पवार से मिले भतीजे अजीत, बेहद खास है मौका
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* महाराष्ट्र में कैबिनेट गठन को लेकर बने सस्पेंस के बीच डिप्टी सीएम अजित पवार ने गुरुवार को और एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की। अजीत पवार ने हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद शरद पवार से पहली बार मुलाकात ही। आज के दिन हुई इस मुलाकात के खास मायने हैं। दरअसल, एनसीपी (एसपी) नेता और राज्‍यसभा सदस्‍य शरद पवार आज 84 वर्ष के हो गए हैं। इस मौके पर भतीजे अजित पत्‍नी सुनेत्रा पवार और अपनी पार्टी के अन्‍य वरिष्‍ठ नेताओं प्रफुल पटेल, छगन भुजबल के साथ चाचा शरद पवार को जन्‍मदिन पर विश करने के लिए पहुंचे। सभी नेताओं ने शरद पवार को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। यह मुलाकात पवार के 6 जनपद आवास, दिल्ली में हुई।इसके बाद मीडिया से बात करते हुए अजित पवार ने कहा कि जन्मदिन के अवसर पर उन्होंने शरद पवार को शुभकामनाएं दी। अजित पवार ने कहा कि मुलाकात के दौरान परिवारिक बातचीत के साथ- साथ सियासी बातचीत भी हुई। मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी खबरें आ रही हैं कि आज दिल्‍ली में ही शरद पवार के जन्‍मदिन पर शाम को एक छोटी डिनर पार्टी रखी गई है. उसमें भी अजित पवार शिरकत करेंगे. हिंदुस्‍तान टाइम्‍स अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि केवल करीबी मित्रों को ही बुलाया गया है. अजित पवार के सहयोगी ने अखबार को कंफर्म करते हुए कहा कि डिप्‍टी सीएम जरूर शिरकत करेंगे. पत्‍नी सुनेत्रा पवार जाएंगी या नहीं इसको लेकर पुष्टि नहीं हो सकी. सूत्रों के मुताबिक गेस्‍ट लिस्‍ट में फारुक अब्‍दुल्‍ला और शिवसेना राज्‍यसभा सदस्‍य मिलिंद देवड़ा भी शामिल हैं. बता दें कि एनसीपी में टूट के बाद शरद और अजित पवार के बीच एक साल से अधिक वक्‍त के बाद ये पहली मुलाकात है। पिछले साल दिवाली में अजित पवार मिलने उनके घर गए थे लेकिन इस साल राज्‍य में हो रहे विधानसभा चुनावों के चलते दिवाली के मौके पर नहीं पहुंचे। लोकसभा चुनावों में अजित पवार ने शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ पत्‍नी सुनेत्रा पवार को चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन वो हार गईं। बाद में सुनेत्रा पवार को राज्‍यसभा भेजा गया। उसके बाद विधानसभा चुनाव में बारामती से ही शरद पवार ने अपनी पार्टी की तरफ से अजित के भतीजे युगेंद्र पवार को मैदान में उतारा। युगेंद्र एक लाख से अधिक वोटों से हार गए। शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीतिक के चाणक्य माने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में जिस तरह से सियासी बाजी पलटी और महायुति ने बंपर जीत हासिल की, ऐसे में एमवीए को करारी हाल मिली. इसमें भी जिस तरह का नुकसान शरद पवार की पार्टी को पहुंचा है, उसके बाद उनकी पार्टी के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े होने लगे हैं।
महाराष्ट्र में बाकी है सस्पेंस! कब होगा मंत्रिमंडल विस्तार, मुख्यमंत्री फडणवीस और अजित पवार दिल्ली पहुंचे, नहीं आए शिंदे

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महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन हो गया है। देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। वहीं, अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने उपमंत्री की कमान संभाल ली है। हालांकि, कैबिनेट विस्तार को लेकर मंथनों का दौरा जारी है। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जारी चर्चा के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार दोनों दिल्ली में हैं। जबकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नहीं गए। आज मंत्रालय बंटवारे और कैबिनेट विस्तार की तस्वीर साफ हो सकती हैं।

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महायुति में अब मंत्रिमंडल को लेकर गतिरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीच बुधवार देर रात को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और फडणवीस ने अमित शाह से उनके घर पर मुलाकात की। विधानसभा चुनावों में शानदार जीत के बाद पिछले सप्ताह महायुति सरकार के सत्ता में आने के बाद विभागों के आवंटन को लेकर अटकलों के बीच यह मुलाकात हुई। हालांकि इस मीटिंग में उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार मौजूद नहीं थे।

पावर शेयरिंग के फॉर्मूले पर सहमति बनी!

सूत्रों के मुताबिक पावर शेयरिंग के फॉर्मूले पर सहमति बन गई है। सूत्रों की मानें तो भाजपा 20 पोर्टफोलियो अपने पास रखेगी। वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के बीच बराबर का बंटवारा हुआ है। 10-10 पोर्टफोलियो शिवसेना और एनसीपी अपने पास रखेगी। सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी अपने पुराने मंत्रियों को ही पोर्टफोलियो देगा। वहीं, एनसीपी भी अपने पुराने मंत्रियों पर ही ज्यादा भरोसा कर रही है। मगर शिवसेना शिंदे कैंप अपने नए लोगों को मंत्री बना सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी के हिस्से के सिर्फ दो से तीन विभाग सहयोगी दलों के पास जा सकते है। बीजेपी अपने सहयोगी दलों को सिर्फ राजस्व और आवास हाउसिंग विभाग और पीडब्ल्यूडी देने की तैयारी में है। बीजेपी गृह विभाग के साथ ही शहरी विकास विभाग भी अपने पास रखना चाहती है और बदले में शिवसेना को राजस्व और पीडब्ल्यूडी देने को तैयार है। डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे नहीं माने तो अर्बन डेवलपमेंट शिवसेना और राजस्व बीजेपी के पास रहेगा।

किसके कोटे में कौन सा विभाग

बीजेपीः-गृह-शहरी विकास/ राजस्व (दोनों में से एक), लॉ एंड ज्यूडिशियरी, सामान्य प्रशासन, ग्रामीण विकास-बिजली ऊर्जा, सार्वजनिक लोक निर्माण, पर्यावरण, वन, आदिवासी जैसे सभी महत्वपूर्ण विभाग बीजेपी के पास रह सकते हैं।

शिवसेनाः- राजस्व, शहरी विकास दोनों में से एक, सार्वजनिक कार्य (PWD), श्रम, स्कूल शिक्षा, राज्य उत्पाद शुल्क, जल आपूर्ति और स्वच्छता, परिवहन विभाग शिवसेना को मिलने की संभावना है।

एनसीपीः- वित्त और योजना, हाउंसिंग आवास, चिकित्सा शिक्षा ( मेडिकल एजुकेशन), खाद्य और नागरिक आपूर्ति, महिला और बाल कल्याण, राहत और पुनर्वास, खाद्य और औषधि प्रशासन जैसे विभाग एनसीपी के पास बने रहने की संभावना है।

गृह विभाग को लेकर तकरार

बता दें कि महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 43 मंत्री हो सकते हैं। महायुति में पोर्टफोलियो को लेकर ही तकरार है। महायुति में असल झगड़ा भाजपा और शिवसेना के बीच था। पहले सीएम पद को लेकर खींचतान हुई। अब होम मिनिस्ट्री पद को लेकर गतिरोध रहा। एकनाथ शिंदे शिवसेना के लिए गृह विभाग मांग रहे थे, मगर भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी।