दिल्ली चुनाव में एआईएमआईएम की एंट्री, ओवैसी ने दिल्ली दंगों के आरोपी को दिया टिकट
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#delhi_chuna_2025_owaisi_gave_ticket_to_accused_of_delhi_riot_tahir_hussain
दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले ही सियासी बिसातें बिछने लगीं हैं। चुनाव आयोग की ओर से दिल्ली विधानसभा चुनाव तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) धुआंधार तरीके से अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर रही है। इसी क्रम में दिल्ली विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की भी एंट्री हो गई है। एआईएमआईएम ने भी अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। पार्टी ने दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को मुस्तफाबाद से टिकट दिया गया है। असदुद्दीन ओवैसी ने ताहिर हुसैन की उम्मीदवारी की औपचारिक रूप से ऐलान किया। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, एमसीडी पार्षद ताहिर हुसैन एआईएमआईएम में शामिल हुए। वह आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से हमारे उम्मीदवार होंगे। उनके परिवार के सदस्यों और समर्थकों ने आज मुझसे मुलाकात की और पार्टी में शामिल हुए। *बीजेपी हमलावर* ओवैसी की पार्टी ने दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को चुनावी मैदान में उतारा है। जिसके बाद बीजेपी हमलावर है। ओवैसी के इस फैसले पर बीजेपी ने निशाना साधा है और भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने कहा है कि ऐसे जिहादी को चुनाव मैदान में उतारकर दिल्ली के हिंदुओं को चुनौती देने की कोशिश की जा रही हैं। *“जिहादी को चुनाव मैदान में उतारकर...”* बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधा है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'जिस ताहिर हुसैन ने दिल्ली में सैकड़ो हिंदुओं की हत्या की साजिश रची थी। जिसके घर से हिंदुओं को मारने के लिए बम, पत्थर, गुलेल रखे थे। जिसने IB ऑफिसर अंकित शर्मा की हत्या 400 बार चाकुओं से गोद कर शव नाले में फेंक दिया था। ऐसे जिहादी को चुनाव मैदान में उतारकर दिल्ली के हिंदुओं को चुनौती देने की कोशिश की जा रही हैं। अगर दिल्ली में दुबारा दंगे करवाने की कोशिश की गई तो अंजाम तुम्हारी सात पीढ़ियां याद रखेंगी। *आप का हिस्सा रह चुके हैं ताहिर हुसैन* ताहिर हुसैन आम आदमी पार्टी का हिस्‍सा रहे हैं। फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में उनका नाम सामने आने के बाद उन्‍हें आरोपी बनाया गया। वह आम आदमी पार्टी से निगम पार्षद रह चुके हैं। लेकिन दंगों में नाम आने के बाद पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। कुछ दिनों पहले ही ताहिर हुसैन को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिली थी, जिसके बाद उनके फिर से राजनीति में सक्रिय होने की चर्चा हो रही थी। अब ओवैसी की पार्टी ने उन्‍हें अपना उम्‍मीदवार बनाया है। ताहिर हुसैन के चुनाव मैदान में उतरने से आम आदमी पार्टी की मुश्किल बढ़ सकती हैं। *अभी जेल में बंद हैं ताहिर हुसैन* दिल्ली की एक कोर्ट ने इस साल मई में 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में पार्षद ताहिर हुसैन को जमानत दे दी थी और कहा था कि उनकी भूमिका 'दूरस्थ प्रकृति की' थी और वह पहले ही तीन साल से अधिक समय हिरासत में बिता चुके हैं। हालांकि, जमानत मिलने के बाद भी ताहिर हुसैन जेल में बंद हैं, क्योंकि वह दंगों के अन्य मामलों में भी आरोपी हैं, जिसमें सांप्रदायिक दंगे के पीछे साजिश और वित्तपोषण से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग का मामला शामिल है।
अखिलेश-उद्धव के बाद लालू ने बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन, कहा- विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी करें
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#lalu_yadav_said_mamata_banerjee_should_get_the_leadership_of_india_alliance
* हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में करारी हार के बाद इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव एलायंस 'इंडिया' गठबंधन में नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं। दो राज्य में मिली पराजय का ठीकरा राहुल गांधी पर फोड़ा जा रहा है। जिसके बाद अब इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगी इसको लेकर सहयोगी दलों के बीच आपसी राय बनते हुए दिखाई दे रही है। इसी बीच लालू प्रसाद यादव का बयान चर्चा में है। लालू यादव चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गठबंधन के नेतृत्व करें। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने भी कह दिया है कि ममता के हाथों में नेतृत्व सौंप देना चाहिए।लालू यादव ने मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि इंडिया गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी को दे देना चाहिए। जब उनसे पूछा गया कि कांग्रेस को इस पर ऐतराज नहीं होगा? तो लालू यादव ने कहा कि कांग्रेस की आपत्ति का कोई मतलब नहीं है। *ममता बनर्जी के नाम पर सियासत तेज* बता दें, बीते दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते दिनों एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू इंडिया गठबंधन को लीड करने का दावा किया था। ममता बनर्जी ने महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव के परिणाम पर चर्चा करते हुए कहा था कि अगर उन्हें मौका मिलता है तो वह इंडिया गठबंधन को लीड करते हुए बेहतर करने का काम करेंगी। उनके इसी बयान के बाद से देशभर की सियासत में ममता बनर्जी के नाम पर सियासत तेज हो गयी है। *ममता बनर्जी ने क्या कहा?* शुक्रवार को उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा,'मैंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था, अब इसे संभालने का काम मोर्चे का नेतृत्व करने वालों पर है. अगर वे इसे नहीं चला सकते तो मैं क्या कर सकती हूं? मैं बस इतना कहूंगी कि सभी को साथ लेकर चलना होगा.' यह पूछे जाने पर कि वह एक मजबूत भाजपा विरोधी ताकत के रूप में अपनी साख को देखते हुए ब्लॉक की कमान क्यों नहीं संभाल रही हैं, बनर्जी ने कहा,'अगर मौका मिला तो मैं इसके सुचारू संचालन को सुनिश्चित करूंगी. मैं पश्चिम बंगाल से बाहर नहीं जाना चाहती, लेकिन मैं इसे यहीं से चला सकती हूं.' *लालू यादव के बयान के बड़े मायने* लालू प्रसाद यादव के इस बयान के बड़े मायने हैं। दरअसल, बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है। यहां कांग्रेस उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन में है। महागठबंधन में राजद के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी है। कांग्रेस हर चुनाव में राजद पर दबाव बनाती है और पिछले चुनाव में भी ऐसा दिख रहा था। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह दो साल पूरे कर चुके हैं। इन दो वर्षों में उन्होंने कभी भी तेजस्वी यादव को ठीक से स्वीकार नहीं किया। जब महागठबंधन सरकार थी तो इस तनातनी के बीच वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कांग्रेस के लिए दो और मंत्री पद मांगते रह गए। सीएम तब तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के पाले में गेंद फेंकते रहे। जब तक अखिलेश सिंह ने तेजस्वी से पटरी बैठाई, सरकार ही बदल गई। पुरानी बातें याद दिलाने की वजह यही कि कांग्रेस की दबाव की राजनीति को अभी ही लालू प्रसाद यादव नियंत्रित कर देना चाहते हैं।
मुंबई के कुर्ला में भीषण सड़क हादसा, 7 की मौत, 49 जख्मी
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#mumbai_kurla_best_bus_accident
* मुंबई के कुर्ला में बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बीईएसटी) की बस ने सोमवार रात कई लोगों को कुचल दिया। हादसे में अब तक 7 लोगों की मौत हो चुकी है। 49 घायलों का इलाज चल रहा है। घायलों को सायन और कुर्ला भाभा में भर्ती कराया गया है।सड़क हादसे के बाद पुलिस ने बड़ी कार्रवाई की है। पुलिस ने मुंबई हादसे में शामिल बेस्ट बस के चालक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। सोमवार रात को 9:50 बजे एल वार्ड के सामने अंजुम-ए-इस्लाम स्कूल के पास एसजी बारवे रोड पर यह हादसा हुआ। यात्रियों से भरी बस अनियंत्रित होकर भीड़भाड़ वाले इलाके में जा घुसी। तेज रफ्तार बस ने इस दौरान कई लोगों को रौंद दिया। आखिर में बस एक बिल्डिंग के आरसीसी कॉलम से टकराने के बाद रुक गई। लेकिन बिल्डिंग की बाउंड्री वॉल ढह गई। इस बीच बस ने 100 मीटर के दायरे में 40 वाहनों को टक्कर मार दी। इस भीषण हादसे में अब तक 7 लोगों की मौत हो गई है जबकि 49 घायल बताए जा रहे हैं, जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा है। कुर्ला बस हादसे में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। पुलिस जांच में सामने आया है कि ड्राइवर को बस चलाने का अनुभव नहीं था। वह पहली बार बस चला रहा था। इससे पहले वो हल्के वाहन यानि कार-वैन चलाया करता था। जांच में यह भी सामने आया है कि ड्राइवर को बेस्ट (बृहन्मुंबई विद्युत आपूर्ति और परिवहन) ने कॉन्ट्रैक्ट पर रखा था। बताया जा रहा है कि आरोपी ड्राइवर संजय मोरे सोमवार को पहली बार बस चला रहा था। वह 1 दिसंबर को ही कॉन्ट्रैक्ट ड्राइवर के रूप में बेस्ट में शामिल हुआ था। यह माना जा रहा है कि उसने ब्रेक की जगह एक्सलरेटर दबा दिया था। इसी वजह से यह हादसा हुआ। पुलिस ने आरोपी ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया है। वह देर रात से हिरासत में था।
भारत ने उठाया हिंदुओं पर हमले का मुद्दा तो बांग्लादेश ने उगली आग, आंतरिक मामलों में दखल न देने की हिदायत
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#bangladesh_asks_india_not_to_interfere_in_its_internal_affairs

* भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी बांग्लादेश दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने अपने बांग्लादेशी समकक्ष के साथ विदेश सचिव स्तर की बैठक की है। बैठक में कई मुद्दों पर बातचीत हुई है, जिसमें बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले और अगरतला में बांग्लादेशी मिशन पर हमले भी शामिल रहे हैं। लेकिन ढाका ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले को भ्रामक और गलत जानकारी करार देते हुए कहा कि किसी भी देश को उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सोमवार को अपने बांग्लादेशी समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन के साथ बैठक की। सोमवार की वार्ता के बाद जशीमुद्दीन ने कहा कि बांग्लादेश को दोनों देशों के लोगों के बीच विश्वास कायम करने के लिए भारत में नकारात्मक अभियान रोकने में दिल्ली के सक्रिय सहयोग की उम्मीद है। उन्होंने कहा, हमने उनका ध्यान आकर्षित किया और बांग्लादेश की जुलाई-अगस्त क्रांति और क्रांति के बाद यहां अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति कथित शत्रुतापूर्ण रवैये के बारे में भारतीय मीडिया में भ्रामक और गलत जानकारी के प्रसार के संबंध में उचित कदम उठाने की मांग की। *“किसी भी देश से आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की उम्मीद नहीं”* जशीमुद्दीन ने कहा कि ढाका ने दृढ़ता से कहा है कि बांग्लादेश में सभी धर्मों के अनुयायी स्वतंत्रता पूर्वक अपने धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं। उन्होंने कहा, साथ ही, हमने कहा कि किसी भी देश से हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की उम्मीद नहीं की जाती है और याद दिलाया कि बांग्लादेश अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से परहेज करता है और उन्हें भी हमारे प्रति समान सम्मान दिखाना चाहिए। *भारत ने उठाई हिंदुओं की सुरक्षा की मांग* वहीं, भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अवगत कराया कि नयी दिल्ली की इच्छा ढाका के साथ "सकारात्मक, रचनात्मक और पारस्परिक रूप से लाभप्रद" संबंध बनाने की है। मिसरी ने विदेश सचिव मोहम्मद जशीमुद्दीन से मुलाकात के बाद संवाददाताओं से कहा, ''आज की चर्चाओं ने हम दोनों को अपने संबंधों का आकलन करने का मौका दिया है। मैं अपने सभी वार्ताकारों के साथ स्पष्ट, सरल और रचनात्मक विचारों के आदान-प्रदान के आज के अवसर की सराहना करता हूं।'' उन्होंने कहा, ''मैंने इस बात पर जोर दिया कि भारत बांग्लादेश के साथ सकारात्मक, रचनात्मक और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध चाहता है।'' मिसरी ने संवाददाताओं से कहा, ''मैंने अपनी चिंताओं से अवगत कराया, जिनमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण से संबंधित चिंताएं भी शामिल थीं। हमने सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनयिक संपत्तियों पर हमलों की कुछ खेदजनक घटनाओं पर भी चर्चा की।'' *मोहम्मद यूनुस से भी मिले भारतीय विदेश सचिव* अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन से भी मुलाकात की। नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय (एमईए) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि इन बैठकों के दौरान मिसरी ने लोकतांत्रिक, स्थिर, शांतिपूर्ण, प्रगतिशील और समावेशी बांग्लादेश के लिए भारत के समर्थन पर प्रकाश डाला। इसमें कहा गया, ''उन्होंने बांग्लादेश के साथ आपसी विश्वास और सम्मान तथा एक-दूसरे की चिंताओं और हितों के प्रति पारस्परिक संवेदनशीलता के आधार पर सकारात्मक और रचनात्मक संबंध बनाने की भारत की इच्छा दोहराई।''
दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के देश छोड़ने पर प्रतिबंध, जानें किसने लगाया बैन*
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दक्षिण कोरियाई के राष्ट्रपति यून सुक योल पर अपने ही देश में बैन लगा दिया है। राष्ट्रपति यून सुक योल के देश छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। देश के न्याय मंत्रालय के अनुसार, राष्ट्रपति यून को मार्शल लॉ घोषित करने के लिए उनके खिलाफ शुरू की गई जांच के कारण किसी भी विदेश यात्रा या देश छोड़ने की अमुमति नहीं दी जाएगी। दरअसल सप्ताह भर पहले उन्होंने देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया था, इसे लेकर उनपर अराजकता के आरोप लग रहे हैं। पिछले हफ्ते ही यून सुक योल ने साउथ कोरिया में देश में इमर्जेंसी में मार्शल लॉ की घोषणा कर दी थी। यून ने 3 दिसंबर की रात को अचानक मार्शल लॉ घोषित कर दिया था और संसद में विशेष बल और हेलीकॉप्टर भेज दिए थे। विपक्ष के साथ उनकी पार्टी के सांसदों ने उनके आदेश को अस्वीकार करके उन्हें अपना फैसला वापस लेने के लिए मजबूर किया। जिसके बाद इस फैसले को पलट दिया गया। वहीं, यून ने शनिवार को मार्शल लॉ लगाने पर जनता से माफी भी मांगी थी। राष्ट्रपति यून सुक-योल शनिवार को संसद में महाभियोग प्रस्ताव से बाल-बाल बच गए, जबकि संसद के बाहर जुटी भारी भीड़ ने उन्हें पद से हटाने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मार्शल लॉ अब कभी भी देश में नहीं लगाया जाएगा, मेरे भविष्य का फैसला मेरी पार्टी करने के लिए स्वतंत्र है। हालांकि, पद पर बने रहने के बावजूद, यून और उनके करीबी सहयोगियों पर कई जांच चल रही हैं, जिसमें कथित विद्रोह की जांच भी शामिल है। दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय पुलिस साउथ कोरिया के पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून और दूसरे टॉप अधिकारियों पर कथित देशद्रोह के मामले की जांच कर रही है। बीते रविवार को पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून को भी हिरासत में ले लिया गया।
हिंदुओं पर हमले बर्दाश्‍त नहीं” बांग्लादेशी समकक्ष के साथ वार्ता में भारतीय विदेश सचिव की दो टूक
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#bangladesh_violence_foreign_secretary_vikram_misri_bangladesh_tour *
* भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री सोमवार (9 दिसंबर) को बांग्लादेश पहुंचे। विक्रम मिस्री ने बांग्लादेश पहुंचने के बाद वहां की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद युनूस, फॉरेन अफेयर्स एडवाइजर मोहम्मद तौहीद हुसैन और अपने बांग्लादेशी समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन के साथ अलग-अलग मीटिंग की। विदेश मंत्रालय के अनुसार, इन बैठकों में विदेश सचिव ने एक स्थिर, शांतिपूर्ण, प्रोग्रेसिव लोकतांत्रिक और समावेशी बांग्लादेश को लेकर भारत के समर्थन को दोहराया। अगस्त में बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद किसी सीनियर भारतीय अधिकारी का यह पहला दौरा था। सोमवार को ढाका में बांग्लादेश के विदेश सलाहकार (विदेश मंत्री) मोहम्मद तौहीद हुसैन से मुलाकात के बाद विक्रम मिस्री ने कहा, 'आज की चर्चाओं ने हम दोनों को अपने संबंधों का जायजा लेने का अवसर दिया है। मैं आज अपने सभी वार्ताकारों के साथ विचारों के स्पष्ट और रचनात्मक आदान-प्रदान के अवसर के लिए सराहना करता हूं।' वहीं, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने अपने बांग्लादेशी समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन के साथ यह बैठक की। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने अपने समकक्ष मोहम्मद जशीमुद्दीन के साथ बैठक के दौरान अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कल्याण सहित भारत की चिंताओं से अवगत कराया। उन्होंने कहा, हमने सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनयिक संपत्तियों पर हमलों की कुछ खेदजनक घटनाओं पर भी चर्चा की। हम कुल मिलाकर, बांग्लादेश के अधिकारियों द्वारा इन सभी मुद्दों पर एक रचनात्मक दृष्टिकोण की उम्मीद करते हैं। हम संबंधों को सकारात्मक, दूरदर्शी और रचनात्मक दिशा में आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। *भारत ने इन मुद्दों को उठाया* विक्रम मिस्री ने अपनी बैठक में बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के मुद्दे पर जोर दिया है। विदेश सचिव ने बैठक के दौरान बांग्लादेश में हिंदुओं समेत अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे हिंसक हमलों, धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ और आगजनी की बढ़ती घटनाओं का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने इस पर चिंता जताते हुए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही। पिछले दिनों इस्कॉन से जुड़े कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उन पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने दास की गिरफ्तारी के केस को भी निष्पक्षता से देखे जाने की अपील की। *हसीना सरकार जाने के बाद पहला दौरा* बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के अपदस्थ होने के बाद भारत की ओर से यह पहला उच्चस्तरीय दौरा है। बांग्लादेश में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के चलते इस साल 5 अगस्त को उस समय की पीएम शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। हसीना ने ढाका छोड़कर भारत में शरण ली है। विक्रम मिस्री की यह यात्रा हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर नई दिल्ली और ढाका के बीच संबंधों में बढ़ते तनाव के बीच हो रही है।
मुर्शिदाबाद में बनेगी बाबरी मस्जिद! ममता बनर्जी के करीबी के ऐलान से सियासी उबाल
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#humayun_kabir_new_babri_masjid_in_west_bengal
* राम मंदिर के उद्घाटन हुए एक साल होने वाले है। मंदिर-मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट ने सुलझा दिया। जिसके बाद रामलला मंदिर में विराजमान हो गए। वहीं, अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन भी अलॉट कर दी गई है। लेकिन बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। आज भी बाबरी मस्जिद के नाम पर राजनीति की जा रहा है। अब पश्चिम बंगाल में नई बाबरी मस्जिद बनने की बात की जा रही है। पश्चिम बंगाल के तृणमूल (टीएमसी) के भरतपुर के विधायक हुमायूं कबीर ने नई बाबरी मस्जिद बनाए जाने का दावा किया है। हुमायूं कबीर ने कहा, मुर्शिदाबाद इलाके के बेलडांगा में नई बाबरी मस्जिद बनायी जाएगी। उन्होंने दावा किया है कि 6 दिसंबर 2025 को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की नींव रखी जाएगी। *हुमायूं कबीर खुद करेंगे एक करोड़ रुपए दान* हमेशा विवादित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले तृणमूल कांग्रेस के भरतपुर से विधायक हुमायूं कबीर ने बंगाल में बाबरी मस्जिद खड़ी करने का लिए पूरा खाका भी तैयार कर लिया है। हुमायूं ने कहा, इसके लिए पैसे की कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि वे खुद इसके लिए एक करोड़ रुपए देंगे। एक सवाल के जवाब में भरतपुर के तृणमूल विधायक हुमायूं कबीर ने कहा, उलटाडांगा और बहरमपुर इलाके में जितने भी मदरसे हैं, उनके अध्यक्ष और महासचिवों को मिलाकर 100 या उससे अधिक लोगों की एक बाबरी कमेटी बनाई जाएगी। *मुख्य अतिथि के तौर पर ममता बनर्जी को मिलेगा आमंत्रण* टीएमसी विधाक ने दावा किया है कि मस्जिद का पूरा निर्माण 3 से 5 साल में पूरा होगा। उन्होंने कहा कि अयोध्या में जो बाबरी मस्जिद थी, उससे भी बड़ी मस्जिद बनाई जाएगी। विधायक ने कहा कि वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी निमंत्रण भेजेंगे। उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में बुलाऊंगा। ट्रस्ट से कहूंगा कि उन्हें आमंत्रित करने के लिए। *अचानक बाबरी मस्जिद की याद क्यों गई?* अब सवाल ये उठता है कि आखिर हुमायूं कबीर को अचानक बाबरी मस्जिद की याद क्यों आ गई? वैसे खुद टीएमसी नेता ने अचानक लिए इस निर्णय पर कहा, इस्लाम धर्मावलंबी लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैंने यह घोषणा की है। वैसे हुमायूं कबीर की राजनीति ही हिंदू मुस्लिम के नाम पर चलती है। मुस्लिम वोटबैंक के लिए वो ऐसे विवादित बयानों के लिए ही जाने जाते है। हुमायूं कबीर जिस भरतपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। वो मुर्शीदाबाद में आती है। जहां की 70 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है। उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह मस्जिद बनाई जाएगी।
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में ही क्यों ली शरण?

#whybasharalassadtakenasylumin_russia

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सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के अधिनायकवादी शासन का अंत हो गया।हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने 11 दिन के अंदर सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट कर दिया, इस बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद आनन-फानन में इस्तीफा देकर मॉस्को पहुंच गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तख्तापलट से पहले ही उनका परिवार भी मॉस्को पहुंच चुका था।

13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां?

सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना?

रूस असद के लिए सुरक्षित ठिकाना

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।

हालांकि, ईरान में इजाराइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।

रूस से सीरिया ने मांगी मदद

असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।

हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे।

2015 में असद सरकार गिरने वाली थी, लेकिन इसे रूस ने अवसर की तरह लिया और असद सरकार को बचाने के लिए सीधा दखल दे दिया। इसके साथ ही रूसी सेना की सीरिया में एंट्री हो गई और रूस की मिडिल ईस्ट में भी मौजूदगी आ गई। पिछले महीने तक रूस ने असद सरकार को सफलता पूर्वक विद्रोहियों से बचा रखा था।

क्या फायदा हो रहा था रूस को?

साल 2015 में रूसी राष्‍ट्रपति ने हजारों की तादाद में सैनिक भेजकर राष्‍ट्रपति असद को मजबूत किया। सीरिया को सैन्य सहायता के बदले सीरियाई अधिकारियों ने रूस को हमीमिम में हवाई अड्डे और टार्टस में नौसैनिक अड्डे पर 49 साल का पट्टा दिया। इसके साथ ही रूस ने पूर्वी भूमध्य सागर में एक महत्वपूर्ण पैर जमा लिया था। ये अड्डे अफ्रीका में और बाहर रूसी सैन्य ठेकेदारों की आवाजाही के लिए अहम केंद्र बन गए थे।

बशर अल असद मिडिल ईस्‍ट में रूस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। रूस ने असद के लिए हर तरह से मदद की। अब असद के जाने के बाद रूस के लिए इसकी भरपाई मुश्किल होगी। यह रूस के लिए बड़ा झटका है।

क्या राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का “पावर” खत्म हो गया है?

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हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति ने झप्पर-फाड़ सफलता हासिल की। वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार एनसीपी के महाविकास अघाड़ी के लिए ये नतीजे किसी बुरे सपने की तरह आए। महाराष्ट्र चुनाव के ये नतीजे अगर किसी को सबसे अधिक निराश करने वाले हैं, तो वो हैं शरद पवार। दरअसल पवार कई बार कह चुके हैं कि 2026 में उनका राज्य सभा सदस्य का कार्यकाल खत्म होने के बाद वो सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगे। राजनीति की अपनी इस अंतिम पारी में इतने निराशाजनक प्रदर्शन की उम्मीद तो शायद शरद पवार को भी नहीं रही होगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या शरद पवार का 'करिश्मा' ख़त्म हो गया?

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर एक वाक्य धूम मचा रहा था. वो था कि 'जहाँ बूढ़ा आदमी चल रहा है, वहाँ अच्छा हो रहा है।' शरद पवार के गुट के उम्मीदवार यह सोच रहे थे कि वो अपने प्रमुख नेता के 'जादू' से विधानसभा पहुँच जाएंगे। यही कारण था कि जहां एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां शरद पवार की रैलियों की ख़ूब मांग थी। 84 वर्षीय शरद पवार ने भी इस मांग के मद्देनज़र राज्य भर में 69 सार्वजनिक बैठकें कीं। वो समय-समय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए अपना राजनीतिक रुख़ बताते रहे। और उन्होंने लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास भी किया। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी शरद पवार को 86 में से सिर्फ 10 सीटें ही मिलीं।

एक समय था जब शरद पवार के पास मजबूत जनाधार हुआ करता था लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने पवार के राजनीतिक जीवन के ग्राफ को काफी नीचे की ओर धकेल दिया है। ऐसे में ये लगने लगा है कि एक तरफ उम्र भी उनका साथ नहीं दे रही और दूसरी ओर सियासी समीकरण भी उनके पाले में नहीं हैं। शरद पवार इतना मजबूर हो जाएंगे, ये महाराष्ट्र कि सियासी पंडितों के लिए वाकई चौंकाने वाली बात है। शरद पवार हमेशा से जमीनी नेता रहे लेकिन वर्तमान राजनीतिक गोटियां उनके हाथ से लगातार फिसल रही हैं।

लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन पांच महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी की लुटिया डूब गई। महाराष्ट्र के इन नतीजों ने पवार की पार्टी के भविष्य पर भी सवाल उठा दिए हैं। कुछ महीने पहले बारामती लोकसभा से जीत हासिल करने वाले शरद पवार को बारामती विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई। इसलिए एक बार फिर से शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव पर सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या शरद पवार एक बार फिर राजनीति में खड़े हो पाएंगे? साथ ही ये भी कि शरद पवार और उनकी पार्टी का भविष्य क्या होगा?

हालांकि, ऐसा नहीं है कि पवार को लगा यह पहला झटका है। इससे पहले उन्हें एक ऐसा ही झटका उस समय लगा था जब उनके भतीजे अजित पवार ने कुछ विधायकों के साथ मिलकर एनसीपी में बगावत कर शिवसेना और बीजेपी की सरकार को समर्थन दे दिया था। उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। यह पवार को लगा बहुत बड़ा झटका था। अजित पवार ने अपने चाचा से पार्टी और पार्टी का चुनाव निशान भी हथिया लिया था।

इस बार भी चुनाव परिणाम के बाद उठ रहे सवालों का शरद पवार खुद जवाब दे चुके हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद शरद पवार ने कहा इस नतीजे के बाद कोई भी घर बैठ गया होगा। लेकिन मैं घर पर नहीं बैठूंगा। हमने नहीं सोचा था कि हमारी युवा पीढ़ी को ये परिणाम मिलेगा। उनका आत्मविश्वास बढ़ना चाहिए। उन्हें फिर से खड़ा करना, उनका आत्मविश्वास बढ़ाना, नए जोश के साथ एक उत्पादक पीढ़ी तैयार करना मेरा कार्यक्रम होगा।

पटपड़गंज से सिसोदिया की जगह अवध ओझा क्यों, सियासी मजबूरी या दांव?

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आम आदमी पार्टी ने अपनी दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। आम आदमी पार्टी की दूसरी लिस्ट में 20 उम्मीदवारों के नाम हैं। इस लिस्ट में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी में नंबर-2 माने जाने वाले दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीट बदल दी गई। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज से नहीं बल्कि जंगपुरा से मैदान में होंगे। वहीं, हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले शिक्षाविद् अवध ओझा को मनीष सिसोदिया की जगह पटपड़गंज से मैदान में उतारा गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मनीष सिसोदिया ने यह सीट क्यों बदली?

आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया को सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। केजरीवाल के साथ ‘परिवर्तन’ के दौर से मनीष सिसोदिया के रिश्ते हैं। अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया तो सिसोदिया उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। पटपड़गंज सीट को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। 2013, 2015 और 2020 के चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज सीट से विधायक चुने गए, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी सीट बदल दी है। माना जा रहा है कि सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने यह बड़ा फेर बदल किया है। सिसोदिया की सीट बदल कर और पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को उतारकर बड़ा सियासी दांव केजरीवाल ने चला है।

आंकड़ें क्या कहते हैं?

पतपड़गंज सीट पर पिछले 3 विधानसभा चुनाव से आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को चुनाव में जीत मिल रही थी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में हार जीत का अंतर कम था। मनीष सिसोदिया को 70163 वोट मिले थे वहीं बीजेपी के रविंदर सिंह नेगी को 66956 वोट मिले थे। मनीष सिसोदिया को 49.51 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार को 47.25 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के लक्ष्मण रावत को महज 1.98 प्रतिशत वोट ही मिले थे। मतगणना के दौरान कभी सिसोदिया तो कभी नेगी आगे दिखाई देते रहे। 10वें राउंड तक बीजेपी के प्रत्याशी पीछे चल रहे थे, लेकिन 11वें राउंड में उन्होंने काफी अंतर से बढ़त बना ली थी।

बतौर विधायक बहुत अधिक सक्रिय नहीं थे सिसोदिया

मनीष सिसोदिया पिछले 5 साल के दौरान लंबे समय तक जेल में रहे। उससे पहले भी वो शराब घोटाले और डिप्टी सीएम होने के कारण बहुत अधिक समय अपने क्षेत्र के लोगों को नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में आम आदमी पार्टी को एक आशंका थी कि कहीं उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल न बन जाए। सिसोदिया की जगह अवध ओझा को मैदान में उतारे जाने के पिछे इसे भी एक अहम कारण माना जा रहा है।

सियासी समीकरण के चलते बदली गई सीट

पटपड़गंज ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों का दबदबा है। इसके अलावा उत्तराखंडी वोटर भी बड़ी संख्या में है। केजरीवाल ने सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए पटपड़गंज सीट से सिसोदिया की जगह अवध ओझा पर विश्वास जताया है। अवध ओझा के उतरने से ब्राह्मण समाज के वोटों का सियासी लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा गुर्जर वोटों में भी सेंधमारी करने में ओझा सफल हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर वो कहते हैं कि गुर्जर समाज के लोगों से उनकी काफी अच्छी दोस्ती है और वो उनके लिए हमेंशा तन मन धन से तैयार रहते हैं। कई वीडियो में ओझा खुलकर गुर्जर समाज की तारीफ करते नजर आते हैं। पटपड़गंज इलाके में काफी कोचिंग सेंटर चलते हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग प्रतियोगी परीक्षा और सीए की तैयारी करते हैं। माना जा रहा है कि अवध को इसीलिए आम आदमी पार्टी ने पटपड़गंज से प्रत्याशी बनाया है।