सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में ही क्यों ली शरण?

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सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के अधिनायकवादी शासन का अंत हो गया।हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोही गुटों ने 11 दिन के अंदर सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का तख्तापलट कर दिया, इस बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद आनन-फानन में इस्तीफा देकर मॉस्को पहुंच गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तख्तापलट से पहले ही उनका परिवार भी मॉस्को पहुंच चुका था।

13 दिन के अंदर विद्रोही बलों ने अलेप्पो से लेकर हमा तक एक के बाद एक शहरों पर कब्जा किया और फिर राजधानी दमिश्क पर धावा बोल दिया। विद्रोहियों का यह अभियान कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शनिवार-रविवार के बीच दमिश्क घेरने के बाद उसने दोपहर तक राजधानी पर कब्जा भी कर लिया। विद्रोही संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही संगठनों के दमिश्क पहुंचने के बाद सबकी जुबान पर एक ही सवाल रहा- आखिर बशर अल-असद हैं कहां?

सोशल मीडिया पर उनके विमान पर हमले की खबरें भी तेजी से वायरल हुईं। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि उनका प्लेन क्रैश हो गया और असद की मौत से जुड़ी चर्चाएं भी सामने आईं। इस बीच रूस ने इन सभी अफवाहों पर लगाम लगाते हुए साफ किया कि असद और उनके परिवार को उसने शरण दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सीरियाई राष्ट्रपति ने सत्ता छोड़ने से पहले रूस को ही क्यों चुना?

रूस असद के लिए सुरक्षित ठिकाना

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में रूस का नेतृत्व करने वाले मिखाइल उल्यानोव ने अपने टेलीग्राम हैंडल पर कहा- रूस कभी मुश्किल हालात में अपने दोस्तों को नहीं छोड़ता। वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, असद को मिस्र और जॉर्डन की सलाह पर रूस के मॉस्को पहुंचाया गया। दूसरी तरफ ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि असद कुछ समय बाद ही ईरान की राजधानी तेहरान में शरण ले सकते हैं।

हालांकि, ईरान में इजाराइली खुफिया तंत्र की मौजूदगी और उसके बढ़ते हमलों ने इस देश को असद के लिए अब सुरक्षित नहीं छोड़ा है। कुछ दिनों पहले ही ईरान में हमास के प्रमुख इस्माइल हानिया को इस्राइल ने कथित तौर पर मार गिराया था। वहीं, कई परमाणु वैज्ञानिकों और अपने दुश्मनों को इस्राइल ने ईरान की ही जमीन में खुफिया अभियानों में मारा है। ऐसे में ईरान के मुकाबले रूस बशर अल-असद के लिए ज्यादा सुरक्षित ठिकाना है।

रूस से सीरिया ने मांगी मदद

असद के 20 साल के शासन के दौरान रूस और ईरान ने उनकी सत्ता का समर्थन किया। जबकि पश्चिमी देशों ने लगातार उन पर सीरियाई लोगों के खिलाफ कठोरता बरतने का आरोप लगाया। 2011 के बाद सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने असद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और कई विद्रोही संगठनों को वित्तीय सहायता और हथियार मुहैया कराए थे। यह संगठन बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएआईएस) को मजबूत करने में बड़ी भूमिका में रहे, जिसके खिलाफ अमेरिका को खुद भी मोर्चा संभालना पड़ा।

हालांकि, इस पूरे गृह यु्ध के दौरान रूस और ईरान असद की सत्ता के साथ खड़े रहे।

2015 में असद सरकार गिरने वाली थी, लेकिन इसे रूस ने अवसर की तरह लिया और असद सरकार को बचाने के लिए सीधा दखल दे दिया। इसके साथ ही रूसी सेना की सीरिया में एंट्री हो गई और रूस की मिडिल ईस्ट में भी मौजूदगी आ गई। पिछले महीने तक रूस ने असद सरकार को सफलता पूर्वक विद्रोहियों से बचा रखा था।

क्या फायदा हो रहा था रूस को?

साल 2015 में रूसी राष्‍ट्रपति ने हजारों की तादाद में सैनिक भेजकर राष्‍ट्रपति असद को मजबूत किया। सीरिया को सैन्य सहायता के बदले सीरियाई अधिकारियों ने रूस को हमीमिम में हवाई अड्डे और टार्टस में नौसैनिक अड्डे पर 49 साल का पट्टा दिया। इसके साथ ही रूस ने पूर्वी भूमध्य सागर में एक महत्वपूर्ण पैर जमा लिया था। ये अड्डे अफ्रीका में और बाहर रूसी सैन्य ठेकेदारों की आवाजाही के लिए अहम केंद्र बन गए थे।

बशर अल असद मिडिल ईस्‍ट में रूस के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। रूस ने असद के लिए हर तरह से मदद की। अब असद के जाने के बाद रूस के लिए इसकी भरपाई मुश्किल होगी। यह रूस के लिए बड़ा झटका है।

क्या राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का “पावर” खत्म हो गया है?

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हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति ने झप्पर-फाड़ सफलता हासिल की। वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना, कांग्रेस और शरद पवार एनसीपी के महाविकास अघाड़ी के लिए ये नतीजे किसी बुरे सपने की तरह आए। महाराष्ट्र चुनाव के ये नतीजे अगर किसी को सबसे अधिक निराश करने वाले हैं, तो वो हैं शरद पवार। दरअसल पवार कई बार कह चुके हैं कि 2026 में उनका राज्य सभा सदस्य का कार्यकाल खत्म होने के बाद वो सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगे। राजनीति की अपनी इस अंतिम पारी में इतने निराशाजनक प्रदर्शन की उम्मीद तो शायद शरद पवार को भी नहीं रही होगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या शरद पवार का 'करिश्मा' ख़त्म हो गया?

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर एक वाक्य धूम मचा रहा था. वो था कि 'जहाँ बूढ़ा आदमी चल रहा है, वहाँ अच्छा हो रहा है।' शरद पवार के गुट के उम्मीदवार यह सोच रहे थे कि वो अपने प्रमुख नेता के 'जादू' से विधानसभा पहुँच जाएंगे। यही कारण था कि जहां एनसीपी (एसपी) के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे, वहां शरद पवार की रैलियों की ख़ूब मांग थी। 84 वर्षीय शरद पवार ने भी इस मांग के मद्देनज़र राज्य भर में 69 सार्वजनिक बैठकें कीं। वो समय-समय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए अपना राजनीतिक रुख़ बताते रहे। और उन्होंने लोगों को अपने पक्ष में करने का प्रयास भी किया। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी शरद पवार को 86 में से सिर्फ 10 सीटें ही मिलीं।

एक समय था जब शरद पवार के पास मजबूत जनाधार हुआ करता था लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने पवार के राजनीतिक जीवन के ग्राफ को काफी नीचे की ओर धकेल दिया है। ऐसे में ये लगने लगा है कि एक तरफ उम्र भी उनका साथ नहीं दे रही और दूसरी ओर सियासी समीकरण भी उनके पाले में नहीं हैं। शरद पवार इतना मजबूर हो जाएंगे, ये महाराष्ट्र कि सियासी पंडितों के लिए वाकई चौंकाने वाली बात है। शरद पवार हमेशा से जमीनी नेता रहे लेकिन वर्तमान राजनीतिक गोटियां उनके हाथ से लगातार फिसल रही हैं।

लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन पांच महीने बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में एनसीपी की लुटिया डूब गई। महाराष्ट्र के इन नतीजों ने पवार की पार्टी के भविष्य पर भी सवाल उठा दिए हैं। कुछ महीने पहले बारामती लोकसभा से जीत हासिल करने वाले शरद पवार को बारामती विधानसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल पाई। इसलिए एक बार फिर से शरद पवार के राजनीतिक प्रभाव पर सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या शरद पवार एक बार फिर राजनीति में खड़े हो पाएंगे? साथ ही ये भी कि शरद पवार और उनकी पार्टी का भविष्य क्या होगा?

हालांकि, ऐसा नहीं है कि पवार को लगा यह पहला झटका है। इससे पहले उन्हें एक ऐसा ही झटका उस समय लगा था जब उनके भतीजे अजित पवार ने कुछ विधायकों के साथ मिलकर एनसीपी में बगावत कर शिवसेना और बीजेपी की सरकार को समर्थन दे दिया था। उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। यह पवार को लगा बहुत बड़ा झटका था। अजित पवार ने अपने चाचा से पार्टी और पार्टी का चुनाव निशान भी हथिया लिया था।

इस बार भी चुनाव परिणाम के बाद उठ रहे सवालों का शरद पवार खुद जवाब दे चुके हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद शरद पवार ने कहा इस नतीजे के बाद कोई भी घर बैठ गया होगा। लेकिन मैं घर पर नहीं बैठूंगा। हमने नहीं सोचा था कि हमारी युवा पीढ़ी को ये परिणाम मिलेगा। उनका आत्मविश्वास बढ़ना चाहिए। उन्हें फिर से खड़ा करना, उनका आत्मविश्वास बढ़ाना, नए जोश के साथ एक उत्पादक पीढ़ी तैयार करना मेरा कार्यक्रम होगा।

पटपड़गंज से सिसोदिया की जगह अवध ओझा क्यों, सियासी मजबूरी या दांव?

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आम आदमी पार्टी ने अपनी दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। आम आदमी पार्टी की दूसरी लिस्ट में 20 उम्मीदवारों के नाम हैं। इस लिस्ट में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के बाद पार्टी में नंबर-2 माने जाने वाले दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की सीट बदल दी गई। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज से नहीं बल्कि जंगपुरा से मैदान में होंगे। वहीं, हाल ही में आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले शिक्षाविद् अवध ओझा को मनीष सिसोदिया की जगह पटपड़गंज से मैदान में उतारा गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मनीष सिसोदिया ने यह सीट क्यों बदली?

आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष सिसोदिया को सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। केजरीवाल के साथ ‘परिवर्तन’ के दौर से मनीष सिसोदिया के रिश्ते हैं। अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया तो सिसोदिया उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। पटपड़गंज सीट को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। 2013, 2015 और 2020 के चुनाव में सिसोदिया पटपड़गंज सीट से विधायक चुने गए, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी सीट बदल दी है। माना जा रहा है कि सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने यह बड़ा फेर बदल किया है। सिसोदिया की सीट बदल कर और पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को उतारकर बड़ा सियासी दांव केजरीवाल ने चला है।

आंकड़ें क्या कहते हैं?

पतपड़गंज सीट पर पिछले 3 विधानसभा चुनाव से आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को चुनाव में जीत मिल रही थी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में हार जीत का अंतर कम था। मनीष सिसोदिया को 70163 वोट मिले थे वहीं बीजेपी के रविंदर सिंह नेगी को 66956 वोट मिले थे। मनीष सिसोदिया को 49.51 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार को 47.25 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के लक्ष्मण रावत को महज 1.98 प्रतिशत वोट ही मिले थे। मतगणना के दौरान कभी सिसोदिया तो कभी नेगी आगे दिखाई देते रहे। 10वें राउंड तक बीजेपी के प्रत्याशी पीछे चल रहे थे, लेकिन 11वें राउंड में उन्होंने काफी अंतर से बढ़त बना ली थी।

बतौर विधायक बहुत अधिक सक्रिय नहीं थे सिसोदिया

मनीष सिसोदिया पिछले 5 साल के दौरान लंबे समय तक जेल में रहे। उससे पहले भी वो शराब घोटाले और डिप्टी सीएम होने के कारण बहुत अधिक समय अपने क्षेत्र के लोगों को नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में आम आदमी पार्टी को एक आशंका थी कि कहीं उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल न बन जाए। सिसोदिया की जगह अवध ओझा को मैदान में उतारे जाने के पिछे इसे भी एक अहम कारण माना जा रहा है।

सियासी समीकरण के चलते बदली गई सीट

पटपड़गंज ब्राह्मण और गुर्जर वोटरों का दबदबा है। इसके अलावा उत्तराखंडी वोटर भी बड़ी संख्या में है। केजरीवाल ने सीट के सियासी समीकरण को देखते हुए पटपड़गंज सीट से सिसोदिया की जगह अवध ओझा पर विश्वास जताया है। अवध ओझा के उतरने से ब्राह्मण समाज के वोटों का सियासी लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है। इसके अलावा गुर्जर वोटों में भी सेंधमारी करने में ओझा सफल हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर वो कहते हैं कि गुर्जर समाज के लोगों से उनकी काफी अच्छी दोस्ती है और वो उनके लिए हमेंशा तन मन धन से तैयार रहते हैं। कई वीडियो में ओझा खुलकर गुर्जर समाज की तारीफ करते नजर आते हैं। पटपड़गंज इलाके में काफी कोचिंग सेंटर चलते हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग प्रतियोगी परीक्षा और सीए की तैयारी करते हैं। माना जा रहा है कि अवध को इसीलिए आम आदमी पार्टी ने पटपड़गंज से प्रत्याशी बनाया है।

आप बंगाल-बिहार-ओडिशा कब्जा लेंगे और हम क्या बैठकर लॉलीपॉप खाएंगे”, बीएनपी नेता के बयान पर भड़कीं ममता

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बांग्लादेश में जारी अशांति और वहां के कट्टरपंथी तत्वों के उभार के बीच बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) नेताओं की ओर से भारत को लगातार धमकियां दी जा रही हैं। इस बीच बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को पलटवार करते हुए कड़ा संदेश दिया। ममता बनर्जी ने सोमवार को बंगाल विधानसभा में कहा, कुछ लोग कह रहे हैं कि वो बिहार पर कब्जा करेंगे। ओडिशा पर कब्जा करेंगे। मैं उनसे कहती हूं कि भाई आप अच्छे रहिए, स्वस्थ रहिए और सुंदर रहिए। आपमें तो क्या किसी में भी इतनी बड़ी हिम्मत नहीं है कि वो बांगला, बिहार और ओडिशा सब पर कब्जा कर लेंगे और हम बैठकर लॉलीपॉप खाएंगे। ऐसा सोचने की कोई जरूरत नहीं है।दरअसल बांग्लादेश के कुछ नेताओं ने हैरान करने वाला बयान देते हुए कहा है कि बंगाल, बिहार और ओडिशा पर बांग्लादेश के वैध दावा है।

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा को लेकर भारत में विरोध-प्रदर्शन तेज हो रहे हैं। इस बीच ममता बनर्जी ने सोमवार को बंगाल विधानसभा सभा में बांग्लादेश का मुद्दा उठाया।सोमवार को मुख्यमंत्री ने एक बार फिर साफ किया कि वह पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने साफ कहा कि हिंदू या मुसलमान दंगा नहीं करते हैं। दंगा कुछ असामाजिक लोग करते हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा में बोलते हुए ममता बनर्जी ने राज्य के लोगों से शांत रहने और बांग्लादेश में दिए जा रहे उत्तेजक बयानों से गुस्सा न होने का आग्रह किया। उन्होंने ये भी कहा कि पश्चिम बंगाल हमेशा केंद्र द्वारा लिए गए किसी भी फैसले के साथ खड़ा रहेगा।

ममता बनर्जी ने भड़काऊ बयानों से प्रभावित न होने की अपील करते हुए कहा कि हमारे यहां के इमामों ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा की है। उन्होंने कहा, 'हिंदुओं और मुसलमानों तथा अन्य सभी समुदायों की रगों में एक ही खून बहता है। हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पश्चिम बंगाल में स्थिति को खराब न होने दिया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा, पश्चिम बंगाल देश का पहला राज्य है जहां जाति, पंथ या समुदाय से ऊपर उठकर लोगों ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के खिलाफ सामूहिक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ ही मीडिया से भी पड़ोसी देश की स्थिति पर जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करने की अपील की।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार और पार्टी तृणमूल कांग्रेस, विदेश मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का पालन करेगी। उन्होंने कहा, 'हमारे विदेश सचिव बातचीत के लिए बांग्लादेश में हैं। हमें इस मुद्दे पर जरूरत से ज्यादा नहीं बोलना चाहिए। हमें नतीजे का इंतजार करना चाहिए। हम जिम्मेदार नागरिक हैं। हमारा देश एकजुट है।

बता दें कि बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री सोमवार को ढाका पहुंचे। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों विशेषतौर पर हिंदू समुदाय और उनके धार्मिक स्थलों को कथित तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। विक्रम मिस्री की यात्रा विदेश कार्यालय परामर्श में भाग लेने के लिए है, जो द्विपक्षीय मुद्दों को संबोधित करने और संवाद को बढ़ावा देने का एक तंत्र है।

इससे पहले सितंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर और बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन के बीच न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान हुई बैठक हुई थी। शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद यह पहली उच्च स्तरीय बातचीत थी, जिसमें तनावपूर्ण माहौल के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

रूस के 3 दिवसीय दौरे पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, पुतिन से हो सकती है बातचीत, जाने क्यों अहम है ये दौरा?

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केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस दौरे पर हैं। राजनाथ सिंह 10 दिसंबर तक रूस की यात्रा पर रहेंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आईएनएस तुशील के कमिशनिंग में हिस्सा लेने के लिए रूस की राजधानी मॉस्को पहुंचे हैं। इस दौरान वो अपने समकक्ष आंद्रे बेलौसोव के साथ-साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बातचीत करेंगे। इसके साथ ही वो सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग की 21वीं बैठक की सह-अध्यक्षता भी करेंगे। इस दौरान कई वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होगी।

रविवार (8 दिसंबर) देर रात मास्को पहुंचने पर भारतीय राजदूत विनय कुमार और रूसी उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन ने उनका स्वागत किया। राजनाथ सिंह ने मास्को में 'टॉम्ब ऑफ द अननोन सोल्जर' पर जाकर द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हुए सोवियत सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ये श्रद्धांजलि भारत और रूस के बीच मजबूत ऐतिहासिक और सामरिक संबंधों को दर्शाती है। इसके साथ ही मंत्री ने भारतीय समुदाय के सदस्यों से बातचीत कर उनके अनुभवों और योगदानों को भी सराहा।

हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की बढ़ेगी ताकत

रक्षा मंत्री इस दौरे के दौरान भारतीय नौसेना के नवीनतम मल्टी-रोल स्टेल्थ गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट 'आईएनएस तुशील' के कमीशनिंग समारोह में भी हिस्सा लेंगे। सोमवार को रूस निर्मित स्टील्थ युद्धपोत आईएनएस तुशिल का कलिनिनग्राद के यंत्र शिपयार्ड में जलावतरण होगा। इस दौरान रक्षा मंत्री के साथ भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी भी होंगे। इस बहुउद्देशीय स्टील्थ-गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट को तकनीक से मामले में दुनियाभर में अधिक उन्नत युद्धपोतों में से एक माना जाता है। इसकी मदद से हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की परिचालन क्षमता में काफी अधिक वृद्धि होने की संभावना है।

मंगलवार को बैठक में होंगे कई समझौते

मंगलवार को मॉस्को में सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग को लेकर होने वाली भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग(IRIGC-M&MTC) बैठक में भारतीय-रूसी रक्षा मंत्री दोनों देशों में रक्षा के क्षेत्र में बहुआयामी संबंधों की शृंखला की समीक्षा करेंगे। बैठक में चर्चा का मुख्य केंद्र रूसी S-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणाली की शेष 2 इकाइयों की डिलीवरी होगी, जो सबसे उन्नत है। S-400 वायु रक्षा प्रणाली की 5 इकाइयों की खरीद 2018 में अंतिम रूप दी गई थी।इसके बाद सिंह सोवियत सैनिकों को श्रद्धांजलि देंगे।

रूसी राष्ट्रपति के 2025 में भारत आने की उम्मीद

विदेश मंत्रालय के मुताबिक, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अगले साल वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए भारत आने की उम्मीद है। इस यात्रा की तारीखें राजनयिक बातचीत से तय की जाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को भारत आने का निमंत्रण दिया है, और उनकी यात्रा का ब्योरा 2025 की शुरुआत में तय किया जाएगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल का कहना है कि रूस के साथ हमारी वार्षिक शिखर वार्ता की व्यवस्था है। मास्को में हुए पिछले वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री मास्को गए थे। अगला शिखर सम्मेलन 2025 में भारत में होने वाला है, और इसके लिए तारीखें राजनयिक चैनलों के जरिये तय की जाएंगी। क्रेमलिन के सहयोगी यूरी उशाकोव ने 2 दिसंबर को कहा था कि राष्ट्रपति पुतिन को पीएम मोदी से भारत आने का निमंत्रण मिला है और उनकी यात्रा की तारीखें 2025 के शुरुआत में तय की जाएंगी।

शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों को राहत, प्रदर्शन की वजह से बाधित राजमार्ग खोलने की मांग वाली याचिका खारिज

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सुप्रीम कोर्ट से शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने शंभू बॉर्डर से किसानों को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में पंजाब में उन राजमार्गों से अवरोधकों को हटाने के लिए केंद्र और अन्य प्राधिकारों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। इन राजमार्गों पर किसान विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। सर्वोच्च अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि बार-बार एक ही तरह कि याचिका क्यों दाखिल हो रही है? इस सिलसिल में पहले ही से मामला लंबित है, फिर क्यों ऐसी याचिका दाखिल हो रही है?

जस्टिस सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि मामला पहले ही अदालत में विचाराधीन है। वह एक ही मुद्दे पर बार-बार याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकती। पीठ ने पंजाब में याचिकाकर्ता गौरव लूथरा से कहा कि हम पहले ही व्यापक मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। केवल आपको ही समाज की फिक्र नहीं है। बार-बार याचिकाएं दायर मत कीजिए। कुछ लोग प्रचार के लिए याचिका दाखिल करते हैं और कुछ लोगों की सहानुभूति पाने के लिए ऐसा करते हैं। अदालत ने याचिका को लंबित मामले के साथ जोड़ने के लूथरा के अनुरोध को भी खारिज कर दिया।

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र, पंजाब और हरियाणा सरकारों को प्रदर्शनकारी किसानों को हाइवे से हटाने के निर्देश दे। साथ ही प्रदर्शनकारी किसानों को भी निर्देश दिया जाए कि वो कानून- व्यवस्था बनाए रखें। ये याचिका वकील अमित कुमार चावला के माध्यम से गौरव लूथरा ने दाखिल की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां पहले से याचिका लंबित है तो ऐसे में नई याचिका क्यों दाखिल की गई है?

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम हालात से वाकिफ हैं। ये याचिका गलत संदेश देती है। उन्होंने कहा, आप चाहें तो लंबित मामले में मदद कर सकते हैं लेकिन हम नई याचिका नहीं लेंगे। ऐसा नहीं लगना चाहिए कि यह पब्लिसिटी के लिए किया गया है। इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नई याचिका पर सुनवाई करने के इच्छुक नहीं हैं।

बता दें कि पहले से दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 सदस्यीय हाई पावर्ड कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी को किसानों से एमएसपी और दूसरे मुद्दों पर बातचीत करने का निर्देश दिया गया था और पैनल से किसानों से बैरिकेडिंग हटाने के लिए बातचीत करने को भी कहा गया था। इसके साथ ही, कोर्ट ने किसानों से यह भी कहा था कि वे अपने आंदोलन का राजनीतिकरण न करें और अपनी बैठकों में अनुचित मांगें न रखें।याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाते हुए किसानों को कानून और व्यवस्था का पालन करने का आदेश देने का भी मांग किया था। याचिकाकार्ता की दलील थी कि हाईवे को इस तरह ब्लॉक करना लोगों के मूलभूत अधिकारों के खिलाफ है। साथ ही, इसे राष्ट्रीय राजमार्ग कानून और भारतीय न्याय संहिता के तहत अपराध बताया गया था।

सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे के बाद भारत: 'एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करने की जरूरत

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भारत की सीरिया के प्रति नीति मुख्य रूप से इसके सिद्धांतों पर आधारित है, जो गैर-हस्तक्षेप, संप्रभुता का सम्मान और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष पर केंद्रित हैं। जबकि भारत ने सीरिया संघर्ष के सैन्य पहलुओं में सीधे भाग नहीं लिया, इसकी मानवीय सहायता, संघर्ष को समाप्त करने के लिए राजनीतिक समाधान का समर्थन और विद्रोही समूहों के प्रति सतर्क रुख इसके व्यापक कूटनीतिक हितों के अनुरूप रहा है। जैसे-जैसे सीरिया पुनर्निर्माण की दिशा में बढ़ेगा, भारत को इस क्षेत्र में अपनी संलिप्तता बढ़ाने का अवसर मिल सकता है, जबकि उसे प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ अपने रिश्तों को संतुलित रखना होगा।

सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों के सत्ता पर काबिज होने के एक दिन बाद, भारत ने सोमवार को उस देश में स्थिरता लाने के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया का आह्वान किया। एक बयान में, विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि वह सीरिया में हो रहे घटनाक्रमों पर नज़र रख रहा है। विदेश मंत्रालय ने कहा, "हम चल रहे घटनाक्रमों के मद्देनजर सीरिया में स्थिति पर नज़र रख रहे हैं।" बयान में कहा गया, "हम सभी पक्षों द्वारा सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।"

मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "हम सीरियाई समाज के सभी वर्गों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करते हैं।" विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि दमिश्क में भारतीय दूतावास भारतीय समुदाय की सुरक्षा और संरक्षा के लिए उनके संपर्क में है। भारत की सीरिया के प्रति स्थिति, विशेष रूप से विद्रोहियों के नियंत्रण के संदर्भ में और समग्र संघर्ष में, इसकी कूटनीतिक नीति पर आधारित रही है, जो राष्ट्रीय संप्रभुता के सम्मान और गैर-हस्तक्षेप पर केंद्रित है, साथ ही मध्य पूर्व के देशों के साथ इसके ऐतिहासिक रिश्तों से भी प्रभावित है।

1. सीरिया की संप्रभुता का समर्थन:

भारत ने सीरिया के क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का हमेशा समर्थन किया है, जो 2011 में शुरू हुए सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान स्पष्ट था। जबकि कई पश्चिमी देश और क्षेत्रीय शक्तियाँ, जैसे तुर्की और सऊदी अरब, विपक्षी बलों और विद्रोही समूहों का समर्थन कर रहे थे, भारत ने एक अधिक सतर्क और तटस्थ रुख अपनाया, जिसमें मानवीय सहायता और कूटनीतिक समाधान पर ध्यान केंद्रित किया। भारत ने संघर्ष में विदेशी हस्तक्षेप की आलोचना की है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, तुर्की और अन्य देशों द्वारा सैन्य भागीदारी शामिल है।

2. सीरिया में रणनीतिक हित:

भारत के लिए सीरिया का महत्व इसके व्यापक मध्य पूर्व रणनीति से जुड़ा हुआ है। सीरिया अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण रणनीतिक महत्व रखता है, जो भारत के इरान, रूस और इज़राइल जैसे देशों के साथ रिश्तों को प्रभावित करता है। भारत की स्थिति पर 1970 और 1980 के दशक में भारत और सीरिया के बीच सहयोगात्मक कूटनीतिक और सैन्य संबंधों का भी असर पड़ा है। भारत सीरिया को क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख साझेदार के रूप में देखता है। भारत ने आईएसआईएस और अल-कायदा जैसे उग्रवादी समूहों के प्रसार को लेकर चिंता जताई है और ऐसे समूहों के प्रभाव को सीमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम किया है। भारत खुद भी एक बढ़ते आतंकवादी खतरे का सामना कर रहा था, और सीरिया की स्थिति को अक्सर वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा माना जाता है।

3. मानवीय सहायता:

भारत ने संघर्ष के चरम पर, विशेष रूप से सीरिया को मानवीय सहायता प्रदान की है, लेकिन इसने न तो सीधे तौर पर सैन्य ऑपरेशनों में भाग लिया और न ही सीरियाई सरकार या विद्रोही गुटों को कोई सामग्री समर्थन दिया। भारतीय सहायता मुख्य रूप से खाद्य, चिकित्सा आपूर्ति, और युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण के रूप में रही है।

विद्रोही गुटों के साथ व्यवहार:

विद्रोही समूहों के संदर्भ में, भारत का रुख बहुत सतर्क रहा है। भारत ने संघर्ष में किसी भी विपक्षी गुट का खुलकर समर्थन करने से परहेज किया है, जबकि कुछ पश्चिमी देशों ने विद्रोहियों का समर्थन किया था, या अन्य क्षेत्रीय ताकतों, जैसे तुर्की और सऊदी अरब, ने विशिष्ट गुटों को समर्थन दिया था। भारत का मुख्य ध्यान संघर्ष की समाप्ति और संवाद के माध्यम से राजनीतिक समाधान खोजने पर था। भारत ने सीरियाई लोकतांत्रिक बलों (SDF) जैसे समूहों और अधिक उग्रवादी इस्लामी समूहों के प्रति सतर्क रुख अपनाया है। भारत ने कभी भी उन गुटों का समर्थन नहीं किया है जो उग्रवादी विचारधाराओं से जुड़े हुए थे, क्योंकि इन समूहों का प्रभाव न केवल सीरिया बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता था, जिसमें भारत भी शामिल है।

5. हाल की घटनाएँ और भारत की बदलती स्थिति:

2024 में सीरिया के नवीनतम घटनाक्रमों के अनुसार, सीरिया अधिकांशत: बशर अल-असद की सरकार के नियंत्रण में है, जिसे रूस और इरान का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, उत्तर-पश्चिमी सीरिया में विद्रोही और उग्रवादी समूहों द्वारा कब्जा किए गए कुछ क्षेत्र अभी भी विद्रोहियों के हाथ में हैं। भारत ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन जारी रखा है और सीरियाई सरकार और विपक्षी गुटों के बीच संवाद के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रयासों का समर्थन किया है। भारत की बदलती भूमिका सीरिया में भी इसके रूस के साथ बढ़ते रिश्तों से प्रभावित है, जो सीरिया का एक प्रमुख सहयोगी है। रूस के साथ भारत का संबंध मजबूत बना हुआ है, खासकर यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में वैश्विक तनावों के बावजूद। भारत ने रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखा है, जिसमें रक्षा सहयोग और ऊर्जा संबंध शामिल हैं, और भारत ने सीरिया पर रूस के दृष्टिकोण का समर्थन किया है।

6. बढ़ती संलिप्तता की संभावना:

सीरिया की भौगोलिक स्थिति और यह मध्य पूर्व संघर्ष में अपनी भूमिका को देखते हुए, भारत को भविष्य में कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से बढ़ती संलिप्तता के अवसर मिल सकते हैं, खासकर जब देश पुनर्निर्माण के चरण में प्रवेश करता है। भारत सीरिया के युद्ध-पीड़ित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में व्यापार और विकास सहायता के माध्यम से भाग ले सकता है, जैसा कि उसने अन्य युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों में किया है। हालांकि, इसे इरान, इज़राइल और सऊदी अरब जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ अपने रिश्तों का ध्यान रखते हुए संतुलन बनाना होगा।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आप ने जारी की दूसरी सूची, मनीष सिसोदिया कीक सीट बदली, अवध ओझा को भी मिला टिकट

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आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की है। लिस्ट में भी कई नेताओं के टिकट कटे हैं तो कई की सीटों को बदल दिया गया है। जिनके सीट बदले गए हैं उसमें सबसे बड़ा नाम मनीष सिसोदिया का है। हाल ही में शिक्षक से नेता बने अवध ओझा को आप ने मनीष सिसोदिया की सीट पटपड़गंज से टिकट दिया है। वहीं, मनीष सिसोदिया की सीट बदलकर उन्हें जंगपुरा से टिकट दिया गया है।

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दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीखों का अब तक ऐलान नहीं हुआ है। हालांकि, राजनीतिक दल चुनाव को लेकर सक्रिय हो गए हैं। इसी क्रम में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी ने आज सोमवार को अपने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 20 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया। आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अब तक पटपड़गंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार उनकी सीट बदल दी गई है और पार्टी ने उन्हें जंगपुरा सीट से मैदान में उतारा है। पटपड़गंज सीट से अवध ओझा को मैदान में उतारा गया है।

विधायक हाजी यूनूस का टिकट कटा

सिसोदिया के अलावा आप ने मुस्तफाबाद से आदिल अहमद खान को टिकट दिया है। जबकि मादीपुर सीट से राखी बिड़लान, जनकपुरी से प्रवीण कुमार, शाहदरा से पद्मश्री जितेंद्र सिंह शंटी, गांधीनगर से नवीन चौधरी को उतारा गया है। हालांकि मौजूदा विधायक हाजी यूनूस का टिकट काट दिया गया।

पहली लिस्ट में कटे 3 विधायकों के टिकट

पिछले महीने 21 नवंबर को आम आदमी पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में 11 लोगों को टिकट दिया था, जिसमें 3 वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए गए। साथ ही पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस से आप में आए 6 नेताओं को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया।

बीजेपी से आए 3 नेताओं को मिला टिकट

पहली लिस्ट में बड़े नामों में पूर्व विधायक ब्रह्म सिंह तंवर, बीबी त्यागी और अनिल झा का नाम शामिल था। ये तीनों पिछले दिनों बीजेपी छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे। इनके अलावा वीर सिंह धींगान, सुमेश शौकीन और जुबैर चौधरी को भी टिकट दिया गया. ये तीनों पहले कांग्रेस में थे, बाद में आप में आ गए। छतरपुर सीट से ब्रह्म सिंह मैदान में उतारा गया, तो लक्ष्मी नगर सीट से बीबी त्यागी अपनी किस्मत आजमाएंगे। पिछले चुनाव में वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इसी तरह मटियाला सीट से आप ने मौजूदा विधायक गुलाब सिंह का टिकट काटकर उनकी जगह कांग्रेस से पार्टी में आए पूर्व विधायक सुमेश शौकीन को मौका दिया है।

एकनाथ शिंदे की डिमांड ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किल, एकनाथ शिंदे को गृह मंत्रालय देने पर नहीं हो रही राजी

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महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन तो हो गया है, लेकिन अब मंत्रालय के बंटवारें पर पेंच फंसा हुआ है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीतने के बाद महायुति गठबंधन में पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर कई दिनों तक विवाद चला था और अब मंत्रालयों पर खूब खींचतान हो रही है। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे पहले मुख्यमंत्री पद पर अड़े हुए थे। अब उन्होंने गृह मंत्रालय की मांग पकड़ ली है। हालांकि, भाजपा इसे देने को तैयार नहीं है।अब खबर है कि भाजपा ने शिंदे को गृह मंत्रालय की जगह 3 अन्य मंत्रालयों में से चुनने का विकल्प दिया है।

भाजपा, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) वाले महायुति गठबंधन ने महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की। दो दिन पहले देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार के साथ एकनाथ शिंदे ने उप-मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। शनिवार को महाराष्‍ट्र विधानसभा के विशेष सत्र में नवनिर्वाचित विधायकों ने विधायक पद की शपथ भी ले ली है। वहीं महाराष्‍ट्र सरकार के गठन के बाद मंत्रालय के बंटवारे और महत्वपूर्ण मंत्री पदों को लेकर जंग तेज हो चुकी है।सरकार के गठन के पहले से एकनाथ शिंदे गृह मंत्रालय की मांग कर रहे हैं वहीं उपमुख्‍यमंत्री बनने के बाद उन्‍होंने एक बार फिर भाजपा के सामने गृह मंत्रालय की डिमांड रख दी है। जिसने भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी है।

शिंदे की मांग के आगे बीजेपी झुकने को तैयार नहीं

मुख्यमंत्री बनने के बाद से देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में बीजेपी फ्रंटफुट पर खेल रही है। सत्ता की बागडोर ही नहीं बल्कि सियासी पावर को भी बीजेपी अपने हाथ में रखना चाहती है। शिवसेना की गृह मंत्रालय की मांग के आगे बीजेपी झुकने को तैयार नहीं है।ऐसे में बीजेपी ने शिंदे खेमा को गृह के बजाय राजस्व, शहरी विकास और लोक निर्माण विभाग में से चुनने का विकल्प दिया है।भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगी शिवसेना को साफ कर दिया है कि वह गृह मंत्रालय नहीं दे सकती।"भाजपा ने पहले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता अजीत पवार को वित्त और योजना विभाग देने का वादा किया है।

शिवसेना कर रही शिंदे के पक्ष में वकालत

शिवसेना की ओर से एकनाथ शिंदे को गृह मंत्रालय देने का दबाव बनाया जा रहा है। गुलाबराव पाटिल, संजय शिरसाट, भरत गुगवले समेत कई शिवेसना नेता शिंदे को गृह मंत्री बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन इस पर बीजेपी तैयार नहीं है। देवेंद्र फडणवीस ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि केंद्र में बीजेपी की अगुवाई में सरकार है, केंद्रीय गृह मंत्रालय बीजेपी (अमित शाह) के पास है। ऐसे में गृह मंत्रालय का पद सत्ता की बागडोर संभालने वाली पार्टी के पास होने से समन्वय आसान हो जाता है।

किन मंत्रालयों पर फंसा है पेंच?

महायुति में गृह मंत्रालय को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है। भाजपा और शिंदे सेना इस पर दावेदारी कर रहे हैं।इसके अलावा वित्त, शहरी विकास, राजस्व, आवास, सिंचाई और सामान्य प्रशासन जैसे मंत्रालयों को लेकर भी मतभेद है। पिछले मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों ने जीत दर्ज की थी, इस वजह से सहमति बनाना और मुश्किल हो गया है।

कैसा हो सकता है मंत्रिमंडल?

रिपोर्ट के मुताबिक, महायुति में मंत्रिमंडल को लेकर 6 विधायक पर एक मंत्री पद का फार्मूला तय हुआ है। इसके तहत भाजपा को 20 से 22, शिंदे गुट को 12 और अजित गुट को 9 से 10 मंत्री पद मिल सकते हैं।मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था कि 16 दिसंबर से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र से पहले मंत्रिमंडल का विस्तार होगा।9 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र खत्म होने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है।

सीरिया में तख्तापलट, जान बचाकर भागे राष्ट्रपति बशर असद ने रूस में शरण ली, जानें अचानक कैसे हुआ सबकुछ

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सीरिया में 24 साल लंबे बशर अल-असद शासन का अंत हो गया है। हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के कमांडर अबु मोहम्मद अल-जुलानी के नेतृत्व में विद्रोहियों ने रविवार को राजधानी दमिश्क पर भी कब्जा कर लिया। राष्ट्रपति बशर देश छोड़कर भाग गए हैं। करीब 13 साल से चल रहे गृहयुद्ध में विद्रोहियों ने आखिरकार सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने सीरियाई सेना को हथियार डालने का निर्देश भी दिया। इस बीच कई सालों के बाद विद्रोही समूह के शीर्ष कमांडर और एचटीएस के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जोलानी ने सीरिया में कदम रखा। बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल किए जाने के कुछ ही देर बाद अबू जुलानी राजधानी दमिश्क पहुंचे।

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दमिश्क पर कब्जे के करीब एक घंटे बाद सरकारी टीवी पर विद्रोहियों के समूह का बयान प्रसारित किया गया, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति बशर को सत्ता से उखाड़ फेंका गया है और जेल से कैदियों को रिहा कर दिया गया है। अनस सलखादी नामक विद्रोही कमांडर ने सरकारी टीवी पर अल्पसंख्यकों को भरोसा दिया कि किसी से भेदभाव नहीं किया जाएगा। उसने कहा, सीरिया सभी के लिए है, कोई अपवाद नहीं। हम लोगों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करेंगे जैसा असद परिवार ने किया।

असद का पतन इस्लामी राष्ट्र की जीत-जुलानी

विद्रोहियों के दमिश्क में दाखिल होने के बाद पहली बार उनका नेता अल-जुलानी सामने आया है। विद्रोहियों ने अपने टेलीग्राम चैनल पर अबू मोहम्मद अल-जुलानी के सीरिया पहुंचने का एक वीडियो शेयर किया। इसमें जुलानी कई सालों के बाद दमिश्क पहुंचकर धरती पर माथा टेकटे नजर आए। जोलानी एक खेत में घुटनों के बल बैठकर सीरिया की धरती को नमन करते नजर आए। वह दमिश्क में उमय्यद मस्जिद गए और असद के सत्ता के पतन को इस्लामी राष्ट्र की जीत बताया। मस्जिद के बाहर जमा सैकड़ों लोगों को संबोधित करते हुए उसने कहा कि असद ने सीरिया को ईरान के लालच का मैदान बना दिया था। उसने कहा कि इस महान विजय के बाद पूरे क्षेत्र में एक नया इतिहास लिखा जा रहा है।

असद ने सीरिया से भागकर मास्‍को में ली शरण

इधर देश से बागने के बाद सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद सीरिया से भागकर मास्‍को पहुंचे हैं। रूसी सरकारी मीडिया एजेंसियों ने क्रेमलिन के सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि अपदस्थ सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद और उनका परिवार मास्को में है। रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि असद और उनके परिवार को रूस ने शरण दे दी है। रूस के राष्‍ट्रपत‍ि पुत‍िन से उनके गहरे रिश्ते रहे हैं। पुत‍िन ने कई बार उन्‍हें संकटों से बचाया है।

11 दिन में ही हाथ से निकल सत्ता

सीरिया में करीब डेढ़ दशक से चल रहा गृहयुद्ध खत्‍म हो गया है। हालांकि, 2013 में सख्ती से विद्रोह को दबाने वाले राष्ट्रपति बशर के हाथ से सत्ता इस बार मात्र 11 दिन में ही निकल गई। विद्रोही लड़ाकों ने 27 नवंबर के बाद से हमले तेज कर दिए थे। 27 नवंबर को, विपक्षी लड़ाकों के गठबंधन ने सरकार समर्थक बलों के खिलाफ एक बड़ा हमला किया। पहला हमला विपक्ष के कब्जे वाले इदलिब और पड़ोसी अलेप्पो के गवर्नरेट के बीच अग्रिम मोर्चों पर किया गया। तीन दिन बाद, विपक्षी लड़ाकों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्ज़ा कर लिया।

विद्रोहियों में कौन-कौन से गुट शामिल

ऑपरेशन डिटरेंस ऑफ़ एग्रेशन नाम का यह हमला हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में कई सशस्त्र सीरियाई विपक्षी समूहों द्वारा लड़ा गया था और सहयोगी तुर्की समर्थित गुटों द्वारा समर्थित था। अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नेतृत्व में एचटीएस सबसे बड़ा और सबसे संगठित है, जिसने इस हमले से पहले कई सालों तक इदलिब के गवर्नरेट पर शासन किया था। ऑपरेशन में भाग लेने वाले अन्य समूह नेशनल फ्रंट फॉर लिबरेशन, अहरार अल-शाम, जैश अल-इज़्ज़ा और नूर अल-दीन अल-ज़ेंकी मूवमेंट थे, साथ ही तुर्की समर्थित गुट जो सीरियाई राष्ट्रीय सेना के छत्र के अंतर्गत आते हैं।