दिल्ली-एनसीआर में ग्रैप-4 से लगी पाबंदी हटी, कम होते प्रदूषण के बीच सुप्रीम कोर्ट का फैसला

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देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास की हवा में सुधार देखा जा रहा है। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में लागू किए गए ग्रैप 4 प्रतिबंधों में छूट की अनुमति दी है।दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर गुरुवार को चल रही सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने दिल्ली-एनसीआर से ग्रैप-4 को हटाने का आदेश दिया।

ग्रैप-2 के स्तर से नीचे नहीं जाने की सलाह

रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के सवाल पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ने ब्रीफ नोट दिया, जिसमें एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) का ब्यौरा था। इसके मुताबिक एयर क्वॉलिटी लेवल में सुधार है और यह कम हो रहा है। इसके बाद कोर्ट ने कहा, ग्रैप-4 को हटाने का आदेश देते हैं और आगे ग्रैप तय करने का जिम्मा कमीशन फोर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) पर छोड़ते हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि सही यही होगा कि ग्रैप-2 के स्तर से नीचे आयोग नहीं जाए। 

कब लागू किया जाता है ग्रैप-4?

ग्रैप-4 तब लगाया जाता है, जब एक्यूआई 450 से अधिक हो जाता है। इसमें सभी निर्माण कार्य पूरी तरह से रोक दिए जाते हैं। स्कूलों को बंद कर दिया जाता है और निजी वाहनों के लिए ऑड-ईवन योजना तक सख्त वाहन प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं।

18 नवंबर को शीर्ष अदालत ने सभी दिल्ली-एनसीआर राज्यों को प्रदूषण विरोधी ग्रैप 4 प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करने के लिए तुरंत टीमें गठित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने साफ किया था कि प्रतिबंध अगले आदेश तक जारी रहेंगे। 

प्रदूषित हवा से लगभग दो महीने बाद राहत

बता दें कि लोगों को प्रदूषित हवा से लगभग दो महीने बाद राहत मिली है। बुधवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 178 रहा, जोकि मध्यम श्रेणी में है। यह मंगलवार के मुकाबले 100 सूचकांक की कम है। इससे पहले 10 अक्तूबर को एक्यूआई 164 दर्ज किया गया था। इसके बाद सर्दी के दस्तक देने के साथ ही हवा की स्थिति बिगड़ती गई। 

वायु प्रदूषण बनी बड़ी चुनौती

हर साल ठंड की शुरुआत होते ही दिल्ली में वायु प्रदूषण एक बड़ी चुनौती बन जाता है, जिससे निपटने के लिए सरकार हर साल लाखों दावे तो करती है, लेकिन वो फिसड्डी ही साबित होते हैं। इस साल भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। नवंबर की शुरुआत के साथ ही दिल्ली गैस चैंबर बन चुकी थी।

इस सीजन में दिल्ली की हवा सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी। वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 के आसपास पहुंच गया था। यह अब तक की सबसे खराब श्रेणी था। प्रदूषण की वजह से बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ही दिल्ली में ग्रैप-4 लागू कर दिया गया था।

देवेंद्र फडणवीस ने तीसरी बार ली सीएम पद की शपथ, शिंदे-अजित बने डिप्टी सीएम

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देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुंबई के आजाद मैदान में हुए भव्य समारोह में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने इन तीनों नेताओं को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान, योगी आदित्यनाथ, भजनलाल, चंद्रबाबू नायडू समेत अन्य राजनीतिक हस्तियां शामिल हुईं।

देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद की तीसरी बार शपथ ली, वह नागपुर दक्षिण से विधायक हैं। इससे पहले 2014 में वह पहली बार सीएम बने थे, इसके बाद 2019 के चुनाव में कछ दिन के लिए सीएम रहे थे। इसके बाद महायुति गठबंधन बना और सीएम एक नाथ शिंदे को बना दिया गया था, जबकि फडणवीस डिप्टी सीएम की भूमिका में रहे थे।

शपथ ग्रहण समारोह में पहली पंक्‍त‍ि में अमित शाह के साथ रक्षामंत्री राजनाथ सिंह न‍ित‍िन गडकरी, श‍िवराज सिंह चौहान, रामदास आठवले समेत कई वर‍िष्‍ठ मंत्री नजर आए। तो वहीं, मुख्‍यमंत्र‍ियों वाली पंक्‍त‍ि में यूपी के मुख्‍मयंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ, बिहार के सीएम नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्‍यमंत्री के साथ बैठे दिखे।

इसके अलावा उद्योगपति मुकेश अंबानी, अनंत अंबानी, राधिका अंबानी भी समारोह में मौजूद रहे। बॉलीवुड से शाहरुख खान, सलमान खान, संजय दत्त, माधुरी दीक्षित, रणबीर कपूर, रणबीर सिंह समेत अन्य हस्तियों ने शिरकत की।

कई दिनों की अनिश्चितता के बाद एकनाथ शिंदे बने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री

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तीन दिनों तक अपने फैसले पर सस्पेंस बनाए रखने के बाद, कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए सहमति जताई है, पार्टी नेता उदय सामंत ने गुरुवार को घोषणा की। सामंत ने संवाददाताओं से कहा, "शिंदे उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। हमने देवेंद्र फडणवीस को इस बारे में बता दिया है।"

इससे पहले, शिंदे ने अपने कैबिनेट पद की पुष्टि करने में संकोच किया था, क्योंकि भाजपा ने उपमुख्यमंत्री के रूप में गृह विभाग और उनकी पार्टी के विधायक के लिए विधानसभा अध्यक्ष पद की उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया था। फडणवीस ने पिछले दो दिनों में शिंदे के साथ दो बैठकें कीं। बुधवार को राजभवन में फडणवीस के साथ जाने के दौरान शिंदे ने मीडिया से कहा कि सरकार में शामिल होने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। गुरुवार की सुबह सामंत ने खुलासा किया कि शिवसेना के विधायकों ने शिंदे से कैबिनेट में शामिल होने का आग्रह किया था, उन्होंने कहा कि अगर शिंदे सरकार से बाहर रहे तो वे मंत्री पद लेने से मना कर देंगे।

इसके बाद, वरिष्ठ भाजपा नेता गिरीश महाजन शिंदे से उनके आवास पर मिलने गए, जिसके बाद सामंत ने अपने नेता द्वारा उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करने की घोषणा की। हालांकि, शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, विभागों का बंटवारा अभी भी अनसुलझा है। यह तय हो गया है कि तीनों शीर्ष नेता आज शपथ लेंगे। तीनों दलों के बीच मंत्रियों की संख्या और विभागों के बंटवारे सहित सत्ता-साझाकरण समझौते को कुछ दिनों में अंतिम रूप दे दिया जाएगा।"

शपथ ग्रहण समारोह आज शाम 5:30 बजे मुंबई के आज़ाद मैदान में होना है, जहाँ फडणवीस मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे, जबकि शिंदे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।

साउथ कोरिया के रक्षा मंत्री ने इस्तीफा दिया, मार्शल लॉ लगाने की जिम्मेदारी ली, कहा- मैंने संसद में सेना भेजी

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साउथ कोरिया के राष्ट्रपति ने मंगलवार को देश में मार्शल लॉ लगाने का ऐलान किया था। हालांकि नेशनल असेंबली में हुई वोटिंग के बाद उन्हें कुछ ही घंटों में अपना फैसला पलटना पड़ा।देश के मुख्य विपक्षी दल ने बुधवार को राष्ट्रपति से तत्काल पद छोड़ने की मांग की, विपक्ष ने चेतावनी दी है कि अगर यून सुक अपना पद नहीं छोड़ते हैं तो महाभियोग का सामना करना पड़ेगा। इस बीच साउथ कोरिया के रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने जनता से माफी मांगते हुए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। बता दें कि रक्षामंत्री किम की सलाह पर ही राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने की घोषणा की थी।

कोरियाई न्यूज एजेंसी योनहाप के मुताबिक किम योंग ने कहा कि वे देश में हुई भारी उथल-पुथल की जिम्मेदारी ले रहे हैं। राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि राष्ट्रपति यून सुक योल ने रक्षा मंत्री का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।किम योंग की जगह अब चोई ब्युंग-ह्यूक को साउथ कोरिया का नया रक्षा मंत्री बनाया गया है। वे सेना में फोर स्टार जनरल रह चुके हैं और फिलहाल सऊदी अरब में साउथ कोरिया के राजदूत के पद पर हैं।

गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग में उप-रक्षा मंत्री ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि किम योंग के आदेश पर ही सेना संसद में घुसी थी। उप-रक्षा मंत्री ने यह भी कहा उन्हें मार्शल लॉ के बारे में कुछ भी नहीं पता था। इसकी जानकारी उन्हें टीवी पर मिली। वे इस बात से दुखी हैं कि उन्हें कुछ पता नहीं था और इस वजह से सही समय पर इस घटना को रोक नहीं सके।

72 घंटे में मतदान जरूरी

इससे पहले मुख्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी और अन्य छोटे विपक्षी दलों ने बुधवार को राष्ट्रपति यून सुक येओल के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जो मंगलवार रात उनके द्वारा घोषित मार्शल लॉ’ के विरोध में पेश किया गया था। यून के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव गुरुवार को संसद में पेश किया गया, जिसका मतलब है कि इस पर शुक्रवार और रविवार के बीच मतदान हो सकता है। नेशनल असेंबली के अधिकारियों के अनुसार, अगर संसद में पेश किए जाने के 72 घंटों के भीतर इस पर मतदान नहीं होता है तो इसे रद्द कर दिया जाएगा, लेकिन अगर मौजूदा प्रस्ताव को रद्द कर दिया जाता है या मत विभाजन के जरिए खारिज कर दिया जाता है तो नया प्रस्ताव पेश किया जा सकता है।

मार्शल लॉ की साजिश रचने के आरोप लग रहा

विपक्षी पार्टी के सांसद किम मिन सोक ने आरोप लगाया है कि देश में मार्शल लॉ लगाने के पीछे ‘चुंगम गुट’ का हाथ है। चुंगम राजधानी सियोल में एक हाई स्कूल है जहां से राष्ट्रपति और उनके दोस्तों ने पढ़ाई की है। राष्ट्रपति बनने के बाद यून ने अपने दोस्तों को अहम पदों पर नियुक्त कर दिया। इन सभी के पास मार्शल लॉ लागू करने को लेकर कई अधिकार थे और ये कई महीने से इसकी तैयारी कर रहे थे। रक्षा मंत्री किम भी चुंगम से ही पढ़ चुके हैं और राष्ट्रपति के पुराने दोस्त हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने से 3 घंटे पहले एक कैबिनेट मीटिंग बुलाई थी, जिसमें उनके अलावा 4 लोग शामिल थे। प्रधानमंत्री के अलावा, वित्त और विदेश मंत्री ने मार्शल लॉ लगाए जाने का विरोध किया था। हालांकि, राष्ट्रपति ने उनकी सलाह को नजरअंदाज कर दिया।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने मंगलवार को देश के विपक्ष पर संसद को नियंत्रित करने, उत्तर कोरिया के साथ सहानुभूति रखने और सरकार को राज्य विरोधी गतिविधियों से पंगु बनाने का आरोप लगाते हुए साउथ कोरिया में आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की थी। हालांकि, कुछ ही घंटों के भीतर मार्शन लॉ हटा लिया गया। यह फैसला संसद के भारी विरोध और वोटिंग के बाद लिया गया। वोटिंग में 300 में से 190 सांसदों ने सर्वसम्मति से मार्शल लॉ को स्वीकार करने के लिए मना कर दिया। मार्शल लॉ के ऐलान के बाद वहां की जनता भी सड़को पर उतर आई। आर्मी के टैंक सियोल की गलियों में घूमने लगे। हालांकि कि बिगड़ते हालातों और लगातार बढ़ते विरोध के कारण राष्ट्रपति ने अपना फैसला वापस ले लिया।

पिछले 5 वर्षों में 107 टीवी चैनलों के स्वामित्व में हुआ बदलाव: एमआईबी का लोकसभा में खुलासा

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा को एक लिखित जवाब में बताया कि पिछले पांच सालों में कुल 107 टेलीविजन चैनलों के स्वामित्व में बदलाव हुए हैं। इनमें से 24 न्यूज चैनल हैं जबकि 83 गैर-न्यूज चैनल हैं। उन्होंने निचले सदन को यह भी बताया कि मंत्रालय ने स्वामित्व में बदलाव या चैनलों के अधिग्रहण का कोई मामला नहीं देखा है, जहां उचित प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया हो। जिन 24 न्यूज चैनलों के स्वामित्व में बदलाव हुआ है, उनमें से पांच हिंदी, एक अंग्रेजी और हिंदी तथा अठारह अन्य अनुसूचित भाषाओं में हैं। 83 गैर-न्यूज चैनलों में से चार हिंदी, दो अंग्रेजी, सात हिंदी और अंग्रेजी तथा सत्तर अन्य अनुसूचित भाषाओं में हैं। संबंधित चैनलों की विस्तृत सूची नहीं दी गई।

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वैष्णव टीएमसी सांसद सौगत राय द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे। हाल के दिनों में सबसे महत्वपूर्ण चैनल अधिग्रहणों में से एक अडानी समूह द्वारा NDTV का अधिग्रहण था, जिसके माध्यम से समूह ने NDTV में 64.71 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की, जो आधिकारिक तौर पर मार्च 2023 में संपन्न हुई। रे ने यह भी पूछा था कि क्या मलयालम समाचार चैनल, रिपोर्टर टीवी ने अपने स्वामित्व परिवर्तन पर उचित नियमों का पालन किया है। वैष्णव ने जवाब दिया कि मंत्रालय को शेयरधारिता पैटर्न में बदलाव के लिए सूचना मिली थी। उनके जवाब में लिखा था, “जांच करने पर, यह पाया गया कि उक्त परिवर्तन के लिए मौजूदा नीति दिशानिर्देशों के प्रावधानों के अनुरूप सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता थी, उसी के अनुसार सलाह दी गई है।”

जवाब में, मंत्री ने कहा था कि अन्य बातों के अलावा, टेलीविजन चैनलों के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए दिशानिर्देश, 2022 के अनुसार, स्वामित्व में परिवर्तन 30 दिनों के भीतर मंत्रालय को शेयरधारिता पैटर्न में परिवर्तन की सूचना देकर या MIB की पूर्व स्वीकृति के साथ अनुमति हस्तांतरित करके किया जा सकता है। यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है, तो अनुमतियाँ निलंबित या रद्द की जा सकती हैं।

लक्षद्वीप को मालदीव बनाने की तैयारी में मोदी सरकार, 8 बड़ी परियोजनाएं से “कायाकल्प” का है प्लान

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मालदीव विवाद के बाद लक्षद्वीप को लेकर लोगों के बीच काफी उत्साह देखा गया था। द्वीपसमूह में लोगों की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए केंद्र सरकार भी एक्टिव हुई है। मालदीव के साथ तनाव के बाद भारत सरकार ने लक्षद्वीप को प्रमुख पर्यटन स्थल बनाने पर फोकस किया है। मोदी सरकार अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए इस द्वीप समूह में 8 बड़ी परियोजनाएं लगाने जा रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद से ही केंद्र सरकार ने इस दिशा में तैयारी शुरू कर दी थी। पीएम मोदी के मालदीव दौरे के बाद वहां की खूबसूरत तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं। लक्षद्वीप की तुलना मालदीव से की गई थी और मालदीव के एक नेता की विवादास्पद टिप्पणी के बाद काफी विवाद भी हुआ था। लक्षद्वीप में छुट्टियां बिताने की इच्छा रखने वाले लोगों की सबसे बड़ी शिकायत कनेक्टिविटी और भारी लागत की थी।

जिसके बाद केंद्र सरकार लक्षद्वीप में पर्यटकों के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने और मालदीव जैसे देशों को कड़ी टक्कर देने के लिए आठ बड़ी परियोजनाओं का अनावरण करने की तैयारी कर रही है। द्वीप समूह में कनेक्टिविटी और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 3,600 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है। उम्मीद की जा रही है इससे लक्षद्वीप की अर्थव्यवस्था में काफी वृद्धि होगी।

कौन-कौन सी हैं परियोजनाएं?

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां का एक प्रोजेक्ट कोच्चि से करीब 407 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसका नाम कदमथ द्वीप है। इसके पूर्वी और पश्चिमी छोर पर सुविधाएं विकसित करने की योजना है, जिसकी लागत 303 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसके अलावा बड़े जहाजों के संचालन के लिए कवरत्ती, अगत्ती और मिनिकॉय द्वीपों का विस्तार, क्रूज जहाजों को भी संभालने की क्षमता, एन्ड्रोथ ब्रेकवाटर का रिन्यूअल शामिल है।

4 दिसंबर को टेंडर मांगा गया

303 करोड़ रुपये की लागत वाली पहली परियोजना पर जल्द ही द्रूत गति से काम शुरू होने वाला है। कदमथ द्वीप पर जेटी और लैंडसाइड का निर्माण के लिए 4 दिसंबर को टेंडर मांगा गया है।इसमें एक मल्टीमॉडल जेटी निर्माण जो लक्षद्वीप द्वीप समूह में संचालित होने वाले सभी यात्री जहाजों को संभाल सके। साथ ही इस प्रकार के पर्यटकों की सुरक्षा और आराम के लिए द्वीप से कनेक्टिविटी में सुधार और पर्यटकों की पहुंच भी सुनिश्चित हो सके।

41 साल के अरबपति को ट्रंप ने सौंपी नासा की कमान, जानिए कौन हैं जेरेड इसाकमैन

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अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ ग्रहण से पहले ही अपनी 'ड्रीम टीम' बनाने में जुटे हैं। इस दौरान डोनाल़्ड ट्रंप लगातार अपने फैसलों से सभी को हैरान कर रहे हैं। ट्रंप ने अपनी कैबिनेट में भी कई ऐसे लोगों को शामिल किया, जिनके नाम सुनकर सब चौंक गए। अब डोनाल्ड ट्रंप ने एलन मस्क की स्पेसएक्स से अंतरिक्ष की पहली निजी अंतरिक्ष यात्रा करने वाले अरबपति जेरेड इसाकमैन को नासा का नेतृत्व करने के लिए नामित किया।

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने एक्स पर कहा, "मैं एक कुशल बिजनेस लीडर, परोपकारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री जेरेड इसाकमैन को नासा चीफ के रूप में नामित करते हुए प्रसन्न हूं। जेरेड नासा के खोज और प्रेरणा के मिशन को आगे बढ़ाएंगे, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में अभूतपूर्व उपलब्धियां मिलेंगी।"

सीनेट यदि उनकी नियुक्ति की पुष्टि कर देती है तो वह फ्लोरिडा के पूर्व डेमोक्रेटिक सीनेटर 82 वर्षीय बिल नेल्सन का स्थान लेंगे, जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नामित किया था।

एलन मस्क से भी खास नाता

इसाकमैन का दिग्गज कारोबारी और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क से भी खास नाता है। दरअसल, इसाकमैन स्पेसएक्स के सहयोग से ही अंतरिक्ष में स्पेसवॉक करने वाले पहले निजी अंतरिक्षयात्री बने थे। कार्ड प्रोसेसिंग कंपनी के सीईओ और संस्थापक 41 वर्षीय जेरेड इसाकमैन ने 2021 की उस यात्रा पर प्रतियोगिता विजेताओं को साथ अंतरिक्ष की यात्रा की और सितंबर में एक मिशन के साथ भी अंतरिक्ष में गए, जहां पर उन्होंने स्पेसएक्स के नए स्पेसवॉकिंग सूट का परीक्षण करने के लिए कुछ समय के लिए अंतरिक्ष में विचरण किया।

एलन मस्क ने इसाकमैन को दी बधाई

एलन मस्क ने एक्स पर इसाकमैन को बधाई देते हुए उन्होंने उच्च क्षमता वाला ईमानदार शख्स बताया है। जेरेड इसाकमैन एक प्रमुख अमेरिकी कारोबारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री हैं, जो अब दुनिया की सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष एजेंसी की कमान संभालेंगे। ट्रंप के ऐलान के बाद इसाकमैन ने कहा कि वह काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा कि वह दुनिया के अविश्वसनीय साहसिक कार्य का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित हैं।

समंदर' बनकर वापस लौटे फडणवीस, बीजेपी के लिए क्यों जरूरी बने देवेंद्र

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साल 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विधानसभा सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने शायराना अंदाज में कहा था कि ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजों के 12 दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर खाफी खींचतान भी हुई। आखिरकर फडणवीस ने बाजी मार ली। सारी बाधाओं को तोड़ता हा 'समंदर' वापस आ गया।

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बुधवार को मुंबई में पर्यवेक्षक विजय रूपाणी और निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया गया है। वे तीसरी बार महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। वे पिछले एक दशक से महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा बने हुए हैं। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद 12 दिनों के भीतर राजनीतिक गलियारों में इस बात की बहुत चर्चा थी कि भारतीय जनता पार्टी अंतिम समय में कुछ सरप्राइज दे सकती है। पार्टी फडणवीस की जगह किसी ओबीसी नाम को सामने ला सकती है।

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाए जाने का इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर कई बार किया जा चुका था। पर जिस तरह पिछले कुछ सालों में मुख्यमंत्रियों के नामों के फैसले बीजेपी में हुए हैं उसके चलते रानजीतिक गलियारों में अफवाहों के बाजार गर्म थे।मध्यप्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को किनारे लगा दिया, जिस तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे का पत्ता साफ हुआ उसे देखते हुए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगने में थोड़ा संदेह तो सभी को नजर आ रहा था। इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस का ब्राह्मण होना वर्तमान राजनीतिक माहौल में सीएम पद के लिए सबसे नेगेटिव बन जा रहा था। हालांकि, काफी खींचतान के बाद बीजेपी ने संघ के गढ़ से आने वाले ब्राहाण चेहरे पर भरोसा जताते हुए फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई। ऐसे में सवाल है कि आखिरकार देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी क्यों दरकिनार नहीं कर सकी?

महाराष्ट्र में क्यों जरूरी फडणवीस

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति दूसरे राज्यों से अलग है। बीते कुछ सालों का इतिहास देखें तो वहां किसी भी समय कोई भी पार्टी किसी भी पाले में जा सकती है। ऐसी स्थिति में देवेंद्र फडणवीस ही एक ऐसे नेता है जो साम दाम दंड भेद लगाकर सरकार को चलाने की कूवत रखते हैं। बता करें 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से की, तो 2019 विधानसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी को दगा देते हुए शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने की जिद पकड़ ली थी तब फडणवीस ने शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञ को मात देकर सरकार बनाई थी। एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया और 80 घंटे के अंदर खेल हो गया। हालांकि, “हार” कर भी फड़णवीस जीत गए थे। फडणवीस ने पवार परिवार में आग सुलगाने का काम कर ही दिया था।

उस वक्त केवल देवेन्द्र फडणवीस को ही झटका नहीं लगा था। अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता की चाबी भाजपा के पास आ गई थी। इस वक्त, देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया। फडणवीस चुप रहे।

शिवसेना-एनसीपी टूट का दोष फडणवीस पर

शिवसेना और एनसीपी जब दो फाड़ हुई तो इसका सारा दोष फडणवीस पर मढा गया। उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक करियर खत्म करने की धमकी दी थी। इस दौरान उन्होंने स्वयं को बचाए रखा और बीजेपी को दोबारा सत्ता में कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद देवेंद्र फडणवीस ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। इसके बाद बीजेपी आलाकमान ने उन्हें पद बने रहने को कहा।

पार्टी के प्रति समर्पण भाव से जीता भरोसा

फडणवीस देश के कुछ चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं जिन्होंने लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने पर इस्तीफे की पेशकश की। फिर विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को दूसरी बार अधिकतम सीटें दिलवाने वाले नेता ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के कहने पर अपने से एक बहुत जूनियर शख्स के नीचे डिप्टी सीएम बनना भी स्वीकार कर लिया। यही नहीं सीनियर होने के बावजूद , पार्टी और शासन में तगड़ी पकड़ रखते हुए भी कभी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिकायत का मौका नहीं दिया। पार्टी के प्रति समर्पण का जो उदाहारण देवेंद्र फडणवीस ने रखा है वो बिरले ही देखने को मिलता है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी के वह भरोसमंद बनकर उभरे हैं।

बढ़ती लोकप्रियता

बीजेपी ने उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाकर ही उन्हें प्रचार अभियान का जिम्मा सौंपा था। इसके अलावा सबसे अधिक रैलियां और सभाएं उन्होंने की। ऐसे में अगर उन्हें साइडलाइन कर किसी को सीएम बनाया जाता तो पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ता।

संघ की पहली पसंद

फडणवीस संघ के अंदर भी लोकप्रिय हैं। उन पर संघ भी भरोसा जताता आया है।फडणवीस संघ की विचारधारा के बीच पले-बढ़े हैं। उनके पिता भी संघ से जुड़े हुए थे। आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है। जिस राज्य में संघ की नींव रखी गई, आज उसी की बागडोर स्वयंसेवक के हाथ में तीसरी बार दी जाने वाली है।

क्या इंडिया गठबंधन में पड़ गई दरार, ममता बनर्जी को “इंडिया” गठबंधन का फेस घोषित करने की मांग पर खिंची तलवारें?

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संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से ही अडानी मुद्दे को लेकर हंगामा मचा हुआ है। विपक्ष लगातार अडानी का नाम लेकर सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर “इंडिया” गठबंधन का “हाथ” छोड़ दिया है। तृणमूल कांग्रेस ने पिछले हफ्ते ही साफ कर दिया था कि वह केवल अदाणी और मणिपुर मसले पर सत्र को केंद्रित रखने के पक्ष में नहीं है और कुछ अन्य मुद्दों के जरिए सरकार को घेरेगी। टीएमसी राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की बुलाई जा रही बैठकों में भी शामिल नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस और टीएमसी के बीच तनातनी बढ़ गई है? क्या दोनों पार्टिंयों के बीच ममता बनर्जी को “इंडिया” गठबंधन का फेस घोषित करने की मांग को लेकर गतिरोध है?

हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालिया चुनावी नतीजों और बंगाल उपचुनावों में टीएमसी की जीत के बाद कांग्रेस और टीएमसी में तनाव बढ़ता दिख रहा है। इसका असर चालू शीतकालीन सत्र में दिखा। तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने साफ कर दिया है कि अदाणी रिश्‍वत मुद्दे पर संसद को ठप करने के लिए वे कांग्रेस पार्टी का साथ नहीं देंगे। वहीं, अडानी मुद्दे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग पर इंडिया गठबंधन को तृणमूल कांग्रेस का साथ नहीं मिलेगा। गठबंधन की सोमवार को बुलाई बैठक में तृणमूल कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं पहुंचा। सोमवार को कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर इंडिया ब्लॉक की बैठक में शामिल नहीं हुई थी।

टीएमसी ने अडानी विवाद से किया किनारा

टीएमसी ने पहले ही कांग्रेस से रूख बदलने की गुजारिश की थी। पार्टी का कहना था कि संसद में जनहित के मुद्दे उठाए जाने चाहिए। टीएमसी ने अडानी विवाद को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी है। पार्टी ने तर्क दिया है कि संसद सत्र का उपयोग बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि और केंद्र द्वारा विपक्षी शासित राज्यों के खिलाफ धन आवंटन में कथित भेदभाव के मुद्दों को उठाने के लिए किया जाना चाहिए।

इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व को लेकर घमासान

कांग्रेस और टीएमसी के बीच मतभेद की वजह ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का चेहरा बनाने की मांग को माना जा रहा है। दरअसल, हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालिया चुनावी हार और बंगाल उपचुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन का जिक्र करते हुए, टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने कहा था कि नेता के अभाव में पूरा गठबंधन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। आज, अगर हम वास्तव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, तो इंडिया गठबंधन को मजबूत होना चाहिए। इसे हासिल करने के लिए, एक निर्णायक नेता आवश्यक है। कल्याण बनर्जी ने बीजेपी और पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी को एक संभावित दावेदार के रूप में इशारा करते हुए अपनी बात रखी।

ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता होना चाहिए- कीर्ति आजाद

कल्याण बनर्जी के बाद टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बड़ा कोई नेता नहीं है। उन्हें इंडिया ब्लॉक का नेता होना चाहिए। आने वाले समय में वह प्रधानमंत्री भी बनेंगी। टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि ममता बनर्जी के पास बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकदम सही रिकॉर्ड है। ममता बनर्जी का रिकॉर्ड शानदार है। जब भी नरेंद्र मोदी को हार का सामना करना पड़ा है तो वह हमेशा पश्चिम बंगाल में ही हुआ है। कीर्ति आजाद ने कहा कि ममता दीदी ऐसी हैं जो सभी को साथ लेकर चलती हैं। उन्होंने ये भी कहा कि टीएमसी, विपक्षी इंडिया गठबंधन में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है। वह चाहती है कि गठबंधन में उसकी भी सुनी जाए, जबकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और इसलिए विपक्ष का नेतृत्व करती है।

विपक्ष संसद में विभाजित नहीं है- डेरेक ओब्रायन

कांग्रेस और टीएमसी के बीच रार की खबरों को राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने खारिज किया है। उन्होंने बुधवार को कहा कि संसद में भारतीय जनता पाटी (भाजपा) को घेरने की रणनीति में विपक्षी दल एकजुट हैं, लेकिन उनके तरीके अलग हैं। डेरेक ओब्रायन की यह टिप्पणी उन अटकलों के बीच आई है कि अदाणी मुद्दे पर संसद परिसर में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा आयोजित प्रदर्शन से तृणमूल के दूर रहने से ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार पैदा हो गयी है। ब्रायन ने संवाददाताओं से कहा, 'संसद में विपक्ष एकजुट है, विभाजित नहीं है। हम संसद में भाजपा को घेरने की रणनीति पर एकजुट हैं, विभिन्न दल अलग-अलग तरीका अपनाते हैं।' उन्होंने कहा कि हर पार्टी संसद में अपने मुद्दे उठाना चाहती है।

संसद के शीतकालीन सत्र का आठवां दिन, अडानी मामले पर विपक्षी संसदों का विरोध प्रदर्शन

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संसद का शीतकाली सत्र चल रहा है। संसद के दोनों सदनों में अब तक भारी हंगामा और नारेबाजी देखी गई है। लोकसभा और राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष में तकरार बनी हुई है। हालांकि, बीते दो दिनों से सदनों की कार्यवाही चल रही है। आज भी दोनों सदनों में हंगामे के आसार हैं। आज सत्र का आठवां दिन है।

जैकेट के जरिए विपक्ष का विरोध

विपक्षी सांसदों ने आज अडानी मुद्दे पर विरोध के प्रतीक के रूप जैकेट पहना और संसद परिसर में प्रदर्शन किया। कांग्रेस सांसद काले रंग की जैकेट पहनकर प्रदर्शन करते दिखे। जैकेट पर लिखा है कि मोदी अदानी एक हैं। इस प्रदर्शन में प्रियंका गांधी भी शामिल रहीं।

अडानी मामले को लेकर संसद परिसर में प्रदर्शन किया

विपक्षी गठबंधन ‘ इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस ’ (इंडिया) के कई घटक दलों के सांसदों ने अडानी समूह से जुड़े मुद्दे को लेकर बुधवार को संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया और मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग दोहराई। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कुछ अन्य दलों के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नारे लगाए और जवाबदेही तय किए जाने की मांग की।

विपक्षी सांसद संसद भवन के ‘मकर द्वार ’ के निकट एकत्र हुए तथा नारेबाजी की। रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों में अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी और कंपनी के अन्य अधिकारियों पर अमेरिकी अभियोजकों द्वारा अभियोग लगाए जाने के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल संयुक्त संसदीय समिति से आरोपों की जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं।