पिछले 5 वर्षों में 107 टीवी चैनलों के स्वामित्व में हुआ बदलाव: एमआईबी का लोकसभा में खुलासा

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा को एक लिखित जवाब में बताया कि पिछले पांच सालों में कुल 107 टेलीविजन चैनलों के स्वामित्व में बदलाव हुए हैं। इनमें से 24 न्यूज चैनल हैं जबकि 83 गैर-न्यूज चैनल हैं। उन्होंने निचले सदन को यह भी बताया कि मंत्रालय ने स्वामित्व में बदलाव या चैनलों के अधिग्रहण का कोई मामला नहीं देखा है, जहां उचित प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया हो। जिन 24 न्यूज चैनलों के स्वामित्व में बदलाव हुआ है, उनमें से पांच हिंदी, एक अंग्रेजी और हिंदी तथा अठारह अन्य अनुसूचित भाषाओं में हैं। 83 गैर-न्यूज चैनलों में से चार हिंदी, दो अंग्रेजी, सात हिंदी और अंग्रेजी तथा सत्तर अन्य अनुसूचित भाषाओं में हैं। संबंधित चैनलों की विस्तृत सूची नहीं दी गई।

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वैष्णव टीएमसी सांसद सौगत राय द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे। हाल के दिनों में सबसे महत्वपूर्ण चैनल अधिग्रहणों में से एक अडानी समूह द्वारा NDTV का अधिग्रहण था, जिसके माध्यम से समूह ने NDTV में 64.71 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की, जो आधिकारिक तौर पर मार्च 2023 में संपन्न हुई। रे ने यह भी पूछा था कि क्या मलयालम समाचार चैनल, रिपोर्टर टीवी ने अपने स्वामित्व परिवर्तन पर उचित नियमों का पालन किया है। वैष्णव ने जवाब दिया कि मंत्रालय को शेयरधारिता पैटर्न में बदलाव के लिए सूचना मिली थी। उनके जवाब में लिखा था, “जांच करने पर, यह पाया गया कि उक्त परिवर्तन के लिए मौजूदा नीति दिशानिर्देशों के प्रावधानों के अनुरूप सुधारात्मक उपायों की आवश्यकता थी, उसी के अनुसार सलाह दी गई है।”

जवाब में, मंत्री ने कहा था कि अन्य बातों के अलावा, टेलीविजन चैनलों के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए दिशानिर्देश, 2022 के अनुसार, स्वामित्व में परिवर्तन 30 दिनों के भीतर मंत्रालय को शेयरधारिता पैटर्न में परिवर्तन की सूचना देकर या MIB की पूर्व स्वीकृति के साथ अनुमति हस्तांतरित करके किया जा सकता है। यदि उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है, तो अनुमतियाँ निलंबित या रद्द की जा सकती हैं।

लक्षद्वीप को मालदीव बनाने की तैयारी में मोदी सरकार, 8 बड़ी परियोजनाएं से “कायाकल्प” का है प्लान

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मालदीव विवाद के बाद लक्षद्वीप को लेकर लोगों के बीच काफी उत्साह देखा गया था। द्वीपसमूह में लोगों की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए केंद्र सरकार भी एक्टिव हुई है। मालदीव के साथ तनाव के बाद भारत सरकार ने लक्षद्वीप को प्रमुख पर्यटन स्थल बनाने पर फोकस किया है। मोदी सरकार अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए इस द्वीप समूह में 8 बड़ी परियोजनाएं लगाने जा रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद से ही केंद्र सरकार ने इस दिशा में तैयारी शुरू कर दी थी। पीएम मोदी के मालदीव दौरे के बाद वहां की खूबसूरत तस्वीरों ने सोशल मीडिया पर भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं। लक्षद्वीप की तुलना मालदीव से की गई थी और मालदीव के एक नेता की विवादास्पद टिप्पणी के बाद काफी विवाद भी हुआ था। लक्षद्वीप में छुट्टियां बिताने की इच्छा रखने वाले लोगों की सबसे बड़ी शिकायत कनेक्टिविटी और भारी लागत की थी।

जिसके बाद केंद्र सरकार लक्षद्वीप में पर्यटकों के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने और मालदीव जैसे देशों को कड़ी टक्कर देने के लिए आठ बड़ी परियोजनाओं का अनावरण करने की तैयारी कर रही है। द्वीप समूह में कनेक्टिविटी और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 3,600 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है। उम्मीद की जा रही है इससे लक्षद्वीप की अर्थव्यवस्था में काफी वृद्धि होगी।

कौन-कौन सी हैं परियोजनाएं?

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां का एक प्रोजेक्ट कोच्चि से करीब 407 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इसका नाम कदमथ द्वीप है। इसके पूर्वी और पश्चिमी छोर पर सुविधाएं विकसित करने की योजना है, जिसकी लागत 303 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसके अलावा बड़े जहाजों के संचालन के लिए कवरत्ती, अगत्ती और मिनिकॉय द्वीपों का विस्तार, क्रूज जहाजों को भी संभालने की क्षमता, एन्ड्रोथ ब्रेकवाटर का रिन्यूअल शामिल है।

4 दिसंबर को टेंडर मांगा गया

303 करोड़ रुपये की लागत वाली पहली परियोजना पर जल्द ही द्रूत गति से काम शुरू होने वाला है। कदमथ द्वीप पर जेटी और लैंडसाइड का निर्माण के लिए 4 दिसंबर को टेंडर मांगा गया है।इसमें एक मल्टीमॉडल जेटी निर्माण जो लक्षद्वीप द्वीप समूह में संचालित होने वाले सभी यात्री जहाजों को संभाल सके। साथ ही इस प्रकार के पर्यटकों की सुरक्षा और आराम के लिए द्वीप से कनेक्टिविटी में सुधार और पर्यटकों की पहुंच भी सुनिश्चित हो सके।

41 साल के अरबपति को ट्रंप ने सौंपी नासा की कमान, जानिए कौन हैं जेरेड इसाकमैन

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अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ ग्रहण से पहले ही अपनी 'ड्रीम टीम' बनाने में जुटे हैं। इस दौरान डोनाल़्ड ट्रंप लगातार अपने फैसलों से सभी को हैरान कर रहे हैं। ट्रंप ने अपनी कैबिनेट में भी कई ऐसे लोगों को शामिल किया, जिनके नाम सुनकर सब चौंक गए। अब डोनाल्ड ट्रंप ने एलन मस्क की स्पेसएक्स से अंतरिक्ष की पहली निजी अंतरिक्ष यात्रा करने वाले अरबपति जेरेड इसाकमैन को नासा का नेतृत्व करने के लिए नामित किया।

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने एक्स पर कहा, "मैं एक कुशल बिजनेस लीडर, परोपकारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री जेरेड इसाकमैन को नासा चीफ के रूप में नामित करते हुए प्रसन्न हूं। जेरेड नासा के खोज और प्रेरणा के मिशन को आगे बढ़ाएंगे, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में अभूतपूर्व उपलब्धियां मिलेंगी।"

सीनेट यदि उनकी नियुक्ति की पुष्टि कर देती है तो वह फ्लोरिडा के पूर्व डेमोक्रेटिक सीनेटर 82 वर्षीय बिल नेल्सन का स्थान लेंगे, जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नामित किया था।

एलन मस्क से भी खास नाता

इसाकमैन का दिग्गज कारोबारी और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क से भी खास नाता है। दरअसल, इसाकमैन स्पेसएक्स के सहयोग से ही अंतरिक्ष में स्पेसवॉक करने वाले पहले निजी अंतरिक्षयात्री बने थे। कार्ड प्रोसेसिंग कंपनी के सीईओ और संस्थापक 41 वर्षीय जेरेड इसाकमैन ने 2021 की उस यात्रा पर प्रतियोगिता विजेताओं को साथ अंतरिक्ष की यात्रा की और सितंबर में एक मिशन के साथ भी अंतरिक्ष में गए, जहां पर उन्होंने स्पेसएक्स के नए स्पेसवॉकिंग सूट का परीक्षण करने के लिए कुछ समय के लिए अंतरिक्ष में विचरण किया।

एलन मस्क ने इसाकमैन को दी बधाई

एलन मस्क ने एक्स पर इसाकमैन को बधाई देते हुए उन्होंने उच्च क्षमता वाला ईमानदार शख्स बताया है। जेरेड इसाकमैन एक प्रमुख अमेरिकी कारोबारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री हैं, जो अब दुनिया की सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष एजेंसी की कमान संभालेंगे। ट्रंप के ऐलान के बाद इसाकमैन ने कहा कि वह काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा कि वह दुनिया के अविश्वसनीय साहसिक कार्य का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित हैं।

समंदर' बनकर वापस लौटे फडणवीस, बीजेपी के लिए क्यों जरूरी बने देवेंद्र

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साल 2019 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विधानसभा सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने शायराना अंदाज में कहा था कि ‘मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा।’ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजों के 12 दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था। शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर खाफी खींचतान भी हुई। आखिरकर फडणवीस ने बाजी मार ली। सारी बाधाओं को तोड़ता हा 'समंदर' वापस आ गया।

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बुधवार को मुंबई में पर्यवेक्षक विजय रूपाणी और निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस को सर्वसम्मति से अपना नेता चुन लिया गया है। वे तीसरी बार महाराष्ट्र के सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं। वे पिछले एक दशक से महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा बने हुए हैं। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद 12 दिनों के भीतर राजनीतिक गलियारों में इस बात की बहुत चर्चा थी कि भारतीय जनता पार्टी अंतिम समय में कुछ सरप्राइज दे सकती है। पार्टी फडणवीस की जगह किसी ओबीसी नाम को सामने ला सकती है।

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनाए जाने का इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर कई बार किया जा चुका था। पर जिस तरह पिछले कुछ सालों में मुख्यमंत्रियों के नामों के फैसले बीजेपी में हुए हैं उसके चलते रानजीतिक गलियारों में अफवाहों के बाजार गर्म थे।मध्यप्रदेश में बीजेपी ने जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को किनारे लगा दिया, जिस तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे का पत्ता साफ हुआ उसे देखते हुए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगने में थोड़ा संदेह तो सभी को नजर आ रहा था। इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस का ब्राह्मण होना वर्तमान राजनीतिक माहौल में सीएम पद के लिए सबसे नेगेटिव बन जा रहा था। हालांकि, काफी खींचतान के बाद बीजेपी ने संघ के गढ़ से आने वाले ब्राहाण चेहरे पर भरोसा जताते हुए फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई। ऐसे में सवाल है कि आखिरकार देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी क्यों दरकिनार नहीं कर सकी?

महाराष्ट्र में क्यों जरूरी फडणवीस

महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति दूसरे राज्यों से अलग है। बीते कुछ सालों का इतिहास देखें तो वहां किसी भी समय कोई भी पार्टी किसी भी पाले में जा सकती है। ऐसी स्थिति में देवेंद्र फडणवीस ही एक ऐसे नेता है जो साम दाम दंड भेद लगाकर सरकार को चलाने की कूवत रखते हैं। बता करें 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से की, तो 2019 विधानसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी को दगा देते हुए शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने की जिद पकड़ ली थी तब फडणवीस ने शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञ को मात देकर सरकार बनाई थी। एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया और 80 घंटे के अंदर खेल हो गया। हालांकि, “हार” कर भी फड़णवीस जीत गए थे। फडणवीस ने पवार परिवार में आग सुलगाने का काम कर ही दिया था।

उस वक्त केवल देवेन्द्र फडणवीस को ही झटका नहीं लगा था। अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता की चाबी भाजपा के पास आ गई थी। इस वक्त, देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया। फडणवीस चुप रहे।

शिवसेना-एनसीपी टूट का दोष फडणवीस पर

शिवसेना और एनसीपी जब दो फाड़ हुई तो इसका सारा दोष फडणवीस पर मढा गया। उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक करियर खत्म करने की धमकी दी थी। इस दौरान उन्होंने स्वयं को बचाए रखा और बीजेपी को दोबारा सत्ता में कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद देवेंद्र फडणवीस ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। इसके बाद बीजेपी आलाकमान ने उन्हें पद बने रहने को कहा।

पार्टी के प्रति समर्पण भाव से जीता भरोसा

फडणवीस देश के कुछ चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं जिन्होंने लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने पर इस्तीफे की पेशकश की। फिर विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी को दूसरी बार अधिकतम सीटें दिलवाने वाले नेता ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के कहने पर अपने से एक बहुत जूनियर शख्स के नीचे डिप्टी सीएम बनना भी स्वीकार कर लिया। यही नहीं सीनियर होने के बावजूद , पार्टी और शासन में तगड़ी पकड़ रखते हुए भी कभी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को शिकायत का मौका नहीं दिया। पार्टी के प्रति समर्पण का जो उदाहारण देवेंद्र फडणवीस ने रखा है वो बिरले ही देखने को मिलता है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी के वह भरोसमंद बनकर उभरे हैं।

बढ़ती लोकप्रियता

बीजेपी ने उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाकर ही उन्हें प्रचार अभियान का जिम्मा सौंपा था। इसके अलावा सबसे अधिक रैलियां और सभाएं उन्होंने की। ऐसे में अगर उन्हें साइडलाइन कर किसी को सीएम बनाया जाता तो पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ता।

संघ की पहली पसंद

फडणवीस संघ के अंदर भी लोकप्रिय हैं। उन पर संघ भी भरोसा जताता आया है।फडणवीस संघ की विचारधारा के बीच पले-बढ़े हैं। उनके पिता भी संघ से जुड़े हुए थे। आरएसएस अपने 100 साल पूरे करने जा रहा है। जिस राज्य में संघ की नींव रखी गई, आज उसी की बागडोर स्वयंसेवक के हाथ में तीसरी बार दी जाने वाली है।

क्या इंडिया गठबंधन में पड़ गई दरार, ममता बनर्जी को “इंडिया” गठबंधन का फेस घोषित करने की मांग पर खिंची तलवारें?

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संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से ही अडानी मुद्दे को लेकर हंगामा मचा हुआ है। विपक्ष लगातार अडानी का नाम लेकर सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे पर “इंडिया” गठबंधन का “हाथ” छोड़ दिया है। तृणमूल कांग्रेस ने पिछले हफ्ते ही साफ कर दिया था कि वह केवल अदाणी और मणिपुर मसले पर सत्र को केंद्रित रखने के पक्ष में नहीं है और कुछ अन्य मुद्दों के जरिए सरकार को घेरेगी। टीएमसी राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की बुलाई जा रही बैठकों में भी शामिल नहीं हुई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस और टीएमसी के बीच तनातनी बढ़ गई है? क्या दोनों पार्टिंयों के बीच ममता बनर्जी को “इंडिया” गठबंधन का फेस घोषित करने की मांग को लेकर गतिरोध है?

हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालिया चुनावी नतीजों और बंगाल उपचुनावों में टीएमसी की जीत के बाद कांग्रेस और टीएमसी में तनाव बढ़ता दिख रहा है। इसका असर चालू शीतकालीन सत्र में दिखा। तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने साफ कर दिया है कि अदाणी रिश्‍वत मुद्दे पर संसद को ठप करने के लिए वे कांग्रेस पार्टी का साथ नहीं देंगे। वहीं, अडानी मुद्दे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग पर इंडिया गठबंधन को तृणमूल कांग्रेस का साथ नहीं मिलेगा। गठबंधन की सोमवार को बुलाई बैठक में तृणमूल कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं पहुंचा। सोमवार को कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर इंडिया ब्लॉक की बैठक में शामिल नहीं हुई थी।

टीएमसी ने अडानी विवाद से किया किनारा

टीएमसी ने पहले ही कांग्रेस से रूख बदलने की गुजारिश की थी। पार्टी का कहना था कि संसद में जनहित के मुद्दे उठाए जाने चाहिए। टीएमसी ने अडानी विवाद को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी है। पार्टी ने तर्क दिया है कि संसद सत्र का उपयोग बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि और केंद्र द्वारा विपक्षी शासित राज्यों के खिलाफ धन आवंटन में कथित भेदभाव के मुद्दों को उठाने के लिए किया जाना चाहिए।

इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व को लेकर घमासान

कांग्रेस और टीएमसी के बीच मतभेद की वजह ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का चेहरा बनाने की मांग को माना जा रहा है। दरअसल, हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हालिया चुनावी हार और बंगाल उपचुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन का जिक्र करते हुए, टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने कहा था कि नेता के अभाव में पूरा गठबंधन उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। आज, अगर हम वास्तव में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, तो इंडिया गठबंधन को मजबूत होना चाहिए। इसे हासिल करने के लिए, एक निर्णायक नेता आवश्यक है। कल्याण बनर्जी ने बीजेपी और पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी को एक संभावित दावेदार के रूप में इशारा करते हुए अपनी बात रखी।

ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता होना चाहिए- कीर्ति आजाद

कल्याण बनर्जी के बाद टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बड़ा कोई नेता नहीं है। उन्हें इंडिया ब्लॉक का नेता होना चाहिए। आने वाले समय में वह प्रधानमंत्री भी बनेंगी। टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद ने कहा कि ममता बनर्जी के पास बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकदम सही रिकॉर्ड है। ममता बनर्जी का रिकॉर्ड शानदार है। जब भी नरेंद्र मोदी को हार का सामना करना पड़ा है तो वह हमेशा पश्चिम बंगाल में ही हुआ है। कीर्ति आजाद ने कहा कि ममता दीदी ऐसी हैं जो सभी को साथ लेकर चलती हैं। उन्होंने ये भी कहा कि टीएमसी, विपक्षी इंडिया गठबंधन में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है। वह चाहती है कि गठबंधन में उसकी भी सुनी जाए, जबकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और इसलिए विपक्ष का नेतृत्व करती है।

विपक्ष संसद में विभाजित नहीं है- डेरेक ओब्रायन

कांग्रेस और टीएमसी के बीच रार की खबरों को राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने खारिज किया है। उन्होंने बुधवार को कहा कि संसद में भारतीय जनता पाटी (भाजपा) को घेरने की रणनीति में विपक्षी दल एकजुट हैं, लेकिन उनके तरीके अलग हैं। डेरेक ओब्रायन की यह टिप्पणी उन अटकलों के बीच आई है कि अदाणी मुद्दे पर संसद परिसर में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा आयोजित प्रदर्शन से तृणमूल के दूर रहने से ‘इंडिया’ गठबंधन में दरार पैदा हो गयी है। ब्रायन ने संवाददाताओं से कहा, 'संसद में विपक्ष एकजुट है, विभाजित नहीं है। हम संसद में भाजपा को घेरने की रणनीति पर एकजुट हैं, विभिन्न दल अलग-अलग तरीका अपनाते हैं।' उन्होंने कहा कि हर पार्टी संसद में अपने मुद्दे उठाना चाहती है।

संसद के शीतकालीन सत्र का आठवां दिन, अडानी मामले पर विपक्षी संसदों का विरोध प्रदर्शन

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संसद का शीतकाली सत्र चल रहा है। संसद के दोनों सदनों में अब तक भारी हंगामा और नारेबाजी देखी गई है। लोकसभा और राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष में तकरार बनी हुई है। हालांकि, बीते दो दिनों से सदनों की कार्यवाही चल रही है। आज भी दोनों सदनों में हंगामे के आसार हैं। आज सत्र का आठवां दिन है।

जैकेट के जरिए विपक्ष का विरोध

विपक्षी सांसदों ने आज अडानी मुद्दे पर विरोध के प्रतीक के रूप जैकेट पहना और संसद परिसर में प्रदर्शन किया। कांग्रेस सांसद काले रंग की जैकेट पहनकर प्रदर्शन करते दिखे। जैकेट पर लिखा है कि मोदी अदानी एक हैं। इस प्रदर्शन में प्रियंका गांधी भी शामिल रहीं।

अडानी मामले को लेकर संसद परिसर में प्रदर्शन किया

विपक्षी गठबंधन ‘ इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस ’ (इंडिया) के कई घटक दलों के सांसदों ने अडानी समूह से जुड़े मुद्दे को लेकर बुधवार को संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया और मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग दोहराई। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कुछ अन्य दलों के सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ नारे लगाए और जवाबदेही तय किए जाने की मांग की।

विपक्षी सांसद संसद भवन के ‘मकर द्वार ’ के निकट एकत्र हुए तथा नारेबाजी की। रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों में अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी और कंपनी के अन्य अधिकारियों पर अमेरिकी अभियोजकों द्वारा अभियोग लगाए जाने के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल संयुक्त संसदीय समिति से आरोपों की जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं।

जाति आधारित हमले के मामले में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न किए जाने पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने किया हस्तक्षेप

एक खाद्य वितरण एजेंट द्वारा नवी मुंबई पुलिस में एफआईआर दर्ज करने के प्रयासों को छह महीने तक बार-बार नजरअंदाज किए जाने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। कलवा के निवासी 43 वर्षीय रामसजीवन छोटेलाल कनौजिया को जून में रबाले के पटनी रोड पर पांच लोगों ने कथित तौर पर अगवा कर लिया और उसके साथ बुरी तरह मारपीट की। हमलावरों ने कथित तौर पर हमले के दौरान उसे जातिवादी गालियां दीं, जो 2022 से चली आ रही दुश्मनी से उपजी थी।

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आरोपियों की पहचान लालचंद सरोज, जयप्रकाश यादव, जयप्रकाश गौड़, विजय शर्मा और प्रमोदकुमार सिंह के रूप में की गई है, जो कनौजिया को जानते थे, जो खाद्य वितरण एजेंट के रूप में काम करते हैं और अनुसूचित जाति से हैं। कनौजिया का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता तुषार सोनवाने ने कहा, "पांचों आरोपियों ने पीड़ित को निचली जाति का होने के कारण पहले भी अपमानित किया था और उसे परेशान करने के लिए लगातार तरीके खोज रहे थे, लेकिन वह उनसे बचता रहा। जून में, पांचों आरोपियों ने उसके दोपहिया वाहन को रोका और उसे जबरदस्ती अपने वाहन में ले गए, उसे एक सुनसान जगह पर ले गए और उसके साथ बेहद घिनौने तरीके से मारपीट की। उसे लात मारी गई, बेल्ट से मारा गया और यहां तक ​​कि लोहे की रॉड से भी मारा गया। उसके पैर और हाथ पकड़े गए और आरोपियों में से एक ने उसका गला घोंटने की कोशिश की और जातिवादी गालियां दीं।"

घटना के बाद, कनौजिया ने कथित तौर पर नवी मुंबई पुलिस आयुक्तालय में शिकायत दर्ज कराने के कई प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सोनवाने ने कहा, "उन्होंने वेब पोर्टल के माध्यम से शिकायत दर्ज कराई और फिर व्यक्तिगत रूप से रबाले पुलिस स्टेशन के साथ-साथ आयुक्त कार्यालय में भी शिकायत की, लेकिन कोई संज्ञान नहीं लिया गया। इसलिए, उन्होंने आखिरकार उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।" कनौजिया ने 12 नवंबर को एक आपराधिक रिट याचिका दायर की और 23 नवंबर को उच्च न्यायालय ने पुलिस को उनका बयान दर्ज करने और उसके बाद उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया। रबाले पुलिस ने 3 दिसंबर को धारा 118(1)(2), 352, 110, 189(1), 191(2), 190, 140(4) के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की संबंधित धाराओं के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की।

रबाले पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ निरीक्षक बालकृष्ण सावंत ने कहा, "हमले के बाद, वह उत्तर प्रदेश में अपने पैतृक स्थान पर चले गए थे और वापस आने के बाद उन्होंने सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाया और शिकायत की कि उनकी शिकायत नहीं ली गई। हमने उन्हें पहले ही बता दिया था कि उनके वापस आने पर उनका बयान लिया जाएगा। मामला अत्याचार से संबंधित है और इसकी जांच सहायक पुलिस आयुक्त द्वारा की जा रही है।" मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

अमित शाह से क्यों मिलीं प्रियंका गांधी, एमपी बनने के बाद मुलाकात के क्या हैं मायने?

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प्रियंका गांधी केरल के वायनाड से सांसद चुनीं गई हैं। इसी चल रहे शीतकालीन सत्र में ही उन्होंने सांसद पद की शपथ ली है। सांसद चुने जाने के बाद प्रियंका एक्शन में दिख रही हैं। बाढ़ से अस्त-व्यस्त हो चुके केरल के वायनाड को उबारने के लिए प्रियंका गांधी लगातार सक्रिय हैं। इसी क्रम में प्रियंका गांधी ने बुधवार को वायनाड के स्पेशल पैकेज की मांग को लेकर संसद में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।

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2221 करोड़ का रिलीफ फंड की मांग

केरल के वायनाड में 30 जुलाई को भारी बारिश के बीच भूस्खलन हुआ था, जिससे बड़े इलाके में तबाही मच गई थी। इस लैंडस्लाइड में हजारों की संख्या में लोग प्रभावित हुए और सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। उन्हीं पीड़ित लोगों के लिए वायनाड सांसद प्रियंका गांधी ने विशेष पैकेज के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। इस मुलाकात के दौरान 21 और सांसद मौजूद थे। प्रियंका ने अमित शाह से वायनाड के लिए 2221 करोड़ का रिलीफ फंड जारी करने की मांग की है।

गृह मंत्री ने सकारात्मक भरोसा दिया

प्रियंका गांधी ने बताया कि वायनाड भूस्खलन पीड़ितों के लिए केंद्र सरकार से मुआवजे की मांग को लेकर हमने ये अमित शाह से मुलाकात की है। कांग्रेस सांसद ने कहा कि वहां जो स्थिति है, उससे हमने उन्हें अवगत कराया है। उन्हें बताया है कि वहां क्या-क्या हुआ है और लोग पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। लोगों के पास कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं बचा है। पत्रकारों से बात करते हुए प्रियंका ने कहा कि गृह मंत्री ने सकारात्मक भरोसा दिया है।

प्रियंका की अपील- राजनीति को परे रखते हुए मदद करें

प्रियंका गांधी ने कहा कि हमने अपील की है कि राजनीति को परे रखते हुए वहां लोगों की जितनी मदद की जाए वो करें। हमने उनसे कहा कि प्रधानमंत्री भी वायनाड गए थे। उन्होंने वहां के पीड़ित लोगों से मुलाकात की थी। अब उन लोगों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री आए थे तो जरूर कुछ मदद मिलेगी।

केन्द्र ने ठुकरायी राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग

बता दें कि जुलाई-अगस्त के महीने में केरल के वायनाड को भयावह बाढ़ का सामना करना पड़ा था। इस बाढ़ की वजह से करीब 400 लोगों की जान जा चुकी है। केरल सरकार ने वायनाड के इस बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने इसे ठुकरा दिया था। केरल सरकार का कहना था कि बिना राष्ट्रीय आपदा घोषित किए यहां राहत और पुनर्वास का काम आसान नहीं है। केरल सरकार ने इसके लिए केंद्र से 2 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी।

यह मुलाकात इस वजह से भी अहम कही जा सकती है क्योंकि गांधी परिवार की तरफ से केंद्र सरकार के किसी मंत्री और खास और पर गृह मंत्री से अपने लोकसभा क्षेत्र को लेकर इस तरह की मुलाकातें कम ही याद आती है।

महाराष्ट्र में फिर फडणवीस सरकार, बीजेपी, शिंदे गुट और अजित पवार खेमे से कौन-कौन बन सकता है मंत्री? देखें संभावित लिस्ट

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महाराष्ट्र में आज देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की शपथ लेंगे। मुंबई के आजाद मैदान में शाम साढ़े 5 बजे शपथ ग्रहण समारोह होगा।सरकार में पिछली बार की तरह की दो डिप्टी सीएम भी होंगे। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। इसके अलावा एनडीए शासित राज्यों के सीएम भी भाग लेंगे।शपथ ग्रहण समारोह में देश की कई सारी नामचीन हस्तियां शामिल होगी। समारोह में तीनों दलों के 40 हजार कार्यकर्ता-पदाधिकारी, साधु संत सहित 2,000 अति विशिष्ट व्यक्ति शामिल होंगे।

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तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे फडणवीस

देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। कल उन्हें सर्वसम्मति से महाराष्ट्र बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया था, जिससे उनके तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रास्ता साफ हो गया। मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल 2014 से 2019 के बीच पूरे पांच साल का था, जबकि दूसरा कार्यकाल नवंबर 2019 में लगभग 80 घंटे तक रहा।

शिंदे लेंगे डिप्टी सीएम पद की शपथ

फडणवीस के साथ महाराष्ट्र सरकार में दो डिप्टी सीएम भी होंगे। इनमें एक नाम एनसीपी नेता अजित पवार का माना जा रहा है, जबकि दूसरा नाम एकनाथ शिंदे का है। पहले इनके नाम पर कुछ साफ नहीं था लेकिन अब यह तय हो गया है कि शिंदे डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे। सूत्रों के मुताबिक देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद उन्होंने यह फैसला लिया है।

मंत्रिमंडल को लेकर चर्चा तेज

शपथ ग्रहण से पहले बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी के किन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, इसकी चर्चा तेज हो गई है। बीजेपी के एक नरिष्ठ नेता के मुताबिक, बीजेपी के 17 कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं, जबकि एनसीपी अजित पवार गुट और शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट को 7-7 कैबिनेट मंत्री मिल सकते हैं।

बीजेपी से संभावित मंत्री

बीजेपी से जिन नेताओं के मंत्री पद मिल सकता है, उनमें कोकण विभाग (मुंबई और ठाणे) से आशीष शेलार, मंगल प्रभात लोढ़ा, राहुल नार्वेकर, अतुल भातखलकर और नितेश राणे का नाम शामिल है। वहीं ठाणे जिले से रवीन्द्र चव्हाण और गणेश नाइक कैबिनेट मंत्री बन सकते हैं। पश्चिम महाराष्ट्र से माधुरी मिसाल, शिवेंद्र सिंह राजे भोसले, राधाकृष्ण विखे पाटिल और गोपीचंद पडलकर को मौका मिल सकता है। इसके अलावा विदर्भ रीजन से चन्द्रशेखर बावनकुले और संजय कुटे कैबिनेट मंत्री बन सकते हैं, जबकि उत्तर महाराष्ट्र से जयकुमार रावल और गिरीश महाजन कैबिनेट में जगह मिल सकती है। मराठवाड़ा से अतुल सावे और पंकजा मुंडे महायुति सरकार में कैबिनेट मंत्री बन सकते हैं।

शिवसेन-एनसीपी के संभावित मंत्री

अगर शिवसेना की बात करें तो शिवसेना से एकनाथ शिंदे, शंभूराज देसाई, दादा भुसे, गुलाबराव पाटिल, संजय राठौड़, उदय सामंत और अर्जुन खोतकर को जगह मिल सकती है। इसके साथ ही एनसीपी अजित पवार गुट से अजित पवार, छगन भुजबल, अदिति तटकरे, धनंजय मुंडे, संजय बनसोडे, अनिल भाईदास पाटिल और नरहरि जिरवाल मंत्री पद की शपथ ले सकते हैं।

महाराष्ट्र में बीजेपी 132 सीटों के साथ बड़ी पार्टी

महाराष्ट्र में एक ही चरण में 20 नवंबर को चुनाव हुआ था और 23 नवंबर को नतीजे आए थे। चुनाव में महायुति ने शानदार जीत हासिल की थी। 132 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके अलावा शिंदे की शिवसेना को 57 और अजित पवार को एनसीपी को 41 सीटें मिली थीं।

मोहम्मद यूनुस नरसंहार में शामिल', बांग्लादेश सरकार पर शेख हसीना का तीखा हमला

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर तीखा हमला बोला है। शेख हसीना ने कहा है कि देश की बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। जबकि उन्‍होंने (शेख हसीना) हिंसा रोकने के लिए देश तक छोड़ दिया, लेकिन गोली नहीं चलने दी। यही नहीं, हसीना ने आरोप लगाया कि यूनुस ने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया। साथ ही अपने पिता शेख मुजीर्बुर रहमान और बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया।

बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई-हसीना

हसीना ने न्यूयॉर्क में आयोजित एक कार्यक्रम को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हुए यूनुस पर नरसंहार करने और हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहने का आरोप लगाया। अगस्त में बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण देश छोड़कर भारत में शरण लेने के बाद यह हसीना का पहला सार्वजनिक संबोधन था। इस दौरान उन्होंने पांच अगस्त को ढाका में अपने आधिकारिक आवास पर हुए हमले का जिक्र करते हुए कहा, ''हथियारबंद प्रदर्शनकारियों को गणभवन की ओर भेजा गया। अगर सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां चलाई होतीं, तो कई लोगों की जान जा सकती थी। मुझे वहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। मैंने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे गोलियां न चलाएं।'' उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही उनकी और उनकी बहन शेख रेहाना की हत्या की साजिश रची गई थी।

यूनुस सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे-हसीना

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए में हसीना ने कहा, ‘‘आज मुझ पर नरसंहार का आरोप लगाया जा रहा है। वास्तव में, यूनुस एक सुनियोजित तरीके से नरसंहार में शामिल रहे हैं। इस नरसंहार के पीछे मुख्य षड्यंत्रकारी छात्र समन्वयक और यूनुस हैं।'' हसीना ने कहा कि ढाका में मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रही है। हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का परोक्ष संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू, बौद्ध, ईसाई - किसी को भी नहीं बख्शा गया है। ग्यारह गिरजाघरों को ध्वस्त कर दिया गया है, मंदिरों और बौद्ध उपासनास्थलों को तोड़ दिया गया है। जब हिंदुओं ने विरोध किया, तो इस्कॉन के संत को गिरफ्तार कर लिया गया।

हसीना ने पूछा- अल्पसंख्यकों पर अत्याचार क्यों हो रहा है?

हसीना ने इस दौरान बांग्लादेश सरकार से पूछा, ‘‘अल्पसंख्यकों पर यह अत्याचार क्यों हो रहा है? उन्हें क्यों सताया जा रहा है और उन पर हमला क्यों किया जा रहा है?'' उन्होंने कहा, ‘‘मुझे तो इस्तीफा देने का भी समय नहीं मिला।'' हसीना ने कहा कि उन्होंने हिंसा रोकने के उद्देश्य से अगस्त में बांग्लादेश छोड़ दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।''