दक्षिण कोरिया में भारी विरोध के बाद हटाया गया मार्शल लॉ. जाने क्या है पूरा मामला

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दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने मंगलवार को देश के विपक्ष पर संसद को नियंत्रित करने, उत्तर कोरिया के साथ सहानुभूति रखने और सरकार को राज्य विरोधी गतिविधियों से पंगु बनाने का आरोप लगाते हुए साउथ कोरिया में आपातकालीन मार्शल लॉ की घोषणा की थी। हालांकि, कुछ ही घंटों के भीतर मार्शन लॉ हटा लिया गया। यह फैसला संसद के भारी विरोध और वोटिंग के बाद लिया गया। वोटिंग में 300 में से 190 सांसदों ने सर्वसम्मति से मार्शल लॉ को स्वीकार करने के लिए मना कर दिया। मार्शल लॉ के ऐलान के बाद वहां की जनता भी सड़को पर उतर आई। आर्मी के टैंक सियोल की गलियों में घूमने लगे। हालांकि कि बिगड़ते हालातों और लगातार बढ़ते विरोध के कारण राष्ट्रपति ने अपना फैसला वापस ले लिया।

इससे पहले मंगलवार रात को राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में सरकार को कमजोर करने के विपक्ष के प्रयासों का जिक्र किया और कहा कि 'तबाही मचाने वाली देश विरोधी ताकतों को कुचलने के लिए मार्शल लॉ की घोषणा करते हैं।' राष्ट्रपति ने टीवी पर प्रसारित बयान में बताया कि देश को उत्तर कोरिया और देश विरोधी ताकतों से खतरा है। टीवी पर एक संबोधन में उन्होंने विपक्षी दलों पर सरकार को पंगु बनाने, उत्तर कोरिया के प्रति सहानुभूति रखने और संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए ‘इमरजेंसी मार्शल लॉ’ की घोषणा की थी।

राष्ट्रपति यून ने अपने संबोधन में कहा कि देश को उत्तर कोरिया की कम्युनिस्ट ताकतों और देश विरोधी तत्वों से बचाने के लिए यह कदम उठाना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि देश की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा के लिए यह फैसला लिया गया है। यह घोषणा उस समय हुई जब उनके सत्तारूढ़ दल पीपुल्स पावर पार्टी और विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच अगले साल के बजट को लेकर तीखा विवाद चल रहा था। मार्शल लॉ का अर्थ था कि देश अस्थायी तौर पर सेना के नियंत्रण में चला गया।

हालांकि विपक्ष का आरोप है कि अपनी राजनीति परेशानियों के चलते राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने का फैसला किया था। विपक्षी नेता ली जे-म्यांग ने यून की घोषणा को ‘अवैध और असंवैधानिक’ करार दिया।

इधर, राष्ट्रपति ने जैसे ही मार्शल लॉ लगाने का एलान किया, वैसे ही हजारों की संख्या में लोग दक्षिण कोरिया की सड़कों पर निकल आए और राजधानी सियोल में संसद के बाहर लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई। मार्शल लॉ लगते ही सैन्य बल संसद में दाखिल हो गए और संसद के बाहर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प शुरू हो गई। वहीं पुलिस को संसद में दाखिल होने से रोकने के लिए सांसद भी पुलिसकर्मियों से भिड़ गए। भारी विरोध के चलते राष्ट्रपति ने हार मान ली और कुछ ही घंटे बाद संसद में हुए मतदान को स्वीकार करते हुए मार्शल लॉ का आदेश वापस ले लिया।

भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में फिलिस्तीन का किया समर्थन, इजराइल के खिलाफ दिया वोट

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भारत ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर अपने पुराने रुख को बरकरार रखा। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में इजराइल के खिलाफ लाए गए एक प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें पूर्वी यरुशलम सहित 1967 से कब्जाए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र से इजराइल से वापस जाने का आह्वान किया गया है तथा पश्चिम एशिया में व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति प्राप्त करने के आह्वान को दोहराया गया है।

यह प्रस्ताव "फिलिस्तीन के सवाल का शांतिपूर्ण समाधान" शीर्षक से पेश किया गया था, जिसे सेनेगल ने प्रस्तावित किया। इसे 157 देशों का समर्थन मिला, जबकि 8 देशों - इजराइल, अमेरिका, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, अर्जेंटीना और हंगरी ने इसका विरोध किया। कई देशों ने मतदान से दूरी बनाई, जिनमें यूक्रेन, जॉर्जिया और चेकिया शामिल हैं। 

यूएन में पेश हुए इस प्रस्ताव में मांग की गई कि इजराइल 1967 से कब्जाई गए फिलिस्तीन के क्षेत्र, जिसमें पूर्वी यरुशलम का हिस्सा भी शामिल है को खाली करे। प्रस्ताव में फिलिस्तीन के लोगों के अधिकारों, खासकर उनके आत्मनिर्णय के अधिकारों और स्वतंत्र शासन का समर्थन किया गया। इस प्रस्ताव के तहत यूएन महासभा ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत इजराइल-फलस्तीन के बीच दो शासन से जुड़े हल (टू स्टेट सॉल्यूशन) का समर्थन किया। इसके तहत दोनों देशों के 1967 से पहले वाली सीमा के आधार पर शांति-सुरक्षा के साथ रहने की वकालत की जाती है।

प्रस्ताव में गाजा पट्टी में जनसांख्यिकीय या क्षेत्रीय परिवर्तन के किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया गया, जिसमें गाजा के क्षेत्र को सीमित करने वाली कोई भी कार्रवाई शामिल है। प्रस्ताव में इस बात पर भी जोर दिया गया कि गाजा पट्टी 1967 में कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और यह ‘द्वि-राष्ट्र समाधान के दृष्टिकोण की पुष्टि करता है, जिसमें गाजा पट्टी फिलिस्तीन का हिस्सा होगी।’

संयुक्त राष्ट्र लंबे समय से इजराइल से फिलिस्तीनी क्षेत्रों को छोड़ने की मांग करता रहा है। यह विवाद दशकों पुराना है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच विभाजन का कारण बना हुआ है। हालांकि, अमेरिका जैसे देश इस तरह के प्रस्तावों का विरोध करते रहे हैं और इजराइल का समर्थन करते हैं।

निर्मला सीतारमण ने क्यों कहा 'तमिलनाडु में हिंदी पढ़ना गुनाह'?

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में मंगलवार को बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पर चर्चा के दौरान बड़ी बात कही। बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पर लोकसभा में गरमागरम बहस के दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी पढ़ना गुनाह लगता है। दरअसल वो कहना चाह रहीं थीं कि तमिलनाडु में “हिंदी पढ़ना गुनाह है।”

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभा में वित्त मंत्री बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक पर चर्चा का जवाब दे रही थीं। इस दौरान उन्होंने सपा के सदस्य राजीव रॉय द्वारा उन्हें लिखे गए एक पत्र का जिक्र करते हुए हिंदी में कुछ कह रही थीं। तभी एक शब्द पर अटकने पर उन्होंने कहा कि मेरी हिंदी भाषा इतनी अच्छी नहीं है। इस पर कुछ सदस्यों ने उनका विरोध किया। वित्त मंत्री पर आरोप लगाया गया कि वो हिंदी का मजाक बना रही हैं।

इस पर वित्त मंत्री ने कहा, मैं अपनी हिंदी का मजाक बना रही हूं। क्योंकि मैं एक ऐसे राज्य से आती हूं जहां हिंदी पढ़ना गुनाह लगता है। इसलिए मुझे बचपन से हिंदी पढ़ने से रोका गया।

निर्मला सीतारमण तमिलनाडु से आती हैं। ऐसे में वहां की द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के नेताओं ने उनके बयान का विरोध किया। इस पर उन्होंने कहा, जब मैं कहती हूं कि (तमिलनाडु का) माहौल हिंदी सीखने के अनुकूल नहीं था तो ये मैं राज्य में अपने निजी अनुभव से कहती हूं। मेरा अपना अनुभव है कि स्कूल से अलग जब मैंने हिंदी सीखी तो तमिलनाडु की सड़कों पर मेरा मजाक उड़ाया गया। ये मेरा अपना अनुभव है।

उन्होंने द्रमुक सांसदों को आड़े हाथ लेते हुए कहा, ‘‘वे हिंदी को थोपने के खिलाफ हैं, मैं उसका समर्थन करती हूं। किसी पर कुछ भी नहीं थोपा जाना चाहिए।''लेकिन मुझ पर हिंदी नहीं सीखने का दबाव क्यों डाला गया। मैं जो भाषा सीखना चाहूं, सीख सकती हूं।'

सीतारमण ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' की बात करते हैं और सभी राज्यों को उनकी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कहा कि इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसी उच्च शिक्षा भी स्थानीय भाषाओं में दी जानी चाहिए। इसलिए मुझे कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि आज तमिलनाडु में भी मेडिकल शिक्षा तमिल में प्राप्त की जा सकती है।''

सीतारमण ने कहा कि मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो तमिल भाषा को संयुक्त राष्ट्र में ले गए, वह बार-बार अपने भाषणों में तमिल कवियों के उद्धरण का उल्लेख करते हैं क्योंकि वह उस भाषा का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘द्रमुक के गठबंधन सहयोगी दलों से बने एक प्रधानमंत्री का नाम बताएं जिन्होंने तमिल कवियों को उद्धृत किया। हमारे प्रधानमंत्री (मोदी) ने किया।''

मुख्यमंत्री के लिए नाम तय होते ही फडणवीस की पहली प्रतिक्रिया, बोले- 'एक हैं तो सेफ हैं' के नारे को जनता सही साबित किया

#maharashtra_new_cm_devendra_fadnavis_first_statement 

महाराष्ट्र को आखिरकार नया मुख्यमंत्री मिल गया। 23 तारीख को आए विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद लगातार सीएम के नाम पर सस्पेंस बना हुआ था। आखिरकार बुधवार को हुई बीजेपी विदायक दल की बैठक में देवेंद्र फडणवीस का नाम फाइनल हो गया। इसके साथ ये भी साफ हो गया कि वह राज्य के नए मुख्यमंत्री भी होंगे। फडणवीस गुरुवार शाम को सीएम पद की शपथ लेंगे। भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में सर्वसम्मति से चुने जाने के बाद फडणवीस ने दल के सभी सदस्यों का आभार जताया। साथ ही छत्रपति शिवाजी, अटल बिहारी वाजपेयी और अहिल्याबाई होल्कर को याद किया।

देवेंद्र फडणवीस ने विधायक दल का नेता चुनने के बाद कहा कि मैं उन सबका धन्यवाद करता हूं जिन्होंने मेरा समर्थन किया। महाराष्ट्र में हमें ऐतिहासिक जीत मिली। इस चुनाव में एक बात तो बता दी एक हैं तो सेफ हैं। हमें एकतरफा जीत देने के लिए में जनता का शुक्रिया करता हूं। उन्होंने आगे कहा, 'हमने हरियाणा के साथ अपनी जीत का सिलसिला फिर से शुरू किया है और अब महाराष्ट्र ने ऐसा प्रचंड जनादेश दिया है कि मैं महाराष्ट्र के मतदाताओं के सामने पूरी तरह से नतमस्तक हूं। 

अपने संबोधन में फडणवीस ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को विशेष धन्यवाद जो इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पूरे दिल से हमारे साथ रहे। आरपीआई नेता रामदास अठावले और सभी सहयोगी दलों को हृदय से धन्यवाद।

फडणवीस ने कहा, 'हमें गर्व है कि 2019 के बाद एक भी विधायक ने हमें नहीं छोड़ा और सभी एक साथ रहे और हमने 2022 में सरकार बनाई। आज भी महायुति को ऐतिहासिक जनादेश मिला है। मोदी जी लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बने हैं। मैंने वार्ड स्तर के नेता के रूप में शुरुआत की थी और अब मैं तीसरी बार मुख्यमंत्री भी बन गया हूं। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने चुनावों के दौरान महाराष्ट्र भाजपा को भारी समर्थन और बढ़ावा दिया है।'

बता दें कि बुधवार को हुई विधायक दल की बैठक में देवेंद्र फणडवीस को नेता चुना गया। देवेंद्र फणडवीस के नाम का प्रस्ताव चंद्रकांत पाटिल ने रखा। दूसरा प्रस्ताव सुधीर मुनगंटीवार ने रखा। इसके बाद पंकजा मुंडे, प्रवीण दरेकर, रवींद्र चव्हाण, संजय कुंटे, पूर्व मंत्री विधायक अशोक उईके, मेघना बोर्डिकर, योगेश सागर, संभाजी पाटिल नीलंगेकर, गोपीचंद पड़लकर, आशीष शेलार ने समर्थन किया। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को हुए चुनाव में भाजपा ने भारी सफलता हासिल की और राज्य की 288 विधानसभा सीट में से 132 सीट हासिल की, जो राज्य में उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। अपने सहयोगियों एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ, भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति के पास 230 सीट का भारी बहुमत है।

केंद्र से क्यों नाराज हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, कहा- किया गया वादा क्यों नहीं निभाया?

#vicepresidentjagdeepdhankharangryontheissueof_farmers

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किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं। किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर एक बार फिर सियासी पारा चढ़ता दिख रहा है। दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी किसानों के समर्थन में आए। किसान आंदोलन को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है। उन्होंने कहा, 'मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है। हम किसान को पुरस्कृत करने की बजाय, उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं।'

मुंबई में एक कार्यक्रम में मंगलवार को जगदीप धनखड़ ने कहा कि जिनको गले लगाना है, उनको दुत्कारा नहीं जा सकता। मेरे कठोर शब्द हैं। कई बार गंभीर बीमारी के इलाज के लिए कड़वी दवाई पीनी पड़ती है। मैं किसान भाइयों से आह्वान करता हूं कि मेरी बात सुनें, समझें। आप अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। राजनीति को प्रभावित करते हैं। भारत की विकास यात्रा के आप महत्वपूर्ण अंग हैं। सामाजिक समरसता की मिसाल हैं। बातचीत के लिए आपको भी आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा बना सकते हैं? मुझे समझ में नहीं आता कि किसानों के साथ कोई बातचीत क्यों नहीं हो रही है। मेरी चिंता यह है कि यह पहल अब तक क्यों नहीं हुई।

जगदीप धनखड के तीखे सवाल

उप राष्ट्रपति धनखड़ ने किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा,'कृषि मंत्री जी एक एक पल आपका भारी है। मेरा आपसे आग्रह है, भारत के सिद्धांत के तहत दूसरे पद विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है। कृप्या करके मुझे बताइए क्या किसान से वादा किया गया था और किया हुआ वादा क्यों नहीं निभाया गया।' जगदीप धनखड़ यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा,'किसानों से किया गया वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं। पिछले साल भी आंदोलन था और इस वर्ष भी आंदोलन है। काल चक्र घूम रहा है और हम कुछ कर नहीं रहे हैं।'

हमारी पॉलिसी मेकिंग सही ट्रैक पर नहीं है-धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, 'ये समय मेरे लिए कष्टदायक है क्योंकि मैं राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत हूं। पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूं कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था, दुनिया में हमारी साख पहले कभी इतनी नहीं थी, भारत का पीएम आज विश्व के शीर्ष नेताओं में गिना जाता है, जब ऐसा कोहरा है तो मेरा किसान परेशान क्यों है? ये बहुत गहराई का मुद्दा है। इसको हल्के में लेने का मतलब है कि हम प्रैक्टिकल नहीं हैं। हमारी पॉलिसी मेकिंग सही ट्रैक पर नहीं है। कौन हैं वो लोग जो किसानों को कहते हैं कि उसके उत्पाद का उचित मूल्य दे देंगे? मुझे समझ नहीं आता कि कोई पहाड़ गिरेगा। किसान अकेला है, जो असहाय है। '

कांग्रेस ने जताई खुशी

इस मामले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने खुशी जताई है, उन्होंने कहा कि जिन मामलों पर उपराष्ट्रपति ने सवाल किए हैं, यही मामले हमारी पार्टी और राहुल गांधी पिछले 5 सालों से उठा रहे हैं।कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हम उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, उन्होंने आगे कहा कि वे राज्यसभा के संरक्षक और संविधान के रक्षक हैं। उन्होंने कृषि मंत्री से जो सवाल पूछा, कांग्रेस पार्टी भी पिछले 4-5 साल से वही सवाल प्रधानमंत्री से पूछ रही है। हम इसी बात पर चर्चा चाहते हैं, और हमने इसके लिए नोटिस भी दिया है, हमें खुशी है कि उपराष्ट्रपति ने ये सवाल पूछा है।

केंद्र से क्यों नाराज हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, कहा- किया गया वादा क्यों नहीं निभाया?

#vice_president_jagdeep_dhankhar_angry_on_the_issue_of_farmers

किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं। किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर एक बार फिर सियासी पारा चढ़ता दिख रहा है। दरअसल, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी किसानों के समर्थन में आए। किसान आंदोलन को लेकर उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है। उन्होंने कहा, 'मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है। हम किसान को पुरस्कृत करने की बजाय, उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं।'

मुंबई में एक कार्यक्रम में मंगलवार को जगदीप धनखड़ ने कहा कि जिनको गले लगाना है, उनको दुत्कारा नहीं जा सकता। मेरे कठोर शब्द हैं। कई बार गंभीर बीमारी के इलाज के लिए कड़वी दवाई पीनी पड़ती है। मैं किसान भाइयों से आह्वान करता हूं कि मेरी बात सुनें, समझें। आप अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। राजनीति को प्रभावित करते हैं। भारत की विकास यात्रा के आप महत्वपूर्ण अंग हैं। सामाजिक समरसता की मिसाल हैं। बातचीत के लिए आपको भी आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा बना सकते हैं? मुझे समझ में नहीं आता कि किसानों के साथ कोई बातचीत क्यों नहीं हो रही है। मेरी चिंता यह है कि यह पहल अब तक क्यों नहीं हुई।

जगदीप धनखड के तीखे सवाल

उप राष्ट्रपति धनखड़ ने किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा,'कृषि मंत्री जी एक एक पल आपका भारी है। मेरा आपसे आग्रह है, भारत के सिद्धांत के तहत दूसरे पद विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है। कृप्या करके मुझे बताइए क्या किसान से वादा किया गया था और किया हुआ वादा क्यों नहीं निभाया गया।' जगदीप धनखड़ यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा,'किसानों से किया गया वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं। पिछले साल भी आंदोलन था और इस वर्ष भी आंदोलन है। काल चक्र घूम रहा है और हम कुछ कर नहीं रहे हैं।'

हमारी पॉलिसी मेकिंग सही ट्रैक पर नहीं है-धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, 'ये समय मेरे लिए कष्टदायक है क्योंकि मैं राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत हूं। पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूं कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था, दुनिया में हमारी साख पहले कभी इतनी नहीं थी, भारत का पीएम आज विश्व के शीर्ष नेताओं में गिना जाता है, जब ऐसा कोहरा है तो मेरा किसान परेशान क्यों है? ये बहुत गहराई का मुद्दा है। इसको हल्के में लेने का मतलब है कि हम प्रैक्टिकल नहीं हैं। हमारी पॉलिसी मेकिंग सही ट्रैक पर नहीं है। कौन हैं वो लोग जो किसानों को कहते हैं कि उसके उत्पाद का उचित मूल्य दे देंगे? मुझे समझ नहीं आता कि कोई पहाड़ गिरेगा। किसान अकेला है, जो असहाय है। '

कांग्रेस ने जताई खुशी

इस मामले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने खुशी जताई है, उन्होंने कहा कि जिन मामलों पर उपराष्ट्रपति ने सवाल किए हैं, यही मामले हमारी पार्टी और राहुल गांधी पिछले 5 सालों से उठा रहे हैं।कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हम उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, उन्होंने आगे कहा कि वे राज्यसभा के संरक्षक और संविधान के रक्षक हैं। उन्होंने कृषि मंत्री से जो सवाल पूछा, कांग्रेस पार्टी भी पिछले 4-5 साल से वही सवाल प्रधानमंत्री से पूछ रही है। हम इसी बात पर चर्चा चाहते हैं, और हमने इसके लिए नोटिस भी दिया है, हमें खुशी है कि उपराष्ट्रपति ने ये सवाल पूछा है।

चीन के गुइझोउ में ओवरलोड सरकारी नाव पलटने से 8 लोगों की मौत

चीनी अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि इस सप्ताह की शुरुआत में दक्षिण-पश्चिमी चीन के गुइझोउ प्रांत में "गंभीर रूप से ओवरलोड" सरकारी नाव पलटने से आठ लोगों की मौत हो गई। राष्ट्रीय आपातकालीन प्रबंधन मंत्रालय के एक ऑनलाइन बयान के अनुसार, सोमवार को गुइझोउ प्रांत में हुई दुर्घटना के दृश्य से पांच लोगों को बचा लिया गया।

बयान के अनुसार, नाव स्थानीय शहर-स्तरीय सरकार के स्वामित्व में थी, जिसने घटना के लिए "गंभीर जवाबदेही" की मांग की। मंत्रालय ने कहा कि जहाज "नियमों का उल्लंघन करते हुए यात्री-वाहक व्यावसायिक गतिविधियों में लगा हुआ था और गंभीर रूप से ओवरलोड था।" चीनी आउटलेट कैक्सिन ने कहा कि नाव स्थानीय ग्रामीणों को पिंगझेंग नदी के उस पार जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने के लिए ले जा रही थी। उस नदी पर नावों में आमतौर पर यात्री नहीं होते हैं, घटनास्थल के पास मौजूद एक व्यक्ति ने कैक्सिन को बताया।

अस्पष्ट नियमों और ढीले प्रवर्तन के कारण चीन में अक्सर घातक दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। अगस्त में पड़ोसी सिचुआन प्रांत में एक खनन दुर्घटना में आठ लोगों की जान चली गई। मार्च में उत्तरी चीन के हेबेई प्रांत में गैस विस्फोट में सात लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए। पूर्वी शहर नानजिंग में फरवरी में एक आवासीय इमारत में आग लगने से 15 लोगों की मौत हो गई।

संदिग्ध हालत में स्कूल में छठी कक्षा के छात्र की मौत, परिवार को स्कूल प्रबंधन पर शक

पुलिस ने बताया कि मंगलवार सुबह दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के एक निजी स्कूल में 12 वर्षीय छात्र की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उन्होंने बताया कि वसंत विहार के कुदुमपुर पहाड़ी का निवासी प्रिंस छठी कक्षा का छात्र था। पुलिस को शक है कि उसकी मौत दौरा पड़ने से हुई होगी। हालांकि, परिवार ने आरोप लगाया है कि प्रिंस को उसके सहपाठी ने पीटा था।

पुलिस ने बताया कि वसंत कुंज के फोर्टिस अस्पताल से सुबह 10.15 बजे सूचना मिली कि प्रिंस को मृत अवस्था में लाया गया था। पुलिस ने एक बयान में बताया कि शव की जांच और जांच करने पर पता चला कि शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं थे, लेकिन उसके मुंह से झाग जैसा कुछ निकल रहा था। डॉक्टरों ने मौखिक रूप से सुझाव दिया कि लड़के को ऐंठन संबंधी बीमारी हो सकती है, लेकिन जांच की कार्यवाही जारी है। स्कूल के छात्रों और शिक्षकों से पूछताछ की जा रही है और उसके अनुसार आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

प्रिंस के पिता सागर, जो वसंत विहार सोसाइटी में सीवर लाइन वर्कर के रूप में काम करते हैं, ने कहा कि उनके बेटे का कोई मेडिकल इतिहास नहीं था और जब उन्होंने उसे स्कूल में छोड़ा था, तब वह पूरी तरह से स्वस्थ था। सागर ने पीटीआई से कहा, "मेरा बेटा पूरी तरह से स्वस्थ था और उसे दौरे पड़ने का कोई इतिहास नहीं था। वह फुटबॉल भी खेलता था और एक अच्छा खिलाड़ी था, अंतर-विद्यालय टूर्नामेंट में भाग लेता था और कई पदक जीतता था।" उन्होंने कहा कि "स्कूल और पुलिस की थ्योरी में कुछ गड़बड़ है।" उन्होंने दावा किया कि कुछ छात्रों ने उन्हें बताया कि प्रिंस का एक सहपाठी के साथ झगड़ा हुआ था, जिसके दौरान वह गिर गया और फिर स्कूल के शिक्षक उसे अस्पताल ले गए। उसे पहले होली एंजल्स अस्पताल ले जाया गया और बाद में फोर्टिस अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। सागर ने आगे कहा कि उन्होंने काम पर जाने से पहले अपने बेटे को स्कूल में छोड़ा था। उन्होंने कहा, "मुझे सुबह 9.45 बजे स्कूल से फोन आया कि मेरे बेटे को चोट लगी है और जब मैं अस्पताल पहुंचा, तो वह पहले ही मर चुका था।"

सागर के दो बेटों में प्रिंस छोटा था। उसका बड़ा भाई प्रियांशु दूसरे निजी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ता है। प्रिंस के चाचा विनीत ने घटना के दौरान उसके क्लास टीचर और अन्य स्टाफ की अनुपस्थिति पर सवाल उठाए। घटना के बारे में स्कूल की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नाम का एलान, देवेंद्र फडणवीस चुने गए भाजपा विधायक दल के नेता

#maharashtra_govt_formation_devendra_fadnavis

महाराष्‍ट्र के अगले सीएम के रूप में देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई है। बीजेपी की कोर कमेटी ने फडणवीस को महाराष्‍ट्र के अगले सीएम के रूप में चुना है। इस महाराष्‍ट्र विधानसभा में बीजेपी के विधायक दल की बैठक जारी है। उन्‍हें सदन के नेता के रूप में चुने जाने की कार्यवाही जारी है। कल देवेंद्र फडणवीस मुंबई में शपथ लेंगे।

महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि हमें फडणवीस के नेतृत्व में जीत मिली है। वे राज्य के विकास के लिए लगातार काम करते रहे हैं। इसके बाद चंद्रकांत पाटिल और सुधीर मुगंटीवार ने फडणवीस के नाम का प्रस्ताव रखा। पंकजा मुंडे ने उनके नाम का अनुमोदन किया।

दो बार सीएम रह चुके देवेंद्र फडणवीस को इस पद के लिए रेस में सबसे आगे थे। वह 2014 में पहली बार राज्य के सीएम बने थे। इस बार विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन ने प्रचंड जीत दर्ज की है। गठबंधन को 230 विधानसभा सीटों पर जीत मिली है। इसमें बीजेपी के खाते में सबसे ज्यादा 132 सीटें आई हैं। एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 57 और अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली है।

हमले के वक्त गुरुद्वारे के बाहर क्या कर रहे थे सुखबीर बादल, जानें क्यों हुई धार्मिक सज़ा?
#religious_punishment_by_akal_takht_to_sukhbir_singh_badal
* शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल पर जानलेवा हमला हुआ है। सुखबीर सिंह बादल को बुधवार की सुबह उस वक्त गोली मारने की कोशिश की गई जब वे अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में धार्मिक सजा काट रहे थे। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल दरबार साहिब के गेट पर दरबान के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे। तभी एक हमलावर सामने से आता है और उन पर पिस्तौल से हमला कर देता है। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर सुखबीर सिंह बादल दरबार साहिब के गेट पर दरबान के रूप में क्यों तैनात थे? आखिर सुखबीर सिंह बादल को अकाल तख़्त की ओर से सुनाई गई धार्मिक सेवा सज़ा क्या है? अकाल तख़्त सिख धर्म से जुड़ी सबसे बड़ी धार्मिक संस्था है और उसे ये अधिकार है कि वो अपराधों के लिए किसी भी सिख को तलब करे और उसके ख़िलाफ़ धार्मिक सज़ा का एलान करे, जिसे ‘तन्खाह’ कहते हैं। सिख परम्पराओं के अनुसार, अगर कोई सिख, सिख धर्म के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ काम करता है या सिख समुदाय की भावनाओें के विपरीत काम करता है तो उसे अकाल तख़्त की ओर से धार्मिक सज़ा सुनाई जा सकती है। तनखैया घोषित किया गया व्यक्ति ना तो किसी भी तख्त पर जा सकता है और ना किसी सिंह से अरदास करवा सकता है, अगर कोई उसकी तरफ से अरदास करता है तो उसे भी कसूरवार माना जाता है। अकाल तख्त साहिब की ओर से जब किसी शख्स को तनखैया करार दिया जाता है तो इस दौरान मिलने वाली सजा का कड़ाई से पालन करना होता है। दोषी व्यक्ति को पूरे सिखी स्वरूप में सेवा देनी होती है। उसे पांचों ककार (कच्छा, कंघा, कड़ा, केश और कृपाण) धारण करके रखने होते हैं। इसके अलावा शारीरिक स्वच्छता का भी पालन करना होता है।रोजाना अरदास में शामिल होना पड़ता है। सजा की अवधि तक व्यक्ति को गुरुद्वारा साहिब में ही रहना पड़ता है। मतलब घर जाने की भी मनाही रहती है। परिवार के सदस्य गुरुद्वारा साहिब में आकर मुलाकात कर सकते हैं, लेकिन दोषी व्यक्ति को वहां से बाहर जाने की अनुमति नहीं रहती है। दो दिसम्बर को सिख प्रतिनिधियों और सिखों के पांच प्रमुख धर्म स्थलों के मुखिया की अकाल तख़्त में मीटिंग हुई थी. और इसी मीटिंग में सुखबीर बादल समेत 2007 से 2017 के बीच उनके कैबिनेट में मंत्री रहे 17 लोगों को धार्मिक सज़ा दी गई। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रखवीर सिंह ने हजारों लोगों की मौजूदगी में अकाल तख्त की गैलरी से पढ़ कर सजा सुनाई। यह सजा सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम को माफी दिलाने, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और सिख युवाओं की हत्या करवाने वाले पुलिस अधिकारियों को उच्च पदों पर आसीन करने समेत कई पंथक गलतियों के लिए सुनाई गई। 14 जुलाई को श्री अकाल तख्त साहिब पर पांचों तख्तों के जत्थेदारों की बैठक हुई थी। इसमें इन गलतियों के लिए 15 दिन के अंदर सुखवीर बादल से स्पष्टीकरण मांगा गया था। 30 अगस्त को सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त ने तनखाहिया (पंधक गलतियों का दोषी) घोषित किया था। 24 जुलाई को सुखबीर ने बंद लिफाफे में अकाल तख्त को स्पष्टीकरण दिया था। साल 2007 से 2017 के बीच पंजाब में शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी की गठबंधन सरकार थी। दिवंगत अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल इस सरकार में मुख्यमंत्री थे जबकि सुखबीर बादल पार्टी के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री थे। अकाली दल के नेतृत्व पर सिख धर्म के सिद्धातों और सिख समुदाय की भावनाओं के विपरीत काम करने का आरोप है। साल 2015 में पंजाब के बरगारी में गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान हुआ था। गुरुग्रंथ साबिह के अपमान के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस फ़ायरिंग में दो सिख युवकों की मौत हो गई थी। कथित तौर पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम के अनुयायियों पर अपमान करने के आरोप लगाए गए थे। अक्तूबर में राम रहीम के ख़िलाफ़ अपमान के मामले में सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही फिर से शुरू हुई। वहीं, साल 2007 में बठिंडा के सलबतपुरा में जुटे अपने अनुयायियों के बीच राम रहीम ने गुरु गोबिंद सिंह की नकल की थी। इस घटना के बाद डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों और सिखों के बीच झड़प हुई। साल 2007 में अकाल तख़्त ने राम रहीम के बहिष्कार का आदेश जारी किया था। यह सज़ा इस आरोप के तहत दी गई है कि 2007 में सिख समुदाय ने राम रहीम का बहिष्कार किया था इसके बावजूद अकाली नेतृत्व ने उनसे संबंध बनाए रखे। आरोप ये भी है कि कथित तौर पर अकाली नेतृत्व ने अकाल तख़्त की ओर से उन्हें माफ़ी दिलाने में मदद की। सोमवार को सुखबीर पांव में चोट लगी होने के कारण व्हील चेयर पर बैठकर अकाल तख्त के समक्ष पेश हुए। इस दौरान ज्ञानी रघवीर सिंह ने सुखबीर व पूर्व मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा को श्री दरबार साहिब के बाहर घंटाघर प्रवेश द्वार के समक्ष दो दिन के लिए एक-एक घंटा सेवादार की पोशाक पहन बरछा हाथ में लेकर सुबह नौ से दस बजे तक बैठना होगा। इस दौरान उन्हें अपने गले में अकाल तख्त की ओर से दी गई तख्ती भी पहननी होगी। उन्हें तख्त श्री केसगढ़ साहिब, तख्त श्री दमदमा साहिब, गुरुद्वारा मुक्तसर साहिब, गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब में एक-एक घंटा संगत के बर्तन व जूते साफ करने होंगे। इन गुरुद्वारों में उन्हें एक-एक घंटे तक कीर्तन का श्रवण भी करना होगा। सजा पूरी होने के बाद उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश होकर 11 हजार रुपये की कड़ाह प्रसाद की देग और 11 हजार रुपये गुरु की गोलक में डालने की हिदायत दी गई है। जत्थेदार ने आदेश दिया कि सुखबीर का शिअद अध्यक्ष पद से दिया गया इस्तीफा तीन दिन में स्वीकार किया जाए। छह माह के भीतर पार्टी का पुनगर्ठन कर पार्टी के संविधान और लोकतांत्रिक ढंग से नए पदाधिकारियों का चयन किया जाए।