सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत किशोर की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी की बिहार उपचुनाव टालने की याचिका की खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नवगठित जन सुराज पार्टी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें बिहार में कल होने वाले उपचुनाव टालने की मांग की गई थी। चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी ने छठ पूजा के कारण उपचुनाव टालने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा, "हस्तक्षेप करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। अदालतों को ऐसे मामलों (मतदान पुनर्निर्धारित करने) में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उपचुनाव के लिए सभी व्यवस्थाएं कर ली गई हैं।" जन सुराज को फटकार लगाते हुए पीठ ने यह भी कहा कि किसी अन्य पार्टी को मतदान की तारीख से कोई समस्या नहीं है। पीटीआई के अनुसार, न्यायाधीशों ने कहा, "केवल आपको समस्या है। आप एक नई राजनीतिक पार्टी हैं, आपको इन उतार-चढ़ावों को समझने की जरूरत है।"

सिंघवी ने धार्मिक आयोजनों के आधार पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल में चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तिथि आगे बढ़ाए जाने का उदाहरण दिया। उन्होंने तर्क दिया, "छठ पूजा के बावजूद बिहार चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। बिहार में छठ पूजा जितना महत्वपूर्ण कोई दूसरा त्योहार नहीं है।" बुधवार को राज्य में रामगढ़, तरारी, बेलागंज और इमामगंज विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होंगे। मतों की गिनती 23 नवंबर को होगी।

किशोर के नेतृत्व वाले संगठन ने अपने पहले चुनावी मुकाबले में सभी चार निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे हैं। इसने रामगढ़ में सुशील कुशवाहा, तरारी में किरण सिंह, बेलागंज में मोहम्मद अमजद और इमामगंज में जितेंद्र पासवान को टिकट दिया है। शुरुआत में सेना के पूर्व उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) श्रीकृष्ण सिंह को तरारी से मैदान में उतारा गया था, जबकि बेलागंज से खिलाफत हुसैन को उम्मीदवार बनाया जाना था।

370 का मुद्दा महाराष्ट्र-झारखंड के चुनाव को कितना करेगा प्रभावित? एनसी का प्रस्ताव बनेगी कांग्रेस की परेशानी

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एक बार फिर अनुच्छेद 370 का मुद्दा गर्मा गया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अंदर हाल ही में उमर अब्दुल्ला की सरकार ने धारा 370 बहाल करने से जुड़ा एक प्रस्ताव पास करवा लिया है। जिसको लेकर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पिछले दिनों जमकर हंगामा हुआ। हालांकि, अब ये मुद्दा जम्मू-कश्मीर से आगे बढ़कर महाराष्ट्र और झारखंड तक पहुंच गया है। दरअसल, महाराष्ट्र और झारखंड में इसी महीने विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी ने इस मुद्दे को लपक लिया है। भाजपा के दिग्गज नेताओं ने चुनावी प्रचार के दौरान इस मुद्दे को भुनाना शुरू कर दिया है। अपनी चुनावी रैलियों में पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा से विशेष दर्जे की बहाली के प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पर निशाना साध रहे हैं।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धारा 370 की वापसी के प्रस्ताव को मुद्दे को उठाया और उसे कांग्रेस की साजिश करार दिया। प्रधानमंत्री ने चुनावी रैली में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि महाराष्ट्र की जनता को जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की साजिशों को समझना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि देश की जनता कभी भी अनुच्छेद 370 पर इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा। जब तक मोदी है, कांग्रेस कश्मीर में कुछ नहीं कर पाएगी। जम्मू-कश्मीर में केवल भीम राव अंबेडकर का संविधान चलेगा, कोई भी ताकत 370 को फिर से वापस नहीं ला सकती है।

गृह मंत्री अमित शाह ने भी महाराष्ट्र के सांगली और कराड की रैली में 370 के बहाने कांग्रेस को घेरा। उन्होंने भी चुनौती दी कि चाहे कुछ भी हो जाए जम्मू-कश्मीर में 370 वापस नहीं हो सकता। अमित शाह ने कहा कि न तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी और न ही उनकी आने वाली पीढ़ियां जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को वापस ला पाएंगी।

कुल मिलाकर कहें तो 370 के मुद्दे पर बीजेपी पूरी तरह से आक्रामक है। 370 पर विधानसभा के प्रस्ताव के ज़रिए वो महाराष्ट्र और यूपी में INDIA गठबंधन को घेर रही है। ऐसे में सवाल ये कि क्या जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रस्ताव पास करके उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस को फंसा दिया है? क्या ग़लत समय पर ये प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया? इससे भी अहम सवाल क्या 370 का मुद्दा बीजेपी को चुनाव में फायदा पहुंचाएगा और कांग्रेस को नुकसान?

बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाली महायुति का प्रदर्शन बहुत आशाजनक नहीं रहा था, ऐसे में बीजेपी और महायुति की पार्टियां फिर से महाराष्ट्र में सत्ता में वापस पाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इसी तरह से झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्ता में बीजेपी उसे सत्ता से हाटने के लिए उस पर लगातार हमला बोल रही है। दोनों ही राज्यों में मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी बनाम कांग्रेस का है। एक राज्य में अगर महा विकास अघाड़ी है तो दूसरे में जेएमएम गठबंधन चुनौती दे रहा है। इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी के लिए स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रवाद का मुद्दा भी जरूरी रहने वाला है।

बीजेपी के लिए तो जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भी भावनाओं वाला ही रहा है, उसकी विचारधारा एक देश एक विधान और एक निशान वाली रही है। समाज का एक बड़ा वर्ग भी इसी सिद्धांत से सहमत नजर आता है। ये बात कांग्रेस भी बखूबी जानती है। शायद यही वजह है कि इस प्रस्ताव के बाद कांग्रेस का ना कोई स्टैंड देखने को मिला, ना कोई स्पष्ट बयान आया है।

उसे इस बात का भी अहसास है कि 370 का मुद्दा सिर्फ राष्ट्रवाद का ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। अगर बीजेपी को मौका लगा वो तुरंत कांग्रेस को देश विरोधी बता देगी जिसका सीधा नुकसान महाराष्ट्र और झारखंड में उठाना पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस ने ना अभी 370 पर कुछ बोलेगी और शायद आगे भी ऐसी ही सियासी चुप्पी साधे रखेगी।

दक्षिण कोरिया की सत्तारूढ़ पार्टी ने ट्रंप की धमकी को टालने के लिए चिप्स कानून बनाने की बनाई योजना

दक्षिण कोरिया की सत्तारूढ़ पार्टी ने सोमवार को चिप निर्माताओं को सब्सिडी देने और काम के घंटों पर राष्ट्रीय सीमा से छूट देने के लिए एक विशेष चिप्स अधिनियम का प्रस्ताव रखा, ताकि आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उठाए जाने वाले कदमों से संभावित जोखिमों से निपटा जा सके।

सेमीकंडक्टर उद्योग व्यापार पर निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जो एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसमें पिछले साल कुल निर्यात में चिप्स का हिस्सा 16% था।

पिछले सप्ताह, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओल ने चीनी आयात पर भारी टैरिफ लगाने की ट्रंप की धमकी से उत्पन्न जोखिमों के बारे में चेतावनी दी थी, जो चीनी प्रतिद्वंद्वियों को निर्यात कीमतों में कटौती करने और विदेशों में कोरियाई चिप फर्मों को कम करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस विधेयक को पारित होने के लिए मुख्य विपक्षी दल से अनुमोदन की आवश्यकता है, यह ऐसे समय में आया है जब सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे चिप निर्माता भी चीन, ताइवान और अन्य देशों में प्रतिद्वंद्वियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं।

बिल के प्रायोजकों में से एक, सांसद ली चुल-ग्यू ने एक बयान में कहा कि इससे कोरियाई कंपनियों को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी, क्योंकि चीन, जापान, ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका चीन के बीच सेमीकंडक्टर व्यापार युद्ध के बीच निर्माताओं को सब्सिडी दे रहे हैं। शोध और विकास में शामिल कुछ कर्मचारियों को बिल के तहत लंबे समय तक काम करने की अनुमति दी जाएगी, जिसका उद्देश्य अधिकतम 52 घंटे काम करने के साप्ताहिक घंटों को सीमित करने वाले श्रम कानून को माफ करना है।

इस महीने, सैमसंग के श्रमिक संघ ने इस तरह के कदम का विरोध किया, यह कहते हुए कि कंपनी अपनी "प्रबंधन विफलता" के लिए कानून को दोष देने की कोशिश कर रही है। पिछले महीने, सैमसंग ने अपने निराशाजनक लाभ के लिए माफ़ी मांगी, क्योंकि यह चीनी कंपनियों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण कृत्रिम बुद्धिमत्ता चिप्स की बढ़ती मांग को पूरा करने में प्रतिद्वंद्वियों TSMC और SK Hynix से पीछे रह गया है। अक्टूबर में, ट्रम्प ने आयात शुल्क के पक्ष में ताइवान के TSMC, दक्षिण कोरिया के सैमसंग और SK Hynix और अन्य के लिए संघीय चिप सब्सिडी को खत्म करने की धमकी दी थी।

धर्म को खतरे में बताने वालों की पार्टी खतरे में है’ भाई के लिए चुनाव प्रचार कर रहे रितेश देशमुख का तीखा भाषण

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और सभी पार्टियां चुनावी प्रचार में जुटी हैं। इस बीच बॉलीवुड एक्टर रितेश देशमुख भी चुनावी मैदान में उतर गए हैं और अपने दोनों भाइयों के लिए प्रचार कर रहे हैं।कांग्रेस के लिए प्रचार करते हुए रितेश देशमुख ने राज्य सरकार और बीजेपी पर तीखा हमला बोला।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए बॉलीवुड अभिनेता रितेश देशमुख ने अपने भाई और कांग्रेस नेता धीरज देशमुख के लिए चुनाव प्रचार किया।कांग्रेस के लिए प्रचार करते हुए उन्होंने कहा कि लोग दावा करते हैं कि उनका धर्म खतरे में हैं, लेकिन वास्तव में उनकी पार्टी खतरे में है। रविवार की रात एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जो ईमानदारी से काम नहीं करते हैं, उन्हें धर्म की जरूरत पड़ती है। रितेश लातूर में अपने भाई के लिए प्रचार कर रहे हैं। इस क्षेत्र में धीरज का सामना भाजपा के रमेश कराड से होने वाला है।

रितेश देशमुख ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, भगवान श्रीकृष्म कहते हैं कि कर्म ही धर्म है। जो ईमानदारी से अपना काम करता है, वह धर्म कर रहा है। धर्म की जरुरत उन्हें होती है जो काम नहीं करते हैं। उन्होंने आगे कहा, जो यह दावा करते हैं कि उनका धर्म खतरे में हैं, यह उनकी पार्टी है जो खतरे में है। वे अपनी पार्टी और खुद को बचाने के लिए अपने धर्म से प्रर्थना करते हैं। उन्हें बोल दीजिए कि हम अपने धर्म की रक्षा कर लेंगे, आप पहले विकास पर बात कीजिए।

रितेश देशमुख ने विपक्षी पार्टी पर हमला करते हुए आगे कहा, देश के शिक्षित यूथ के पास नौकरियां नहीं हैं और उन्हें नौकरियां देना सरकार की जिम्मेदारी है। साथ ही एक्टर ने किसानों की बात करते हुए कहा, किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य नहीं मिल रहा है। रितेश देशमुख ने इस बात की तरफ भी इशारा किया कि साल 2019 के चुनाव में धीरज ने 1.21 लाख वोटों से जीत हासिल की। रितेश देशमुख ने जनता से कहा कि धीरज देशमुख को इतना वोट करो कि विपक्षी उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाए। रितेश देशमुख ने साथ ही लोगों से उनकी वोट की कीमत समझने पर जोर दिया।

बता दें कि महाराष्ट्र के लातूर जिले की दोनों विधानसभा सीटों से पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के दो बेटे अमित देशमुख और धीरज देशमुख कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। रितेश के बड़े भाई अमित लातूर सिटी विधानसभा से चुनावी मैदान में हैं, जबकि छोटे भाई धीरज लातूर ग्रामीण सीट से दूसरी बार चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। वहीं, बॉलीवुड एक्टर रितेश देशमुख अपने दोनों भाइयों के लिए चुनाव प्रचार में जुटे हैं।

सिद्धारमैया के मंत्री जमीर अहमद खान का विवादित बयान, पूर्व सीएम कुमारस्वामी पर की अमर्यादित टिप्पणी

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कर्नाटक में सियासी बवाल खड़ा हो गया है। विवाद शुरू हुआ है सिद्धारमैया के एक मंत्री के बयान से। सिद्धारमैया सरकार में मंत्री बी जेड जमीर अहमद खान ने पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमास्वामी को लेकर नस्लीय बयान दिया। जिके बाद विवाद शुरू हो गया है। जेडीएस ने कर्नाटक सरकार से जमीर अहमद के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए उन्हें पद से बर्खास्त करने की मांग की। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी जमीर अहमद के बयान की निंदा की और इसे लेकर कांग्रेस सरकार को घेरा।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में मंत्री जमीर अहमद खान ने मोदी सरकार में मंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी पर हमला बोलते हुए मर्यादा की सीमा तोड़ दी। खान ने कुमारस्वामी की फोटो दिखाते हुए कहा कि केंद्रीय मंत्री को 'कालिया कुमारस्वामी' कहकर संबोधित किया।

रविवार को रामनगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए जमीर अहमद ने कहा कि चन्नपटना सीट से कांग्रेस उम्मीदवार सीपी योगेश्वर के पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि 'हमारी पार्टी में कुछ मतभेदों के चलते योगेश्वर ने बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा। ऐसे में उनके पास भाजपा में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वह जेडीएस में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि कालिया कुमारस्वामी भाजपा से भी ज्यादा खतरनाक थे। अब वे (योगेश्वर) वापस घर (कांग्रेस) आ गए हैं।'

कुमारस्वामी को कालिया कहने के बाद राज्य का सियासी पारा हाई हो गया है। जेडीएस ने कांग्रेस सरकार से इस नस्ली टिप्पणी के लिए जमीर को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की है।पार्टी ने कहा, छोटी मानसिकता वाले शख्स को मंत्रिमंडल से तुरंत बर्खास्त किया जाए।

संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी जमीर खान के बयान की आलोचना की। रिजिजू ने सोशल मीडिया पर साझा पोस्ट में लिखा कि मैं कांग्रेस के मंत्री जमीर अहमद द्वारा केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक के पूर्व सीएम कुमारस्वामी के खिलाफ विवादित टिप्पणी की कड़ी निंदा करता हूं। यह एक नस्लवादी टिप्पणी है, ठीक वैसे ही जैसे राहुल गांधी के सलाहकार ने दक्षिण भारतीयों को अफ्रीकी, पूर्वोत्तर के लोगों को चीनी और उत्तर भारतीयों को अरब बताया था।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

फिर सुलगने लगा बांग्लादेश, अब शेख हसीना के समर्थक सड़कों पर, ट्रंप के जीतते ही आवामी लीग में उत्साह!

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बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी अवामी लीग की नेता शेख हसीना एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। दरअसल, बांग्लादेश में एक बार फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है। इस बार शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता सड़क पर उतर गए हैं।शेख हसीना की पार्टी के समर्थकों और भूमिगत हुए नेता रविवार को ढाका के गुलिस्तान, जीरो पॉइंट, नूर हुसैन स्क्वायर इलाकों में सड़कों पर उतरे।अपने नेताओं को गलत तरीके से फंसाने, छात्र विंग पर प्रतिबंध लगाने और एएल कार्यकर्ताओं को सताने के लिए अवामी लीग द्वारा यह विरोध प्रदर्शन किया गया।

5 अगस्त को शेख हसीना के तख्तापलट के बाद तीन महीनों में जो नहीं हुआ ढाका में वो देखना को मिला। तख्तापलट के बाद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्ता हमलों का शिकार हुए। वो अब अचानक खुलकर यूनुस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। हालांकि अंतरिम सरकार ने उन्हें चेतावनी दी लेकिन वो नहीं माने। कुछ समय पहले अंतरिम सरकार ने अवामी लीग के स्टूडेंट विंग ‘स्टूडेंट लीग’ को बैन कर दिया था। संगठन के खिलाफ 2009 के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत ये कार्रवाई की गई। स्टूडेंट लीग को सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों में शामिल पाया गया। इसी के खिलाफ अवामी लीग ने मोर्चा खोल दिया। वो नेता भी बाहर आ गए जो कल तक अंडरग्राउंड थे।

हसीना की पार्टी अवामी लीग के फेसबुक पेज पर सफल विरोध मार्च के लिए आह्वान करते हुए पोस्ट जारी हैं, जिसमें कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न निर्देश दिए गए हैं। इस पोस्ट में, पार्टी ने 10 नवंबर को शहीद नूर हुसैन दिवस के उपलक्ष्य में ढाका के जीरो प्वाइंट शहीद नूर हुसैन स्क्वायर पर विरोध मार्च की घोषणा की। उन्होंने तीन बजे भी मार्च निकालने की घोषणा की।पोस्ट के जरिए कार्यकर्ताओं और सहयोगियों के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है जो मुक्ति संग्राम के मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास करते हैं।

इधर आवामी लीग के कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए बांग्लादेश की सेना-पुलिस तैनात कर दी गई। ढाका पुलिस ने उन्हें विरोध रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। देशभर में सेना की 191 टुकड़ियां तैनात की गई है। वहीं इस बीच सरकार के विभिन्न हलकों ने चेतावनी भी दी है कि आवामी लीग को विरोध मार्च आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। अवामी लीग को फासीवादी करार देते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी को नियोजित रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं देगी।

अब सवाल है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि अवामी लीग इतनी आक्रामक हो गई? इसे अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की वापसी से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, शेख हसीना ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर डोनाल्ड ट्रंप को बधाई संदेश दिया है। इसमें शेख हसीना ने खुद को बांग्लादेश का प्रधानमंत्री बनाता।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग की अध्यक्ष शेख हसीना ने ट्रंप को बधाई संदेश अपनी पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग के लेटर हेड पर लिखा। लेटर हेड पर सामने ही मोटे अक्षरों में पार्टी का नाम है। इसके नीचे पता 23 बंगबंधु एवेन्यू, ढाका का पता लिखा था। आखिर में बांग्लादेश अवामी लीग के ऑफिस सेक्रेटरी बिप्लब बरुआ के हस्ताक्षर।

इसके अलावा शेख हसीना ने ट्रंप और उनकी पत्नी मेलानिया के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की है। इसमें शेख हसीना के साथ उनकी बेटी साइमा वाजिद भी खड़ी हैं।

पार्टी के सुप्रीम नेता के एक्टिव मोड में आने से शायद बांग्लादेश में ठंडे पड़ चुके कार्यकर्ताओं को भी ग्रीन सिग्नल मिला। जिसके बाद बांग्लादेश में अवामी लीग माहौल बनाने में जुट गई है।

अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया

बता दें कि शेख हसीना ने कथित तौर पर खुद को बांग्लादेश से हटाए जाने के पीछे वर्तमान जो बाइडन प्रशासन के होने का आरोप लगाया था। शेख हसीना ने प्रधानमंत्री रहते हुए भी अमेरिका पर उनके खिलाफ तख्तापलट का आरोप लगाया था।

शेख हसीने के तख्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ होने का कोई ठोस सबूत भले ही ना हो, लेकिन अमेरिका के डेमोक्रेट्स ने यूनुस का खुले तौर पर समर्थन किया था। इसकी झलक मोहम्मद यूनुस की संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए हाल में ही अमेरिका यात्रा के दौरान दिखाई दिया। इस दौरान मोहम्मद यूनुस बहुत प्रेम से राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलते नजर आए थे। दोनों नेताओं के बॉडी लैंग्वेज को लेकर काफी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं, सवाल यह भी उठे थे कि खुद को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र कहने वाले देश का राष्ट्रपति एक अलोकतांत्रित तरीके से नियुक्त कार्यवाहक से कैसे मिल रहा है।

यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी

वहीं, अगर मोहम्मद यूनुस की बात की जाए तो वे घोषित तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के धुर विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। 2016 में, ट्रंप के पहली बार राष्ट्रपति चुनाव जीतने के ठीक बाद, पेरिस में एक व्याख्यान देते हुए, यूनुस ने कहा था, "ट्रंप की जीत ने हमें इतना प्रभावित किया है कि आज सुबह मैं मुश्किल से बोल पा रहा था। मेरी सारी ताकत खत्म हो गई। क्या मुझे यहां आना चाहिए? बेशक, मुझे आना चाहिए, हमें इस गिरावट को अवसाद में नहीं जाने देना चाहिए, हम इन काले बादलों को दूर कर देंगे।" ट्रंप पर यूनुस के पिछले विचार और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों की ट्रंप द्वारा सार्वजनिक रूप से निंदा किए जाने के कारण इस नोबेल पुरस्कार विजेता के लिए अमेरिका से निपटना मुश्किल हो सकता है।

शेख हसीना की वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे मोहम्मद यूनुस, इंटरपोल से मदद लेगी बांग्लादेशी सरकार

#bangladesh_interim_govt_going_to_seek_help_of_interpol_to_repatriate_sheikh_hasina

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की वापसी के लिए हर मुमकिन कोशिश में लगी हुई है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कहना है कि वह देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल की मदद लेगा। हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर सरकार विरोधी छात्र आंदोलन को क्रूर तरीके से दबाने का आदेश देने का आरोप है। जुलाई से अगस्त महीने में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों की मौत हुई थी। जिसके खिलाफ अक्टूबर के मध्य तक हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार की शिकायतें दर्ज कराई गईं थी। अब पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ छात्र आंदोलन में हुई मौतों का मुकदमा चलाने के लिए उनको बांग्लादेश लाया जाएगा। इसके लिए अंतरिम सरकार इंटरपोल की मदद मांगेगी।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रविवार को कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य 'भगोड़ों' को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल से मदद मांगेगी ताकि उन सभी पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सके। न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कानूनी मामलों के सलाहकार आसिफ नजरूल ने कहा, 'बहुत जल्द इंटरपोल के लिए एक रेड नोटिस जारी किया जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता के ये भगोड़े फासीवादी दुनिया में कहां छिपे हैं। उन्हें वापस लाया जाएगा और अदालत न्याय करेगी।'

बांग्लादेश सरकार के अधिकारियों के मुताबिक रेड नोटिस कोई इंटरनेशनल गिरफ्तारी वारंट नहीं है, बल्कि प्रत्यर्पण, आत्मसमर्पण या किसी अपराधी की गिरफ्तारी करने का एक वैश्विक अनुरोध है। वे प्रत्यर्पण, आत्मसमर्पण या ऐसी कानूनी कार्रवाई से भाग रहे व्यक्ति का पता लगाएं और उसे अस्थायी रूप से गिरफ्तार करें।

वहीं, आसिफ नजरुल ने कहा कि हसीना और उनके कई कैबिनेट सहयोगियों और अवामी लीग के नेताओं पर विशेष न्यायाधिकरण में मुकदमा चलाया जाएगा। 17 अक्तूबर को न्यायाधिकरण ने हसीना और 45 अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए थे। इसमें उनके बेटे सजीब वाजेद जॉय और उनके कई पूर्व कैबिनेट सदस्य शामिल हैं।

77 साल की अवामी लीग प्रमुख हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर छात्र विरोधी आंदोलन के क्रूर दमन का आरोप लगा है। इसके परिणामस्वरूप जुलाई-अगस्त के विरोध प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों लोग हताहत हुए थे। बाद में आंदोलन बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदल गया, जिस कारण उन्हें भाग कर भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का कहना है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान कम से कम 753 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। सरकार ने कहा है कि हसीना और उनके अवामी लीग नेताओं के खिलाफ अक्टूबर के मध्य तक अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण और अभियोजन टीम के पास 60 से ज्यादा शिकायतें की गई हैं। यह मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार से जुड़ी हैं।

बता दें कि बांग्लादेश में आजादी के बाद से ही बांग्लादेश में आरक्षण व्यवस्था लागू है। इसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को 30 प्रतिशत, देश के पिछड़े जिलों के युवाओं को 10 प्रतिशत, महिलाओं को 10 प्रतिशत, अल्पसंख्यकों के लिए 5 प्रतिशत और दिव्यांगों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। इस तरह बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 प्रतिशत आरक्षण था। साल 2018 में बांग्लादेश के युवाओं ने इस आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन किया। कई महीने तक चले प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश सरकार ने आरक्षण खत्म करने का एलान किया।

बीते 5 जून को बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने देश में फिर से आरक्षण की पुरानी व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया। शेख हसीना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील भी की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को बरकरार रखा। इससे छात्र नाराज हो गए और उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों से शुरू हुआ ये विरोध प्रदर्शन बाद में बढ़ते-बढ़ते हिंसा में तब्दील हो गया था।

इजरायल ने हिजबुल्लाह पर किया था पेजर अटैक, नेतन्याहू ने पहली बार सच कबूला

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लेबनान में हुए घातक पेजर अटैक को लेकर इजरायल की ओर से बड़ा खुलासा किया गया है। ये हमला इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आदेश पर हुआ था। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार स्वीकार किया है कि सितम्बर में लेबनान के अंदर हिजबुल्लाह लड़ाकों के पेजर विस्फोट के पीछे इजरायल का हाथ था। बता दे कि सितम्बर में लेबनान में हिजबुल्लाह लड़ाकों के हजारों पेजर में कुछ ही समय के भीतर ब्लॉस्ट हुए थे। इसके अगले ही दिन वॉकी-टॉकी में भी विस्फोट हुआ था। इस हमले में करीब 40 लोग मारे गए थे, जबकि 3000 से ज्यादा घायल हुए थे। हिजबुल्लाह ने पहले ही उन विस्फोटों के लिए अपने कट्टर-दुश्मन इजराइल को दोषी ठहराया था।

नेतन्याहू ने रविवार को कहा कि उन्होंने सितंबर में लेबनानी आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह पर पेजर हमले को मंजूरी दी थी। इजरायली प्रधानमंत्री के प्रवक्ता उमर दोस्तरी ने एएफपी को बताया, ‘नेतन्याहू ने रविवार को पुष्टि की कि उन्होंने लेबनान में पेजर ऑपरेशन को हरी झंडी दे दी।’ नेतन्याहू ने लेबनान पर इजरायली हमलों को लेकर पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है। इजरायल ने अब तक इसमें शामिल होने की पुष्टि या खंडन नहीं किया था।

17 सितंबर को, हिज़बुल्लाह के गढ़ों में दो दिन तक लगातार हजारों पेजर फटे थे, जिसके लिए ईरान और हिज़बुल्लाह ने इज़रायल को इसका दोषी ठहराया था। पेजर हिज़बुल्लाह के सदस्यों द्वारा एक लो-टेक कम्युनिकेशन के रूप में इस्तेमाल किए जाते थे, ताकि इज़रायल उनकी जगहों को ट्रैक ना कर सके। इस पेजर अटैक ने पूरी दुनिया को सकते में ला दिया था। यहां तक कि अमेरिका तक को समझ नहीं आया कि यह हुआ कैसे?

हिजबुल्लाह ने इन हमलों के पीछे इजरायल को जिम्मेदार बताया था। विभिन्न रिपोर्टों में भी ऐसी ही जानकारी सामने आई थी। हालांकि, इजरायल ने कभी आधिकारिक तौर इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी नहीं ली थी।

भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, डीवाई चंद्रचूड़ का लेंगे स्थान

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, ने सोमवार को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्हें राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। वे न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का स्थान लेंगे, जिनका सीजेआई के रूप में कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त हो गया।

केंद्र ने 16 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की सिफारिश के बाद 24 अक्टूबर को न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया। शुक्रवार को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ का सीजेआई के रूप में अंतिम कार्य दिवस था और उन्हें शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, वकीलों और कर्मचारियों द्वारा शानदार विदाई दी गई। 64 साल की उम्र में, न्यायमूर्ति खन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में छह महीने का कार्यकाल पूरा करेंगे और 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है।

ऐतिहासिक निर्णयों की विरासत

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना कई ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें चुनावी बॉन्ड योजना को खत्म करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना शामिल है। उनके उल्लेखनीय निर्णयों में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के उपयोग को बरकरार रखना भी शामिल है। यह न्यायमूर्ति खन्ना की अगुवाई वाली पीठ थी, जिसने पहली बार आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, तत्कालीन दिल्ली के मुख्यमंत्री को आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी थी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की यात्रा

न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली के एक प्रतिष्ठित परिवार से आते हैं। उनके पिता, न्यायमूर्ति देव राज खन्ना, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे, और उनके चाचा, न्यायमूर्ति एचआर खन्ना, सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रमुख पूर्व न्यायाधीश थे। जस्टिस एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान कुख्यात एडीएम जबलपुर मामले में असहमतिपूर्ण फैसला लिखने के बाद 1976 में इस्तीफा देकर सुर्खियाँ बटोरीं।

जस्टिस खन्ना ने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकन कराया। उन्होंने शुरुआत में तीस हजारी कॉम्प्लेक्स में जिला अदालतों में प्रैक्टिस की, बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय और न्यायाधिकरणों में चले गए। उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में लंबे समय तक काम किया। 2004 में, उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए स्थायी वकील (सिविल) नियुक्त किया गया। उन्हें 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 2006 में स्थायी न्यायाधीश बने। जस्टिस खन्ना को 18 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया। अब 2024 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्त किया गया है, जो उनके जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है।